रुहेलखण्ड राज्य एक भारतीय राज्य था जो १७२१ में कमज़ोर होते जा रहे मुगल साम्राज्य के अंतर्गत उदित हुआ और १७७४ तक अस्तित्व में रहा। रुहेलखण्ड के पहले नवाब अली मुहम्मद खान थे और १७७४ में जब तक राज्य का अंत नहीं हो गया, तब तक इसका ताज रुहेलाओं के ही सर रहा। रुहेलखण्ड की अधिकांश सीमाएँ अली मुहम्मद खान द्वारा ही स्थापित की गई थीं और इसका अस्तित्व काफी हद तक पड़ोसी अवध राज्य की प्रतिद्वंदिता के लिए रहा; इसी क्षमता में अली मुहम्मद को हैदराबाद के निजाम, क़मरुद्दीन ख़ान का भी समर्थन प्राप्त था। हाफ़िज़ रहमत खान के कुप्रबंधन और रुहेला परिसंघ के आंतरिक विभाजनों के कारण कमज़ोर पड़ चुके इस राज्य पर प्रथम रुहेला युद्ध के कुछ समय बाद अवध के नवाबों ने कब्ज़ा कर लिया। राज्य पर कब्ज़े के समय, रुहेलखण्ड का विस्तार हरिद्वार से अवध तक कुल १२,००० वर्ग मील के क्षेत्र में था, और यहाँ लगभग ६० लाख लोग निवास करते थे।

रुहेलखण्ड राज्य
कटेहर

 

१७२१–१७७४

ध्वज

Located at the foothills of the Himalayas, Map contains most of India
रुहेलखण्ड का मानचित्र में स्थान
१७६५ में रुहेलखण्ड।
राजधानी बरेली
आँवला
भाषाएँ
आधिकारिक भाषा
फ़ारसी
अन्य भाषाएँ
उर्दू, पश्तो, ब्रजभाषा
धार्मिक समूह इस्लाम
शासन राजतंत्र
नवाब
 -  १७३७-१७४८ अली मुहम्मद खान
 -  १७४८-१७५४ अब्दुल्लाह खान
 -  १७५४-१७६४ सादुल्लाह खान
 -  १७६४-१७७४ फ़ैजुल्लाह ख़ान
संरक्षक
 -  १७४८-१७७४ हाफ़िज़ रहमत खान बरेच
विधायिका रुहेला परिषद
इतिहास
 -  अली मुहम्मद खान द्वारा आँवला तथा बिसौली पर कब्ज़ा १७२१
 -  प्रथम रुहेला युद्ध १७७४
क्षेत्रफल
 -  १७७४ ३१०८० किमी ² (एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "३"। वर्ग मील)
जनसंख्या
 -  १७४८ est. ६०,००,००० 
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नामकरण संपादित करें

रुहेलखण्ड क्षेत्र का प्राचीन नाम कटेहर था। रुहेलखण्ड नाम अठारहवीं शताब्दी के मध्य में प्रचलन में आया, जब यह क्षेत्र नवाब अली मोहम्मद खान बहादुर रुहेला द्वारा स्थापित रुहेला राजवंश के शासनाधीन आ गया था। हालाँकि रुहेला शब्द का इस्तेमाल इससे पहले इस क्षेत्र में रह रहे अफ़गान लोगों के लिए किया जाता रहा था।

भूगोल संपादित करें

गंगा नदी के पूर्वी हिस्से की ओर स्थित रुहेलखण्ड का अधिकांश भाग समतल मैदान पर स्थित है, जो अंततः अवध की ओर बढ़ जाता है। अवध और रुहेलखण्ड के बीच कोई प्राकृतिक बाधा नहीं है और दोनों हिमालय पर्वत श्रृंखला के नीचे की अपनी स्थिति के कारण एक नम जलवायु साझा करते हैं। दोनों ही जगह अपने आसपास के क्षेत्रों की तुलना में अधिक बेहतर वनस्पति है, और उन्हें लकड़ी की अधिक से अधिक बहुतायतता के लिए जाना जाता है। बर्फीले हिमालय पर्वत की चोटी की दृश्यता ने इस क्षेत्र को समग्र रूप से सुखद पहलू दिया।

इतिहास संपादित करें

औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद दिल्ली के मुगल शासक कमजोर हो गये तथा अपने राज्य के जमींदारों, जागीरदारों आदि पर उनका नियन्त्रण घटने लगा। उस समय इस क्षेत्र में भी अराजकता फैल गयी तथा यहाँ के जमींदार स्वतन्त्र हो गये। इसी क्रम में, रुहेलखण्ड भी मुगल शासन से स्वतंत्र राज्य बनकर उभरा, और बरेली रुहेलखण्ड की राजधानी बनी। १७४० में अली मुहम्मद रुहेलखण्ड शासक बने, और उनके शासनकाल में रुहेलखण्ड की राजधानी बरेली से आँवला स्थानांतरित की गयी। १७४४ में अली मुहम्मद ने कुमाऊँ पर आक्रमण किया, और राजधानी अल्मोड़ा पर कब्ज़ा कर लिया,[1] और कुछ समय तक उनकी सेना अल्मोड़ा में ही रही। इस समय में उन्होंने वहां के बहुत से मंदिरों को नुकसान भी पहुंचाया। हालाँकि अंततः क्षेत्र के कठोर मौसम से तंग आकर, और कुमाऊँ के राजा द्वारा तीन लाख रुपए के हर्जाने के भुगतान पर, रुहेला सैनिक वापस बरेली लौट गये। हालांकि कुछ समय पश्चात् रोहीलो ने अपनी पूरी ताकत के साथ कुमाँऊ पर दोबारा आक्रमण कीया परन्तु इस बार रोहीलो की हार हुई रोहीला सैनिक बहुत संख्या में मारे गये और जीवीत बचे सैनिक और सेनापती वापिस रूहेलखंड लौट आये[2],इसके दो वर्ष बाद मुग़ल सम्राट मुहम्मद शाह ने क्षेत्र पर आक्रमण किया, और अली मुहम्मद को बन्दी बनाकर दिल्ली ले जाया गया।[1] एक वर्ष बाद, १९४८ में अली मुहम्मद वहां से रिहा हुए, और वापस आकर फिर रुहेलखण्ड के शासक बने, परन्तु इसके एक वर्ष बाद ही उनकी मृत्यु हो गयी, और उन्हें राजधानी आँवला में दफना दिया गया।[1]

 
बरेली में स्थित हाफिज रहमत खान का मकबरा, मई १७८९

अली मुहम्मद के पश्चात उनके पुत्रों के संरक्षक, हाफ़िज़ रहमत खान रुहेलखण्ड के अगले शासक हुए।[1] इसी समय में फर्रुखाबाद के नवाब ने रुहेलखण्ड पर आक्रमण कर दिया, परन्तु हाफ़िज़ रहमत खान ने उनकी सेना को पराजित कर नवाब को मार दिया।[1] इसके बाद वह उत्तर की ओर सेना लेकर बढ़े, और पीलीभीत और तराई पर कब्ज़ा कर लिया।[1] फर्रुखाबाद के नवाब की मृत्यु के बाद अवध के वज़ीर सफदरजंग ने उनकी संपत्ति को लूट लिया, और इसके कारण रुहेलखण्ड और फर्रुखाबाद ने एक साथ संगठित होकर सफदरजंग को हराया, इलाहाबाद की घेराबन्दी की, और अवध के एक हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया।[1] इसके परिमाणस्वरूप वजीर ने मराठों से सहायता मांगी, और उनके साथ मिलकर आँवला के समीप स्थित बिसौली में रुहेलाओं को पराजित किया।[1] उन्होंने चार महीने तक पहाड़ियों की तलहटी में रुहेलाओं को कैद रखा; लेकिन अहमद शाह दुर्रानी के आक्रमण के समय उपजे हालातों में दोनों के बीच संधि हो गयी, और हाफिज खान पुनः रुहेलखण्ड के शासक बन गये।[1]

१७५४ में जब शुजाउद्दौला अवध के अगले वज़ीर बने, तो हाफिज भी रुहेलखण्ड की सेना के साथ उन पर आक्रमण करने निकली मुगल सेना में शामिल हो गये, लेकिन वज़ीर ने उन्हें ५ लाख रुपये देकर खरीद लिया।[3] १७६१ में हाफ़िज़ रहमत खान ने पानीपत के तृतीय युद्ध में अफ़ग़ानिस्तान तथा अवध के नवाबों का साथ दिया, और उनकी संयुक्त सेनाओं ने मराठों को पराजित कर उत्तर भारत में मराठा साम्राज्य के विस्तार को अवरुद्ध कर दिया।[3] अहमद शाह के आगमन, और शुजाउद्दौला के ब्रिटिश सत्ता से संघर्षों का फायदा उठाकर हाफ़िज़ ने उन वर्षों के दौरान इटावा पर कब्ज़ा किया, और लगातार अपने शहरों को मजबूत करने के साथ-साथ और नए गढ़ों की स्थापना करते रहे।[3] १७७० में, नजीबाबाद के रुहेला शासक नजीब-उद-दौला ने सिंधिया और होल्कर मराठा सेना के साथ आगे बढ़े, और उन्होंने हाफ़िज़ खान को हरा दिया, जिस कारण हाफ़िज़ को अवध के वज़ीर से सहायता मांगनी पड़ी।[3]

शुजाउद्दौला ने मराठों को ४० लाख रुपये का भुगतान किया, और वे रुहेलखण्ड से वापस चले गए।[3] इसके बाद, अवध के नवाब ने हाफ़िज़ खान से इस मदद के लिए भुगतान करने की मांग की। जब हाफ़िज़ उनकी यह मांग पूरी नहीं कर पाए, तो उन्होंने ब्रिटिश गवर्नर वारेन हेस्टिंग्स और उनके कमांडर-इन-चीफ, अलेक्जेंडर चैंपियन की सहायता से रुहेलखण्ड पर आक्रमण कर दिया। १७७४ में दौला और कंपनी की संयुक्त सेना ने हाफ़िज़ को हरा दिया, जो मीराँपुर कटरा में युद्ध में मारे गए, हालाँकि अली मुहम्मद के पुत्र, फ़ैजुल्लाह ख़ान युद्ध से बचकर भाग गए।[3] कई वार्ताओं के बाद उन्होंने १७७४ में ही शुजाउद्दौला के साथ एक संधि की, जिसके तहत उन्होंने सालाना १५ लाख रुपये, और ९ परगनों को अपने शासनाधीन रखा, और शेष रुहेलखण्ड वज़ीर को दे दिया।[3]

१७७४ से १८०० तक रुहेलखण्ड प्रांत अवध के नवाब द्वारा शासित था। अवध राज में सआदत अली को बरेली का गवर्नर नियुक्त किया गया था।[3] १८०१ तक, ब्रिटिश सेना का समर्थन करने के लिए संधियों के कारण सब्सिडी बकाया हो गई थी। कर्ज चुकाने के लिए, नवाब सआदत अली खान ने १० नवंबर १८०१ को हस्ताक्षरित संधि में रुहेलखण्ड को ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंप दिया।[3]

जनसांख्यिकी संपादित करें

सन १७७४ में जब राज्य का पतन हो गया था, उस समय रुहेलखण्ड का विस्तार हरिद्वार से अवध तक कुल १२,००० वर्ग मील के क्षेत्र में था, और यहाँ लगभग ६० लाख लोग निवास करते थे। अधिकांश निवासी हिंदू थे हालाँकि जनसंख्या के लगभग एक चौथाई हिस्से का प्रतिनिधित्व धर्मांतरित हुए मुसलमान करते थे।

रुहेलखण्ड के नवाब संपादित करें

नाम शासनकाल प्रारम्भ शासनकाल समाप्त
अली मुहम्मद खान १७२१ १५ सितंबर १७४८
हाफ़िज़ रहमत खानसंरक्षक १५ सितंबर १७४८ २३ अप्रैल १७७४
अब्दुल्लाह खान १७४८ १७५४
सादुल्लाह खान १७५४ १७६४
फ़ैजुल्लाह ख़ान १७६४ १७७४

रुहेला राज्य संपादित करें

मुख्य सरकार के कमजोर पड़ने से रुहेलखण्ड के अंतर्गत निम्न रुहेला राज्यों का उदय हुआ।

रुहेला शाही परिवार के राज्य - ये राज्य अहमद शाह अब्दाली के अनुरोध पर अली मुहम्मद खान के बेटों के लिए बनाए गए थे।

रुहेला सरदारों के राज्य:

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "Imperial Gazetteer2 of India, Volume 7, page 4 -- Imperial Gazetteer of India -- Digital South Asia Library". dsal.uchicago.edu. मूल से 25 जुलाई 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 अगस्त 2019.
  2. Atkinson, Edwin T. (Edwin Thomas), 1840-1890. (1990). Himalayan Gazetter. Cosmo. OCLC 183008777.सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
  3. "Imperial Gazetteer2 of India, