डेंगू बुख़ार

डेंगू
(डेंगू बुखार से अनुप्रेषित)

डेंगू बुख़ार (अंग्रेज़ी: डेङ्गे/डेङ्गी फ़ीवर, हिसपानियायी: देङ्गे) एक संक्रमण है जो डेंगू वायरस के कारण होता है। डेंगू का इलाज समय पर करना बहुत जरुरी होता हैं। मच्छर डेंगू वायरस को संचरित करते (या फैलाते) हैं। डेंगू बुख़ार को "हड्डीतोड़ बुख़ार" के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इससे पीड़ित लोगों को इतना अधिक दर्द हो सकता है कि जैसे उनकी हड्डियां टूट गयी हों। डेंगू बुख़ार के कुछ लक्षणों में बुखार; सिरदर्द; त्वचा पर चेचक जैसे लाल चकत्ते तथा मांसपेशियों और जोड़ों का दर्द शामिल हैं। कुछ लोगों में, डेंगू बुख़ार एक या दो ऐसे रूपों में हो सकता है जो जीवन के लिये खतरा हो सकते हैं। पहला, डेंगू रक्तस्रावी बुख़ार है, जिसके कारण रक्त वाहिकाओं (रक्त ले जाने वाली नलिकाएं), में रक्तस्राव या रिसाव होता है तथा रक्त प्लेटलेट्स  (जिनके कारण रक्त जमता है) का स्तर कम होता है। दूसरा डेंगू शॉक सिंड्रोम है, जिससे खतरनाक रूप से निम्न रक्तचाप होता है।

Dengue fever
वर्गीकरण एवं बाह्य साधन
डेंगू बुखार में देखा गया आम दाने
आईसीडी-१० A90.
आईसीडी- 061
डिज़ीज़-डीबी 3564
मेडलाइन प्लस 001374
ईमेडिसिन med/528 
एम.ईएसएच C02.782.417.214

डेंगू वायरस 3 भिन्न-भिन्न प्रकारों के होते हैं। यदि किसी व्यक्ति को इनमें से किसी एक प्रकार के वायरस का संक्रमण हो जाये तो आमतौर पर उसके पूरे जीवन में वह उस प्रकार के डेंगू वायरस से सुरक्षित रहता है। हलांकि बाकी के तीन प्रकारों से वह कुछ समय के लिये ही सुरक्षित रहता है। यदि उसको इन तीन में से किसी एक प्रकार के वायरस से संक्रमण हो तो उसे गंभीर समस्याएं होने की संभावना काफी अधिक होती है। 

लोगों को डेंगू वायरस से बचाने के लिये कोई वैक्सीन उपलब्ध नहीं है। डेंगू बुख़ार से लोगों को बचाने के लिये कुछ उपाय हैं, जो किये जाने चाहिये। लोग अपने को मच्छरों से बचा सकते हैं तथा उनसे काटे जाने की संख्या को सीमित कर सकते हैं। वैज्ञानिक मच्छरों के पनपने की जगहों को छोटा तथा कम करने को कहते हैं। यदि किसी को डेंगू बुख़ार हो जाय तो वह आमतौर पर अपनी बीमारी के कम या सीमित होने तक पर्याप्त तरल पीकर ठीक हो सकता है। यदि व्यक्ति की स्थिति अधिक गंभीर है तो, उसे अंतः शिरा द्रव्य (सुई या नलिका का उपयोग करते हुये शिराओं में दिया जाने वाला द्रव्य) या रक्त आधान (किसी अन्य व्यक्ति द्वारा रक्त देना) की जरूरत हो सकती है।

1960 से, काफी लोग डेंगू बुख़ार से पीड़ित हो रहे हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से यह बीमारी एक विश्वव्यापी समस्या हो गयी है। यह 110 देशों में आम है। प्रत्येक वर्ष लगभग 50-100 मिलियन लोग डेंगू बुख़ार से पीड़ित होते हैं।

वायरस का प्रत्यक्ष उपचार करने के लिये लोग वैक्सीन तथा दवाओं पर काम कर रहे हैं। मच्छरों से मुक्ति पाने के लिये लोग, कई सारे अलग-अलग उपाय भी करते हैं। 

डेंगू बुख़ार का पहला वर्णन 1779 में लिखा गया था। 20वीं शताब्दी की शुरुआत में वैज्ञानिकों ने यह जाना कि बीमारी डेंगू वायरस के कारण होती है तथा यह मच्छरों के माध्यम से संचरित होती (या फैलती) है। लक्षण बुखार आना, ठंड लगना ,मांसपेशी व जोड़ों में दर्द, कमजोरी महसूस करना , चक्कर आना रक्त में platelets की संख्या कम होना, नब्ज कमजोर चलना मृत्यु की संभावना रहना

वीडियो सारांश (स्क्रिप्ट)

डेंगू को कई वर्षों पूर्व सबसे पहले लिखा गया था। जिन साम्राज्य (265 से 420 ईसा पूर्व) के एक चीनी चिकित्सा विश्वकोष एक ऐसे व्यक्ति की बात करता है जिसे संभवतः डेंगू हुआ था। किताब एक "जल जहर (वॉटर पॉएज़न)" रोग के बारे में बताता है जिसका संबंध उड़ने वाले कीटों से था।[1][2]17 वीं शताब्दी के लिखित दस्तावेज़ भी एक ऐसी महामारी की चर्चा करते हैं जो डेंगू हो सकती है (जहां पर रोग थोड़े ही समय में तेज़ी से फैलता है)। सबसे अधिक संभावित डेंगू महामारी की आरंभिक रिपोर्ट 1779 तथा 1780 की है। ये रिपोर्ट एक ऐसी महामारी की बात करती हैं जिसने एशिया, अफ्रीका तथा उत्तरी अमरीका को अपने घेरे में ले लिया था।[2] उस समय से 1940 तक बहुत सारी महामारियां नहीं हुई।[2]

1906 में वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया कि लोगों को "एडीज़" मच्छरों से संक्रमण हो रहा था। 1907 में वैज्ञानिकों ने दर्शाया कि डेंगू का कारण वायरस है। यह मात्र दूसरा रोग था जिसे वायरस से होता दिखाया गया था (वैज्ञानिक पहले ही सिद्ध कर चुके थे कि पीला बुखार वायरस के कारण होता है)।[3]जॉन बर्टन क्लेलैंड तथा जोसेफ फ्रैंकलिन सिलर डेंगू के वायरस का अध्ययन करते रहे और वायरस के विस्तार के आधार का पता लगाया।[3]

दूसरे विश्व युद्ध के बाद डेंगू अधिक तेजी से फैलने लगा। माना गया कि युद्ध ने पर्यावरण को कई तरीको से बदला। भिन्न प्रकार के डेंगू नये क्षेत्रों में फैले। लोगो को पहली बार रक्तस्रावी डेंगू बुखार होना शुरु हुआ। डेगू का यह भीषण प्रकार सबसे पहले 1953 में फिलीपींस में रिपोर्ट किया गया। 1970 के आते-आते रक्तस्रावी डेंगू बुखार बच्चों में मृत्यु का प्रमुख कारण बन गया। यह प्रशांत क्षेत्र तथा अमरीका में भी होने लगा।[2] रक्तस्रावी डेंगू बुखार तथा डेंगू शॉक सिन्ड्रोम सबसे पहले मध्य तथा दक्षिण अमरीका में 1981 में रिपोर्ट किया गया। इस समय स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों ने यह देखा कि जिन लोगों को टाइप 1 डेंगू वायरस का असर हो चुका था उनको कुछ वर्षों के बाद टाइप 2 डेंगू वायरस का असर हो रहा था।[4]

