तिब्बत की पाँच अंगुलियाँ

"तिब्बत की पाँच अंगुलियाँ" माओ से-तुंग द्वारा दी गई एक चीनी रणनीति है जिसमें तिब्बत को चीन के दाहिने हाथ की हथेली माना गया है जिसकी पाँच अंगुलियाँ है: लद्दाख, नेपाल, सिक्किम, भूटान, और अरुणाचल प्रदेश। इस रणनीति के अनुसार इन क्षेत्रों को "स्वाधीन करना" चीन का उत्तरदायित्व है। इस रणनीति का चीन के आधिकारिक सार्वजनिक बयानों में वर्णन नहीं है, परंतु इसके वर्तमान अस्तित्व और संभव पुनरुत्थान को लेकर चिंता व्यक्त कि गई है।

पृष्ठभूमि

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साम्राज्यशाही चीन तिब्बत पर अपने दावे के विस्तार के तौर पर नेपाल, सिक्किम, और भूटान पर आधिपत्य का दावा करता था।[1] इन दावों को तिब्बत में चीन के शाही निवासी ने १९०८ में दृढ़तापूर्वक रखा जब उन्होंने नेपाली प्राधिकरण को यह लिखा कि नेपाल और तिब्बत को "चीनी तत्त्वावधान के अंतर्गत, भाइयों के समान संयुक्त होकर आपसी हित हेतु सामंजस्य में कार्य करना चाहिए।" ब्रिटिश विरोध के सामने चीनी दावों को बल देने के लिए उन्होंने चीन, तिब्बत, नेपाल, सिक्किम, और भूटान के रूप में "पाँच रंगों के सम्मिश्रण" का सुझाव दिया।[2] १९३९ में चीनी साम्यवादी दल के संस्थापक अध्यक्ष माओ से-तुंग ने भूटान और नेपाल को चीन का करद राज्य करार दिया था।

चीन पर सैन्य क्षति पहुँचा कर साम्राज्यशाही देशों ने उससे उसके कई करद राज्य और उसके क्षेत्र के हिस्से जबरदस्ती ले लिए। जापान ने कोरिया, ताइवान, रयुक्यु द्वीपसमूह, पेस्काडोर्स, और पोर्ट आर्थर को हड़प लिया; इंग्लैंड ने बर्मा, भूटान, नेपाल, और हाँग काँग को ले लिया; फ़्रांस ने अनाम को जब्त कर लिया; यहाँ तक कि पुर्तगाल जैसे छोटे और तुच्छ देश ने भी हमसे मकाओ ले लिया। जिस समय वे उसके क्षेत्र का हिस्सा ले गए, साम्राज्यशाहियों ने चीन को भारी क्षतिपूर्ति देने पर विवश किया। अतः चीन के विशाल सामंती साम्राज्य पर भारी प्रहार किए गए।[3]
—माओ से-तुंग

व्यापक धारणा यह है की "तिब्बत की पाँच अंगुलियों" की रणनीति माओ के १९४० के दशक के भाषणों से उत्तपन हुई,[4][5][6] लेकिन इसका चीन के आधिकारिक सार्वजनिक बयानों में वर्णन नहीं है।[7] इस निर्माण में तिब्बत को चीन के दाहिने हाथ की हथेली माना गया और लद्दाख, नेपाल, सिक्किम, भूटान, और नेफ़ा (वर्तमान अरुणाचल प्रदेश) को इसकी पाँच अंगुलियाँ। १९५४ में तिब्बत में चीनी अधिकारियों ने दावा किया कि वे "भारतीय साम्राज्यशाहियों द्वारा अधिकृत सिक्किम, भूटान, लद्दाख, और नेफ़ा को आज़ाद करेंगे।"[8]:५५ उसी वर्ष चीनी सरकार ने विद्यालय के छात्रों के लिए "आधुनिक चीन का संक्षिप्त इतिहास" नामक पुस्तक प्रकाशित कि। इस पुस्तक में एक नक्शा था जिसमें १८४० से १९१९ तक "साम्राज्यशाही शक्तियों" द्वारा कथित तौर पर लिए गए क्षेत्र थे। इन क्षेत्रों को चीन का हिस्सा बताया गया जिनको पुनः-प्राप्त किया जाना है। इस नक्शे में लद्दाख, नेपाल, सिक्किम, भूटान, और समस्त पूर्वोत्तर भारत शामिल थे।[7] यह तथ्य भारतीय राजदूत त्रिलोकी नाथ कौल के संस्मरण में भी लिखित है जो उस समय पेकिंग (जो कि अब बीजिंग के नाम से जाना जाता है) में तैनात थे।[5] बुद्धिजीवी बी. एस. के. ग्रोवर के अनुसार यह नक्शा "पेकिंग की महत्वाकांक्षाओ का एक गंभीर प्रतिबिंब" था, ना कि मात्र प्रचार-प्रसार।[7]

