वैदिक-पदानुक्रम-कोष
वैदिक-पदानुक्रम-कोष (अंग्रेज़ी: A Vedic Word Concordance) वैदिक संस्कृत ग्रन्थों का पदानुक्रम कोश (प्रत्येक शब्द की अक्षरानुसार सम्पूर्ण सन्दर्भ-सूची) है। इसका निर्माण १९३० में आरम्भ हुआ[1] और आचार्य विश्वबन्धु शास्त्री के मुख्य सम्पादन में यह १९३५ से १९६५ के बीच सोलह भागों में प्रकाशित हुआ।
स्वरूप एवं सामग्री-संयोजन
संपादित करें'वैदिक-पदानुक्रम-कोष' आचार्य विश्वबन्धु शास्त्री द्वारा भीमदेव, रामानन्द शास्त्री एवं अमरनाथ शास्त्री के मुख्य सहयोग तथा इनके साथ विशेष रूप से प्रशिक्षित लगभग ३० विद्वानों के सहयोग से[2] वृहत्तर पैमाने पर तैयार कोश-ग्रन्थों की एक शृंखला है। अतः १६ खंडों के इस वृहत्तर आयोजन को मूलतः चार विभागों में बाँटा गया है -
- १.संहिता विभाग (छह खंड)
- २.ब्राह्मण-आरण्यक विभाग (दो खंड)
- ३.उपनिषद् विभाग (दो खंड)
- ४.वेदाङ्ग विभाग (चार खंड)।
- इनके अतिरिक्त अंतिम दो खण्ड (चतुर्विभागसंग्राहक पंचम विभाग) पूर्व के चारों विभागों में आये शब्दों की ही सूची है जिसमें केवल विभाग-निर्देश है।
इस महाकोष को तैयार करने में वैदिक साहित्य एवं उससे सम्बद्ध लगभग पाँच सौ ग्रन्थों का उपयोग किया गया है। इनमें से कुल ३८९ (तीन सौ नवासी) ऐसे आधार-ग्रन्थ हैं जिनके समस्त पद प्रयोग-स्थलों की सम्पूर्ण सूची के साथ इस महाकोष के चारों विभागों (१४ खण्डों) में सन्निविष्ट हैं। सर्वप्रथम इस महाकोष के द्वितीय विभाग (ब्राह्मण-आरण्यकविभाग) के दोनों खण्ड सन् १९३५-३६ में प्रकाशित हुए थे। उस समय इसमें उपलब्ध कुल २० ग्रंथों को आधार ग्रन्थ के रूप में लिया गया था, जिनमें १७ ब्राह्मणग्रन्थ एवं ३ आरण्यक ग्रन्थ थे।[3] परन्तु, द्वितीय संस्करण में यह संख्या ५६ हो गयी तथा करीब ६०० पृष्ठों की भी वृद्धि हुई। सभी विभागों के कुल आधार-ग्रन्थों में चारों वेदों की विभिन्न शाखाओं की परिशिष्ट सहित १२ संहिताएँ[4], ५६ ब्राह्मण एवं आरण्यक ग्रन्थ, २०६ उपनिषदादि[5] एवं ११५ वेदाङ्ग (सूत्र) ग्रन्थ[6] सम्मिलित हैं।
प्रस्तुत 'वैदिक पदानुक्रम कोष' के तृतीय विभाग (उपनिषद् विभाग) में कुल २०० (दो सौ) उपनिषदों के पदों का समावेश किया गया है। इनके साथ ही उपनिषदों से काफी जुड़ाव रखने वाले बादरायण कृत 'ब्रह्मसूत्र', गौड़पाद की कारिका, कपिल के सांख्यसूत्र, ईश्वरकृष्ण की सांख्यकारिका, पतंजलि के योगसूत्र एवं श्रीमद्भगवद्गीता -- इन ६ ग्रंथों के पदों का समावेश भी उपनिषद् विभाग में ही कर दिया गया है।[7]
इसके चतुर्थ विभाग (वेदाङ्ग विभाग) के चार खण्डों में कुल ११५ वेदांग (सूत्र) ग्रन्थों के पद दिये गये हैं। ये ग्रन्थ १७ वर्गों में विभाजित हैं[6]--
१.श्रौतसूत्र (२२ ग्रन्थ)
२.आपस्तम्बमन्त्रपाठ-सुपर्णाध्याय (२)
३.गृह्यसूत्र (२१)
४.पितृमेधसूत्र (३)
५.अथर्व-परिशिष्ट (३)
६.धर्मसूत्र (११)
७.शुल्बसूत्र ((४)
८.अनुक्रमणी (९)
९.निघण्टु (२)
१०.निरुक्त (१)
११.प्रातिशाख्य (७)
१२.शिक्षा (१०)
१३.पाणिनीय व्याकरण के अन्तर्गत
- क.अष्टाध्यायी सूत्रपाठ (१),
- ख.धातुपाठ (१)
- ग.वार्तिक, इष्टि (४)
- घ.गणपाठ सूत्र एवं वार्तिक (२)
