सोवा रिग्पा (तिब्बती : བོད་ཀྱི་གསོ་བ་རིག་པ་, Wylie: Ggso ba rig pa) तिब्बत गणराज्य की अपनी एक विशिष्ट परम्परागत चिकित्सा पद्धति है जो तिब्बत सहित हिमालयी क्षेत्रों में प्रचलित है। भारत के हिमालयी क्षेत्र में 'तिब्बती' या 'आमचि' के नाम से जानी जाने वाली सोवा-रिग्पा विश्व की सबसे पुरानी चिकित्सा पद्धतियों में से एक है।[1] यह लगभग ५ हजार वर्ष पुरनी चिकित्स-पद्धति है।

तिब्बती भैषज्यकल्पना
छगपोरी चिकित्सा महाविद्यालय (सन १९३८ में)

भारत में इस पद्धति का प्रयोग जम्मू-कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र, लाहौल-स्पीति (हिमाचल प्रदेश), सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश , नेचुआ जलालपुर ( बिहार), कुशीनगर ( उ०प्र०) दार्जिलिंग (पश्चिम बंगाल) में किया जाता है। सोवा-रिग्पा के सिद्धांत और प्रयोग आयुर्वेद की तरह ही हैं और इसमें पारंपरिक चीनी चिकित्साविज्ञान के कुछ सिद्धांत भी शामिल हैं। सोवा रिग्पा के चिकित्सक रोगी को देख कर, रोग वाले स्थान को छूकर एवं रोगी के बारे में प्रश्न पूछकर इलाज करते हैं। यह चिकित्सा पद्धति बौद्ध चिकित्सा माना जाता है तथा यह पद्धति भगवान बुद्ध द्वारा 2500 वर्ष पहले प्रारंभ की गई थी। बाद में प्रसिद्ध भारतीय विद्वानों जैसे जीवक, नागार्जुन, वाग्भट्ट एवं चंद्रानंदन ने इसे आगे बढ़ाया। इसका इति‍हास लगभग ५००० वर्ष पुराना है। सोवा-रि‍गपा प्रणाली यद्यपि बहुत प्राचीन है किन्तु हाल ही में (सन २०१० में) मान्‍यता प्रदान की गई है। यह प्रणाली अस्‍थमा, ब्रोंकि‍टि‍स, अर्थराइटि‍स जैसी पुराने रोगों के लि‍ए प्रभावशाली मानी गई है।

तिब्बत की निर्वासित सरकार ने 23 मार्च 1961 को चौदहवें दलाई लामा के निर्देश पर धर्मशाला में तिब्बती औषधि मेनचिखाङ् (तिब्बती आयुर्वेद चिकित्सा) की स्थापना की। तब से यह निरन्तर अपने विशिष्ट गुणों के कारण उत्तरोत्तर विकास पथ पर अग्रसर है। सोवा-रिग्पा पूर्वोत्तर भारत, हिमाचल, अरुणाचल, जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, बंगलोर, वाराणसी के साथ-साथ विभिन्न अमेरिकन और योरोपियन देशों में स्वास्थ्य सेवायें प्रदान कर रहा है।

भारत सरकार ने 2010 में इसे वैधानिक मान्यता प्रदान कर आयुष के अन्तर्गत एक स्वतन्त्र चिकित्सा पद्धति के रूप में मान्यता दी है। वर्तमान समय में धर्मशाला, लेह ( केन्द्रीय बौद्ध अध्ययन केन्द्र), वाराणसी (केन्द्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान) में 52 वर्ष का विधिवत अध्ययन पाठ्यक्रम (BSRMS) चलाया जा रहा है।

 
रूस के बुर्यातिया के उलान-उदे में स्थित पूर्वी चिकित्सा-पद्धति केन्द्र

सोवा-रिग्पा लगभग 5 हजार वर्ष पुरानी परम्परागत चिकित्सा पद्धति है । इसके इतिहास के सन्दर्भ में मतैक्य नहीं है । परन्तु इसके दर्शन एवं व्यवहार (चिकित्सा करने के तरीके) की सूक्ष्म विवेचना से स्पष्ट है कि सोवा-रिग्पा पर यूनानी चिकित्सा पद्धति, चीनी चिकित्सा पद्धति, भारतीय आयुर्वेद, बौद्ध दर्शन, भारतीय दर्शन तथा तिब्बत के मूल दर्शन (बोन) का स्पष्ट प्रभाव देखने को मिलता है। संक्षेप में कह सकते हैं कि तत्कालीन समय में मध्य एशिया ( भारत, चीन, नेपाल आदि क्षेत्रों) की परम्परागत चिकित्सा-पद्धतियों का सारतत्त्व सोवा-रिग्पा के मुख्य ग्रन्थ ग्युद्-शी (चार तन्त्र) में संगृहीत है।

मुख्य सिद्धान्त

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सोवा का अर्थ व्यतिक्रम को व्यवस्थित करना (अस्वस्थ शरीर को ठीक करना) तथा रिग्पा का अर्थ है 'विज्ञान' अर्थात् स्वास्थ्य का विशेष ज्ञान। इस प्रकार सोवा- रिग्पा का अर्थ है 'स्वास्थ्य विज्ञान'।

