वार्ता:देवनागरी अंक
प्रयोग संबंधी विवाद
संपादित करेंहिंदी विकिपीडिया पर नागरी अंक प्रयोग संबंधी विवाद
संपादित करेंहिंदी विकिपीडिया के चौपाल पृष्ठ पर हुई चर्चा के संपादित अंश दिए जा रहे हैं।
देवनागरी अंक का आम एवं संस्थागत प्रयोग
संपादित करेंमित्रों, हिन्दी विकि में देवनागरी अंकों का प्रयोग किया जाता रहा है यह स्वाभाविक है परन्तु भारत के अधिकारिक एवं अग्रणी हिन्दी संस्थान ने बहुत साल पहले हिन्दी में रोमन अंक चलाने निर्णय ले लिया, शिक्षकों को भी इसी प्रकार तालिम दिया जा रहा है, भारत भर में हिन्दी मे रोमन अंकों (0 1 2 3 4 5 6 7 8 9 ) का ही प्रयोग किया जाता है। संसद के विधेयक, कानून सम्बन्धित बातें आदि आदि। देखिए केन्द्रीय हिन्दी संस्थान का रोमन अंको में लिखा यह पृष्ठ। आजकल के बच्चे देवनागरी संख्या नही जानते इसका कारण हिन्दी संस्थान के निर्देश अनुसार रोमन नम्बर ही उन्होनें पढा है, आने वाली पींढी ही जब समझ न पाएगी तो हिन्दी विकि का भविष्य क्या होगा? भवानी गौतम ०४:१७, २१ मई २०११ (UTC) भारत के अधिकारिक एवं अग्रणी हिन्दी संस्थान भी रोमन अंको का प्रयोग करते है, कृपया अन्य सदस्य भी अपने विचार प्रस्तुत करे।--Mayur (talk•Email) ०४:२९, २१ मई २०११ (UTC) भारतीय/देवनागरी अंकों के उपयोग में क्या बुराई है? और रही बात इनके एकदम से समझ में ना आने की तो यह बता दूँ की जब कोई चीज़ बहुत बार उपयोग में होती है तो वह आदत बन ही जाती है। मुम्बई जैसे महानगरों में तो बसों की मार्ग संख्याओं के लिए भी देवनागरी अंकों का उपयोग होता है --।रोहित रावत (वार्ता) ०२:१७, २३ जून २०११ (UTC) मित्रों मैंने पहले भी कहा था कि आखिर हिन्दी के सात अंकों को सीखना (शू्न्य और दो तो एक जैसे ही होते हैं, तीन भी लगभग वैसा ही है) इतना कठिन क्यों लगता है कुछ लोगों को। हम लोग खुद भी और अपने बच्चों को अंग्रेजी के सैकड़ों शब्द रटते हुये गौरवान्वित महसूस करते हैं क्या हिन्दी के सात अंक नहीं सीख सकते। रही बात समझ न आने की तो जब सब जगह से हटा देंगे तो समझ कहाँ से आयेंगे। आज फिल्मी सितारे कहते हैं कि उन्हें देवनागरी समझ नहीं आती, वे रोमनागरी में स्क्रिप्ट पढ़ते हैं। कल को आने वाली पीढ़ी कहेगी कि देवनागरी मुश्किल है तो क्या हिन्दी विकिपीडिया को रोमनागरी में बदल डालेंगे। महाराष्ट्र और उत्तराखण्ड में देवनागरी अंकों का प्रचलन है, और भी उत्तर भारतीय राज्यों में होगा। रही बात इन संस्थानों का तो हिन्दी के पूर्णविराम और अंकों का कत्ल तो वे कर ही चुके हैं। -- श्रीश e-पण्डित वार्ता 17:03, 29 जून 2011 (UTC)
