झाँसी

भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक ऐतिहासिक शहर
(झांसी से अनुप्रेषित)

झाँसी (झांशी‌) (Jhansi) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के झाँसी जनपद में स्थित एक नगर है। यह जनपद का मुख्यालय भी है। यह नगर भारतभर में झाँसी की रानी की 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में ऐतिहासिक भूमिका के कारण प्रसिद्ध है। शहर से तीन प्रमुख राजमार्ग गुजरते हैं - राष्ट्रीय राजमार्ग 27, राष्ट्रीय राजमार्ग 39 और राष्ट्रीय राजमार्ग 44[1][2]

झाँसी / झांशी
बलवंत नगर
झाँसी का दृश्य
झाँसी का दृश्य
उपनाम: रानी लक्ष्मीबाई की‌ वीरभूमि, बुन्देलखण्ड का ह्रदय, बुन्देलखण्ड का प्रवेशद्वार, बुन्देली का केंद्र
झाँसी is located in उत्तर प्रदेश
झाँसी
झाँसी
उत्तर प्रदेश में स्थिति
निर्देशांक: 25°26′N 78°34′E / 25.44°N 78.56°E / 25.44; 78.56निर्देशांक: 25°26′N 78°34′E / 25.44°N 78.56°E / 25.44; 78.56
देश भारत
राज्यउत्तर प्रदेश
ज़िलाझाँसी ज़िला
शासन
 • महापौरबिहारीलाल आर्य (भाजपा)
ऊँचाई285 मी (935 फीट)
जनसंख्या (2011)
 • शहर5,05,693
 • महानगर5,47,638
भाषाएँ
 • प्रचलितहिन्दी
समय मण्डलभारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30)
पिनकोड284122-2-3-4
दूरभाष कोड0510
वाहन पंजीकरणUP-93
लिंगानुपात 0.905 : 1.000
साक्षरता दर83.0%
औसत ग्रीष्मकालीन तापमान48 °से. (118 °फ़ै)
औसत शीतकालीन तापमान4.0 °से. (39.2 °फ़ै)
वेबसाइटwww.jhansi.nic.in
झाँसी का किला

विवरण संपादित करें

यह शहर उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित है और बुन्देलखण्ड क्षेत्र के अन्तर्गत आता है। झाँसी एक प्रमुख रेल एवं सड़क केन्द्र है और झाँसी जिले का प्रशासनिक केन्द्र भी है। झाँसी शहर पत्थर निर्मित किले के चारो तरफ फैला हुआ है, यह किला शहर के मध्य स्थित बँगरा नामक पहाड़ी पर निर्मित है। उत्तर प्रदेश में 20.7 वर्ग कि॰ मी॰ के क्षेत्र में फैला झाँसी पर प्रारम्भ में चन्देल राजाओं का नियंत्रण था। उस समय इसे बलवन्त नगर के नाम से जाना जाता था। झाँसी का महत्व सत्रहवीं शताब्दी में ओरछा के राजा बीर सिंह देव के शासनकाल में बढ़ा। इस दौरान राजा बीर सिंह और उनके उत्तराधिकारियों ने झाँसी में अनेक ऐतिहासिक इमारतों का निर्माण करवाया।

बुन्देलखंड का गढ़ माने जाने वाले झाँसी का इतिहास संघर्षशील है। 1857 में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार करने के स्थान पर उनके विरूद्ध संघर्ष करना उचित समझा। वे अंग्रेजों से वीरतापूर्वक लड़ी और अन्त में वीरगति को प्राप्त हुईं। झाँसी नगर के घर-घर में रानी लक्ष्मीबाई की वीरता के किस्से सुनाए जाते हैं। हिन्दी कवियित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने इसे अपनी कविता, झाँसी की रानी, में वर्णित करा है:

बुन्देलों हरबोलों के मुख हमने सुनी कहानी थी खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी

इतिहास संपादित करें

यह नगर ओरछा का प्रतापी वीर सिंह जू देव बुन्देला ने बसाया था उन्होंने 1608 ई में बलवंत नगर गाँव के पास की पहाड़ी पर एक विशाल किले का निर्माण कराया व नगर बसाया। झाँसी का नाम झाँसी कैसे पड़ा इसके बारे में कहा जाता है जब वीर सिंह जू देव बुन्देला ओरछा अपने इस नगर को देख रहे थे तो उनको झाइसी (धुँधला) दिखाई दे रही थी तब उन्होंने अपने मंत्री से कहा कि झाइसी क्यों दिख रही है तो उनके मंत्री ने कहा झाइसी नही महाराज ये आपका नया शहर है तब से इसका नाम झाइसी हो गया जो आज झाँसी के नाम से जाना जाता है।

17वीं शताब्दी बुन्देला राजा छ्त्रसाल ने सन् 1732 में मराठा साम्राज्य से मदद माँगी। मराठा मदद के लिए आगे आए। सन् 1734 में राजा छ्त्रसाल की मौत के बाद बुन्देला क्षेत्र का एक तिहाई हिस्सा मराठो को दे दिया गया। मराठो ने शहर का विकास किया और इसके लिए ओरछा से लोगो को ला कर बसाया गया।

सन् 1806 मे मराठा शक्ति कमजोर पडने के बाद ब्रितानी राज और मराठा के बीच् समझौता हुआ जिसमे मराठो ने ब्रितानी साम्राज्य का प्रभुत्व स्वीकार कर लिया। सन् 1817 में मराठो ने पूने में बुन्देल्खन्ड क्षेत्र के सारे अधिकार ब्रितानी ईस्ट इण्डिया कम्पनी को दे दिये। सन् 1853 में झाँसी के राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गई। तत्कालीन गवर्नल जनरल ने झाँसी को पूरी तरह से अपने अधिकार में ले लिया। राजा गंगाधर राव की विधवा रानी लक्ष्मीबाई ने इसका विरोध किया और कहा कि राजा गंगाधर राव के दत्तक पुत्र को राज्य का उत्त्तराधिकारी माना जाए, परन्तु ब्रितानी राज ने मानने से इन्कार कर दिया। इन्ही परिस्थितियों के चलते झाँसी में सन् 1857 का संग्राम हुआ। जो कि भारतीय स्वतन्त्र्ता संग्राम के लिये नीव का पत्थर साबित हुआ। जून 1857 में 12वीं पैदल सेना के सैनिको ने झाँसी के किले पर कब्जा कर लिया और किले में मौजूद ब्रितानी अफसरो को मार दिया गया। ब्रितानी राज से लडाई के दोरान रानी लक्ष्मीबाई ने स्वयं सेना का सन्चालन किया। नवम्बर 1858 में झाँसी को फिर से ब्रितानी राज में मिला लिया गया और झाँसी के अधिकार ग्वालियर के राजा को दे दिये गये। सन् 1886 में झाँसी को यूनाइटिड प्रोविन्स में जोडा गया जो स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद 1956 में उत्तर प्रदेश बना।

रानी झाँसी राज्याभिषेक संपादित करें

४ जून १८५७ को भारतीय सैनिकों ने अंग्रेजों के खिलाडी युद्ध किया। ९ जून को रानी लक्ष्मीबाई को झांसी सौंपी। १० जून १८५७ को दत्तक पुत्र दामोदरराव नेवालकर के नाम पर महारानी लक्ष्मीबाई का राज्याभिषेक हुआ और वह समुचे बुन्देलखण्ड की साम्राज्ञी बनी। राजमाता बनते ही उन्होंने प्रजा के हीत के निर्णय तथा आदेश पारीत किये। बुन्देलखण्ड के किसानों का लगान माफ किया था। महारानी लक्ष्मीबाई का यह स्वर्ण राजकाल पहिला चरण (२१ नवम्बर १८५३ से १० मार्च १८५४) तथा द्वितीय चरण में (४ जून १८५७ से ४ अप्रैल १८५८) तक रहा.

रानी झाँसी का मन्त्रीमण्डल संपादित करें

राज्याभिषेक होने के बाद अधिकारीक रूप से महारानी लक्ष्मीबाई यह झाँसी के साथ पुरे बुंदेलखंड की साम्रज्ञी हो गयी. ११ जून १८५७ को रानी ने पहला राजदरबार लगाया. और अपना मन्त्रीमण्डल तयार किया. इस मन्त्रीमण्डल में २० सदस्य थे. ९ सदस्यों को पद दिया गया तो ११ सदस्यों को मन्त्रीमण्डल में शामिल किया गया.