शब्द का इतिहास

संपादित करें

यह स्पष्ट नहीं है कि शब्द "डेंगू" कहां से आया। कुछ लोगों का मानना है कि यह शब्द स्वाहीली के वाक्यांश का-डिंगा पेपो से आया है। यह वाक्यांश बुरी आत्माओं से होने वाली बीमारी के बारे में बताता है।[1] माना जाता है कि स्वाहीली शब्द डिंगा  स्पेनी के शब्द डेंगू से बना है। इस शब्द का अर्थ है "सावधान"। वह शब्द एक ऐसे व्यक्ति के बारे में बताने के लिये उपयोग किया गया हो सकता है जो डेंगू बुखार के हड्डी के दर्द से पीड़ित हो; वह दर्द उस व्यक्ति को सावधानी के साथ चलने पर मजबूर करता होगा।[5] हलांकि, यह भी संभव है कि स्पेनी शब्द स्वाहीली भाषा से आया हो, न कि जैसा ऊपर बताया गया है।[1] 

अन्य लोगों का मानना है कि "डेंगू" नाम वेस्ट इंडीज़ से आया है। वेस्ट इंडीज़ में, डेंगू से पीड़ित गुलाम "ए डैंडी" की तरह खड़े होने वाले और चलने वाले कहे जाते थे और इसी कारण से बीमारी को भी "डैंडी फीवर" कहा जाता था।[6][7]

"हड्डी-तोड़ बुखार (ब्रेकबोन फीवर)" नाम सबसे पहले एक चिकित्सक संयुक्त राज्य अमरीकी "संस्थापक जनक" बेंजामिन रश द्वारा उपयोग किया गया था। 1789 में रश ने "हड्डी-तोड़ बुखार (ब्रेकबोन फीवर)" नाम का उपयोग एक रिपोर्ट में किया जो 1780 में फिलाडेल्फिया में हुये डेंगू के प्रकोप पर थी। रिपोर्ट में रश ने अधिक औपचारिक नाम "बिलियस रिमिटिंग फीवर" का अधिकतर उपयोग किया।[8][9] शब्द "डेंगू बुखार" 1828 तक आम तौर पर उपयोग में नहीं था।[7] इसके पहले रोग के लिये भिन्न लोग भिन्न नाम उपयोग करते थे। उदाहरण के लिये डेंगू को "ब्रेकहार्ट फीवर" तथा "ला डेंगू" भी कहा जाता था।[7] जटिल डेंगू के लिये कई नाम उपयोग किये जाते थे: उदाहरण के लिये "इनफेक्शस थ्रोम्बोकाइटोपेनिक परप्यूरा", "फिलीपाइन", "थाई" तथा "सिंगापुर हेमोरेजिक फीवर"।[7]

महामारी का रूप

संपादित करें

डॆंगू का प्रथम महामारी रूपेण हमला एक साथ एशिया, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका मे एक साथ १७८० के लगभग हुआ था, इस रोग को १७७९ मे पहचाना तथा नाम दिया गया था। १९५० के दशक मे यह दक्षिण पूर्व एशिया यह निरंतर महामारी रूप मे फैलना शुरू हुआ तथा १९७५ तक डेंगू हेमरेज ज्वर इन देशों मे बाल मृत्यु का प्रधान कारण बन गया है। १९९० के दशक तक डेंगू मलेरिया के पश्चात मच्छरों द्वारा फैलने वाला दूसरा सबसे बडा रोग बन गया जिससे साल भर मे ४ करोड़ लोग संक्रमित होते है वहीं डेंगू हैमरेज ज्वर के भी हजारों मामले सामने आते है।

फरवरी २००२ मे ही जब रियो-डी-जेनेरो मे डेंगू के प्रसार हुआ तो १० लाख लोग इसकी चपेट मे आ गये थे जिससे १६ लोग मर गये।
मार्च २००८ तक भी इस शहर मे दशा बहुत अच्छी नहीं थी केवल ३ महीने में २३,५५५ मामले और ३० मौते हुई थी। लगभग हर पांच से छह साल मे डेंगू का बडा प्रकोप होता है ऐसा इस लिये होता है कि वार्षिक चक्र जो इस रोग के आते है वो रोगियों को कुछ समय हेतु प्रतिरोध क्षमता दे देता है जैसे कि चिकनगुनिया के मामलों मे होता है। जब यह प्रतिरोध क्षमता समाप्त हो जाती है तो लोग रोग के प्रति फिर से संवेदनशील हो जाते है, फिर डेंगू के चार प्रकार के वायरस होते है, इसके अलावा नये लोग जनसंख्या मे जन्म या प्रवास के जरिए जुड जाते है।

इस बात के पर्याप्त प्रमाण है [१९७० के बाद से] एस.बी.हेल्सटीड ने एक अध्ययन द्वारा सिद्ध कर दिया है कि डेंगू हैमरेज ज्वर उन रोगियों को ज्यादा होता है जो द्वितीयक संक्रमण से ग्रस्त हुए हो जो कि प्राथमिक् संक्रमण से भिन्न प्रकार के वायरस से होता है। यधपि इस धारणा को ठीक से समझा नहीं जा सका है केवल कुछ माडल है जो इसके बारे मे मत व्यक्त करते है, इस दशा को परमसंक्रमण की दशा कहते है।

सिंगापुर मे प्रतिवर्ष इस रोग के ४०००-५००० मामले सामने आते है यधपि आम धारणा यह है कि बहुत से मामले छुपे रह जाते है।

 
विश्व व्यापी डेंगू वितरण, 2006. लाल: महामारी डेंगू. नीला: एडिस एजिप्टी

चिह्न तथा लक्षण

संपादित करें
 
डेंगू बुख़ार के लक्षणों को दर्शाता चित्र

डेंगू के लक्षण (Symptoms) डेंगू वायरस से संक्रमित लगभग 80% लोगों (प्रत्येक 10 लोगों में से 8) में कोई लक्षण नहीं होते हैं या बेहद हल्के लक्षण (जैसे कि मूलभूत बुख़ार) होते हैं।[10][11][12] संक्रमित लोगों में से लगभग 5% लोग (प्रत्येक 100 लोगों में से 5) गंभीर रूप से बीमार पड़ते हैं। इन लोगों की एक छोटी संख्या में, बीमारी जीवन के लिये खतरनाक होती है।[10][12] डेंगू वायरस से पीड़ित होने के 3 से 14 दिनों के बाद किसी व्यक्ति में लक्षण दिखते हैं। लक्षण अक्सर 4 से 7 दिनों के बाद ही दिखते हैं।[13] इस तरह यदि कोई व्यक्ति ऐसे क्षेत्र से लौटता है जहां डेंगू आम है और उसके लौटने के 14 दिन या उसके बाद उसको बुख़ार होता है या अन्य लक्षण दिखते हैं तो शायद उसको डेंगू नहीं है।[14] 

अक्सर जब बच्चों को डेंगू बुख़ार होता है तो उनके लक्षण आम सर्दी-ज़ुकाम या आंत्रशोथ (गैस्ट्रोएनटराइटिस) (या उदर फ्लू; उदाहरण के लिये, उल्टी तथा दस्त (डायरिया)) होते हैं।[15] हलांकि, बच्चों में डेंगू बुख़ार द्वारा गंभीर समस्याएं होने की अधिक संभावनाएं होती हैं।[14]

नैदानिक प्रवाह

संपादित करें

डेंगू बुख़ार के ऐसे आदर्श लक्षण कम होते हैं जो अचानक शुरु हो जाते हैं जैसे सिरदर्द (आमतौर पर आँखों के पीछे); चकत्ते तथा मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द। बीमारी का उपनाम "हड्डीतोड़ बुख़ार" यह दर्शाता है कि यह दर्द कितना गंभीर हो सकता है।[10][16]

डेंगू बुख़ार तीन चरणों में होता है:

  1. बुख़ार संबंधी,
  2. गंभीर तथा
  3. सुधार संबंधी।[17]