- अगर समय के साथ नहीं चलेंगे तो हिन्दी ख़त्म हो जाएगी। विकिपीडिया के ज़रिये हिन्दी को कोई मोड़ नहीं दिया जा सकता। प्रशन सीधा है और केवल दो रस्ते हैं - (क) शुद्ध हिन्दी लिखें जो कोई नहीं पढ़ेगा और हम चार-पाँच गिनती के लोग ख़ुश होते रहेंगे (ग) ऐसी हिन्दी लिखें जो आम हिंदीभाषियों को अंग्रेजी से अधिक समझ आये और वह अनायास ही यहाँ लेख पढ़ें। (क) का कोई फ़ायदा नहीं - यह एक व्यर्थ प्रयास होगा। …व्यक्तिगत स्तर पर मुझे हिन्दी में नागरी अंक पसंद हैं - उनसे हिन्दी की सुगंध आती है। लेकिन यह महज़ मेरी अकेले की भावना है। … हिन्दोस्तानी अंक पूरे जहाँ पर इस तरह छा गए के सबको अपनी अंक प्रणालियाँ छोड़कर उनका दामन पकड़ना पड़ा। रोमन अंक कहाँ हैं? मर गए। चीनी अंक कहाँ हैं? मर गए। यह क्या कम जीत है? अगर उन भाषाओँ की हानि नहीं हुई तो हिन्दी की ज़रा सी फेर-बदल कर अपने ही अंकों का एक और रूप अपनाने में भला क्या होगी? --Hunnjazal (वार्ता) 07:54, 3 जुलाई 2011 (UTC)
- क्या ऊपर कही सात अंकों वाली बात किसी के गले से नहीं उतरी, जो लोग यहां हिन्दी भाषा में जानकारी लेने आते हैं, वे क्या हिन्दी के सात अंक नहीं सीख सकते हैं, या मान लें कि यह भी एक जानकारी है। -- प्रशा:आशीष भटनागर वार्ता 04:56, 7 जुलाई 2011 (UTC)
धरोहर को शुद्ध रखना जितना आवश्यक है, उतना ही आवश्यक है उसे आगे बढ़ाना। इस तरह इन दोनों के बीच का रास्ता चुना जाये, जिससे कि अधिक मुश्किल भी न हो, अधिक अशुद्धि भि न हो, किन्तु अधिक कठिन भी न हो। जैसा कि ऊपर किसी ने कहा भी है कि मात्र ७ अंक हिन्दी के सीख लेना कौन सा कठिन कार्य है - इस पर अमल करना सरल ही है, और इससे शुद्धता एवं धरोहर भि बनी रहेगी। जिसने हिन्दी के ५६ अक्षर सीख लिये तो ७ और सही।
- संविधान से बाहर आकर स्कूल कॉलेजों के किताबों को देखें तो राष्ट्रभाषा, जिसे सारे भारत में व्यापक पैमाने पर पढ़ा और पढ़ाया जाता है, की पाठ्य पुस्तकों में नागरी अंकों का ही प्रयोग होता है। हिंदी भाषी प्रदेश में व्यापक रूप से पढ़ी-पढ़ाई जाने वाले हिंदी साहित्य में नागरी अंकों का इस्तेमाल होता है। यह हिंदी विषय संघ लोक सेवा आयोग की परिक्षा का भी एक लोकप्रिय विषय है। गाँव की पाठशाला में आज भी बच्चे नागरी अंक में ही पहाड़ा सीखने की शुरुआत करते हैं। कम-से-कम मेरी और मेरे आस-पास के बच्चों की पाठशाला की शिक्षा की शुरुआत इन्हीं अंकों में हुई थी। हिंदी के कुछ अख़बार और कई पत्रिकाओं में नागरी अंक प्रयोग किए जा रहे हैं। और इनकी वितरण संख्या अंग्रेजी अखबारों से अधिक है। अनिरुद्ध वार्ता 04:36, 29 जुलाई 2011 (UTC)
- मराठी, संस्कृत, नेपाली आदि में देवनागरी अंक ही चल रहे हैं। -- अनुनाद सिंहवार्ता 09:00, 3 अगस्त 2011 (UTC)
* दरसल पूरे भारत में हिन्दी के वास्तविक स्वरूप को मिटाने का जो कुचक्र चल रहा है यह उसी निति का भाग है। और आजकल देखने में आ रहा है कि हिन्दी विकि पर अंग्रेज़ी के घालमेल का चलन भी आ चुका है। फ़्रान्सीसी ही क्यों, चीनी, जापानी, कोरियाई जैसी भाषाएं भी विश्व की कठिनतम भाषाएं हैं, और उनकी लिपि भी तो क्या उन लोगों ने अपनी लिपियों को बदल डाला है? नहीं ना। ... रोहित रावत (वार्ता) 16:27, 4 अगस्त 2011 (UTC)
