हर्बलिज्म (जड़ी-बूटी चिकित्सा)

वनस्पतीच्या बहुत काम आते हेय

हर्बलिज्म अर्थात जड़ी-बूटी संबंधी सिद्धांत, वनस्पतियों और वनस्पति सारों के उपयोग पर आधारित एक पारंपरिक औषधीय या लोक दवा का अभ्यास है। हर्बलिज्म को वनस्पतिक दवा, चिकित्सकीय वैद्यकी, जड़ी-बूटी औषध, वनस्पति शास्त्र और पादपोपचार के रूप में भी जाना जाता है। जड़ी-बूटी या वानस्पतिक दवा में कभी-कभी फफुंदीय या कवकीय तथा मधुमक्खी उत्पादों, साथ ही खनिज, शंख-सीप और कुछ प्राणी अंगों को भी शामिल कर लिया जाता है।[1] प्राकृतिक स्रोतों से व्युत्पन्न दवाओं के अध्ययन को भेषज-अभिज्ञान (Pharmacognosy) कहते हैं।

दवाओं के पारंपरिक उपयोग को संभावित भावी दवाओं के बारे में सीखने के एक मार्ग के रूप में मान्यता मिली हुई है। 2001 में, शोधकर्ताओं ने मुख्यधारा की दवा के रूप में उपयोग किये जाने वाले ऐसे 122 यौगिकों की पहचान की जिनकी व्युत्पत्ति "एथनोमेडिकल" (नृजाति-चिकित्सा) वनस्पति स्रोतों से हुआ था; इन यौगिकों का 80% उसी या संबंधित तरीके से पारंपरिक नृजाति-चिकित्सा के रूप में उपयोग होता रहा था।[2]

अनेक वनस्पतियां ऐसे सार तत्वों का संश्लेषण करती हैं जो मनुष्य तथा अन्य प्राणियों के स्वास्थ्य के रखरखाव के लिए उपयोगी होते हैं। इनमें सुरभित सार शामिल हैं, जिनके अधिकांश फिनोल (कार्बोनिक एसिड) या उनके ऑक्सीजन-स्थानापन्न व्युत्पादित, जैसे कि टैनिन (वृक्ष की छाल का क्षार), होते हैं। अनेक गौण चयापचयी होते हैं, जिनमे से कम से कम 12,000 अलग-थलग कर दिए गये हैं - अनुमान के अनुसार यह संख्या कुल का 10% से भी कम है। कई मामलों में, एल्कालोइड्स जैसे सार पदार्थ सूक्ष्म जीवों, कीड़े-मकोड़ों और शाकाहारी प्राणियों की लूट-खसोट से पेड़-पौधे के सुरक्षा तंत्र के रूप में काम करते हैं। भोजन को स्वादिष्ट बनाने के लिए मनुष्य द्वारा उपयोग में लाये जाने वाली अनेक जड़ी-बूटी और मसालों में उपयोगी औषधीय यौगिक हुआ करते हैं।[3][4]

डॉक्टर के नुस्खे की दवा की ही तरह, अनेक जड़ी-बूटियों के प्रतिकूल प्रभाव की संभावना रहती है।[5] इसके अलावा, "मिलावट, अनुपयुक्त सूत्रीकरण, या वनस्पति और दवा की अन्तःक्रिया के बारे में समझ की कमी से प्रतिकूल प्रतिक्रियाएं हो सकती हैं जो कभी-कभी जीवन के लिए लिए खतरा या घातक बन सकती हैं".[6].

वैद्यकी (हर्बलिज्म) का मानव विज्ञान

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प्रागैतिहासिक काल से ही रोगों के उपचार के लिए सभी महाद्वीपों के लाखों-करोड़ों लोगों ने स्थानीय अर्थात देसी पेड़-पौधों का इस्तेमाल किया है। पर्वतारोही ओत्ज़ी (Ötzi the Iceman) के व्यक्तिगत प्रभावों में औषधीय जड़ी-बूटियां पायी गयीं, जिनका शरीर 5,300 साल तक स्विस आल्प्स में जमा रहा था। ये जड़ी-बूटियां उनकी आंतों के परजीवियों के इलाज के लिए इस्तेमाल की गयीं लगती हैं। मानवजाति वैज्ञानिकों के अनुसार बीमारी को ठीक करने के लिए प्राणियों ने कड़वी वनस्पतियों के हिस्से के उपयोग की प्रवृत्ति विकसित की.

देसी चिकित्सक अक्सर दावा करते हैं कि उन्होंने बीमार पशुओं को अपनी खाद्य प्राथमिकता में बदलाव लाकर ऎसी कड़वी वनस्पति कुतरते देखकर सीख हासिल की है, जिन्हें वे आम तौर पर नापसंद करते हैं।[7] कार्यक्षेत्र के जीववैज्ञानिकों ने चिंपांज़ी, मुर्गी, भेंड और तितली जैसी विभिन्न प्रकार की प्रजातियों के पर्यवेक्षण के आधार पर इसकी पुष्टि करने वाले प्रमाण पेश किये. तराई गोरिल्ला अफ़रामोमुम मेलेग्वेटा (Aframomum melegueta) के फल से अपने आहार का 90% ग्रहण करते हैं, यह अदरक के पौधे का एक रिश्तेदार पौधा है, जो कि एक शक्तिशाली सूक्ष्मजीवनिवारक है और यह स्पष्टतया शिंगेलोसिस तथा उस जैसे संक्रामकों को दूर रखता है।[8]

ओहिओ वेस्लेयन युनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने पाया कि कुछ पक्षी अपने बच्चों को नुकसानकारी जीवाणुओं से बचाने के लिए सूक्ष्मजीवनिवारक तत्व से भरपूर सामग्री से घोसले बनाया करते हैं।[9]

बीमार पशु टेनिन और एल्कालोइड जैसे गौण चयापचयी से भरपूर पौधों की तलाश किया करते हैं।[10] चूंकि इन पादप रसायनों (phytochemicals) में प्रायः एंटी-वायरल (वाइरसरोधी), एंटी-बैक्टीरियल (जीवाणुनाशक), एंटी-फंगल (कवकरोधी) और एंटी-हेल्मिन्थिक (कृमिरोधी) तत्व हुआ करते है, सो जंगल में रहने वाले पशुओं की आत्म-चिकित्सा के लिए एक विश्वसनीय मामला हो सकता है।[8]

कुछ जानवरों में विशेष पाचन प्रणाली होती है, खासकर कुछ वनस्पतियों के विषैले तत्वों से निपटने के मामले में उनका पाचन तंत्र अनुकूलित होता है। उदाहरण के लिए, कोअला युक्लिप्टस की पत्तियों और शाखाओं पर रह सकते हैं, यह पेड़ अधिकांश प्राणियों के लिए खतरनाक है।[11] कोई पेड़ या पौधा किसी ख़ास पशु के लिए हानिरहित हो भी तो मनुष्यों के खाने के लिए सुरक्षित नहीं भी हो सकता है।[12] एक उचित अनुमान है कि देसी जनजातियों के औषधि से संबंधित लोगों द्वारा इन खोजों का पारंपरिक संग्रह किया गया, जो सुरक्षा की सूचना और सावधानियां अगली पीढयों को बताते गये।

खाद्य-जनक रोगाणुओं के खतरे की प्रतिक्रिया के रूप में भोजन में जड़ी-बूटी तथा मसालों का उपयोग विकसित हुआ। अध्ययनों से पता चलता है कि उष्णकटिबंधीय जलवायु में जहां रोगाणुओं की भरमार होती है, वहां व्यंजन सबसे अधिक मसालेदार होते हैं। इसके अलावा, जो मसाले सबसे अधिक शक्तिशाली सूक्ष्मजीवरोधी होते हैं, उनका चयन किया जाता है।[13] सभी संस्कृतियों में, सब्जियां मांस से कम मसालेदार होती हैं, क्योंकि शायद वे अधिक नुक़सान प्रतिरोधी होती हैं।[14]

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क्यूलिनरी हर्ब्स के प्रोजेक्ट गुटेनबर्ग ईबुक का बोरेज: उनके फसलों की कटाई के संसाधन और उपयोग, एम जी कैन्स द्वारा

लिखित रिकॉर्ड में, जड़ी-बूटियों के अध्ययन का इतिहास 5,000 साल पीछे सुमेरियाइयों तक जाता है, जिन्होंने कल्पवृक्ष (लौरेल), अजमाद और अजवायन जैसे पौधों के सुस्थापित औषधीय उपयोग का वर्णन किया है। 1000 ई.पू. प्राचीन मिस्र की औषधि में लहसून, अफीम, रेंड़ी का तेल, धनिया, पुदीना, नील और अन्य जड़ी बूटियों का उपयोग किया जाता रहा और ओल्ड टेस्टामेंट में मेंड्रेक (विशाखमूल), वेच (मटर जाति), अजमाद, गेहूं, बार्ली और राय सहित जड़ी-बूटियों के इस्तेमाल और खेती का भी उल्लेख है।

भारतीय आयुर्वेद ने हल्दी जैसी जड़ी-बूटी का उपयोग संभवतः ई.पू. 1900 में शुरू किया।[15] आयुर्वेद में प्रयोग की जाने वाली अन्य अनेक जड़ी-बूटियों और खनिजों के बारे में चरक तथा सुश्रुत जैसे प्राचीन आयुर्वेदाचार्यों ने ई.पू. पहली सहस्राब्दी के दौरान वर्णन किया। ई.पू. छठी सदी में सुश्रुत ने सुश्रुत संहिता में 700 औषधीय वनस्पतियों, खनिज से तैयार होने वाली 64 दवाओं और प्राणी स्रोतों से बनने वाली 57 औषधियों का वर्णन किया।[16]

जड़ी-बूटी पर पहली चीनी पुस्तक, शेंनोंग बेंकाओ जिंग, हान राजवंश के दौरान संकलित हुई, लेकिन इसका इतिहास और अधिक पुराना है, संभवतः ई.पू. 2700. इस पुस्तक में 365 औषधीय वनस्पतियों और उनके उपयोग की सूची है, इसमें मा-हुआंग नामक झाड़ी भी शामिल है, जिसने आधुनिक चिकित्सा को एफेड्राइन दवा से परिचय करवाया. 7 वीं सदी में जड़ी-बूटी चिकित्सा पर तांग राजवंश के दौरान एक निबंध याओक्सिंग लुन (औषधीय जड़ी-बूटियों पर लेख) के अनुसार शेंनोंग बेन्काओ जिंग के संवर्धन में पीढियां लग गयीं.

प्राचीन यूनानियों और रोमवासियों ने पौधों का औषधीय उपयोग किया। हिप्पोक्रेट्स और विशेष रूप से गलेन की लेखनी में सुरक्षित यूनानी तथा रोमन औषधीय प्रथाओं ने बाद की पश्चिमी औषधि को पद्धति प्रदान की. हिप्पोक्रेट्स ने तजा हवा, विश्राम और शुद्ध आहार के साथ कुछ सरल जड़ी-बूटी संबंधी दवाओं के उपयोग की सलाह दी. दूसरी ओर, गलेन ने वानस्पतिक, प्राणी तथा खनिज सामग्रियों सहित दवाओं के मिश्रण की बड़ी खुराकों की सिफारिश की. यूनानी चिकित्सक ने औषधीय पौधों के गुणों और उनके उपयोग के बारे में प्रथम यूरोपीय ग्रंथ डी मटेरिया मेडिका को संकलित किया। ई. सं. पहली सदी में, डायोस्कोराइड्स ने 500 से अधिक पौधों के बारे में एक सार-संग्रह लिखा, जो 17वीं सदी में भी एक आधिकारिक सन्दर्भ बना रहा. ई. पू. चौथी सदी में लिखित यूनानी पुस्तक थियोफ्रास्टस' हिस्टोरिया प्लांटारम (Theophrastus’ Historia Plantarum) जिसने वनस्पति विज्ञान की स्थापना की, जड़ी-बूटी शास्त्रियों और वनस्पति वैज्ञानिकों के लिए बाद की सदियों में इसी प्रकार महत्वपूर्ण बनी रही.