बुख़ार संबंधी चरण में, किसी व्यक्ति को आमतौर पर उच्च बुख़ार होता है। ("फैब्राइल" का अर्थ है कि व्यक्ति को उच्च बुख़ार है।) बुख़ार अक्सर 40 डिग्री सेल्सियस (104 डिग्री फ़ॉरेनहाइट) होता है। व्यक्ति को सामान्य दर्द तथा सिरदर्द हो सकता है। यह चरण आमतौर पर 2 से 7 दिन तक चलता है।[16][17] इस चरण में जिन लोगों में लक्षण होते हैं उनमें से लगभग 50 से 80% लोगों को चकत्ते हो जाते हैं।[16][18] पहले या दूसरे दिन, चकत्ते लाल त्वचा जैसे दिख सकते हैं। बीमारी के बाद के दिनों में (चौथे से सातवें दिन पर) चकत्ते चेचक जैसे लग सकते हैं।[18][19] छोटे लाल दाग (पटीकिया) त्वचा पर उभर सकते हैं। त्वचा को दबाने पर यह दाग हटते नहीं हैं। ये लाल दाग टूटी कोशिकाओं के कारण बनते हैं।[17] व्यक्ति को श्लेष्म झिल्ली द्वारा मुंह तथा नाक से हल्का रक्तस्राव हो सकता है।[14][16] बुख़ार अपने आप कम (बेहतर) होने लगता है तथा एक या दो दिनों के लिये वापस होने लगता है। हलांकि, भिन्न लोगों में यह पैटर्न भिन्न होता है।[19][4]

कुछ लोगों में, उच्च बुख़ार के जाने के बाद बीमारी गंभीर चरण में प्रवेश कर जाती है। गंभीर चरण एक से दो दिनों तक चलता है।[17] इस चरण के दौरान, छाती तथा पेट में तरल का निर्माण हो सकता है, ऐसा इसलिये क्योंकि रक्त नलिकाओं में रिसाव होता है। तरल बनता है तथा यह पूरे शरीर में परिसंचरित होता है। इसका अर्थ है कि महत्वपूर्ण (सबसे महत्वपूर्ण) अंगों को उनकी आवश्यकता के अनुसार आम तौर पर रक्त नहीं मिलता है।[17] इस कारण से, अंग सामान्य तरीके से काम नहीं कर पाते हैं। व्यक्ति को अत्यधिक रक्तस्राव भी हो सकता है (आमतौर पर जठरांत्र संबंधी मार्गमें)।[14][17] 

डेंगू से पीड़ित 5% से कम व्यक्तियों को परिसंचरण आघात, डेंगू आघात सिन्ड्रोम तथा डेंगू रक्तस्रावी बुख़ार होता है।[14] यदि किसी व्यक्ति को पहले किसी दूसरे प्रकार ("द्वितीयक संक्रमण") का डेंगू हुआ हो तो उसको ऐसी गंभीर समस्याएं होने की संभावनाएं अधिक होती हैं।[14][20]

सुधार चरण में, वह तरल जो रक्त नलिकाओं से बाहर रिस जाता है, रक्तप्रवाह में वापस शामिल कर लिया जाता है।[17] सुधार चरण 2 से 3 दिनों तक चलता है।[14] व्यक्ति अक्सर इस चरण के दौरान काफी बेहतर हो जाता है। हलांकि, उनको गंभीर खुजलाहट तथा धीमी हृदय गति की शिकायत हो सकती है।[14][17] इस चरण के दौरान, व्यक्ति तरल ओवरलोड स्थिति (जिसमें काफी अधिक तरल वापस ले लिया जाता है) में जा सकता है। यदि यह दिमाग को प्रभावित करता है तो, यह चेतना के स्तर में परिवर्तन या दौरे जैसी स्थिति ला सकता है (जिसमें व्यक्ति की सोचने, समझने तथा व्यवहार करने की सामान्य स्थिति भिन्न हो सकती है)।[14]

संबंधित समस्याएं

संपादित करें

कभी-कभार डेंगू हमारे शरीर के अन्य तंत्रों को प्रभावित कर सकता है।[17] किसी व्यक्ति में केवल लक्षण हो सकते हैं या आदर्श डेंगू लक्षण भी साथ में हो सकते हैं।[15] 0.5–6% मामलों में चेतना का स्तर घट सकता हैं। ऐसा तब हो सकता है जब डेंगू वायरस मस्तिष्क में संक्रमण पैदा करता है। ऐसा तब भी हो सकता है जब महत्वपूर्ण अंग सही ढ़ंग से काम न कर रहे हों।[15][4]

अन्य स्नायुतंत्र संबंधी विकार (मस्तिष्क तथा स्नायुओं को प्रभावित करने वाले विकार) उन लोगों में दर्ज किये गये हैं जिनको डेंगू बुख़ार होता है। उदाहरण के लिये, डेंगू ट्रांसवर्स माइलिटिस (अनुप्रस्थ मेरुदंड की सूजन) तथा गुइलियन-बारे सिन्ड्रोम पैदा कर सकता है।[15] हलांकि ऐसा लगभग नहीं होता है, लेकिन डेंगू दिल का संक्रमण तथा गंभीर जिगर की विफलता पैदा कर सकता है।[14][17]

 
डेंगू वायरस दिखाती एक उच्च आवर्धन छवि (केन्द्र के पास गहरे बिंदुओं का गुच्छा)

डेंगू बुखार डेंगू वायरस के कारण होता है। वह वैज्ञानिक प्रणाली जिसमें वायरस का वर्गीकरण तथा नामकरण किया जाता है उसके अंतर्गत डेंगू वायरस "फ्लाविविरिडे" परिवार तथा "फ्लाविविरस" जीन का हिस्सा है। अन्य वायरस भी इस परिवार से संबंधित हैं तथा मानवों में बीमारियां पैदा कर सकते हैं। उदाहरण के लिये, पीत-ज्वर वायरस, वेस्ट नाइल वायरस, सेंट लुईस एन्सेफलाइटिस वायरस, जापानी एन्सेफलाइटिस वायरस, टिक- जनित एन्सेफलाइटिस वायरस, क्यासानूर जंगल रोग वायरस तथा ओमस्क रक्तस्रावी बुख़ार, सभी "फ्लाविविरिडे" परिवार से संबंधित हैं।.[4] इनमें से अधिकतर वायरस मच्छरों या टिक द्वारा फैलते हैं।[4]

 
मच्छर एडीज़ आएजेप्टी मानव पर भोजन प्राप्त करते हुये

डेंगू वायरस, अधिकतर एडीज़ मच्छरों द्वारा संचरित (या फैलता) होता है, विशेष रूप से एडीज़ आएजेप्टी प्रकार के मच्छर से।[11] ये मच्छर आमतौर पर 350 उत्तर तथा 350 दक्षिण अक्षांस पर, 1000 मीटर से कम ऊंचाई पर होते हैं।[11] यह अधिकतर दिन के समय काटते हैं।[21] इनके एक बार काटने से भी मानव संक्रमित हो सकता है।[22] 

कभी-कभार मच्छरों को भी मानवों से डेंगू मिल सकता है। यदि मादा मच्छर किसी संक्रमित व्यक्ति को काट ले तो मच्छर को डेंगू वायरस मिल सकता है। सबसे पहले वायरस उन कोशिकाओं में रहता है जो मच्छर के पेट में होती हैं। लगभग 8 से 10 दिनों के बाद वायरस, मच्छर की लार ग्रंथियां जो लार (या "थूक") बनाती हैं, उनमें संक्रमित हो जाते हैं। इसका अर्थ है मच्छर द्वारा बनायी गयी लार डेंगू के वायरस से संक्रमित होती है। इसलिये जब मच्छर मानव को काटते हैं तो इनकी संक्रमित लार मानव को संक्रमित कर सकती है। वायरस उन संक्रमित मच्छरों के लिये कोई समस्या पैदा नहीं करते दिखते हैं, जो अपने पूरे जीवन भर संक्रमित रहेंगे। इस बात की संभावना सबसे अधिक होती है कि एडीज़ आएजेप्टी  मच्छर डेंगू फैलाता है। ऐसा इसलिये कि क्योंकि ये मानवों के सबसे अधिक नज़दीक रहते हैं और जानवरों की बजाय मानवों पर जीते हैं।[23] यह मानव-निर्मित पानी रखने के पात्रों में अंडे देना पसंद करते हैं।

