हिन्दी व्याकरण
हिन्दी व्याकरण, हिन्दी भाषा को शुद्ध रूप में लिखने और बोलने संबंधी नियमों का बोध करानेवाला शास्त्र है। यह हिन्दी भाषा के अध्ययन का महत्त्वपूर्ण अंग है।[1] इसमें हिंदी के सभी स्वरूपों का चार खंडों के अंतर्गत अध्ययन किया जाता है; यथा - वर्ण विचार के अंतर्गत ध्वनि और वर्ण, शब्द विचार के अंतर्गत शब्द के विविध पक्षों संबंधी नियमों, वाक्य विचार के अंतर्गत वाक्य संबंधी विभिन्न स्थितियों एवं छंद विचार में साहित्यिक रचनाओं के शिल्पगत पक्षों पर विचार किया गया है।[2]
वर्ण विचार
संपादित करेंवर्ण विचार हिंदी व्याकरण का पहला खंड है, जिसमें भाषा की मूल इकाई ध्वनि तथा वर्ण पर विचार किया जाता है। वर्ण विचार तीन प्रकार के होते हैं। इसके अंतर्गत हिंदी के मूल अक्षरों की परिभाषा, भेद-उपभेद, उच्चारण, संयोग, वर्णमाला इत्यादि संबंधी नियमों का वर्णन किया जाता है।
वर्ण
संपादित करेंहिन्दी भाषा की लिपि देवनागरी है। देवनागरी वर्णमाला में कुल 52 वर्ण हैं - जिनमें से 11 स्वर, 33 व्यंजन, एक अनुस्वार (अं) और एक विसर्ग (अ:) सम्मिलित है। इसके अतिरिक्त हिंदी वर्णमाला में दो द्विगुण व्यंजन (ड़ और ढ़) तथा चार संयुक्त व्यंजन (क्ष,त्र,ज्ञ,श्र) होते हैं।
स्वर
संपादित करेंहिन्दी भाषा में कुल 12 स्वर हैं जो मूल रूप से उपस्थित हैं और वे बगल की सारणी में निम्नलिखित हैं।[3]
आगे | बीच | पीछे | ||||||||
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
दीर्घ | ह्रस्व | दीर्घ | ह्रस्व | |||||||
बंद | ई | iː | इ | ɪ | उ | ʊ | ऊ | uː | ||
बंद-मध्य | ए | eː | ओ | oː | ||||||
खुला-मध्य | ऐ | ɛː | ऍ | ɛ | अ | ə | औ | ɔː | ||
खुला | आ | aː |
स्वरों को कुछ इस प्रकार बाँटा जा सकता है —
- मूल स्वर — ये ऐसे स्वर हैं जो एक ही स्वर से बने हैं।
- अ, इ, उ, ओ
- संयुक्त स्वर — ये ऐसे स्वर हैं जिन्हें संस्कृत भाषा में दो मूल स्वर के मेल की तरह उच्चारित किया जाता था। मगर आधुनिक हिंदी में इन्हें तकनिकी रूप से मूल स्वर ही कहा जाएगा क्योंकि हिंदी में इनका उच्चारण मूल स्वरों में बदल गया है।
- आ = अ + अ
- ऐ = अ + इ
- औ = अ + उ
- ऐलोफ़ोनिक स्वर — ये ऐसे स्वर होते हैं जो किन्हीं शब्दों के व्यंजनों के कारण दूसरे स्वर का स्थान ले लेते हैं। हिंदी में ऐसे दो स्वर हैं —
- ऍ — ये स्वर हिंदी की वर्णमाला में नहीं पाया जाता है। इसका IPA /ɛ/ है और ये अ का ऐलोफ़ोन है। IPA को मद्देनज़र रखते हुए , इसे ह्रस्व-ऐ स्वर भी कहा जा सकता है। ये शब्दों में तब प्रकट होता है जब अ स्वर ह-व्यंजन के अगल-बगल उपस्थित होता है।[4] उदाहरण के तौर पे — क्रिया रहना [ɾəhnɑː] को [ɾɛhnɑː] उच्चारित किया जाता है।
- औ — ये स्वर भी जब ह-व्यंजन के अगल-बगल होता है स्वर उ के साथ, तब उ का उच्चारण औ में बदल जाता है। उदाहरण के तौर पे — बहुत [bəhʊt̪] को बहौत [bəhɔːt̪]
- विदेशी स्वर — ये ऐसे स्वर हैं जोकि हिंदी को दूसरी भाषाओँ से मिले हैं।
- /æ/ — ये स्वर हिंदी को अंग्रेज़ी भाषा से मिला है। इसे लिखा ऐ स्वर से ही जाता है लेकिन केवल अंग्रेज़ी के शब्दों का उच्चारण करते समय इस स्वर का प्रयोग होता है।
व्यंजन
संपादित करेंअल्पप्राण अघोष |
महाप्राण अघोष |
अल्पप्राण घोष |
महाप्राण घोष |
नासिक्य | |
---|---|---|---|---|---|
कण्ठ्य | क / kə / |
ख / khə / |
ग / gə / |
घ / gɦə / |