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क्यूलिनरी हर्ब्स के प्रोजेक्ट गुटेनबर्ग ईबुक का थाइम: उनके फसलों की कटाई के संसाधन और उपयोग, एम जी कैन्स द्वारा

प्रारंभिक मध्ययुगीन यूरोप में औषधि तथा अन्य प्रयोजनों के लिए पौधों के उपयोग में थोड़ा बदलाव आया। अन्य विषयों की तरह, औषधि पर अनेक यूनानी और रोमन लेखन को हस्तलिखित पांडुलिपियों द्वारा मठों में सुरक्षित रखा गया. इस प्रकार मठ चिकित्सकीय ज्ञान के स्थानीय केंद्र बन गये और उनके जड़ी-बूटी के बगीचों में आम विकारों के इलाज के लिए कच्ची सामग्री मिलने लगी. इसी समय, घरों तथा गांवों में देसी दवाएं निरंतर जारी रहीं, इससे अनेक घुमंतू और आबाद वैद्यों को समर्थन मिलता रहा. इनमें "धूर्त-महिलाएं" भी थीं जो अक्सर मंत्र और टोना-टोटका के साथ जड़ी-बूटियों से उपचार किया करती थीं। मध्य युग के अंतिम दौर में जड़ी-बूटी विद्या की ज्ञानी महिलाओं को डायन उन्माद का निशाना बनाया गया. जड़ी-बूटी संबंधी परंपरा में बहुत ही प्रसिद्ध महिलाओं में एक थीं बिनगेन की हिल्ड़ेगार्ड. बारहवीं शताब्दी की इन एक बेनेडिकटाइन नन ने कौजेज एंड क्योर्स नामक एक चिकित्सा पुस्तक लिखा.

बीमारिस्तान नाम से ख्यात चिकित्सा विद्यालय फारस और अरब देशों के बीच मध्ययुगीन इस्लामी दुनिया में 9वीं सदी से दिखने शुरू हुए, जो उस जमाने के मध्ययुगीन यूरोप की तुलना में कहीं अधिक उन्नत थे। अरब ग्रीको-रोमन संस्कृति तथा ज्ञान का सम्मान किया करते थे और उन्होंने आगे के अध्ययन के लिए दसियों हजार ग्रंथों का अरबी भाषा में अनुवाद किया।[17] व्यापार संस्कृति के कारण, अरब यात्रियों को चीनऔर भारत जैसे दूर देशों से वनस्पति सामग्री लाने की सुविधा थी। जड़ी-बूटियां, चिकित्सा ग्रंथ और कालजयी प्राचीन शास्त्रीय अनुवाद पश्चिम और पूरब से छन-छनकर आते रहे.[18] मुस्लिम वनस्पतिशास्त्रियों और मुस्लिम चिकित्सकों ने मटेरिया मेडिका अर्थात औषध-विवरणी के पहले के ज्ञान का काफी विस्तार किया। उदाहरण के लिए, 9वीं सदी में अल-दिनावारी ने 637 से अधिक वनस्पति औषधियों का वर्णन किया,[19] और इब्न अल-बैतर ने 13वीं सदी में 1400 से अधिक विभिन्न वनस्पतियों, आहारों और औषधियों का वर्णन किया, जिनमें से 300 से अधिक उनकी अपनी मौलिक खोज थी।[20] इब्न अल-बैतर के गुरु अंडालुसियाई-अरब वनस्पतिशास्त्री अबू अल-अब्बास अल-नबाती द्वारा 13वीं सदी में मटेरिया मेडिका के क्षेत्र में प्रयोगात्मक वैज्ञानिक पद्धति का प्रारंभ किया। अनगिनत मटेरिया मेडिका की जांच, वर्णन और पहचान के लिए अल-नाबाती ने अनुभवजन्य तकनीक की शुरुआत की और उन्होंने वास्तविक परीक्षण और निरूपण के जरिये समर्थित औषधियों से असत्यापित को अलग किया। इससे मटेरिया मेडिका का अध्ययन औषध विज्ञान के शास्त्र में विकसित हो पाया।[21]

एविसेना के द कैनन ऑफ़ मेडिसिन (1025) में 800 परीक्षित दवा, पौधे और खनिज सूचीबद्ध हैं।[22] द्वितीय पुस्तक जायफल, सेन्ना, चंदन, रेवाचीनी, हरड, दालचीनी और गुलाबजल सहित जड़ी-बूटियों के चिकित्सकीय गुणों की चर्चा को समर्पित है।[17] अल-अंडलस की तरह 800 और 1400 के बीच बगदाद हर्बलिज्म का एक महत्वपूर्ण केंद्र था। कॉर्डोबा के अबुलकासिस (936-1013) रचित ग्रंथ द बुक ऑफ़ सिम्पल्स बाद के यूरोपीय जड़ी-बूटियों के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है, जबकि मलंगा के इब्न अल-बैतर (1197–1248) रचित ग्रंथ कोर्पस ऑफ़ सिम्पल्स सबसे अधिक संपूर्ण अरब जड़ी-बूटियों से जुड़ा हुआ है, जिसमे इमली, कालकूट और कुचला (नक्स वॉमिका) सहित 200 नए चिकित्सकीय जड़ी-बूटियों से परिचय करवाया गया है।[17][23] अन्य भेषजकोश में 11वीं सदी[उद्धरण चाहिए] में अबू-रेहान बिरूनी और 12वीं सदी (और 1491 में प्रकाशित)[24] में इब्न जुहर (एवेनज़ोअर) द्वारा लिखित ग्रंथ शामिल हैं, मध्य युग के एविसेना के द कैनन ऑफ़ मेडिसिन, स्पेन के पीटर के कमेंटरी ऑन इस्साक और सैंट अमंड के जॉन के कमेंटरी ऑन एंटेडोटरी ऑफ़ निकोलस तक रोग-विषयक औषध विज्ञान के आरंभ का इतिहास है।[25] विशेष रूप से, कैनन ने नैदानिक परीक्षण,[26] अनियमित नियन्त्रित परीक्षण,[27][28] और प्रभावोत्पादक परीक्षणों का प्रारम्भ किया।[29][30]

विश्वविद्यालय प्रणाली के साथ-साथ, लोक औषधि का पनपना जारी रहा. पंद्रहवीं सदी में मुद्रण के आविष्कार के बाद जड़ी-बूटियों से संबंधित सैकड़ों प्रकाशन से मध्य युग के बाद सदियों के लिए जड़ी-बूटियों के महत्व के निरंतर जारी रहने का पता चलता है। सबसे पहले प्रकाशित होने वाली पुस्तकों में एक है थियोफ्रास्ट्स की हिस्टोरिया प्लांटारम, लेकिन डायोस्कोराइड्स की डी मटेरिया मेडिका, एविसेना की कैनन ऑफ़ मेडिसिन और एवेनज़ोअर की फार्मेकोपीया भी बहुत पीछे नहीं रहीं.

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क्यूलिनरी हर्ब्स के प्रोजेक्ट गुटेनबर्ग ईबुक का मार्जोरम: उनके फसलों की कटाई के संसाधन और उपयोग, एम जी कैन्स द्वारा

आधुनिक युग

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पंद्रहवीं, सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दियां जड़ी-बूटियों के लिए महान युग रहीं, उनमें से अनेक लैटिन और यूनानी के बजाय अंग्रेजी तथा अन्य भाषाओँ में सबसे पहले उपलब्ध हुईं. 1526 में, अंग्रेजी में पहली जड़ी-बूटी संबंधी अनाम लेखक की पुस्तक ग्रेटे हर्बल (Grete Herball) प्रकाशित हुई. जॉन गेरार्ड द्वारा लिखित द हर्बल ओर जनरल हिस्ट्री ऑफ़ प्लांट्स (1597) और निकोलस कलपेपर द्वारा लिखित द इंग्लिश फिजिशियन इंलार्ज्ड (1653) अंग्रेजी की सबसे प्रसिद्ध दो जड़ी-बूटी संबंधी पुस्तकें थीं। गेरार्ड की पुस्तक मूल रूप से बेल्जियाई वैद्य या वनस्पतिशास्त्री डोडोएंस की पुस्तक का चोरी से किया गया अनुवाद थी और उनके दृष्टांत एक जर्मन वनस्पति शास्त्रीय कार्य से लिए गये थे। दो भागों के दोषपूर्ण मिलान की वजह से मूल संस्करण में अनेक त्रुटियां रहीं. परंपरागत दवा के साथ ज्योतिष, जादू और लोकगीत के कलपेपर के मिश्रण का उनके ज़माने के वैद्यों-चिकित्सकों द्वारा उपहास किया गया, फिर भी गेरार्ड तथा अन्य वैद्यकीय पुस्तकों की तरह उन्हें भी अभूतपूर्व लोकप्रियता मिली. अन्वेषण के युग और कोलंबियन एक्सचेंज ने यूरोप में नए औषधीय पौधों की शुरुआत की. द बदिआनस मैनुस्क्रिप्ट एक एज़्टेक जड़ी-बूटी संबंधी पुस्तक का 16वीं सदी में लैटिन में किया गया अनुवाद था।

हालांकि, दूसरी सहस्राब्दी ने उपचारात्मक प्रभावों के स्रोतों के रूप में वनस्पतियों द्वारा स्थापित सर्वश्रेष्ठ स्थिति में हल्का क्षरण देखना शुरू किया। काली मौत से इसकी शुरुआत हुई, जिसे रोक पाने में उस समय की चार तत्व (Four Element) चिकित्सा प्रणाली शक्तिहीन साबित हुई. एक शताब्दी बाद, परासेल्सस ने सक्रिय रासायनिक दवाओं (जैसे कि आर्सेनिक, तांबा सल्फेट, लौह, पारा और गंधक) के इस्तेमाल की शुरुआत की. उपदंश (सिफलिस) के तत्काल उपचार की जरुरत को देखते हुए इनके जहरीले प्रभाव के बावजूद इन्हें स्वीकार किया गया. रसायन शास्त्र और अन्य शारीरिक विज्ञानों के तेज विकास से बीसवीं सदी की परंपरागत प्रणाली के रूप में रसायनोपचार - रासायनिक दवा - का दबदबा बढ़ता गया.

आधुनिक मानव समाज में भूमिका

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बोटानिकास, जैसे कि मैसाचुसेट्स के जमैका प्लेन का यह एक, लैटिनो समुदाय को प्रदान करते हैं और संतों की मूर्तियों, प्रार्थना सामग्रियों से सुसज्जित मोमबत्तियों, भाग्यशाली बांस और अन्य वस्तुओं के साथ साथ हर्बल संसाधन और लोक दवा बेचते हैं।

गैर-औद्योगिक समाजों में बीमारी के इलाज के लिए जड़ी बूटियों का उपयोग लगभग असीम है।[31] बीसवीं सदी के अंत में हर्बल औषधि का नित्य प्रयोग बहुत सारी परंपराओं पर हावी हो गया:

  • ग्रीक और रोमन स्रोत पर आधारित "शास्त्रीय" हर्बल चिकित्सा पद्धति
  • विभिन्न दक्षिण एशियाई देशों से सिद्ध और आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति
  • चीनी हर्बल मेडिसीन (चीनी वनस्पति शास्त्र) 中药 (zhōngyào)
  • पारंपरिक अफ्रीकी औषधि
  • यूनानी-हकीम औषधि
  • शामैनिक हर्बलिज्म: दक्षिण अमेरिकी और हिमालय क्षेत्रों से होनेवाली अधिकांशत: आपूर्ति संबंधी सभी सूचना के लिए एक वाक्यांश
  • देशी अमेरिकी औषधि.

