गुरु नानक

सिख धर्म के संस्थापक (1469-1539)
(गुरू नानक से अनुप्रेषित)

नानक (पंजाबी:ਨਾਨਕ) (कार्तिक पूर्णिमा 1469 – 22 सितंबर 1539) सिखों के प्रथम (आदि ) गुरु हैं।[2] इनके अनुयायी इन्हें नानक, नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह नामों से सम्बोधित करते हैं। नानक अपने व्यक्तित्व में दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि, देशभक्त और विश्वबन्धु - सभी के गुण समेटे हुए थे। इनका जन्म स्थान गुरुद्वारा ननकाना साहिब पाकिस्तान में और समाधि स्थल करतारपुर साहिब पाकिस्तान में स्थित है।[3]

नानक देव जी
जन्म गुरु नानक देव जी
कार्तिक पूर्णिमा, संवत् १५२७ अथवा 29 अक्तूबर 1469
राय भोई की तलवंडी, (वर्तमान ननकाना साहिब, पंजाब, पाकिस्तान, पाकिस्तान)
मौत 22 सितम्बर 1539[1]
समाधि गुरुद्वारा दरबार साहिब, करतारपुर, पाकिस्तान
कार्यकाल 1469–1539
उत्तराधिकारी गुरु अंगद देव
धर्म सिख धर्म
जीवनसाथी सुलक्खनी देवी
माता-पिता लाला कल्याण राय (मेहता कालू जी), माता तृप्ता देवी जी के यहां हिन्दू परिवार में
गुरुद्वारा दरबार साहिब, करतारपुर, पाकिस्तान

सिख धर्म
पर एक श्रेणी का भाग

Om
सिख सतगुरु एवं भक्त
श्री गुरु नानक देव · श्री गुरु अंगद देव
श्री गुरु अमर दास  · श्री गुरु राम दास ·
श्री गुरु अर्जन देव  ·श्री गुरु हरि गोबिंद  ·
श्री गुरु हरि राय  · श्री गुरु हरि कृष्ण
श्री गुरु तेग बहादुर  · श्री गुरु गोबिंद सिंह
भक्त रैदास जी भक्त कबीर जी · शेख फरीद
भक्त नामदेव
धर्म ग्रंथ
आदि ग्रंथ साहिब · दसम ग्रंथ
सम्बन्धित विषय
गुरमत ·विकार ·गुरू
गुरद्वारा · चंडी ·अमृत
नितनेम · शब्दकोष
लंगर · खंडे बाटे की पाहुल


 
गुरुद्वारा ननकाना साहिब

इनका जन्म रावी नदी के किनारे स्थित तलवण्डी नामक गाँव में कार्तिकी पूर्णिमा को खत्री कुल में हुआ था। तलवण्डी पाकिस्तान में पंजाब प्रान्त का एक नगर है। कुछ विद्वान इनकी जन्मतिथि 29 अक्तूबर, 1469 मानते हैं। किन्तु प्रचलित तिथि कार्तिक पूर्णिमा ही है, जो अक्टूबर-नवम्बर में दीवाली के 15 दिन बाद पड़ती है। इनके पिता का नाम मेहता कालूचन्द खत्री ब्राह्मण तथा माता का नाम तृप्ता देवी था। तलवण्डी का नाम आगे चलकर नानक के नाम पर ननकाना पड़ गया। इनकी बहन का नाम नानकी था।