ङ / ŋə / |
तालव्य | च / tʃə / |
छ /tʃhə/ |
ज / dʒə / |
झ / dʒɦə / |
ञ / ɲə / |
मूर्धन्य | ट / ʈə / |
ठ / ʈhə / |
ड / ɖə / |
ढ / ɖɦə / |
ण / ɳə / |
दन्त्य | त / t̪ə / |
थ / t̪hə / |
द / d̪ə / |
ध / d̪ɦə / |
न / nə / |
ओष्ठ्य | प / pə / |
फ / phə / |
ब / bə / |
भ / bɦə / |
म / mə / |
तालव्य | मूर्धन्य | दन्त्य/ वर्त्स्य |
कण्ठोष्ठ्य/ काकल्य | |
---|---|---|---|---|
अन्तस्थ | य / jə / |
र / rə / |
ल / lə / |
व / ʋə / |
ऊष्म/ संघर्षी |
श / ʃə / |
ष / ʂə / |
स / sə / |
ह / ɦə / |
विदेशी ध्वनियाँ
संपादित करेंये ध्वनियाँ मुख्यत: अरबी और फ़ारसी भाषाओं से लिये गये शब्दों के मूल उच्चारण में होती हैं। इनका स्रोत संस्कृत नहीं है। देवनागरी लिपि में ये सबसे करीबी देवनागरी वर्ण के नीचे बिन्दु (नुक़्ता) लगाकर लिखे जाते हैं।
वर्णाक्षर (आईपीए उच्चारण) |
उदाहरण | वर्णन |
---|---|---|
क़ (/ q /) | क़त्ल | अघोष अलिजिह्वीय स्पर्श |
ख़ (/ x /) | ख़ास | अघोष अलिजिह्वीय या कण्ठ्य संघर्षी |
ग़ (/ ɣ /) | ग़ैर | घोष अलिजिह्वीय या कण्ठ्य संघर्षी |
फ़ (/ f /) | फ़र्क | अघोष दन्त्यौष्ठ्य संघर्षी |
ज़ (/ z /) | ज़ालिम | घोष वर्त्स्य संघर्षी |
शब्द विचार
संपादित करेंशब्द विचार हिंदी व्याकरण का दूसरा खंड है जिसके अंतर्गत शब्द की परिभाषा, भेद-उपभेद, संधि, विच्छेद, रूपांतरण, निर्माण आदि से संबंधित नियमों पर विचार किया जाता है।शब्द की परिभाषा- एक या अधिक वर्णों से बनी हुई स्वतंत्र सार्थक ध्वनि शब्द कहलाता है। जैसे- एक वर्ण से निर्मित शब्द-न (नहीं) व (और) अनेक वर्णों से निर्मित शब्द-कुत्ता, शेर,कमल, नयन, प्रासाद, सर्वव्यापी, परमात्मा।
शब्द-भेद
व्युत्पत्ति (बनावट) के आधार पर शब्द-भेद-
व्युत्पत्ति (बनावट) के आधार पर शब्द के निम्नलिखित तीन भेद हैं-
1. रूढ़
2. यौगिक
3. योगरूढ़
1.रूढ़-
जो शब्द किन्हीं अन्य शब्दों के योग से न बने हों और किसी विशेष अर्थ को प्रकट करते हों तथा जिनके टुकड़ों का कोई अर्थ नहीं होता, वे रूढ़ कहलाते हैं। जैसे-कल, पर। इनमें क, ल, प, र का टुकड़े करने पर कुछ अर्थ नहीं हैं। अतः यह निरर्थक हैं।
2.यौगिक-
जो शब्द कई सार्थक शब्दों के मेल से बने हों,वे यौगिक कहलाते हैं। जैसे-देवालय=देव+आलय, राजपुरुष=राज+पुरुष, हिमालय=हिम+आलय, देवदूत=देव+दूत आदि। ये सभी शब्द दो सार्थक शब्दों के मेल से बने हैं।
3.योगरूढ़-
वे शब्द, जो यौगिक तो हैं, किन्तु सामान्य अर्थ को न प्रकट कर किसी विशेष अर्थ को प्रकट करते हैं, योगरूढ़ कहलाते हैं। जैसे-पंकज, दशानन आदि। पंकज=पंक+ज (कीचड़ में उत्पन्न होने वाला) सामान्य अर्थ में प्रचलित न होकर कमल के अर्थ में रूढ़ हो गया है। अतः पंकज शब्द योगरूढ़ है। इसी प्रकार दश (दस) आनन (मुख) वाला रावण के अर्थ में प्रसिद्ध है।
उत्पत्ति के आधार पर शब्द-भेद-
उत्पत्ति के आधार पर शब्द के निम्नलिखित चार भेद हैं-
1. तत्सम- जो शब्द संस्कृत भाषा से हिन्दी में बिना किसी परिवर्तन के ले लिए गए हैं वे तत्सम कहलाते हैं। जैसे-अग्नि, क्षेत्र, वायु, रात्रि, सूर्य आदि।
2. तद्भव- जो शब्द रूप बदलने के बाद संस्कृत से हिन्दी में आए हैं वे तद्भव कहलाते हैं। जैसे-आग (अग्नि), खेत(क्षेत्र), रात (रात्रि), सूरज (सूर्य) आदि।
3. देशज- जो शब्द क्षेत्रीय प्रभाव के कारण परिस्थिति व आवश्यकतानुसार बनकर प्रचलित हो गए हैं वे देशज कहलाते हैं। जैसे-पगड़ी, गाड़ी, थैला, पेट, खटखटाना आदि।
