भयहरणनाथ मन्दिर

भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन मन्दिर हैं

बाबा भयहरणनाथ मन्दिर भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन मन्दिर हैं।[1] यह उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिला में स्थित एक पांडव युगीन मंदिर हैं, जो ग्राम कटरा गुलाब सिंह में पौराणिक बकुलाही नदी[2][3] के तट पर विद्यमान हैं।[4]

श्री भयहरणनाथ मन्दिर
चित्र:Bhugterian mandir (भयहरणनाथ मन्दिर).jpg
धर्म संबंधी जानकारी
सम्बद्धताहिन्दू धर्म
देवताशिव
अवस्थिति जानकारी
अवस्थितिकटरा गुलाब सिंह, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश
वास्तु विवरण
शैलीहिन्दू वास्तुकला
निर्मातापांडव
जीर्णोद्धारक - नागाबाबा
स्थापित२०वी शताब्दी


माना जाता है की अज्ञातवास के समय पाण्डवों ने यहाँ शिवलिंग की स्थापना की जिसमें यहां पांडवों ने भगवान शिव की पूजा-अर्चना की. तथा सभी ने अलग-अलग स्थानों पर शिवलिंग स्थापित किए ओर यहाँ का शिवलिंग भीम द्वारा स्थापित किया गया था। भगवान शिव के इस मन्दिर में एक चित्ताकर्षित भगवान श्री भयहरण नाथ जी (भोलेनाथ) का शिवलिंग स्थापित है। जिसके दर्शनों के के लिए भक्त देश के कोने कोने से यहाँ पहुँचते है।

लगभग १० एकड के क्षेत्रफल में फैले इस धाम में पाण्डवों द्वारा स्थापित शिवलिंग के मुख्य मन्दिर के अलावा हनुमान, शिव पार्वती, संतोषी माँ, राधा कृष्ण, विश्वकर्मा भगवान, बैजूबाबा आदि का मंदिर है। अपनी प्राकृतिक एवं अनुपम छटा तथा बकुलाही नदी के तट पर स्थित होने के नाते यह स्थल आध्यात्मिक दृष्टि से काफी जीवन्त है।

श्रावण मास, मलमास, अधिमास तथा महाशिवरात्रि को जनमानस की अपार भीड़ देखने को मिलती है, वैसे वर्ष भर प्रत्येक मंगलवार को भारी भीड़ होती है तथा जलाभिषेक एवं पताका चढता है। प्रत्येक अवसर पर श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए मिष्ठान, विसात, फल सब्जी, फूल माला तथा अन्य वस्तुओं की दुकाने सजी रहती हैं। इस सावन माह में भी प्रतिदिन हजारों श्रद्धालुओं, कावडियों तथा भक्तों का जमावड़ा लगना शुरू हो गया है। पूरे सावन माह में प्रत्येक सोमवार व मंगलवार को अपार भीड होती है।[5]

वर्तमान मे इस मंदिर का निर्माण व जीर्णोद्नार ब्रह्मलीन संत श्री नागाबाबा जी तथा स्थानीय जनसहयोग द्वारा संपन्न हुआ। इस क्षेत्र में महाभारत काल के और कई पौराणिक स्थल तथा भग्नावशेष आज भी मौजूद है, जिसमे ऊँचडीह गांव का टीला तथा उसकी खुदाई में प्राप्त मूर्तियाँ, स्वरूपपुर गांव का सूर्य मन्दिर तथा कमासिन में कामाख्या देवी का मन्दिर प्रमुख है। इस सब के सम्बन्ध तरह - तरह की लोक श्रुतियाँ, लोक मान्यतायें प्रचलित हैं। इस मंदिर के महत्व के बारे में एक पौराणिक कथा प्रचलित है जिसमें कहा गया है कि जब पांडवों को अज्ञातवास मिला तो वह यहां वहां अपने को छुपाते हुए घूम रहे थे। तब यहां पर आए इस दौरान भीम ने यहाँ पर राक्षस बकासुर का वध करने के पश्चात इस शिवलिंग की स्थापना की थी। भीम ने राक्षस बकासुर का वध कर ग्रामवासियों को राक्षस बकासुर के आतंक से भय मुक्त किया था, तत्पश्चात जनकल्याण के लिए शिवलिंग की स्थापना की और तब से ही भयहारी कहे जाने वाले भगवान भोलेनाथ जनमानस में "'भव भयहरणनाथ"' के नाम से प्रसिद्ध हुए।[6]

