बृहस्पति (ज्योतिष)
बृहस्पति, जिन्हें "प्रार्थना या भक्ति का स्वामी" माना गया है,[1] और ब्राह्मनस्पति तथा देवगुरु (देवताओं के गुरु) भी कहलाते हैं, एक हिन्दू देवता एवं वैदिक आराध्य हैं। इन्हें शील और धर्म का अवतार माना जाता है और ये देवताओं के लिये प्रार्थना और बलि या हवि के प्रमुख प्रदाता हैं। इस प्रकार ये मनुष्यों और देवताओं के बीच मध्यस्थता करते हैं।
बृहस्पति | |
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बृहस्पति (ग्रह) के स्वामी एवं शिक्षा के स्वामी | |
संबंध | ग्रह एवं देवताओं के गुरु , ब्रह्मपुराण के अनुसार ब्रह्मा के अवतार |
निवासस्थान | बृहस्पति मण्डल या लोक |
ग्रह | बृहस्पति |
मंत्र | ॐ बृं बृहस्पतये नमः॥ |
जीवनसाथी | तारा |
सवारी | हाथी/ आठ घोड़ों वाले रथ |
बृहस्पति हिन्दू देवताओं के गुरु हैं और दैत्य गुरु शुक्राचार्य के कट्टर विरोधी रहे हैं। ये नवग्रहों के समूह के नायक भी माने जाते हैं तभी इन्हें गणपति भी कहा जाता है। ये ज्ञान और वाग्मिता के देवता माने जाते हैं। इन्होंने ही बार्हस्पत्य सूत्र की रचना की थी। इनका वर्ण सुवर्ण या पीला माना जाता है और इनके पास दण्ड, कमल और जपमाला रहती है। ये सप्तवार में बृहस्पतिवार के स्वामी माने जाते हैं।[2] ज्योतिष में इन्हें बृहस्पति (ग्रह) का स्वामी माना जाता है।
हिन्दू धर्म में
संपादित करेंऋग्वेद के अनुसार बृहस्पति को अंगिरस ऋषि का पुत्र माना जाता है[3] और शिव पुराण के अनुसार इन्हें सुरुप का पुत्र माना जाता है। इनके दो भ्राता हैं: उतथ्य एवं सम्वर्तन। इनकी तीन पत्नियां हैं। प्रथम पत्नी शुभा ने सात पुत्रियों भानुमति, राका, अर्चिश्मति, महामति, महिष्मति, सिनिवली एवं हविष्मति को जन्म दिया था। दूसरी पत्नी तारा से इनके सात पुत्र एवं एक पुत्री हैं तथा तृतीय पत्नी ममता से दो पुत्र हुए कच और भरद्वाज। गुरुवार के व्रत में बृहस्पति देव की आरती करने का विधान माना जाता है। [4]
बृहस्पति ने प्रभास तीर्थ के तट भगवान शिव की अखण्ड तपस्या कर देवगुरु की पदवी पायी। तभी भगवाण शिव ने प्रसन्न होकर इन्हें नवग्रह में एक स्थाण भी दिया। कच बृहस्पति का पुत्र था या भ्राता, इस विषय में मतभेद हैं। किन्तु महाभारत के अनुसार कच इनका भ्राता ही था। भारद्वाज गोत्र के सभी ब्राह्मण इनके वंशज माने जाते हैं।
ज्योतिष में
संपादित करेंज्योतिष के अनुसार बृहस्पति इसी नाम के ग्रह के स्वामी माने जाते हैं और नवग्रहों में गिने जाते हैं। इन्हें गुरु, चुरा या देवगुरु भी कहा जाता है। इन्हें किसी भी ग्रह से अत्यधिक शुभ ग्रह माना जाता है। गुरु या बृहस्पति धनु राशि और मीन राशि के स्वामी हैं। बृहस्पति ग्रह कर्क राशी में उच्च भाव में रहता है और मकर राशि में नीच बनता है। सूर्य चंद्रमा और मंगल ग्रह बृहस्पति के लिए मित्र ग्रह है, बुध शत्रु है और शनि तटस्थ है। बृहस्पति के तीन नक्षत्र पुनर्वसु, विशाखा, पूर्वा भाद्रपद होते हैं।[5]
गुरु को वैदिक ज्योतिष में आकाश का तत्त्व माना गया है। इसका गुण विशालता, विकास और व्यक्ति की कुंडली और जीवन में विस्तार का संकेत होता है। गुरु पिछले जन्मों के कर्म, धर्म, दर्शन, ज्ञान और संतानों से संबंधित विषयों के संतुलन का प्रतिनिधित्व करता है। यह शिक्षण, शिक्षा और ज्ञान के प्रसार से संबद्ध है। जिनकी कुंडली में बृहस्पति उच्च होता है, वे मनुष्य जीवन की प्रगति के साथ साथ कुछ मोटे या वसायुक्त होते जाते हैं, किन्तु उनका साम्राज्य और समृद्धि बढ़ जाती है। मधुमेह का सीधा संबंध कुण्डली के बृहस्पति से माना जाता है। पारंपरिक हिंदू ज्योतिष के अनुसार गुरु की पूजा आराधन पेट को प्रभावित करने वाली बीमारियों से छुटकारा दिला सकता है तथा पापों का शमन करता है।
निम्न वस्तुएं बृहस्पति से जुड़ी होती हैं: पीला रंग, स्वर्ण धातु, पीला रत्न पुखराज एवं पीला नीलम, शीत ऋतु (हिम), पूर्व दिशा, अंतरिक्ष एवं आकाश तत्त्व।[5] इसकी दशा (विशमोत्तरी दशा) सोलह वर्ष होती है।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ Monier-Williams, also "he is the chief offerer of prayers and sacrifices, and therefore represented as the type of the priestly order, and the Purohita of the gods with whom he intercedes for men"
- ↑ Coleman, Charles. Mythology of the Hindus, p. 133
- ↑ ऋग्वेद ४.४०.१
- ↑ श्री बृहस्पति देव आरती: https://www.bhaktibharat.com/aarti/shri-brihaspati-dev-ji-ki-aarti-in-hindi
- ↑ अ आ बृहस्पति Archived 2024-05-07 at the वेबैक मशीन। अभिगमन तिथि: २८ सितंबर २०१२