यह पृष्ठ पन्ना धाय लेख के सुधार पर चर्चा करने के लिए वार्ता पन्ना है। यदि आप अपने संदेश पर जल्दी सबका ध्यान चाहते हैं, तो यहाँ संदेश लिखने के बाद चौपाल पर भी सूचना छोड़ दें।

लेखन संबंधी नीतियाँ

Regarding gurjar Identity. संपादित करें

Generation of her family members is still living in her village in Rajasthan. I'm providing youtube link for the verification - https://www.youtube.com/watch?v=Ahth1ARZ3ok&t=339s Ravi mavi (वार्ता) 14:39, 1 दिसम्बर 2020 (UTC)उत्तर दें

माँ पन्ना धाय गुर्जरी संपादित करें

ना पन्ना धाय गुर्जरी थी ये निंदनीय है इतिहास चुरा कर दलालों ने इतिहास में ग़लत जानकारी देकर उन्हें राजपूत बताया है लेकिन ये ग़लत है माँ पन्ना धाय गुर्जरी थी Ajju pehlwan (वार्ता) 02:26, 16 जनवरी 2023 (UTC)उत्तर दें

Jai ho maa panna dhay goojri 2409:4042:4D3A:8D00:0:0:634A:D412 (वार्ता) 20:15, 29 जुलाई 2023 (UTC)उत्तर दें

पन्ना धाय राजपूत नही गुर्जर है संपादित करें

https://artandculture.rajasthan.gov.in/content/raj/art-and-culture/en/departments/rajasthan-heritage-protection-promotion-authority/heritage-projects/ongoing-projects/pannadhai-panorama.html Ramchandra Dhabhai (वार्ता) 13:52, 17 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें

पन्नाधाय के पन्ने को बर्बरता से बचाया जाय। गलतियों को ठीक कराया जाय संपादित करें

राजस्थान सरकार art and culture ki वेबसाइट पर "गुर्जर" ही लिखा है।

https://artandculture.rajasthan.gov.in/content/raj/art-and-culture/en/departments/rajasthan-heritage-protection-promotion-authority/heritage-projects/ongoing-projects/pannadhai-panorama.html

पन्ना धाय के जीवन का संक्षिप्त परिचय 

नाम:- वीरांगना पन्नाधाय।

पिता:- हरचंद जी हांकड़ा (गुर्जर)।

जन्म स्थान:- चित्तौड़गढ़ के समीप पाण्डोली गांव।

पति:- कमेरी गांव के चैहान गोत्रीय लालाजी गुर्जर के पुत्र श्री सूरजमल से पन्ना का विवाह हुआ। पन्ना का पति सूरजमल एक वीर सैनिक था और चित्तौड़ राज्य में सेवारत था। 

वंषज:- पन्ना का एकमात्र पुत्र चंदन था जिसकी बाल्यावस्था में ही बलि चढ़ाकर पन्ना ने मेवाड़ राज्य के कुलदीपक उदयसिंह की रक्षा की थी। 

चारित्रिक विषेषताएं:- विष्व इतिहास में पन्ना के त्याग जैसा दूसरा दृष्टांत अनुपलब्ध है। अविस्मरणीय बलिदान, त्याग, साहस, स्वाभिमान एवं स्वामिभक्ति के लिए पन्नाधाय का नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। वह एक कर्तव्यनिष्ठ साहसी महिला थी। 

सामाजिक/राजनीतिक योगदान:- स्वामिभक्त और वीरांगना पन्ना ने महाराणा सांगा के छोटे पुत्र राजकुमार उदयसिंह की प्राण रक्षा के लिए अपने पुत्र चन्दन का बलिदान कर मेवाड़ के राजवंष की रक्षा की और मेवाड़ को अस्थिरता से बचा लिया। पन्ना को महारानी कर्मवती की सेवा तथा उदयसिंह को अपना दूध पिलाने के लिए धाय मां के रूप में नियुक्त किया गया था। रानी कर्मवती की मृत्यु के बाद कुंवर उदयसिंह की देखभाल और सुरक्षा की जिम्मेदारी पन्ना ने अपना सर्वस्व समर्पित कर निभाई थीं। पन्ना के प्रयासों से ही उदयसिंह पुनः चित्तौड़ की राजगद्दी पर आसीन हो सका। 

जीवन की प्रमुख प्रेरणादायी घटनाएं:- चित्तौड़ का शासक बना बनवीर जब कुंवर उदयसिंह की हत्या करने हेतु नंगी तलवार लिये आधी रात को पन्ना के कक्ष में प्रविष्ट हुआ और पूछने लगा कि उदयसिंह कहां है, तो वीरांगना पन्ना ने अपने पुत्र चंदन की ओर इषारा कर दिया। दुष्ट बनवीर ने चंदन के टुकड़े-टुकड़े कर दिये। किन्तु बहादुर पन्ना ने उफ् तक नहीं की। बनवीर के जाने पर पन्ना ने चतुराई से उदयसिंह को महल के बाहर भेजकर, अपने पुत्र चंदन का दाह संस्कार किया और स्वयं भी चुपचाप महल से निकल गई। 

पन्ना ने न केवल उदयसिंह की जान बचाई अपितु उसे सुरक्षित रखने हेतु दर-दर की ठोकरें खाई। अंत में कुभलगढ़ के किलेदार आषा शाह देवपुरा ने इन्हें शरण दी। यही नहीं पन्ना ने राजनीतिक कौषल दिखाते हुए अवसर आने पर कुंभलगढ़ में ही मेवाड़ के प्रमुख सरदारों को एकत्रित करवाकर कुंवर उदयसिंह का राज्याभिषेक करवाया। उदयसिंह के चित्तौड़ विजय कर पुनः राजगद्दी पर बैठने तक पन्ना ने चैन की सांस नहीं ली।  

सन् 1540 ई. में चित्तौड़ दुर्ग पर महाराणा उदयसिंह का आधिपत्य हो गया। महाराणा उदयसिंह ने कुंभलगढ़ से महारानी जैवंती बाई, राजकुमार प्रतापसिंह, धाय मां पन्ना को चित्तौड़ बुला लिया। पन्नाधाय ने अपना संकल्प और जीवन साधना पूर्ण होने पर ही वापस चित्तौड़गढ़ में प्रवेष किया। महान् बलिदानी पन्नाधाय ने जिस साम्राज्य की रक्षा हेतु अपने पुत्र चंदन की बलि चढ़ा दी और राज्य के वास्तविक उत्तराधिकारी को सुरक्षित रखने के लिए जीवन भर संघर्ष किया, उसकी वह तपस्या सफल हुई। पन्ना का समर्पण सार्थक हुआ। प्रतापसिंह जैसे विष्वविख्यात देषभक्त शूरवीर और स्वाभिमानी व्यक्ति ने जिस वंष में जन्म लेकर महाराणा के पदको सुषोभित किया, वह पन्नाधाय के अमर बलिदान से ही संम्भव हुआ। Ramchandra Dhabhai (वार्ता) 01:36, 18 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें

सभी विश्वसनीय स्रोतों में और इतिहासकारों ने पन्ना धाय को खींची चौहान राजपूत बताया है। सभी स्रोत और संदर्भ लेख पर उपलब्ध है। History quester (वार्ता) 02:12, 18 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें
@History quester आपके पास है कोई प्रूफ हमे भेजे ।ताकि हम भी देख सके। Ramchandra Dhabhai (वार्ता) 05:20, 18 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें
@History quester https://www.bhaskar.com/mp/ratlam/news/mp-news-the-sacrifice-of-panna-dhaya-gave-the-identity-of-the-name-of-dhrbhai-to-gurjar-samaj-041124-4199785.html Ramchandra Dhabhai (वार्ता) 05:27, 18 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें
@History quester https://www.gnttv.com/education/story/who-was-panna-dhai-and-how-she-saved-udai-singhs-life-chittorgarh-mewar-441987-2022-08-31 Ramchandra Dhabhai (वार्ता) 05:28, 18 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें
सभी स्रोत और संदर्भ पन्ना_धाय लेख पर उपलब्ध है , बिना सही जानकारी और सहमति के बर्बरता से बचें, यहाँ चर्चा करे और लेख पर बार बार बदलाव ना करें।History quester (वार्ता) 05:44, 18 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें
@History quester मान्यवर विकिपीडिया के भी कुछ नियम और शर्ते होते है । यहां पर मनगढ़ंत और कपोल कल्पित कहानियां नहीं लिख सकते है । सही जानकारी के साथ प्रूफ भी देना होता है। यहां पर कुछ भी जबरदस्ती नहीं लिख सकते हैं और ना ही प्रचार कर सकते हैं किसी का। आप ना न्यूज़ मान रहे हो ना राजस्थान सरकार की वेबसाइट पर जो लिखा है वह मान रहे राजस्थान सरकार की किताबों को नहीं मान रहे हैं और राजनाथ सिंह के भाषण के अंश भी नही मान रहे हो।
आप सिर्फ अपने समाज द्वारा सुनाई गई कहानियों पर विश्वास कर रहे हो। Ramchandra Dhabhai (वार्ता) 06:04, 18 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें
आपके द्वारा स्रोत और जानकारी हटाई जा रही है जो कि साफ़ बर्बरता की श्रेणी में आता है, ऐतिहासिक व्यक्तियों के संदर्भ में ऐतिहासिक और इतिहासकारों के एक से अधिक संदर्भ दिए गए है जो कि आपके द्वारा हटाए जा रहे है। कृपया बर्बरता ना करे और पेज ना बिगाड़े । History quester (वार्ता) 06:10, 18 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें
@History quester अब आपको स्रोत दिखाई देने लगा है । मैं भी तो दो दिन से यही तो बता रहा हु। स्रोत भी कुछ होता है । मान्यवर। सही स्रोत को हटाने के लिए पांच गलत स्रोत लगाना लगाना तक उचित होगा। हमे एक दूसरे से द्वेष की भावना नहीं होनी चाहिए। जो गलत है गलत मानना होगा । जिससे विकिपीडिया की आम लोगो में विश्वसनीयता बनी रहे। बाकी यूजर की वार्ता को भी देख कर अनुमान लगा सकते हो।
धन्यवाद। Ramchandra Dhabhai (वार्ता) 07:09, 18 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें
इस पेज पर सभी जानकारी ऐतिहासिक पुस्तकों के स्रोत सहित ही थी। आपके द्वारा एक भी ऐतिहासिक या इतिहासकार का स्रोत नहीं दिया गया है बल्कि आपने स्रोत हटाएँ है, जो कि बर्बरता है। कृपया अपने बदलाव हटाएँ, ऐतिहासिक स्रोत लाएँ और यहाँ पर चर्चा करें । History quester (वार्ता) 07:21, 18 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें
@History quester जिन बुक्स पर इतिहासकार एकमत नही है। जो बुक्स कहानियों पर आधारित हो । उसमें ना तो शिलालेख और ना ही समकालीन इतिहास मैच होता हो ।
रही बात आपकी ऐतिहासिक स्रोतों की उन बुक्स की लिस्ट या पेज भेज दीजिए । आपको मेल आईडी ramchandra4gurjar@yahoo.com पर बुक्स या पीडीएफ या फोटो भेज दीजिए मैं पढ लूगा और उनको लेख में भी रिफरेंस में लगा दुगा । Ramchandra Dhabhai (वार्ता) 10:31, 18 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें
सारे स्रोत और जानकारी मुख्य पेज पर हाई उपलब्ध है। बिना पढ़े और जाने बार बार पेज ना बिगाड़े। आप के पास किसी ऐतिहासिक पुस्तक या प्रतिष्ठित इतिहासकार का स्रोत है तो उसे यहाँ लाएँ , बिना किसी विश्वस्त स्रोत के आप ऐसे पेज नहीं बिगाड़ सकते। सभी स्रोत इस पेज पर पहले से ही उपलब्ध है जिन्हें आप हटा रहे है जो की बर्बरता है।
यह आपका दायित्व है की आप पेज पर दिए स्रोत देखें और कोई और विश्वस्त और प्रतिष्ठित इतिहासकार का स्रोत लाएँ और यहाँ चर्चा करें ,उसके बिना बार बार पेज पर बर्बरता से बचें। History quester (वार्ता) 07:37, 19 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें
@History questerअगर आपके पास उन बुक्स में राजपूत लिखा है तो मेल आईडी पर सेंड कर सकते हो।
किसी भी बुक्स में राजपूत नहीं लिखा है। उदयसिंह राजपूत है जिसकी पन्ना ने जान बचाई। धन्यवाद Ramchandra Dhabhai (वार्ता) 11:35, 19 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें
एक से अधिक विश्वसनीय स्रोतों को पेज पर जोड़ा गया है, जिन्हें आप बार बार हटा रहे है। बार बार नाम माँगना यह दर्शाता है के आपने पृष्ट पर दी जानकारी ना तो ठीक से पढ़ी है और ना ही स्रोत , केवल लगातार बर्बरता करे जा रहे है जो कि आपके उद्देश्य को दर्शाता है। History quester (वार्ता) 14:00, 20 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें
@Ramchandra Dhabhai और History quester: नमस्ते! जी कृपया आप दोनों लेख पर आपने सम्पादन युद्ध बंद करें अन्यथा आपको दौड़ने को सम्पादनों से अवरोधित किया जा सकता है ,मेरी इस पृष्ठ पर लगातार नजर है, @Ramchandra Dhabhai: अगर इस लेख में जानकारी डालना चाहते हो तो तो आप एक बात याद रखिये की जानकरी सही और उसके साथ उल्लेखनीय स्रोत अवश्य जोड़े अन्यथा जानकारी हटाई जा सकती है।   ~~ >>> Aviram7.talk(JSR); 14:19, 20 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें
@Aviram7 नमस्ते sir मेने सोर्स में बुक्स , लिंक, सभी दे दिया फिर भी एडिट कर रहे है वार्ता में भी साबित करने के लिय बोल दिया की किस बुक में राजपूत लिखा है भी भी नही बता रहे है । बस मुझे रिपोर्ट कर रहा है। ताकि छ अपनी मर्जी सीएलए सके । कितने लोगो ने वार्ता में बोल दिया की राजपूत नहीं है । wikidata में भी चेंज कर रहे है। अब आप ही बताए। Ramchandra Dhabhai (वार्ता) 14:35, 20 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें
@Aviram7 जी, इस निरंतर बर्बरता पर ध्यान देने के लिए धन्यवाद। इस पृष्ट पर इस सदस्य द्वारा जानकारी और स्रोत लगातार हटाएँ जा रहे है और बिना स्रोत जानकारी जोड़ी जा रही है और संदर्भ और उल्लेखनीय स्रोत सहित जानकारी हटा दी जा रही है । मेरे अलावा दूसरे सदस्यों ने भी इस पर बिना स्रोत जानकारी हटाई लेकिन उनके बदलाव को भी हटा दिया गया। [यहाँ देखें ], दूसरे सदस्यों के बदलाव भी हटाएँ जा रहे है [यहाँ देखें ] । इस सदस्य के वार्ता पृष्ट और इस वार्ता पृष्ट पर भी कई बार बताया गया है, लेकिन फिर भी इस सदस्य द्वारा सम्पादन युद्ध जारी है । वार्ता पृष्ट पर बिना चर्चा बदलाव ना करने को चेताया भी गया है। अब अगर बर्बरता हटाएँ तो सम्पादन युद्ध का आरोप लगता है, लेकिन पृष्ट बिगाड़ने के लिए अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई और पृष्ट पर बर्बरता जारी है । History quester (वार्ता) 14:39, 20 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें
@History quester और Ramchandra Dhabhai: जी मैं आप दोनो को एक सलाह देना चाहत हूँ की दोनों लोगो सम्पादन युद्ध करने से बचे! नहीं तो सही और गलत और एक दूसरे के सम्पादनो को हटाने की कोशिश में दोनों लोगो के सम्पादन अधिकार छीना जा सकता है , और रही अन्य सदस्यों के लेख से सम्पादन हटाए गये है तो जब विशेष अधिकार वाले सदस्य इस लेख की जाँच के बाद पुनःअच्छे संस्मरण पर स्थापित कर देंगे।   ~~ >>> Aviram7.talk(JSR); 15:09, 20 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें
@Aviram7 thankyou Ramchandra Dhabhai (वार्ता) 15:12, 20 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें
जी ठीक यही सलाह SM7 ने देकर पृष्ट के आख़री अच्छे संस्मरण को यह कह कर स्थापित किया था कि पहले चर्चा में साबित करें फिर बदलाव करे, लेकिन उस संस्मरण को भी हटा दिया गया [| यहाँ देखें ] और अब भी पृष्ट पर ग़लत और स्रोतहीन जानकारी पड़ी है । History quester (वार्ता) 00:33, 21 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें
@History quester आपने जो प्रूफ की बात कर रहे हो ।आपके द्वारा लगाए स्रोत में वीर विनोद जिसमे बनबीर की पन्ना खींची(दरोगी) दासी थी जो वही रही थी और पन्ना धाय चौहान(गुर्जर) कुभलगढ़ चली गई थी का उल्लेख है । और पन्ना धाय और पन्ना खींची अलग अलग है । आप इन दोनो को मिक्स करने की कोशिश ना करे। वीर विनोद , बॉम्बे गजेटियर। साफ-साफ लिखा गया है। अभी मैं इन सभी का पेज सहित प्रूफ लगाऊंगा थोड़ा वेट कीजिए। आप उनके पेज सहित प्रूफ लगाइए । लोगों को गुमराह मत करिए। @SM7 से निवेदन है कि यह पेज चंदन और उदय सिंह से संबंधित है इसलिए यह पन्ना खींची से संबंधित ना होकर पन्नाधाय चौहान गुर्जर से संबंधित है। मेने वार्ता में इनसे बुक्स के पेज सहित के लिए बोल दिया फिर भी नहीं दे रहे हैं। Ramchandra Dhabhai (वार्ता) 03:01, 21 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें
Aviram7 ,SM7 और संजीव कुमार आप सभी नीचे दिए गए स्रोतों में देख सकते है कि पन्ना धाय सम्बन्धी जो भी ऐतिहासिक व विश्वसनीय स्रोत दिए गए है उनमें पन्ना धाय की पहचान खींची चौहान राजपूत ही बताई गई है। कृपया देखें : वीरविनोद, कविराज श्यामलदास द्वारा लिखित मेवाड़ का बृहत इतिहास [[1]] (पृष्ट ६१-६२) , प्रतापगढ़ का इतिहास, गौरीशंकर हीराचंद ओझा [[2]], पृष्ट (८६-८७), मेवाड़ के महाराणा और शहंशाह अकबर, राजेंद्र शंकर भट्ट [[3]] , (पृष्ट १४-१६) । आशा है आप पृष्ट पर जारी बर्बरता को ठीक करेंगे। History quester (वार्ता) 11:40, 21 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें
@History quester आप बता रहे है की पन्ना धाय खिची गोत्र थी। मान लेते है उनके पति की गोत्र खींची है।
उनके पिता की भी गोत्र बताइए। वो धाय थी तो?
पन्नाधाय के पति की गोत्र चौहान और पिता की गोत्र हाकला है। अभी पन्ना धाय की मूर्ति लगी है ।जिसका उद्घाटन राजनाथ सिंह जी ने किया है । वहा लिखा तो नही की खींची। सभी जगह चौहान लिखा हैं। प्रूफ दे दिया । मैं आपको विस्तृत प्रूफ दुगा थोड़ा वेट कीजिए । Ramchandra Dhabhai (वार्ता) 13:49, 21 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें

┌──────────────────────────────────────────────┘
@History quester जी और @Ramchandra Dhabhai जी: कृपया परम्परा के अनुसार एक दूसरे से "जी" लगाकर बात करें। इसके अतिरिक्त आपने जो स्रोत दिये हैं उनमें अलग-अलग विवरण दिया गया है और उससे पन्नाधाय की जाति का निर्धारण नहीं हो पायेगा अतः वर्तमान स्रोतों के अनुसार इस विषय को विवादित के रूप में दिखाया जा सकता है। हालांकि मैं आपके स्रोतों को थोड़ा उल्लेख के साथ लिख देता हूँ जिससे आपको नये स्रोत देने में थोड़ी स्पष्टता रहे।

  • रामचन्द्र जी, आपने जो स्रोत दिये हैं वो केवल कुछ समाचार पत्रों और वेबसाइटों की कड़ियाँ हैं जो सामान्यतः अच्छे शोध पत्रों और पुस्तकों की तुलना में कमजोर माने जाते हैं।
  • हिस्ट्री क़्वेस्टर जी, आपने जो स्रोत दिये हैं वो निश्चित रूप से अच्छे हैं लेकिन मैंने पुस्तकों के शुरूआती पृष्ठों में देखा है कि उन्होंने कर्नल टोड के इतिहास को नकारने के बारे में भी लिखा है जबकि ऐसा करने का उन्होंने कोई स्पष्ट कारण नहीं लिखा। अतः मैं उन लेखकों का स्पष्ट कारण नहीं समझ पा रहा।

अतः आप दोनों से अनुरोध है कि आप और अधिक उल्लेखनीय स्रोत सामने रखें। स्रोत देते समय, स्रोत में लिखी पंक्ति का विवरण यहाँ दे सकते हो लेकिन बिना स्रोत के एक भी पंक्ति लिखने का कोई अर्थ नहीं रहेगा।☆★संजीव कुमार (✉✉) 14:02, 21 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें

@संजीव कुमार जी इसके के लिए मैं आपसे क्षमा मागता हु। आगे से आपकी बातो का ध्यान रखा जाएगा।
sir वर्तमान में पन्ना धाय पर जो शोध कर रहे है। और जिन्होंने पन्ना पर बुक्स लिख रहे है । विस्तृत रिपोर्ट आपको भेज दुगा । और ये विवाद मैन किस कारण बन रहा है। अभी इसमें समय लग रहा है। Ramchandra Dhabhai (वार्ता) 14:18, 21 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें
संजीव कुमारजी, मेरे द्वारा दिए गए ऐतिहासिक स्रोतों में पन्ना धाय की पहचान को लेकर कोई भी मतभेद नहीं है। सभी लेखकों द्वारा कर्नल टोड ने अपने इतिहास में जो कोई भी गलती की है उसका उल्लेख व निराकरण किया है, लेकिन किसी ने भी टोड के इतिहास को नकारा नहीं है, पन्ना धाय के विषय पर इन सभी स्रोतों में कहीं कोई मतभेद नहीं है। जानी मानी इतिहासकार Rima Hooja ने भी पन्ना के राजपूत होने का उल्लेख को अपनी A History of Rajasthan के पृष्ट ४६१ में किया है ("Dhai was a Rajpootanee of Khinchi tribe, having consecrated with her tears the ashes of her child, she hastened after that she had preserved.")। इनके अलावा १७वीं शताब्दी में लिखी राणा रावल री बात (प्रकाशक : विद्या प्रचारिणी सभा, भूपाल नोब्ल्स संस्थान, उदयपुर) के पृष्ट 57 में भी पन्ना को पन्ना खींची बताया गया है। इस पुस्तक का उल्लेख रामवल्लभ सोमानी ने अपनी पुस्तक A History of Mewar के पृष्ट १९३-१९४ में भी किया है, उपरोक्त दिए गए स्रोत में राजेंद्र शंकर भट्ट [[4]] ने भी वही बात लिखी है कि पन्ना एक खींची राजपूत थी और उसने अपने पुत्र को उदयसिंह की जगह सुला कर एक बारी जाति की महिला की मदद से उदयसिंह को चित्तौड़ से निकाला था । मेवाड़ गौरव के लेखक बाबू पद्मराज जैन ने पृष्ट संख्या ८७ पर लिखा है "उदयसिंह का लालन पालन एक खींची राजपूत धाय के हाथ में था "। सारांश यह है कि पन्ना धाय की पहचान को लेकर प्रतिष्ठित स्रोतों और लेखकों में कोई मतभेद नहीं है। इन सबके अलावा मैंने पन्ना धाय पर बनी १९४५ में फ़िल्म के उद्धरण भी जोड़े थे जो इन सभी स्रोतों के साथ हटा दिए गए है, यहाँ देखें [[5]] व [[6]] । आप देख सकते है की यहाँ विश्वसनीय स्रोतों में कोई मतभेद नहीं है। इन सभी स्रोतों से उद्धृत जानकारी को हटा दिया गया है और अब पूरे पृष्ट जानकारी किसी भी विश्वसनीय स्रोत से नहीं है, बल्कि एक ही जगह से कॉपी पेस्ट है और किसी भी विश्वसनीय स्रोत के बिना कोई भी जानकारी पृष्ट पर रखना सही नहीं है। History quester (वार्ता) 16:12, 21 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें
@History quester ज़ी मैं ये कार्य करने में असमर्थ हूँ ये कार्य केवल विशेष अधिकार वाले सदस्य ही कर सकते है, अच्छा रहेगा को की आप किसी विशेषाअधिकार वाले सदस्य जैसे रोलबैकर और प्रबंधक को पिंग कीजिये मैं यहाँ केवल एक मामूली सदस्य और स्वयंसेवक हूँ।   ~~ >>> Aviram7.talk(JSR); 16:28, 21 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें
@Aviram7 जी: कोई भी सदस्य मामूली नहीं होता। हाँ प्रत्येक व्यक्ती का कार्यक्षेत्र और क्षमता सीमित होती है अतः हर कोई सभी क्षेत्रों का विशेषज्ञ नहीं होता। @History quester जी: मैं अभी रामचन्द्र धाभाई जी के स्रोतों की प्रतीक्षा कर रहा हूँ। ☆★संजीव कुमार (✉✉) 17:18, 21 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें
@संजीव कुमार जी आप भी समझते है sir । हम विकिपीडिया के साथ अपना काम भी करते है और बुक्स भी बहुत ज्यादा है । इसलिए मैं आपसे टाइम लेना चाहूंगा। हिस्ट्री क्वेस्टर जी प्रूफ भेज रहे है उनको भी देखना होगा। Ramchandra Dhabhai (वार्ता) 04:19, 22 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें
@Ramchandra Dhabhai जी: आप अपना उचित समय लें लेकिन तब तक लेख में बदलाव न करें। ☆★संजीव कुमार (✉✉) 05:08, 22 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें
@संजीव कुमार जी नही करूंगा। Ramchandra Dhabhai (वार्ता) 05:13, 22 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें
धन्यवाद संजीव कुमारजी, मैं कुछ और स्रोत जोड़ना चाहूँगा। हरविलास शारदा जी ने अपनी पुस्तक Hindu Superiority में पन्ना धाय का उल्लेख करते हुए पृष्ट ९६ पर लिखा है "The fidelity of a nurse is well exemplified by the conduct of Punna, the dhai of Udai Singh, son of Rana Sanga, who was a Kheechee Rajputni, when Bunbir, after killing the Rana, Bikarmajit, entered the Raola to kill the heir-apparent, Udai Singh. Aware that one murder was the precursor of another, the faithful nurse put her charge into a fruit basket, and covering it with leaves, she delivered it to the bari, enjoining him to escape with it from the fort." । इन सब स्रोतों के अलावा पन्ना धाय पर आधारित ऐतिहासिक साहित्यिक रचनाओं में गोविंद वल्लभ पंत जी के लिखे ऐतिहासिक नाटक राजमुकुट (पृष्ट ४२) में और पद्मभूषण से सम्मानित डाक्टर राजकुमार वर्मा की लिखी एकांकी दीपदान में भी पन्ना को राजपूतनी दर्शाया है (पृष्ट ५४) । आप की राय में क्या यह उचित नहीं होगा कि अच्छे स्रोतों से जुड़ी जानकारी वाला पृष्ट का आख़री अच्छा अवतरण आप स्थापित कर दें और यहाँ चर्चा में दूसरे ऐतिहासिक, विश्वसनीय और उल्लेखनीय स्रोतों के आने की प्रतीक्षा की जाए, जैसा SM7जी ने यहाँ सुझाव देते हुए किया था? History quester (वार्ता) 16:31, 22 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें
@History quester जी: अभी कुछ दिन के लिए लेख की यथास्थिति को बने रहने दें और यहाँ पर अपने स्रोत देते रहें। समय मिलने पर मैं सभी को संकलित करके सम्पादन करने का प्रयास करूँगा। यदि समय नहीं निकाल पाया तो यहाँ की चर्चा के अनुसार सुझाव सामने रखूँगा। ☆★संजीव कुमार (✉✉) 16:59, 22 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें
@संजीव कुमार "पन्ना धाय गुर्जरी का ऐतिहासिक सच"
मायड़ पन्ना गूजरी, चन्दन जेड़ा पूत । ई सिंघणी रौ दूध पी, सिंघ बण्या रजपूत ।।
परिदान चारण "आरजू" किशोर नगर
( राजसमन्द ) चितौड़ के दूसरे जौहर के समय पन्ना द्वारा राजमाता कर्मवती को दिये वचन कुँवर उदय की रक्षा के लिए पन्ना धाय ने महाराणा उदयसिंह की जीवन रक्षा के लिए अपने खुद के पुत्र चन्दन का बलिदान दे दिया। ऐसा उदाहरण विश्व में कही नहीं मिलता । जिस माता ने अपनी राष्ट्रभक्ति का परिचय देते हुए अपने स्वामी का जीवन बचाने के लिए स्वयं के पुत्र का बलिदान देना स्वीकार कर लिया। उस मातृ शक्ति के सम्बन्ध में इतिहासकारों को तनिक भी शर्म नहीं आयी कि जिसने देश भक्ति के पेटे अपने पुत्र का हॅसते हँसते बलिदान किया है, उसके सम्बन्ध में उसके वंश और जाति लिखने में हम उसके साथ कितना अन्याय कर रहे है। गुर्जर जाति में जन्म लेने वाली देश हित में त्याग की मूर्ति मातृ शक्ति पन्ना धाय को खींची गौत्र की राजपूत लिखने में तनिक भी झिझक नहीं आई ।
वंशावली और पारिवारिक अभिलेख के अनुसार धाय पन्ना गुर्जर महिला थी । धाय पन्ना हरचन्द हाकला निवासी पाण्डोली चितौड़गढ की पुत्री थी। कमेरी ठिकाने आमेर के लाला चौहान जो चितौड़ में रहता था। लाला चौहान के बेटे सूरजमल चौहान की पत्नी धाय पन्ना थी । धाय पन्ना का पुत्र चन्दन था । धाय पन्ना ने उदयसिंह को अपने स्तन का दूध पिलाया। सूरजमल चौहान महाराणा की सेना में था । चितौड़ के दूसरे शाके सन् 1535 में युद्ध में शहीद हुआ था। इस उथल-पुथल के समय में निश्चित समय पर अर्थात् मृत्यु के 12वें दिन सूरजमल चौहान का गंगोज नहीं हो सका था। समय निकल जाने के पश्चात् 2 वर्ष बाद पन्ना धाय ने कुम्भलगढ पहुॅचने के बाद कुम्भलगढ में सन् 1537 में गंगोज किया था। गंगोज में जेतराम बड़वा भी शरीक हुआ था । कर्नल जेम्स टॉड ने बगैर किसी खोज के अपने ऐतिहासिक ग्रन्थ "एनाल्स एण्ड एन्टीक्वीटीज ऑफ राजस्थान में पन्ना धाय को खींची राजपूत होना आनन फानन में लिखकर तत्कालीन राजपूत राजाओं को खुश कर दिया। कर्नल टॉड ने अपने लेखन में कई भयंकर भूले व ऐतिहासिक गलतियों की है। जैसे मीरां को महाराणा कुम्भा की पत्नी बता दिया। शाहजादा सलीम के नेतृत्व में मुगल सेना का हल्दीघाटी का युद्ध लड़ना बता दिया। पन्ना धाय गुर्जरी को खींची राजपूत लिख दिया गया। कुछ गलतियों को बाद में सुधारा गया।
पन्ना धाय के सम्बन्ध में गलती होना स्वाभाविक था इसका मूल कारण कर्नल टॉड की भाषा सम्बन्धी कठिनाई थी। उनके साथ रहने वाले व्यक्तियों ने जैसा बताया वैसा ही वे लिखते रहे तथा भूल की जानकारी मिलने पर सुधारा भी गया परन्तु सम्पूर्ण त्रुटियाँ सुधारी नहीं जा सकी।
कर्नल टॉड के द्वारा पन्ना धाय सम्बन्धी की गई गलती को उसके बाद के कतिपय इतिहासकारों तथा लेखक भी कर्नल की बात कर पन्ना धाय को खींची राजपूत लिखने की गलती दोहराते रहे। वे अपनी रचनाओं में कर्नल टॉड की बात को सत्य मानकर लिखते रहे।
"मेवाड़ रावल राणा जी की बात' ग्रन्थ 1995 ई के आस पास गया । इस हस्त लिखित ग्रन्थ की जानकारी बहुत कम लोगों को थी । इस ग्रन्थ को छपवाया, ग्रन्थ छपने पर ग्रन्थ आम लोगों की जानकारी में आया। इसके पृष्ठ संख्या 57 और 59 पर पन्ना धाय और पन्ना खींची का वर्णन आता है। इसके पढने से जानकारी प्रमाणित होती है कि पन्ना धाय औरी पन्ना खींची दो महिलाएँ थी । चन्दन की हत्या के समय पन्ना धाय और पन्ना खींची दोनों ही वहाँ उपस्थित थी। चन्दन ( कथित उदयसिंह) की हत्या करने के लिए बनवीर अपने हाथ में तलवार लेकर शयन कक्ष में पहुॅचा तो बनवीर ने धाय पन्ना से बात की। शयन कक्ष में जाकर चन्दन की हतया करने के बाद शयन कक्ष से बाहर निकलने पर पन्ना खींची बनवीर से बात करती है। यह हाल "मेवाड़ रावल राणा जी की बात’ पुस्तक के पृष्ठ संख्या 57 पर अंकित है। चन्दन की हत्या के बाद उदयसिंह को पन्ना धाय फूलों के टोकरे से महल के गुप्त रास्ते ( सुरंग) से निकलने के बाद महल से बाहर निकली। उदयसिंह को बचाते हुए उसके पालन पोषण के लिए शरण लेने के लिए पन्ना धाय देवलिया डूंगरपुर आदि स्थानों पर गई परन्तु वहाँ जागिरदारों व किलेदारों ने बनवीर के भय से पन्ना धाय को शरण देना अस्वीकार कर दी। अन्त में पन्ना धाय कुम्भलगढ पहुॅची। वहाँ के राष्ट्रभक्त एवं निडर आशासाह देवपुरा ने हिम्मत करके अपनी सुरक्षा में पन्ना धाय गुर्जरी को शरण दी तथा उदयसिंह का यहीं पर पालन पोषण गुप्त रूप से हुआ इस दरम्यान पन्ना धाय किले में न रहकर नीचे गाँव में रही ताकि बनवीर को यह आशंका न रहे कि पन्ना धाय कुम्भलगढ़ के किले में क्यों रह रही है।
कुम्भलगढ में आशासाह के यहाॅ कुछ राजपूत ठाकुर इकट्ठे हुए तब आशासाह ने ठाकुरों को उदयसिंह के जीवित होने का हाल सुनाया। तब कथन की पुष्टि के लिए धाय को ठाकुरों के सामने पेश किया तो धाय ने सारा हाल सुनाया। धाय के कथन की सत्यता जाँचने के लिए ठाकुरों ने हलकारे को पन्ना खींची के पास चितौडगढ भेजा। चितौड से पन्ना खींची ने उतर भेजा। पन्ना खींची ने हलकारे को लिखकर भेजा कि - "उदयसिंह जी सांचा है, वे करमेड़ी हाड़ी रा बेटा है।" उदयसिंह के लिए धाय कहती है वह सत्य है। यह बात मेवाड़ रावल राणा जी री बात' पृष्ठ संख्या 59 पर अंकित है।
इस विवरण से स्पष्ट हो जाता है कि चन्दन की हत्या के समय राजमहलों में पन्ना नाम की दो महिलाएँ थी । एक धाय पन्ना तथा दूसरी पन्ना खींची धाय के सहयोग के लिए थी। पन्ना खींची धाय नहीं, दरोगा थी । कर्नल टॉड ने इस बिन्दू पर नहीं सोचा कि पन्ना खींची धाय नहीं थी। पूरी जानकारी नहीं होने से पन्ना खींची को पन्ना धाय लिखकर भूल कर दी ।
पन्ना खींची के चितौड़ में रहने की बात पुस्तक "मेवाड रावल राणा जी की बात" में अंकित है। डॉ. अख्तर हुसैन भी इस तथ्य से सहमत है। डॉ. निजामी इस बात से भी सहमत है कि पन्ना खींची की साक्षी पर ही ठाकुरों ने उदयसिंह को मरमेडी हाड़ी का पुत्र होना स्वीकारा। इस अवधि में बनवीर को पता चल गया था कि जिस बालक की हत्या की है वह बालक उदयसिंह नहीं चन्दन था । पन्ना धाय ने उदयसिंह की रक्षा के लिए मुझ से धोखा किया है। ऐसी स्थिति में धाय का चितौड़ में रहना सम्भव नहीं था । पन्ना खींची चितौड़ में ही रहने लगी तथा पन्ना धाय चितौड़ छोडकर छिपकर कुम्भलगढ में रहने लगी,अगर उदयसिंह के स्थान पर मरने वाला बालक पन्ना खींची का होता तो बनवीर को पता चलने के उपरान्त वह पन्ना खींची को चितौड़ में ही नहीं रहने देता और शायद उसको मार देता। इससे स्पष्ट हो जाता है कि उदयसिंह के स्थान पर मरने वाला बालक पन्ना खींची का नहीं अपितु पन्ना धाय का पुत्र था तथा पन्ना धाय और पन्ना खींची दो महिलाएँ थी।
उदयसिंह का विवाह करते समय अखेराज सोनगरा ने उदयसिंह के असली राजपूत होने की जाँच की तक जॉच के समय उदयसिंह का जूठा भोजन राजपूत सामन्तों को खिलाया गया। सामन्तों द्वारा जूठा भोजन खाने पर उदयसिंह को असली राजपूत स्वीकारा गया। पन्ना धाय को जूठा भोजन नहीं खिलाया गया क्योंकि वह राजपूत नहीं थी। वह गुर्जर जाति की थी, इसलिए वह जूठा भोजन नहीं खा सकती थी। इससे स्पष्ट हो जाता है कि उदयसिंह और धाय पन्ना अलग अलग जाति के थे अर्थात् पन्ना धाय खींची राजपूत नहीं थी उसे खींची राजपूत बताना मात्र झूठी साजिश है।
उदयसिंह की रक्षा के लिए पन्ना धाय उसे लेकर रक्षा के लिए देवलिया, डूंगरगढ आदि स्थानों पर गई परन्तु वहाँ के शासकों ने उसे रखने की असमर्थता बताई। ऐसी संकट की घड़ी में पन्ना उदयसिंह को लेकर किसी खींची राजपूत के यहाॅ लेकर नहीं गई। उदयसिंह को को बचाकर सुरक्षा व पालन पोषण के लिए ले जाने वाली धाय खीची होती तो वह किसी खीची राजपूत शासक के पास लेकर जाती परनतु ऐसा नहीं हुआ।
दूसरा कारण जब उदयसिंह ने चितौड़ प्राप्त करने के लिए बनवीर पर हमला किया तो कोई खीची राजपूत शासक उदयसिंह के साथ अपनी सेना लेकर नहीं आया। इन घटनाओं से स्पष्ट है कि उदयसिंह का खीची राजपूतों से कोई घनिष्टता का सम्बन्ध नहीं रहा अगर उनको बचाने वाली धाय खीची होती तो खींची राजपूतों से उदयसिंह का घनिष्टता तथा कृतज्ञता का सम्बन्ध होता। इससे स्पष्ट है कि उदयसिंह का खीचियों से कोई सम्बन्ध नहीं था ।
जो लेखक धाय को गागरोन की राजकुमारी और खीची बताते है उन्हें बताना चाहिए कि उदयसिंह महाराणा सांगा के सातवें तथा सबसे छोटे पुत्र थे। उसके लिए परम्परा अनुसार गुर्जर महिला का सातवों पुत्र होने के कारण उसके महाराणा बनने का अवसर भी नहीं था।
ऐसी परिस्थिति में राजकुमारी को धाय क्यों रखा गया। ऐसे व्यक्ति धाय के पति का नाम सिसोदिया समरसिंह बताते है। समरसिंह जिसे इस समय कहाँ है? अगर पन्ना खीची धाय थी तो उसके वंशजों को धाय की पदवी क्यों नहीं दी गई? ऐसे लेखकों को यह भी बताना चाहिए कि किस महाराणा के लिए राजपूत धायें थी? ऐसी धायों के वंशज इस समय किस ठिकाने के सामन्त है और कौन कौन धाय भाई कहलाते है। इस बात का उतर ऐंस लेखको के पास नहीं है। धाय को खीची राजपूत बताना कुछ व्यक्तियों की साजिश मालूम होती है अथवा कल्पना मात्र है। इस पुस्तक में लेखक मूल लेख हटकर टिप्पणी में पृष्ठ सं. 120 में पन्ना को खीची लिखना अपनी इच्छा से षड्यन्त्र ही कहा जायेगा।
म्हाराणा उदयसिंह का पौत्र अमरसिंह था। उदयसिहं की मृत्यु के समय अमरसिंह की उम्र 13 वर्ष की थी। उदयसिंह की जीवन रक्षा करने वाली धाय पन्ना गुर्जरी की जानकारी कर चुका था। पन्ना धाय के त्याग और बलिदान से अमरसिंह गुर्जर जाति के प्रति समर्पित था । अमरसिंह ने अपने पौत्र महाराणा जगतसिंह प्रथम के लिए नोजूबाई गुर्जर को धाय रखा । महाराणा उदयसिंह ने पन्ना धाय की पीहर पक्ष के हाकला गुर्जर परिवारों को इज्जत दी । महाराणा जगतसिंह प्रथम से महाराणा भूपालसिंह तक के धाय भाई परिवार इस समय भी उदयपुर में मौजूद है। परम्परागत मेवाड राजवंश में धाय गुर्जर महिला ही होती है।
मेवाड के नजदीक मध्य प्रदेश में राधोगढ़ रियासत खीची राजपूतों की है इस रियासत के मौजूदा उतराधिकारी श्री दिग्गविजयसिंह हैं। वे भी पन्ना धाय को गुर्जर जाति की महिला मानते है। इस प्रकार पन्ना धाय ने अपने पुत्र चन्दन का बलिदान देकर जंगल जंगल भटक कर उदयसिंह के प्राणों की भीख माँगती हुई घूमी तथा कुम्भलगढ़ पहुँच कर प्राण बचाये। उक्त कार्य बडा कठिन ही नहीं असंभव भी है परन्तु पन्ना धाय ने असंभव को सम्भव करके राष्ट्र की रक्षा की उसे इतिहास में भूलाना भावी पीढ़ी के लिए किसी भी तरह उचित नहीं होना तथा ऐसा होने पर पाठकों का इतिहास से विश्वास उठ जायेगा। पन्ना धाय गुर्जर होने के पक्ष में विभिन्न पुस्तकों, लेखों, समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में दिये गये सन्दर्भ एवं अकाट्य तर्क :
(1) "मेवाड़ रावल राणा री बात' पुस्तक में सम्पादक डॉ. हुकमसिंह भाटी पूर्व निदेशक प्रताप शोध संस्थान उदयपुर ने पुस्तक के पृष्ठ संख्या 57 से 59 तक में लिखा है कि "जदि साहाजी धाय, धड बारण है, वारण रा धणी है, उटी बुलावे ने पुछी सो थे गढ़ थी कसी तरे ले नीसरया ने काई तरे ले नीसरया ने काई तरे हुई जया बात थे मांड न कहो। जदी विक्रमादित्यजी है मारया ने धाय भाई रे बदले, ढोलणी उपरे सुवावे ने उदेसिंघ जी है छाबड़ा माहे पनवाड़ा माहे दपटे ने काढ़या सो समाचार सारा ही ठाकुरा ने कहया। जदी हलकारो मोकल्यो सो कागद वाचने पाछा समाचार लिख्या । सो उदेसिंघ जी सांचा है ने करमेती हाड़ीरा बेटा है, हणारा जतन कोज्यो। और समाचार आणारा धाय, धउ वो मडोवारी भगवान बहु केवे ज्ये समाचार साचा है या खबर पाछी गढ़ कुम्भलगढ़ मेर आया ।" इस प्रकार इस वर्णनानुसार पन्ना धाय गूर्जरी कुम्भलगढ़ में भी तथा पन्ना खीचण चितोड़ में थी।
(2) पुस्तक "वीर विनोद मेवाड़ का इतिहास" के रचियता श्यामदास जी चारण लिखते है कि जब अखेराज सोनगरा (पाली) ने उदयसिंह के साथ अपनी लड़की से सम्बन्ध करते वक्त जांच की थी कि जिस लड़के से सम्बन्ध किया जा रहा है, वह वास्तव में (सांगा पुत्र) ही है या पन्ना धाय गुर्जरी का चन्दन है। अखेराज ने उदयसिंह के संग सभी ठाकुरों ने बैठकर झुंठा भोजन तब किया जब हलकारे को चितौड़ भेज कर पन्ना खींचण राजपुत से सही खबर पत्र द्वारा मांगी और पन्ना धाय गुर्जरी के कहने पर विश्वास किया और भोजन किया। अगर पन्ना धाय खीची राजपुत होती तो अखेराज उदयसिंह की इस तरह की परीक्षा नही लेता पन्ना ने जुठा भोजन नही कीया।
( 3 ) " पन्ना धाय गुर्जरी और चन्दन का बलिदान" नामक पुस्तक में आर० ए० एस० उदयलाल धाबाई उदयपूर ने लिखा है कि "यदि पन्ना धाय गागरोन के शत्रुसाल की पुत्री होती तो उदयसिंह की रक्षार्थ माताजी की पाण्डोली, डुंगरपूर क्यों लेकर गयी ? क्यों नही वह गागरोन अपने पिता के पास चली जाती ? कुम्भलगढ़ ले जाने के पिछे पन्ना का ससूराल आमेट के कमेटी गांव में होने से यह क्षेत्र पुर्व परिचित था' इस प्रकार आर० ए० एस० उदयलाल जी की पुस्तक से यह प्रमाणित होता है कि पुरुष हो अथवा महिला हो वह संकट के समय अपने पूर्व परिचित रास्तो से पूर्व परिचित व्यक्तियों के पास ही अपने संकट निवारण के लिए जाता है । धाय द्वारा गागरोन न जाकर कुम्भनगढ़ जाना करता है कि जाने वाली धाय कुम्भलगढ़ क्षेत्र के आस-पास रहने वाली थी, वह गागरोन क्षेत्र की रहने वाली नही थी। इस प्रकार धाय कुम्भलगढ़ के पास कमेरी की रहने वाली पन्ना धाय गुर्जरी ही थी। इस पुस्तक के अनुसार पन्ना धाय गुर्जरी सजरा पारीवारीक वंशावली पृष्ट सं. 57 परिशिष्ट-1 पर निम्नानुसार हैं।
गुर्जर खेता चौहान ( गांव कमेटी, ठिकाना आमेट जिला राजसमन्द)
भोपा
नागराज
बखता
सुन्दर
राजु
हरिंग
दासा(दासा के वंशज् दासावज कहलाये । दासा महाराणा मोकल के समय
रुपा
हुआ)
कुका वीरभान हिन्दू (हिन्दू जी ने दासा का मौसर किया बड़वे को दातरी दी) लक्ष्मण लाला काना सूरजमल गगदेव चन्दन
(यह सजरा (वंशावली) सूचना बड़वा मोडीराम की पोथी के आधार पर धायभाई उदयलाल चौहान, कानजी का हाटा, उदयपुर रिटायर्ड आर० ए० एस० द्वारा संग्रहित कर पुस्तक मे प्रकाशित की गई।)
(4) एडवोकेट अक्षयसिंह देवपुरा (आशाशाह देवपुरा) के वंशज अपनी सम्मति में लिखते है “कि पुस्तक में जो प्रमाण व घटनाक्रम पन्नाधाय व महाराणा उदयसिंह से सम्बन्धित तथा आशाशाह के सम्बन्धित बताये गये है वे निःसंदेह सत्य है। क्योकि यही किवदन्तियां आशाशाह के वंशज में यानि हमारे कुटुम्ब में आज तक जुबानी व लिखित रूप में प्रचलित है।" इस पुस्तक में नामी "धाय पन्ना गुर्जरी का त्याग और चन्दन के बलिदान" पर एक बार पुनः लेखक रिटायर्ट आर० ए० एस० आफिसर धायभाई उदयलालजी को बहुत-बहुत धन्यवाद। अक्षयसिंह देवीपुरा की सम्मति "धाय पन्ना गूर्जरी का त्याग और चन्दन का बलिदान ।"
(5) एडवोकेट ठाकुर स्वरुप सिंह चूण्डावत ने पुस्तक सम्मति में लिखा है कि
(क) राजपूत जाति में धायभाई होने की प्रथा नहीं थी। अधिकांश धायभाई गूर्जर जाति के ही होते है। मेवाड़ राजवंश आज तक धाय भाई है और राजाऔ द्वारा सम्मानित है। राजपूत कही भी धाय भाई नहीं है।
(ख) पन्ना अगर खींची भी तो कहां की थी ? यदि गागरोन की थी तो गागरोन के इतिहास में उसका कही नाम क्यो नही है ? यदि वह गागरोन वंश की होती तो उदयसिंह को गागरोन ही ने जाती अन्य जगह जाने की आवश्यकता नहीं थी।
(ग) यदि वह मेवाड़ के किसी जागिरदार की पत्नी होती तो उसका वंश आज कहां है ? मेवाड़ में खींचीयो का कोई ठीकाना नही है।
(घ) टॉड एक अंग्रेज था जो ज्यादातर सुनी हुई बातो को लिखता था। इसलिए उसने अपने ग्रन्थ का नाम "एनालस एण्ड एन्टीक्युटीस ऑफ राजस्थान दिया है। टॉड के ग्रन्थ का महत्व दुसरे कारणों से है।
(6) मेवाड़ में गोद आये महाराणा शम्भूसिंह (बागोर) की धाय माली जाती की थी बाकी सभी महाराणा (मेवाड़ ) की धात्रिया (धाय) गुर्जर ही थी । (वीर विनोद पुस्तक पृष्ट संख्या 1900–1928) में वार्षिक वितरण ।
( 7 ) वीर विनोद ग्रन्थ हिकी पृष्ट सं0 327 व 399 परिशिष्ट नं. 3 में लिखा है कि महाराणा उदयसिंह की पांचवी पीढ़ी मे महाराणा जगत सिंह हुए। नोजुबाई गूर्जरी इनकी धाय थी । यह धाय धार्मिक प्रवृति की थी। इनके विचारों ने महाराणा जगतसिंह को प्रभावित किया । जिससे प्रभावित हो उदयपुर का प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर महाराणा ने बनवाया था। मंदिर के पास धाय ने नवलश्याम का मंदिर बनवाया जिसकी प्राण प्रतिष्ठा वि० सं० 1704 में हुई।
(8) वीर विनोद ग्रन्थ के पृष्ठ सं. 476 व 641 परिशिष्ट 4 में विवरण आता है कि जगतसिंह के छोटे कंवर अरिसिंह की धाय सामी गूर्जरी थी। जिसने जगन्नाथ जी के मन्दिर की उतर दिशा की तरफ बाजार मे एक मन्दिर ( देवरा) बनाया प्राण प्रतिष्ठा भी की गई।