।। भीम बकासुर की हुई लड़ाई। तुम्हरे बल तेहि स्वर्ग पठाई।।
।। पांडव पर अति किरपा कीन्हा। अतिसय बल औ पुरुख दीन्हा।।
।। तब बल भीम हिडिम्बहि मारा। कीन्ह द्वेतवनन निर्भय सारा।।

महाभारत के वन पर्व में एक कथा है जिसके अनुसार कौरवों से जुए में हारने के बाद युधिष्ठिर अपने भाइयों और द्रौपदी के साथ वनवास को चले गए। जुए में शर्त के अनुसार इनको एक वर्ष अज्ञातवास करना था। अज्ञातवास करने के लिए पाण्डव छिपते हुए प्रतापगढ़ के निकट सघन वन क्षेत्र द्वैतवन में आ गए। यहां पांचो पांडवों ने भगवान शिव की पूजा-अर्चना के लिए अलग-अलग स्थानों पर शिवलिंग स्थापित किए। बताते हैं, धर्मराज युधिष्ठिर ने प्रतापगढ़ के रानीगंज अजगरा में अजगर रूपी राक्षस का वध किया था। आज भी यहाँ पाँच सिद्ध स्थान है जो पांडवों ने स्थापित किये थे। बाद में पांडव नेपाल के विराट नगर चले गए। महाभारत में बालकुनी नदी का उल्लेख हुआ है। भाषा विज्ञानियों के अनुसार बालकुनी का अपभ्रंश बकुलाही हो गया। वर्तमान की बकुलाही नदी के तट पर भगवान भयहरणनाथ लिंग रूप में विराजमान है।[7][8]

बार बार विनती करूँ, सुनहु भयहरण नाथ।
दया दृष्टि कीजै प्रभु, बसहु हृदय मम नाथ।।
दीनबन्धु करूणा अयन, कृपा सिन्धु सुख धाम।
ऐसे भोलेनाथ को, बारम्बार प्रणाम।।
बार बार सेवक करे, विनय भयहरण नाथ।
भक्ति विमल प्रभु दीजिये, कहु दया अब नाथ।।
भक्त भला प्रभु कीजिये, पूरण कीजै आस।
परम पातकी हुँ सरल, कीजै नही निरास

वास्तुशिल्प

संपादित करें

मुख्य मंदिर एक ऊँचे टीले पर बना हुआ है। मंदिर मे मुख्य भाग मण्डप और गर्भगृह के चारो ओर प्रदक्षिणा पथ है। मुख्य मंदिर के बाहर प्रांगण मे नंदी बैल भगवान शिव के वाहन के रूप मे विराजमान है। मुख्य मंदिर के सामने बारादरी से जुड़ा हुआ शंकर पार्वती की सदेह मूर्ति है, जिसका निर्माण 7 नवम्बर 1960 को कुर्मी क्षत्रिय समाज द्वारा किया गया था। धाम मे मुख्यतः दस मंदिर है और तीन समाधिया है। यहाँ की कुछ मंदिर उपेक्षित भी है। मंदिर का वास्तुशिल्प निर्माण उत्तर भारत वास्तुकला के आधार पर हुआ है। हिंदू वास्तुशास्त अनुसार प्रत्येक मंदिर का मुख पूरब सूर्योदय की दिशा मे है।[9]