डेंगू संक्रमित रक्त उत्पादों तथा अंग दान द्वारा फैल सकता है।[24][25] यदि डेंगू से संक्रमित व्यक्ति रक्त दान या अंग दान करता है, जो किसी अन्य व्यक्ति को दिया जाता है, इस व्यक्ति को दान दिये गये रक्त या अंग से डेंगू हो सकता है। कुछ देशों जैसे सिंगापुर में डेंगू आम है। इन देशों में, 10,000 रक्त आधानों में से 1.6 से 6 तक डेंगू फैलाते हैं।[26]गर्भावस्था के दौरान या बच्चे को जन्म देते समय डेंगू वायरस माँ से बच्चे में भी फैल सकता है।[27] डेंगू आमतौर पर किन्ही और तरीकों से नहीं फैलता है।[16]

डेंगू से पीड़ित वयस्कों से अधिक शिशुओं तथा बच्चों में बीमारी की गंभीरता होने की अधिक संभावना होती है। बच्चे यदि अच्छी तरह से पोषित हों तो उनके गंभीर रूप से बीमार होने की अधिक संभावना है (यदि वे स्वस्थ हैं तथा अच्छी तरह से पोषित हैं)।[14] (यह अन्य दूसरे संक्रमणों से भिन्न है जो कुपोषित, अस्वस्थ, या अच्छे पोषण की कमी वाले बच्चों में अधिक गंभीर होते हैं।) महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में गंभीर बीमारी की संभावना अधिक होती है।[28] पुरानी (दीर्घ-अवधि) की बीमारियां जैसे मधुमेह तथा अस्थमा वाले लोगों में डेंगू जीवन के लिये खतरा हो सकता है।[28]

प्रक्रिया

संपादित करें

जब मच्छर किसी व्यक्ति को काटता है तो इसकी लार मानव की त्वचा में प्रवेश कर जाती है। यदि मच्छर को डेंगू है तो वायरस इसकी लार में होता है। इसलिये जब मच्छर किसी व्यक्ति को काटता है तो वायरस मच्छर की लार के साथ व्यक्ति की त्वचा में प्रविष्ट हो जाता है। वायरस व्यक्ति की श्वेत रक्त कणिकाओं से जुड़ कर उनमें प्रवेश कर जाता है (श्वेत रक्त कणिकाओं को संक्रमण जैसे खतरों से निपटने के लिये सहायता करने का काम करना होता है।)। जब श्वेत रक्त कणिकाएं शरीर में इधर-उधर जाती हैं तो वायरस पुर्नउत्पादन (अपने प्रतिरूप पैदा करता है) करता है। श्वेत रक्त कणिकाएं कई तरह के संकेतों प्रोटीन (तथाकथित माइटोकाइन) के माध्यम से प्रतिक्रिया करती हैं जैसे इंटरल्यूकिन्स, इंटरफेरॉन तथा ट्यूमर परिगलन कारक। इन प्रोटीन के कारण डेंगू के साथ बुखार, फ्लू जैसे लक्षण तथा गंभीर दर्द पैदा होते हैं। 

यदि किसी व्यक्ति को गंभीर संक्रमण हैं तो वायरस उसके शरीर में और अधिक तेजी से बढ़ता है। क्योंकि वायरस की संख्या बहुत अधिक है इसलिये ये कई और अंगों (जैसे जिगर तथा अस्थि मज्जा) को प्रभावित कर सकता है। छोटी रक्त केशिकाओं की दीवारों से रक्त रिस करके शरीर के कोटरों में चला जाता है। इस कारण से रक्त केशिकाओं में कम रक्त का प्रवाह (या शरीर में कम रक्त का प्रवाह होता है) होता है। व्यक्ति का रक्तचाप इतना कम हो जाता है कि हृदय महत्वपूर्ण अंगों को पर्याप्त रक्त की आपूर्ति नहीं कर पाता है। साथ ही, अस्थि मज्जा पर्याप्त प्लेटलेट्स का निर्माण नहीं कर पाती है, जो रक्त का थक्का बनाने के लिये जरूरी है। पर्याप्त प्लेटलेट्स के बिना, व्यक्ति को रक्तस्राव होने की समस्या होने की काफी संभावना है। रक्तस्राव, डेंगू के कारण पैदा होने वाली मुख्य जटिलता (किसी भी बीमारी से होने वाली सबसे गंभीर समस्याओं में से एक) है।[29]

स्वास्थ्य सेवा पेशेवर आमतौर पर संक्रमित व्यक्ति की जांच करके और यह देख कर कि उसके लक्षण डेंगू से मिलते हैं, डेंगू का निदान करते हैं। स्वास्थ्य सेवा पेशेवर, इस प्रकार से डेंगू का निदान करने में उन क्षेत्रों में विशेष रूप से सक्षम हो सकते हैं जहां पर यह आम तौर पर होता है।[10] हलांकि, जब डेंगू प्रारंभिक अवस्था में होता है तो इसे अन्य वायरल संक्रमणों (वायरस द्वारा होने वाले अन्य संक्रमण) से अलग कर पाना कठिन होता है।[14] किसी व्यक्ति को संभवतः डेंगू तब हो सकता है जब उसको बुखार हो तथा निम्न में से दो लक्षण होःमतली और उल्टी; लाल चकत्ते; सामान्य दर्द (पूरे शरीर में दर्द); श्वेत रक्त कणिकाओं को की कम संख्या; या सकारात्मक टूर्निकेट परीक्षण। वे क्षेत्र जहां पर यह बीमारी आम है वहां पर कोई भी चेतावनी चिह्न तथा बुखार इस बात का संकेत है कि व्यक्ति को डेंगू है[30]

चेतावनी चिह्न आम तौर पर डेंगू के गंभीर होने के पहले दिखने लगते हैं।[17] टूर्निकेट परीक्षण तब काफी होता है जब कोई प्रयोगशाला परीक्षण नहीं किया जा सकता है। टूर्निकेट परीक्षण में स्वास्थ्य सेवा पेशेवर रक्तचाप नापने वाले उपकरण का पट्टा व्यक्ति की बाहों के चारों ओर 5 मिनट तक बांधता है। फिर यदि उस व्यक्ति की त्वचा पर लाल धब्बे दिखें तो स्वास्थ्य सेवा पेशेवर उनकी गिनती करता है। धब्बों की संख्या जितनी अधिक होगी व्यक्ति को डेंगू बुखार होने की संभावना उतनी अधिक होगी।[17] 

चिकनगुनिया तथा डेंगू बुखार के बीच अंतर करना कठिन हो सकता है। चिकनगुनिया एक ऐसा वायरल संक्रमण है जिसमें डेंगू जैसे समान लक्षण होते हैं तथा यह भी विश्व के उन्ही हिस्सों में होता है।[16] डेंगू के लक्षण अन्य बीमारियों मलेरियालेप्टोपाइरोसिसटायफॉएड बुखार तथा मेनिंगोकॉक्कल रोग जैसे हो सकते हैं। अक्सर, किसी व्यक्ति में डेंगू का निदान होने के पहले, उसके स्वास्थ्य सेवा पेशेवर इस बात को सुनिश्चित करने के लिये कि वह व्यक्ति इनमें से किसी एक परिस्थिति से पीड़ित न हो, कुछ परीक्षण करेंगे।[14]

जब किसी व्यक्ति को डेंगू होता है तो उसकी श्वेत रक्त कणिकाओं की कम संख्या का प्रयोगशाला परीक्षण में दिखना सबसे पहला परिवर्तन देखा जा सकता है। कम प्लेटलेट्स संख्या तथा चयापचय अम्लरक्तता (मेटाबोलिक एसिडोसिस) भी डेंगू के लक्षण हैं।[14] यदि व्यक्ति को गंभीर डेंगू है तो ऐसे अन्य बदलाव भी होंगे जो रक्त का अध्ययन करने पर देखे जा सकते हैं। गंभीर डेंगू के कारण रक्त धाराओं से तरल का रिसाव हो सकता है। जिसके कारण हीमोकॉन्सन्ट्रेशन (रक्त में प्लाज़्मा - रक्त का तरल भाग, की कमी तथा लाल रक्त कणिकाओं की अधिकता) हो सकता है। यह रक्त में एल्ब्युमिन के स्तर को भी कम करता है।[14] 