मुख्य पदाधिकारी :-

महारानी लक्ष्मीबाई - प्रधान शासक लक्ष्मणराव - प्रधानमंत्री जवाहर सिंह - प्रधान सेनापती रघुनाथ सिंह - सरसेनापती मोरोपंत - प्रधान (कामठाने) नाना भोपटकर - न्यायाधीश मोतीबाई - जासूस विभाग प्रधान तात्या टोपे - गुप्तचर गुलाम गौस खान - मुख्य तोपची

मन्त्रीमण्डल सदस्य :

भाऊबख्शी, मोतीबाई, रघुनाथ सिंह, खुदाबख्श, मुहम्मद जमाँ खाँ, मुन्दर, सुन्दर, काशीबाई, राव दूल्हाजू, अली बहादुर और पीर अली.

ऐसे २० सदस्यों को मिलाकर झाँसी का मंत्री मंडल तयार किया गया.

शिक्षा संपादित करें

झाँसी शहर बुन्देलखन्ड क्षेत्र में अध्ययन का एक प्रमुख केन्द्र है। विद्यालय एवं अध्ययन केन्द्र सरकार तथा निजी क्षेत्र द्वारा चलाये जाते है। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, जिसकी स्थापना सन् 1975 में की गयी थी, विज्ञान, कला एवं व्यवसायिक शिक्षा की उपाधि देता है। झाँसी शहर और आसपास के अधिकतर विद्यालय बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय से सम्बद्ध है। बुन्देलखण्ड अभियान्त्रिकी एवं तकनिकी संस्थान उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा स्थापित तकनिकी संस्थान है जो उत्तर प्रदेश तकनिकी विश्वविद्यालय से सम्बद्ध है। रानी लक्ष्मीबाई चिकित्सा संस्थान चिकित्सा विज्ञान में उपाधि प्रदान करता है। झॉसी में आयुर्वेदिक अध्ययन संस्थान भी है जो कि प्राचीन भारतीय चिकित्सा विज्ञान "आयुर्वेद" की शिक्षा देता है। उच्च शिक्षा के अलावा झॉसी में अनेक प्राथमिक विद्यालय भी है। ये विद्यालय सरकार तथा निजी क्षेत्र द्वारा चलाये जाते है। विध्यालयो में शिक्षा का माध्यम हिन्दी एवं अंग्रेजी भाषा है। विद्यालय उत्तर प्रदेश् माध्यमिक शिक्षा परिषद, केन्द्रिय माध्यमिक शिक्षा परिषद से सम्बद्ध है। झॉसी का पुरुष् साक्षरता अनुपात 80% महिला साक्षरता अनुपात 51% है, तथा कुल् साक्षरता अनुपात 66% है।

प्रमुख शिक्षा संस्थान संपादित करें

  • BKD (बुन्देलखण्ड महाविद्यालय), झाँसी।
  • श्री गुरु नानक ख़ालसा इण्टर कॉलेज, झाँसी।
  • श्री गुरु हर किशन डिग्री कॉलेज, झाँसी।
  • श्री एम एल पाण्डे एग्लो विदिक जूनियर हाईस्कूल खाती बाबा झाँसी|
  • भानी देवी गोयल सरस्वती विद्यामन्दिर, झाँसी |
  • पं. दीनदयाल उपाध्याय विद्यापीठ बालाजी मार्ग, झाँसी।
  • रघुराज सिन्ह पब्लिक स्कूल, पठोरिया, दतिया गेट
  • मारग्रेट लीस्क मेमोरिअल इंग्लिश स्कूल एण्ड कॉलेज
  • राजकीय इण्टर कॉलेज
  • बिपिन बिहारी इण्टर कॉलेज
  • क्राइस्ट दि किंग कॉलेज
  • रानी लक्ष्मीबाई पब्लिक स्कूल
  • सैण्ट फ्रांसिस कान्वेंट इण्टर कॉलेज
  • लक्ष्मी व्यायाम मंदिर
  • आर्य कन्या इण्टर कॉलेज
  • कैथेड्रल स्कूल
  • ज्ञान स्थली पब्लिक स्कूल
  • हेलेन मेगडोनियल मेमोरियल कन्या इन्टर‍ कोलेज
  • लोक मान्य तिलक कन्या इन्टर कोलेज
  • राज्य विद्युत परिषद इण्टर कॉलेज
  • सरस्वती संस्कार केंद्र सीपरी बाजार