4. विदेशी या विदेशज- विदेशी जातियों के संपर्क से उनकी भाषा के बहुत से शब्द हिन्दी में प्रयुक्त होने लगे हैं। ऐसे शब्द विदेशी अथवा विदेशज कहलाते हैं। जैसे-स्कूल, अनार, आम, कैंची,अचार, पुलिस, टेलीफोन, रिक्शा आदि। ऐसे कुछ विदेशी शब्दों की सूची नीचे दी जा रही है।
अंग्रेजी- कॉलेज, पैंसिल, रेडियो, टेलीविजन, डॉक्टर, लैटरबक्स, पैन, टिकट, मशीन, सिगरेट, साइकिल, बोतल आदि।
फारसी- अनार,चश्मा, जमींदार, दुकान, दरबार, नमक, नमूना, बीमार, बरफ, रूमाल, आदमी, चुगलखोर, गंदगी, चापलूसी आदि।
अरबी- औलाद, अमीर, कत्ल, कलम, कानून, खत, फकीर, रिश्वत, औरत, कैदी, मालिक, गरीब आदि।
तुर्की- कैंची, चाकू, तोप, बारूद, लाश, दारोगा, बहादुर आदि।
पुर्तगाली- अचार, आलपीन, कारतूस, गमला, चाबी, तिजोरी, तौलिया, फीता, साबुन, तंबाकू, कॉफी, कमीज आदि।
फ्रांसीसी- पुलिस, कार्टून, इंजीनियर, कर्फ्यू, बिगुल आदि।
चीनी- तूफान, लीची, चाय, पटाखा आदि।
यूनानी- टेलीफोन, टेलीग्राफ, ऐटम, डेल्टा आदि।
जापानी- रिक्शा आदि।
प्रयोग के आधार पर शब्द-भेद
प्रयोग के आधार पर शब्द के निम्नलिखित आठ भेद है-
1. संज्ञा
2. सर्वनाम
3. विशेषण
4. क्रिया
5. क्रिया-विशेषण
6. संबंधबोधक
7. समुच्चयबोधक
8. विस्मयादिबोधक
इन उपर्युक्त आठ प्रकार के शब्दों को भी विकार की दृष्टि से दो भागों में बाँटा जा सकता है-
1. विकारी 2. अविकारी
1.विकारी शब्द-
जिन शब्दों का रूप-परिवर्तन होता रहता है वे विकारी शब्द कहलाते हैं। जैसे-कुत्ता, कुत्ते, कुत्तों, मैं मुझे,हमें अच्छा, अच्छे खाता है, खाती है, खाते हैं। इनमें संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया विकारी शब्द हैं।
2.अविकारी शब्द-
जिन शब्दों के रूप में कभी कोई परिवर्तन नहीं होता है वे अविकारी शब्द कहलाते हैं। जैसे-यहाँ, किन्तु, नित्य, और, हे अरे आदि। इनमें क्रिया-विशेषण, संबंधबोधक, समुच्चयबोधक और विस्मयादिबोधक आदि हैं।
अर्थ की दृष्टि से शब्द-भेद
अर्थ की दृष्टि से शब्द के दो भेद हैं-
1. सार्थक
2. निरर्थक
1.सार्थक शब्द-
जिन शब्दों का कुछ-न-कुछ अर्थ हो वे शब्द सार्थक शब्द कहलाते हैं। जैसे-रोटी, पानी, ममता, डंडा आदि।
2.निरर्थक शब्द-
जिन शब्दों का कोई अर्थ नहीं होता है वे शब्द निरर्थक कहलाते हैं। जैसे-रोटी-वोटी, पानी-वानी, डंडा-वंडा इनमें वोटी, वानी, वंडा आदि निरर्थक शब्द हैं।
विशेष- निरर्थक शब्दों पर व्याकरण में कोई विचार नहीं किया जाता है।
पद-विचार सार्थक वर्ण-समूह शब्द कहलाता है, पर जब इसका प्रयोग वाक्य में होता है तो वह स्वतंत्र नहीं रहता बल्कि व्याकरण के नियमों में बँध जाता है और प्रायः इसका रूप भी बदल जाता है। जब कोई शब्द वाक्य में प्रयुक्त होता है तो उसे शब्द न कहकर पद कहा जाता है।
हिन्दी में पद पाँच प्रकार के होते हैं-
1. संज्ञा
2. सर्वनाम3. विशेषण
4. क्रिया
5. अव्यय
1.संज्ञा-
किसी व्यक्ति, स्थान, वस्तु आदि तथा नाम के गुण, धर्म, स्वभाव का बोध कराने वाले शब्द संज्ञा कहलाते हैं। जैसे-श्याम, आम, मिठास, हाथी आदि।
संज्ञा के प्रकार-
संज्ञा के तीन भेद हैं-
1. व्यक्तिवाचक संज्ञा।
2. जातिवाचक संज्ञा।
3. भाववाचक संज्ञा।
1.व्यक्तिवाचक संज्ञा-