कभी-कभार गंभीर डेंगू अधिक फुफ्फुस प्रवाह (जिसमें रिसाव वाला द्रव्य फेफड़ों के आसपास एकत्र होता है) या जलोदर (रिसाव वाला द्रव्य पेट में एकत्र होने लगता है) भी उत्पन्न करता है। यदि इसकी मात्रा पर्याप्त हो तो स्वास्थ्य सेवा पेशेवर इसे रोगी के परीक्षण के समय देख सकता है।[14] कोई स्वास्थ्य सेवा पेशेवर डेंगू के शॉक सिंड्रोम को पहले ही देख सकता है यदि वह शरीर के भीतर द्रव्य देखने के लिये चिकित्सीय अल्ट्रासाउंड का उपयोग कर सके।[10][14] लेकिन बहुत सारे ऐसे क्षेत्रों में जहां पर डेंगू आम है, अधिकतर स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों तथा चिकित्सालयों में अल्ट्रासाउंड मशीनें नहीं होती हैं।[10]

वर्गीकरण

संपादित करें

2009 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) नें डेंगू बुखार को दो प्रकारों में वर्गीकृत या विभाजित किया: सरल तथा गंभीर।[10][30] इसके पहले 1997 में WHO ने रोग को अविभेदित तथा डेंगू बुखार में बांटा था। WHO ने तय किया कि डेंगू बुखार को विभाजित करने के इस पूराने तरीके को सरल करने की ज़रूरत है। इसने यह भी तय किया कि पुराना तरीका काफी सीमित था: इसमें वे सभी तरीके शामिल नहीं थे जिनसे डेंगू अपने को प्रस्तुत कर सकता था। हलांकि डेंगू वर्गीकरण का तरीका आधिकारिक रूप से बदला गया था लेकिन पुराना वर्गीकरण अभी भी प्रयोग किया जाता है।[30][14][31] 

WHO की पुरानी पद्धति में डेंगू रक्तस्रावी बुखार को चार चरणों में विभक्त किया गया था, जिनको ग्रेड I–IV कहा जाता था:

  • ग्रेड I में व्यक्ति को बुखार होता है, उसे आसानी से घाव होते हैं तथा उसका टूर्निकेट परीक्षण सकारात्मक होता है। 
  • ग्रेड II में व्यक्ति को त्वचा तथा शरीर के अन्य भागों में रक्तस्राव होता है।
  • ग्रेड III में व्यक्ति परिसंचरण झटके (शॉक) दर्शाता है। 
  • ग्रेड IV में व्यक्ति के परिसंचरण झटके इतने गंभीर होते हैं कि उसका रक्तचाप तथा हृदय दर महसूस नहीं की जा सकती है।[31] Grades III and IV are called "dengue shock syndrome."[30][31]

प्रयोगशाला परीक्षण

संपादित करें

डेंगू बुखार का निदान माइक्रोबायलोजी संबंधी प्रयोगशाला परीक्षण द्वारा किया जा सकता है।[30]कुछ भिन्न परीक्षण भी किये जा सकते हैं। कोशिकाओं के कल्चर (या नमूनों में) में एक परीक्षण (वायरस आइसोलेशन) डेंगू वायरस को पृथक करता है। एक अन्य परीक्षण (न्यूक्लिक अम्ल पहचान) वायरस से न्यूक्लिक अम्लों की पहचान करता है, जिसमें पॉलीमरेस चेन रिएक्शन (PCR) कही जाने वाली तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। एक तीसरा परीक्षण (एंटीजन पहचान) वायरस के एंटीजन की पहचान करता है। एक अन्य परीक्षण रक्त में उनप्रतिरक्षियों की पहचान करता है जो डेंगू वायरस से शरीर को लड़ने की क्षमता देते हैं।[28][32] वायरस आइसोलेशन तथा न्यूक्लिक अम्ल पहचान परीक्षण, एंटीजन पहचान से बेहतर काम के होते हैं। हलांकि इन परीक्षणों की लागत अधिक होती है, इसलिये ये अधिक स्थानों पर उपलब्ध नहीं हैं।[32] जब डेंगू रोग अपने प्रारंभिक चरणों में होता है तो यह सारे परीक्षण नकारात्मक हो सकते हैं (अर्थात ये नहीं दर्शाते है कि व्यक्ति को बीमारी है)[14][28]

प्रतिरक्षी परीक्षण के अलावा ये प्रयोगशाला परीक्षण केवल बीमारी के गंभीर (आरंभिक) चरण के दौरान डेंगू बुखार के निदान में सहायक हो सकते हैं। हलांकि, प्रतिरक्षी परीक्षण इस बात की पुष्टि कर सकते हैं के व्यक्ति को डेंगू, संक्रमण की बाद की अवस्था का है। शरीर प्रतिरक्षियों का निर्माण करता है जो विशिष्ट रूप से 5 से 7 दिनों बाद डेंगू वायरस से लड़ते हैं।[16][28][33]

डेंगू वायरस से लोगों को बचाने के लिये अभी तक किसी वैक्सीन को स्वीकृत नहीं किया गया है।[10] संक्रमण को रोकने के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने मच्छरों की जनसंख्या को नियंत्रित करने तथा लोगों को मच्छरों के काटे जाने से बचाने का सुझाव दिया है।[21][34][35]

WHO ने डेंगू के रोकथाम के लिये एक कार्यक्रम ("एकीकृत वेक्टर नियंत्रण") का सुझाव दिया है जिसमें 5 भिन्न भाग शामिल हैं: 

  • हिमायत करना, सामाजिक लामबंदी, तथा विधान (कानूनों) का उपयोग करके सार्वजनिक स्वास्थ्य संगठनों तथा समुदायों को और मजबूत बनाना।
  • समाज के सभी हिस्सों को एक साथ काम करना चाहिये। जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र (जैसे सरकार), निजी क्षेत्र (जैसे व्यवसाय तथा निगम) और स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र शामिल हैं।
  • रोग को नियंत्रित करने के सभी तरीके एकीकृत किये जाने चाहिये (या एक साथ लाये जाने चाहिये), जिससे कि उपलब्धसंसाधनों का सर्वश्रेष्ठ प्रभावकारी उपयोग किया जा सके।
  • निर्णयों को साक्ष्य के आधार पर लिया जाना चाहिये। यह इस बात को सुनिश्चित करेगा कि डेंगू को संबोधित करने वाले हस्तक्षेप सहायक हों।
  • वे क्षेत्र जहां पर डेंगू एक समस्या है, सहायता पहुंचायी जानी चाहिये जिससे कि वे अपने आप रोग पर प्रतिक्रिया देने की क्षमताओं का स्वयं निर्माण कर सकें।[21]

मच्छरों को नियंत्रित करने तथा लोगों को इससे काटे जाने से बचाने के लिये WHO कुछ विशिष्ट सुझाव भी देता है।"एडीज़ आएजेप्टी" मच्छर को नियंत्रित करने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि इसके निवासों से मुक्ति पायी जाय।[21] लोगों को पानी के खुले पात्रों को खाली रखना चाहिये (जिससे मच्छर इनमें अंडा न दे सकें)। इन क्षेत्रों में मच्छरों को नियंत्रित करने के लिये  कीटनाशकों या जैविक नियंत्रण एजेंटों का भी उपयोग किया जा सकता है।[21] वैज्ञानिकों का यह मानना है कि ऑर्गेनोफास्फेट या पाइरेथाइराइड इंसेक्टेसाइड का छिड़काव कोई सहायता नहीं करता है।[12] ठहरे हुए पानी को समाप्त करना चाहिये क्योंकि यह मच्छरों को आकर्षित करता है और इसलिये भी कि इस ठहरे हुये पानी में जीवाणुओं के पैदा होने से लोगों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।[21] मच्छरों के काटने से बचने के लिये लोग ऐसे कपड़े पहन सकते हैं जो पूरी तरह से उनकी त्वचा को ढ़ंक कर रखें। वे कीटरोधियों (जैसे कीटरोधी स्प्रे) का उपयोग कर सकते हैं, जो मच्छरों को दूर रखेंगे (DEET सबसे अच्छा काम करती है)। लोग, आराम करते समय मसहरी (मच्छरदानी) का भी उपयोग कर सकते हैं।[22]