(9) वि०सं० 1733 में महाराणा राजसिंह जी की महाराणी रामरसदे कंवर ने देबारी के भीतर त्रिमुखी बावड़ी बनवाई। रामरसदे महाराणा जयसिंह जी की माता थी। इस बावड़ी का कार्यचौहान धाय भाई शतिदास की निगरानी में हुआ था। शतीदास जयसिंह महाराणा के धाय भाई थे। (वीर विनोद पृष्ठ सं. 640 में विवरण)
10) महाराणा संग्रामसिंह || धाय देउ गूर्जरी थी । धाय के ससूराल पक्ष के लोग नेकाड़ी पुत्र थे। नागराज गौत्र के थे। उन्हें उदयपुर में पगार कहते है। नागराज धाय देउ के धायभाई की वीरता की छाप समकालीन नरेश व रजवाड़ो पर तथा मुगल सल्तनत पर खूब जमीं। इस सम्बन्ध में महाराणा सवाई जयसिंह जयपुर का पत्र महाराणा संग्रामसिंह के नाम अंकित है को देख कर सकते है। (वीर विनोद पृष्ठ सं. 968)
(11) ईडर पर चढ़ाई के समय नागराज की फौज लेकर तेजसिंह भीण्डर भी थे। इन्होने ईडर को फतह किया । (वीर विनोद पृष्ठ सं. 969)
भेजा गया। इनके से परगना
साथ महाराज
( 12 ) शंहशाह आलमगीर के मेवाड़ पर चढ़ाई के वक्त भीमसिंह के वंशजो खालसे कर दिया गया। तब यह परगना शंहशाह की तरफ से धाय भाई नगराज को दिया गया जो जागिरी मे मिला। जिसे महाराणा ने धायभाई ठेके पर लेकर मेवाड़ में शामिल कर लिया गया । (वीर विनोद पृष्ठ सं. 1228 ) के अलावा
( 13 ) नगराज राज्य कार्य में मुसाहिब का दर्जा रखते थे। राजस्थान की रियासतों मरहठों को हटाने के लिए राजपूताने की रियासतों व शंहशाह ने मरहठों को रकम देना तय किया। यह रकम सवाई जयसिंह के खजाने से प्राप्त कर नगराज धायभाई के जरिये दो पत्रों की नकल ।) मल्हार राव को भेजी गई । ( वीर विनोद पृष्ठ सं. 1219 -
( 14 ) सवाई जयसिंह ने कंवर माधोसिंह को गद्दी पर बिठाया । तब रामपुरा की जागिर उन्हें मेवाड़ की तरफ से संग्रामसिंह से दिलवाई गई। यह जागिर नगराज धायभाई की सिफारिस पर दी गई । (वीर विनोद पृ. सं. 974)
(15) ईडर फतह के वक्त बांसवाड़ा के रावल बिशनसिंह लड़ाई में जाने से मना तो महाराणा ने धायभाई नगराज को जुर्माना वसूलने भेजा गया। (वीर विनोद पृष्ठ संख्या 1034) बना
कर गये।
( 16 ) उपरमल क्षैत्र बिजोलिया के पास जसूड़ा भील खुंखार डाकू को हाथी समेत बन्दी कर महाराणा के समक्ष उसकी ईस्ट देवी कालिका की मूर्ति सहित नगराज धाबाई ने ला पेश किया। धायभाई ने अपनी जागीर वीर धोलिया गांव में देवी का मन्दिर बना कर उस प्रतिभा को सीपित कर पूजा में भील पुजारी नियुक्त कर पुजा शुरु करवाई। जो आज तक भी है। जसुड़ा की याद मे इसी गांव मे तालाब व शिव मन्दिर भी बनवाया। महाराणा इन्हे दादाभाई कहकर पुकारते थे। नगराज धायभाई को राव की उपाधि तथा बराबर में आसन दिया जाता है।
(17) महाराणा संग्रामसिंह की बहिन चन्द्र कुंवरी जिसे सवाई जयसिंह को ब्याही थी । उसकी धाय भीला गूर्जरी थी। जिसका लड़का माना भी मेवाड़ की मुसहिबी में दखल रखता था। महाराणा संग्रामसिंह के समय विक्रम संवत् 1822 में शाहपुरा गया था। (वीर विनोद पृ. सं. 155)
(18) धायभाई माना ने गोवर्धन विलास में विक्रम संवत् 1795 में कुण्ड, बावड़ी व जायगा बधाई। (वीर विनोद पृ. सं. 1519 परिशिष्ट 5) गोवर्धन विलास का गोर्धन सागर धायभाई श्यामजी नें बनवाया। उदयपुर में शीतला माता मन्दिर के पास सामोर बाग में श्यामजी की बावड़ी कहते है।
(19) वि. सं. 1820 में इन्दौर का मल्हारराव होल्कर मेवाड़ पर चढ़ आया। महाराणा अरिसिंह व रावत अर्जुनसिंह ने सुलह करने के लिए रुपा धाय भाई को भेजा । ( वीर विनोद पृ. सं. 1545)
(20) (क) वि. सं. 1826 में माधवराव सींधिया की फौज ने उदयपुर को आ घेरा तो मोर्चा बन्दी में महाराणा के काका बाघसिंह गये थे । धाय भाई कीका ने अपने साथ सात सौ अरब सिपाईयों को ले गयें तथा दुश्मन-भजन तोप के सामने एकलिंग गढ़ मोर्चा सम्भाला। (वीर विनोद पृ. सं. 1560)
(ख) उदयपुर के चारों और मोर्चा बन्दी करने में महाराणा के साथ धवा नागराज, धायभाई जोधा, धायभाई दूदा, धायभाई उदयराय, धायभाई रतना, धवा चतुर्भूज एवं धवा कुशाला आदि साथ थे। (वीर विनोद पृ. सं. 1562 )
(ग) महाराणा अरिसिंह के समय उनके सख्त व्यव्हार के कारण कुछ राजपूत सरदारों ने षड्यन्त्र कर रतनसिंह नामक लड़के को उतराधिकारी बनाकर जोगियों की फौज बुलाली तथा मेवाड़ पर चढ़ाई करवा दी । वि. सं. 1826 में टोपल मगरी के पास दोनो तरफ की सेना के मुकाबला हुआ। धवा नगराज व धाय भाई कीका महाराणा के साथ रक्षार्थ लड़े। (वीर विनोद पृ. सं. 1569 )
विक्रम संवत् 1828 में सरदारों ने फिर मारवाड़ से जोगियो की फौज फिर बुलवा ली तथा गंगरार के पास फिर युद्ध हुआ। इस युद्ध में धवा नगराज धाय भाई जोधा महाराणा के साथ युद्ध में शरीक हुए। (वीर विनोद पृ. सं. 1570 )
(21) महाराणा भीमसिंह विक्रम संवत् 1834 में मेवाड़ की गद्दी पर बैठे। उस समय गद्दी पर बैठाने में धाय भाई रुपा व कीका साथ में थे। (वीर विनोद पृ. सं. 1704) उदयपुर में धाय भाई की हिरण मगरी मे सेक्टर नं. 11 में रुपा जी की बावड़ी आज भी हैं।
( 22 ) विक्रम संवत् 1848 में माधवराव सिंधिया महाराणा भीमसिंह से मिलने आये। नाहर मगरे पर ठहरें, नाहर मगरे पर महाराणा के साथ धाय भाई उदयराम, धायमाई, हेतू साथ थे। (वीर विनोद पृ. सं. 1714) इस मुलाकात के दौरान नाहर मगरे मुकाम के वक्त महाराणा के नौकर पठान सिपाईयो ने बुलवा कर महल पर हमला कर दिया। खुद महाराणा बाहर निकलें तो महाराणा के साथ धायभाई उदयराम फता हटु थे। महाराणा पर चली तलवार का वार धायभाई उदयराम ने झेल लिया। धायभाई को तलवार का जख्म लगा। (वीर विनोद पृ. सं. 1715)
(23) भीमसिंह के बड़े. कुंवर अमरसिंह द्वितीय बड़े वीर पुरुष थे। उनके धायभाई पंचोली गौत्र के गूर्जर थे। इन्हे चितौड़ के पास लालाजी का खेड़ा गांव जागीर में मिला और चितौड़गढ़ किले की किलेदारी का ओहदा भी मिला। राजस्थान में जागीर पुनः ग्रहण तक इनके वंशज इस जागीर पर काबिज रहे थे।
( 24 ) गूर्जरी रामप्यारी भीमसिंह की माता की विश्वास पात्र थी। राजकाज कार्यों में इनका दखल रहता था। चूण्डावतो तथा शक्तावतों का मन मुटाव मिटाकर भीमसिंह को सलूम्बर से पुनः उदयपुर ले आयी । ( वीर विनोद पृ. सं. 1709) रामप्यारी ने एक मन्दिर, बावड़ी, बाड़ी, महल और धर्मशाला उदयपुर शहर में बनवाई। राज्य परिवार की 12 दिन तक मेहमान नवाजी में उत्सव कर अपने महलों में रखा। (वीर विनोद पृ. सं. 1770)
(25) लार्ड मेयो से मिलने महाराणा शम्भुसिंह विक्रम संवत् 1927 में अजमेर गये तब उनके साथ धाय भाई एका ने काडी महाराणा शम्भुसिंह के साथ गये थे। (वीर विनोद पृ. सं. 2107)
(26) विक्रम संवत् 1938 में गर्वनर जनरल मार्किस ऑफ स्पिन महाराणा सज्जनसिंह को जी० सी० एस० आई० का खिताब देने आये। तब महाराणा के साथ सम्मान से धायभाई बख्तावर नेकाड़ी, धायभाई सुखलाल नेकाड़ी, धायभाई गुमाना नेकाड़ी साथ थे। (वीर विनोद पृ. सं. 2232-33 )
( 26 ) महाराणा भूपालसिंहजी ने अपने युवराज भगवतासिंह के लिए स्थानिय अभिभावक धायभाई हरलाल को रखा तथा अपने पौत्र-पौत्रियों के लिए अभिभावक चिमनलाल को नियुक्त किया। चिमनलाल उनके साथ आबु, बीकानेर, बम्बई आदि स्थानों पर गये। महाराणा महेन्द्र सिंह के निजी सहायक सचिव विधि और मुकदमात में धायभाई उदयलाल रहें ।
( 27 ) पद्म श्री रानी लक्ष्मी कुमारी चूड़ावत ने बगड़ावत महाभारत ग्रन्थ लिखा तथा पुस्तक "मांझल रात" लिखी । पुस्तक "मांझल रात" को लिखते समय लक्ष्मी कुमारी चूड़ावत ने अपने धायभाई मोडु दादा को समर्पित की। पुस्तक "मांझल रात" पर महामहिम राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्र प्रसाद जी ने दिनांक 5 मार्च 1958 को शूभकामना भेंजी ।?
(28) 11 मार्च 2005 को दैनिक भास्कर राजसमंद पृष्ठ 8 पर जानिये शहर को शीर्षक में डॉ. महेन्द्र भाणावत इतिहासज्ञ एक कला लेखो के लेखक है, वे लिखते है कि आशाशाह के वंशज उदयपुर निवासी अक्षयसिंह देवपुरा ने बताया कि पन्नाधाय गुर्जर जाति की थी। जो कपासन के पास गांव की रहने वाली थी।
(29) उदयपुर स्थापना दिवस 11 मई 2005 के उपलक्ष में 10 मई 2005 को राजस्थान पत्रिका पृष्ट संख्या 2 पर लिखते है कि धन्य हो धायमाता पन्नाधाय जिन्होनें जौहर की ज्वाला में उत्सर्ग करने वाली महाराणी कर्मवतीं को वचन दिया था कि "मेवाड़ की तथा इसके गौरव को अक्षुण बनाए रखने की रक्षा के साथ भावी शासक उदयसिंह की हर परिस्थिति में रक्षा करेंगी। पन्ना धाय ने इस वचन को निभाते हुए अपने लाड़ले इकलोते पुत्र चन्दन का बलिदान देकर महाराणा उदयसिंह को बनवीर की तलवार से बचाया। पन्ना उदयसिंह को लेकर अपने पीहर पाण्डोली रुककर देवली (प्रतापगढ़) रावल के पास पहुंची।
(30) राजस्थान पत्रिका में 9 जून 2005 को भगवान लाल शर्मा ने "पन्नाधाय और महाराणा प्रताप' शीर्षक से लेख लिखा कि "पन्नाधाय गूर्जर वंश की महिला थी। जिसके पिता का नाम हरचन्द हाकला था। वह माताजी की पाण्डोली चितोड़गढ़ के पास की निवासी थी । पन्नाधाय आमेठ ठिकाने के अन्तर्गत आने वाले गांव कमेठी के दशावतांश के चौहान गूर्जर हिन्दु जी के पौत्र लाला चौहान के पुत्र गूर्जर सूरजमल की पत्नी थी। गांव कमेटी उसका ससूराल था।
जब धाय रखने की परम्परा मेवाड़ घराने में थी। उस समय उदयपुर के सोलह-बीस ठिकानों में भी गूर्जर जाति की धाये रखी जाती रही है और उनकी संताने धाय भाई कहाये ।
(31) ईश्वर सिंह डुलावत ने "समुत्कर्ष पत्रिका" उदयपुर (राजस्थान के अंक मई 2013 मे लिखते है कि महाराणा सांगा के देहवसान के बाद उनके पुत्र रतन सिंह 1528 ईस्वीं सन् मे मेवाड़ के शासक हुए थे। हाड़ा सूरजमल से उनका आपसी वैरभाव होने के कारण एक दिन जंगल मे शिकार करते समय एक दुसरे पर प्राण घातक वार करने से दोनो की मृत्यु हो गयी। सन् 1531 ई० में रतनसिंह की हत्या हो जाने के कारण उनका छोटा भाई विक्रमादित्य जो रणथम्भोर मे अपनी मां कर्मवती व भाई उदयसिंह के साथ रहता था । मेवाड़ का महाराणा हुआ। महाराणा विक्रमादित्य के समय गुजरात मे बहादुरशाह सुल्तान था। उसकी दिल्ली के बादशाह हुमायूं से अनबन थी। इसी कारण हुमायूं उसे मजा चखाना चाहता था
। सन् 1533 ई० मे बहादुरशाह ने चितोड़ पर आक्रमण किया। किन्तु विक्रमादित्य ने उसकी बड़ी सैना देखकर उससे सन्धि कर ली तथा कुछ समय बाद बहादुरशाह दुबारा बहुत बड़ी सैना लेकर आया यह खबर सुनकर हुमायूँ ने बहादुरशाह को जीतने का सुनहरा अवसर देखकर चितौड़ की तरफ कूच किया तब बहादुर शाह ने उसे पत्र लिखा कि "मैं इस समय जिहाद (धर्मयुद्ध) पर हूं अगर तुम हिन्दुओं की सहायता करोगे तो खुदा के सामने क्या जबाब दोगे ?" इस पर हुमायूँ ग्वालियर में ही ठहर गया। राजमाता कर्मवती ने यह जानकर कि इतनी बड़ी सेना लेकर आये बहादुरशाह से जीतना कठिन है। अपने दोनों पुत्रों विक्रमादित्य व उदयसिंह को धाय मां पन्ना सौंप दिया धाय मां पन्ना गूर्जर जाति की थी। उसके पति सुरजमल गूर्जर के पिता लाला जी गूर्जर कमेरी ग्राम (आमेट के पास) के रहने वाले थे। वे आमेट की सेना के साथ चितौड़ आ गये थे।
। पन्ना धाय पांडोली गांव (चितौड़ के पास) के हाकला गूर्जर की पूत्री थी। पन्ना धाय का जन्म 8 मार्च 1490 ई० में हुआ था। इनका विवाह कमेरी गांव के सूरजमल से हुआ था। सन् 1535 ई० में हुए युद्ध में सूरजमल वीर गति को प्राप्त हुए। जिसका गंगोज पन्ना ने कुम्भलगढ़ में 1537 ई० में किया कर्मवती ने पन्ना को दोनो पुत्रों की रक्षा व सम्भाल रखने को कहा। इस पर पन्ना ने उन्हे वचन दिया कि मेरी जान पर बन आये तो भी अपने प्राणों की आहूति देकर भी मैं मेवाड़ के लाड़लो की रक्षा करूंगी। उसके बाद कर्मवती ने अपने सभी सरदारो को एकत्र कर देवलिया के बाघसिंह रावत को सेनापति बनाया। सभी सरदार मातृ भूमि के प्रेम में उन्मुक्त होकर केसरिया बाना पहनकर किले की पोल (दरवाजा) खोलकर युद्ध भूमि में प्रस्थान कर गये।
श्राजमाता कर्मवती के नेतृत्व में 23000 क्षत्राणियों ने 8 मार्च 1535 ई० अपने सतीत्व की रक्षा करते हुए चितौड़ का सुप्रसिद्ध दूसरा जौहर और विजय स्तम्भ के पास जौहर की ज्वाला में अपने प्राणों की आहूति दे दी। सतीत्व की इस प्रकार रक्षा करने का कोई दूसरा उदाहरण विश्व भर में देखने को नही मिलता है। धन्य है वे क्षत्राणिया धन्य है यह भारत मां जिन्हें पहले पैदा किया तथा बाद में अपनी गोद में शरण देकर समेट लिया। महाराणा सांगा की एक रानी जवाहर बाई ने जौहर में सती न होकर शत्रुओ का मान मर्दन करने हेतु सैनिक वेश धारण कर युद्ध भूमि में उतरने का निर्णय किया। युद्ध भूमि में शत्रुओं को भू-लुंठित करती हुई वीरांगना जवाहर बाई भी वीरगति को प्राप्त हुई।
सन्दर्भ ग्रन्थ, पुस्तकें एवं पत्र पत्रिकाएँ
(1) "वीर विनोद (मेवाड़ का इतिहास )" ग्रन्थ परिशिष्ट 1 से 5 तक लेखक श्यामलदास चारण।
(2) "मेवाड़ रावल री बात" पुस्तक लेखक डॉ० हुकमसिंह पूर्व निदेशक प्रताप शोध संस्थान, उदयपुर (राजस्थान) । (3)
"पन्नाधाय गूर्जरी और चन्दन का बलिदान" पुस्तक लेखक उदयलाल धायभाई रिटायर्ड आर० ए० एस० |
(4) "पन्नाधाय गूर्जर शौध ग्रन्थ लेखक फतहलाल गूर्जर "अनोखा" कांकरोली, राजसमन्द, राजस्थान ।
(5) "राजस्थान पत्रिका" समाचार पत्र ।
(6) "समुत्कर्ष पत्रिका" उदयपुर, राजस्थान | Ramchandra Dhabhai (वार्ता) 13:53, 23 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें
संजीव कुमारजी यहाँ चर्चा पन्ना धाय की पहचान के बारे में हो रही है, तो चर्चा को पन्ना सम्बन्धी स्रोतों तक ही सीमित रखना उचित है । Ramchandra Dhabhaiजी द्वारा दिए गए स्रोतों में वीर विनोद और मेवाड़ रावल राणा री बात के अलावा पन्ना के बारे में एक भी स्रोत किसी भी उल्लेखनीय इतिहासकार या पुस्तक से नहीं है।
वीर विनोद और मेवाड़ रावल राणा री बात से भी जो संदर्भ ऊपर दिए गए है, वह यहाँ भ्रामक रूप से प्रस्तुत किए गए है।
मेवाड़ रावल राणा री बात में कहीं भी दो अलग अलग पन्ना के बारे में नहीं लिखा है, केवल एक ही पन्ना का उल्लेख है और उसे पन्ना खींची लिखा है। जो स्त्री उदयसिंह को चित्तौड़ से बाहर लेकर जाती है उसे बारन (बारी जाति की) लिखा है। (पृष्ट ५६-५७) किसी भी पृष्ट पर किसी और पन्ना का कोई उल्लेख नहीं है। वीर विनोद में भी यही लिखा है की पन्ना खींची ने उदयसिंह को पत्तल से ढक कर बारन के सिर पर रख कर बाहर निकाला था।[[7]] (पृष्ट ६३)। यही बात द्वारा पहले दिए गए स्रोतों में रामवल्लभ सोमानी, राजेंद्र शंकर भट्ट ने लिखी है। किसी ने भी किसी गूजरी या दूसरी पन्ना का उल्लेख नहीं किया है।
अब वीर विनोद से उद्धत जो दूसरा विवरण दिया गया है --> “जब अखेराज सोनगरा (पाली) ने उदयसिंह के साथ अपनी लड़की से सम्बन्ध करते वक्त जांच की थी कि जिस लड़के से सम्बन्ध किया जा रहा है, वह वास्तव में (सांगा पुत्र) ही है या पन्ना धाय गुर्जरी का चन्दन है।“ --> ऐसा वीर विनोद में बिलकुल नहीं लिखा है, आप देख सकते है, [[8]] (पृष्ट ६३) पर अखेरज सोनिगरा ने कहा “बनवीर ने अपने हाथ से असली उदयसिंह का मार डालना और इनका कर्तवी होना प्रसिद्ध कर रखा है। अगर आप सब सरदार इनका झूठा खा ले तो मैं अपनी बेटी ब्याह दूँ।” यहाँ साफ़ उल्लेख है बनवीर ने उदयसिंह के बनावटी होने की बात फैलाई थी, इसलिए अखेराज ने यह शर्त रखी थी। यहाँ भी कहीं भी किसी गूजरी का उल्लेख नहीं है।
पहले दिए गए सभी स्रोतों को नीचे एक साथ जोड़ दिया गया है, जिनमें पन्ना को खींची राजपूतनी बताया गया है। किसी भी ऐतिहासिक और उल्लेखनीय स्रोत में किसी दूसरी पन्ना या गूजरी धाय का उल्लेख नहीं है।
  • वीर विनोद [[9]] (पृष्ट ६३,६६)
  • मेवाड़ के महाराणा और शहंशाह अकबर, राजेंद्र शंकर भट्ट [[10]] , (पृष्ट १४-१६)
  • प्रतापगढ़ का इतिहास, गौरीशंकर हीराचंद ओझा [[11]], पृष्ट (८६-८७)
  • A History of Rajasthan, Rima Hooja (पृष्ट ४६१)
  • A History of Mewar, राम वल्लभ सोमानी (पृष्ट १९३-१९४)
  • मेवाड़ रावल राणा री बात, प्रताप शोध संस्थान, उदयपुर (पृष्ट ५६-५७, ५९)
  • मेवाड़ गौरव, बाबू पद्मराज जैन (पृष्ट संख्या ८७)
  • Hindu Superiority, हरविलास शारदा (पृष्ट ९६)
  • Glorious Mewar, MM Mathur, Bulletin of the Deccan College Research Institute, पृष्ट (२८१) [[12]] (Banveer sliced off the head of Panna Dai’s son thinking he was the prince Udai Singh. Indeed such unimaginable sacrifice only a Rajput could perform)
साहित्यिक रचनाएँ :
  • गोविंद वल्लभ पंत द्वारा लिखित नाटक राजमुकुट (पृष्ट ४२)
  • दीपदान, डाक्टर राजकुमार वर्मा (पृष्ट ५४)
फ़िल्म :
Panna dai (1945) [[13]] , [[14]] History quester (वार्ता) 15:25, 23 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें
@History quester ji आप पढ़े । वीर विनोद से ये साबित किया गया है। मेवाड़ की एक धाय मां माली जाति की थी को छोड़कर बाकी सभी गुर्जर समुदाय से थी। तथ्यों का अर्थ का अर्थ न करे ।
आप से निवेदन है एक बार पूरा पढ़े।
इसमें शुरू में ही लिख दिया गया है की कर्नल टॉड से गलती हुई है उसके आधार ही सभी उसे खींची लिखे है। तो क्या टॉड ने मीरा को कुम्भा की पत्नी लिखा है। फिर उसको भी साबित करे।
और जहा से लेख लिया है उसका विवरण भी दिया गया हैं।
वंशावली दे दी। और पन्ना धाय के परिवार की वंशावली लिखी उस बड़वा ( जो वंशावली तैयार करता है) का नाम भी लिखा है। Ramchandra Dhabhai (वार्ता) 15:51, 23 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें
Ramchandra Dhabhai मेरे द्वारा ऊपर दिए गए सभी स्रोतों में सभी इतिहासकार पन्ना की पहचान पर एक मत है कि पन्ना एक खींची राजपूत थी। आपके द्वारा दिए स्रोतों में सिर्फ़ वीर विनोद और मेवाड़ रावल राणा री बात को छोड़ कर एक भी स्रोत उल्लेखनीय या प्रतिष्ठित इतिहासकार का नहीं है और इन दोनों स्रोतों में भी पन्ना को खींची राजपूत ही लिखा है। आप वीर विनोद या मेवाड़ रावल राणा री बात पुस्तक की वो पृष्ट संख्या बताएँ जहाँ पन्ना को कहीं भी गूजर बताया गया हो। History quester (वार्ता) 01:44, 25 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें
@History quester जी आपके हिसाब से कही भी गुर्जर भी नही लिखा है। तो राजस्थान सरकार , भारत सरकार बेवकूफ बना रही है। आपके तर्क सिर्फ जिद्द करना है। केसे लोगो को बेफखूफ बनाऊं। इतिहासकार प्रतिष्ठित है या नही ये टैग आप लगाते है क्या । जो आपके फेवर में बोले वह सही बाकी जो सब झूठ। सभी का सम्मान करना होता है। कई बार गलती हो जाति है। तो उसे सुधारा नही जाना चाहिए या उसको ही सही। मान कर उसकी कॉपी करते रहे । इतिहास में सभी सोर्स मेल खाने चाहिए। और उसका अर्थ भी निकलना चाहिए। Ramchandra Dhabhai (वार्ता) 02:24, 25 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें
कृपया यहाँ सिर्फ़ इस विषय के स्रोतों पर चर्चा करें और सदस्यों पर निजी टिप्पणी करने से बचें । अब तक आपने एक भी ऐतिहासिक स्रोत नहीं दिया है। मेरे द्वारा ऊपर दिए गए सभी ऐतिहासिक और उल्लेखनीय स्रोत एकमत है कि पन्ना खींची राजपूत थी। अगर कोई ऐतिहासिक स्रोत है तो लाएँ अथवा इस तरह की चर्चा से कुछ लाभ नहीं होने वाला। @संजीव कुमारजी, सभी ऐतिहासिक और उल्लेखनीय स्रोत ऊपर दिए गए है, आपको जब समय मिले तब कृपया देखें। History quester (वार्ता) 02:36, 25 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें
@History quester ji आप खुद ही अपने स्रोतों तो वेरिफाई कर रहे है। ये काम आपका और मेरा नही
@संजीव कुमारजी तय करेंगे कोन कोन सही और गलत है। यही तो मुख्य समस्या बनी है आज तक लोगो को गुमराह करने का। मैने कही गलत लिखा है तो उस को कॉपी पेस्ट कर बताए । ये लाइन गलत है। पूरे लेख में बुक के साथ पूरी बात लिखी हुई है । अब बीना कारण के आपका आंसर नही दुगा । Ramchandra Dhabhai (वार्ता) 03:30, 25 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें
संजीव कुमार जी , कृपया समय मिलने पर ऊपर दिए गए स्रोतों और जानकारी जो देखें को देखें, कई दिनों से ये पृष्ट बिगड़ी हुई हालत में है, जिसे ठीक करना चाहिए । History quester (वार्ता) 14:45, 16 मार्च 2023 (UTC)उत्तर दें
संजीव कुमार जी, पन्ना धाय की खींची चौहान की पहचान सम्बंधित सभी उल्लेखनीय स्रोत ऊपर दिए गए है, किसी भी उल्लेखनीय और ऐतिहासिक स्रोत में कहीं भी उन्हें गूजर नहीं कहा गया है, सभी में उन्हें राजपूत ही लिखा गया है । एक माह से अधिक समय से इस पृष्ट पर ग़लत जानकारी है और इसे ठीक करने के हर प्रयास को सम्पादन युद्ध का रूप दे दिया जाता है। ऊपर वार्ता में आपके द्वारा स्रोत वार्ता पृष्ट पर दिए जाने और मुख्य पृष्ट पर बदलाव नहीं किए जाने को कहा गया था लेकिन फिर भी मुख्य पृष्ट पर बदलाव हो रहे है और ग़लत जानकारी वैसी की वैसी पड़ी है। कृपया इस पृष्ट पर दिए गए स्रोत और जानकरी देखें और इसे ठीक करने में सहायता करें । History quester (वार्ता) 03:18, 20 मार्च 2023 (UTC)उत्तर दें
संजीव कुमारजी, सभी उल्लेखनीय और विश्वसनीय स्रोत समेत जानकारी ऊपर दी जा चुकी है, इस पृष्ट से भ्रामक और ग़लत जानकारी हटाने और इसे ठीक करने की आवश्यकता है। एक भी ऐसा विश्वसनीय या उल्लेखनीय स्रोत नहीं है जिसमें पन्ना को गूजर कहा गया हो । जैसा आपने ऊपर कहा था कि सारी जानकरी देने के बाद इसे ठीक किया जाएगा, इसे कृपया देखें। यह पृष्ट बहुत समय से ठीक करने के लिए लम्बित है। अगर आप करने में असमर्थ है तो कृपया बताएँ । History quester (वार्ता) 03:17, 3 अप्रैल 2023 (UTC)उत्तर दें
@History quester जी आप बोल रहे है अखेरज सोनगरा उदय सिंह का झूठा खाने के लिए बोल रहे है ।
पहला क्वेश्चन ये बनता है चंदन खींची राजपूत है या उदय सिंह राजपूत है । दोनो ही तो आपके हिसाब से राजपूत है । फिर झूठा खिलाकर क्या साबित कर रहे है। झूठा खिला रहा है इसका मतलब चंदन अलग जाति का था। और सरदारों को डाउट था की ये उदय सिंह ना होकर चंदन है और चंदन की दूसरी जाति है। ये लिखा गया लेख में । ऊपर जो लिखा है उसको तोड़ मरोड़ के पेश न करे। Ramchandra Dhabhai (वार्ता) 16:06, 23 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें
संजीव कुमारजी, कृपया समय मिलने पर इन स्रोतों को देखें, इस पृष्ट को ठीक करने की आवश्यकता है । History quester (वार्ता) 13:58, 8 मार्च 2023 (UTC)उत्तर दें
@History quester संजीव कुमार जी , हिस्ट्री क्वेस्टर जी को गुर्जर शब्द से क्या ही दिक्कत हो गई है। मन बना लिया है। जहा गुर्जर दिखे वहा राजपूत लिखो या उसे बदनाम करो । मैने गुर्जर पेज पर भी कई शब्द हटाए और नए शब्द जोड़े और उनका सोर्स भी जोड़ा लेकिन जातिवादी कीड़ा जाग जाता है। इनको प्रतिबंधित किया जाय गुर्जर पेजों से। Ramchandra Dhabhai (वार्ता) 01:12, 10 मार्च 2023 (UTC)उत्तर दें
मैं नये अनुभाग में मेरी समीक्षा लिख रहा हूँ, लेख में उसके अनुसार ही सुधार किये जायेंगे। ☆★संजीव कुमार (✉✉) 06:10, 3 अप्रैल 2023 (UTC)उत्तर दें