समाधियाँ

संपादित करें

यहाँ मुख्यत: तीन समाधि है।

प्रथम समाधि

संपादित करें

प्रथम समाधि है मंदिर के प्रथम पुजारी एवं जीर्णोद्धारक पूज्यनीय संत श्री नागा बाबा की। ब्रह्मलीन नागा बाबा ने जन सहयोग से भवभयहरणनाथ मंदिर का निर्माण कराया था। वर्तमान मंदिर नागा बाबा के परिश्रम की देन है। इनके संबंध मे बहुत लोक कथाएँ प्रचलित है। महापुरुष संत आज भी स्थानीय लोगो के हृदय में बसते हैं।

द्वितीय समाधि

संपादित करें

द्वितीय समाधि है ब्रह्मनिष्ठ स्वामी श्री दाण्डी महाराज की। स्वर्गीय दाण्डी स्वामी ने भी इस धाम के विकास एवं संरक्षण के लिए बहुत कुछ प्रयास किया था। स्वामी श्री ने अपना संपूर्ण जीवन भगवान भोलेनाथ की सेवा मे समर्पित कर दिये थे।

तृतीय समाधि

संपादित करें

धाम के प्रांगण मे स्थित श्री राधाकृष्ण मंदिर के सामने एक छोटा सा मंदिर है, जो एक बंदर की समाधि है। इसके संबंध में बताया जाता है कि कटरा गुलाब सिंह बाज़ार मे एक जोड़ा बंदर रहता था। एक दिन एक व्यक्ति ने बाट से बंदरिया को मार दिया, दुर्योग ही कहा जाएगा, वह बंदरिया मर गई। बाज़ार वासी उस व्यक्ति को बहुत भला बुरा कहे फिर राय बनाकर उसकी अन्तयेष्टि गंगा जी के तट पर करने का निश्चय किया। शवयात्रा निकली, साथ मे नर बंदर भी आगे आगे चला। लोगों ने सोचा, जिस मार्ग से बंदर चले उसी मार्ग से चला जाए। बंदर बाज़ार से बाहर निकलने पर बाबा नगरी भयहरणनाथ धाम की ओर मुड़ गया। सभी लोग तट पर जाने के बजाय उसी बंदर का अनुगमन करते हुए बाबा नगरी पहुँच गए। बंदर पहले प्रधान मंदिर भगवान भव भयहरणनाथ महादेव के सामने पहुँच कर बैठ गया। इसके बाद उठकर राधाकृष्ण मंदिर के सामने बैठा। लोगों ने उसके मौन संकेत को समझकर उसी स्थान पर बंदरिया की समाधि बना दी। कुछ दिन बाद मारने वाला परिवार परेशान होने लगा। बाज़ार वासियों ने उसे बंदरिया की पक्की समाधि बनाने की सलाह दी। उसने अपने आर्थिक स्थिति के अनुसार एक छोटा सा मंदिर बनवा दिया लोगों के अनुसार तभी से उस परिवार का कल्याण हो गया।

महाशिवरात्रि

संपादित करें

इस प्राचीनतम धार्मिक स्थल पर महाशिवरात्रि के दिन सैकड़ों वर्षो से विशाल मेला लगता आ रहा है, जिसमे लाखों लोग शामिल होते है। साथ ही प्रत्येक मंगलवार को हजारों की संख्या में क्षेत्रीय जन समुदाय शिवलिंग पर जल तथा पताका चढाने हेतु मन्दिर परिसर में एकत्रित होता है। श्रावण मास में जलाभिषेक के लिए दूर-दराज से श्रद्धालु उमड़े रहते है। कावंरियों व शिव भक्तों के जमावड़े से धाम गुलज़ार रहती है। मंगलवार को यह दृश्य देखते ही बनता जब जयकारे से पूरा वातावरण गुंजायमान होता रहता है। तेरस पर्व के अवसर पर भारी तादाद में श्रद्धालु लोग दूर -दराज से यहां पहुंचते है। महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर लगने वाले फागुनी मेले में प्रति वर्ष श्रृंगवेरपुर धाम तथा फाफामऊ से गंगाजल लेकर शिवभक्त कांवरिये पैदल प्रतापगढ़ जनपद स्थित भयहरणनाथ की पूजा अर्चना व जलाभिषेक करने भगवान भोलेनाथ का जयकारा लगाते हुए आते हैं। अपनी धुन व शिवभक्ति के पक्के कांवरियों की सकुशल सुरक्षित यात्रा, पूजा-अर्चना, जलाभिषेक सम्पन्न कराना प्रशासन के लिए एक चुनौती ही होता है। प्रशासन पूरी यात्रा के दौरान मुस्तैद व चौकना रहता है।