मौजूदा समय में चिकित्सकों के लिए उपलब्ध अफीम, एस्पिरिन, डिजिटलिज (हत्पत्री) और कुनैन समेत कई फार्मास्यूटिकल्स (औषधियों) का एक लंबा इतिहास है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का अनुमान है कि मौजूदा समय में दुनिया की 80 प्रतिशत आबादी कुछ हद तक प्राथमिक स्वास्थ्य संबंधी देखभाल के लिए हर्बल दवा का उपयोग करती है।[32] दुनिया की अधिकांश आबादी, जिनमें से आधी प्रति दिन 2 U.S. डॉलर पर अपना गुजारा करती है, के लिए औषधि निषेधात्मक रूप से महंगा है।[31] इसकी तुलना में हर्बल दवाएं बीज से उगायी जा सकती है या थोड़ा खर्च करके या मुफ्त में प्रकृति से इकट्ठा किए जा सकते हैं।

दुनिया के विकासशील देशों में प्रयोग के अलावा, हर्बल औषधियां औद्योगिक देशों में प्राकृतिक चिकित्साशास्त्रियों (naturopaths) जैसे वैकल्पिक औषधियों से चिकित्सका करनेवालों द्वारा प्रयोग किया जाता है। 1998 में ब्रिटेन में जड़ी-बूटी चिकित्सकों पर किए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि उनके द्वारा की सिफारिश की गई बहुत सारी जड़ी बूटियों का पारंपरिक इस्तेमाल किया जाता रहा है, लेकिन नैदानिक परीक्षणों में इनका मूल्यांकन नहीं किया गया है।[33] 2007 में ऑस्ट्रेलिया में किए गए सर्वेक्षण में पाया गया कि इन पश्चिमी जड़-बूटी चिकित्सकों में जड़ी-बूटियों की एकल गोलियां देने के बजाए जड़-बूटियों का तरल हर्बल सम्मिश्रण देने का चलन है।[34]

हाल के वर्षों में, पौधों से प्राप्त की गयीं औषधियों और पूरक आहार का उपयोग और इनके खोज में बहुत तेजी आयी है।‍ औषध विज्ञानी (Pharmacologists) अणुजीव वैज्ञानिक (microbiologists) वनस्पतिशास्त्री (botanists) और प्राकृतिक-उत्पादों के रसायनशास्त्री पृथ्वी भर में पादप रसायन (phytochemical) की तलाश कर रहे हैं, ताकि विभिन्न बीमारियों के इलाज को विकसित किया जा सके. दरअसल, विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, संयुक्त राज्य अमेरिका में इस्तेमाल होनवाली लगभग 25% आधुनिक दवाओं को पौधों से विकसित की गयी हैं।[35]

  • आज व्यापक रूप से उपयोग होनेवाली आधुनिक दवाओं को उच्च पौधों के 120 सक्रिय यौगिकों में से विच्छेदित किया गया है, इनमें से 80 प्रतिशत ने इनके आधुनिक चिकित्साविधान संबंधी (therapeutics) उपयोग और पारंपरिक उपयोग, जिनसे इन्हें विकसित किया है, के बीच सकारात्मक सहसंबंध को सिद्ध किया है।[2]
  • दुनिया भर के पौधों की दो-तिहाई से अधिक प्रजातियां - जिनमें से आनुमानित रूप से कम से कम 35,000 औषधीय गुणों से भरपूर हैं -और ये विकासशील देशों से आते हैं।[verification needed]
  • आधुनिक भेषज कोश (pharmacopoeia) के कम से कम 7,000 चिकित्सकीय यौगिक पौधों से प्राप्त किए गए हैं।[36]

जैविक पृष्ठभूमि

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मधुर बैंगनी रंग का एंथोसायनिन से गाढ़ा लाल, बैंगनी और नीले रंग उत्पन्न होता है।
 
पीत्सेवती के कैरोटिनोइड से चमकदार लाल, पीला और नारंगी रंग उत्पन्न होता है।

सभी पौधे चयापचयी गतिविधियों में अपनी सामान्य भूमिका के रूप में रासायनिक यौगिकों का उत्पादन करते हैं। मनमाने ढंग से ये प्राथमिक चयापचयज, जैसे शर्करा और वसा, सभी पौधों में पाये जाते हैं, में विभाजित होते हैं; गौण चयापचयज, यौगिक बुनियादी कार्य के लिए जरूरी नहीं, कुछ ही पौधों में पाये जाते हैं, इनमें से कुछ जो बहुत उपयोगी होते हैं विशेष जाति या प्रजातियों में पाये जाते हैं। रंजक प्रकाश को कम कर जीव को विकिरण और फूलों के पराग के वाहक कीड़े रंग देखकर आकर्षित होने से रक्षा करते हैं। बहुत सारे आम जंगली पेड़-पौधों जैसे बिछुआ का पेड़ (nettle), सिंहपर्णी (dandelion) और चिकवीड में औषधीय गुण होते हैं।[37][38]

गौण चयापचयियों के विविध कार्य हैं। उदाहरण के लिए, कुछ गौण चयापचयज जहरीले होते हैं, का उपयोग शिकार रोकने के लिए होता है और अन्य फेरोमोन हैं, जिनका इस्तेमाल परागण के लिए कीड़े-मकौड़ों को आकर्षित करने के लिए होते हैं। फाइटोएलेक्सिन (Phytoalexin) बैक्टीरिया और कवक के हमलों से रक्षा करता है। एलेलो रसायन (Allelochemical) प्रतिरोधी पौधों में होते हैं जो मिट्टी और रोशनी के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं।

शाकाहारी पशुओं, पराग वाहक कीड़ों और सूक्ष्मजीवों के स्थानीय सम्मिश्रण के प्रतिक्रियास्वरूप पौधे अपने जैव रासायनिक कार्यप्रणालियों को ऊपर की ओर और नीचे की ओर नियंत्रित करते हैं।[39] किसी एक पौधे का रासायनिक रूपरेखा परिवर्तित स्थिति में प्रतिक्रियास्वरूप समय के साथ अलग-अलग हो सकता है। यह गौण चयापचयज और रंजक हैं, मानव में जिनकी उपचारात्मक प्रक्रिया हो सकती है और जिन्हें औषधियों के उत्पादन के लिए परिष्कृत किया जा सकता है।

पौधे पादप रसायन (phytochemical) का एक विस्मयकारी प्रकार को संश्लेषित करते हैं, लेकिन इनमें से ज्यादातर कुछ गिने-चुने जैव रासायनिक नमूनों के यौगिक पद हैं।

  • नाइट्रोजन के साथ क्षारीय तत्वों का एक वलय होता है। बहुत सारे क्षार तत्व केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर नाटकीय प्रभाव डालते हैं। कैफीन क्षारीय होता है, जो हल्का-सा नशा प्रदान करता है, लेकिन धतूरा बहुत अधिक उन्मत्तता पैदा करता है, यहां तक कि इससे मृत्यु भी हो जाती है।
  • फिनोलिक में फिनोल वलय होते हैं। एंथोसियानिन (Anthocyanins) जो अंगूर को अपना बैंगनी रंग देता है, सोया से आइसोफ्लेवोन (isoflavones), फाइटोएस्ट्रोजन (phytoestrogens) और टैनिन (tannins) जो चाय को कसैलापन देता है, फिनोलिक होते हैं।
  • तारपीन के मूलभूत ब्लॉक्स से तारपिनॉइड्स का निर्माण होता है। प्रत्येक तारपीन में दो तरह के आइसोप्रिन (isoprene) होते हैं। मोनोतारपीन (monoterpene), सेस्क्वीतारपीन (sesquiterpene), डितारपीन (diterpene) और ट्रितारपीन (triterpene) आइसोप्रिन ईकाइयों की संख्या पर आधारित होते हैं। गुलाब और लैवेंडर में खुशबू मोनोतारपीन के कारण होते हैं। कारोटेनॉइड (Carotenoid) कुम्हड़ा, मक्का और टमाटर को नारंगी, पीला और लाल रंग प्रदान करता है।
  • ग्लूकोज से समृद्धि ग्लाइकोसाइड (Glycosides) का आधे हिस्से में एग्लीकोन (aglycone) संलग्न होता है। एग्लीकोन एक अणु है जो अपने आपमें जैवीय प्रतिक्रिया से मुक्त होता है, लेकिन पानी या एंजाइम्स द्वारा तोड़े जाने तक ग्लाइकोसाइड से जुड़ा होता है। इस तंत्र पौधे को उपयुक्त समय में अणु की उपलब्धता को स्थगित रखने की अनुमति देता है, ठीक उसी तरह जैसे एक बंदूक में सुरक्षात्मक लॉक. चेरी में गड्ढ़ा सियानोग्लाइकोसाइड (cyanoglycosides) का एक उदाहरण है जो शाकाहारी पशुओं द्वारा काटे जाने पर विष छोड़ता है।

ड्रग शब्द डच शब्द "ड्रुग" (droog) (फ्रेंच शब्द ड्रोग (Drogue) से होता हुआ) से आया है, जिसका अर्थ 'सूखा पेड़' है। इसके कुछ उदाहरण डालिया के जड़ों से इंयुलिन (inulin), सिनकोना से कुनैन, अफीम से मोरफिन (morphine) और कौडीन (codeine) तथा हत्पत्री (Foxglove) से डिगोक्सिन (digoxin) है।

धुनकी (willow) के छाल में सक्रिय संघटक हिप्पोक्रेट्स द्वारा एक बार नुस्खे में चिरायता (salicin) दिया गया था, जो शरीर में सैलिसिलिक अम्ल में परिवर्तित हो गया. सैलिसिलिक (salicylic) अम्ल की खोज से अंतत: एसिटाइलीकृत प्रकार के एसिटाइल्सैलिसिलिक अम्ल (acetylsalicylic acid) का विकास हो गया, जब यह मेडोस्वीट नाम से जाने जानेवाले पौधों से विच्छेदित किए जाते हैं तब यह "एस्पिरिन" के रूप में जाना जाता है। एस्पिरिन शब्द मेडोस्वीट के लैटिन जाति स्प्रिया का संक्षिप्त रूप से आया, इसके शुरू में एसिटिलीकरण जताने के लिए अतिरिक्त "ए" और अंत में उच्चारण की सुविधा के लिए "इन" जोड़ दिया गया.[40] मूलतया "एस्पिरिन" एक ब्रांड का नाम था और कुछ देशों में अभी भी यह एक ट्रेडमार्क के रूप में संरक्षित है। इस दवा को बायर एजी द्वारा पेटेंट कराया गया था।

हर्बल दर्शन

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दौनी

दवा के रूप में पौधों का उपयोग करने के चार दृष्टिकोण निम्न हैं:

1. जादुई/शामैनिक

लगभग सभी गैर-आधुनिक समाजों में इस तरह के उपयोग को मान्यता दी गयी हैं। इसके चिकित्सकों को उपहार या क्षमता के रूप में यह प्राप्त हुआ है जो उसे ऐसे जड़ी-बूटिर्यों का उपयोग करने की अनुमति देता है जो सामान्य लोगों से गुप्त है और कहा जाता है कि जड़ी-बूटी व्यक्ति के छाया और उसकी आत्मा को प्रभावित करता है।

2. शक्ति

इस दृष्टिकोण में प्रमुख प्रणालियां TCM (टीसीएम), आयुर्वेद और यूनानी शामिल हैं। माना जाता है कि जड़ी बूटियों में उसकी अपनी एक ऊर्जा होती है और ये शरीर की ऊर्जा को प्रभावित करती हैं। . पेशेवरों को व्यापक प्रशिक्षण दिया जा सकता है और आदर्शगत रूप से ऊर्जा के प्रति संवेदनशील होना हो सकता है, लेकिन इसमें किसी अलौकिक शक्तियों की आवश्यकता नहीं है।

3. कार्यात्मक गतिशीलता

यह दृष्टिकोण का प्रयोग शारीरिक (physiomedical) चिकित्सकों द्वारा किया जाता है, जिसका सिद्धांत UK. में समकालीन अभ्यास पर आधारित है। जड़ी बूटी में एक कार्यात्मक प्रक्रिया होती है, जो जरूरी नहीं कि कायिक यौगिक से जुड़ा हो, हालांकि अक्सर इसकी एक मानसिक क्रिया से जुड़ा होता है, लेकिन इसमें ऊर्जा से जुड़ी अवधारणाओं का सुनिश्चित अलंबन नहीं होता है।

4. रासायनिक

आधुनिक चिकित्सक - जो फाइटोथेरापिस्ट (Phytotherapist) कहलाते हैं - जड़ी-बूटियों की प्रक्रिया को इसके रासायनिक घटक के साथ व्याख्या करने की कोशिश करते है। आमतौर पर यह माना जाता है कि पौधों में सहक्रियता (synergy) की अवधारणा कहलाती है, जो गौण चयापचयजों का विशिष्ट संयोजन से होनेवाली गतिविधियों या प्रदर्शन के लिए जिम्मेदार हैं।