 
विद्यालय जाते हुए बालक नानक

बचपन से इनमें प्रखर बुद्धि के लक्षण दिखाई देने लगे थे। लड़कपन ही से ये सांसारिक विषयों से उदासीन रहा करते थे। पढ़ने-लिखने में इनका मन नहीं लगा। 7-8 साल की उम्र में स्कूल छूट गया क्योंकि भगवत्प्राप्ति के सम्बन्ध में इनके प्रश्नों के आगे अध्यापक ने हार मान ली तथा वे इन्हें ससम्मान घर छोड़ने आ गए। तत्पश्चात् सारा समय वे आध्यात्मिक चिन्तन और सत्संग में व्यतीत करने लगे। बचपन के समय में कई चमत्कारिक घटनाएँ घटीं जिन्हें देखकर गाँव के लोग इन्हें दिव्य व्यक्तित्व मानने लगे। बचपन के समय से ही इनमें श्रद्धा रखने वालों में इनकी बहन नानकी तथा गाँव के शासक राय बुलार प्रमुख थे।

 
नानक के सिर पर सर्प द्वारा छाया करने का दृश्य देखकर राय बुलार का नतमस्तक होना

इनका विवाह बालपन मे सोलह वर्ष की आयु में गुरदासपुर जिले के अन्तर्गत लाखौकी नामक स्थान के रहनेवाले मूला की कन्या सुलक्खनी से हुआ था। 32 वर्ष की अवस्था में इनके प्रथम पुत्र श्रीचन्द का जन्म हुआ। चार वर्ष पश्चात् दूसरे पुत्र लखमीदास का जन्म हुआ। दोनों लड़कों के जन्म के उपरान्त 1507 में नानक अपने परिवार का भार अपने श्वसुर पर छोड़कर मरदाना, लहना, बाला और रामदास इन चार साथियों को लेकर तीर्थयात्रा के लिये निकल पडे़। उन पुत्रों में से 'श्रीचन्द आगे चलकर उदासी सम्प्रदाय के प्रवर्तक हुए।'[4]

उदासियाँ

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गुरु नानक के पुत्र श्री चन्द्रमुनि द्वारा तपस्वियों का एक धार्मिक संप्रदाय उदासी सम्प्रदाय का स्थापना किया गया।

 
गुरु नानाक देव जी की यात्राएँ

ये चारों ओर घूमकर उपदेश करने लगे। 1521 तक इन्होंने चार यात्रा चक्र पूरे किए, जिनमें भारत, अफगानिस्तान, फारस और अरब के मुख्य मुख्य स्थानों का भ्रमण किया। इन यात्राओं को पंजाबी में "उदासियाँ" कहा जाता है।[5]

गुरु नानक देव जी यात्रा, जिसे गुरु नानक की उदासी के नाम से भी जाना जाता है, सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी द्वारा की गई आध्यात्मिक यात्राओं को संदर्भित करती है। उन्होंने एकता, समानता और ईश्वर के प्रति समर्पण का संदेश फैलाने के लिए बड़े पैमाने पर यात्रा की। यहाँ उनके मुख्य मार्गों का एक सामान्य अवलोकन दिया गया है, जिन्हें व्यापक रूप से चार उदासी के रूप में जाना जाता है।

पहली उदासी (1500-1506) प्राथमिक मार्ग: पंजाब से भारत के पूर्वी भागों तक। उल्लेखनीय स्थान: सुल्तानपुर, पानीपत, हरिद्वार, बनारस (वाराणसी), पटना, असम, बंगाल और ढाका।

1. पहली उदासी (1500-1506)  पूर्वी भारत, प्रारंभिक बिंदु: सुल्तानपुर (पंजाब, भारत)

प्रमुख पड़ाव: पानीपत दिल्ली हरिद्वार अयोध्या प्रयागराज (इलाहाबाद) बनारस (वाराणसी) पटना पुरी (ओडिशा) असम, ढाका (बांग्लादेश), और अंत में पंजाब वापस आना। दूसरी उदासी (1506-1513) प्राथमिक मार्ग: दक्षिणी भारत। उल्लेखनीय स्थान: राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र (नांदेड़ सहित), आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और श्रीलंका (उन्होंने रामेश्वरम के रास्ते यात्रा की)।