टीके का विकास

संपादित करें

इस समय कोई वैक्सीन बाजार मे मौजूद नहीं है यधपि थाईलैण्ड मे प्रयोग काफी हद तक सफल रहे है।[उद्धरण चाहिए]

मच्छरो पे नियंत्रण

संपादित करें

डेंगू से बचाव का सबसे प्रभावी तरीका मच्छरों की आबादी पे काबू करना है इस के लिए या तो लार्वा पे नियंत्रण करना होता है या वयस्क मच्छरों की आबादी पर। एडिस मच्छर कृत्रिम जल संग्रह पात्रों मे जनन करते है जैसे टायर, बोतलें, कूलर, गुलदस्ते इन जलपात्रों को अक्सर खाली करना चाहिए यही सबसे बेहतर तरीका लार्वा नियंत्रण का माना जाता है।

वयस्क मच्छरों को काबू मे करने हेतु कीटनाशक धुंआ किसी सीमा तक प्रभावी हो सकते है, मच्छरों को काटने से रोक देना भी एक तरीका है किंतु इस प्रजाति के मच्छर दिन मे काटते है जिससे मामला गंभीर बन जाता है। एक नया तरीका मेसोसाक्लोपस नामक जलीय कीट जो लार्वा भक्षी है को रूके जल मे डाल देना है जैसे कि गम्बूशिया मछली मलेरिया के विरूद्ध प्रभावी उपाय है। यह बेहद प्रभावी, सस्ता तथा पर्यावरण मित्र विधि है इसके विरूद्ध मच्छर कभी प्रतिरोधक क्षमता हासिल नहीं कर सकते है किंतु इस हेतु सामुदायिक भागीदारी सक्रिय रूप से चाहिए।[उद्धरण चाहिए]

व्यक्तिगत सुरक्षा

संपादित करें

मच्छरदानी, रिपलेंट, शरीर को ढक के रखना, तथा प्रभावित क्षेत्रों से दूर रहना।

संभावित विषाणु रोधी उपाय

संपादित करें

पीत ज्वर की वैकसीन एक संबन्धित फ्लैवीवायरस के विरूद्ध है उसे डेंगू के विरूद्ध परिवर्तित रूप में प्रयोग करने की सलाह दी जाती है किंतु इस सम्बन्ध मे कोई विस्तृत अध्ययन नहीं किया गया है।

अर्जेन्टीना के एक वैज्ञानिक समूह ने २००६ मे विषाणु के प्रजनन तरीके को खोज निकाला है जिसके चलते आशा की जाती है कि उसके विरूद्ध प्रभावी औषधि खोज निकाली जायेगी।

हाल के प्रादुर्भाव

संपादित करें

अमेरिका मे

संपादित करें

इन्डो पैसेफिक

संपादित करें

डेंगू बुखार के लिये कोई विशिष्ट उपचार नहीं है।[10] लक्षणों के आधार पर, भिन्न लोगों के लिये भिन्न उपचार हैं। कुछ लोग घरों पर मात्र तरल पीकर बेहतर हो सकते हैं, जिसके साथ उनके स्वास्थ्य सेवा पेशेवर नजदीकी रूप से उनके स्वास्थ्य की निगरानी करके यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि वे बेहतर हो रहे हों। कुछ अन्य लोगों को अंतःशिरा द्रव्य या रक्त आधान की आवश्यकता हो सकती है।[41] यदि किसी व्यक्ति की पहले से जटिल स्वास्थ्य स्थिति की समस्या है तो, स्वास्थ्य सेवा पेशेवर उस व्यक्ति को अस्पताल में भर्ती करने का निर्णय ले सकते हैं।[14]

जब किसी व्यक्ति को अंतःशिरा द्रव्य की जरूरत होती है तो आम तौर पर उनको इसकी जरूरत एक या दो दिन के लिये हो सकती है।[41] स्वास्थ्य सेवा पेशेवर तरल की मात्रा को बढ़ाएगा जिससे कि व्यक्ति मूत्र की एक तय मात्रा (0.5–1 मिली/किग्रा/घंटा) निर्गत कर सके। तरल की मात्रा इसलिये भी बढ़ायी जा सकती है जिससे कि व्यक्ति की हेमाटोक्रिट (रक्त में  आयरन की मात्रा) तथा महत्वपूर्ण चिह्न सामान्य स्थिति पर वापस आ सके।[14] रक्तस्राव के जोखिम के कारण स्वास्थ्य सेवा पेशेवर, नासोगैस्ट्रिक इन्ट्यूबेशन (नाक के रास्ते से किसी व्यक्ति के पेट में नलिका डालना), अंतःपेशीय इंजेक्शन (दवा को मांसपेशियों में सीधे देना) तथा धमनियों में पंचर (किसी धमनी में सुई लगाना) करना जैसी आक्रामक चिकित्सा प्रक्रियाओं से बचते हैं।[14] बुखार तथा दर्द के लिये एसेटामिनोफेन (टाइलेनॉल) दी जा सकती है। सूजन-रोधी दवा का एक प्रकार जिसे NSAID (जैसे आइब्यूप्रोफेन या ऐस्पिरिन) कहते हैं, प्रयोग नहीं की जानी चाहिये क्योंकि रक्तस्राव होने की काफी संभावना होती है।[41] यदि व्यक्ति के महत्वपूर्ण चिह्न बदलें या सामान्य न हो और यदि उनके रक्त में लाल रक्त कणिकाओं की संख्या कम होती जा रही हो तो रक्त आधान को जल्दी शुरु किया जाना चाहिये।[42] जब रक्त आधान की आवश्यकता हो तो व्यक्ति को संपूर्ण रक्त (रक्त जिसको इसके विभिन्न भागों में विभक्त नहीं किया गया हो) या पैक की गयी लाल रक्त कणिकाओं को दिया जाना चाहिये। प्लेटलेट्स (संपूर्ण रक्त से निकाली गयी) तथा ताज़ा फ्रीज़ किया प्लाज़्मा, आम तौर पर संस्तुत नहीं किया जाता है।[42]

जब व्यक्ति डेंगू के सुधार वाले चरण में होता है तो आम तौर पर उसे और अंतः शिरा द्रव्य नहीं दिये जाते हैं जिससे कि उसके शरीर में तरल की मात्रा अधिक न हो।[14] यदि द्रव्य की अधिकता हो जाय लेकिन उस व्यक्ति के महत्वपूर्ण चिह्न स्थिर (अपरिवर्तित) हों तो सिर्फ और द्रव्य दिये जाने को रोकना ही पर्याप्त है।[42] यदि व्यक्ति रोग की जटिल अवस्था में न हो तो, उसे फ्यूरोसेमाइड (लैसिक्स) जैसे लूप मूत्रवर्धक दिये जा सकते हैं। यह उस व्यक्ति के रक्त परिसंचरण से अतिरिक्त द्रव्य को बाहर करने में सहायक होंगे।[42]

संभावनाएं

संपादित करें

डेंगू से पीड़ित अधिकतर लोग ठीक हो जाते हैं और उनको बाद में किसी तरह की कोई समस्या नहीं होती है।[30]  डेंगू से संक्रमित लोगों में 1 से 5% (प्रत्येक 100 में से 1 से 5) की उपचार के अभाव में मृत्यु हो जाती है।[14] अच्छे उपचार के बावजूद 1% से कम लोगों की मृत्यु हो जाती है।[30] हलांकि, गंभीर डेंगू से पीड़ित लोगों में से 26% (प्रत्येक 100 में से 26) की मृत्यु हो जाती है।[14] 

डेंगू 110 से अधिक देशों में आम है।[14] विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े अनुसार हर साल डेंगू बुखार के 10 से 40 करोड़ मामले सामने आते है। प्रत्येक वर्ष, पूरी दुनिया के इसके चलते आधे मिलियन लोग अस्पताल में भर्ती होते हैं[10] तथा लगभग 12,500 से 25,000 लोगों की मृत्यु हो जाती है।[15][43]