अभियान्त्रिकी संस्थान संपादित करें

पयर्टन संपादित करें

दर्शनिय स्थल संपादित करें

झाँसी किला संपादित करें

झाँसी का किला उत्तर प्रदेश ही नहीं भारत के सबसे बेहतरीन किलों में एक है। ओरछा के राजा बीर सिंह देव ने यह किला 1613 ई॰ में बनवाया था। किला बंगरा नामक पहाड़ी पर बना है। किले में प्रवेश के लिए दस दरवाजे हैं। इन दरवाजों को खन्देरो, दतिया, उन्नाव, झरना, लक्ष्मी, सागर, ओरछा, सैनवर और चाँद दरवाजों के नाम से जाना जाता है। किले में रानी झाँसी गार्डन, शिव मन्दिर और गुलाम गौस खान, मोती बाई व खुदा बक्श की मजार देखी जा सकती है। यह किला प्राचीन वैभव और पराक्रम का जीता जागता दस्तावेज है।

रानी महल संपादित करें

रानी लक्ष्मीबाई के इस महल की दीवारों और छतों को अनेक रंगों और चित्रकारियों से सजाया गया है। वर्तमान में किले को संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया है। यहाँ नौवीं से बारहवीं शताब्दी की प्राचीन मूर्तियों का विस्तृत संग्रह देखा जा सकता है। महल की देखरख भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा की जाती है।

झाँसी संग्रहालय संपादित करें

झाँसी किले में स्थित यह संग्रहालय इतिहास में रूचि रखने वाले पर्यटकों का मनपसन्द स्थान है। यह संग्रहालय केवल झाँसी की ऐतिहासिक धरोहर को ही नहीं अपितु सम्पूर्ण बुन्देलखण्ड की झलक प्रस्तुत करता है। यहाँ चन्देल शासकों के जीवन से संबंधित अनेक जानकारियाँ हासिल की जा सकती हैं। चन्देल काल के अनेक हथियारों, मूर्तियों, वस्त्रों और तस्वीरों को यहाँ देखा जा सकता है।

महालक्ष्मी मन्दिर संपादित करें

झाँसी के राजपरिवार के सदस्य पहले श्री गणेश मंदिर जाते थे जहा पर रानी मणिकर्णिका और श्रीमन्त गंगाधर राव नेवालकर की शादी हुई फिर इस महालक्ष्मी मन्दिर जाते थे। 18वीं शताब्दी में बना यह भव्य मन्दिर देवी महालक्ष्मी को समर्पित है। यह मन्दिर लक्ष्मी दरवाजे के निकट स्थित है।यह देवी आज भी झाँसी के लोगो की कुलदेवी है क्योंकि आदी अनादि काल से यह प्रथा रही है कि जो राज परिवार के कुलदेवी और कुलदैवत होते है वही उस नगरवासियों के कुलदैवत होते है तो झाँसी वालो के मुख्य अराध्य देव गणेशजी और आराध्य देवी महालक्ष्मी देवी है। झाँसी के राजपरिवार के ये कुल देवता है।

गंगाधर राव की छतरी संपादित करें

लक्ष्मी ताल में महाराजा गंगाधर राव की समाधि स्थित है। 1853 में उनकी मृत्यु के बाद महारानी लक्ष्मीबाई ने यहाँ उनकी याद में यह स्मारक बनवाया है।