जिस संज्ञा शब्द से किसी विशेष, व्यक्ति, प्राणी, वस्तु अथवा स्थान का बोध हो उसे व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे-जयप्रकाश नारायण, श्रीकृष्ण, रामायण, ताजमहल, कुतुबमीनार, लालकिला हिमालय आदि।
2.जातिवाचक संज्ञा-
जिस संज्ञा शब्द से उसकी संपूर्ण जाति का बोध हो उसे जातिवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे-मनुष्य, नदी, नगर, पर्वत, पशु, पक्षी, लड़का, कुत्ता, गाय, घोड़ा, भैंस, बकरी, नारी, गाँव आदि।
3.भाववाचक संज्ञा-
जिस संज्ञा शब्द से पदार्थों की अवस्था, गुण-दोष, धर्म आदि का बोध हो उसे भाववाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे-बुढ़ापा, मिठास, बचपन, मोटापा, चढ़ाई, थकावट आदि।
विशेष- कुछ विद्वान अंग्रेजी व्याकरण के प्रभाव के कारण संज्ञा शब्द के दो भेद और बतलाते हैं-
1. समुदायवाचक संज्ञा।
2. द्रव्यवाचक संज्ञा।
1.समुदायवाचक संज्ञा-
जिन संज्ञा शब्दों से व्यक्तियों, वस्तुओं आदि के समूह का बोध हो उन्हें समुदायवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे-सभा, कक्षा, सेना, भीड़, पुस्तकालय, दल आदि।
2.द्रव्यवाचक संज्ञा-
जिन संज्ञा-शब्दों से किसी धातु, द्रव्य आदि पदार्थों का बोध हो उन्हें द्रव्यवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे-घी, तेल, सोना, चाँदी,पीतल, चावल, गेहूँ, कोयला, लोहा आदि। इस प्रकार संज्ञा के पाँच भेद हो गए, किन्तु अनेक विद्वान समुदायवाचक और द्रव्यवाचक संज्ञाओं को जातिवाचक संज्ञा के अंतर्गत ही मानते हैं, और यही उचित भी प्रतीत होता है।
भाववाचक संज्ञा -
भाववाचक संज्ञाएँ चार प्रकार के शब्दों से बनती हैं। जैसे-
1.जातिवाचक संज्ञाओं से-
दास दासता
पंडित पांडित्य
बंधु बंधुत्व
क्षत्रिय क्षत्रियत्व
पुरुष पुरुषत्वप्रभु प्रभुता
पशु पशुता,पशुत्व
ब्राह्मण ब्राह्मणत्व
मित्र मित्रता
बालक बालकपन
बच्चा बचपन
नारी नारीत्व
2.सर्वनाम से-
अपना अपनापन, अपनत्व निज निजत्व,निजतापराया परायापन
स्व स्वत्व
सर्व सर्वस्व
अहं अहंकार
मम ममत्व,ममता
3.विशेषण से-
मीठा मिठास
चतुर चातुर्य, चतुराई
मधुर माधुर्य
सुंदर सौंदर्य, सुंदरतानिर्बल निर्बलता सफेद सफेदी
हरा हरियाली
सफल सफलता
प्रवीण प्रवीणता
मैला मैल
निपुण निपुणता
खट्टा खटास
4.क्रिया से-
खेलना खेल
थकना थकावट
लिखना लेख, लिखाईहँसना हँसी
लेना-देना लेन-देन
पढ़ना पढ़ाई
मिलना मेल
चढ़ना चढ़ाई
मुसकाना मुसकान
कमाना कमाई
उतरना उतराई
उड़ना उड़ान
रहना-सहना रहन-सहन
देखना-भालना देख-भाल
विशेषण
संपादित करेंशब्द वर्णों या अक्षरों के सार्थक समूह को कहते हैं।
- उदाहरण के लिए क, म तथा ल के मेल से 'कमल' बनता है जो एक खास किस्म के फूल का बोध कराता है। अतः 'कमल' एक शब्द है
- कमल की ही तरह 'लकम' भी इन्हीं तीन अक्षरों का समूह है किंतु यह किसी अर्थ का बोध नहीं कराता है। इसलिए यह शब्द नहीं है।
व्याकरण के अनुसार शब्द दो प्रकार के होते हैं- विकारी और अविकारी या अव्यय। विकारी शब्दों को चार भागों में बाँटा गया है- संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया। अविकारी शब्द या अव्यय भी चार प्रकार के होते हैं- क्रिया विशेषण, संबन्ध बोधक, संयोजक और विस्मयादि बोधक इस प्रकार सब मिलाकर निम्नलिखित 8 प्रकार के शब्द-भेद होते हैं:
संज्ञा
संपादित करेंकिसी भी स्थान, व्यक्ति, वस्तु आदि का नाम बताने वाले शब्द को संज्ञा कहते हैं। उदाहरण -
- राम, भारत, हिमालय, गंगा, मेज़, कुर्सी, बिस्तर, चादर, शेर, भालू, साँप, बिच्छू आदि