डेंगू, संधिपादों (आर्थोपोड्स) द्वारा फैलने वाला सबसे आम वायरल रोग है।[20] यह माना जाता है कि डेंगू के ऊपर प्रति मिलियन जनसंख्या में से लगभग 1600 विकलांगता समायोजित जीवन वर्ष का भार है। इसका अर्थ है कि डेंगू के कारण प्रति मिलियन जनसंख्या में से 1600 वर्षों का जीवन समाप्त हो जाता है। यह उतना ही है जितना कि रोग भार अन्य बचपन या टीबी (तपेदिक) जैसी उष्णकटिबंधीय बीमारियों का है।[28]  डेंगू मलेरियाके बाद दूसरे नंबर की सबसे महत्वपूर्ण उष्णकटिबंधीय बीमारी है।[14] विश्व स्वास्थ्य संगठन भी डेंगू को 16 उपेक्षित उष्णकटिबंधीय बीमारियों (अर्थात डेंगू को उतनी गंभीरता से नहीं लिया जाता है जितना लिया जाना चाहिये) में से एक मानता है।[44]

डेंगू पूरी दुनिया में और अधिक आम होता जा रहा है। 1960 के मुकाबले 2010 में डेंगू 30 गुना अधिक आम था।[45] डेंगू के विस्तार के लिये कई सारी चीजें जिम्मेदार हैं। शहरों में अधिक लोग रहने लगे हैं। दुनिया की जनसंख्या बढ़ रही है। अधिक से अधिक लोग अब अंतर्राष्ट्रीय यात्राएं (देशों के बीच) कर रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग को भी डेंगू के विस्तार का एक कारण माना जाता है।[10] 

डेंगू सबसे अधिक भूमध्य रेखा के आसपास होता है। जहां डेंगू होता है उस क्षेत्र में 2.5 बिलियन लोग निवास करते हैं। इनमें से 70 प्रतिशत लोग एशिया और प्रशांत क्षेत्र से हैं।[45] अमरीका में डेंगू प्रभावित इन क्षेत्रों से यात्रा करके वापस आये लोगों में से 2.9% से 8% लोग ऐसे हैं, जिनको बुखार हो जाता है और जो यात्रा के दौरान प्रभावित हो जाते हैं।[22] लोगों के इस समूह में मलेरिया के बाद डेंगू दूसरा सबसे आम संक्रमण है जिसका निदान होता है।[16]

वैज्ञानिक, डेंगू की रोकथाम तथा उपचार के मार्गों पर शोध कर रहे हैं। लोग मच्छरों पर नियंत्रण पाने[46] वैक्सीन बनाने तथा वायरस से लड़ने के लिये दवाएं बनाने पर कार्य कर रहे हैं।[34]

मच्छरों को नियंत्रित करने के लिये कई सरल काम किये गये हैं। उदाहरण के लिये गप्पियां (पोइसीलिया रेटिक्युलाटा) या  कोपपॉड को ठहरे हुये पानी में मच्छरों के लार्वा (अंडे) खाने के लिये डाला जा सकता है।[46]

वैज्ञानिक, लोगों को सभी चार प्रकार के डेंगू से सुरक्षित करने के लिये वैक्सीन बनाने पर काम कर रहे हैं।[34] कुछ वैज्ञानिक इस बात से चिंतित है कि वैक्सीन, एंटीबॉडी-निर्भर वृद्धि (ADE) के कारण गंभीर रोग के जोखिम को बढ़ा सकता है।[47]सर्वश्रेष्ठ संभव वैक्सीन की कुछ भिन्न गुणवत्ताएं होंगी। पहला, यह सुरक्षित होगा। दूसरा, यह एक या दो इंजेक्शन (या शॉट्स) के बाद कार्यशील होगा। तीसरा, यह सभी प्रकार डेंगू वायरस से सुरक्षा प्रदान करेगा। चौथा, यह ADE नहीं पैदा करेगा। पांचवां, इसका परिवहन तथा संग्रहण (उपयोग किये जाने तक) आसान होगा। छठा, यह कम-लागत तथा लागत-प्रभावी (अपनी लागत के अनुसार उपयोगी) होगा।[47] 2009 तक कुछ वैक्सीनों का परीक्षण किया गया था।[28][8][47]  वैज्ञानिक आशा करते हैं कि पहला वैक्सीन 2015 तक व्यवसायिक निर्माण (आम उपयोग) के लिये तैयार होगा।[34]fi

वैज्ञानिक, डेंगू बुखार के आक्रमण का उपचार करने के लिये वायरस विरोधी दवाओं को बनाने के लिये तथा लोगों को गंभीर जटिलताओं से बचाने की दिशा में काम कर रहे हैं।[48][49] वे इस बात पर भी काम कर रहे है कि वायरस की प्रोटीन संरचना किस प्रकार की है। इससे डेंगू के लिये प्रभावी दवाओं के निर्माण में सहायता मिल सकती है।[49]

