दर्शनशास्त्र वह ज्ञान है जो परम् सत्य और सिद्धांतों, और उनके कारणों की विवेचना करता है। दर्शनयथार्थ की परख के लिये एक दृष्टिकोण है। दार्शनिक चिन्तन मूलतः जीवन की अर्थवत्ता की खोज का पर्याय है। वस्तुतः दर्शनशास्त्र स्वत्व, तथा समाज और मानव चिंतन तथा संज्ञान की प्रक्रिया के सामान्य नियमों का विज्ञान है। दर्शनशास्त्र सामाजिक चेतना के रूपों में से एक है। दर्शन उस विद्या का नाम है जो सत्य एवं ज्ञान की खोज करता है। व्यापक अर्थ में दर्शन, तर्कपूर्ण, विधिपूर्वक एवं क्रमबद्ध विचार की कला है। इसका जन्म अनुभव एवं परिस्थिति के अनुसार होता है। यही कारण है कि संसार के भिन्न-भिन्न व्यक्तियों ने समय-समय पर अपने-अपने अनुभवों एवं परिस्थितियों के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार के जीवन-दर्शन को अपनाया
भारतीय दर्शन का इतिहास अत्यन्त पुराना है यह पीढ़ी दर पीढ़ी अर्जित दर्शन है इसके जड़ तक जाना असम्भव है किन्तु पश्चिमी फिलॉसफ़ी के अर्थों में दर्शनशास्त्र पद का प्रयोग सर्वप्रथम पाइथागोरस ने लिखित रूप से किया था। विशिष्ट अनुशासन और विज्ञान के रूप में दर्शन को प्लेटो ने विकसित किया था। उसकी उत्पत्ति दास-स्वामी समाज में एक ऐसे विज्ञान के रूप में हुई जिसने वस्तुगत जगत तथा स्वयं अपने विषय में मनुष्य के ज्ञान के सकल योग को ऐक्यबद्ध किया था। यह मानव इतिहास के आरंभिक सोपानों में ज्ञान के विकास के निम्न स्तर के कारण सर्वथा स्वाभाविक था। सामाजिक उत्पादन के विकास और वैज्ञानिक ज्ञान के संचय की प्रक्रिया में भिन्न भिन्न विज्ञान दर्शनशास्त्र से पृथक होते गये और दर्शनशास्त्र एक स्वतंत्र विज्ञान के रूप में विकसित होने लगा। जगत के विषय में सामान्य दृष्टिकोण का विस्तार करने तथा सामान्य आधारों व नियमों का करने, यथार्थ के विषय में चिंतन की तर्कबुद्धिपरक, तर्क तथा संज्ञान के सिद्धांत विकसित करने की आवश्यकता से दर्शनशास्त्र का एक विशिष्ट अनुशासन के रूप में जन्म हुआ। पृथक विज्ञान के रूप में दर्शन का आधारभूत प्रश्न स्वत्व के साथ चिंतन के, भूतद्रव्य के साथ चेतना के संबंध की समस्या है। अधिक पढ़ें…
नीतिशास्त्र (अंग्रेज़ी: ethics) जिसे व्यवहारदर्शन, नीतिदर्शन, नीतिविज्ञान और आचारशास्त्र भी कहते हैं, दर्शन की एक शाखा हैं। यद्यपि आचारशास्त्र की परिभाषा तथा क्षेत्र प्रत्येक युग में मतभेद के विषय रहे हैं, फिर भी व्यापक रूप से यह कहा जा सकता है कि आचारशास्त्र में उन सामान्य सिद्धांतों का विवेचन होता है जिनके आधार पर मानवीय क्रियाओं और उद्देश्यों का मूल्याँकन संभव हो सके। अधिकतर लेखक और विचारक इस बात से भी सहमत हैं कि आचारशास्त्र का संबंध मुख्यत: मानंदडों और मूल्यों से है, न कि वस्तुस्थितियों के अध्ययन या खोज से और इन मानदंडों का प्रयोग न केवल व्यक्तिगत जीवन के विश्लेषण में किया जाना चाहिए वरन् सामाजिक जीवन के विश्लेषण में भी। नीतिशास्र मानव को सही निर्णय लेने की क्षमता विकसित करता है। अच्छा और बुरा, सही और गलत, गुण और दोष, न्याय और जुर्म जैसी अवधारणाओं को परिभाषित करके, नीतिशास्त्र मानवीय नैतिकता के प्रश्नों को सुलझाने का प्रयास करता हैं। बौद्धिक समीक्षा के क्षेत्र के रूप में, वह नैतिक दर्शन, वर्णात्मक नीतिशास्त्र, और मूल्य सिद्धांत के क्षेत्रों से भी संबंधित हैं।
नीतिशास्त्र में अभ्यास के तीन प्रमुख क्षेत्र जिन्हें मान्यता प्राप्त हैं: अधिनीतिशास्त्र, जिसका संबंध नैतिक प्रस्थापनाओं के सैद्धांतिक अर्थ और संदर्भ से हैं, और कैसे उनके सत्य मूल्य (यदि कोई हो तो) निर्धारित किये जा सकता हैं; मानदण्डक नीतिशास्त्र, जिसका संबंध किसी नैतिक कार्यपथ के निर्धारण के व्यवहारिक तरीकों से हैं; अनुप्रयुक्त नीतिशास्त्र, जिसका संबंध इस बात से हैं कि किसी विशिष्ट स्थिति या क्रिया के किसी अनुक्षेत्र में किसी व्यक्ति को क्या करना चाहिए (या उसे क्या करने की अनुमति हैं)। इसमे वकीलो ओर अपने पक्षकार को जो भी सलाह दी जाती है उसी के हिसाब से पक्षकार काम करने को बाधित होता है। अधिक पढ़ें…
आम्बेडकर विपुल प्रतिभा के छात्र थे। उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स दोनों ही विश्वविद्यालयों से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधियाँ प्राप्त कीं तथा विधि, अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में शोध कार्य भी किये थे। व्यावसायिक जीवन के आरम्भिक भाग में ये अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे एवं वकालत भी की तथा बाद का जीवन राजनीतिक गतिविधियों में अधिक बीता। इसके बाद आम्बेडकर भारत की स्वतन्त्रता के लिए प्रचार और चर्चाओं में शामिल हो गए और पत्रिकाओं को प्रकाशित करने, राजनीतिक अधिकारों की वकालत करने और दलितों के लिए सामाजिक स्वतंत्रता की वकालत की और भारत के निर्माण में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। हिन्दू धर्म में व्याप्त कुरूतियों और छुआछूत की प्रथा से तंग आकार सन 1956 में उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया था। सन 1990 में, उन्हें भारत रत्न, भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से मरणोपरांत सम्मानित किया गया था। १४ अप्रैल को उनका जन्म दिवस आम्बेडकर जयंती के तौर पर भारत समेत दुनिया भर में मनाया जाता है। डॉक्टर आम्बेडकर की विरासत में लोकप्रिय संस्कृति में कई स्मारक और चित्रण शामिल हैं। अधिक पढ़ें…
राष्ट्रों का धन, जिसका अंग्रेज़ी शीर्षक द वेल्थ ऑफ नेशन्स (The Wealth of Nations) और पूर्ण शीर्षक राष्ट्रों का धन की प्रकृति और कारणों की जाँच है, सन् 1776 में प्रकाशित एक पुस्तक है जो इस बात का गहराई से अध्ययन करती है कि किसी राष्ट्र में सम्पन्नता और समृद्धि किस तरह से आती है। यह विश्वभर में इस प्रकार की पहली पुस्तकों में से एक थी और इसे अर्थशास्त्र की एक बुनियादी कृति माना जाता है। यह औद्योगिक क्रांति की शुरुआत की अर्थव्यवस्था से आरम्भ होती है और श्रम के विभाजन, उत्पादकता और मुक्त बाज़ारों जैसे विस्तृत विषयों को छूती है।
... कि सत्य के मानदंड मानक और नियम हैं जिनका उपयोग बयानों और दावों की सटीकता का न्याय करने के लिए किया जाता है?
... कि एक समर्पण पतन एक ऐसा तर्क है जिसमें सच्चा परिसर है, लेकिन फिर भी एक गलत निष्कर्ष हो सकता है?
... की प्राचीन चीनी दार्शनिक और रणनीतिज्ञ आचार्य सून त्ज़ू ने सून त्ज़ू बींग्फ़ा (आचार्य सून की युद्ध नीति) लिखी थी, जो युद्धशास्त्र, युद्धनीति, युद्ध दर्शन और रणनीति की प्राचीनतम ग्रंथों में से है?
... कि "दीक्षा और दर्शनशास्त्र की बातें" (डक्ट्स एंड सेइंग्स ऑफ़ फ़ॉलोज़ोफेर्स) इंग्लैंड में पहली बार छपी पुस्तक है?
... कि एक सफल प्रायोगिक प्रणाली को स्थिर होना चाहिए और वैज्ञानिकों को सिस्टम के व्यवहार की समझ बनाने के लिए पर्याप्त रूप से प्रतिलिपि प्रस्तुत करने योग्य होना चाहिए, लेकिन यह अप्रत्याशित है कि यह उपयोगी परिणाम पैदा कर सकता है?
... कि प्राचीन चीनी पाठ हुआंगडी यिनफुजिंग, जिसे तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में पौराणिक सम्राट हुआंगड़ी के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था, वह तांग राजवंश (618-907 सीई) से एक जालसाजी हो सकता है?
... की जैन दर्शन में अनेकान्तवाद के अनुसार कोई भी व्यक्ति किसी चीज़ को केवल अपने नज़रिये से पूर्णतः नहीं समझ सकता?
मेरे पिता सहज-चेतना ज्ञान हैं। मेरी माता सदाउत्तम जननी पूरी वसुधा है। मैं द्वैत की अवधारणाओं का उपभोग करके जीवित हूं। मेरा उद्देश्य व्याकुल भावनाओं का पतन है।