संज्ञा के भेद-
संज्ञा के कुल 5 भेद बताये गए हैं-
- व्यक्तिवाचक: राम, भारत, सूर्य आदि।
- जातिवाचक: बकरी, पहाड़, कंप्यूटर आदि।
- समूह वाचक: कक्षा, बारात, भीड़, झुंड आदि।
- द्रव्यवाचक: पानी, लोहा, मिट्टी, खाद या उर्वरक आदि।
- भाववाचक : ममता, बुढापा आदि।
सर्वनाम
संपादित करेंसंज्ञा के बदले में आने वाले शब्द को सर्वनाम कहते हैं। उदाहरण -
- मैं, तुम, आप, वह, वे आदि।
संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले शब्द को सर्वनाम कहते है। संज्ञा की पुनरुक्ति न करने के लिए सर्वनाम का प्रयोग किया जाता है। जैसे - मैं, तू, तुम, आप, वह, वे आदि।
- सर्वनाम सार्थक शब्दों के आठ भेदों में एक भेद है।
- व्याकरण में सर्वनाम एक विकारी शब्द है।
सर्वनाम के भेद
सर्वनाम के छह प्रकार के भेद हैं-
- पुरुषवाचक (व्यक्तिवाचक) सर्वनाम।
- निश्चयवाचक सर्वनाम।
- अनिश्चयवाचक सर्वनाम।
- संबन्धवाचक सर्वनाम।
- प्रश्नवाचक सर्वनाम।
- निजवाचक सर्वनाम।
पुरुषवाचक सर्वनाम
जिस सर्वनाम का प्रयोग वक्ता या लेखक द्वारा स्वयं अपने लिए अथवा किसी अन्य के लिए किया जाता है, वह 'पुरुषवाचक (व्यक्तिवाचक्) सर्वनाम' कहलाता है। पुरुषवाचक (व्यक्तिवाचक) सर्वनाम तीन प्रकार के होते हैं-
- उत्तम पुरुषवाचक सर्वनाम- जिस सर्वनाम का प्रयोग बोलने वाला स्वयं के लिए करता है, उसे उत्तम पुरुषवाचक सर्वनाम कहा जाता है। जैसे - मैं, हम, मुझे, हमारा आदि।
- मध्यम पुरुषवाचक सर्वनाम- जिस सर्वनाम का प्रयोग बोलने वाला श्रोता के लिए करे, उसे मध्यम पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे - तुम, तुझे, तुम्हारा आदि।
- अन्य पुरुषवाचक सर्वनाम- जिस सर्वनाम का प्रयोग बोलने वाला श्रोता के अतिरिक्त किसी अन्य पुरुष के लिए करे, उसे अन्य पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे- वह, वे, उसने, यह, ये, इसने, आदि।
निश्चयवाचक सर्वनाम
जो (शब्द) सर्वनाम किसी व्यक्ति, वस्तु आदि की ओर निश्चयपूर्वक संकेत करें वे निश्चयवाचक सर्वनाम कहलाते हैं। जैसे- ‘यह’, ‘वह’, ‘वे’ सर्वनाम शब्द किसी विशेष व्यक्ति का निश्चयपूर्वक बोध करा रहे हैं, अतः ये निश्चयवाचक सर्वनाम हैं।
उदाहरण-
- यह पुस्तक सोनी की है
- ये पुस्तकें रानी की हैं।
- वह सड़क पर कौन आ रहा है।
- वे सड़क पर कौन आ रहे हैं।
अनिश्चयवाचक सर्वनाम
जिन सर्वनाम शब्दों के द्वारा किसी निश्चित व्यक्ति अथवा वस्तु का बोध न हो वे अनिश्चयवाचक सर्वनाम कहलाते हैं। जैसे- ‘कोई’ और ‘कुछ’ आदि सर्वनाम शब्द। इनसे किसी विशेष व्यक्ति अथवा वस्तु का निश्चय नहीं हो रहा है। अतः ऐसे शब्द अनिश्चयवाचक सर्वनाम कहलाते हैं।
उदाहरण-
- द्वार पर कोई खड़ा है।
- कुछ पत्र देख लिए गए हैं और कुछ देखने हैं।
संबन्धवाचक सर्वनाम
परस्पर सबन्ध बतलाने के लिए जिन सर्वनामों का प्रयोग होता है उन्हें संबन्धवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे- ‘जो’, ‘वह’, ‘जिसकी’, ‘उसकी’, ‘जैसा’, ‘वैसा’ आदि।
उदाहरण-
- जो सोएगा, सो खोएगा; जो जागेगा, सो पावेगा।
- जैसी करनी, तैसी पार उतरनी।
प्रश्नवाचक सर्वनाम
जो सर्वनाम संज्ञा शब्दों के स्थान पर भी आते है और वाक्य को प्रश्नवाचक भी बनाते हैं, वे प्रश्नवाचक सर्वनाम कहलाते हैं। जैसे- क्या, कौन आदि।
उदाहरण-
- तुम्हारे घर कौन आया है?
- दिल्ली से क्या मँगाना है?