- सब जानते है की अधिकांश हिन्दी वक्ताओं को देवनागरी संख्याओं से ज़्यादा अंतरराष्ट्रीय संख्याओं ज़्यादा ज्ञान है। में नहीं चाहता की हमारे पाठको को गूगल ट्रांस्लेट या समान किसी उपकरण से देवनागरी अंको का मतलब पता लगाना परे। इसलिए में अंतरराष्ट्रीय संख्याओं को समर्थन देता हु। ♛♚★Vaibhav Jain★♚♛ Talk Email 09:45, 5 अगस्त 2011 (UTC)
- मैं स्वयं आज तक सैंतिस तिया इगरहाँ से और पन्द्रह छका नब्बे ही पढ़ता हूँ। और न मैं अनूठा हूँ न अकेला। हिंदी विकिया पर नागरी अंकों के प्रयोग का निर्णय गाँव, देहात की पाठशालाओं औऱ शहरी हिंदी पढ़ने वालों के आधार पर होना चाहिए। केवल विकिया संपादनकर्ताओं की तकनिकी सुविधा को ध्यान में रखकर नहीं।
विकिपीडिया पर संपादन संबंधी समस्याएं
संपादित करेंविकि मे भी साँचा (Template) का निर्माण करते समय बहुत सारी समस्याएं आतीं है, देखे यह साँचा। भवानी गौतम ०४:१७, २१ मई २०११ (UTC) मीडीयाविकि पूर्ण रुप से अन्तर्राष्ट्रिय अंको पर कार्य करता है, जैसा कि उत्कर्ष को महीनों के कैलेण्डर बनाने में समस्या हुई थी इसी प्रकार कई कोडिंग वाले सांचों का इस्तेमाल भी देवनागरी अंको के साथ सम्भव नहीं। --Mayur (talk•Email) 06:21, 3 जुलाई 2011 (UTC)
- हां जहां प्रोग्रामिंग की बात आती है, तो अवश्य हम अंग्रेज़ी के अंक प्रयोग कर सकते हैं, ऐसा मैंने भी कई बार किया है। -- प्रशा:आशीष भटनागर वार्ता 04:56, 7 जुलाई 2011 (UTC)
- मैं माफि चाहूँगा लेकिन हमें शायद इन अंकों से समझौता करना पडेगा क्योंकि मीडीयाविकि में ऐसी कई साँचे एवं संदेश है जो केवल अन्तर्राष्ट्रिय अंक ही स्वीकार करते है जैसा कि आपने देखा कि उत्कर्ष को कैलण्डर का साँचा बनाने में काफि परेशानी हुई। यह परिवर्तन सिर्फ साफ्टवेयर समस्या को सुलझाने के लिये मीडियाविकि डेवलेपर्स द्वारा किया गया। --Mayur (talk•Email) 16:36, 31 जुलाई 2011 (UTC)
- जिसका समाधान उपलब्ध हो उसके लिए समझौता करने की जरूरत नहीं है। आपका एक बॉट आज का आलेख और समाचार सहित सारे पृष्ठों के अंतर्राष्ट्रीय अंकों को नागरी अंकों में बदल सकता है। साँचा आदि तकनिकि कामों में मुश्किल आ रही है तो वहाँ अंतर्राषट्रीय अंकों का इस्तेमाल करने में कोइ हर्ज नहीं है। किंतु इस मजबूरी को सैद्धांतिक रूप से सर्वमान्य मानक का रूप तो मत दीजिए। अनिरुद्ध वार्ता 03:41, 2 अगस्त 2011 (UTC)
