वैवस्वत मनु या श्राद्धदेव मनु हिन्दू धर्म के अनुसार मानव जाति के प्रणेता व प्रथम पुरुष स्वायंभुव मनु के बाद सातवें मनु थे। हरेक मन्वंतर में एक प्रथम पुरुष होता है, जिसे मनु कहते हैं। वर्तमान काल में ववस्वत मन्वन्तर चल रहा है, जिसके प्रथम पुरुष वैवस्वत मनु थे, जिनके नाम पर ही मन्वन्तर का भी नाम है। भगवान सूर्य का विवाह विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा से हुआ। विवाह के बाद संज्ञा ने श्राद्धदेव और यम (यमराज) नामक दो पुत्रों और यमुना (नदी) नामक एक पुत्री को जन्म दिया। यही विवस्वान यानि सूर्य के पुत्र वैवस्वत मनु कहलाये।

इस संदूक को: देखें  संवाद  संपादन

हिन्दू धर्म
श्रेणी

Om
इतिहास · देवता
सम्प्रदाय · पूजा ·
आस्थादर्शन
पुनर्जन्म · मोक्ष
कर्म · माया
दर्शन · धर्म
वेदान्त ·योग
शाकाहार शाकम्भरी  · आयुर्वेद
युग · संस्कार
भक्ति {{हिन्दू दर्शन}}
ग्रन्थशास्त्र
वेदसंहिता · वेदांग
ब्राह्मणग्रन्थ · आरण्यक
उपनिषद् · श्रीमद्भगवद्गीता
रामायण · महाभारत
सूत्र · पुराण
विश्व में हिन्दू धर्म
गुरु · मन्दिर देवस्थान
यज्ञ · मन्त्र
हिन्दू पौराणिक कथाएँ  · हिन्दू पर्व
विग्रह
प्रवेशद्वार: हिन्दू धर्म

हिन्दू मापन प्रणाली

वैवस्वत मनु के नेतृत्व में त्रिविष्टप अर्थात तिब्बत या देवलोक से प्रथम पीढ़ी के मानवों (देवों) का मेरु प्रदेश में अवतरण हुआ। वे देव स्वर्ग से अथवा अम्बर (आकाश) से पवित्र वेद भी साथ लाए थे। इसी से श्रुति और स्मृति की परम्परा चलती रही। वैवस्वत मनु के समय ही भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार हुआ। इनकी शासन व्यवस्था में देवों में पाँच तरह के विभाजन थे: देव, दानव, यक्ष, किन्नर और गंधर्व। इनके के दस पुत्र हुए थे। इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यन्त, करुष, महाबली, शर्याति और पृषध पुत्र थे। इसमें इक्ष्वाकु कुल का ही मुख्यतः विस्तार हुआ। इक्ष्वाकु कुल में कई महान प्रतापी राजा, ऋषि, अरिहंत और भगवान हुए हैं।

वैवस्वत सातवें मन्वंतर का स्वामी बनकर मनु पद पर आसीन हुए थे। इस मन्वंतर में ऊर्जस्वी नामक इन्द्र थे। अत्रि, वसिष्ठ, कश्यप, गौतम, भरद्वाज, विश्वमित्र और जमदग्नि- ये सातों इस मन्वंतर के सप्तर्षि थे।

इतिहास संपादित करें

वेद, पुराणों और अन्य धर्मग्रंथों के साथ वैज्ञानिक शोधों व अध्ययनों से ज्ञात होता है कि मनुष्य व अन्य जीव-जंतुओं की वर्तमान आदि सृष्टि हिमालय के आसपास की भूमि पर हुई थी जिसमें तिब्बत का सर्वधिक महत्त्व है। हिमालय के पास होने के कारण पूर्व में भारत वर्ष को हिमवर्ष भी कहा जाता था। वेद-पुराणों में तिब्बत को त्रिविष्टप कहा गया है। महाभारत के महाप्रस्थानिक पर्व में स्वर्गारोहण में स्पष्ट किया गया है कि तिब्बत हिमालय के उस राज्य को पुकारा जाता था जिसमें नंदनकानन नामक देवराज इंद्र का देश था। इससे सिद्ध होता है कि इंद्र स्वर्ग में नहीं धरती पर ही हिमालय क्षेत्र में रहते थे।

पूर्व में यह धरती जल प्रलय के कारण जल से ढँक गई थी। कैलाश, गोरी-शंकर की चोटी तक पानी चढ़ गया था। इससे यह सिद्ध होता है कि संपूर्ण धरती ही जलमग्न हो गई थी। कई माह तक वैवस्वत मनु द्वारा नाव में ही गुजारने के बाद उनकी नाव गौरी-शंकर के शिखर से होते हुए नीचे उतरी। गोरी-शंकर जिसे माउंट एवरेस्ट शिखर भी कहा जाता है, विश्व में सबसे ऊँचा, बर्फ से ढँका हुआ और ठोस पहाड़ है। तिब्बत में धीरे-धीरे जनसंख्या वृद्धि और वातावरण में तेजी से होते परिवर्तन के कारण वैवस्वत मनु की संतानों ने अलग-अलग भूमि की बढ़ना आरंभ किया। विज्ञान के अनुसार भी पहले पृथ्वी के सभी महाद्वीप इकट्ठे थे। अर्थात अमेरिका द्वीप इधर अफ्रीका और उधर चीन तथा रूस से जुड़ा हुआ था। अफ्रीका भारत से जुड़ा हुआ था। धरती की घूर्णन गति और भू-गर्भीय परिवर्तन के कारण धरती द्वीपों में बँट गई।

संतानों का विस्तार संपादित करें

इस जुड़ी हुई धरती पर ही हिमालय की निम्न श्रेणियों को पार कर मनु की संतानें कम ऊँचाई वाले पहाड़ी विस्तारों में बसती गईं। फिर जैसे-जैसे समुद्र का जल स्तर घटता गया वे और भी मध्य भाग में आते गए। दक्षिण के इलाके तो जलप्रलय से जलमग्न ही थे। लेकिन बहुत काल के बाद धीरे-धीरे जैसे-जैसे समुद्र का जलस्तर घटा मनु का कुल पश्चिमी, पूर्वी और दक्षिणी मैदान और पहाड़ी प्रदेशों में फैल गए। जो हिमालय के इधर फैलते गए उन्होंने ही अखण्ड भारत की सम्पूर्ण भूमि को ब्रह्मावर्त, ब्रह्मार्षिदेश, मध्यदेश, आर्यावर्त एवं भारतवर्ष आदि नाम दिए। जो इधर आए वे सभी मनुष्य आर्य कहलाने लगे। यही लोग साथ में वेद लेकर आए थे। इसी से यह धारणा प्रचलित हुई कि देवभूमि से वेद धरती पर उतरे। स्वर्ग से गंगा को उतारा गया आदि अनेक धारणाएँ।

इन आर्यों के ही कई समूह अलग-अलग झुंडों में पूरी धरती पर फैल गए और वहाँ बस कर भाँति-भाँति के धर्म और संस्कृति आदि को जन्म दिया। मनु की संतानें ही आर्य-अनार्य में बँटकर धरती पर फैल गईं। पूर्व में यह सभी देव-दानव कहलाती थीं। इस धरती पर आज जो भी मनुष्य हैं वे सभी वैवस्वत मनु की ही संतानें हैं इस विषय में विद्वानों में मतभेद हैं।

सन्दर्भ संपादित करें