निजवाचक सर्वनाम
जहाँ स्वयं के लिए ‘आप’, ‘अपना’ अथवा ‘अपने’, ‘आप’ शब्द का प्रयोग हो वहाँ निजवाचक सर्वनाम होता है। इनमें ‘अपना’ और ‘आप’ शब्द उत्तम, पुरुष मध्यम पुरुष और अन्य पुरुष के (स्वयं का) अपने आप का ज्ञान करा रहे शब्द हें जिन्हें निजवाचक सर्वनाम कहते हैं।
विशेष-
जहाँ ‘आप’ शब्द का प्रयोग श्रोता के लिए हो वहाँ यह आदर-सूचक मध्यम पुरुष होता है और जहाँ ‘आप’ शब्द का प्रयोग अपने लिए हो वहाँ निजवाचक होता है।
उदाहरण-
- राम अपने दादा को समझाता है।
- श्यामा आप ही दिल्ली चली गई।
- राधा अपनी सहेली के घर गई है।
- सीता ने अपना मकान बेच दिया है।
सर्वनाम शब्दों के विशेष प्रयोग
- आप, वे, ये, हम, तुम शब्द बहुवचन के रूप में हैं, किन्तु आदर प्रकट करने के लिए इनका प्रयोग एक व्यक्ति के लिए भी किया जाता है।
- ‘आप’ शब्द स्वयं के अर्थ में भी प्रयुक्त हो जाता है। जैसे- मैं यह कार्
विशेषण
संपादित करेंसंज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताने वाले शब्द को विशेषण कहते हैं। उदाहरण -
- 'हिमालय एक विशाल पर्वत है।' यहाँ "विशाल" शब्द "हिमालय" की विशेषता बताता है इसलिए वह विशेषण है।
विशेषण के भेद 1,संख्यावाचक विशेषण
- दस लड्डू चाहिए।
2,परिमाणवाचक विशेषण
- एक किलो चीनी दीजिए।
3,गुणवाचक विशेषण
- हिमालय विशाल पर्वत है
4,सार्वनामिक विशेषण
- कमला मेरी बहन है।
क्रिया
संपादित करेंकार्य का बोध कराने वाले शब्द को क्रिया कहते हैं। उदाहरण -
- आना, जाना,नाचना,खाना,घूमना,सोचना,देना,लेना,समझना,करना,बजाना,झपटना,पढना,उठाना,सुनाना,लगाना,दिखाना,पीना,होना,धोना,जागना,बतियाना,फटकारा, हथियाने, लगाना, पढ़ना, लिखना, रोना, हंसना, गाना आदि।
क्रियाएं दो प्रकार की होतीं हैं-
- सकर्मक क्रिया|
- अकर्मक क्रिया।
सकर्मक क्रिया: जिस क्रिया में कोई कर्म (ऑब्जेक्ट) होता है उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं। उदाहरण - खाना, पीना, लिखना आदि।
बन्दर केला खाता है। इस वाक्य में 'क्या' का उत्तर 'केला' है।
अकर्मक क्रिया: इसमें कोई कर्म नहीं होता। उदाहरण - हंसना, रोना आदि। बच्चा रोता है। इस वाक्य में 'क्या' का उत्तर उपलब्ध नहीं है।
क्रिया का लिंग एवं काल:
क्रिया का लिंग कर्ता के लिंग के अनुसार होता है। उदाहरण - रोना : लड़का रोता है। लड़की रोती है। लड़का रोता था। लड़की रोती थी। लड़का रोएगा। लडकी रोएगी।
- मुख्य क्रिया के साथ आकर काम के होने या किए जाने का बोध कराने वाली क्रियाएं सहायक क्रियाएं कहलाती हैं। जैसे - है, था, गा, होंगे आदि शब्द सहायक क्रियाएँ हैं।
सहायक क्रिया के प्रयोग से वाक्य का अर्थ और अधिक स्पष्ट हो जाता है। इससे वाक्य के काल का तथा कार्य के जारी होने, पूर्ण हो चुकने अथवा आरंभ न होने कि स्थिति का भी पता चलता है। उदाहरण - कुत्ता भौंक रहा है। (वर्तमान काल जारी)। कुत्ता भौंक चुका होगा। (भविष्य काल पूर्ण)।
क्रिया विशेषण
संपादित करेंकिसी भी क्रिया की विशेषता बताने वाले शब्द को क्रिया विशेषण कहते हैं। उदाहरण -
- 'मोहन मुरली की अपेक्षा कम पढ़ता है।' यहाँ "कम" शब्द "पढ़ने" (क्रिया) की विशेषता बताता है इसलिए वह क्रिया विशेषण है।
- 'मोहन बहुत तेज़ चलता है।' यहाँ "बहुत" शब्द "चलना" (क्रिया) की विशेषता बताता है इसलिए यह क्रिया विशेषण है।
- 'मोहन मुरली की अपेक्षा बहुत कम पढ़ता है।' यहाँ "बहुत" शब्द "कम" (क्रिया विशेषण) की विशेषता बताता है इसलिए वह क्रिया विशेषण है।
क्रिया विशेषण के भेद:
- 1. रीतिवाचक क्रिया विशेषण : मोहन ने अचानक कहा।
- 2. कालवाचक क्रिया विशेषण :' मोहन ने कल कहा था।
- 3. स्थानवाचक क्रिया विशेषण : मोहन यहाँ आया था।
- 4. परिमाणवाचक क्रिया विशेषण : मोहन कम बोलता है।
समुच्चय बोधक
संपादित करेंदो शब्दों या वाक्यों को जोड़ने वाले संयोजक शब्द को समुच्चय बोधक कहते हैं। उदाहरण -
- 'मोहन और सोहन एक ही शाला में पढ़ते हैं।' यहाँ "और" शब्द "मोहन" तथा "सोहन" को आपस में जोड़ता है इसलिए यह संयोजक है।