2. दूसरी उदासी (1506-1513) - दक्षिणी भारत प्रारंभिक बिंदु: पंजाब, दक्षिण की ओर बढ़ते हुए प्रमुख पड़ाव: राजस्थान (अजमेर) गुजरात (सोमनाथ, द्वारका) महाराष्ट्र (नांदेड़) कर्नाटक तमिलनाडु (रामेश्वरम) श्रीलंका (जाफना, पुट्टलम), फिर उत्तर की ओर पंजाब लौटते हुए।

तीसरी उदासी (1514-1518) प्राथमिक मार्ग: हिमालय और तिब्बत की ओर उत्तर की ओर उल्लेखनीय स्थान: कश्मीर, नेपाल, ताशकंद, तिब्बत और लद्दाख। उन्होंने सुमेर पर्वत और कैलाश मानसरोवर सहित कई क्षेत्रों की यात्रा की।

3. तीसरी उदासी (1514-1518) - उत्तरी भारत और तिब्बत प्रारंभिक बिंदु: पंजाब, हिमालय की ओर बढ़ते हुए प्रमुख पड़ाव: हिमाचल प्रदेश जम्मू और कश्मीर (श्रीनगर, लेह) नेपाल ताशकंद (उज्बेकिस्तान) तिब्बत, कैलाश मानसरोवर की यात्रा, और वापस पंजाब की ओर।

चौथी उदासी (1519-1521) प्राथमिक मार्ग: मध्य पूर्व की ओर पश्चिमी मार्ग। उल्लेखनीय स्थान: काबुल, बगदाद, मक्का और मदीना। इस यात्रा में अंतर-धार्मिक चर्चाएँ और पवित्र इस्लामी स्थलों की यात्रा शामिल थी।

4. चौथी उदासी (1519-1521) – मध्य पूर्व

प्रारंभिक बिंदु: पंजाब, पश्चिम की ओर मुख्य पड़ाव: पेशावर (पाकिस्तान) अफगानिस्तान (काबुल) ईरान इराक (बगदाद) सऊदी अरब (मक्का, मदीना) बगदाद से वापस पंजाब की ओर लौटना।

प्रत्येक उदासी अद्वितीय थी और शांति, प्रेम और समानता के आदर्शों को फैलाने के लिए गुरु नानक की प्रतिबद्धता को दर्शाती थी। उनकी यात्राएँ हज़ारों मील तक फैली हुई थीं, जिन्होंने पीढ़ियों को प्रेरित किया और कई क्षेत्रों में गहरा सांस्कृतिक और आध्यात्मिक प्रभाव छोड़ा।


भौगोलिक विवरण विवाद का विषय हैं, जिसमें आधुनिक विद्वता कई दावों के विवरण और प्रामाणिकता पर सवाल उठाते हैं। उदाहरण के लिए, कैलेवर्ट और स्नेल (1994) कहते हैं कि प्रारंभिक सिख ग्रंथों में ऐसी कहानियाँ नहीं हैं।[6] [7] जब यात्रा की कहानियां पहली बार गुरु नानक की मृत्यु के सदियों बाद उनके जीवनी संबंधी खातों में दिखाई देती हैं, तो वे समय के साथ-साथ और अधिक परिष्कृत होती जाती हैं, देर से चरण पुराणन संस्करण में चार मिशनरी यात्राओं का वर्णन किया गया है, जो मिहरबन संस्करण से भिन्न हैं।[7][8]

गुरु नानक की व्यापक यात्राओं के बारे में कुछ कहानियाँ पहली बार 19वीं शताब्दी की पुराणन जनमसाखी में दिखाई देती हैं, हालाँकि इस संस्करण में भी नानक की बगदाद की यात्रा का उल्लेख नहीं है। [7] कैलेवर्ट और स्नेल (1993) के अनुसार, इस तरह के अलंकरण और नई कहानियों का सम्मिलन, उसी युग के सूफी तज़करों में पाए गए इस्लामी पीरों द्वारा चमत्कारों के निकट समानांतर दावे, यह विश्वास करने का कारण देते हैं कि ये किंवदंतियां एक कम्पिटिशन में लिखी गई हो सकती हैं।[9][7]

 
भाई मणी सिंह जनमसाखि

विवाद का एक अन्य स्रोत बगदाद पत्थर रहा है, जिस पर एक तुर्की लिपि में एक शिलालेख है। कुछ लोग शिलालेख की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि 1511-1512 में बाबा नानक फकीर वहां थे; दूसरों ने इसे 1521-1522 के रूप में पढ़ा (और यह कि वह अपने परिवार से 11 साल दूर मध्य पूर्व में रहे)। अन्य, विशेष रूप से पश्चिमी विद्वानों का तर्क है कि पत्थर का शिलालेख 19 वीं शताब्दी का है और पत्थर इस बात का विश्वसनीय प्रमाण नहीं है कि गुरु नानक 16 वीं शताब्दी की शुरुआत में बगदाद आए थे।[10] इसके अलावा, पत्थर से परे, मध्य पूर्व में गुरु नानक की यात्रा का कोई सबूत या उल्लेख किसी अन्य मध्य पूर्वी पाठ या पुरालेख में नहीं पाया गया है। अतिरिक्त शिलालेखों के दावे किए गए हैं, लेकिन कोई भी उन्हें खोजने और सत्यापित करने में सक्षम नहीं है।[11]

उनकी यात्राओं के बारे में उपन्यास के दावे, साथ ही उनकी मृत्यु के बाद गुरु नानक के शरीर के गायब होने जैसे दावे भी बाद के संस्करणों में पाए जाते हैं और ये सूफी साहित्य में उनके पीरों के बारे में चमत्कारिक कहानियों के समान हैं गुरु नानक की यात्रा के आसपास की किंवदंतियों से संबंधित सिख जनमसाखियों में अन्य प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष उधार हिंदू महाकाव्यों और पुराणों और बौद्ध जातक कहानियों से हैं।[12][13][14]

 
मक्का में गुरु नानक देव जी

नानक सर्वेश्वरवादी थे। मूर्तिपूजा: उन्होंने सनातन मत की मूर्तिपूजा की शैली के विपरीत एक परमात्मा की उपासना का एक अलग मार्ग मानवता को दिया। उन्होंने हिन्दू पन्थ के सुधार के लिए इन्होंने कार्य किये। साथ ही उन्होंने तत्कालीन राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक स्थितियों पर भी दृष्टि डाली है। सन्त साहित्य में नानक उन सन्तों की श्रेणी में हैं जिन्होंने नारी को बड़प्पन दिया है।

हिन्दी साहित्य से सम्बन्ध

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हिन्दी साहित्य में गुरुनानक भक्तिकाल के अन्तर्गत आते हैं। वे भक्तिकाल में निर्गुण धारा की ज्ञानाश्रयी शाखा से सम्बन्ध रखते हैं। उनकी कृति के सम्बन्ध में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' में लिखते हैं कि- "भक्तिभाव से पूर्ण होकर वे जो भजन गाया करते थे उनका संग्रह (संवत् 1661) ग्रन्थ साहब में किया गया है।"[15]

जीवन के अन्तिम दिनों में इनकी ख्याति बहुत बढ़ गई और इनके विचारों में भी परिवर्तन हुआ। स्वयं ये अपने परिवार वर्ग के साथ रहने लगे और मानवता कि सेवा में समय व्यतीत करने लगे। उन्होंने करतारपुर नामक एक नगर बसाया, जो कि अब पाकिस्तान में है और एक बड़ी धर्मशाला उसमें बनवाई। इसी स्थान पर आश्वन कृष्ण १०, संवत् १५९७ (22 सितम्बर 1539 ईस्वी) को इनका परलोक वास हुआ।

मृत्यु से पहले उन्होंने अपने शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया जो बाद में गुरु अंगद देव के नाम से जाने गए।

नानक भेदाभेद वादी कवि थे और साथ ही अच्छे सूफी कवि भी। उनके भावुक और कोमल हृदय ने प्रकृति से एकात्म होकर जो अभिव्यक्ति की है, वह निराली है। उनकी भाषा "बहता नीर" थी जिसमें फारसी, मुल्तानी, पंजाबी, सिंधी, खड़ी बोली, अरबी के शब्द समा गए थे।

गुरु ग्रन्थ साहिब में सम्मिलित 974 शब्द (19 रागों में), गुरबाणी में शामिल है- जपजी, Sidh Gohst, सोहिला, दखनी ओंकार, आसा दी वार, Patti, बारह माह

अन्य गुरु

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सिख सम्प्रदाय में दस गुरु हुए हैं[16] जिसमें पहले गुरुनानक हैं तथा अन्तिम गुरु गोबिंद सिंह हुए हैं-

  1. गुरु नानक देव
  2. गुरु अंगद देव
  3. गुरु अमर दास
  4. गुरु राम दास
  5. गुरु अर्जुन देव
  6. गुरु हरगोबिन्द
  7. गुरु हर राय
  8. गुरु हर किशन
  9. गुरु तेग बहादुर
  10. गुरु गोबिंद सिंह

इनके जीवन से जुड़े प्रमुख गुरुद्वारा साहिब

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1. गुरुद्वारा कन्ध साहिब- बटाला (गुरुदासपुर) गुरु नानक का यहाँ बीबी सुलक्षणा से 16 वर्ष की आयु में संवत्‌ 1544 की 24वीं जेठ को विवाह हुआ था। यहाँ गुरु नानक की विवाह वर्षगाँठ पर प्रतिवर्ष उत्सव का आयोजन होता है।

2. गुरुद्वारा हाट साहिब- सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) गुरुनानक ने बहनोई जैराम के माध्यम से सुल्तानपुर के नवाब के यहाँ शाही भण्डार के देखरेख की नौकरी प्रारम्भ की। वे यहाँ पर मोदी बना दिए गए। नवाब युवा नानक से काफी प्रभावित थे। यहीं से नानक को 'तेरा' शब्द के माध्यम से अपनी मंजिल का आभास हुआ था।[17]

3. गुरुद्वारा गुरु का बाग- सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) यह गुरु नानकदेवजी का घर था, जहाँ उनके दो बेटों बाबा श्रीचन्द और बाबा लक्ष्मीदास का जन्म हुआ था।

4. गुरुद्वारा कोठी साहिब- सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) नवाब दौलतखान लोधी ने हिसाब-किताब में ग़ड़बड़ी की आशंका में नानकदेवजी को जेल भिजवा दिया। लेकिन जब नवाब को अपनी गलती का पता चला तो उन्होंने नानकदेवजी को छोड़ कर माफी ही नहीं माँगी, बल्कि प्रधानमन्त्री बनाने का प्रस्ताव भी रखा, लेकिन गुरु नानक ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।

5.गुरुद्वारा बेर साहिब- सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) जब एक बार गुरु नानक अपने सखा मर्दाना के साथ वैन नदी के किनारे बैठे थे तो अचानक उन्होंने नदी में डुबकी लगा दी और तीन दिनों तक लापता हो गए, जहाँ पर कि उन्होंने ईश्वर से साक्षात्कार किया। सभी लोग उन्हें डूबा हुआ समझ रहे थे, लेकिन वे वापस लौटे तो उन्होंने कहा- एक ओंकार सतिनाम। गुरु नानक ने वहाँ एक बेर का बीज बोया, जो आज बहुत बड़ा वृक्ष बन चुका है।