वार्षिक महोत्सव

संपादित करें

पिछले 13 वर्षों से महाशिवरात्रि पर चार द्विवसीय महाकाल महोत्सव, नागपंचमी पर घुघुरी उत्सव[10] ने परम्परा का स्वरूप ग्रहण करके इस धाम का महत्व राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्थापित किया है। इस धाम पर देश विदेश के महत्वपूर्ण व्यक्तियों का विभिन्न कार्यक्रमों में आगमन होता रहता है।

पांडव ने जब तुम्हे पुकारा।
प्रगट भये प्रभु लिंग अकारा।।

बालकुनी तट आप विराजे।
महादेव संग माँ शक्ति राजे।।

बकासुर ने उत्पात मचाया।
मार-काट असुर मनुष्य खाया।।

भयभीत हुए जन बेल्हा वासी।
तँबहि कृपा किये अविनाशी।।

दिव्य ओज बल भीम को दीन्हा।
भीम ने बाका, हिडिम्ब वध कीन्हा।।

पांडव ने निज भक्ति कीन्ही।
अर्जित अपार शक्ति कीन्ही।।

नागा बाबा शिव धाम पधारे।
दाण्डी स्वामी सर्वस्व निसारे।।

संत रवीशंकर प्रभु दर्शन पाये।
लिंग यहाँ अद्भुत बताये।।

मिटे सभी के आधि-व्याधि।
धाम में पावन तीन समाधी।।

चढ़ै बिल्वपत्र औ भाँग धतूर।
भयहरणनाथ करे सब संकट दूर।।

मान-मनौती पूरण करते।
भक्तो के भव भय, दुःख हरते।।

भयहरणनाथ प्रभु अन्तर्यामी।
भय संहारक शिव तुम स्वामी।।

साधू संत सज्जन प्रभु दासा।
पूर्ण करहुँ नाथ मम अभिलाषा।।

श्री भयहरणनाथ महादेव स्तुति

इन्हें भी देखे

संपादित करें
  1. Yadav, Hridai Ram (2009). Village Development Planning. Concept Publishing. पृ॰ 11. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788172681876.
  2. "भयहरणनाथ धाम में बकुलाही पंचायत आज". जागरण न्यूज़. जून 09,2014. |date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  3. "वर्षो की प्यास बुझा रही बकुलाही की प्राचीन सजल धारा". डेली न्यूज एक्टिविस्ट. 20 अगस्त 2013. मूल से 8 अगस्त 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 अगस्त 2014.
  4. "आध्यात्मिक व सामाजिक विकास का केन्द्र भयहरणनाथ धाम". आज की खबर. २८ जुलाई २०१३.[मृत कड़ियाँ]
  5. "बाबा भयहरणनाथ मंदिर (Baba Bhayharannath Mandir, Temple)". प्रतापगढ़ हब.
  6. "आध्यात्मिक व सामाजिक विकास का केन्द्र भयहरणनाथ धाम". रेनबो न्यूज़. ३० जुलाई २०१३.[मृत कड़ियाँ]
  7. "प्रतापगढ़ के पर्यटन स्थल बाबा भयहरणनाथ धाम". Ghuisarnathdham.com. मूल से 4 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 अगस्त 2014.
  8. "अपने अज्ञातवास के दौरान पांण्डवों ने स्थापित किया था यह शिवलिंग". जनवरी 24, 2014.
  9. "Bhayaharan Nath Dham". Pratapgarh.org (अंग्रेज़ी में). मूल से 12 अगस्त 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 अगस्त 2014.
  10. "भयहरणनाथ में गूंजेंगे क्षेत्रीय कलाकारों के सुर". अमर उजाला. 9 अगस्त 2013.

बाहरी कड़ियाँ

संपादित करें