चंदन का बलिदान वर्ष १५३६ संपादित करें

पुस्तक : मेवाड़ मुगल संबंध लेखक (डॉ. गोपीनाथ शर्मा ) संशोधनकर्ता प्रो. कृष्ण गोपाल शर्मा पब्लिशर राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी जयपुर भाग 4 पेज नंबर 46 (उदयसिंह और अकबर चित्तौड़ का दुखद अंत) 1536 1572 ईसवी बनवीर "1536" में गद्दी पर बैठा और इसी वर्ष उदय सिंह के चक्कर में चंदन की हत्या कर दी थी। Ramchandra Dhabhai (वार्ता) 13:46, 19 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें

उदयसिंह मान कर चंदन की हत्या कर दी थी। Ramchandra Dhabhai (वार्ता) 13:54, 19 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें

पन्ना धाय संबंधी स्रोत संपादित करें

इस पृष्ट पर लगातार बर्बरता के जानकारी और स्रोत हटाएँ जा रहे है। पन्ना धाय सम्बन्धी सारे विश्वसनीय स्रोत इस पृष्ट पर पहले से थे जिन्हें बर्बरता कर हटाया जा रहा है।

नीचे दिए सभी स्रोतों में पन्ना धाय को खींची चौहान राजपूत बताया गया है, और ये सभी स्रोत इस पृष्ट पर जोड़े गए थे, यहाँ देखें [[15]] , जिन्हें लगातार हटाया जा रहा है।

  • Vir Vinod
  • History Of Rajasthan, Rima Hooja
  • Maharana Pratap, A. Sharma
  • मेवाड़ का महाराणा और शहंशाह अकबर, राजेंद्र शंकर भट्ट
  • प्रतापगढ़ का इतिहास, गौरीशंकर हीराचंद ओझा
  • मेवाड़ का इतिहास, अलिमुद्दीन

अगर कोई जानकारी में बदलाव करना चाहते है तो पहले यहाँ विश्वसनीय स्रोत लाएँ और चर्चा करे, बिना कोई विश्वसनीय स्रोत लाए पृष्ट ना बिगड़े। History quester (वार्ता) 14:21, 20 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें

पन्ना चौहान गुर्जर(धाय मां) और पन्ना खींची थी। और दोनो अलग अलग है । और दोनों ही मेवाड़ से संबंधित हैं और समय भी समान है। संपादित करें

वीर विनोद में पूरा इनका विस्तृत उल्लेख किया गया है। यह पेज पन्नाधाय चौहान गुर्जर से संबंधित है। और इस पेज पर पन्ना खींची से संबंधित सोर्स ना लगाएं इससे लोग गुमराह हो रहे हैं। Ramchandra Dhabhai (वार्ता) 04:09, 21 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें

आज के समय में दरोगा अपने आप को राजपूत ही मानते हैं। Ramchandra Dhabhai (वार्ता) 04:12, 21 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें
पन्न्ना धाय चौहान नहीीं थी और थी तो कैैैसे ? 2401:4900:5241:CD22:881C:B439:BC7E:1CC5 (वार्ता) 08:23, 15 मई 2023 (UTC)उत्तर दें
Tum apni maa ke bare me aase aapattijanak shabdon ka prayog Na Karo unhone Jo balidan Diya vah koi aur nahi de Sakta the 2402:3A80:10CA:B70F:428:5563:3589:5DDF (वार्ता) 01:56, 9 जून 2023 (UTC)उत्तर दें

पन्ना धाय चौहान गुर्जर होने के प्रूफ के साथ विस्तृत वर्णन संपादित करें

"पन्ना धाय गुर्जरी का ऐतिहासिक सच"

मायड़ पन्ना गूजरी, चन्दन जेड़ा पूत । ई सिंघणी रौ दूध पी, सिंघ बण्या रजपूत ।।

परिदान चारण "आरजू" किशोर नगर

( राजसमन्द ) चितौड़ के दूसरे जौहर के समय पन्ना द्वारा राजमाता कर्मवती को दिये वचन कुँवर उदय की रक्षा के लिए पन्ना धाय ने महाराणा उदयसिंह की जीवन रक्षा के लिए अपने खुद के पुत्र चन्दन का बलिदान दे दिया। ऐसा उदाहरण विश्व में कही नहीं मिलता । जिस माता ने अपनी राष्ट्रभक्ति का परिचय देते हुए अपने स्वामी का जीवन बचाने के लिए स्वयं के पुत्र का बलिदान देना स्वीकार कर लिया। उस मातृ शक्ति के सम्बन्ध में इतिहासकारों को तनिक भी शर्म नहीं आयी कि जिसने देश भक्ति के पेटे अपने पुत्र का हॅसते हँसते बलिदान किया है, उसके सम्बन्ध में उसके वंश और जाति लिखने में हम उसके साथ कितना अन्याय कर रहे है। गुर्जर जाति में जन्म लेने वाली देश हित में त्याग की मूर्ति मातृ शक्ति पन्ना धाय को खींची गौत्र की राजपूत लिखने में तनिक भी झिझक नहीं आई ।

वंशावली और पारिवारिक अभिलेख के अनुसार धाय पन्ना गुर्जर महिला थी । धाय पन्ना हरचन्द हाकला निवासी पाण्डोली चितौड़गढ की पुत्री थी। कमेरी ठिकाने आमेर के लाला चौहान जो चितौड़ में रहता था। लाला चौहान के बेटे सूरजमल चौहान की पत्नी धाय पन्ना थी । धाय पन्ना का पुत्र चन्दन था । धाय पन्ना ने उदयसिंह को अपने स्तन का दूध पिलाया। सूरजमल चौहान महाराणा की सेना में था । चितौड़ के दूसरे शाके सन् 1535 में युद्ध में शहीद हुआ था। इस उथल-पुथल के समय में निश्चित समय पर अर्थात् मृत्यु के 12वें दिन सूरजमल चौहान का गंगोज नहीं हो सका था। समय निकल जाने के पश्चात् 2 वर्ष बाद पन्ना धाय ने कुम्भलगढ पहुॅचने के बाद कुम्भलगढ में सन् 1537 में गंगोज किया था। गंगोज में जेतराम बड़वा भी शरीक हुआ था । कर्नल जेम्स टॉड ने बगैर किसी खोज के अपने ऐतिहासिक ग्रन्थ "एनाल्स एण्ड एन्टीक्वीटीज ऑफ राजस्थान में पन्ना धाय को खींची राजपूत होना आनन फानन में लिखकर तत्कालीन राजपूत राजाओं को खुश कर दिया। कर्नल टॉड ने अपने लेखन में कई भयंकर भूले व ऐतिहासिक गलतियों की है। जैसे मीरां को महाराणा कुम्भा की पत्नी बता दिया। शाहजादा सलीम के नेतृत्व में मुगल सेना का हल्दीघाटी का युद्ध लड़ना बता दिया। पन्ना धाय गुर्जरी को खींची राजपूत लिख दिया गया। कुछ गलतियों को बाद में सुधारा गया।

पन्ना धाय के सम्बन्ध में गलती होना स्वाभाविक था इसका मूल कारण कर्नल टॉड की भाषा सम्बन्धी कठिनाई थी। उनके साथ रहने वाले व्यक्तियों ने जैसा बताया वैसा ही वे लिखते रहे तथा भूल की जानकारी मिलने पर सुधारा भी गया परन्तु सम्पूर्ण त्रुटियाँ सुधारी नहीं जा सकी।

कर्नल टॉड के द्वारा पन्ना धाय सम्बन्धी की गई गलती को उसके बाद के कतिपय इतिहासकारों तथा लेखक भी कर्नल की बात कर पन्ना धाय को खींची राजपूत लिखने की गलती दोहराते रहे। वे अपनी रचनाओं में कर्नल टॉड की बात को सत्य मानकर लिखते रहे।