१९५८ से १९६१ तक "पाँच अंगुलियों" पर चीन के दावों को पेकिंग और ल्हासा के रेडियो पर "ज़ोर-ज़ोर से और बार-बार" प्रसारित किया जाता था।[8]:९६ जुलाई १९५९ में ल्हासा में एक सामूहिक बैठक के दौरान चीनी लेफ्टिनेंट जनरल चांग गुओहुआ ने कहा कि "भूटानी, सिक्कीमीज़ और लद्दाखी तिब्बत में एक संयुक्त परिवार है। वह हमेशा तिब्बत और महान मातृभूमि चीन के अधीन रहे है। उन्हे एक बार फिर एकीकृत करके साम्यवादी सिद्धांत पढ़ाया जाना चाहिए।"[7][9][10][a]

२१वीं शताब्दी की नीति में प्रासंगिकता

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यह रणनीति अब आधारिक तौर पर निष्क्रिय है और चीनी दावा अब केवल भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश और भारतीय केन्द्रीय-शासित प्रदेश लद्दाख के भाग अक्साइ चीन पर है। अक्साइ चीन को चीन शिंजियांग के ख़ोतान विभाग का भाग मानता है, लेकिन इसका एक छोटा हिस्सा तिब्बत के न्गारी विभाग के प्रशासन में है।[14] परंतु इस रणनीति के संभव पुनरुत्थान को लेकर चिंता व्यक्त की गई है।[14][15] केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के प्रधानमंत्री लोबसांग सांगेय ने इसे डोकलाम में हुए २०१७ भारत-चीन गतिरोध से जोड़ कर देखा।[16] इसे सांगेय,[17] अधीर रंजन चौधरी (लोक सभा में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के नेता),[18] सेशाद्री चारी (भारतीय जनता पार्टी के विदेशी मामलों के सैल के पूर्व अध्यक्ष),[19] और एम. एम. खजूरिया (भारत के भूतपूर्व राज्य जम्मू और कश्मीर के पुलिस महानिदेशक) द्वारा २०२० में हुए भारत-चीन के झड़पों से भी जोड़ा गया है।[20]

टिप्पणीकार सौरव झा के अनुसार "पाँच अंगुलियों" की रणनीति के पीछे का कारण हिमालय का इतिहासिक भूगोल है जो तिब्बत और दक्षिणी क्षेत्रों के बीच द्विदिशिक दावों को अनुमति देता है। इससे हिमालय के दोनों तरफ़ की शक्तियों के बीच तनाव उत्तपन होता है जो की "अंत में सैन्य सामर्थ्य के संतुलन से शांत होता है", और यही लंबे समय से चल रहे चीन-भारतीय सीमा विवाद के पीछे का कारण है।[21]

इन्हें भी देखें

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  1. यह वक्तव्य तिब्बत में चीनी दूतावास के अध्यक्ष चांग गुओहुआ द्वारा १७ जुलाई १९५९ को ल्हासा में एक सार्वजनिक बैठक में दिया गया था। चाइना टूडै में प्रकाशित विवरण में यह अंश हटा दिया गया था, लेकिन इसे द डेली टेलग्रैफ के कालिंपोंग संवाददाता जॉर्ज पैटरसन द्वारा रिपोर्ट किया गया था।[11][12] पैटरसन की रिपोर्ट के अनुसार जब भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने यह मामला चीन के समक्ष उठाया तो उन्हे "दो टूक कहा गया की इन सीमावर्ती क्षेत्रों पर चीन के दावे उसी दावे पर आधारित है जिसके तहत उसने तिब्बत पर आक्रमण किया।"[13]
  1. जैन, गिरिलाल (1960). "Threat to India's Integrity". Panchsheela and After: A Re-Appraisal of Sino-Indian Relations in the Context of the Tibetan Insurrection (अंग्रेज़ी में). एशिया पब्लिशिंग हाउस. पृ॰ १५८.
  2. जैन, गिरिलाल (1959). "Consequences of Tibet". India meets China in Nepal (अंग्रेज़ी में). एशिया पब्लिशिंग हाउस. पपृ॰ १०५-१०६.
  3. श्चराम, स्टुअर्ट र. (१९६९). "China and the Underdeveloped Countries". The Political Thought of Mao Tse-tung (अंग्रेज़ी में). परेगेर प्रकाशक. पपृ॰ २५७-२५८.
  4. मुनि, एस। डी. (२००९). "The Nehruvian Phase: Ideology Adjusts with Realpolitik". India's Foreign Policy: The Democracy Dimension (अंग्रेज़ी में). फाउंडेशन बुक्स. पृ॰ ३१. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788175968530. मूल से 15 जून 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 जून 2020.
  5. हैदर, सुहासिनी (१८ जून २०२०). "History, the standoff, and policy worth rereading". द हिन्दू (अंग्रेज़ी में). मूल से 19 जून 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १९ जून २०२०.
  6. श्रीवास्तव, संजय (१९ जून २०२०). "India-China Face-off : क्या है चीन की 'फाइव फिंगर्स ऑफ तिब्बत स्ट्रैटजी', जिससे भारत को रहना होगा अलर्ट". न्यूज१८ इंडिया. अभिगमन तिथि १९ जून २०२०.
  7. ग्रोवर, बी. एस. के. (१९७४). Sikkim and India: Storm and Consolidation (अंग्रेज़ी में). जैन ब्रदर्स. पपृ॰ १५२-१५३.
  8. बेलफिग्लिओ, वेलेंटाइन जॉन (१९७०) (अंग्रेजी में). The Foreign Relations of India with Bhutan, Sikkim and Nepal Between 1947-1967: An Analytical Framework for the Study of Big Power-Small Power Relations (PhD). ओक्लाहोमा विश्वविद्यालय. 
  9. बेनेडिक्टस, ब्रायन (2 अगस्त 2014). "Bhutan and the Great Power Tussle". द डिप्लमैट (अंग्रेज़ी में). मूल से 22 दिसंबर 2015 को पुरालेखित.
  10. स्मिथ, पॉल जे. (२०१५). "Bhutan–China Border Disputes and Their Geopolitical Implications". प्रकाशित ब्रूस एलेमान; स्टीफन कोटकीं; क्लाइव सकोफील्ड (संपा॰). Beijing's Power and China's Borders: Twenty Neighbors in Asia. एम. इ. शार्पे. पृ॰ २७. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-7656-2766-7.
  11. देसाई, बी. के. (1959). India, Tibet and China (अंग्रेज़ी में). बॉम्बे: डेमक्रैटिक रिसर्च सर्विस. पृ॰ ३०. मूल से 27 अगस्त 2017 को पुरालेखित.
  12. "Delhi Diary, 14 August 1959". The Eastern Economist; a Weekly Review of Indian and International Economic Affairs, Volume 33, Issues 1–13 (अंग्रेज़ी में). 1959. पृ॰ २२८. मूल से 27 अगस्त 2017 को पुरालेखित.
  13. जॉर्ज एन. पैटरसन. China's Rape of Tibet (PDF) (अंग्रेज़ी में). जॉर्ज एन. पैटरसन वेबसाईट. मूल (PDF) से २७ अगस्त २०१७ को पुरालेखित. अभिगमन तिथि २३ अगस्त २०१७.
  14. ब्रैडशर, हेनरी एस. (१९६९). "Tibet Struggles to Survive". फारन अफेरस्. ४७ (४): ७५२. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0015-7120. डीओआइ:10.2307/20039413.
  15. झा, पुरुषोत्तम (१९ जून २०२०). "China – A desperate state to change the narratives and contexts". द टाइम्स ऑफ इंडिया. अभिगमन तिथि १९ जून २०२०.
  16. बासु, नयनिमा (१७ अक्टूबर २०१७). "'Doklam is part of China's expansionist policy'". बिजनस लाइन (अंग्रेज़ी में). मूल से 28 मई 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १९ जून २०२०.
  17. सिद्दीकी, माहा (१८ जून २०२०). "Ladakh is the First Finger, China is Coming After All Five: Tibet Chief's Warning to India" (अंग्रेज़ी में). सीएनएन-न्यूज१८. मूल से 24 जून 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १९ जून २०२०.
  18. चौधरी, अधीर रंजन (१७ जून २०२०). "Chinese intrusion in Ladakh has created a challenge that must be met". द इंडियन एक्स्प्रेस (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि २० जून २०२०.
  19. चारी, सेशाद्री (१२ जून २०२०). "70 yrs on, India's Tibet dilemma remains. But 4 ways Modi can achieve what Nehru couldn't". द प्रिन्ट (अंग्रेज़ी में). मूल से 29 जून 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि २० जून २०२०.
  20. खजूरिया, एम. एम. (५ जून २०२०). "Maos' open palm & its five fingers". स्टेट टाइम्स (अंग्रेज़ी में). मूल से 22 जून 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि २० जून २०२०.
  21. झा, सौरव (३० मई २०२०). "India must stand firm". डेक्कन हेराल्ड (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि १९ जून २०२०.