- 'मोहन या सोहन में से कोई एक ही कक्षा कप्तान बनेगा।' यहाँ "या" शब्द "मोहन" तथा "सोहन" को आपस में जोड़ता है इसलिए यह संयोजक है।
विस्मयादि बोधक
संपादित करेंविस्मय प्रकट करने वाले शब्द को विस्मायादिबोधक कहते हैं। उदाहरण -
- अरे! मैं तो भूल ही गया था कि आज मेरा जन्म दिन है। यहाँ "अरे" शब्द से विस्मय का बोध होता है अतः यह विस्मयादिबोधक है।[6]
पुरुष
संपादित करेंएकवचन | बहुवचन | |
---|---|---|
उत्तम पुरुष | मैं | हम |
मध्यम पुरुष | तुम | तुम लोग / तुम सब |
अन्य पुरुष | यह | ये |
वह | वे / वे लोग | |
आप | आप लोग / आप सब |
हिन्दी में तीन पुरुष होते हैं-
- उत्तम पुरुष- मैं, हम
- मध्यम पुरुष - तुम, आप
- अन्य पुरुष- वह, राम आदि
उत्तम पुरुष में मैं और हम शब्द का प्रयोग होता है, जिसमें हम का प्रयोग एकवचन और बहुवचन दोनों के रूप में होता है। इस प्रकार हम उत्तम पुरुष एकवचन भी है और बहुवचन भी है।
मिसाल के तौर पर यदि ऐसा कहा जाए कि "हम सब भारतवासी हैं", तो यहाँ हम बहुवचन है और अगर ऐसा लिखा जाए कि "हम विद्युत के कार्य में निपुण हैं", तो यहाँ हम एकवचन के रूप में भी है और बहुवचन के रूप में भी है। हमको सिर्फ़ तुमसे प्यार है - इस वाक्य में देखें तो, "हम" एकवचन के रूप में प्रयुक्त हुआ है।
वक्ता अपने आपको मान देने के लिए भी एकवचन के रूप में हम का प्रयोग करते हैं। लेखक भी कई बार अपने बारे में कहने के लिए हम शब्द का प्रयोग एकवचन के रूप में अपने लेख में करते हैं। इस प्रकार हम एक एकवचन के रूप में मानवाचक सर्वनाम भी है।
वचन
संपादित करेंहिन्दी में दो वचन होते हैं:
- एकवचन- जैसे राम, मैं, काला, आदि एकवचन में हैं।
- बहुवचन- हम लोग, वे लोग, सारे प्राणी, पेड़ों आदि बहुवचन में हैं।
लिंग
संपादित करेंहिन्दी में सिर्फ़ दो ही लिंग होते हैं: स्त्रीलिंग और पुल्लिंग। कोई वस्तु या जानवर या वनस्पति या भाववाचक संज्ञा स्त्रीलिंग है या पुल्लिंग, इसका ज्ञान अभ्यास से होता है। कभी-कभी संज्ञा के अन्त-स्वर से भी इसका पता चल जाता है।
- पुल्लिंग- पुरुष जाति के लिए प्रयुक्त शब्द पुल्लिंग में कहे जाते हैं। जैसे - अजय, बैल, जाता है आदि
- स्त्रीलिंग- स्त्री जाति के बोधक शब्द जैसे- निर्मला, चींटी, पहाड़ी, खेलती है, काली बकरी दूध देती है आदि।
कारक
संपादित करें८ कारक होते हैं।
- कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, संबन्ध, अधिकरण, संबोधन।
किसी भी वाक्य के सभी शब्दों को इन्हीं ८ कारकों में वर्गीकृत किया जा सकता है। उदाहरण- राम ने अमरूद खाया। यहाँ 'राम' कर्ता है, 'खाना' कर्म है।[7]
दो वस्तुओं के मध्य संबन्ध बताने वाले शब्द को संबन्धकारक कहते हैं। उदाहरण -
- 'यह मोहन की पुस्तक है।' यहाँ "की" शब्द "मोहन" और "पुस्तक" में संबन्ध बताता है इसलिए यह संबन्धकारक है।
उपसर्ग
संपादित करेंवे शब्द जो किसी दूसरे शब्द के आरम्भ में लगाये जाते हैं। इनके लगाने से शब्दों के अर्थ परिवर्तन या विशिष्टता आ सकती है। प्र+ मोद = प्रमोद, सु + शील = सुशील
उपसर्ग प्रकृति से परतंत्र होते हैं। उपसर्ग चार प्रकार के होते हैं -
- संस्कृत से आए हुए उपसर्ग,
- कुछ अव्यय जो उपसर्गों की तरह प्रयुक्त होते है,
- हिन्दी के अपने उपसर्ग (तद्भव),
- विदेशी भाषा से आए हुए उपसर्ग।
प्रत्यय
संपादित करेंवे शब्द जो किसी शब्द के अन्त में जोड़े जाते हैं, उन्हें प्रत्यय (प्रति + अय = बाद में आने वाला) कहते हैं। जैसे- गाड़ी + वान = गाड़ीवान, अपना + पन = अपनापन
संधि
संपादित करेंदो शब्दों के पास-पास होने पर उनको जोड़ देने को सन्धि कहते हैं। जैसे- सूर्य + उदय = सूर्योदय, अति + आवश्यक = अत्यावश्यक, संन्यासी = सम् + न्यासी, रवि + इन्द्र = रवीन्द्र
समास
संपादित करेंदो शब्द आपस में मिलकर एक समस्त पद की रचना करते हैं। जैसे-राज+पुत्र = राजपुत्र, छोटे+बड़े = छोटे-बड़े आदि
समास छ: होते हैं:
द्वन्द, द्विगु, तत्पुरुष, कर्मधारय, अव्ययीभाव और बहुब्रीहि