- बाय डिफाल्ट सेटिंग में अगर देवनागरी अंक कर दिये जाये तो कई साँचों को बनाने में समस्या आयेगी एवं आती रही है, हमनें हमारे टायपिंग टूल से अभी तक यह सुविधा नहीं हटायी है हमनें केवल बाय डिफाल्ट देवनागरी की जगह अन्तर्राष्ट्रिय अंक कर दिये है जिससे कि साफ्टवेयर इन्टरफेस में कोई समस्या ना आये। परन्तु बाय डिफाल्ट कर देने से कई जगह अन्तर्राष्ट्रिय अंक दिखेंगे जैसे हमारे हस्ताक्षर करने पर दिखते है अगर हमनें देवनागरी अंकों में लिखा तो आधे जगह देवनागरी एवं आधे जगह अन्तर्राष्ट्रिय अंक दिखायी देंगे। जो अच्छा नहीं लगेगा, इसलिये निर्णय अन्तर्राष्ट्रिय अंको के पक्ष में लिया गया। वैसे कोई देवनागरी अंक प्रयोग करना चाहे तो कर सकता है हम बाट की सहायता से ऐसे समस्त लेखों को अन्तर्राष्ट्रिय अंकों में परिवर्तित कर सकते है।--Mayur (talk•Email) 13:01, 2 अगस्त 2011 (UTC)
- आजकल ऐसे टूल हैं जो केवल एक कुंजी दबाने मात्र से देवनागरी से अन्तरराष्ट्रीय अंकों में या इसके उल्टा बदल सकते हैं। इसलिये इससे किसी को असुविधा नहीं होगी।
-- अनुनाद सिंहवार्ता 09:00, 3 अगस्त 2011 (UTC) जब तक और जहाँ तक यांत्रिक बाधा हो तबतक और वहाँ तक अंतर्राषट्रीय अंकों (यद्यपि यह भ्रामक शब्द है) का प्रयोग करते रहना चाहिए। किंतु लक्ष्य तो नागरी अंक ही हैं या हो सकते हैं। पहले आधार के लिए स्टब साँचा लगता था श्रेणी के लिए कैटेगरी। किंतु क्या इस दिशा में किया गया परिवर्तन ही सही नहीं है? ... तब यांत्रिक बाधाएं भी ज्यादा थीं। पहले के लिए गए निर्णयों को बदलने से पहले उसके पीछे के निहित भाव को पूरे संदर्भ में समझने की जरूरत है। सुविधाओं के अनुसार बदलने के बजाय सुविधाओं का निर्माण करने की संस्कृति क्या अधिक बेहतर नहीं है। कम से कम ऐसी आकांक्षा तो रखनी ही चाहिए। अनिरुद्ध वार्ता 04:41, 4 अगस्त 2011 (UTC)
- अब जालपृष्ठों के नाम यानी की वेबसाइटों के नाम तक लातिन लिपि में रहने आवश्यक नहीं है। यदि भारत महान के लोग होते तो कहते यह तो सम्भव ही नहीं है। और बात भी सही है, आखिर किसी भी प्रौद्योगिकी पर केवल एक ही भाषा का दबदबा क्यों हो! रोहित रावत (वार्ता) 16:27, 4 अगस्त 2011 (UTC)
- मैं स्वयं एक प्रोग्रामर (भी) हूँ, और भली-भाँति समझता हूँ कि नागरी अंकों से क्या-क्या समस्याएँ आ सकती हैं, लेकिन इस न्याय्य माँग के विरुद्ध मुझे (कु)तर्क करने की कोई इच्छा नहीं है। कभी कोई समस्या आयी तो हम सब मिल-बैठकर सुलझा सकते हैं, आखिर हम सभी खुले दिमाग़ के लोग हैं। ऊपर की बहस में, जिन्हें हिन्दी नहीं आती है उनका stand तो समझा जा सकता है, परन्तु हमारे हिन्दी जानने वाले मित्र तो इस बात को समझेंगे ऐसी आशा है। धन्यवाद। -Hemant wikikoshवार्ता 07:11, 5 अगस्त 2011 (UTC)
सांस्कृतिक तथा अस्मितापरक सरोकार
संपादित करें- सभी माननीय सदस्यों का ध्यान मैं एक महत्वपूर्ण तथ्य की ओर आकृष्ट करना चाहता हूँ, कि अंग्रेजी में प्रयोग होने वाले अंक 1 2 3 आदि रोमन अंक नहीं हैं (रोमन अंक I, II, III, IV आदि होते हैं), यह भारतीय अंको का ही अंतरराष्ट्रीय स्वरूप है, जो भारत से अरब गया और वहां से यूरोप। मैं भी भारतीय अंकों के अंतरराष्ट्रीय स्वरूप के प्रयोग का हिमायती हूँ। Dinesh smita ०४:५५, २१ मई २०११ (UTC)