- ङ.उणादिसूत्र(-वृत्ति) (५)
- च.फिट्सूत्र (१)
१४.छन्द (२)
१५.ज्योतिष (२)
१६.मीमांसासूत्र (१)
१७.समराङ्गणसूत्रधार (१) [कुल ११५]।
इस महाकोश के पन्द्रहवें भाग (चतुर्विभागसंग्राहक - प्रथम खंड) में मूल चारों विभागों (कुल १४ खंडों) में आये शब्दों (पदों) की ही एकत्र सूची है। यहाँ शब्द-सूची इस उद्देश्य से दी गयी है कि यदि एक शब्द (पद) एक से अधिक विभागों में भी आया है तो उसकी जानकारी सहज ही एक जगह मिल सके। इस खंड में प्रयोग-स्थलों की सूची न होकर केवल विभागों की सूचना है, क्योंकि प्रयोग-स्थलों की सूची तो उन-उन विभागों में दी ही गयी है। उदाहरण के लिए 'अंशु' पद प्रथम (संहिता) विभाग, द्वितीय (ब्राह्मण-आरण्यक) विभाग, तृतीय (उपनिषद्) विभाग एवं चतुर्थ (वेदांग) विभाग -- सबमें आया है तो 'अंशु' के आगे १,२,३,४ लिखा है और 'अंशुपट्ट' पद केवल चतुर्थ (वेदांग) विभाग में ही आया है 'अंशुपट्ट' के आगे केवल ४ लिखा है। इस सूची की एक अतिरिक्त विशेषता यह है कि इसमें कोई पद यदि किसी संश्लिष्ट पद का हिस्सा है तो वह पद यदि संश्लिष्ट पद के बाद के अंश (उत्तर पदत्व) रूप में ही प्रयुक्त हुआ है तो + का चिह्न लगा दिया गया है और यदि कोई पद किसी संश्लिष्ट पद के आरंभिक और बाद दोनों अंश के रूप में प्रयुक्त हुआ है तो उसके पूर्व × का चिह्न लगा दिया गया है।[8]
इस महाकोश का सोलहवाँ (अंतिम) भाग भी बिल्कुल इसी तरह का है। अंतर यही है कि पन्द्रहवें भाग में शब्दों (पदों) का क्रम आरंभिक अक्षर के अनुसार है और सोलहवें भाग में क्रम अंतिम अक्षर के अनुसार है। प्रविष्टि रूप में दिये गये शब्द (पद) बिल्कुल समान हैं।[1]
ब्लूमफ़ील्ड के पादानुक्रम-कोष से भिन्नता एवं वैशिष्ट्य
संपादित करेंयह तथ्य विशेष ध्यातव्य है कि मॉरिस ब्लूमफ़ील्ड रचित 'A Vedic Concordance' (वैदिक पादानुक्रम कोष) इस 'पदानुक्रम कोष' से बिल्कुल भिन्न प्रकार का ग्रंथ है। ब्लूमफील्ड का ग्रंथ 'पादानुक्रम कोष' (Concordance) है, जबकि आचार्य विश्वबन्धु शास्त्री संपादित यह ग्रन्थ-शृंखला 'पदानुक्रम कोष' (Word Concordance) है। ब्लूमफील्ड के 'पादानुक्रम कोष' में किसी मंत्र या गद्यात्मक भाग के जितने पाद (=चरण, stanza) हैं, उनकी अक्षरक्रम से संदर्भ सूची है (Being an alphabetic index to every line of every stanza of the published Vedic literature)। उदाहरणस्वरूप ऋग्वेद का पहला मन्त्र 'अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम्। होतारं रत्नधातमम्।।' है, जो कि गायत्री छन्द में है। इस छन्द में तीन चरण हैं। ब्लूमफील्ड के कोष में इसका पहला चरण 'अग्निम् ईडे पुरोहितम्' इस रूप में 'अ' अक्षर के अंतर्गत[9], दूसरा चरण 'यज्ञस्य देवम् ऋत्विजम्' 'य' अक्षर के अंतर्गत[10] और तीसरा चरण 'होतारं रत्नधातमम्' 'ह' अक्षर के अंतर्गत[11] उचित स्थान पर संदर्भ सहित दिये गये हैं। जबकि आचार्य विश्वबन्धु शास्त्री संपादित इस 'वैदिक पदानुक्रम कोष' में इसके प्रत्येक पद (विभक्तियुक्त शब्द) की पूरी सन्दर्भसूची अक्षर-क्रमानुसार प्रस्तुत की गयी है। उदाहरणस्वरूप पूर्वोक्त मन्त्र में 