सोवा-रिग्पा बौद्ध दर्शन के मूल से जुड़ा है, जो मुख्यतः 'मन' और शरीर को आधार मानकर स्वास्थ्य को परिभाषित करता है। सोवा-रिग्पा स्वास्थ्य को परिभाषित करते हुए कहता है- ‘व्यक्ति का स्वास्थ्य शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि पर आधारित है । कोई व्यक्ति तभी स्वस्थ है जब वह सभी आयामों पर स्वस्थ हो और समाज राष्ट्र को अपना पूर्ण योगदान दे सके।

सोवा-रिग्पा मानसिक एवं शारीरिक रोग के कारणों की खोज कर समूल नष्ट कर व्यक्ति को स्वास्थ्य प्रदान करने वाली एक निरापद औषध विज्ञान है । सोवा-रि‍गपा मानव शरीर के नि‍र्माण में पांच भौति‍क तत्‍वों, वि‍कारों की प्रकृति‍ तथा इनके समाधान के उपायों के महत्‍व पर बल देता है।

सोवा-रिग्पा के क्षेत्र

(1) सामान्य चिकित्सा ( आन्तरिक व्याधि) उपचार (2) बाल-रोग चिकित्सा (3) स्त्री-रोग चिकित्सा (4) मनोविज्ञान (मनोविकार चिकित्सा) (5) शल्य-शालक्य (6) विष चिकित्सा (7) वाजीकरण चिकित्सा (8) वृद्धरोग चिकित्सा (जीर्णावस्था चिकित्सा)

सोवा-रिग्पा अपने आप में विज्ञान, कला तथा दर्शन के सम्पूर्णता को समाहित कर जन-सामान्य को सम्पूर्ण स्वास्थ्य प्रदान करता है। सोवा-रिग्पा विशेष ज्ञान श्रेणी में इसलिए आता है क्योंकि यह रोगी के शारीरिक विकृति को समझने हेतु एक तर्कसंगत आधार पर एक रूपरेखा तैयार करता है ताकि उसका वातावरण के साथ कैसे सम्बन्ध या समन्वय बना रहे। सोवा-रिग्पा की निदान प्रक्रिया एक कला भी है जो निदान तकनीकी के साथ चिकित्सक का सूक्ष्म अनुभव और उसके परिज्ञान (अन्तः ज्ञान) को समन्वित करता है। दर्शन की दृष्टि से बौद्धदर्शन अनित्यता सिद्धान्त के मूल पर आधारित है। अर्थात् कुछ भी नित्य नहीं है। सोवा-रिग्पा-चिकित्सक रोग एवं स्वास्थ्य के सन्दर्भ में इस दर्शन को समावेशित करता है।

चार महाभूत सिद्धान्त

सोवा-रिग्पा चार महाभूत सिद्धान्त अर्थात् पृथ्वी, अप (जल), तेज (अग्नि) एवं वायु पर आधारित है। व्यक्ति की प्रत्येक कोशिका के निर्माण में भी चार महाभूत का योगदान है।

निदान प्रक्रिया [2]
  • (१) दृष्टि के माध्यम से (शरीर, मूत्र, कफ)
  • (२) स्पर्श (नाड़ी परीक्षण आदि)
  • (३) प्रश्न पद्धति
चिकित्सा

सोवा-रिग्पा चिकित्सा पद्धति में चिकित्सक मुख्यतः चार आयामों पर केन्द्रित होते हैं- खान-पान, दिनचर्या, औषधि-विधान एवं बाह्य चिकित्सा ।

  • (१) मनुष्य को कुछ रोग मुख्यतः खान-पान में व्यतिक्रम के कारण होते हैं। इस प्रकार की व्याधियों में चिकित्सक उन्हें उपयुक्त खान-पान का निर्देश देता है, जिससे उन्हें रोग से मुक्ति मिलती है तथा भविष्य में होने वाले रोग की सम्भावना भी नगण्य हो जाती है ।
  • (२) मनुष्य का व्यवहार, दिनचर्या, मौसम के प्रतिकूल रहन-सहन आदि भी विभिन्न रोगों

के कारण हैं । ऐसी व्याधियों के निराकरण एवं उनसे सुरक्षित रहने के लिए चिकित्सक विभिन्न उपायों यथा- रहन-सहन, वस्त्र, विपश्यना, योग आदि की सलाह देता है ।

  • (३) खान-पान व्यवहार इत्यादि सलाह से यदि रोगी को आराम की सम्भावना कम होती है तो चिकित्सक उन्हें शामक औषधियाँ एवं गम्भीर रोगियों, जीर्ण व्याधियों में पंचकर्म आदि उपायों का प्रयोग करता है।
  • (४) उपरोक्त उपायों से यदि रोग से मुक्ति की सम्भावना कम होती है तो चिकित्सक शल्य आदि उपायों का प्रयोग करता है।

इन्हें भी देखें

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  1. "जमीन ही नहीं, कहीं और भी है चीन की नजर". नवभारत टाईम्स. 6 फ़रवरी 2014. मूल से 23 फ़रवरी 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 फ़रवरी 2014.
  2. सोवा-रिग्पा का संक्षिप्त परिचय (बोधिप्रभा)ं
  3. "सोवा रिग्पा", विकिपीडिया (मराठी में), 2023-02-05, अभिगमन तिथि 2023-02-05
  4. "सोवा रिग्पा", विकिपिडिया (नेपाली में), 2023-02-05, अभिगमन तिथि 2023-02-05