तुलुव राजवंश
विजयनगर साम्राज्य | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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तुलुव विजयनगर साम्राज्य का तीसरा राजवंश था।[1]
इतिहास
संपादित करेंतुलुव राजवंश एक भारतीय राजवंश था तथा यह भारत का तीसरा राजवंश था इनके सम्राटों ने विजयनगर साम्राज्य पर राज किया था। तुलुव राजवंश की स्थापना मूल रूप से तटीय कर्नाटक के दक्षिणी भागों पर शासन करने वाले मुखिया बंटों द्वारा की गयी थी। इनको तुलु नाडू के नाम से भी बुलाया जाता है। कुछ लोगों का मानना है कि वे तुलु नाडू के तुलु भाषी क्षेत्र के थे और इनकी मातृभाषा प्राचीन तुलु भाषा थी क्योंकि वंश का नाम "'तुलुव'" प्राप्त हुआ है। [1]नरसा नायक जो कृष्णदेवराय के पिता थे और साथ ही आंध्रप्रदेश के चंद्रगिरि के राज्यपाल भी थे। राजा कृष्णदेवराय ने अपनी एक लोकप्रिय पुस्तक अमुक्तमल्यदा में लिखा है कि यह एक तेलुगुदेश है और यहां शक्ति सुलुव राजवंश के बाद आई है। तुलुव राजवंश दक्षिण भारत के विजयनगर साम्राज्य के सबसे शक्तिशाली राजवंश
नागराज एक पौराणिक कथाओं के अनुसार सांप थे। इतिहास के अनुसार तुलुव राजवंश का सबसे शक्तिसाली और लोकप्रिय राजा कृष्णदेवराय थे जिन्होंने इस वंश का बहुत विकास किया [2][3] था। [4] कुछ लोगों का मानना है कि यह काल अर्थात राजवंश तेलुगु साहित्य का सुनहरा काल माना जाता है। इन पर कई तेलुगु संस्कृत ,कन्नड़ तथा तमिल कवियों ने रचनाएं की हैं।
नायक
संपादित करेंपांच तुलुव सम्राट और उनका राज्य काल।
- तुलुव नरस नायक १४९१- १५०३
- वीरनृसिंह राय १५०३-१५०९
- कृष्ण देव राय १५०९-१५२९
- अच्युत देव राय १५२९ - १५४२
- सदाशिव राय १५४२ - १५७०
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ Sen, Sailendra (2013). A Textbook of Medieval Indian History. Primus Books. पपृ॰ 103–112. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-9-38060-734-4.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 27 सितंबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 13 नवंबर 2015.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 30 जनवरी 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 13 नवंबर 2015.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 27 सितंबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 13 नवंबर 2015.
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