गणेश मन्दिर संपादित करें

 
गणेश मन्दिर

भगवान गणेश को समर्पित इस मन्दिर में महाराज गंगाधर राव और वीरांगना झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के विवाह का एक संस्कार सीमांत पूजन इसी मंदिर में सम्पन्न हुआ था। यह भगवान गणेश का प्राचीन मन्दिर है। जहा हर बुधवार को सैकड़ो भक्त दर्शन का लाभ लेते है। यहाँ पर प्रत्येक माह की गणेश चतुर्थी को प्रातः काल और सायं काल अभिषेक होता है। साधारणतः यहाँ सायं काल के अभिषेक में बहुत भीड़ होती है। ऐसी मान्यता है कि इस गणेश मूर्ति के इक्कीस दिन इक्कीस परिक्रमा लगाने से अप्रत्यक्ष लाभ होता है और मनोकामनाएँ पूर्ण होती है। झाँसी के नजदीकी पर्यटन स्थलों में ओरछा, बरूआ सागर, शिवपुरी, दतिया, ग्वालियर, खजुराहो, महोबा, टोड़ी फतेहपुर, आदि भी दर्शनीय स्थल हैं।

निकटतम दर्शनीय स्थल संपादित करें

  • सुकमा-डुकमा बाँध : बेतवा नदी पर बना हुआ यह अत्यन्त सुन्दर बाँध है। इस बाँध कि झाँसी शहर से दूरी करीब 45 कि॰मी॰ है तथा यह बबीना शहर के पास है।
  • देवगढ् : झाँसी शहर से 123 कि॰मी॰ दूर यह शहर ललितपुर के पास है। यहाँ गुप्ता वंश के समय् के विश्नु एवं जैन मन्दिर देखे जा सकते हैं।
  • ओरछा : झॉसी शहर से 18 कि॰मी॰ दूर यह स्थान अत्यन्त सुन्दर मन्दिरो, महलों एवं किलो के लिये जाना जाता है।
  • खजुराहो : झाँसी शहर से 178 कि॰मी॰ दूर यह स्थान 10 वी एवं 12 वी शताब्दी में चन्देला वंश के राजाओं द्वारा बनवाए गए अपने शृंगारात्मक मन्दिरो के लिए प्रसिद्ध है।
  • दतिया : झाँसी शहर से 28 कि॰मी॰ दूर यह राजा बीर सिह द्वारा बनवाये गये सात मन्जिला महल एवं श्री पीतम्बरा देवी के मन्दिर के लिए प्रसिद्ध है।
  • शिवपुरी : झाँसी से 101 कि॰मी॰ दूर यह शहर ग्वालियर के सिन्धिया राजाओं की ग्रीष्म्कालीन राजधानी हुआ करता था। यह शहर सिन्धिया द्वारा बनवाए गए संगमरमर के स्मारक के लिये भी प्रसिद्ध है। यहाँ का माधव राष्ट्रिय उद्यान वन्य जीवन से परिपूर्ण है।

आवागमन संपादित करें

वायु मार्ग

झाँसी से 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्वालियर निकटतम एयरपोर्ट है। यह एयरपोर्ट दिल्ली, मुम्बई, वाराणसी, बैंगलोर आदि शहरों से नियमित फ्लाइटों के माध्यम से जुड़ा हुआ है।

रेल मार्ग

झाँसी का रलवे स्टेशन वीरांगना लक्ष्मीबाई झाँसी जंक्शन भारत के तमाम प्रमुख शहरों अनेकों रेलगाड़ियों से जुड़ा है।

सड़क मार्ग

झाँसी में राष्ट्रीय राजमार्ग 25 और 26 से अनेक शहरों से पहुँचा जा सकता है। उत्तर प्रदेश राज्य परिवहन निगम की बसें झाँसी पहुँचने के लिए अपनी सुविधा मुहैया कराती हैं।

झाँसी से संबद्ध कुछ प्रतिष्ठित व्यक्तित्व संपादित करें

इन्हें भी देखें संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "Uttar Pradesh in Statistics," Kripa Shankar, APH Publishing, 1987, ISBN 9788170240716
  2. "Political Process in Uttar Pradesh: Identity, Economic Reforms, and Governance Archived 2017-04-23 at the Wayback Machine," Sudha Pai (editor), Centre for Political Studies, Jawaharlal Nehru University, Pearson Education India, 2007, ISBN 9788131707975