अंतर्राष्ट्रीय अंक अच्छे रहेंगे, लेकिन पुराने हिंदी अंकों में भी कुछ बुरा नहीं। चीनी और जापानी में अंतर्राष्ट्रीय अंक प्रयोग होने लगे हैं और ठीक लगते हैं। अरबी-फ़ारसी में उनके अंक इस्तेमाल होते हैं। वे भी ठीक लगते हैं। मेरे ख़्याल से नेपाली में अभी भी हिंदी-जैसे पुराने अंकों का रिवाज है। बंगाली में भी बंगाली अंकों का ही रिवाज है। अपने अलग अंक होने का ठाठ होता है - सिर्फ़ प्राचीन और स्थापित सभ्यताओं में उनके अपने अंक मिलते हैं। --Hunnjazal ०५:५४, २१ मई २०११ (UTC)
- यदि भारतीय हिन्दी भाषी ही देवनागरी अंकों का प्रयोग नहीं करेंगे तो ये अंक समय के साथ ही विलुप्त हो जायेंगे। जो गर्व हम ये कहते हुए महसूस करते हैं कि रोमन अंक भारतीय - मूल के हैं, उसका साक्षी क्या रह जायेगा। क्या हम सदा ही उधार की भाशा, उधार के अंक आदि प्रयोग करते रहेंगे?
- जिन्हें यहां रोमन अंक प्रयोग करने हों, वे स्वतंत्र हैं, किन्तु पूछा जाये तो प्रारूप में देवनागरी अंक ही प्रयोग होने चाहिये। -- प्रशा:आशीष भटनागर वार्ता १२:५७, १८ जून २०११ (UTC)
|- |} |} अंतर्राष्ट्रीय अंक रोमन अंकों से अलग हैं और भारतीय मूल के हैं.
- दूसरी बात, भाषा एक बहती नदी की तरह है. अगर आप उसे "संरक्षित" करने के नाम पर उसके बहाव को रोक देंगे, तो वह लुप्त हो जाएगी. संस्कृत के साथ भी यही हुआ. अगर आप सोचते हैं कि हिंदी विकीपीडिया पर देवनागरी अंकों का प्रयोग करने से आने वाली पीढ़ी भी इन्हीं अंकों का प्रयोग करने लगेगी, तो आप गलत सोचते हैं. अगली पीढ़ी तो विकीपीडिया की बजाय कुछ और पढ़ने लगेगी, जो उन्हें समझ में आता हो. हिन्दी की दुर्दशा का सबसे बड़ा कारण संरक्षण के नाम पर इसका जबरन संस्कृतीकरण है, जो इसे नई पीढ़ी से दूर ले जा रहा है. अगर ऐसा ही चलता रहा तो धीरे-धीरे संस्कृत की यह भाषा भी लुप्त हो जाएगी. उत्कर्षराज (वार्ता) 05:55, 3 जुलाई 2011 (UTC)
- कभी कभी ये भी प्रयास करना चाहिये कि हम पहले बने सबके चलने के रास्ते पर ही सदा क्यूं चलें, कभि तो कुछ अपना भी विशेष बनाये रखें, जिस प्र शायद कल विश्व चलने लगे और उसे अपना बताये...... :::::::::::-- प्रशा:आशीष भटनागर वार्ता 06:07, 10 जुलाई 2011 (UTC)
- दरसल पूरे भारत में हिन्दी के वास्तविक स्वरूप को मिटाने का जो कुचक्र चल रहा है यह उसी निति का भाग है। और आजकल देखने में आ रहा है कि हिन्दी विकि पर अंग्रेज़ी के घालमेल का चलन भी आ चुका है। फ़्रान्सीसी ही क्यों, चीनी, जापानी, कोरियाई जैसी भाषाएं भी विश्व की कठिनतम भाषाएं हैं, और उनकी लिपि भी तो क्या उन लोगों ने अपनी लिपियों को बदल डाला है? नहीं ना। ...
- अंग्रेज़ी का विकास होने से भी हजार पर्ष पूर्व भारत एक सुसंस्कृत राष्ट्र था। अधिक दूर नहीं केवल पड़ोस के चीन में जाइए तब पता चलेगा अंग्रेज़ी की क्या औकात है। ... और देखा जाए तो हिन्दी भाषा और देवनागरी लिपि अपने आप में इतनी पूर्ण हैं कि हमारा काम अंग्रेज़ी का एक भी अक्षर लिखे बिना चल सकता है। क्या कभी ऐसा दिन भी आएगा कि दुनिया के बाकि देशों के लोग हमारे बारे में कहेंगे कि भारतीयों को इससे कोई फर्ख नहीं पड़ता कि दुनिया क्या कर रही है या अमेरिका क्या कर रहा है, उन लोगों की तो अपनी नीतियां और प्रणालियाँ हैं! शायद हम लोगों के जीवन काल में तो नहीं। रोहित रावत (वार्ता) 16:27, 4 अगस्त 2011 (UTC)
संवैधानिक स्थिति
संपादित करेंभारत के संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार "संघ की राजभाषा-- (1) संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी, संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा।." उत्कर्षराज १९:२४, २२ मई २०११ (UTC)
- भारतीय संविधाण रोमन अंकों की अनुमति देता है, किन्तु ये नहीं कहता कि हमें देवनागरी अंकों के स्थान पर अनिवार्य रूप से रोमन अंक ही प्रयोग करने चाहिये। -- प्रशा:आशीष भटनागर वार्ता १२:५७, १८ जून २०११ (UTC)
|- |} |} बार-बार लोग कहते हैं कि संविधान में अन्तर्राष्ट्रीय अंक हैं, संविधान में तो हिन्दी को राजभाषा बनाने की बात कही गयी है क्या उसका पालन होता है? -- श्रीश e-पण्डित वार्ता 17:03, 29 जून 2011 (UTC)
- उत्कर्ष के संवैधानिक प्रावधान के संदर्भ के लिए इतना जरूर कहूँगा कि हिंदी के संवैधानिक प्रावधानों को उस समय की और बाद की भाषायी राजनितिक संदर्भ से काटकर सर्वसम्मत निर्णय के रूप में देखने से बचें। लेकिन अगर संवैधानिक प्रावधानों के उल्लेख से ही कुछ तय होना है तो उत्कर्ष द्वारा उद्धृत प्रावधान के निर्माण के 4 साल बाद राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद जिनके अध्यक्षिय मत से हिंदी राष्ट्रभाषा के रूप में दर्ज हो पाई थी, ने नागरी अंकों के प्रयोग के लिए अध्यादेश जारी किया था।
- भारत सरकार की राजभाषा नीति का कोई अर्थ नहीं रह जाता क्योंकि वह नीति 'सम्पूर्ण रूप' में लागू कहाँ है? हिन्दी वालों को जो-जो त्यागना था उन्होने त्याग दिये-- अनुनाद सिंहवार्ता 09:00, 3 अगस्त 2011 (UTC)
- और जहाँ तक रही बात संविधान की तो भारत का संविधान भी अमेरिकी संविधान की नकल है। और कौन सा भारत की सरकार ही संविधान का पालन करती है। संविधान के अनुसार हिन्दी भारत की प्रथम राजभाषा है और सरकार के सभी दस्तावेज हिन्दी में तो होने ही चाहिए लेकिन अहिन्दी भाषी राज्यों में बहुत बार केवल उस राज्य की भाषा और अंग्रेज़ी जैसी विदेशी भाषा में ही दस्तावेज उपलब्ध कराए जाते हैं हिन्दी में नहीं। दुनिया के ढंग के देशों में उनकी अपनी भाषाओं में कार्यक्रम बनाए जाते है और उनका अंग्रेज़ी अनुवाद किया जाता है और भारत महान में अंग्रेज़ी में कार्यक्रम बनाए जाते है और उनका भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया जाता है।