•परांतक प्रथम• - (907-955 ई.) उपाधि- 1.मदुरांतक 2.मदुरैकोंड 3.संग्रामराघव 4.परकेसरीवर्मा 5.वीरनारायण 6.पंडितवत्सल 7.देवेंद्र चक्रवती 8.कुञ्जरमल 9.शूरशूलामणि 10.वीरचोल।

प्रथम सर्वसत्तासंपन्न चोल शासक परांतक प्रथम था। इसने वेल्लूर के युद्द में पांड्य एवं सिंहल राजाओं की सम्मिलित सेना को हरा दिया और मदुरा पर अधिकार कर लिया। इसी उपलक्ष्य में उसने मदुरैकोंड की उपाधि धारण की थी। राष्ट्रकूटों पर विजय प्राप्त करने के उपलक्ष्य में वीरचोल की उपाधि धारण की थी। उसने हेमगर्भ एवं तुलाभार नामक यज्ञों का सम्पादन किया। परान्तक प्रथम ने श्रीलंका पर भी असफल आक्रमण किया था। परान्तक प्रथम के ही काल में ऋग्वेद के भाष्यकार वेंकेट माधव हुए। उसने शिव की उपासना के लिए दभ्रसभा का निर्माण करवाया था। उसने चिदम्बरम् के शिव मंदिर को स्वर्ण से भर दिया था। परान्तक प्रथम शिव का उपासक था। तिरुवालंगाडु ताम्रपत्र में उसे शिव के चरण-कमलों का भ्रमर कहा गया है।

परान्तक प्रथम को राष्ट्रकूट शासक कृष्ण तृतीय ने 949 ई. में तक्कोलम युद्ध में पराजित कर तोण्डमण्डलम पर अधिकार कर लिया। इसी उपलक्ष्य में कृष्ण-तृतीय ने कांची और तंजौर के दमनकर्ता की उपाधि धारण की थी। अतः एक बार पुनः चोल इतिहास को अन्धकार युग (dark age) में ढकेल दिया गया। इस युग में क्रमशः तीन शासकों गन्दरादित्य,अरिंजय एवं परान्तक द्वितीय का उल्लेख मिलता है। गंदरादित्य की पत्नी शेम्बियन महादेवी थी। वह उत्तम चोल की माँ थी। अरिंजय का पुत्र परान्तक द्वितीय था।