वाक्य विचार
संपादित करेंवाक्य विचार हिंदी व्याकरण का तीसरा खंड है जिसमें वाक्य की परिभाषा, भेद-उपभेद, संरचना आदि से संबंधित नियमों पर विचार किया जाता है।
वाक्य
संपादित करेंशब्दों के समूह को जिसका पूरा पूरा अर्थ निकलता है, वाक्य कहते हैं। वाक्य के दो अनिवार्य तत्त्व होते हैं-
- उद्देश्य और
- विधेय
जिसके बारे में बात की जाय उसे उद्देश्य कहते हैं और जो बात की जाय उसे विधेय कहते हैं। उदाहरण के लिए मोहन प्रयाग में रहता है। इसमें उद्देश्य- मोहन है और विधेय है- प्रयाग में रहता है। वाक्य भेद दो प्रकार से किए जा सकते हँ-
- अर्थ के आधार पर वाक्य भेद
- रचना के आधार पर वाक्य भेद
अर्थ के आधार पर आठ प्रकार के वाक्य होते हँ-
१-विधान वाचक वाक्य, २- निषेधवाचक वाक्य, ३- प्रश्नवाचक वाक्य, ४- विस्म्यादिवाचक वाक्य, ५- आज्ञावाचक वाक्य, ६- इच्छावाचक वाक्य, ७- संदेहवाचक वाक्य।
काल
संपादित करेंवाक्य तीन काल में से किसी एक में हो सकते हैं:
- वर्तमान काल जैसे मैं खेलने जा रहा हूँ।
- भूतकाल जैसे 'जय हिन्द' का नारा नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने दिया था और
- भविष्य काल जैसे अगले मंगलवार को मैं नानी के घर जाउँगा।
- वर्तमान काल के तीन भेद होते हैं- सामान्य वर्तमान काल, संदिग्ध वर्तमानकाल तथा अपूर्ण वर्तमान काल।
- भूतकाल के भी छे भेद होते हैं समान्य भूत, आसन्न भूत, पूर्ण भूत, अपूर्ण भूत, संदिग्ध भूत और हेतुमद भूत।
- भविष्य काल के दो भेद होते हैं- सामान्य भविष्यकाल और संभाव्य भविष्यकाल।
पदबंध
संपादित करेंपदबंध दो शब्दो का संयोजन हैं "पद + बंध।
पदबंध जानने से पहले ये जानना ज़रूरी है कि पद या पद परिचय क्या है
(पद: जिस शब्द का पुरा व्याकरण की परिचय देना होता है जैसे शब्द का वचन क्या है , लिंग क्या है , क्रिया है या फिर क्रिया विशेषण , संज्ञा शब्द हैं या फिर सर्वनाम शब्द है आदि की पुरी जानकारी दे उसे पद कहते है।
छन्द विचार
संपादित करेंछन्द विचार हिंदी व्याकरण का चौथा खंड है जिसके अंतर्गत वाक्य के साहित्यिक रूप में प्रयुक्त होने से संबंधित विषयों वर विचार किया जाता है। इसमें छंद की परिभाषा, प्रकार आदि पर विचार किया जाता है।
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ Kachru, Yamuna (1980). Aspects of Hindi grammar (अंग्रेज़ी में). Manohar. अभिगमन तिथि 14 जुलाई 2018.
- ↑ Jain, Usha R. (1995). Introduction to Hindi Grammar (अंग्रेज़ी में). Centers for South and Southeast Asia Studies, University of California. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780944613252. अभिगमन तिथि 14 जुलाई 2018.
- ↑ Masica, Colin P. The Indo-Aryan languages. Cambridge: Cambridge University Press. पृ॰ 110. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-521-29944-2.
- ↑ Shapiro, Michael C. A Primer of modern standard Hindi (1st संस्करण). Delhi: Motilal Banarsidass. पृ॰ 258. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-208-0475-9.
- ↑ Ohala. Handbook of the International Phonetic Association : a guide to the use of the International Phonetic Alphabet. Cambridge, U.K.: Cambridge University Press. पृ॰ 102. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780521637510.
- ↑ Saptasindhu. 1975. अभिगमन तिथि 14 जुलाई 2018.
- ↑ Vajpeyi, Kishoridas (2008). पं. किशोरीदास वाजपेयी ग्रन्थावली. Vāṇī Prakāśana. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788181436856. अभिगमन तिथि 14 जुलाई 2018.
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- सुबोध हिन्दी व्याकरण (हिन्दी विकिबुक्स)
- हिन्दी शिक्षण (१९८७) - लेखक : जय नारायण कौशिक
- सामान्य हिन्दी (लेखक - डॉ विजयपाल सिंह ; हिन्दी प्रचारक संस्थान)
- Modern Hindi Grammar (ओंकार नाथ कौल)