"मेवाड़ रावल राणा जी की बात' ग्रन्थ 1995 ई के आस पास गया । इस हस्त लिखित ग्रन्थ की जानकारी बहुत कम लोगों को थी । इस ग्रन्थ को छपवाया, ग्रन्थ छपने पर ग्रन्थ आम लोगों की जानकारी में आया। इसके पृष्ठ संख्या 57 और 59 पर पन्ना धाय और पन्ना खींची का वर्णन आता है। इसके पढने से जानकारी प्रमाणित होती है कि पन्ना धाय औरी पन्ना खींची दो महिलाएँ थी । चन्दन की हत्या के समय पन्ना धाय और पन्ना खींची दोनों ही वहाँ उपस्थित थी। चन्दन ( कथित उदयसिंह) की हत्या करने के लिए बनवीर अपने हाथ में तलवार लेकर शयन कक्ष में पहुॅचा तो बनवीर ने धाय पन्ना से बात की। शयन कक्ष में जाकर चन्दन की हतया करने के बाद शयन कक्ष से बाहर निकलने पर पन्ना खींची बनवीर से बात करती है। यह हाल "मेवाड़ रावल राणा जी की बात’ पुस्तक के पृष्ठ संख्या 57 पर अंकित है। चन्दन की हत्या के बाद उदयसिंह को पन्ना धाय फूलों के टोकरे से महल के गुप्त रास्ते ( सुरंग) से निकलने के बाद महल से बाहर निकली। उदयसिंह को बचाते हुए उसके पालन पोषण के लिए शरण लेने के लिए पन्ना धाय देवलिया डूंगरपुर आदि स्थानों पर गई परन्तु वहाँ जागिरदारों व किलेदारों ने बनवीर के भय से पन्ना धाय को शरण देना अस्वीकार कर दी। अन्त में पन्ना धाय कुम्भलगढ पहुॅची। वहाँ के राष्ट्रभक्त एवं निडर आशासाह देवपुरा ने हिम्मत करके अपनी सुरक्षा में पन्ना धाय गुर्जरी को शरण दी तथा उदयसिंह का यहीं पर पालन पोषण गुप्त रूप से हुआ इस दरम्यान पन्ना धाय किले में न रहकर नीचे गाँव में रही ताकि बनवीर को यह आशंका न रहे कि पन्ना धाय कुम्भलगढ़ के किले में क्यों रह रही है।

कुम्भलगढ में आशासाह के यहाॅ कुछ राजपूत ठाकुर इकट्ठे हुए तब आशासाह ने ठाकुरों को उदयसिंह के जीवित होने का हाल सुनाया। तब कथन की पुष्टि के लिए धाय को ठाकुरों के सामने पेश किया तो धाय ने सारा हाल सुनाया। धाय के कथन की सत्यता जाँचने के लिए ठाकुरों ने हलकारे को पन्ना खींची के पास चितौडगढ भेजा। चितौड से पन्ना खींची ने उतर भेजा। पन्ना खींची ने हलकारे को लिखकर भेजा कि - "उदयसिंह जी सांचा है, वे करमेड़ी हाड़ी रा बेटा है।" उदयसिंह के लिए धाय कहती है वह सत्य है। यह बात मेवाड़ रावल राणा जी री बात' पृष्ठ संख्या 59 पर अंकित है।

इस विवरण से स्पष्ट हो जाता है कि चन्दन की हत्या के समय राजमहलों में पन्ना नाम की दो महिलाएँ थी । एक धाय पन्ना तथा दूसरी पन्ना खींची धाय के सहयोग के लिए थी। पन्ना खींची धाय नहीं, दरोगा थी । कर्नल टॉड ने इस बिन्दू पर नहीं सोचा कि पन्ना खींची धाय नहीं थी। पूरी जानकारी नहीं होने से पन्ना खींची को पन्ना धाय लिखकर भूल कर दी ।

पन्ना खींची के चितौड़ में रहने की बात पुस्तक "मेवाड रावल राणा जी की बात" में अंकित है। डॉ. अख्तर हुसैन भी इस तथ्य से सहमत है। डॉ. निजामी इस बात से भी सहमत है कि पन्ना खींची की साक्षी पर ही ठाकुरों ने उदयसिंह को मरमेडी हाड़ी का पुत्र होना स्वीकारा। इस अवधि में बनवीर को पता चल गया था कि जिस बालक की हत्या की है वह बालक उदयसिंह नहीं चन्दन था । पन्ना धाय ने उदयसिंह की रक्षा के लिए मुझ से धोखा किया है। ऐसी स्थिति में धाय का चितौड़ में रहना सम्भव नहीं था । पन्ना खींची चितौड़ में ही रहने लगी तथा पन्ना धाय चितौड़ छोडकर छिपकर कुम्भलगढ में रहने लगी,अगर उदयसिंह के स्थान पर मरने वाला बालक पन्ना खींची का होता तो बनवीर को पता चलने के उपरान्त वह पन्ना खींची को चितौड़ में ही नहीं रहने देता और शायद उसको मार देता। इससे स्पष्ट हो जाता है कि उदयसिंह के स्थान पर मरने वाला बालक पन्ना खींची का नहीं अपितु पन्ना धाय का पुत्र था तथा पन्ना धाय और पन्ना खींची दो महिलाएँ थी।

उदयसिंह का विवाह करते समय अखेराज सोनगरा ने उदयसिंह के असली राजपूत होने की जाँच की तक जॉच के समय उदयसिंह का जूठा भोजन राजपूत सामन्तों को खिलाया गया। सामन्तों द्वारा जूठा भोजन खाने पर उदयसिंह को असली राजपूत स्वीकारा गया। पन्ना धाय को जूठा भोजन नहीं खिलाया गया क्योंकि वह राजपूत नहीं थी। वह गुर्जर जाति की थी, इसलिए वह जूठा भोजन नहीं खा सकती थी। इससे स्पष्ट हो जाता है कि उदयसिंह और धाय पन्ना अलग अलग जाति के थे अर्थात् पन्ना धाय खींची राजपूत नहीं थी उसे खींची राजपूत बताना मात्र झूठी साजिश है।

उदयसिंह की रक्षा के लिए पन्ना धाय उसे लेकर रक्षा के लिए देवलिया, डूंगरगढ आदि स्थानों पर गई परन्तु वहाँ के शासकों ने उसे रखने की असमर्थता बताई। ऐसी संकट की घड़ी में पन्ना उदयसिंह को लेकर किसी खींची राजपूत के यहाॅ लेकर नहीं गई। उदयसिंह को को बचाकर सुरक्षा व पालन पोषण के लिए ले जाने वाली धाय खीची होती तो वह किसी खीची राजपूत शासक के पास लेकर जाती परनतु ऐसा नहीं हुआ।

दूसरा कारण जब उदयसिंह ने चितौड़ प्राप्त करने के लिए बनवीर पर हमला किया तो कोई खीची राजपूत शासक उदयसिंह के साथ अपनी सेना लेकर नहीं आया। इन घटनाओं से स्पष्ट है कि उदयसिंह का खीची राजपूतों से कोई घनिष्टता का सम्बन्ध नहीं रहा अगर उनको बचाने वाली धाय खीची होती तो खींची राजपूतों से उदयसिंह का घनिष्टता तथा कृतज्ञता का सम्बन्ध होता। इससे स्पष्ट है कि उदयसिंह का खीचियों से कोई सम्बन्ध नहीं था ।

जो लेखक धाय को गागरोन की राजकुमारी और खीची बताते है उन्हें बताना चाहिए कि उदयसिंह महाराणा सांगा के सातवें तथा सबसे छोटे पुत्र थे। उसके लिए परम्परा अनुसार गुर्जर महिला का सातवों पुत्र होने के कारण उसके महाराणा बनने का अवसर भी नहीं था।

ऐसी परिस्थिति में राजकुमारी को धाय क्यों रखा गया। ऐसे व्यक्ति धाय के पति का नाम सिसोदिया समरसिंह बताते है। समरसिंह जिसे इस समय कहाँ है? अगर पन्ना खीची धाय थी तो उसके वंशजों को धाय की पदवी क्यों नहीं दी गई? ऐसे लेखकों को यह भी बताना चाहिए कि किस महाराणा के लिए राजपूत धायें थी? ऐसी धायों के वंशज इस समय किस ठिकाने के सामन्त है और कौन कौन धाय भाई कहलाते है। इस बात का उतर ऐंस लेखको के पास नहीं है। धाय को खीची राजपूत बताना कुछ व्यक्तियों की साजिश मालूम होती है अथवा कल्पना मात्र है। इस पुस्तक में लेखक मूल लेख हटकर टिप्पणी में पृष्ठ सं. 120 में पन्ना को खीची लिखना अपनी इच्छा से षड्यन्त्र ही कहा जायेगा।

म्हाराणा उदयसिंह का पौत्र अमरसिंह था। उदयसिहं की मृत्यु के समय अमरसिंह की उम्र 13 वर्ष की थी। उदयसिंह की जीवन रक्षा करने वाली धाय पन्ना गुर्जरी की जानकारी कर चुका था। पन्ना धाय के त्याग और बलिदान से अमरसिंह गुर्जर जाति के प्रति समर्पित था । अमरसिंह ने अपने पौत्र महाराणा जगतसिंह प्रथम के लिए नोजूबाई गुर्जर को धाय रखा । महाराणा उदयसिंह ने पन्ना धाय की पीहर पक्ष के हाकला गुर्जर परिवारों को इज्जत दी । महाराणा जगतसिंह प्रथम से महाराणा भूपालसिंह तक के धाय भाई परिवार इस समय भी उदयपुर में मौजूद है। परम्परागत मेवाड राजवंश में धाय गुर्जर महिला ही होती है।

मेवाड के नजदीक मध्य प्रदेश में राधोगढ़ रियासत खीची राजपूतों की है इस रियासत के मौजूदा उतराधिकारी श्री दिग्गविजयसिंह हैं। वे भी पन्ना धाय को गुर्जर जाति की महिला मानते है। इस प्रकार पन्ना धाय ने अपने पुत्र चन्दन का बलिदान देकर जंगल जंगल भटक कर उदयसिंह के प्राणों की भीख माँगती हुई घूमी तथा कुम्भलगढ़ पहुँच कर प्राण बचाये। उक्त कार्य बडा कठिन ही नहीं असंभव भी है परन्तु पन्ना धाय ने असंभव को सम्भव करके राष्ट्र की रक्षा की उसे इतिहास में भूलाना भावी पीढ़ी के लिए किसी भी तरह उचित नहीं होना तथा ऐसा होने पर पाठकों का इतिहास से विश्वास उठ जायेगा। पन्ना धाय गुर्जर होने के पक्ष में विभिन्न पुस्तकों, लेखों, समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में दिये गये सन्दर्भ एवं अकाट्य तर्क :

(1) "मेवाड़ रावल राणा री बात' पुस्तक में सम्पादक डॉ. हुकमसिंह भाटी पूर्व निदेशक प्रताप शोध संस्थान उदयपुर ने पुस्तक के पृष्ठ संख्या 57 से 59 तक में लिखा है कि "जदि साहाजी धाय, धड बारण है, वारण रा धणी है, उटी बुलावे ने पुछी सो थे गढ़ थी कसी तरे ले नीसरया ने काई तरे ले नीसरया ने काई तरे हुई जया बात थे मांड न कहो। जदी विक्रमादित्यजी है मारया ने धाय भाई रे बदले, ढोलणी उपरे सुवावे ने उदेसिंघ जी है छाबड़ा माहे पनवाड़ा माहे दपटे ने काढ़या सो समाचार सारा ही ठाकुरा ने कहया। जदी हलकारो मोकल्यो सो कागद वाचने पाछा समाचार लिख्या । सो उदेसिंघ जी सांचा है ने करमेती हाड़ीरा बेटा है, हणारा जतन कोज्यो। और समाचार आणारा धाय, धउ वो मडोवारी भगवान बहु केवे ज्ये समाचार साचा है या खबर पाछी गढ़ कुम्भलगढ़ मेर आया ।" इस प्रकार इस वर्णनानुसार पन्ना धाय गूर्जरी कुम्भलगढ़ में भी तथा पन्ना खीचण चितोड़ में थी।

(2) पुस्तक "वीर विनोद मेवाड़ का इतिहास" के रचियता श्यामदास जी चारण लिखते है कि जब अखेराज सोनगरा (पाली) ने उदयसिंह के साथ अपनी लड़की से सम्बन्ध करते वक्त जांच की थी कि जिस लड़के से सम्बन्ध किया जा रहा है, वह वास्तव में (सांगा पुत्र) ही है या पन्ना धाय गुर्जरी का चन्दन है। अखेराज ने उदयसिंह के संग सभी ठाकुरों ने बैठकर झुंठा भोजन तब किया जब हलकारे को चितौड़ भेज कर पन्ना खींचण राजपुत से सही खबर पत्र द्वारा मांगी और पन्ना धाय गुर्जरी के कहने पर विश्वास किया और भोजन किया। अगर पन्ना धाय खीची राजपुत होती तो अखेराज उदयसिंह की इस तरह की परीक्षा नही लेता पन्ना ने जुठा भोजन नही कीया।

( 3 ) " पन्ना धाय गुर्जरी और चन्दन का बलिदान" नामक पुस्तक में आर० ए० एस० उदयलाल धाबाई उदयपूर ने लिखा है कि "यदि पन्ना धाय गागरोन के शत्रुसाल की पुत्री होती तो उदयसिंह की रक्षार्थ माताजी की पाण्डोली, डुंगरपूर क्यों लेकर गयी ? क्यों नही वह गागरोन अपने पिता के पास चली जाती ? कुम्भलगढ़ ले जाने के पिछे पन्ना का ससूराल आमेट के कमेटी गांव में होने से यह क्षेत्र पुर्व परिचित था' इस प्रकार आर० ए० एस० उदयलाल जी की पुस्तक से यह प्रमाणित होता है कि पुरुष हो अथवा महिला हो वह संकट के समय अपने पूर्व परिचित रास्तो से पूर्व परिचित व्यक्तियों के पास ही अपने संकट निवारण के लिए जाता है । धाय द्वारा गागरोन न जाकर कुम्भनगढ़ जाना करता है कि जाने वाली धाय कुम्भलगढ़ क्षेत्र के आस-पास रहने वाली थी, वह गागरोन क्षेत्र की रहने वाली नही थी। इस प्रकार धाय कुम्भलगढ़ के पास कमेरी की रहने वाली पन्ना धाय गुर्जरी ही थी। इस पुस्तक के अनुसार पन्ना धाय गुर्जरी सजरा पारीवारीक वंशावली पृष्ट सं. 57 परिशिष्ट-1 पर निम्नानुसार हैं।

गुर्जर खेता चौहान ( गांव कमेटी, ठिकाना आमेट जिला राजसमन्द)

भोपा

नागराज

बखता

सुन्दर

राजु

हरिंग

दासा(दासा के वंशज् दासावज कहलाये । दासा महाराणा मोकल के समय

रुपा

हुआ)

कुका वीरभान हिन्दू (हिन्दू जी ने दासा का मौसर किया बड़वे को दातरी दी) लक्ष्मण लाला काना सूरजमल गगदेव चन्दन

(यह सजरा (वंशावली) सूचना बड़वा मोडीराम की पोथी के आधार पर धायभाई उदयलाल चौहान, कानजी का हाटा, उदयपुर रिटायर्ड आर० ए० एस० द्वारा संग्रहित कर पुस्तक मे प्रकाशित की गई।)

(4) एडवोकेट अक्षयसिंह देवपुरा (आशाशाह देवपुरा) के वंशज अपनी सम्मति में लिखते है “कि पुस्तक में जो प्रमाण व घटनाक्रम पन्नाधाय व महाराणा उदयसिंह से सम्बन्धित तथा आशाशाह के सम्बन्धित बताये गये है वे निःसंदेह सत्य है। क्योकि यही किवदन्तियां आशाशाह के वंशज में यानि हमारे कुटुम्ब में आज तक जुबानी व लिखित रूप में प्रचलित है।" इस पुस्तक में नामी "धाय पन्ना गुर्जरी का त्याग और चन्दन के बलिदान" पर एक बार पुनः लेखक रिटायर्ट आर० ए० एस० आफिसर धायभाई उदयलालजी को बहुत-बहुत धन्यवाद। अक्षयसिंह देवीपुरा की सम्मति "धाय पन्ना गूर्जरी का त्याग और चन्दन का बलिदान ।" (5) एडवोकेट ठाकुर स्वरुप सिंह चूण्डावत ने पुस्तक सम्मति में लिखा है कि

(क) राजपूत जाति में धायभाई होने की प्रथा नहीं थी। अधिकांश धायभाई गूर्जर जाति के ही होते है। मेवाड़ राजवंश आज तक धाय भाई है और राजाऔ द्वारा सम्मानित है। राजपूत कही भी धाय भाई नहीं है।

(ख) पन्ना अगर खींची भी तो कहां की थी ? यदि गागरोन की थी तो गागरोन के इतिहास में उसका कही नाम क्यो नही है ? यदि वह गागरोन वंश की होती तो उदयसिंह को गागरोन ही ने जाती अन्य जगह जाने की आवश्यकता नहीं थी।

(ग) यदि वह मेवाड़ के किसी जागिरदार की पत्नी होती तो उसका वंश आज कहां है ? मेवाड़ में खींचीयो का कोई ठीकाना नही है।

(घ) टॉड एक अंग्रेज था जो ज्यादातर सुनी हुई बातो को लिखता था। इसलिए उसने अपने ग्रन्थ का नाम "एनालस एण्ड एन्टीक्युटीस ऑफ राजस्थान दिया है। टॉड के ग्रन्थ का महत्व दुसरे कारणों से है।

(6) मेवाड़ में गोद आये महाराणा शम्भूसिंह (बागोर) की धाय माली जाती की थी बाकी सभी महाराणा (मेवाड़ ) की धात्रिया (धाय) गुर्जर ही थी । (वीर विनोद पुस्तक पृष्ट संख्या 1900–1928) में वार्षिक वितरण ।

( 7 ) वीर विनोद ग्रन्थ हिकी पृष्ट सं0 327 व 399 परिशिष्ट नं. 3 में लिखा है कि महाराणा उदयसिंह की पांचवी पीढ़ी मे महाराणा जगत सिंह हुए। नोजुबाई गूर्जरी इनकी धाय थी । यह धाय धार्मिक प्रवृति की थी। इनके विचारों ने महाराणा जगतसिंह को प्रभावित किया । जिससे प्रभावित हो उदयपुर का प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर महाराणा ने बनवाया था। मंदिर के पास धाय ने नवलश्याम का मंदिर बनवाया जिसकी प्राण प्रतिष्ठा वि० सं० 1704 में हुई।

(8) वीर विनोद ग्रन्थ के पृष्ठ सं. 476 व 641 परिशिष्ट 4 में विवरण आता है कि जगतसिंह के छोटे कंवर अरिसिंह की धाय सामी गूर्जरी थी। जिसने जगन्नाथ जी के मन्दिर की उतर दिशा की तरफ बाजार मे एक मन्दिर ( देवरा) बनाया प्राण प्रतिष्ठा भी की गई।

(9) वि०सं० 1733 में महाराणा राजसिंह जी की महाराणी रामरसदे कंवर ने देबारी के भीतर त्रिमुखी बावड़ी बनवाई। रामरसदे महाराणा जयसिंह जी की माता थी। इस बावड़ी का कार्यचौहान धाय भाई शतिदास की निगरानी में हुआ था। शतीदास जयसिंह महाराणा के धाय भाई थे। (वीर विनोद पृष्ठ सं. 640 में विवरण)

10) महाराणा संग्रामसिंह || धाय देउ गूर्जरी थी । धाय के ससूराल पक्ष के लोग नेकाड़ी पुत्र थे। नागराज गौत्र के थे। उन्हें उदयपुर में पगार कहते है। नागराज धाय देउ के धायभाई की वीरता की छाप समकालीन नरेश व रजवाड़ो पर तथा मुगल सल्तनत पर खूब जमीं। इस सम्बन्ध में महाराणा सवाई जयसिंह जयपुर का पत्र महाराणा संग्रामसिंह के नाम अंकित है को देख कर सकते है। (वीर विनोद पृष्ठ सं. 968)

(11) ईडर पर चढ़ाई के समय नागराज की फौज लेकर तेजसिंह भीण्डर भी थे। इन्होने ईडर को फतह किया । (वीर विनोद पृष्ठ सं. 969)

भेजा गया। इनके से परगना

साथ महाराज

( 12 ) शंहशाह आलमगीर के मेवाड़ पर चढ़ाई के वक्त भीमसिंह के वंशजो खालसे कर दिया गया। तब यह परगना शंहशाह की तरफ से धाय भाई नगराज को दिया गया जो जागिरी मे मिला। जिसे महाराणा ने धायभाई ठेके पर लेकर मेवाड़ में शामिल कर लिया गया । (वीर विनोद पृष्ठ सं. 1228 ) के अलावा

( 13 ) नगराज राज्य कार्य में मुसाहिब का दर्जा रखते थे। राजस्थान की रियासतों मरहठों को हटाने के लिए राजपूताने की रियासतों व शंहशाह ने मरहठों को रकम देना तय किया। यह रकम सवाई जयसिंह के खजाने से प्राप्त कर नगराज धायभाई के जरिये दो पत्रों की नकल ।) मल्हार राव को भेजी गई । ( वीर विनोद पृष्ठ सं. 1219 -

( 14 ) सवाई जयसिंह ने कंवर माधोसिंह को गद्दी पर बिठाया । तब रामपुरा की जागिर उन्हें मेवाड़ की तरफ से संग्रामसिंह से दिलवाई गई। यह जागिर नगराज धायभाई की सिफारिस पर दी गई । (वीर विनोद पृ. सं. 974)

(15) ईडर फतह के वक्त बांसवाड़ा के रावल बिशनसिंह लड़ाई में जाने से मना तो महाराणा ने धायभाई नगराज को जुर्माना वसूलने भेजा गया। (वीर विनोद पृष्ठ संख्या 1034) बना

कर गये।

( 16 ) उपरमल क्षैत्र बिजोलिया के पास जसूड़ा भील खुंखार डाकू को हाथी समेत बन्दी कर महाराणा के समक्ष उसकी ईस्ट देवी कालिका की मूर्ति सहित नगराज धाबाई ने ला पेश किया। धायभाई ने अपनी जागीर वीर धोलिया गांव में देवी का मन्दिर बना कर उस प्रतिभा को सीपित कर पूजा में भील पुजारी नियुक्त कर पुजा शुरु करवाई। जो आज तक भी है। जसुड़ा की याद मे इसी गांव मे तालाब व शिव मन्दिर भी बनवाया। महाराणा इन्हे दादाभाई कहकर पुकारते थे। नगराज धायभाई को राव की उपाधि तथा बराबर में आसन दिया जाता है।

(17) महाराणा संग्रामसिंह की बहिन चन्द्र कुंवरी जिसे सवाई जयसिंह को ब्याही थी । उसकी धाय भीला गूर्जरी थी। जिसका लड़का माना भी मेवाड़ की मुसहिबी में दखल रखता था। महाराणा संग्रामसिंह के समय विक्रम संवत् 1822 में शाहपुरा गया था। (वीर विनोद पृ. सं. 155)

(18) धायभाई माना ने गोवर्धन विलास में विक्रम संवत् 1795 में कुण्ड, बावड़ी व जायगा बधाई। (वीर विनोद पृ. सं. 1519 परिशिष्ट 5) गोवर्धन विलास का गोर्धन सागर धायभाई श्यामजी नें बनवाया। उदयपुर में शीतला माता मन्दिर के पास सामोर बाग में श्यामजी की बावड़ी कहते है।

(19) वि. सं. 1820 में इन्दौर का मल्हारराव होल्कर मेवाड़ पर चढ़ आया। महाराणा अरिसिंह व रावत अर्जुनसिंह ने सुलह करने के लिए रुपा धाय भाई को भेजा । ( वीर विनोद पृ. सं. 1545)

(20) (क) वि. सं. 1826 में माधवराव सींधिया की फौज ने उदयपुर को आ घेरा तो मोर्चा बन्दी में महाराणा के काका बाघसिंह गये थे । धाय भाई कीका ने अपने साथ सात सौ अरब सिपाईयों को ले गयें तथा दुश्मन-भजन तोप के सामने एकलिंग गढ़ मोर्चा सम्भाला। (वीर विनोद पृ. सं. 1560)

(ख) उदयपुर के चारों और मोर्चा बन्दी करने में महाराणा के साथ धवा नागराज, धायभाई जोधा, धायभाई दूदा, धायभाई उदयराय, धायभाई रतना, धवा चतुर्भूज एवं धवा कुशाला आदि साथ थे। (वीर विनोद पृ. सं. 1562 )

(ग) महाराणा अरिसिंह के समय उनके सख्त व्यव्हार के कारण कुछ राजपूत सरदारों ने षड्यन्त्र कर रतनसिंह नामक लड़के को उतराधिकारी बनाकर जोगियों की फौज बुलाली तथा मेवाड़ पर चढ़ाई करवा दी । वि. सं. 1826 में टोपल मगरी के पास दोनो तरफ की सेना के मुकाबला हुआ। धवा नगराज व धाय भाई कीका महाराणा के साथ रक्षार्थ लड़े। (वीर विनोद पृ. सं. 1569 )

विक्रम संवत् 1828 में सरदारों ने फिर मारवाड़ से जोगियो की फौज फिर बुलवा ली तथा गंगरार के पास फिर युद्ध हुआ। इस युद्ध में धवा नगराज धाय भाई जोधा महाराणा के साथ युद्ध में शरीक हुए। (वीर विनोद पृ. सं. 1570 )

(21) महाराणा भीमसिंह विक्रम संवत् 1834 में मेवाड़ की गद्दी पर बैठे। उस समय गद्दी पर बैठाने में धाय भाई रुपा व कीका साथ में थे। (वीर विनोद पृ. सं. 1704) उदयपुर में धाय भाई की हिरण मगरी मे सेक्टर नं. 11 में रुपा जी की बावड़ी आज भी हैं।


( 22 ) विक्रम संवत् 1848 में माधवराव सिंधिया महाराणा भीमसिंह से मिलने आये। नाहर मगरे पर ठहरें, नाहर मगरे पर महाराणा के साथ धाय भाई उदयराम, धायमाई, हेतू साथ थे। (वीर विनोद पृ. सं. 1714) इस मुलाकात के दौरान नाहर मगरे मुकाम के वक्त महाराणा के नौकर पठान सिपाईयो ने बुलवा कर महल पर हमला कर दिया। खुद महाराणा बाहर निकलें तो महाराणा के साथ धायभाई उदयराम फता हटु थे। महाराणा पर चली तलवार का वार धायभाई उदयराम ने झेल लिया। धायभाई को तलवार का जख्म लगा। (वीर विनोद पृ. सं. 1715)

(23) भीमसिंह के बड़े. कुंवर अमरसिंह द्वितीय बड़े वीर पुरुष थे। उनके धायभाई पंचोली गौत्र के गूर्जर थे। इन्हे चितौड़ के पास लालाजी का खेड़ा गांव जागीर में मिला और चितौड़गढ़ किले की किलेदारी का ओहदा भी मिला। राजस्थान में जागीर पुनः ग्रहण तक इनके वंशज इस जागीर पर काबिज रहे थे।

( 24 ) गूर्जरी रामप्यारी भीमसिंह की माता की विश्वास पात्र थी। राजकाज कार्यों में इनका दखल रहता था। चूण्डावतो तथा शक्तावतों का मन मुटाव मिटाकर भीमसिंह को सलूम्बर से पुनः उदयपुर ले आयी । ( वीर विनोद पृ. सं. 1709) रामप्यारी ने एक मन्दिर, बावड़ी, बाड़ी, महल और धर्मशाला उदयपुर शहर में बनवाई। राज्य परिवार की 12 दिन तक मेहमान नवाजी में उत्सव कर अपने महलों में रखा। (वीर विनोद पृ. सं. 1770)

(25) लार्ड मेयो से मिलने महाराणा शम्भुसिंह विक्रम संवत् 1927 में अजमेर गये तब उनके साथ धाय भाई एका ने काडी महाराणा शम्भुसिंह के साथ गये थे। (वीर विनोद पृ. सं. 2107)

(26) विक्रम संवत् 1938 में गर्वनर जनरल मार्किस ऑफ स्पिन महाराणा सज्जनसिंह को जी० सी० एस० आई० का खिताब देने आये। तब महाराणा के साथ सम्मान से धायभाई बख्तावर नेकाड़ी, धायभाई सुखलाल नेकाड़ी, धायभाई गुमाना नेकाड़ी साथ थे। (वीर विनोद पृ. सं. 2232-33 )

( 26 ) महाराणा भूपालसिंहजी ने अपने युवराज भगवतासिंह के लिए स्थानिय अभिभावक धायभाई हरलाल को रखा तथा अपने पौत्र-पौत्रियों के लिए अभिभावक चिमनलाल को नियुक्त किया। चिमनलाल उनके साथ आबु, बीकानेर, बम्बई आदि स्थानों पर गये। महाराणा महेन्द्र सिंह के निजी सहायक सचिव विधि और मुकदमात में धायभाई उदयलाल रहें ।

( 27 ) पद्म श्री रानी लक्ष्मी कुमारी चूड़ावत ने बगड़ावत महाभारत ग्रन्थ लिखा तथा पुस्तक "मांझल रात" लिखी । पुस्तक "मांझल रात" को लिखते समय लक्ष्मी कुमारी चूड़ावत ने अपने धायभाई मोडु दादा को समर्पित की। पुस्तक "मांझल रात" पर महामहिम राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्र प्रसाद जी ने दिनांक 5 मार्च 1958 को शूभकामना भेंजी ।?

(28) 11 मार्च 2005 को दैनिक भास्कर राजसमंद पृष्ठ 8 पर जानिये शहर को शीर्षक में डॉ. महेन्द्र भाणावत इतिहासज्ञ एक कला लेखो के लेखक है, वे लिखते है कि आशाशाह के वंशज उदयपुर निवासी अक्षयसिंह देवपुरा ने बताया कि पन्नाधाय गुर्जर जाति की थी। जो कपासन के पास गांव की रहने वाली थी।

(29) उदयपुर स्थापना दिवस 11 मई 2005 के उपलक्ष में 10 मई 2005 को राजस्थान पत्रिका पृष्ट संख्या 2 पर लिखते है कि धन्य हो धायमाता पन्नाधाय जिन्होनें जौहर की ज्वाला में उत्सर्ग करने वाली महाराणी कर्मवतीं को वचन दिया था कि "मेवाड़ की तथा इसके गौरव को अक्षुण बनाए रखने की रक्षा के साथ भावी शासक उदयसिंह की हर परिस्थिति में रक्षा करेंगी। पन्ना धाय ने इस वचन को निभाते हुए अपने लाड़ले इकलोते पुत्र चन्दन का बलिदान देकर महाराणा उदयसिंह को बनवीर की तलवार से बचाया। पन्ना उदयसिंह को लेकर अपने पीहर पाण्डोली रुककर देवली (प्रतापगढ़) रावल के पास पहुंची।

(30) राजस्थान पत्रिका में 9 जून 2005 को भगवान लाल शर्मा ने "पन्नाधाय और महाराणा प्रताप' शीर्षक से लेख लिखा कि "पन्नाधाय गूर्जर वंश की महिला थी। जिसके पिता का नाम हरचन्द हाकला था। वह माताजी की पाण्डोली चितोड़गढ़ के पास की निवासी थी । पन्नाधाय आमेठ ठिकाने के अन्तर्गत आने वाले गांव कमेठी के दशावतांश के चौहान गूर्जर हिन्दु जी के पौत्र लाला चौहान के पुत्र गूर्जर सूरजमल की पत्नी थी। गांव कमेटी उसका ससूराल था।

जब धाय रखने की परम्परा मेवाड़ घराने में थी। उस समय उदयपुर के सोलह-बीस ठिकानों में भी गूर्जर जाति की धाये रखी जाती रही है और उनकी संताने धाय भाई कहाये ।

(31) ईश्वर सिंह डुलावत ने "समुत्कर्ष पत्रिका" उदयपुर (राजस्थान के अंक मई 2013 मे लिखते है कि महाराणा सांगा के देहवसान के बाद उनके पुत्र रतन सिंह 1528 ईस्वीं सन् मे मेवाड़ के शासक हुए थे। हाड़ा सूरजमल से उनका आपसी वैरभाव होने के कारण एक दिन जंगल मे शिकार करते समय एक दुसरे पर प्राण घातक वार करने से दोनो की मृत्यु हो गयी। सन् 1531 ई० में रतनसिंह की हत्या हो जाने के कारण उनका छोटा भाई विक्रमादित्य जो रणथम्भोर मे अपनी मां कर्मवती व भाई उदयसिंह के साथ रहता था । मेवाड़ का महाराणा हुआ। महाराणा विक्रमादित्य के समय गुजरात मे बहादुरशाह सुल्तान था। उसकी दिल्ली के बादशाह हुमायूं से अनबन थी। इसी कारण हुमायूं उसे मजा चखाना चाहता था

। सन् 1533 ई० मे बहादुरशाह ने चितोड़ पर आक्रमण किया। किन्तु विक्रमादित्य ने उसकी बड़ी सैना देखकर उससे सन्धि कर ली तथा कुछ समय बाद बहादुरशाह दुबारा बहुत बड़ी सैना लेकर आया यह खबर सुनकर हुमायूँ ने बहादुरशाह को जीतने का सुनहरा अवसर देखकर चितौड़ की तरफ कूच किया तब बहादुर शाह ने उसे पत्र लिखा कि "मैं इस समय जिहाद (धर्मयुद्ध) पर हूं अगर तुम हिन्दुओं की सहायता करोगे तो खुदा के सामने क्या जबाब दोगे ?" इस पर हुमायूँ ग्वालियर में ही ठहर गया। राजमाता कर्मवती ने यह जानकर कि इतनी बड़ी सेना लेकर आये बहादुरशाह से जीतना कठिन है। अपने दोनों पुत्रों विक्रमादित्य व उदयसिंह को धाय मां पन्ना सौंप दिया धाय मां पन्ना गूर्जर जाति की थी। उसके पति सुरजमल गूर्जर के पिता लाला जी गूर्जर कमेरी ग्राम (आमेट के पास) के रहने वाले थे। वे आमेट की सेना के साथ चितौड़ आ गये थे।

। पन्ना धाय पांडोली गांव (चितौड़ के पास) के हाकला गूर्जर की पूत्री थी। पन्ना धाय का जन्म 8 मार्च 1490 ई० में हुआ था। इनका विवाह कमेरी गांव के सूरजमल से हुआ था। सन् 1535 ई० में हुए युद्ध में सूरजमल वीर गति को प्राप्त हुए। जिसका गंगोज पन्ना ने कुम्भलगढ़ में 1537 ई० में किया कर्मवती ने पन्ना को दोनो पुत्रों की रक्षा व सम्भाल रखने को कहा। इस पर पन्ना ने उन्हे वचन दिया कि मेरी जान पर बन आये तो भी अपने प्राणों की आहूति देकर भी मैं मेवाड़ के लाड़लो की रक्षा करूंगी। उसके बाद कर्मवती ने अपने सभी सरदारो को एकत्र कर देवलिया के बाघसिंह रावत को सेनापति बनाया। सभी सरदार मातृ भूमि के प्रेम में उन्मुक्त होकर केसरिया बाना पहनकर किले की पोल (दरवाजा) खोलकर युद्ध भूमि में प्रस्थान कर गये।

श्राजमाता कर्मवती के नेतृत्व में 23000 क्षत्राणियों ने 8 मार्च 1535 ई० अपने सतीत्व की रक्षा करते हुए चितौड़ का सुप्रसिद्ध दूसरा जौहर और विजय स्तम्भ के पास जौहर की ज्वाला में अपने प्राणों की आहूति दे दी। सतीत्व की इस प्रकार रक्षा करने का कोई दूसरा उदाहरण विश्व भर में देखने को नही मिलता है। धन्य है वे क्षत्राणिया धन्य है यह भारत मां जिन्हें पहले पैदा किया तथा बाद में अपनी गोद में शरण देकर समेट लिया। महाराणा सांगा की एक रानी जवाहर बाई ने जौहर में सती न होकर शत्रुओ का मान मर्दन करने हेतु सैनिक वेश धारण कर युद्ध भूमि में उतरने का निर्णय किया। युद्ध भूमि में शत्रुओं को भू-लुंठित करती हुई वीरांगना जवाहर बाई भी वीरगति को प्राप्त हुई। सन्दर्भ ग्रन्थ, पुस्तकें एवं पत्र पत्रिकाएँ