'अग्निम्' एक पद है,'ईळे' दूसरा पद है, 'पुरोहितम्' तीसरा पद है...। इन सबकी अलग-अलग सन्दर्भ-सूची दी गयी है। इसका अतिरिक्त वैशिष्ट्य यह है कि इसमें व्याकरणिक स्वरूप को भी स्पष्ट करते हुए सन्दर्भ-सूची दी गयी है। उदाहरणस्वरूप इस मन्त्र का अंतिम पद 'रत्नधातमम्' एक संगुंफित पद है। इस पद को इस महाकोश के संहिता विभाग में इस प्रकार संयोजित किया गया है-- पहले मुख्य प्रविष्टि के रूप में मूल शब्द 'रत्न' दिया गया है। फिर 'रत्न' शब्द के पद-रूप (विभक्तियुक्त रूप, यदि द्वितीया विभक्ति है तो 'रत्नम्') के आगे वैदिक संहिताओं में उसके प्रयोग-स्थल की परिपूर्ण सूची दी गयी है।[12] इसके बाद 'रत्न' की आंतरिक प्रविष्टि में 'रत्न-धा' देते हुए फिर उसके विभिन्न शब्दरूपों के अंतर्गत अलग-अलग पूरी सन्दर्भसूची दी गयी है।[12] इसके बाद 'रत्नधा-तम' प्रविष्टि के अन्तर्गत उसके विभिन्न शब्दरूपों के अन्तर्गत सन्दर्भसूची दी गयी है। जैसे कि पहले प्रथमा विभक्ति का रूप 'रत्नधा-तमः' - ऋग्वेद १,२०,१; फिर द्वितीया विभक्ति 'मम्' ('रत्नधा-तमम्' {पूर्वोक्त मन्त्र में प्रयुक्त शब्दरूप}) की सन्दर्भसूची - ऋग्वेद १,१,१; तथा अन्यत्र जितने स्थानों पर इस पद का प्रयोग हुआ है उसकी पूरी सूची दी गयी है।[13] इस प्रकार इस 'वैदिक-पदानुक्रम-कोष' में प्रत्येक पद का व्याकरणिक स्वरूप भी सहज रूप में स्पष्ट होते जाता है। आवश्यकतानुसार इस महाकोश में स्वर, निर्वचन, व्याकरण, छन्द तथा पाठमीमांसा सम्बन्धी आलोचनात्मक टिप्पणियाँ भी दी गयी हैं।[14]
स्वरूपगत विवरणिका
संपादित करेंभाग | विभाग | खण्ड | अक्षर-क्रम | प्रथम संस्करण | कुल पृष्ठ |
---|---|---|---|---|---|
भाग-1 | संहिता-विभाग | 1 | (भूमिका, प्रस्तावना)
'अ' |
1942 ई॰
द्वितीय संस्करण-1976 ई॰ |
167+668 |
भाग-2 | संहिता-विभाग | 2 | आ - घ | 1955 ई॰ | VI+589 |
भाग-3 | संहिता-विभाग | 3 | च - न | 1956 | IV+589 |
भाग-4 | संहिता-विभाग | 4 | प - ल | 1959 | IV+834 |
भाग-5 | संहिता-विभाग | 5 | व - स | 1962 | IV+833 |
भाग-6 | संहिता-विभाग | 6 | 'ह'
एवं परिशिष्ट |
1963 | IV+473 |
भाग-7 | ब्राह्मण-आरण्यक-विभाग | 1 | अ - ण | 1935 | IV+449 |
भाग-8 | ब्राह्मण-आरण्यक-विभाग | 2 | त - ह | 1936 | LXVI+727 |
भाग-9 | उपनिषद्-विभाग | 1 | अ - न | 1945 | XLI+468 |
भाग-10 | उपनिषद्-विभाग | 2 | प - ह | 1945 | IV+716 |
भाग-11 | वेदाङ्ग-विभाग | 1 | अ - ऊ | 1958 | XVIII+760 |
भाग-12 | वेदाङ्ग-विभाग | 2 | ऋ - न | 1958 | IV+695 |
भाग-13 | वेदाङ्ग-विभाग | 3 | प - ल | 1959 | IV+658 |
भाग-14 | वेदाङ्ग-विभाग | 4 | व - ह
एवं परिशिष्ट |
1961 | IV+875 |
भाग-15 | चतुर्विभागसंग्राहक
आदितोऽनुक्रमः |
1 | अ - ह | 1964 | VI+878 |
भाग-16 | चतुर्विभागसंग्राहक
अन्त्योऽनुक्रमः |
2 | अ - ह |
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ अ आ वैदिक-पदानुक्रम-कोष, भाग-१५ (चतुर्विभागसंग्राहक, खण्ड-१), संपादक- आचार्य विश्वबन्धु शास्त्री, विश्वेश्वरानन्द वैदिक शोध संस्थान, होशियारपुर, प्रथम संस्करण- सन् १९६४, पृष्ठ-i (Preface).
