नागपुर राज्य
नागपुर राज्य 18वीं शताब्दी की शुरुआत में देवगढ़ के गोंड शासकों द्वारा स्थापित पूर्व-मध्य भारत में एक साम्राज्य था। यह 18वीं शताब्दी के मध्य में मराठों के भोंसले वंश के शासन में आ गया और मराठा साम्राज्य का हिस्सा बन गया। नागपुर शहर राज्य की राजधानी बनी।
नागपुर का राज्य नागपुर | |||||||||
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रियासत | |||||||||
1818–1853 | |||||||||
Flag | |||||||||
History | |||||||||
• ब्रिटिश संरक्षित राज्य | 1818 | ||||||||
1853 | |||||||||
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Today part of | महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा (भारत) | ||||||||
भारत की रियासतें - नागपुर |
तीसरे आंग्लो-मराठा युद्ध के बाद, यह 1818 में ब्रिटिश साम्राज्य का एक रियासत बन गया, और 1853 में ब्रिटिश भारत में विलय कर नागपुर प्रांत बना दिया गया।
इतिहास
संपादित करेंगोंड साम्राज्य
संपादित करेंनागपुर राज्य का ऐतिहासिक रिकॉर्ड, 18वीं शताब्दी की शुरुआत में शुरू हुआ, जब इसे छिंदवाड़ा जिले को देवगढ़ के गोंड साम्राज्य का हिस्सा बनाया गया। देवगढ़ के शासक बख्त बुलंद ने दिल्ली का दौरा किया और बाद में अपने राज्य के विस्तार को प्रोत्साहित करने के लिए दृढ़ संकल्पित था। इसके लिए उसने हिंदू और मुस्लिम कारीगरों और खेती करने वालों को मैदानी क्षेत्र में बसने के लिए आमंत्रित किया और नागपुर शहर की स्थापना की। उसके उत्तराधिकारी, चांद सुल्तान ने देश के विकास को जारी रखा, और अपनी राजधानी को नागपुर मे ले गया।
राघोजी प्रथम भोंसले (1739-1755)
संपादित करें1739 में चांद सुल्तान की मृत्यु के बाद, उसके उत्तराधिकार के लिये होने लगा और उसकी विधवा ने मराठा सेनापति राघोजी भोंसले से सहायता मांगी, जो मराठा छत्रपति की ओर से बरार सुबा पर शासन कर रहे थे। भोंसले परिवार मूल रूप से सतारा जिले के एक गाँव देउर का मुखिया थे। राघोजी के दादा और उनके दो भाइयों ने शिवाजी की सेनाओं में लड़ाई लड़ी थी, और उनमें से सबसे प्रतिष्ठित को एक उच्च सैन्य कमान सौंपी गई थी और बरार मेंचौथ (कर) इकट्ठा करने की भूमिका दी गई। राघोजी ने, जिस गोंड गुटों ने बुलाया था, चांद सुल्तान के दो बेटों को सिंहासन पर बिठाया, जहाँ से उन्हें बेदखल कर दिया गया था। राघोजी अपनी सहायता के लिए उपयुक्त इनाम के साथ फिर बरार वापस आ गए। हालाँकि, दोनों भाइयों के बीच मतभेद पुन: हो गए, और 1743 में राघोजी ने फिर से बड़े भाई के अनुरोध पर हस्तक्षेप किया और उसके प्रतिद्वंद्वी को बाहर निकाल दिया। लेकिन इस बार उनका सत्ता वापस देने का मन नहीं था, दूसरी बार, उन्होंने राज्य को अपनी मुट्ठी में ही रखा। गोंड राजा, बुरहान शान, को प्रतीक के तौर पर राजा बनाए रखा, व्यावहारिक रूप से वह राज्य का पेंशनर बन गया, और सभी वास्तविक शक्ति राघोजी भोंसले के पास आ गई, और वह नागपुर के पहले मराठा शासक बन गए।
साहसिक और निर्णायक कार्रवाई में चतुर, राघोजी मराठा नेताओं में एक आदर्श थे; उन्होंने अन्य राज्यों की परेशानियों को अपनी महत्वाकांक्षा के लिए एक विस्तार के रूप में देखा, और उसके लिये लूट और आक्रमण के बहाने की भी आवश्यकता नहीं थी। उसकी सेनाओं ने बंगाल पर दो बार आक्रमण किये, और उन्होंने कटक का आधिपत्य प्राप्त किया। उनकी मृत्यु के वर्ष 1755 और 1745 के बीच में उनका प्रभुत्व में चांदा, छत्तीसगढ़ और संबलपुर को जोड़ा गया था।
जानोजी, माधोजी प्रथम और राघोजी द्वितीय भोंसले (1755–1816)
संपादित करेंउनके उत्तराधिकारी जानोजी ने हैदराबाद के निज़ाम और पेशवा के बीच युद्धों में भाग लिया। जब उसने बदले में दोनों को धोखा दिया, तब उन्होंने उसके खिलाफ एकजुट होकर 1765 में नागपुर को पर चढाई की और लूट लिया।
नागपुर राज्य के शासक
संपादित करें- राघोजी प्रथम भोंसले (1739 – 14 फरवरी 1755)
- जानोजी भोंसले (1755 – 21 मई 1772)
- माधोजी भोंसले (1772 – 19 मई 1788)
- राघोजी द्वितीय भोंसले (1788 – 22 मार्च 1816)
- परसोजी भोंसले (1816 – 2 फरवरी 1817)(ज. 1778 – मृ. 1817)
- माधोजी द्वितीय भोंसले "अप्पा साहिब" (1817 – 15 मार्च 1818)(ज. 1796 – मृ. 1840)
- राघोजी तृतीय भोंसले (1818 – 11 दिसम्बर 1853)(ज. 1808 – मृ. 1853)
सन्दर्भ
संपादित करें- हंटर, विलियम विल्सन, सर, एट अल। (1908)। इम्पीरियल गजेटियर ऑफ़ इंडिया, खंड 17. 1908-1931; क्लेरेंडन प्रेस, ऑक्सफोर्ड।