(1) "वीर विनोद (मेवाड़ का इतिहास )" ग्रन्थ परिशिष्ट 1 से 5 तक लेखक श्यामलदास चारण।

(2) "मेवाड़ रावल री बात" पुस्तक लेखक डॉ० हुकमसिंह पूर्व निदेशक प्रताप शोध संस्थान, उदयपुर (राजस्थान) । (3)

"पन्नाधाय गूर्जरी और चन्दन का बलिदान" पुस्तक लेखक उदयलाल धायभाई रिटायर्ड आर० ए० एस० |

(4) "पन्नाधाय गूर्जर शौध ग्रन्थ लेखक फतहलाल गूर्जर "अनोखा" कांकरोली, राजसमन्द, राजस्थान ।

(5) "राजस्थान पत्रिका" समाचार पत्र ।

(6) "समुत्कर्ष पत्रिका" उदयपुर, राजस्थान | Ramchandra Dhabhai (वार्ता) 13:52, 23 फ़रवरी 2023 (UTC)उत्तर दें

लेख की सामग्री में विवादित विषय संपादित करें

@Ramchandra Dhabhai जी और @History quester जी ने पिछले कुछ माह से प्रयास करके काफी स्रोत जुटाने का प्रयास किया है जिसमें कुछ विषय मैं बिन्दुवार लिख रहा हूँ, कहीं गड़बड लगे तो बताइयेगा:

  • पन्ना धाय के जन्म से सम्बंधित कुछ भी, किसी भी स्रोत में नहीं मिल रहा। गूड न्यूज़ टुडे पर जन्म 1490 में हुआ ऐसा दावा किया गया है लेकिन ऐसे ऐतिहासिक तथ्य के रूप में गुड न्यूज़ टुडे विश्वसनीय स्रोत नहीं है।
  • उपर की चर्चा में ऐसे विश्वसनीय स्रोत पर्याप्त रूप से दिये गये हैं जो पन्ना धाय के खींची राजपूत होने का उल्लेख कर रहे हैं।
  • उपर की चर्चा में एक सदस्य ने काफी पर्यास किया है कि पन्ना धाय गुर्जर महिला थी लेकिन इसके लिए दिया गया एक भी स्रोत विश्वसनीय नहीं है, केवल यहाँ निबंध लिखने से यह सिद्ध नहीं होने वाला।
  • कुछ स्रोत ऐसे भी उपलब्ध हैं जो पन्ना धाय के गुर्जर होने का संकेत देते हैं अतः लेख में इस विषय को रखा जायेगा लेकिन मुख्य स्थान पर नहीं।

राजघरानों की बात की जाये तो राजस्थान में मीणा, जाट, राजपूत और गुर्जर जातियाँ विभिन्न स्थानों पर इस रूप में रही हैं जिनका अपने समय का लेखन और सामग्री भी रही है। राजपूत का अर्थ राजा के पुत्र से होना इसका शुरूआती भाग रहा है और इसके अनुरूप अन्य जातियाँ भी इस शब्द का उपयोग कर सकती थीं लेकिन कालांतर में यह शब्द एक विशेष जाति के लिए निर्धारित हो गया और इसी के परिणामस्वरूप ऐतिहासिक/साहित्यिक सामग्री में यह मिश्रण देखने को मिल रहा है। किसी इतिहास के विशेषज्ञ से चर्चा के बाद यदि मुझे और अधिक अच्छे साक्ष्य मिले तो मैं उनके अनुरूप सुधार का प्रयास भविष्य में करता रहूँगा। ☆★संजीव कुमार (✉✉) 06:29, 3 अप्रैल 2023 (UTC)उत्तर दें

संजीव कुमार जी, मैं आपके द्वारा दिए बिंदुओं का बिंदुवार उत्तर दे रहा हूँ :
  • किसी भी ऐतिहासिक स्रोत में पन्ना धाय के जन्म, उनके पति या परिवार के बारे में कुछ अधिक जानकारी नहीं है । पन्ना धाय इतिहास के पटल पर सिर्फ़ बनवीर द्वारा उदयसिंह की हत्या के प्रयास और पन्ना द्वारा उदयसिंह को बचाने के प्रकरण में ही उल्लेखित है। किसी भी स्रोत में पन्ना के पुत्र का नाम भी उल्लेखित नहीं है । पन्ना के पुत्र का नाम चंदन भी संभवतः गोविंद वल्लभ पंत द्वारा रचित राजमुकुट से लिया गया है, क्योंकि उस से पहले के किसी भी स्रोत में पन्ना के पुत्र का नाम नहीं है । गुड न्यूज़ टुडे जैसे अख़बार या सरकारी योजना के पृष्ट इस तरह की जानकारी के लिए विश्वसनीय नहीं हो सकते। जो जानकारी किसी भी उल्लेखनीय या ऐतिहासिक स्रोत में नहीं है उसे पृष्ट पर नहीं रखना चाहिए। जो जानकारी ऐतिहासिक या उल्लेखनीय स्रोतों में नहीं है, उसे पृष्ट पर नहीं रखना चाहिए।
  • पन्ना की पहचान पर पर्याप्त स्रोत दिए गए है और ये सभी पन्ना द्वारा दिए गए बलिदान और उनकी पहचान पर एक मत है।
  • पन्ना धाय को गूजर साबित करने के एक भी विश्वसनीय स्रोत नहीं दिया गया है। इसलिए ऐतिहासिक और उल्लेखनीय स्रोतों के आधार पर ही इस पृष्ट पर जानकारी रखनी चाहिए । पिछले कुछ सालों से कई ऐतिहासिक किरदारों को गूजर सिद्ध करने के लिए स्वयं प्रकाशित स्रोतों की बाढ़ सी आ गई है, जिनमें ना सिर्फ़ पन्ना धाय बल्कि शिवाजी, सरदार पटेल जैसों को भी ना सिर्फ़ गूजर लिखा गया है बल्कि उनकी इसी नाम से मूर्तियाँ, गीत और पुस्तकें प्रकाशित की गई है। आप देख सकते है हिंदी विकी पर यहाँ [[16]] अभी भी सरदार पटेल को गुर्जर लिखा गया है।
  • यह स्रोत [17] सरकारी योजना का पृष्ट है, जिसका उपयोग ऐतिहासिक व्यक्ति की पहचान निर्धारित करने के लिए उपयुक्त नहीं है क्योंकि यह कोई ऐतिहासिक स्रोत ना होकर एक योजना का पृष्ट है जिसका कोई ऐतिहासिक आधार या महत्व नहीं है। विकिपीडिया के विश्वसनीय स्रोतों के मापदंड पर ये खरा नहीं उतरता है ।
मध्यक़ालीन ऐतिहासिक स्रोतों में हर व्यक्ति को उसकी जाति से पहचान मिलती थी और उसी नाम से ऐतिहसिक स्रोतों में उसे उल्लेखित किया जाता था। पन्ना धाय के प्रकरण में भी आप देख सकते है कि पन्ना की सहायता करने वाली स्त्री को बारिन ही लिखा है, जो उसकी बारी जाति के होने के बारे में बताता है। सभी स्रोतों में पन्ना को खींची राजपूतनी ही लिखा गया है, इस विषय पर सभी स्रोत एकमत है। अतः कृपया इस पृष्ट से भ्रामक जानकारी हटाने और उल्लेखनीय स्रोतों पर आधारित जानकारी रखने में सहायता करें ।धन्यवाद । 15:03, 4 अप्रैल 2023 (UTC) History quester (वार्ता) 15:03, 4 अप्रैल 2023 (UTC)उत्तर दें
@History quester जी: मैं और आप सम्भवतः ऐतिहासिक तथ्यों पर सहमत हैं लेकिन मेरा सुझाव लेख में एक अनुभाग रखने की तरफ है जिसमें इन विवादित बातों को रखा जा सकता है। यदि आपके पास स्रोत उपलब्ध है तो उसमें यह भी लिखा जा सकता है कि पिछले कुछ वर्षों में उन्हें गुर्जर सिद्ध करने का प्रयास किया गया है। ये भी एक ज्ञानकोशीय जानकारी में शामिल करना उचित होता है। ☆★संजीव कुमार (✉✉) 05:08, 5 अप्रैल 2023 (UTC)उत्तर दें
@संजीव कुमार जी देरी से जवाब देने के लिए माफी चाहूंगा। हिस्ट्री क्वेस्टर जी राजपूत जाति की उत्पति पर भी तो सभी विश्वसनीय स्रोत एकमत नहीं है। और अगर सरकार गलत लिखे और पन्ना धाय को गुर्जर लिखे बिना किसी प्रूफ के और राजपूत लोग कोर्ट नही जाए । कोई भी लेखक अपनी बुक्स में गुर्जर लिखा है पन्ना को तो कारण और तथ्यो के साथ बताया है । हवा हवा में कॉपी पेस्ट नही किया। लेखक निष्पक्ष होकर बात की हो सिर्फ एक कास्ट के एजेंट की तरह काम किया हो।
आप ब्लेम कर रहे हो की गुर्जर सभी को अपना रहे है । जो गुर्जर है गुर्जर ही रहेगा छल कपट और विश्वसनीय स्रोत का हवाला के जरिए दिल्ली हाई कोर्ट में पृथ्वीराज के मामले में उधे मुंह गिरे ना। आपका मकसद सिर्फ गुर्जर को टारगेट करना । 1800से 1975 तक के लेखक विश्वसनीय स्रोत में आते है जिसमे कपोल्प कल्पित कहानियां का अंबार है। बाकी सभी अविश्वनीय में । Ramchandra Dhabhai (वार्ता) 08:35, 8 अप्रैल 2023 (UTC)उत्तर दें
संजीव कुमार जी, अगर आपका सुझाव पन्ना को गूजर बताने के हालिया विवाद को लेकर लेख में नीचे एक अनुभाग जोड़ने को लेकर है तो इसकी अधिक सम्भावना है कि ऐसे अनुभाग को सदस्य इस वार्ता पृष्ट की तरह बिना किसी विश्वसनीय स्रोत के केवल निबंध लिख कर भर देंगे, जो कि अनुपयोगी होगी । पन्ना धाय के पृष्ट पर उल्लेखनीय और ऐतिहासिक स्रोतों में जो जानकारी है वही जोड़नी चाहिए । History quester (वार्ता) 04:14, 9 अप्रैल 2023 (UTC)उत्तर दें
संजीव कुमारजी, समय मिलने पर पर कृपया आपके सुझाव पर मेरा उत्तर देखें । History quester (वार्ता) 13:37, 17 मई 2023 (UTC)उत्तर दें
@History quester जी: समय मिलने पर मैं अद्यतन करने का प्रयास करूँगा लेकिन इस माह में समय मिलना मुश्किल है। ☆★संजीव कुमार (✉✉) 13:41, 17 मई 2023 (UTC)उत्तर दें
संजीव कुमारजी, यह पृष्ट कई दिनों से इस अवस्था में पड़ा है, कृपया सुझाव दें कि उपरोक्त स्रोतों अनुसार आप बदलाव कर पाएँगे या अगर आप असमर्थ है तो मैं इस पृष्ट में जानकारी ठीक करूँ ? History quester (वार्ता) 12:19, 12 जुलाई 2023 (UTC)उत्तर दें
@History quester जी, आप वार्ता पृष्ठ की चर्चा के अनुसार ठीक कर दीजियेगा, मैं समय नहीं दे पा रहा हूँ। ☆★संजीव कुमार (✉✉) 12:22, 12 जुलाई 2023 (UTC)उत्तर दें
@संजीव कुमारजी, धन्यवाद । ऊपर दिए गए ऐतिहासिक स्रोतों अनुसार पृष्ट पर जानकारी ठीक कर दूँगा। धन्यवाद। History quester (वार्ता) 12:44, 12 जुलाई 2023 (UTC)उत्तर दें
@संजीव कुमार जी sir आपने बोला है की मैं इतिहासकार से इस बारे में बातचीत कर आगे पेज को एडिट करुंगा । लेकिन आप हिस्ट्री क्वेस्टर को अनुमति दे दी । आपने मेरे सोर्स को लेख बता कर और लेखकों पर जातिवादी का टप्पा लगा दिया । शोध ग्रंथ में में कई इतिहासकार समलित होते है ।आप एक बार फतहलाल अनोखा के पन्नाधाय शोध ग्रंथ को जरूर देखिए । 1500के आसपास लिखे किसी लेख में पन्ना धाय को खींची लिखा हो। वो प्रूफ दे सकते हो। 117.197.4.251 (वार्ता) 01:15, 16 जुलाई 2023 (UTC)उत्तर दें
@117.197.4.251 आगे कुछ पत्र है जो इस शोध ग्रंथ में है। Ramchandra Dhabhai (वार्ता) 01:24, 16 जुलाई 2023 (UTC)उत्तर दें
सम्मति
श्री फतहलालजी अनोखा
आप रा कागद सूं म्हनै मालूम वियो क आप पन्नाधाय गूजरी पे एक शोध ग्रंथ से प्रकाशन कर रिया हो । आ बात जाणर म्हनै घणी खुशी वी इतिहास प्रसिद्ध पन्नाधाय गुर्जर जाति री ही ।
सम्पूर्ण मेवाड़ रा सगला ठिकाणा अर मेवाड़ महाराणा रा महलां में गुर्जर जाति री धाय राखी गी ही। सिर्फ बीकानेर में माळी जाति री धाय राखता । या आँख्या देखी बात है। एक केणावत म्हें पढ़ी है क. गूजरी धाय रो चूख्यो अर नाहरड़ी से चूख्यो बराबर वे है। धायभाई मेवाड़ राजघराणा में ऊँचा-ऊँचा पदा माथे रेवता अर वणां ने जागीऱ्यां भी दी जावती। एक दोहो है ।
देऊ थारा दूध ने, आलम करे सलाम ।
दोन्यू नर थां चूखिया, नंगा अर संग्राम ।।
आ बात महाराणा संग्रामसिंहजी द्वितीय री धाय देऊ गुर्जरी रे विसै में कही गी है। देवगढ़ शहर से नगर कोट म्हारा पूर्वजां फतहलालजी धायभाई री निगराणी में बणवायो। म्हारा पिता श्री विजयसिंघजी हथ खर्च में भचेड्यो ग्राम म्हनें बखस्यो, वीमें म्हें लक्ष्मी सागर नाम रो ताळाब बणायो । वीने म्हारा धायभाई दादा मोडू जी री देखरेख में वणायो ग्यो। इणरो सिलालेख वठे लाग्योड़ो है।
म्हनें इतिहास अर साहित्य री घणी-घणी केण्यां मोडूदादो सुणावतो, वणी ने आछो ज्ञान हो अर ये केण्या म्हारी पैली पौथी मांझलरात में छपी है।
ई प्रकाशन रे वास्ते म्हारी आपने बधाई और शुभकामना ।
दिनांक :- 27/11/2006। लक्ष्मीकुमारी चूण्डावत, जयपुर Ramchandra Dhabhai (वार्ता) 01:29, 16 जुलाई 2023 (UTC)उत्तर दें
विषय - वीरांगना पन्नाधाय ।
महोदयजी,
दिनांक :- 23/5/2006
आपके दिनांक 1.5.2006 के पत्र क्रमांक 2006-2007 / 260 के संदर्भ में लेख है कि महाराणा मेवाड़ फाउण्डेशन के पास पन्नाधाय के बारे में उपलब्ध जानकारी का स्रोत कविराज श्यामदास कृत वीर विनोद' एवं गौरीशंकर हीराचन्द ओझा कृत "उदयपुर राज्य का इतिहास" है। अन्य कोई प्रमाणित जानकारी उपलब्ध नहीं है।
धन्यवाद!
भवदीय
भूपेन्द्रसिंह आऊवा Ramchandra Dhabhai (वार्ता) 01:31, 16 जुलाई 2023 (UTC)उत्तर दें
महोदयजी,
आपका पत्र यथा समय प्राप्त हो गया। मेवाड़ महाराणाओं की धाय गुर्जर होने की परम्परा रही है। और इसकी पुष्टि शिलालेखों से भी होती है । परन्तु 'रावल राणाजी री बात' में पन्नाधाय खींचण का नाम कैसे आया यह बिन्दू विचारणीय है। आपने गोष्ठी आयोजित की उसमें प्रो. के. एस. गुप्ताजी, ओझाजी, जावलियाजी आदि विद्वानों ने क्या विचार प्रस्तुत किये। प्राचीन स्रोतों के आधार पर और विवेक से इस सारी घटना पर नये सिरे से अध्ययन किये जाने की आवश्यकता है।
"रावल राणाजी री बात" के अलावा कोई ख्यात, बात, विगत मिल जाय तो इसका समाधान हो सकता है।
ऑपरेशन होने के कारण मैं कुछ अधिक इस दिशा में शोध करने की स्थिति में नहीं हूँ।
धन्यवाद!
शुभेच्छु डॉ. हुकमसिंह भाटी Ramchandra Dhabhai (वार्ता) 01:33, 16 जुलाई 2023 (UTC)उत्तर दें
@History quester जी कई लेखक राजपूतों की उत्पति गुर्जर से मानते है।
और रही बात पाटीदार समाज गुर्जरों का ही पार्ट है। गुर्जरों में लोर और खारी गुर्जर होते है वैसे ही पाटीदारो में लेवा और खड़वा होते है और सरदार पटेल की बेटी ने खुद को गुर्जर बताया है । सभी आपकी तरह नही की कुछ भी मंनगदंत कहानियां छाप देते और आज सब पढ़ते है । भुजा , आग आदि से पैदा कहानियां पुरानी हो गई अब। Ramchandra Dhabhai (वार्ता) 08:45, 8 अप्रैल 2023 (UTC)उत्तर दें
@Ramchandra Dhabhai जी : लेखकों के मानने से तथ्य ऐतिहासिक नहीं होते। इतिहासकारों द्वारा क्या तथ्य दिये जा रहे हैं और वो क्या लिखते हैं, उसका स्रोत दें। इसके अतिरिक्त आपने जो उपर लिखा है, वो शायद विषय से अलग बिन्दू है। ☆★संजीव कुमार (✉✉) 13:40, 17 मई 2023 (UTC)उत्तर दें
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