- ↑ वैदिक-पदानुक्रम-कोष, संहिता विभाग, खण्ड-२, संपादक- आचार्य विश्वबन्धु शास्त्री, विश्वेश्वरानन्द वैदिक शोध संस्थान, होशियारपुर, प्रथम संस्करण- सन् १९५५, मुखपृष्ठ-i,ii,iii.
- ↑ वैदिक-पदानुक्रम-कोष, ब्राह्मण-आरण्यकविभाग, खण्ड-१, संपादक- आचार्य विश्वबन्धु शास्त्री, विश्वेश्वरानन्द वैदिक शोध संस्थान, लाहौर, प्रथम संस्करण- सन् १९३५, पृष्ठ-Lii.
- ↑ वैदिक-पदानुक्रम-कोष, संहिता विभाग, खण्ड-१, द्वितीय संस्करण- सन् १९७६, मूल संपादक- आचार्य विश्वबन्धु शास्त्री, सं॰ शिवशंकर भास्कर नायर, विश्वेश्वरानन्द वैदिक शोध संस्थान, होशियारपुर, पृष्ठ-cxli-iii.
- ↑ वैदिक-पदानुक्रम-कोष, उपनिषद् विभाग, खण्ड-१, संपादक- आचार्य विश्वबन्धु शास्त्री, विश्वेश्वरानन्द वैदिक शोध संस्थान, लाहौर, प्रथम संस्करण- सन् १९४५, पृष्ठ-xxxiv-vii.
- ↑ अ आ वैदिक-पदानुक्रम-कोष, वेदांग विभाग, खण्ड-१, संपादक- आचार्य विश्वबन्धु शास्त्री, विश्वेश्वरानन्द वैदिक शोध संस्थान, होशियारपुर, प्रथम संस्करण- सन् १९५८, पृष्ठ-V-VI, VIII एवं X-XVII.
- ↑ वैदिक-पदानुक्रम-कोष, उपनिषद् विभाग, खण्ड-१, संपादक- आचार्य विश्वबन्धु शास्त्री, विश्वेश्वरानन्द वैदिक शोध संस्थान, लाहौर, प्रथम संस्करण- सन् १९४५, पृष्ठ-XIV एवं XXVIII.
- ↑ वैदिक-पदानुक्रम-कोष, भाग-१५ (चतुर्विभागसंग्राहक, खण्ड-१), संपादक- आचार्य विश्वबन्धु शास्त्री, विश्वेश्वरानन्द वैदिक शोध संस्थान, होशियारपुर, प्रथम संस्करण- सन् १९६४, पृष्ठ-३.
- ↑ A Vedic Concordance, by Maurice Bloomfield, Cambridge Massachusetts, published by Harvard University, first edition -1906, p.12. (देवनागरी संस्करण परिमल पब्लिकेशंस, शक्तिनगर, नयी दिल्ली से प्रकाशित)
- ↑ A Vedic Concordance, ibid, p.734.
- ↑ A Vedic Concordance, ibid, p.1074.
- ↑ अ आ वैदिक-पदानुक्रम-कोष, संहिता विभाग, खण्ड-४, संपादक- आचार्य विश्वबन्धु शास्त्री, विश्वेश्वरानन्द वैदिक शोध संस्थान, होशियारपुर, प्रथम संस्करण- सन् १९५९, पृष्ठ-२६२९.
- ↑ वैदिक-पदानुक्रम-कोष, संहिता विभाग, खण्ड-४, संपादक- आचार्य विश्वबन्धु शास्त्री, विश्वेश्वरानन्द वैदिक शोध संस्थान, होशियारपुर, प्रथम संस्करण- सन् १९५९, पृष्ठ-२६३०.
- ↑ विश्वेश्वरानन्द वैदिक शोध संस्थान परिचय पुस्तिका (HISTORY IN HINDI) Archived 2019-04-06 at the वेबैक मशीन, पृष्ठ-31.
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- Enlarged Electronic Version of Bloomfield's A Vedic Concordance, 2005. (Plain text version (6.4 MB))
- Sadhu Ashram (hoshiarpur.nic.in)