ज्यादातर आधुनिक वैद्य मानते हैं कि आपात स्थितियों में जहां समय मायने रखता है भेषज (फार्मास्यूटिकल्स) प्रभावी होता हैं। इसका उदाहरण वहां हो सकता है, जहां किसी मरीज को एक दिल का बड़ा दौरा पड़ा हो, जिसमें जान को खतरा है। बहरहाल उनका दावा है कि मरीज की बीमारी को रोकने में जड़ी-बूटियां लंबी अवधि में मददगार हो सकती है और इसके अलावा, ये पोषण और प्रतिरोधक क्षमता भी प्रदान करती हैं, भेषज में जिसकी अभाव होता है। वे अपना लक्ष्य को इलाज के साथ-साथ बीमारी की रोकथाम में देखते हैं।

वैद्य (वैद्य) पौधों के विभिन्न हिस्सों, जैसे जड़ और पत्तों से निकाले गए अर्क का उपयोग करते हैं, लेकिन कोई विशेष पादप रसायन (phytochemicals) विच्छेदित नहीं करते.[41] भेषज दवा का आधार एकल उपादान के पक्ष में होता है जिसका खुराक कहीं अधिक आसानी से परिमाण निर्धारित कर सकता है। एकल यौगिकों का पेटेंट कराना भी संभव है, ताकि पैसे कमाया जाए. आमतौर पर वैद्य एकल सक्रिय संघटक की अवधारणा को खारिज कर देते हैं, उनका तर्क यह है कि जड़ी बूटियों में विभिन्न तरह के पादप रसायन (phytochemicals) विद्यमान होते हैं जो परस्पर को प्रभावित कर उपचारात्मक प्रभाव में वृद्धि करते हैं और इसकी विषाक्तता को कम करते हैं।[42] इसके अलावा, उनका तर्क है कि एक एकल उपादान विभिन्न तरह के प्रभावों को पैदा कर सकता है। वैद्य इससे इंकार करते हैं कि हर्बल की योगवाहिता (synergism) कृत्रिम रसायनों की प्रतिलिपि हो सकती है। उनका कहना है कि पादप रसायन परस्पर क्रिया करते हैं और घटकों का पता लगा कर हो सकता है दवा की प्रतिक्रिया को परिवर्तित कर दें, जिसे वर्तमान समय में तथाकथित किन्हीं सक्रिय उपादान के संयोजन से दोहराया नहीं जा सकता है।[43][44] भेषज दवाओं के शोधकर्ता औषधियों के योगवादिता (drug synergism) की अवधारणा को पहचानते हैं, लेकिन ध्यान रहे कि इसके नैदानिक परीक्षणों का प्रयोग विशेष प्रकार की जड़ी-बूटी से विनिर्मित पदार्थ की प्रभावोत्पादकता की जांच में हो सकता है, बशर्ते उस जड़-बूटी का संविन्यास सुससंगत हो.[45]

 
थाई मिर्च में कैप्साइसीन होता है

विशिष्ट मामलों में सहक्रियाता[46] और बहुविध कार्यों[47] का दावा किया जाता है, जो विज्ञान द्वारा समर्थित है। बड़ा सवाल यह है कि कितने व्यापक रूप से दोनों को सामान्यीकृत किया जा सकता है। वैद्य तर्क देंगे कि इनके विकासवादी इतिहास की व्याख्या के आधार पर सहक्रियता (synergy) के मामले को व्यापक रूप से सामान्यीकृत किया जा सकता है, लेकिन जरूरी नहीं कि भेषज समुदाय द्वारा इसका अनुसरण किया जाए. मानव की तरह पौधों में भी एक ही तरह का चयनित दबाव हो और इसीलिए जीवित रहने के लिए विकिरण के खतरे, प्रतिक्रियाशील ऑक्सीजन प्रजातियों और सूक्ष्मजीवों के हमले से प्रतिरोध विकसित करना इनके लिए जरूरी है।[48] सर्वोत्कृष्ट रासायनिक सुरक्षा के लिए इन्हें चुना गया है और इस तरह लाखों साल में इन्होंने इसे विकसित कर लिया है।[49] मानव बीमारी बहुकारक होते हैं और इसका इलाज प्रतिरक्षात्मक रसायनिक लेकर किया जा सकता है जो जड़ी-बूटियों में पाया जाता है। धमनी से संबंधित बीमारियों में बैक्टीरिया, सूजन, पोषण और आरओरएस (ROS) (प्रतिक्रियाशील ऑक्सीजन प्रजातियां) सेभी की भूमिका में हो सकती हैं।[50] वैद्यों का दावा है ‍एक अकेली जड़ी-बूटी एक साथ इन बहुत सारे कारकों का कारण हो सकते हैं। इसी तरह ROS जैसा कारक एक से अधिक स्थिति का आधार हो सकता है।[51] संक्षेप में, वैद्यों का मानना है कि उनका क्षेत्र किसी एक कारण को तलाश करने के बजाए उससे जुड़े तमाम संबंधों के जाल और एक स्थिति के लिए एक इलाज का अध्ययन करना हैं।

इलाज के लिए वैद्य जड़ी-बूटी का चुनाव में ऐसे विभिन्न तरह की जानकारी का इस्तेमाल कर सकते हैं, जो भेषज दवा से चिकित्सा करने वालों के लिए उपयोगी नहीं है। क्योंकि जड़ी-बूटियां गौण हो सकती हैं, जबकि सब्जियों, चायों और मसालों जिनके उपभोक्ताओं का एक बड़ा आधार है, बड़े पैमाने पर महामारी विज्ञान का अध्ययन सुसंगत हो जाता है। जातिगत वनस्पतिशास्त्र (Ethnobotanical) का अध्ययन जानकारी का एक अन्य स्रोत हैं।[52] उदाहरण के लिए, स्वदेशी लोग जब भौगोलिक रूप से उस क्षेत्र में पायी जानेवाली बहुत नजदीक से संबंधित जड़ी-बूटियों का उपयोग उसी कारण से करते हैं जिसमें उसकी प्रभावकारिता के समर्थन में साक्ष्य हो.[उद्धरण चाहिए] वैद्य दावे से कहते हैं कि ऐतिहासिक मेडिकल रिकॉर्ड और जड़-बूटियों के संसाधनों का उपयोग कम किया जाता है।[53] पौधों के चिकित्सा गुणों का आकलन करने में वे संसृत जानकारी के उपयोग का अनुमोदन करते हैं। इसका एक उदाहरण तब देखने में आता है जब पारंपारिक उपयोग के साथ कृत्रिम गतिविधि को भी शामिल किया जाता है।

लोकप्रियता

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नेशनल सेंटर फॉर कॉम्प्लीमेंटरी एण्ड अल्टरनेटिव मेडिसीन द्वारा 2004 में जारी किए गए एक सर्वेक्षण का मुख्य बिंदु उन पर था, जिन्होंने पूरक और वैकल्पिक दवाओं (सीएएम (CAM)) का इस्तेमाल किया, किसका इस्तेमाल किया और क्यों किया। सर्वे 2002 के दौरान, संयुक्त राज्य अमेरिका में रहने वाले केवल वयस्कों, 18 वर्ष से अधिक आयु वर्ग तक सीमित था।

सर्वेक्षण के अनुसार, जब प्रार्थना का सभी प्रयोग हो जाता है तब जड़ी-बूटी से चिकित्सा, या विटामिन और खनिजों के बजाए प्राकृतिक उपादानों का इस्तेमाल, सीएएम (CAM) थेरापी (18.9%) में बहुत आम है।[54][55]

जड़ी-बूटी से उपचार यूरोप में बहुत आम है। जर्मनी में, भेषज दवाएं पेशेवर औषधि तैयार करनेवालों द्वारा बनायी जाती है। (जैसे, एपोथेक (Apotheke)). नुस्खा में लिखी औषधियां सगंध तेल के साथ जड़ी-बूटियों के अर्क या हर्बल चाय के साथ बेची जाती हैं। कुछ लोग जूड़ी-बूटियोंे होनेवाले उपचार को विशुद्ध चिकित्सा योगिकों, जिसे औद्वोगिक रूप से निर्मित किया जाता है, से किए जानेवाले उपचार के रूप में देखते हैं।[56]

यूनाइटेड किंगडम में, चिकित्सा वैद्यों को प्रशिक्षण राज्यों द्वारा पोषित विश्वविद्यालयों में दिया जाता है। उदाहरण के लिए, यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट लंदन, मिडिलसेक्स यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ सेंट्रल लंकाशायर, यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टमिनिस्टर, यूनिवर्सिटी ऑफ लिंकन और एडिनबर्ग में नेपियर यूनिवर्सिटी आजकल हर्बल औषधि में विज्ञान स्नातक की डिग्री की पेशकश कर रहे हैं।

2004 में एक कोच्रैन कोलाबोरेशन की समीक्षा में पाया गया कि हर्बल उपचार दमदार साक्ष्यों के द्वारा समर्थित हैं, लेकिन सभी तरह के नैदानिक समायोजन में व्यापक रूप से इस्तेमाल नहीं किया जाता.[57]

जड़-बूटियों से संबंधित चिकित्सा प्रणालियों के प्रकार

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डायस्कोराइड्स मटेरिया मेडिका, अरबी भाषा में लगभग 1334 की प्रतिलिपि, जीरा और सोआ की औषधीय विशेषताओं का वर्णन करता है।

औषधीय पौधों का प्रयोग उतना ही अनौपचारिक हो सकता है, उदाहरण के लिए, जितना कि पाकशाला संबंधी उपयोग या हर्बल चाय या किसी पूरक का सेवन, हालांकि खुलेआम कुछ जड़ी बूटी की बिक्री प्राय: प्रतिबंधित है। कभी कभी ऐसी जड़ी बूटियां विशेषज्ञ कंपनियों द्वारा पेशेवर वैद्यों को ही प्रदान की जाती है। कई वैद्य, दोनों पेशेवर और शौकिया, अक्सर बढ़ने या जड़ी बूटियों खुद उगाते हैं या जंगलों-पहाड़ों में ढूंढ़ते हैं।

दोनों तरीकों से पश्चिमी और पारंपरिक चीनी दवाओं में प्रशिक्षित कुछ शोधकर्ताओं ने प्राचीन चिकित्सा ग्रंथों को आधुनिक विज्ञान की रोशनी में विखंडित करने का प्रयास किया। एक धारणा यह है कि कम से कम जड़ी बूटियों के संबंध में यिन-यांग संतुलन, ऑक्सीडेंट-समर्थक और ऑक्सीडेंटरोधी संतुलन के अनुकूल हो. यिन और यांग के विभिन्न जड़ी बूटियों की ओआरएसी (ORAC) रेटिंग्स की कई जांचों द्वारा इस व्याख्या का समर्थन किया गया है।[58][59]

अमेरिका में, प्रारंभिक अधिवासी यूरोप से आयातित पौधों पर गुजारा करते थे और साथ में स्थानीय भारतीय ज्ञान पर भी. विशेष रूप से सफल पेशेवर, शैम्युल थॉमसन ने औषधि की एक बेहद लोकप्रिय प्रणाली को विकसित किया। बाद में इस दृष्टिकोण में विस्तार करके इसे आधुनिक शरीर क्रिया विज्ञान की अवधारणाओं से जोड़ कर एक व्यवस्था तैयार की गयी जो साइकोमेडिकलिज्म (Physiomedicalism) कहलाया। एक अन्य समूह, इक्लेक्टिक्स ने बाद में रूढ़िवादी चिकित्सा पेशेवरों की एक शाखा, जो तत्कालीन पारा या रक्तस्राव होनेवाले चिकित्सा उपचार का वर्जन करना चाहते थे, से बचने के लिए अपने अनुशीलन में जड़ी-बूटियों से तैयार औषधि का इस्तेमाल करना शुरू किया। आगे चल कर दोनों समूह अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन, जिसका गठन इसी काम के लिए हुआ था, की कार्रवाइयों द्वारा काबू में आयीं. चेरोकी औषधियां जड़ी-बूटियों को खाद्य पदार्थों, दवाओं और विष में विभाजित कर देती हैं और बीमारियों, चेरोकी वैद्य डेविड विंसटॉन के अनुसार, जिन्हें आध्यामिक और शारीरिक दृष्टिकोण से परिभाषित किया गया है, के उपचार के लिए सात पौधों का उपयोग किया जाता है।[60]

भारत में, आयुर्वेदिक दवा के सूत्र बेहद जटिल हैं, 30 या उससे अधिक उपादानों के साथ बड़ी संख्या में विभिन्न उपादानों को "कीमिया प्रसंस्करण" से होकर गुजरना पड़ा है, जिनका चुनाव "वात, "पित्त" या "कफ" का संतुलन करने के लिए किया जाता है।[61]