टिप्पणियां

संपादित करें
  1. Anonymous (2006). "Etymologia: dengue" (PDF). Emerg. Infec. Dis. 12 (6): 893. मूल से 28 नवंबर 2007 को पुरालेखित (PDF). अभिगमन तिथि 3 अक्तूबर 2012.
  2. Gubler DJ (1998). "Dengue and Dengue Hemorrhagic Fever". Clin. Microbiol. Rev. 11 (3): 480–96. PMID 9665979. पी॰एम॰सी॰ 88892. मूल से 25 अक्तूबर 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 अक्तूबर 2012. नामालूम प्राचल |month= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  3. Henchal EA, Putnak JR (1990). "The dengue viruses". Clin. Microbiol. Rev. 3 (4): 376–96. PMID 2224837. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0893-8512. डीओआइ:10.1128/CMR.3.4.376. पी॰एम॰सी॰ 358169. मूल से 25 जुलाई 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 अक्तूबर 2012. नामालूम प्राचल |month= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  4. Gould EA, Solomon T (2008). "Pathogenic flaviviruses". The Lancet. 371 (9611): 500–9. PMID 18262042. डीओआइ:10.1016/S0140-6736(08)60238-X. नामालूम प्राचल |month= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  5. Harper D (2001). "Etymology: dengue". Online Etymology Dictionary. मूल से 29 जनवरी 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 अक्टूबर 2008.
  6. Anonymous (15 जून 1998). "Definition of Dandy fever". MedicineNet.com. मूल से 3 दिसंबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 25 दिसंबर 2010.
  7. Halstead SB (2008). Dengue (Tropical Medicine: Science and Practice). River Edge, N.J: Imperial College Press. पपृ॰ 1–10. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 1-84816-228-6. मूल से 9 जून 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 अक्तूबर 2012.
  8. Barrett AD, Stanberry LR (2009). Vaccines for biodefense and emerging and neglected diseases. San Diego: Academic. पपृ॰ 287–323. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-12-369408-6. मूल से 26 अक्तूबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 अक्तूबर 2012.
  9. Rush AB (1789). "An account of the bilious remitting fever, as it appeared in Philadelphia in the summer and autumn of the year 1780". Medical enquiries and observations. Philadelphia: Prichard and Hall. पपृ॰ 104–117.
  10. Whitehorn J, Farrar J (2010). "Dengue". Br. Med. Bull. 95: 161–73. PMID 20616106. डीओआइ:10.1093/bmb/ldq019.
  11. WHO (2009), pp. 14–16.
  12. Reiter P (11 मार्च 2010). "Yellow fever and dengue: a threat to Europe?". Euro Surveil . 15 (10): 19509. PMID 20403310. मूल से 12 सितंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 अक्तूबर 2012.
  13. Gubler (2010), p. 379.
  14. Ranjit S, Kissoon N (2010). "Dengue hemorrhagic fever and shock syndromes". Pediatr. Crit. Care Med. 12 (1): 90–100. PMID 20639791. डीओआइ:10.1097/PCC.0b013e3181e911a7. नामालूम प्राचल |month= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  15. Varatharaj A (2010). "Encephalitis in the clinical spectrum of dengue infection". Neurol. India. 58 (4): 585–91. PMID 20739797. डीओआइ:10.4103/0028-3886.68655. मूल से 10 दिसंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 अक्तूबर 2012.
  16. Chen LH, Wilson ME (2010). "Dengue and chikungunya infections in travelers". Curr. Opin. Infect. Dis. 23 (5): 438–44. PMID 20581669. डीओआइ:10.1097/QCO.0b013e32833c1d16. नामालूम प्राचल |month= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  17. WHO (2009), pp. 25–27.
  18. Wolff K, Johnson RA (eds.) (2009). "Viral Infections of Skin and Mucosa". Fitzpatrick's Color Atlas and Synopsis of Clinical Dermatology (6th संस्करण). New York: McGraw-Hill Medical. पपृ॰ 810–2. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780071599757.सीएस1 रखरखाव: फालतू पाठ: authors list (link)
  19. Knoop KJ, Stack LB, Storrow A, Thurman RJ (eds.) (2010). "Tropical Medicine". Atlas of Emergency Medicine (3rd  संस्करण). New York: McGraw-Hill Professional. पपृ॰ 658–9. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0071496181.सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link) सीएस1 रखरखाव: फालतू पाठ: authors list (link)
  20. Rodenhuis-Zybert IA, Wilschut J, Smit JM (2010). "Dengue virus life cycle: viral and host factors modulating infectivity". Cell. Mol. Life Sci. 67 (16): 2773–86. PMID 20372965. डीओआइ:10.1007/s00018-010-0357-z. नामालूम प्राचल |month= की उपेक्षा की गयी (मदद)सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
  21. WHO (2009), pp. 59–60.
  22. Center for Disease Control and Prevention. "Chapter 5 – Dengue Fever (DF) and Dengue Hemorrhagic Fever (DHF)". 2010 Yellow Book. मूल से 29 दिसंबर 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 दिसंबर 2010.
  23. Gubler (2010), pp. 377–78.
  24. Wilder-Smith A, Chen LH, Massad E, Wilson ME (2009). "Threat of Dengue to Blood Safety in Dengue-Endemic Countries". Emerg. Infect. Dis. 15 (1): 8–11. PMID 19116042. डीओआइ:10.3201/eid1501.071097. पी॰एम॰सी॰ 2660677. मूल से 1 मई 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 अक्तूबर 2012. नामालूम प्राचल |month= की उपेक्षा की गयी (मदद)सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
  25. Stramer SL, Hollinger FB, Katz LM, ; एवं अन्य (2009). "Emerging infectious disease agents and their potential threat to transfusion safety". Transfusion. 49 Suppl 2: 1S–29S. PMID 19686562. डीओआइ:10.1111/j.1537-2995.2009.02279.x. नामालूम प्राचल |month= की उपेक्षा की गयी (मदद); Explicit use of et al. in: |author= (मदद)सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
  26. Teo D, Ng LC, Lam S (2009). "Is dengue a threat to the blood supply?". Transfus Med. 19 (2): 66–77. PMID 19392949. डीओआइ:10.1111/j.1365-3148.2009.00916.x. पी॰एम॰सी॰ 2713854. मूल से 3 फ़रवरी 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 अक्तूबर 2012. नामालूम प्राचल |month= की उपेक्षा की गयी (मदद)सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
  27. Wiwanitkit V   (2010 ). "Unusual mode of transmission of dengue  ". Journal of Infection in Developing Countries  . 4   (1  ): 51–4 . PMID 20130380   |pmid= के मान की जाँच करें (मदद). डीओआइ:[1] |doi= के मान की जाँच करें (मदद). मूल से 19 जून 2019  को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 अक्तूबर 2012 . नामालूम प्राचल |month= की उपेक्षा की गयी (मदद); Invalid |url-status=live  (मदद); |access-date=, |year=, |archive-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  28. Guzman MG, Halstead SB, Artsob H, ; एवं अन्य (2010). "Dengue: a continuing global threat". Nat. Rev. Microbiol. 8 (12 Suppl): S7–S16. PMID 21079655. डीओआइ:10.1038/nrmicro2460. मूल से 14 जून 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 अक्तूबर 2012. नामालूम प्राचल |month= की उपेक्षा की गयी (मदद); Explicit use of et al. in: |author= (मदद)सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
  29. Martina BE, Koraka P, Osterhaus AD (2009). "Dengue Virus Pathogenesis: an Integrated View". Clin. Microbiol. Rev. 22 (4): 564–81. PMID 19822889. डीओआइ:10.1128/CMR.00035-09. पी॰एम॰सी॰ 2772360. मूल से 18 मई 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 अक्तूबर 2012. नामालूम प्राचल |month= की उपेक्षा की गयी (मदद)सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
  30. WHO (2009), pp. 10–11.
  31. WHO (1997). "Chapter 2: clinical diagnosis". Dengue haemorrhagic fever: diagnosis, treatment, prevention and control (PDF) (2nd संस्करण). Geneva: World Health Organization. पपृ॰ 12–23. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9241545003. मूल से 22 अक्तूबर 2008 को पुरालेखित (PDF). अभिगमन तिथि 3 अक्तूबर 2012.
  32. WHO (2009), pp. 90–95.
  33. Gubler (2010), p. 380.
  34. WHO (2009), p. 137. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> अमान्य टैग है; "WHOp137" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है
  35. "डेंगू को रोकने के 7 उपाय". Hindilogy. मूल से 13 दिसंबर 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 13 दिसंबर 2019.
  36. China, Dengue Fever Cases Jump. Archived 2017-11-15 at the वेबैक मशीन Taipei Times, 29 August, 2006.
  37. "460 people in Cook Islands affected by Dengue Fever outbreak". Radio New Zealand International. 15 January, 2007. मूल से 27 सितंबर 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जनवरी 2007. |date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  38. "Dengue fever kills 14 in India, affects more than 400". International Herald Tribune, Associated Press News. October 2, 2006. मूल से 22 अक्तूबर 2006 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2 अक्टूबर 2006]. |accessdate=, |date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  39. India says dengue outbreak serious as death toll rises[मृत कड़ियाँ] Pratap Chakravarty, news.yahoo.com, 7 October 2006. Retrieved 8 October 2006.
  40. Santos, Tina (September 10, 2006). "DOH names dengue-hit areas in metropolis". Philippine Daily Inquirer. मूल से 1 अक्तूबर 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 अक्टूबर 2006. |date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  41. WHO (2009), pp. 32–37.
  42. WHO (2009), pp. 40–43.
  43. WHO media centre (मार्च 2009). "Dengue and dengue haemorrhagic fever". World Health Organization. मूल से 2 सितंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 दिसंबर 2010.
  44. Neglected Tropical Diseases. "Diseases covered by NTD Department". World Health Organization. मूल से 22 फ़रवरी 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 दिसंबर 2010.
  45. WHO (2009), p. 3.
  46. WHO (2009), p. 71.
  47. Webster DP, Farrar J, Rowland-Jones S (2009). "Progress towards a dengue vaccine". Lancet Infect Dis. 9 (11): 678–87. PMID 19850226. डीओआइ:10.1016/S1473-3099(09)70254-3. नामालूम प्राचल |month= की उपेक्षा की गयी (मदद)सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
  48. Sampath A, Padmanabhan R (2009). "Molecular targets for flavivirus drug discovery". Antiviral Res. 81 (1): 6–15. PMID 18796313. डीओआइ:10.1016/j.antiviral.2008.08.004. पी॰एम॰सी॰ 2647018. नामालूम प्राचल |month= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  49. Noble CG, Chen YL, Dong H, ; एवं अन्य (2010). "Strategies for development of Dengue virus inhibitors". Antiviral Res. 85 (3): 450–62. PMID 20060421. डीओआइ:10.1016/j.antiviral.2009.12.011. नामालूम प्राचल |month= की उपेक्षा की गयी (मदद); Explicit use of et al. in: |author= (मदद)सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)