निर्देशांक: 26°56′10″N 75°45′42″E / 26.9361°N 75.76175°E / 26.9361; 75.76175 महापुरा, [7] राजस्थान की राजधानी से कोई 16 किलोमीटर दूर (जयपुर-अजमेर रोड से करीब एक किलोमीटर दक्षिण-दिशा में) जयपुर जिले की सांगानेर तहसील का एक ऐतिहासिक ग्राम है जो सिंह सिद्धांत सिन्धु [1]जैसे अद्भुत ग्रन्थ के लेखक शिवानन्द गोस्वामी जैसे उद्भट विद्वान को आमेर नरेश बिशन सिंह ने अन्य चार गांवों के साथ उनका शिष्यत्व स्वीकारने के उपलक्ष्य में जागीर के रूप में भेंट दिया था। [2] विष्णुसिंह ने वाजपेय यज्ञ करवाने के लिए उन्हें चंदेरी से आमेर आमंत्रित किया था। उन्होंने शिवानंदजी को गुरु-पद भी दिया और गुरु-दक्षिणा के रूप में चार गांव भेंट किए थे- इस आशय का एक अभिलेख बीकानेर स्थित अनूप संस्कृत पुस्तकालय में देखा जा सकता है। उन्हीं गांवों- चिमनपुरा, हरिवंशपुरा, रामजीपुरा में से एक महापुरा गांव भी था। शिवानन्द गोस्वामी के मंझले भाई पंडित जनार्दन गोस्वामी को आमेर नरेश ने उनकी विद्वत्ता के सम्मानस्वरूप

महापुरा [6]
—  गाँव  —
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०)
देश  भारत
राज्य राजस्थान
ज़िला जयपुर
जनसंख्या
घनत्व
2,776 (2011 के अनुसार )
आधिकारिक भाषा(एँ) हिन्दी, ढूंढारी, ब्रजभाषा, अंग्रेज़ी
क्षेत्रफल
ऊँचाई (AMSL)
778 हेक्टेयर कि.मी²
• 217 metres मीटर
आधिकारिक जालस्थल: http://jaipur.nic.in
एक ग्राम रामचन्द्रपुरा जागीर में बक्शा था!  

संक्षिप्त परिचय

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महापुरा का नामकरण :

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इस गाँव के नाम का मूल जनार्दन गोस्वामी की पुस्तक ‘मुहूर्त-रत्न’ और श्रीनिकेतन जी भट्ट (द्वितीय) के ग्रन्थ ‘सभेदा-आर्यासप्तशती’ जैसे प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में जो सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दी के हैं, में लिखा मिलता है । कुछ शोधकर्ताओं का अभिमत है कि दक्षिण में बहने वाली वेगवती धवलवर्ण नदी] ''पेन्णा की स्मृति में एक 'विशाल'/ प्रसिद्ध / या महिमाशाली गाँव होने के नाते इसे पहले 'महापूरा' कहा गया जो अपभ्रंश उपयोग में आकर बाद में महापुरा कहा जाने लगा।[3]

एक महिमाशाली गाँव

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अजमेर रोड राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 8 के नजदीक महापुरा अनेक संस्कृत-विद्वानों की कर्मभूमि रहा है| स्वयं शिवानन्द गोस्वामी द्वारा सेवित (चार सौ साल से भी ज्यादा प्राचीन) लक्ष्मीनारायण का तांत्रिक-विग्रह महापुरा में है। इस प्रतिमा को यहां शिवानन्द गोस्वामी ने स्थापित किया था जिनके पूर्वज तमिलनाडु से उत्तर भारत में आए थे। दाक्षिणात्य शैली में बने शालिग्राम शिला से निर्मित विग्रह में भगवान विष्णु गरुड़ पर आरूढ हैं व लक्ष्मी उनके साथ सुशोभित हैं। [4] इस विग्रह का पूजन गोपीकृष्ण गोस्वामी भी करते रहे थे जो यहाँ के एक सिद्ध पौराणिक और जागीरदार थे!