तमिलनाडु में, तमिलों की अपनी औषधीय प्रणाली है, जो आजकल लोकप्रिय है, सिद्ध औषधीय प्रणाली कहलाती है। सिद्ध प्रणाली पूरी तरह से तमिल भाषा में है। इसमें मोटेतौर पर 300,000 पद्य हैं, जिनमें चिकित्सा की विभिन्न अवधारणाएं, जैसे कि दैहिक रचना विज्ञान, यौन क्रिया ("कोकोकाम" सर्वोत्कृष्ट ‍प्रबंध है), जड़ी-बूटी, खनिज और धातु संरचना की बहुत सारी बीमारियां, जो आज भी प्रासंगिक हैं, के उपचार में समायोजित हैं। आयुर्वेद संस्कृत में है, लेकिन आमतौर पर संस्कृत का प्रयोग मातृभाषा के रूप में नहीं होता था, इसीलिए इसकी ज्यादातर औषधियां सिद्ध और स्थानीय परंपराओं से ली गयी हैं।[62]

इसके अलावा विलियम लेसेस्सियर का त्रिसूत्र, जिसमें जड़ी-बूटियों के साथ चीनी औषधियों की विचारधारा को पाइथागोरियन अवधारणा के साथ संयोजित किया गया है और जिसके परिणामस्वरूप 9 जड़-बूटियों का सूत्र बने, जो अनुपूरक हैं, समेत बहुत सारे आधुनिक सिद्धांत निकलकर आए या तटस्थ रूप से प्रमुख अंग प्रणाली और तीन सहायक प्रणालियां प्रभावित करती हैं।[उद्धरण चाहिए] उन्होंने अपने जीवनकाल में विलियम लेसेस्सियर आर्काइव[63] तथा डेविड विंस्टन सेंटर फॉर हर्बल स्टडीज[64] में अपने प्रशिक्षुता कार्यक्रम के जरिए हजारों प्रभावशाली अमेरिकी वनस्पतिशास्त्रियों को अपनी प्रणाली सिखाया. एक एकल औषध की तुलना में जड़ी बूटियों में विभिन्न रसायन प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। जड़ी बूटियों में कुछ रसायन वृद्धि हार्मोन या एंटी-बायोटिक्स, पोषक और विष निष्प्रभावकारी के रूप में काम कर सकता है।

कई पारंपरिक अफ्रीकी उपचार यह सुनिश्चित करने के लिए कि वे जहरीले नहीं हैं और पशुओं पर इसकी जांच हुई है, प्रारम्भिक प्रयोगशाला परीक्षण में अच्छा प्रदर्शन किया . गावो एक परंपरागत उपचार में इस्तेमाल की जानेवाली जड़ी बूटी है, की जांच नाइजेरिया युनिवर्सिटी ऑफ जोस और नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर फार्मसूटिकल रिसर्च एण्ड डेवलपमेंट के शोधकर्ताओं द्वारा चूहों पर परीक्षण किया गया. अफ्रिकन जर्नल ऑफ बायोटेक्नोलॉजी के शोध के अनुसार गावो ने विषक्तता और कृत्रिम रूप से उत्पन्न किए गए बुखार को कम करने, दस्त और सूजन के परीक्षण में सफल रहा.[65]

संचालन का मार्ग

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एक हर्बल उत्पाद की सटीक संरचना निष्कर्षण की विधि से प्रभावित है। एक पथ्य पेय ध्रुवीय घटकों से भरपूर होगा, क्योंकि पानी एक ध्रुवीय विलायक है। दूसरी ओर तेल गैर-ध्रुवीय विलायक है, इसीलिए यह गैर-ध्रुवीय यौगिकों को अवशोषित करेगा. शराब इन दोनों के बीज कहीं होता है। बहुत सारे तरीके हैं जिनसे जड़ी-बूटियों को संचालित किया जा सकता है, इनमें निम्न शामिल हैं:

  • टिंचर - यह जड़ी-बूटियों का मादक अर्क है जैसे एचिनासिया (Echinacea) का अर्क. आमतौर पर इसे 100% विशुद्ध इथेनॉल (या 100% इथेनॉल के साथ पानी के मिश्रण से) के साथ जड़ी-बूटियों के सम्मिश्रण से प्राप्त किया जाता है। एक संपूरित टिंचर में इथेनॉल का प्रतिशत कम से कम 25% (कभी-कभी 90% तक) होता है।[66]. कभी-कभी टिंचर शब्द ऐसे विनिर्मित पदार्थ के लिए लागू होता है जिसमें इथेनॉल से परे अन्य किसी विलायक का प्रयोग किया गया हो.
  • हर्बल शराब और अमृत - ये जड़ी बूटी मादक पदार्थों के अर्क होते हैं, आमतौर पर इसमें इथेनॉल का प्रतिशत 12-38% होता है।[66] हर्बल शराब, शराब में जड़ी-बूटियों का द्रवनिवेशन है, जबकि अमृत मदिरा में जड़ी-बूटियों का द्रवनिवेशन होता है। (उदाहरण के लिए वोदका, ग्रप्पा आदि).
  • पथ्य पेय - जड़ी बूटी का गर्म पानी का अर्क, जैसे कैमोमाइल.
  • काढ़ा - छाल या जड़ों को बहुत देर तक उबाल कर निकाला हुआ अर्क है।
  • द्रवनिवेशन पौधों का शीलत अर्क साग, अजवाइन आदि में बड़ी मात्रा में पाये जानेवाले लसदार पदार्थ - पौधों को महीन-महीन काट जाता और शीलत जल पिलाया जाता है। इसके बाद इन्हें 7 से 12 घंटों तक (निर्भर करता है कि कौन-सी जड़ी-बूटी इस्तेमाल की गयी है) छोड़ दिया जाता है। द्रवनिवेशन के लिए ज्यादातर 10 घंटे लगते हैं।[66]
  • सिरका - इसे भी टिंचर की ही तरह तैयार किया जाता है, केवल इसमें एसिटिक एसिड के घोल को विलायक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
  • स्थानिक:
    • सगंध तेल - सगंध तेल का अर्क, आमतौर पर वाहक तेल में मिला कर इसे पतला कर लेते हैं (बहुत सारे सगंध तेल त्वचा को जला सकते हैं या उच्च खुराक का उपयोग सीधे किया जाता है - इसे पतला करने के लिए जैतून के तेल या अन्य खाद्य श्रेणी के तेल में जैसे कागजी बादाम तेल लिया जा सकता है, क्योंकि इनका उपयोग स्थानिक के रूप में सुरक्षित है).[67]
    • मरहम, तेल, बाम, क्रीम और लोशन - ज्यादातर स्थानिक लेप जड़ी-बूटियों का तेल निष्कर्षण हैं। खाद्य श्रेणी के तेल लेकर और उसमें जड़ी-बूटियों को सप्ताह से लेकर महीनों तक के लिए भिगोने से पादप रसायन का निष्कर्षण तेल में हो जाता है। इसके बाद इस तेल से मरहम, क्रीम, लोशन बनाया जा सकता है या केवल स्थानिक लेप के लिए सीधे इस्तेमाल किया जा सकता है। मालिश का कोई भी तेल, जीवाणुरोधी मरहम और जख्म के उपचार के यौगिक इस तरह से बनाये जाते हैं।
    • पुल्टिस और सेक - साबूत जड़ी-बूटी (या पौधे का उपयुक्त अंश) की पोटली बना कर या सेक, आमतौर पर मसल कर या सूखाकर या थोड़े-से पानी के साथ फिर से निथार कर का उपयोग किया जा सकता है और फिर पट्टी, कपड़े के ऊपर से या सीधे किया जा सकता है।
  • साबूत जड़ी-बूटी का सेवन - ऐसे या तो सूखे (जड़-बूटी के पाउडर) या ताजा रस निकाल कर (ताजी पत्तियों और पौधे के दूसरे अंश) किया जा सकता है।
  • सिरप - जड़-बूटी के अर्क में सिरप या शहद मिलाकर बनाया जाता है। पैंसठ भाग चीनी के साथ 35 भाग पानी और जड़ी-बूटी मिलाया जाता है। इसके बाद इस पूरे को उबला जाता है और तीन सप्ताह के लिए द्रवनिवेशित किया जाता है।[66]
  • अर्क - तरल अर्क, शुष्क अर्क और फुहारण भी इसमें शामिल है तरल अर्क टिंचर के बजाए इथेनॉल का कम प्रतिशत के साथ तरल होता है। ये निर्वात, आसवित, टिंचर से (और आमतौर पर इसी तरह) बनाया जा सकता है। शुष्क अर्क पौधों की सामग्री का अर्क होता है, वाष्पीकरण करके जिसे सुखा दिया जाता है। इसके बाद उन्हें और भी परिष्कृत करके कप्सूल या गोली बनाया जा सकता है।[66] फुहारन शुष्क अर्क है जो हिमीकरण से सुखाकर बनाया जाता है।‍
  • अभिश्वसन सुगंधोपचार (aromatherapy) का उपयोग साइनस संक्रमण या कफ[68][उद्धरण चाहिए] से संघर्ष करने के लिए मनोदशा बदलने के उपचार के रूप में[69][70] हो सकता है, या गहराई तक त्यचा को परिशुद्ध करने (यहां सीधे सांस द्वारा लेने के बजाए भांप लेना) से किया जा सकता है।[उद्धरण चाहिए]
  • ताजी जड़ी बूटी के गारे का त्वचा पर लेप.
  • जड़ी बूटी को पिसना और पानी में उबालना जैसे कि हर्बल चाय.

औषधि के रूप में पौधों के इस्तेमाल के उदाहरण

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कुछ हर्बल उपचार का इंसानों पर निर्णायात्मक रूप से सकारात्मक प्रभाव नजर आता हैं, ऐसा संभवत: अपर्याप्त परीक्षण के कारण होता है।[71] बहुत सारे अध्ययनों के उद्धरण ने पशु मॉडल पर जांच या कृत्रिम परिवेशीय कसौटी का हवाला दिया है और इसलिए ये कमजोर सहयोग देनेवाले साक्ष्य से अधिक नहीं दे सकते.

  • घृतकुमारी का इस्तेमाल पारंपरिक रूप से जलने या घाव के उपचार के लिए किया जाता रहा है।[72] एक व्यवस्थित समीक्षा (1999 से) कहती है कि घाव भरने में सहायता देने में घृतकुमारी की प्रभावकारिता स्पष्ट नहीं है, जबकि बाद की एक समीक्षा (2007 से) ने निष्कर्ष निकाला है कि संचयी प्रमाण ने पहली से दूसरी अवस्था की जलन के उपचार के लिए घृतकुमारी के उपयोग का समर्थन किया है।[72][73]
  • एग्रीकस ब्लाज़ी छत्रक (Agaricus blazei mushrooms) कुछ प्रकार के कैंसर की रोकथाम कर सकता है।[74]
  • इन विट्रो अध्ययनों[75] और एक एक छोटे से नैदानिक अध्ययन के अनुसार हाथीचक (एक प्रकार का पौधा) (Cynara cardunculus) कोलेस्ट्रॉल स्तर के उत्पादन को कम कर सकता है।[76]
  • कृष्ण बदरी या जामुन (Rubus fruticosus) की पत्तियों ने प्रसाधनशास्त्र समुदाय का ध्यान आकर्षित किया, क्योंकि मेटालोप्रोटीनेसेस (metalloproteinases) के साथ इसके हस्तक्षेप से त्वचा की झुर्रियों को ठीक करने में सहायता मिलती है।[77]
  • मुंह के कैंसर की रोकथाम में काले रसभरी (Rubus occidentalis) की एक भूमिका हो सकती है।[78][79][80]
  • मानसिक बीमारी के इलाज के लिए दक्षिण अफ्रीकी में पारंपरिक दवा के रूप में बूफोन (Boophone disticha) नामक बेहद विषैले पौधे का इस्तेमाल किया जाता है।[81] . शोध ने अवसाद के विरुद्ध कृत्रिम परिवेशीय और अन्तर्जीवी के प्रभाव को दिखाया.[82][83][84]
  • बटरबर (Butterbur)(Petasites hybridus)
  • पेट के ऐंठन और कब्जियत के लिए कैलेंडुला (Calendula officinalis) का पारंपरिक इस्तेमाल किया जाता रहा है।[85] पशु अनुसंधान में कैलेंडुला ओफिसिनैलिस फूलों के जलीय इथेनॉल अर्क के उपयोग ने ऐंठनहारी और ऐंठनकारी (spasmolytic and spasmogenic) दोनों ही प्रभावों को दर्शाया, इस प्रकार इसके इस पारंपरिक उपयोग के लिए एक वैज्ञानिक औचित्य प्रदान कर दिया.[85] इसके "सीमित प्रमाण" हैं कि विकिरण त्वचाशोथ के इलाज में कैलेंडुला क्रीम या मलहम कारगर होता है।[86][87]
  • करौंदा (Vaccinium oxycoccos) के लक्षणों के साथ महिलाओं में आवर्तक मूत्र पथ के संक्रमण के उपचार प्रभावी हो सकता है।[88]
  • इचिनेशिया (Echinacea) (Echinacea angustifolia, Echinacea pallida, Echinacea purpurea) के अर्क की हो सकता है एक सीमा हो, लेकिन हो सकता है बिना तैयारी के उपलब्ध सीमा की तुलना में यह कहीं अधिक हो, इसीलिए गंभीर रीनोवायरस जुकाम में समुचित स्तर के खुराक पर अभी और अधिक शोध की जरूरत है।[89][90]
  • एल्डरबेरी (Elderberry) (Sambucus nigra) हो सकता है टाइप ए और बी इनफ्लूएंजा में आरोग्यलाभ में इसकी गति बहुत अधिक हो.[91] हालांकि पक्षियों से होनेवाले इन्फ्लुएंजा के मामले में हो सकता है यह जोखिम भरा हो, क्योंकि प्रतिरक्षात्मक उत्तेजना (immunostimulatory) का प्रभाव साइटोकाइन (cytokine) में वृद्धि कर सकता है।[92]
  • फीवरफ्यू (Feverfew) (Chrysanthemum parthenium) का प्रयोग कभी-कभी माइग्रेन सिर दर्द के उपचार में होता है।[93] हालांकि फीवरफ्यू के अध्ययन की बहुत सारी समीक्षाओं में इसकी प्रभावकारिता बिल्कुल नहीं या अस्पष्ट दिखाई गयी है, अभी हाल ही में आरटीसी (RTC) ने अनुकूल परिणाम दिखाया.[94][95][96] गर्भवती महिलाओं के लिए फीवरफ्यू की सिफारिश नहीं की जाती, क्योंकि भ्रूण के लिए यह खतरनाक हो सकता है।[97][98]
  • गावो (Faidherbia albida, पश्चिम अफ्रीका का एक पारंपरिक जड़-बूटी से तैयार औषधि है जानवर पर परीक्षणों में अच्छी संभावना दिखी.[99]
  • लहसुन (Allium sativum) कोलेस्ट्रॉल के कुल स्तर को कम कर सकता है।[100]
  • जर्मन कैमोमाइल (German Chamomile) (Matricaria chamomilla) का जानवरों पर किए गए शोध में इसे आक्षेपनाशक (antispasmodic), व्यग्रताशामक (anxiolytic), जलन-सूजनरोधी (antiinflammatory) और कोलेस्ट्रॉल को कम करनेवाला पाया गया.[101] कृत्रिम परिवेशीय कैमोमाइल में सूक्ष्मजीवों से फैलनेवाली बीमारी रोधी (antimicrobial), ऑक्सीकरणरोधी (antioxidant) गुण पाये गए और इसी के साथ ही साथ कैंसर के प्रारम्भिक परिणाम में इसे महत्वपूर्ण रूप से बिंबाणुरोधी (antiplatelet) भी पाया गया.[102][103] कृत्रिम परिवेश में वायरस टाइप 2 (HSV-2) वाले सरल दाद में कैमोमाइल के सुगंध तेल को वायरसरोधी घटक पाया गया.[104]
  • अदरक (जिंजिबेर ऑफिसिनले) का 250 मिलीग्राम कैप्सूल मानव चिकित्सीय परीक्षण में गर्भावस्था में चार दिन के लिए दिया गया तो प्रभावकारी रूप से इससे मतली और उल्टी कम हुई.[105][106]
  • अंगूर (नारिंगेनिन) में मोटापे की रोकथाम के घटक हो सकते हैं।
  • हरी चाय (कैमेलिया सिनेनसिस) के घटक स्तन कैंसर कोशिकाओं की कोशिकाओं की वृद्धि को रोक सकते हैं[107] और इसके निशान को तेजी से ठीक कर सकते हैं।[108]
  • हिबिस्कस सबडारिफा (Hibiscus sabdariffa) के विशुद्ध बीज में उच्चरक्तचापरोधी, कवकरोधी और जीवाणुरोधी प्रभाव हो सकते हैं। परीक्षण में इसकी विषाक्तता कम पायी गयी, एक विच्छिन मामले को छोड़ कर जिसमें लंबे समय तक और अत्यधिक मात्रा में चूहे के इसका सेवन बाद उसका वीर्यकोष नष्ट हो गया.[109]
  • शहद हो सकता है कोलेस्ट्रॉल कम करता हो.[110] हो सकता है घाव के उपचार में उपयोगी हो.[111]
  • लेमन ग्रास (साइंबोपोगोन साइट्रस) ताजी पत्ती का जलयुक्त अर्क प्रतिदिन चूहे को दिए जाने से कोलेस्ट्रोल की कुल मात्रा कम हुई और प्लाजमा ग्लूकोज के स्तर बढ़ने लगी, इसी के साथ ही साथ एचडीएल (HDL) कोलेस्ट्रोल स्तर में भी वृद्धि हुई. लेमन ग्रास दिए जाने का कोई असर ट्राइग्लिसराइड के स्तर पर नहीं पड़ा.[112]
  • मैगनोलिया
  • मेडोस्वीट (Meadowsweet) (फिलीपेंडुला उलमारिया (Filipendula ulmaria), स्पिरिया उलमारिया (Spiraea ulmaria)) में सैलिसिलिक अम्ल होने का कारण इसका उपयोग विभिन्न तरह के प्रदाहरोधी (anti-inflammatory) और सूक्ष्मजीवरोधी (antimicrobial) मामले में किया जा सकता है। बुखार और प्रदाह, दर्द से राहत, अल्सर और जीवाणुरोधन संबंधी (bacteriostatic) मामले में प्रभावी है। निकोलस कलपेपर द्वारा 1652 में इसे उपचारात्मक सूची में शामिल किया गया. 1838 में, पौधों से सैलिसिलिक अम्ल पृथक किया गया. एस्पिरिन शब्द स्पिरिन से निकला, जो कि मेडोस्वीट के पर्यायवाची स्पिरिया उलमारिया से आया है।[113]
  • मिल्क थीस्ल (सिलिबम मारियानम) (Silybum marianum) के अर्क की पहचान "यकृत टॉनिक" के रूप में की गयी है।[114] शोध से पता चलता है कि विषाक्त रसायनों और दवाओं से मिल्क थीस्ल का अर्क यकृत को पहुंचे नुकसान को रोक और मरम्मत दोनों ही कर सकता है।[115]
  • मोरिंडा साइट्रिफोलिया (Morinda citrifolia) (नोनी) का इस्तेमाल प्रशांत और कैरेबियन द्वीपों में प्रदाह और दर्द के इलाज के लिए होता है।[116] मानव पर किए गए अध्ययन से संकेत मिलता है इसमें कैंसर निवारक प्रभाव भी हो.[117]
  • कलौंजी (निगेला सतिवा (Nigella sativa)) ने चूहों में एनाल्जेसिक गुणों का प्रदर्शन किया। हालांकि, इस प्रभाव की प्रक्रिया स्पष्ट नहीं है। कृत्रिम परिवेशीय अध्ययन में यह जीवाणुरोधी, कवकरोधी, प्रदाहरोधी और अपरिवर्तनीय प्रतिरक्षा प्रभाव का पोषण करता है।[118][119][120][121][122][123][124][125][126][127][128] हालांकि कुछ एकदम से अंधाधुंध दृष्टिविहीन अध्ययन प्रकाशित किए गए हैं।
  • ओसिमम ग्रैटिसियम[129][130] (Ocimum gratissimum) और चाय के पौधे के तेल का इस्तेमाल मुंहासे के उपचार में किया जा सकता है।
  • अजवायन की पत्ती (ओरिगनम वल्गारे (Origanum vulgare)) कई तरह के औषधियों के प्रतिरोध जीवाणु में कारगर हो सकता है।[131]
  • पपीता का उपयोग कीटनाशक के रूप में (जूं, कृमि को मारने के लिए) किया जा सकता है।[132],[133]
  • पेपरमिंट तेल का उपयोग किसी व्यक्ति के क्षोभक आंत्र सिंड्रोम में फायदे के लिए हो सकता है।[134][135]
  • फाइटोलेका (Phytolacca) या पोकेवीड (Pokeweed) का लेप स्थानिक रूप से या आंतरिक रूप से किया जा सकता है। मुंहासे और अन्य बीमारियों के लिए सामयिक उपचार के लिए इस्तेमाल किया जाता है। गलतुण्डिका (tonsilitis), ग्रंथियों में सूजन और वजन कम के उपचार के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है।[उद्धरण चाहिए]
  • अनार आमतौर पर सेवन किए जानेवाले इस रस में सर्वोच्च प्रतिशत में एलागिटैननिंस (ellagitannins) होता है। पुनिकैलागिन (Punicalagin) में, जैसे कि अनार में अनूठा एलागिटैननिंस (ellagitannins) होता है, पॉलीफेनॉल नामक उच्चतम आणविक भार होता है।[136] एलागिटैननिंस को पचापचायी कर आंत के सूक्ष्म जीवाणु द्वारा यूरोलिथिन बना दिया जाता हैं और इसने चूहे में कैंसर कोशिकाओं में वृद्धि का रोधक दिखाया है।[136][137]
  • रॉवोलफिया सर्पेंटिना (Rauvolfia Serpentina) का अनुचित इस्तेमाल विषाक्तता का खतरा पैदा करता है[उद्धरण चाहिए], भारत में अनिद्रा, घबराहट और उच्च रक्तचाप के लिए बड़े पैमाने में उपयोग किया जाता है।[138]
  • रॉबीबॉस (Rooibos) (एस्पैलाथस लानियरिस (Aspalathus linearis)) में फ्लेवैनोल्स (flavanols), फ्लेवोन्स (flavones), फ्लेवैनोनेस (flavanones), फ्लेवोनोल्स (flavanols) और डिहाईड्रोचैल्कोनेस (dihydrochalcones) समेत कई तरह के फिनोलिक यौगिक होते हैं।[139] रॉबीबॉस का पारंपरिक इस्तेमाल त्वचा की बीमारी, एलर्जी, दमा और बच्चे के पेट दर्द में होता है।[140] मधुमेह पीडि़त चूहों पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि रॉबीबॉस में पाये जानेवाले एक घटक स्प्लैथिन (aspalathin) ने अग्नाशय के बीटा कोशिकाओं और मांसपेशियों के ऊत्तक में ग्लूकोज उद्ग्रहण में उत्तेजना लाकर ग्लूकोज की ‍समस्थिति को बेहतर किया।[141]
  • रोज हिप्स - छोटे पैमाने पर किए गए अध्ययन से पता चला है कि रोज कैनिना की श्रोणी अस्थि संधिशोध (ऑस्टियोआर्थराइटिस) के उपचार में लाभ प्रदान कर सकता है।[142][143][144] रोज हिप्स में कॉक्स (COX) रोधी सक्रियता दिखाई दी.[145]
  • सै‍लविया लैवेंडुलाइफोलिया (Salvia lavandulaefolia) याददाश्त में सुधार ला सकती है[146]
  • सॉ पल्मेटो BPH के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। कुछ अध्ययनों में इसे समर्थन मिला,[147] लेकिन अन्य अध्ययन इसकी पुष्टि करने में विफल रहे.[148]
  • शीतके छत्रक (Lentinus edodes) खाने लायक छत्रक हैं, बताया जाता है कि जो कैंसर को रोकने के गुणों सहित स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हैं।[149] प्रयोगशाला के अनुसंधान में शीतके के सार ने एपॉपटोसिस प्रवेशण के द्वारा अर्बुद कोशिकाओं के विकास को रोक दिया.[149] जल सत्व और शितके के ताजा रस दोनों ने रोगजनक जीवाणुओं तथा कृत्रिम परिवेशीय फफूंद के विरुद्ध रोगाणुरोधी गतिविधि का प्रदर्शन किया।[150][151]
  • सोया और अन्य पौधे जिनमें फाइटोएस्ट्रोजन (एस्ट्रोजेन गतिविधि वाले कुछ वनस्पतीय अणु) (काले कोहोश में संभवतः सेरोटोनिन गतिविधि होती है) होते हैं, रजोनिवृत्ति के लक्षणों के उपचार में कुछ लाभकारी होते हैं।[152]
  • सेंट जॉन के पौधा ने किसी नैदानिक परीक्षण में हलके अवसाद के इलाज में प्रयोगिक-भेषज (प्लेसिबो) की तुलना में कहीं अधिक प्रभावकारी होने का सकारात्मक परिणाम दर्शाया.[153] हालांकि बाद में एक बड़े, नियंत्रित परीक्षण में पाया गया कि अवसाद के इलाज में सेंट जॉन का पौधा कूट-भेषज से बेहतर नहीं है।[154] बहरहाल, हाल के परीक्षणों ने सकारात्मक परिणाम[155][156][157] या ऐसी सकारात्मक प्रवृत्ति दर्शाए जिन्होंने महत्व को विफल कर दिया.[158] 2004 में एक मेटा-विश्लेषण ने निष्कर्ष निकाला कि प्रकाशन पूर्वाग्रह[159] द्वारा सकारात्मक परिणामों की व्याख्या की जा सकती है, लेकिन बाद के विश्लेषणों को अधिक अनुकूल किया गया.[160][161] कॉच्राने डेटाबेस चेतावनी देता है कि अवसाद पर जॉन सेंट के पौधे के तथ्य परस्पर विरोधी और अस्पष्ट हैं।[162]
  • साध्य शिश्नग्रंथिशोथ अतिविकसन[163] और अस्थि सन्धिशोथ के दर्द के लिए कुछ नदानिक अध्ययनों में बिच्छू-बूटी डंक को प्रभावकारी पाया गया.[164] कृत्रिम परिवेशीय परीक्षणों में सूजन-रोधी कार्रवाई देखी गयी।[165] रोडेंट मॉडल में, बिच्छू-बूटी डंक से एलडीएल (LDL) कोलेस्ट्रॉल और कुल कोलेस्ट्रॉल में कमी पाई गयी।[166] एक अन्य रोडेंट अध्ययन में इसने बिंबाणु समुच्चयन को कम कर दिया.[167]
  • अनिद्रा के इलाज के लिए वेलेरियन जड़ का इस्तेमाल किया जा सकता है। नैदानिक अध्ययनों में मिश्रित परिणाम आये और शोधकर्ताओं ने अनेक परीक्षणों की गुणवत्ता को घटिया पाया।[168][169][170]
  • वेनिला
  • सैलिसिलिक अम्ल और टैनिन क्षार होने की वजह से विभिन्न प्रकार के प्रदाह-रोधी व सूक्ष्मजीव-रोधी उद्देश्यों के लिए विलो छाल (सलिक्स अल्बा) का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसका इस्तेमाल अनुमानतः 6000 वर्षों से किया जाता रहा है और ईस्वी सन् पहली सदी में डायोस्कोराइड्स ने इसका वर्णन किया था।[113]

बहुत सारी जड़ी-बूटियां हैं जिनके लिए माना जाता है वे प्रतिकूल प्रभाव देनेवाली होती हैं।[5] इसके अलावा, "मिलावट, अनुचित निर्माण, या पौधों के बारे में जानकारी का अभाव और औषधि की परस्पर क्रिया से प्रतिकूल प्रतिक्रिया कभी-कभी जीवन के लिए खतरनाक और घातक होती हैं[6]." चिकित्सा के लिए उपयोग करने की सिफारिश करने से पहले समुचित डबल ब्लाइंड नैदानिक परीक्षणों की आवश्यकता सुरक्षा और प्रत्येक पौधे की प्रभावकारिता सुनिश्चित करने के लिए होती है।[171] हालांकि बहुत सारे उपभोक्ताओं का मानना है कि हर्बल औषधि सुरक्षित हैं क्योंकि वे "प्राकृतिक" हैं और सिंथेटिक दवाएं एक-दूसरे को प्रभावित कर सकती है, जिससे मरीज में विषाक्तता पैदा हो सकती है। जड़ी-बूटियों से उपचार भी खतरनाक रूप से सन्दूषित हो सकता हैं और हो सकता है हर्बल औषधियों की प्रभावकारिता स्थापित हुए बगैर, अनजाने में किसी दवा के बदले में दे दी जाए जिसकी प्रभावकारिता की पुष्टि हो गयी हो.[71]

संयुक्त राज्य अमेरिका में विशुद्धता और खुराक का मानकीकरण अनिवार्य नहीं है, बल्कि पौधों की प्रजातियों में विभिन्न जैव रसायनिकों के कारण समान विशिष्टता से तैयार उत्पाद भिन्न भी हो सकते हैं।[172] पौधों में शिकारियों के विरुद्ध रासायनिक सुरक्षा तंत्र होता है, जो मनुष्यों के लिए प्रतिकूल या घातक प्रभाव वाले हो सकते हैं। अत्यधिक विषैली जड़ी-बूटियों के उदाहरण में जहरीले हेमलोक और धतूरा जैसे अनेक पौधे शामिल हैं।[173] ये जड़ी-बूटियां सार्वजनिक रूप में विपणन के लिए नहीं हैं, क्योंकि इनके जोखिम विख्यात हैं, साथ ही आंशिक रूप से "जादू-टोना", "तिलस्म" और "षड्यंत्र" के साथ जुड़े यूरोप के लम्बे इतिहास के कारण भी इनका आम विपणन नहीं होता.[174] हालांकि अक्सर नहीं, लेकिन बड़े पैमाने पर जड़ी-बूटियों के इस्तेमाल की प्रतिकूल प्रतिक्रियाएं सामने आयी हैं।[175] कई बार जड़ी-बूटी के उपभोग से गंभीर अप्रिय परिणाम देखे गये। पोटेशियम रिक्तीकरण के एक बड़े मामले में पुराने मुलैठी अन्तर्ग्रहण को जिम्मेदार ठहराया गया.[176] और फलस्वरूप पेशेवर वैद्यों ने मुलैठी से जोखिम को देखते हुए इसके उपयोग से परहेज करना शुरू किया। यकृत की खराबी के एक मामले में काले कोहोश (Black cohosh) को जिम्मेदार माना गया.[177] गर्भवती महिलाओं के लिए जड़ी-बूटियों की सुरक्षा से संबंधित कुछ अध्ययन उपलब्ध हैं,[178][179] और एक अध्ययन ने पाया कि चल रही गर्भावस्था और जीवित जन्म दर में 30% की कमी से जुड़ा है प्रजनन उपचार के दौरान पूरक और वैकल्पिक दवाओ का उपयोग.[180]. हर्बल उपचारों के उदाहरण मीठा तैलिया (aconite), जो कि आमतौर पर कानूनी रूप से प्रतिबंधित जड़ी-बूटी है, आयुर्वेदिक उपचार, झाऊ, झाड़-झंखाड़, चीनी जड़ी-बूटी का सम्मिश्रण, कोम्फ्रे, कुछ फ्लेवोनाइड युक्त जड़ी-बूटी, जर्मेन्डर, ग्वार गोंद, मुलैठी जड़ और एक खास प्रकार का पुदीना पेनीरोयल समेत इनके संभावित कारण-प्रभाव का संबंध प्रतिकूल प्रभाव से है।[181] जड़ी बूटियों के उपाहरण जहां बड़े पैमाने पर लंबी अवधि के प्रतिकूल प्रभावों के जोखिम का दावा विश्वास के साथ किया जा सकता है, उसमें जिंसेग; जो इसी कारण वद्यों के अलोकप्रिय है, समेत लुप्तप्राय गोल्डेनसील, मिल्क थीस्ल, सेन्ना; आम तौर पर वैद्य जिसके सलाह देने के खिलाफ है और विरले ही इस्तेमाल करते हैं; घृतकुमारी का रस, बकथोम की छाल और बेर, कासकारा सग्रादा की छाल, सॉ पामेटो, वैलेरियन, कावा; जो यूरोपियन यूनियन में प्रतिबंधित है, सेंट जॉन पौधा, सुपारी, प्रतिबंधित जड़ी-बूटी एफ्रेडा और गौराना शामिल हैं।[6]

इसके साथ ही परस्पर क्रिया के लिए अच्छी तरह स्थापित हो जाने जानेवाली बहुत सारी जड़ी-बूटियों और औषधियां चिंता का विषय है।[6] चिकित्सक के साथ परामर्श के दौरान अब तक किए गए हर्बल उपचार के बारे में स्पष्ट किया जाना चाहिए, क्योंकि कुछ हर्बल उपचार जब विभिन्न तरह के पर्चे और बिना नुस्खे के औषधियों के संयोजन से लिया जाता है तो औषधि की परस्पर क्रिया प्रतिकूल प्रभाव डालती है, ऐसे में मरीज को सेवन किए गए दकियानुसी नुस्खे और अन्य औषधियों के बारे में सूचित कर दिया जाना चाहिए॰

उदाहरण के लिए, खतरनाक रूप से कम रक्तचाप का कारण हर्बल उपचारों का संयोजन हो सकता है, सुझायी गयी औषधि के साथ ही साथ उसमें रक्तचाप को कम करने का एक जैसा प्रभाव होता है। कुछ जड़ी बूटियां थक्कारोधी (anticoagulants) प्रभाव को बढ़ा सकता हैं।[182] कुछ जड़ी बूटियों के साथ ही साथ कुछ आम फल एक के एंजाइम्स, साइटोक्रोम P450 के साथ बहुत सारे औषधि के पचापचय में गंभीर रूप से बाधा डालती हैं।[183]

नाम को लेकर भ्रम

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हो सकता है जड़ी बूटी के आम नाम (लोक वर्गीकरण विज्ञान) के साथ वैज्ञानिक वर्गीकरण में मतभेद प्रतिबिंबित नहीं हो और हो सकता है कुछ (या बहुत ही एक जैसे) बहुत ही आम नाम किसी भिन्न पौधों की प्रजाति के समूह में चला जाए॰

उदाहरण के लिए, 1993 में बेल्जियम में, मेडिकल डॉक्टरों ने वजन घटाने के लिए ट्रेडेशनल चायनीज मेडिसीन (TCM) जड़-बूटी को मिलाकर एक सूत्र बनाया. एक जड़ी बूटी (स्टेफनिया टेट्रैंड्रा (Stephania tetrandra)) को एक अन्य (एरिस्टोलोचिया फैंगची (Aristolochia fangchi)), जिसका चीनी नाम बिल्कुल एक जैसा ही था, लेकिन इसमें गुर्दे के लिए जहर एरिस्टोलोचिक एसिड (aristolochic acid) अधिक मात्रा में था, से अदला-बदली की गयी; इस गलती के परिणामस्वरूप गुर्दे नष्ट होनेवाले 105 मामले हुए॰[184][185]

ध्यान रहे कि TCM के सन्दर्भ में उपयोग होनेवाले न तो जड़ी-बूटी का इस्तेमाल वजन घटाने में और न ही लंबी अवधि के लिए दिया जाता है। चीनी औषधि में ये जड़ी बूटियां तीव्र गठिया और पानीवाले सूजन (edema) के किन्हीं प्रकार के लिए इस्तेमाल होता है।[186][187][188]

इस कारण, पश्चिमी वैद्यों ने अपने पेशे की शब्दावली में द्विपद नाम पद्धति का उपयोग किया है।

प्रभावकारिता

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"फाइटोथेरपी" शब्द वाले 1990-2007 के पबमेड में सूचीबद्ध शोध पत्रों की कुल चालू संख्या

सुनहरे मानक के लिए औषधियों का पड़े पैमाने पर बार-बार परीक्षण और अनियमित डबल-ब्लाइंड परीक्षण किया जाता है। 2004 में, U.S. के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के नेशानल सेंटर फॉर कंप्लीमेंटरी एण्ड अल्टरनेटिव मेडिसीन ने हर्बल औषधियों की प्रभावकारिता की नैदानिक जांच के लिए आर्थिक मदद देना शुरू किया।[189] 2010 में 1000 पौधों के सर्वेक्षण में, 156 की नैदानिक जांच में उनका मूल्यांकन करते हुए उनके "औषधीय गतिविधियों और उपचरात्मक अनुप्रयोगों" को प्रकाशित किया गया, जबकि 12% पौधे, हालांकि पश्चिमी बाजार में उपलब्ध हैं, के गुणों का "पर्याप्त अध्ययन नहीं किया गया".[190]

कई जड़ी बूटियों ने पशु मॉडल या छोटे पैमाने पर कृत्रिम परिवेशीय नैदानिक जांच में सकारात्मक परिणाम दिखाया,[191] लेकिन हर्बल उपचार के बहुत सारे अध्ययनों में नकारात्मक परिणाम भी मिले.[192] हर्बल उपचार पर परीक्षणों की गुणवत्ता बहुत ही परिवर्तनशील है और हर्बल उपचार के बहुत सारे परीक्षण उपचार खराब गुणवत्ता के पाए गए हैं, बहुत सारे परीक्षणों में उपचार के विश्लेषण में उद्देश्य या इरादा सफल रहा या नहीं पर टिप्पणी की कमी रही.[193] कुछ अनियमित तरीके से किए गए डबल-ब्लाइंड परीक्षण, जिस पर मेडिकल प्रकाशनों का ध्यान गया, के प्रणाली संबंधी आधार या इसकी व्याख्या पर सवाल उठाये गए। इसी तरह, मेडिकल पत्रिकाओं में चीर-फाड़ वाली समीक्षा प्रकाशित हुई, जैसे विशेष तरह के हर्बल जर्नल की तुलना में जर्नल ऑफ द अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन ने इसकी अच्छी तरह से विवेचना की.

एक अध्ययन में पाया गया कि वैकल्पिक चिकित्सा के पत्रिकाओं ने गैर प्रभाव कारक के नकारात्मक परिणामों की तुलना में सकारात्मक परिणामों र्क प्रकाशित किया गया और उस परीक्षण से मिले नकारात्मक परिणाम की तुलना में सकारात्मक परिणाम कम गुणवत्तावाले थे। दूसरी ओर, मुख्यधारा की मेडिकल पत्रिकाओं ने सकारात्मक और नकारात्मक परिणामों के साथ बराबर की संख्या में परीक्षण प्रकाशित किए॰ उच्च प्रभाववाले पत्रिकाओं ने भी नकारात्मक परिणाम पाये जानेवाले परीक्षणों की तुलना में सकारात्मक परिणाम मिलनेवाले परीक्षणों में कम गुणवत्ता प्राप्त किया है।[192] एक अन्य अध्ययन में बताया गया कि हर्बल दवाओं के कुछ नैदानिक अध्ययन, इसी तरह के मेडिकल अध्ययन से अवर नहीं थे।[194] हालांकि, इस अध्ययन ने जोड़ी मिलान डिजाइन का प्रयोग किया और सभी तरह के हर्बल परीक्षणों, जो नियन्त्रित नहीं थे, प्रयोगिक औषधि का उपयोग नहीं किया गया या अनियमित या अर्द्ध-अनियमित निर्धारण का उपयोग नहीं किया।

मुख्यधारा के अध्ययन की इस आधार पर वैद्य आलोचना करते हैं कि वे ऐतिहासिक उपयोग का इस्तेमाल अपर्याप्त मात्रा में करते हैं, जो वर्तमान और अतीत में औषधि की खोज और विकास में बहुत ही उपयोगी हैं।[2] उनका कहना है कि चयन के कारकों जैसे सर्वोत्कृष्ट खुराक, प्रजाति और कटाई के समय और आबादी को लक्ष्य बनाने में परंपरा मार्गदर्शन कर सकती है।[195]

हर्बल उपचार के लिए आमतौर पर खुराक खास मायने रखती है जबकि प्रभावकारिता और सुरक्षित खुराक (विशेषतौर पर शरीर के वजन, औषधि के परस्पर क्रिया आदि से संबंधित मामलों में) को सुनिश्चित करने के लिए अधिकांश औषधि की कड़ाई जांच होती है, बाजार में विभिन्न हर्बल उपचार के लिए खुराक की कुछ किस्में उपलब्ध हैं।[उद्धरण चाहिए] इसके अलावा, एक पारंपरिक औषधीय दृष्टिकोण से, हर्बल दवाओं को सम्पूर्ण रूप में आमतौर पर समान खुराक या औषधि की गुणवत्ता की गारंटी नहीं दी जा सकती, क्योंकि हो सकता है किन्हीं नमूने में कमोवेश एक जैसी सक्रिय सामग्री डाली गयी हो.

जड़ी-बूटियों के मानकीकरण के कई तरीकों को लागू किया जा सकता है। इनमें से कच्चे माल में विलायक का अनुपात है। हालांकि एक ही प्रजाति के पौधे में विभिन्न नमूनों में रासायनिक सामग्री अलग हो सकती है। इस कारण, कभी-कभी उत्पादकों द्वारा इस्तेमाल करने से पहले अपने उत्पाद की मात्रा का आंकलन करने के लिए वर्णलेखन की पतली परत का प्रयोग किया जाता है। एक अन्य तरीका उत्कृष्ट रासायनिक के मानकीकरण का है।[196]

मानक और गुणवत्ता नियन्त्रण

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नियन्त्रण का मुद्दा वह क्षेत्र है जहां EU और USA में विवाद जारी है। इसके एक छोर कुछ वैद्यों का कहना है कि परंपरागत उपचार के उपयोग का एक लंबा इतिहास है और परजैविकों (xenobiotic) की तरह या कृत्रिम रूप से संकेन्द्रित किसी एक सामग्री के रूप में सुरक्षा परीक्षण के स्तर की जरूरत नहीं है नहीं है।[उद्धरण चाहिए] दूसरी ओर, अन्य गुणवत्ता मानकों, सुरक्षा परीक्षण और योग्य चिकित्कों द्वारा नुस्खा लिखे जाने को कानूनी तौर पर लागू करने के पक्ष में हैं।[उद्धरण चाहिए] कुछ पेशेवर जूड़ी-बूटी विक्रेताओं के संगठनों ने हर्बल उत्पाद के लिए अधिनियम की श्रेणी की मांग करते हुए बयान दिया है।[197] फिर भी गुणवत्ता की जांच की आवश्यकता से अन्य सहमत हैं, लेकिन माना जाता है कि सरकार के हस्तक्षेप के बैगर प्रतिष्ठा के बल पर इसे व्यवस्थित किया जा सकता है।[198] हर्बल सामग्री का कानूनी दर्जा अलग-अलग देश में भिन्न होता है।

EU में, हर्बल दवाएं अब यूरोपियन डाइरेक्टिव ऑन ट्रेडेशनल हर्बल मेडिसीन प्रोडक्ट्स के तहत नियन्त्रित होता है।

संयुक्त राज्य अमेरिका में, ज्यादातर हर्बल उपचार फूड एण्ड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा पूरक आहार के रूप में नियन्त्रित है।[उद्धरण चाहिए] इस श्रेणी में पड़नेवाले उत्पादों के निर्माताओं को उनके उत्पाद की सुरक्षा और प्रभावकारिता को साबित करने की आवश्यकता नहीं है, हालांकि एफडीए (FDA) किसी उत्पाद को बिक्री से वापस ले सकती है तो उसे हानिकारक साबित किया जा सकता है।[199][200]

इस उद्योग का सबसे बड़ा व्यापार संघ नेशनल न्यूट्रिशनल फूड्स एसोसिएशन ने 2002 से सदस्य कंपनियों को अपने उत्पाद पर अनुमोदन का मोहर जीएमपी (GMP) (गुड मैन्यूफैक्चरिंग प्रैक्टिसेस) के प्रदर्शन का अधिकार देकर, उनके उत्पादों और कारखाने की स्थिति की जांच का कार्यक्रम चला रखा है।[60]

UK में, US की ही तरह हर्बल उपचारों को जो बिना नुस्खे के ही किए जाते है को पूरक के रूप में नियन्त्रित किया गया है।[उद्धरण चाहिए] हालांकि, योग्य "चिकित्सक वैद्यों" द्वारा निजी परामर्श के बाद जो हर्बल उपचार निर्धारित किए जाते हैं और तैयार किए जाते हैं, वे औषधि के रूप में नियन्त्रित होते हैं।

एक चिकित्सा वैद्य कुछ जड़ी-बूटी को, जो बिना नुस्खे के उपललब्ध नहीं है और दवा अधिनियम के अनुसूची III के तहत आता है; पर्ची में लिख सकता है।[उद्धरण चाहिए] UK में आगामी दिनों में हर्बल उत्पादों के कानून में होनेवाले बदलाव का अभिप्राय इस्तेमाल होनेवाले हर्बल उत्पादों की गुणवत्ता को सुनिश्चित करना है।[उद्धरण चाहिए]

कुछ जड़ी बूटी, जैसे कैनबिस (Cannabis) ज्यादातर देशों में पूरी तरह से प्रतिबंधित हैं। 2004 से, एक आहार अनुपूरक के रूप में एफेड्रा (ephedra) की बिक्री संयुक्त राज्य अमेरिका में फूड एण्ड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा निषिद्ध है[201] और यूनाइटेड किंगडम में अनुसूची III के तहत प्रतिबंधित है।

विलुप्ति के खतरे

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18 जनवरी 2008 को, बोटानिकल गार्डेन्स कंजर्वेशन इंटरनेशनल (120 देशों के वनस्पति उद्यान का प्रतिनिधित्व करता है) ने कहा कि "400 औषधीय पौधे अत्यधिक इकट्ठा कर लिये जाने और वनों की कटाई के कारण विलुप्ति के कगार पर है, भविष्य में बीमारी के इलाज के खोज के लिए संकट की बात है।" इसमें यू पेड़ (इसकी छाल का इस्तेमाल पैक्लीटैक्सेल (paclitaxel) नाम की कैंसर की दवा बनाने में होता है), हुडिया (Hoodia) (नामीबिया से वजन घटाने का स्रोत), मैगनोलिया का आधा (5,000 सालों से इसका उपयोग कैंसर, विक्षिप्तता और हृदय रोग से लड़ने के लिए चीनी दवा के रूप में) और ऑटम क्रोकस (Autumn crocus) (गाठिया के लिए) शामिल है। इस समूह ने यह भी पाया कि 5 मिलियन लोग सेहत की देखभाल के लिए पारंपरिक पौधों पर आधारित औषधि से उपकृत हो रहे हैं।[202] कुछ वैद्य इस समस्या के प्रति जागरूक हैं और परिणामस्वरूप न्यूनतम चिंतावाली प्रजाति के पूरक बनाया है।

इन्हें भी देखें

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  1. आचार्य, दीपक और श्रीवास्तव अंशु (2008): स्वदेशी हर्बल दवाएं: जनजातीय योगों और पारंपरिक हर्बल आचरण, आविष्कार प्रकाशकों के वितरक, जयपुर, भारत. ISBN 978-81-7910-252-7. पीपी 440.
  2. Fabricant DS, Farnsworth NR (2001). "The value of plants used in traditional medicine for drug discovery". Environ. Health Perspect. 109 Suppl 1: 69–75. PMID 11250806. पी॰एम॰सी॰ 1240543. नामालूम प्राचल |month= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  3. Lai PK, Roy J (2004). "Antimicrobial and chemopreventive properties of herbs and spices". Curr. Med. Chem. 11 (11): 1451–60. PMID 15180577. नामालूम प्राचल |month= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  4. Tapsell LC, Hemphill I, Cobiac L; एवं अन्य (2006). "Health benefits of herbs and spices: the past, the present, the future". Med. J. Aust. 185 (4 Suppl): S4–24. PMID 17022438. नामालूम प्राचल |month= की उपेक्षा की गयी (मदद); Explicit use of et al. in: |author= (मदद)सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
  5. तलालय पी. और तलालय पी., "संयंत्रों से एजेंटों में वैज्ञानिक सिद्धांतों का उपयोग कर के विकास औषधीय के महत्त्व, शैक्षणिक चिकित्सा, 2001, 76, 3, पृष्ठ238.
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आगे पढ़ें

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बाहरी कड़ियाँ

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