6. गुरुद्वारा अचल साहिब- गुरुदासपुर अपनी यात्राओं के दौरान नानकदेव यहाँ रुके और नाथपन्थी योगियों के प्रमुख योगी भांगर नाथ के साथ उनका धार्मिक वाद-विवाद यहाँ पर हुआ। योगी सभी प्रकार से परास्त होने पर जादुई प्रदर्शन करने लगे। नानकदेवजी ने उन्हें ईश्वर तक प्रेम के माध्यम से ही पहुँचा जा सकता है, ऐसा बताया।

7. गुरुद्वारा डेरा बाबा नानक- गुरुदासपुर जीवनभर धार्मिक यात्राओं के माध्यम से बहुत से लोगों को सिख धर्म का अनुयायी बनाने के बाद नानकदेवजी रावी नदी के तट पर स्थित अपने फार्म पर अपना डेरा जमाया और 70 वर्ष की साधना के पश्चात सन्‌ 1539 ई. में परम ज्योति में विलीन हुए।

8.ईसवी संवत 2019, सिक्खों के आदि गुरु , गुरुनानक जी, के जन्म का 550 प्रकाश पर्व या वर्ष है। 9 नवम्बर, 2019 (शनिवार) के दिन प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने पंजाब के गुरदासपुर जिले के डेरा बाबा नानक चेकपोस्ट से गुरुनानक जी के पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के नारोवाल जनपल में स्थित समाधि-स्थल पर निर्मित गुरुद्वारा करतारपुर साहिब या गुरुद्वारा दरबार साहिब को जोड़ने वाले 4.5 किलोमीटर लम्बे गलियारे के जरिये लगभग 500 तीर्थयात्रियों के पहले जत्थे को हरी झण्डी दिखाकर रवाना किया ।

इन्हें भी देखिये

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बाहरी कड़ियाँ

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  1. "Guru Nanak". MANAS (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2024-09-22.
  2. {{cite web|url=http://www.bbc.com/hindi/india-41868258
  3. "Guru Nanak jayanti 2022 | time and date - Hindi". filemywap.in (अंग्रेज़ी में). 2022-03-10. अभिगमन तिथि 2022-03-11.
  4. आचार्य रामचन्द्र, शुक्ल (2013). हिंदी साहित्य का इतिहास (पुनर्मुद्रण संस्करण). इलाहाबाद: लोकभारती प्रकाशन. पृ॰ 55. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-8031-201-4.
  5. "गुरु नानक देव जी". Amar Ujala. अभिगमन तिथि 2020-11-29.
  6. The Hagiography of the Sikhs,Development of the Janam-sakhi traditions,W.H. McLeod, p26 According To Tradition Hagiographical Writing In India Callewaert
  7. Callewaert & Snell 1994, पृ॰प॰ 26–7.
  8. Lorenzen 1995, पृ॰प॰ 41–2.
  9. McLeod 2007, पृ॰प॰ 42–44.
  10. Ménage 1979, पृ॰प॰ 16–21.
  11. McLeod 2004, पृ॰प॰ 127–31.
  12. Lorenzen 1995.
  13. Oberoi 1994, पृ॰ 55.
  14. Callewaert & Snell 1994, पृ॰प॰ 27–30.
  15. आचार्य रामचन्द्र, शुक्ल (2013). हिंदी साहित्य का इतिहास (पुनर्मुद्रण संस्करण). इलाहाबाद: लोकभारती प्रकाशन. पृ॰ 55. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-8031-201-4.
  16. "ये हैं सिखों के दस गुरु जिन्होंने कभी नहीं टेके मुगलों के आगे घुटने". Dainik Bhaskar. 2014-12-22. अभिगमन तिथि 2020-11-29.
  17. नवभारतटाइम्स.कॉम (2019-11-10). "Page 2 : विवाह से पंचतत्व में विलीन होने तक, इन गुरुद्वारों से है गुरु नानक देवजी का विशेष नाता". नवभारत टाइम्स. अभिगमन तिथि 2020-11-29.