शिरोमणि भट्ट, जो शिवानन्द गोस्वामी के नाम से भी प्रसिद्ध हुए, यहाँ सकुटुम्ब कुछ वर्ष रहे थे। यहीं उन्होंने सन 1680 ईस्वी में आमेर में राजा बिशन सिंह के लिए वाजपेय यज्ञ करवाने के बाद एक चबूतरा निर्मित करवाया था- जो अवशेष-रूप में आज भी विद्यमान है और जिसे हरदौल का चबूतरा कहा जाता है, जिसका विवरण यों मिलता है- हरदौल के चबूतरे का भी अपना इतिहास है।[5] कहा जाता है– आमेर महाराजा के आग्रह पर सन 1680 ईस्वी में शिवानन्द गोस्वामी ओरछा मध्यप्रदेश से अश्वों पर और बैलगाड़ियों में सपरिवार महापुरा आने के लिए चले थे। तब बुंदेलखंड सहित मध्यवर्ती भारत के अनेक स्थलों पर लुटेरों का आतंक था। वह ओरछा के सम्मानित कुलगुरु थे, इसलिए शिवानन्द जी के परिजनों और उनकी संपत्ति की सुरक्षा के लिए ओरछा नरेश ने हरदौल-वंश के दो साहसी सरदारों को भी इस लवाजमे का नेतृत्व करने साथ भेजा। राजसी ठाटबाट और कीमती साजोसामान की भनक पा कर कुछ दुर्दांत दस्युओं ने शिवानंदजी के काफिले पर एकाएक हमला बोल दिया. बुंदेले वीरों के बाहुबल और वीरता ने उन लुटेरों का तो सफाया कर दिया, पर दोनों हरदौल-सरदार, जो ओरछा नरेश ने भेजे थे, गहरे घाव लगने से मार्ग ही में इस हिंसक-युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गए।

शिवानंदजी ने सकुशल महापुरा पहुँच कर उन दिवंगत वीरों के लिए काशी जा कर श्राद्ध/तर्पण समेत विधिवत सभी कर्मकांड पूरे किये और उनकी स्मृति को चिरस्थाई बनाने के लिए, महापुरा और बीकानेर, दोनों जगह जहाँ वह रहे, हरदौल वीरों के चबूतरे स्थापित किये. इन चबूतरों पर चार सौ बरसों तक घी का दीपक प्रत्येक सांझ गोस्वामी-परिवार जलाता रहा था। आज भी गोस्वामी-कुल, विशेष रूप से आत्रेय कुल में, ब्याह-शादी, मुंडन, यज्ञोपवीत, जच्चा-बच्चा आदि हर महत्वपूर्ण मंगल-अवसर पर हरदौल के चबूतरे पर जा कर दंडवत करने की प्रथा है।[6]

यह गाँव महापुरा वही है जहाँ (ब्रह्मराक्षस को शास्त्रार्थ में हराने की घटना के बाद) आमेर के राजा विष्णुसिंह को गोस्वामीजी ने अश्वमेध यज्ञ करवाने की सलाह दी थी (देखें शिवानन्द गोस्वामी) यहीं बैठ कर भट्ट मथुरानाथ शास्त्री जैसे मनीषी संस्कृत-साहित्यकार ने अपनी कुछ श्रेष्ठ रचनाएं लिखीं थीं। (यह गाँव उनका ससुराल था।) उनके साले और संस्कृत के आशुकवि गोस्वामी हरिकृष्ण शास्त्री ने यहीं रह कर अपना संस्कृत महाकाव्य 'दिव्यालोक' लिखा था। इसी गाँव में शिवानन्द गोस्वामी के एक वंशज स्व.घनश्याम गोस्वामी भी थे, जिन्होंने इस गाँव का नया नाम शिवानन्द्पुरी रखते हुए यहाँ संस्कृत-अध्ययन और शोध के लिए 'शिवानन्द-पुस्तकालय' खोला था और जिनके बुलावे पर लोकसभा अध्यक्ष M. A. Ayyangar एम ए अयंगार [7] (कार्यकाल 8 मार्च 1956 - 16 अप्रैल 1962), राजस्थान के कई राज्यपाल, कई मुख्यमंत्री, कुछ बड़े विदेशी राजनेता, विद्वान, संत, शोधकर्ता, धर्मगुरु आदि विभिन्न कार्यक्रमों में आ चुके हैं। महापुरा में रीतिकालीन महाकवि पद्माकर के कुछ वंशजों ने भी निवास किया।[8]

जनसंख्या

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2011 की जनगणना के आंकड़ों की भाषा में

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अगर जनगणना आंकड़ों की बात की जाय तो महापुरा का विलेज-प्रोफाइल कुछ इस तरह है: गांव का कुल राजस्व क्षेत्रफल 778 हेक्टेयर है- जिसमें निवास करते परिवारों की संख्या 384 है। इन परिवारों की कुल जनसंख्या - 2,776 है जिनमें पुरुष 1,467 और स्त्रियाँ 1,309 हैं। अनुसूचित जाति की जनसंख्या - 238 है इनमें 120 पुरुष और 118 स्त्रियाँ हैं। अनुसूचित जनजाति जनसंख्या के केवल 4 लोग यहाँ हें जिनमें स्त्री 2 और 2 पुरुष हैं प्राइमरी स्कूलों की संख्या 2, माध्यमिक विद्यालयों की संख्या 3, वरिष्ठ माध्यमिक स्कूलों की संख्या 1, कॉलेजों की संख्या 1, प्रशिक्षण स्कूलों की संख्या 1 और अन्य निजी शैक्षिक स्कूलों की संख्या 1 है। आयुर्वेदिक औषधालय की संख्या 1 और प्राथमिक स्वास्थ्य उप केंद्र की संख्या 1 है। सौभाग्य से पेय जल सुविधाएं उपलब्ध हैं जहाँ नल का पानी ट्यूबवेल और हेंडपंप जल उपलब्ध है। आरम्भ से पोस्ट, टेलीग्राफ और सुविधाएं फ़ोन उपलब्ध हैं- पोस्ट ऑफिस की संख्या 1 [9] और टेलीफोन कनेक्शनों की संख्या 120 है। बस सेवाएँ उपलब्ध हैं, रेल सेवाएँ नहीं; बैंकिंग सुविधाएं भी उपलब्ध हैं वाणिज्यिक बैंक की संख्या 2 है। कृषि ऋण समितियों की संख्या 1, गैर कृषि ऋण समितियों की संख्या है। विभिन्न स्थानों के लिए पक्की सड़कें उपलब्ध हैं, निकटतम शहर: जयपुर और बगरू हैं जिनकी क्रमशः दूरी 12 और 16 किलोमीटर है। घरेलू उपयोग, कृषि उपयोग और अन्य कार्यों के लिए विद्युत आपूर्ति सुविधाएं उपलब्ध हैं। समाचार पत्र / पत्रिका/ इन्टरनेट सुविधाएं भी उपलब्ध हैं। यहाँ का कुल असिंचित क्षेत्र 290.02 हेक्टेयर है- खेती योग्य बची भूमि (गोचर भूमि और पेड़ों सहित) 153.91 हेकटेयर है।[10]

साहित्य-सन्दर्भ

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हिन्दी साहित्य में महापुरा

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तब से अब तक महापुरा[8] ने न जाने कितने चेहरे बदल लिए हैं। अब वहां ऊंचे-ऊंचे बहुमंजिला फ्लेट्स हैं [9] - एक प्राइवेट इंटरनेशनल स्कूल [10], राष्ट्रीयकृत/निजी क्षेत्र बैंक [11][12][13][14], संस्कृत महाविद्यालय [15] (पुराना) स्नातकोत्तर राजकीय संस्कृत कॉलेज, कुछ निजी स्नातकोत्तर महाविद्यालय [16] बड़ा वाटर-पार्क और रेस्तरां [17] भूमाफियों की बड़ी-बड़ी गाड़ियाँ, करोड़ों के महंगे फार्म-हाउस, पंचसितारा होटल [18] और न जाने क्या-क्या, पर कमलानाथ जैसे कहानी-लेखक के लिए महापुरा आज भी उनका पुश्तैनी ननिहाल ही है। वह अपनी एक कहानी[11] में पुराने दिनों के महापुरा की याद कुछ आत्मीय लफ़्ज़ों में करते हैं:[12]

  1. सिंह सिद्धांत सिन्धु के भाग 1 की पी डी एफ़ प्रति [1]
  2. पुस्तक में उल्लेख [2]
  3. संस्कृत-कल्पतरु:संपादक कलानाथ शास्त्री एवं घनश्याम गोस्वामी:'मंजुनाथ शोध संस्थान', सी-8, पृथ्वीराज रोड, सी-स्कीम, जयपुर-302001
  4. एक समाजशास्त्रीय शोध [[Research Paper : The Changing Power-Structure in a Rajasthan Village : Prof. Vasudhakar Goswami: Deptt. of Sociology: 1968
  5. संक्षिप्त मोनोग्राफ : 'साक्षीनाट्यशिरोमणि गोस्वामी शिवानंद' प्रकाश परिमल : स्मृति-प्रकाशन, डी-39, देवनगर, जयपुर-302018
  6. मोनोग्राफ : 'साक्षीनाट्यशिरोमणि गोस्वामी शिवानंद' प्रकाश परिमल : स्मृति-प्रकाशन, डी-39, देवनगर, जयपुर-302018
  7. https://en.wikipedia.org/wiki/M._A._Ayyangar
  8. 'आओ गाँव चलें': राजस्थान पत्रिका में स्व. बिशन सिंह शेखावत का स्तम्भ-लेख 'महापुरा'
  9. https://news.abplive.com/pincode/rajasthan/jaipur/mahapura-pincode-302026.html
  10. "संग्रहीत प्रति". मूल से 26 जून 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 जून 2014.
  11. साहित्यिक पत्रिका 'जलसा'-अंक 4:संपादक :असद जैदी : कमलानाथ :कहानी 'भोंर्या मो
  12. साहित्यिक पत्रिका 'जलसा'-अंक 4:संपादक :असद जैदी : कमलानाथ :कहानी 'भोंर्या मो'

बाहरी कड़ियाँ

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भारत की जनगणना [[19]] भारतीय मानचित्र में महापुरा [[20]] [[21]] [[22]]