नव वर्ष का दिन

ग्रेगोरियन कैलेंडर में वर्ष का पहला दिन; 1 जनवरी

नए बरस का दिन 1 जनवरी को मनाया जाता है, नए वर्ष का पहला दिन ग्रेगोरियन और जूलियन कैलेंडर दोनों के उपरान्त मनाया जाता है। नए बरस की छुट्टी बहुत बार अग्नि-क्रीड़ा, परेड और भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए अंतिम वर्ष पर प्रतिबिंब द्वारा चिह्नित की जाती है। बहुत से लोग नए बरस का आनन्दोत्सव प्रियजनों के साथ में मनाते हैं, जिसमें आगामी वर्ष में भाग्य और सफलता लाने के लिए परम्पराएँ सम्मिलित हैं। बहुत से कल्चर इस हर्ष के दिन को अपने अनोखे ढंंग से मनाते हैं। पाश्चात्य देशों में सामान्य रूप से नए बरस के दिन के रीति- परम्पराओं में शैंपेन और विभिन्न खाद्य पदार्थों के साथ आनन्द मनाना सम्ममिलित है, पर इसकी लत्त शरीर के लिए हानिकारक है तथा भगवान के संविधान के विरुद्ध भी।[1] नए बरस का नया हर्ष और एक सुथरी स्लेट की एक दिनांंक को चिह्नित किया गया है। कईयों के लिये नए बरस का आनन्द मनाने के लिए, यह पूर्व वर्ष से सीखने और उनके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन करने का अवसर है।

नए वर्ष का दिन
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नये वर्ष के अवसर पर फ़्लोरिडा में अग्नि-क्रीड़ा का एक दृश्य।
अनुयायी ग्रेगोरियन कैलेंडर के उपयोगकर्ता
तिथि 1 जनवरी
आवृत्ति वार्षिक
नव वर्ष के दिन अग्नि-क्रीड़ा

नए वर्ष का त्योहार सबसे पुराने त्योहारों में से एक है, पर समय के साथ उत्सव की ठीक दिनांक और प्रकृति परिवर्त गई है। यह सहस्रों वर्ष पहले प्राचीन बाबिल में उत्पन्न हुआ था, वसन्त के पहले दिन को ग्यारहवें दिन के त्योहार के रूप में मनाया जाता था। इतने समय में कई संस्कृतियों ने वर्ष के "पहले" दिन को निर्धारित करने के लिए सूर्य और चंद्रमा चक्र का उपयोग किया। जब तक जूलियस सीजर ने जूलियन कैलेंडर लागू नहीं किया, तब तक कि पहली जनवरी उत्सव का सामान्य दिन बन गया। उत्सव की सामग्री के रूप में अच्छी से विविध है। जबकि आरम्भिक समारोह प्रकृति में अधिक मूर्तिपूजक थे, पृथ्वी के चक्र का आनन्द मनाते हुए, ईसाई परम्परा नए वर्ष के दिन मसीह के खतना का पर्व मनाती है। रोमन कैथोलिक भी बहुत बार मैरी की इज़्ज़त की दावत के लिए सोलेमिटी ऑफ़ मैरी, मदर ऑफ़ गॉड को मनाते हैं। हालाँकि, बीसवीं शताब्दी में, अवकाश अपने स्वयं के उत्सव में बढ़ गया और धर्म के साथ सामान्य जुुड़़ाव से अलग हो गया। यह धार्मिक उत्सव के स्थान पर राष्ट्रीयता, सम्बन्ध-नाते और आत्मनिरीक्षण से जुड़ी एक छुट्टी बन गई है, ऐसे होते हुये भी बहुत से लोग अभी भी बहुत पुरानी परम्पराओं का पालन नहीं करते हैं।[2]

नए वर्ष का दिन और परम्पराएँ

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पूर्वी एशिया[3]

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चीनी नव वर्ष
 
चीनी नव वर्ष
 
चीनी नव वर्ष

चीन में एक महीने पहले से ही घरों की सुथराई और रंग-रोगन चालू हो जाता है। इस त्योहार में कुसुम्बी रंग महत्वपूर्ण होता है और खिड़की द्वार बहुत बार इसी रंग से रंगे जाते हैं। कागज के बंदनवार और सजावट की जाती है। खाने में कुछ विशेष व्यंजन बनते हैं और पहनने में रंगों का विशेष ध्यान रखा जाता है। लाल पहनना शुभ, और काला या श्वेत अशुभ समझा जाता है। वर्ष की अन्तिम रात के भोजन करने पर सारा परिवार एक साथ ताश व चौपड़ जैसा कोई खेल खेलते हुए या टीवी देखते हुए नए बरस की प्रतीक्षा करता है। अगले दिन बालकों और अविवाहितों को सुख के प्रतीक के रूप में पैैैसों से भरा कुसुुम्बी थैला दिया जाता है। सगे-सम्बन्धियों और पड़ोसियों के यहाँ जाकर बधाइयों का आदान-प्रदान किया जाता है। चीनी लोगों का ऐसा मानना है कि सभी रसोइयों में एक देवता रहता है जो उस परिवार का सारे वर्ष का लेखा-जोखा वर्ष के अन्त में ईश्वर के पास पहुँचाता है और फिर से उसी परिवार में लौट आता है। सो इस सप्ताह में उसे विदा करने और फिर से उसका स्वागत करने के लिए पूरे सप्ताह अग्नि-क्रीड़ा चलती है और स्वागत समारोह आयोजित किए जाते हैं। तेज अग्नि-क्रीड़ा के पीछे उद्देश्य बुरी आत्माओं को भगाना भी माना जाता है। यहाँ ड्रैगन दीर्घ आयु और सुख समृद्धि का प्रतीक है।

 
जापानी नव वर्ष
 
जापानी नव वर्ष

जापानी नव वर्ष पहले २० जनवरी से १९ फरवरी के बीच हुआ करता था। पर अब यह २९ दिसम्बर की रात से ३ जनवरी तक ३ दिन तक मनाया जाता है। इस पर्व को यहाँ याबुरी नाम से जाना जाता है। दीवाली की तरह घर की सफ़ाई इस त्योहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। घर ही नहीं अपितु बौद्ध और शितो मंदिरों की भी बड़े आयोजन के साथ दिसंबर में ही सफ़ाई और सजावट आरंभ हो जाती है। सजावट में पाइन बांस और प्लम पेड़ों के विभिन्न हिस्सों का उपयोग किया जाता है और घर के बाहर रोशनी की जाती है। जापानियों का मानना है कि साफ़ घर में सुख और समृद्धि आती है।

इस त्योहार का प्रमुख कार्यक्रम होता है साल की अंतिम रात को १२ बजे मंदिर की घंटियों का १०८ बार बजना। लोगों की सुविधा के लिए इसका सजीव प्रसारण रेडियो और टीवी पर भी किया जाता है। इन घंटियों की आवाज़ के साथ पूरा राष्ट्र एक साथ नव वर्ष की प्रार्थना करता है। लोग मंदिरों में जाते हैं और भगवान बुद्ध की पूजा करते हैं। ऐसा समझा जाता है कि इससे भगवान प्रसन्न हो कर उनको साल भार सुख समृद्धि प्रदान करते हैं। अगले तीन दिन तक विशेष प्रकार का भोजन किया जाता है जिसमें "ओजोनी" नाम का सूप अवश्य होता है। यह सूप सोयाबीन और मछली के शोरबे से बनाया जाता है। कार्ड भेजना जापानियों में बहुत लोकप्रिय है। ये कार्ड जापानी डाक सेवा 'नेनगाजो' से ख़रीदे जाते हैं और पहली जनवरी से पहले ही पोस्ट कर दिए जाते हैं। जापानी डाकसेवा इन्हें पहली जनवरी को बाँटने की विशेष व्यवस्था करती है।अनुमान है कि एक जापानी नव वर्ष के सैंकडों कार्ड तक भेजता है।

 
कोरियन नव वर्ष

कोरिया में भी अनेक अन्य एशियाई देशों की तरह नया साल सौर वर्ष और चंद्र वर्ष के अनुसार दो बार मनाया जाता है। ज़्यादातर लोग सौर वर्ष को ही नया साल मनाते हैं। इसे 'सोल-नल' कहा जाता है और यह पूरे परिवार के इकट्ठा होने पर आपस में मिल कर मनोरंजन, प्रेम और हँसी-खुशी बाँटने का दिन होता है। इससे एक दिन पहले, फूस से बुनी हुई ख़ास तरह की छलनियाँ, जिन्हें 'बुक जोरी' कहते हैं, दरवाज़ों पर टाँगी जाती हैं। ऐसा विश्वास है कि ये घर को बुरी नज़र से बचाती हैं। पाँच रंगों से सजे नए कपड़े पहने जाते हैं जिन्हें 'सोल-बिम' कहा जाता है।

नए साल की सुबह-सुबह सब लोग परिवार के सबसे बड़े पुरुष सदस्य के घर एकत्र होते हैं। यहा 'चा-राय' नामक परंपरा को निभाया जाता है। इस परंपरा में अपने पूर्वजों को याद किया जाता है और 'टोक-कुक' के प्याले परोसे जाते हैं। यह एक प्रकार का पतला सूप होता है जिसमें चावल के महीन टुकड़े और बीफ के शोरबे का प्रयोग किया जाता है। इसे स्वास्थ्य वर्धक समझा जाता है। 'टोक-कुक' का अर्थ है आयु लाभ। ऐसा मानना है कि एक कटोरा सूप से जीवन में एक साल आयु बढ़ जाती है। इस प्रकार सभी अपनी उम्र इस दिन एक साल बढ़ा देते हैं।

सुबह के भारी भरकम नाश्ते के बाद छोटे लोग बड़ों के सामने झुककर आशीर्वाद लेते है। इसको 'से-बे' या 'जोल' कहा जाता है। 'जोल' के लिए अपने दोनों हाथों को आँखों के सामने रखना होता है। घुटने ज़मीन को छू जाएँ इस तरह बैठना होता है और हाथों के साथ-साथ सिर को भी झुका कर ज़मीन से छुआ देना होता है। छोटे बच्चे यह क्रिया आसानी से कर सकते हैं। बड़ी उम्र के लोग दूसरों की सहायता ले लेते हैं। बच्चे छोटे-छोटे सजावटी बटुए बनाते हैं जिन्हें 'बुक जु मो नी' कहा जाता है। 'जोल' के बाद सब बड़े लोग छोटों को पैसे देते हैं। बच्चे अपने पैसे नए बनाए गए 'बुक जु मो नी' में रखते हैं।

जोल के बाद लड़के घर से बाहर आकर पतंग उड़ाते हैं और लट्टू नचाते हैं। लड़कियाँ सी-सॉ पर खेलती हैं। घर के भीतर 'युत नो री' खेला जाता है। इसमें चार सीकों और चौखानों का प्रयोग होता है। जबतक परिवार साथ रहता है दादा से लेकर पोती तक सब लोग दिन भर खेल मनोरंजन और खाने पीने का आनंद उठाते हैं।

दक्षिण - पूर्व एशिया[4]

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थाइ नव वर्ष

थाइलैंड में नए साल के त्यौहार को "सोन्गक्रान' कहते हैं। उनका नए साल का यह त्योहार १३ से १५ अप्रैल, ३ दिन चलता है। रीति के अनुसार सब लोग एक दूसरे पर पानी का छिड़काव करते हैं। बाल्टियाँ भर-भर कर किसी पर भी निशाना साधा जाता है। शायद अप्रैल महीने की गरमी में पानी का यह छिड़काव गरमी से भी राहत दिलाता है। पूरे देश में इस त्यौहार की धूम होती है। बैंकाक जैसे बड़े शहरों में लोग ३-४ दिन के लिए घूमने जाना पसंद करते हैं। इस दिन बड़ों के पाँव छू कर ग़लतियों के लिए माफ़ी माँगी जाती है और उनके हाथों पर पानी डाला जाता है। ऐसा समझा जाता है कि इससे आने वाले साल में अच्छी वर्षा होती है। गौतम बुद्ध की मूर्तियों का स्नान करवाया जाता है और प्रार्थना के साथ-साथ चावल, फल, मिठाइयाँ आदि का दान किया जाता है। दूसरे रिवाज के अनुसार भाग्य सँवारने के उद्देश्य से पिंजरे में बंद पंछी या घर में रखे मछलीपॉट से मछलियों की रिहाई की जाती है। 'साबा' नामक खेल भी इन दिनों खेला जाता है। लोग नदी किनारे लोग मौज मस्ती करने आते हैं। छोटे बच्चे रेत में किले बनाकर उनमें झंडा लगाते हैं।

म्यांमार

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म्यांमार में नव वर्ष

म्यांमार में, जो भारत का पड़ोसी देश है, नव वर्ष के उत्सव को 'तिजान' कहते हैं जो तीन दिन चलता है। यह पर्व अप्रैल के मध्य में मनाया जाता है। भारत में होली की तरह इस दिन एक दूसरे को पानी से भिगो देने की परंपरा इस पर्व का प्रमुख अंग है। अंतर इतना है कि इस पानी में रंग की जगह इत्र पड़ा होता है।

प्लास्टिक की पिचकारियों में पानी भर कर लोग बिना छत की गाड़ियों में सवार एक दूसरे पर खुशबूदार पानी की बौछारें करते चलते हैं। त्योहार की तैयारी एक हफ़्ते पहले से शुरू हो जाती है। घरों की सफ़ाई और सजावट तो होती ही है, सड़कों पर शामयाने लगाकर खुशी मनाई जाती है। मित्रों व परिचितों को बुलाया जाता हे और मिठाइयाँ खिलाकर नव वर्ष के पर्व का मज़ा उठाया जाता है। विभिन्न प्रकार के नृत्य और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है और यह कार्यक्रम हफ़्ते भर तक चलते ही रहते हैं। भगवान बुद्ध की पूजा का इस पर्व का विशेष अंग है।

दक्षिण अमेरिका

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दक्षिण अमेरिकाकोलंबिया, में नए वर्ष का स्वागत अनोखे ढंग से किया जाता है। अनो न्यूइवो याने बीता साल, का पुतला घर के सभी सदस्यों के कपड़े मिलाकर बनाया जाता है। इसे अख़बार और काग़़जों से भरा जाता है रंग बिरंगी कागज़ और तरह-तरह के पटाखों से सजाया जाता है। एक कागज़ पर अपने नापसंद काम या दुर्भाग्य, बुराइयों के बारे में लिख कर इस पर चिपकाया जाता है ताकि इस पुतले के साथ उनका भी नाश हो जाए। ठीक रात के बारह बजे अनो न्यूइवो को जलाया जाता है। और वह राख में तब्दील होने लगता है तो लोग खुशी मनाते हैं यह सोच कर कि सभी बुराइयाँ, दुर्भाग्य, पुरानी गल़तियों का नाश हुआ है। घर में इसे जलाना है तो यह बहुत ही छोटे आकार का बनाया जाता है और घर के सदस्यों के कपड़ों की जगह सिर्फ़ काग़ज़ ही इस्तेमाल किया जाता है।

दक्षिण एशिया

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भारत के विभिन्न हिस्सों में नव वर्ष अलग-अलग तिथियों को मनाया जाता है। प्रायः ये तिथि मार्च और अप्रैल के महीने में पड़ती है। पंजाब में नया साल बैशाखी नाम से १३ अप्रैल को मनाई जाती है। सिख नानकशाही कैलंडर के अनुसार १४ मार्च होला मोहल्ला नया साल होता है। इसी तिथि के आसपास बंगाली तथा तमिळ नव वर्ष भी आता है। तेलगु नया साल मार्च-अप्रैल के बीच आता है। आंध्रप्रदेश में इसे उगादी (युगादि=युग+आदि का अपभ्रंश) के रूप में मनाते हैं। यह चैत्र महीने का पहला दिन होता है। तमिल नया साल विशु १३ या १४ अप्रैल को तमिलनाडु और केरल में मनाया जाता है। तमिलनाडु में पोंगल १५ जनवरी को नए साल के रूप में आधिकारिक तौर पर भी मनाया जाता है। कश्मीरी कैलेंडर नवरेह १९ मार्च को होता है। महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा के रूप में मार्च-अप्रैल के महीने में मनाया जाता है, कन्नड नया वर्ष उगाडी कर्नाटक के लोग चैत्र माह के पहले दिन को मनाते हैं, सिंधी उत्सव चेटी चंड, उगाड़ी और गुड़ी पड़वा एक ही दिन मनाया जाता है। मदुरै में चित्रैय महीने में चित्रैय तिरूविजा नए साल के रूप में मनाया जाता है। मारवाड़ी नया साल दीपावली के दिन होता है। गुजराती नया साल दीपावली के दूसरे दिन होता है। इस दिन जैन धर्म का नववर्ष भी होता है।लेकिन यह व्यापक नहीं है। अक्टूबर या नवंबर में आती है। बंगाली नया साल पोहेला बैसाखी १४ या १५ अप्रैल को आता है। पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में इसी दिन नया साल होता है।[5]

अफ़ग़ानिस्तान

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अफ़ग़ानिस्तान में नव वर्ष पहली जनवरी को न मानकर 'अमल' की पहली तारीख अर्थात गेगरी कैलेंडर की २१ मार्च को मनाया जाता है। २० मार्च नई दुनिया का प्रमुख दिन होता है। उस रात हरी सब्ज़ियों के साथ-साथ कढ़ी-चावल भी बनते हैं। लोग नए कपड़े पहनते हैं। १२ बजे बत्तियाँ बुझा दी जाती हैं तथा रिकॉर्ड की धुन पर लोग नृत्य करते हैं।

१२ बजे का ऐलान होते ही लोग एक-दूसरे को नव वर्ष की शुभकामनाएँ देना शुरू कर देते हैं। यह कार्यक्रम अधिकतर खुले आकाश के नीचे होता है। यहाँ के सात फलों को मिलाकर एक पेय 'मेवाना नोबराज' अर्थात 'नव वर्ष का मेवा' बनाया जाता है। दिन के समय सब मिलकर विशेष प्रकार का भोजन करते हैं। फिर दो-तीन बजे के लगभग घर से बाहर कहीं जाना तथा घास पर चलना ज़रूरी होता है। इसे 'सबजाला-हा-गाटकरदान' कहते हैं।

स्पेन में इस दिन रात्रि के १२ बजे के बाद एक दर्जन ताज़े अंगूर खाने की परंपरा है। इनकी मान्यता है कि ऐसा करने से वे साल भर स्वस्थ रहते हैं। नव वर्ष ३१ दिसंबर की रात को मनाया जाता है। सब लोग अपने-अपने अंगूरों के साथ बारह बजने की प्रतीक्षा करते हैं। जैसे ही बारह बजते हैं, घड़ी के घंटों के साथ इस विशेष प्रथा का पालन होता है।

नियम यह है कि हर घंटे के साथ एक अंगूर मुँह में रखा जाना चाहिए और बारह घंटे पूरे होते ही बारह अंगूर ख़त्म हो जाने चाहिए। हालाँकि ऐसा होता नहीं है। सबके मुँह अंगूरों से भरे होते हैं और वे एक दूसरे को देख कर हँसने लगते हैं।

कहते हैं कि प्राचीन काल में एक बार अंगूरों की बहुत अच्छी फसल हुई। इससे प्रसन्न होकर राजा ने देश के हर नागरिक को साल के अंतिम दिन बारह अंगूर भेंट किए। तभी से इस प्रथा का प्रारंभ हुआ।

रूस में नव वर्ष मनाने की परंपरा तीन सौ साल पहले प्रारंभ हुई जब वहाँ पीटर प्रथम ने नए साल का पौधा लगाया था और ऐलान किया कि हर साल पहली जनवरी को नए साल का त्यौहार मनाया जाएगा। आजकल वहाँ नए साल की खूब धूम होती है। रूसी सेंटा क्लाज़, जिसे फादर फ्रॉस्ट कहते हैं, सड़कों पर अपनी सजधज और परेड से बच्चों को लुभाते हैं। लोग इस दिन का साल भर बड़ी बेसब्री से इंतज़ार करते हैं। छोटे बच्चों को तोहफ़े का इंतज़ार रहता है तो बड़े यह सोचते हैं कि आने वाला साल उनके लिए खुशियाँ और समृद्धि भरा होगा।

१३-१४ जनवरी की रात में नया साल दुबारा मनाया जाता है। इसे "पुराना नया साल" कहा जाता है। बाकी दुनिया में ज्यूलियन कैलेंडर इस्तेमाल किया जाता है जबकि रूस में जॉर्जियन। दोनों कैलेंडरों में १३ दिन का फर्क होता है। नए साल का स्वागत कुछ लोग अपने घरों में, कुछ रेस्तरां में तो कुछ देवदार वृक्ष के समीप करते हैं। एक दूसरे को नए साल की बधाई देना यहाँ बहुत ही शुभ माना जाता है। घरों को साफ़ सुथरा कर सजाया जाता है। देवदार वृक्ष घर में लाकर उसे गुब्बारे, रंगीन फ़ीते और कई सजावटी चीज़ों से सजाया जाता है। रंगबिरंगे बल्बों से इसे रोशन किया जाता है। इस पौधे के नीचे बुजुर्गों के दिए हुए खिलौने रखे जाते हैं। शाम को बच्चे इस पौधे के ईद-गिर्द घूमकर गाना गाते हैं, नाचते हैं। जवान बच्चे एक दूसरे के घर जा कर नए साल की खुशी बाँटते हैं। उनका फल, मिठाई, काजू, बदाम से मुँह मीठा किया जाता है और छोटे सिक्के दिए जाते हैं। बीते साल के बीतने पर और नए साल के आगमन पर बड़ी-बड़ी दावतें की जाती हैं। शैंपेन जैसे मद्य को बहुत महत्व दिया जाता है। मिल बैठकर शैंपेन पी जाती है। आतिशबाजियाँ भी खूब की जाती है। यदि इन दिनों बर्फ़ रही तो बिछी बर्फ़ पर स्केटिंग या हॉकी जैसे खेल खेले जाते हैं।

इस्लामी देशो में

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इस्लामिक कैलेंडर का नया साल मुहर्रम होता है। इस्लामी कैलेंडर एक पूर्णतया चन्द्र आधारित कैलेंडर है जिसके कारण इसके बारह मासों का चक्र 33 वर्षों में सौर कैलेंडर को एक बार घूम लेता है। इसके कारण नव वर्ष प्रचलित ग्रेगरी कैलेंडर में अलग अलग महीनों में पड़ता है।

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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  1. "New Year in Hindi: आ गया नया साल 2022, जानिए कैसे बनाए इस साल को खास!". SA News Channel (अंग्रेज़ी में). 2021-12-30. अभिगमन तिथि 2021-12-30.
  2. "New Year 2022: हमेशा से 1 जनवरी को नहीं मनाया जाता था नया साल, जानें 'न्यू ईयर' का दिलचस्प इतिहास". News18 हिंदी. 2021-12-29. अभिगमन तिथि 2021-12-30.
  3. "नव वर्श्". मूल से 11 अगस्त 2009 को पुरालेखित.
  4. "देश देश में नव वर्ष (२)". मूल से 3 जनवरी 2017 को पुरालेखित.
  5. "भारत में कब-कहां मनाते हैं नया सा" (एचटीएमएल). दैनिक भास्कर. मूल से 2 जनवरी 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि ३१ दिसंबर २००८. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)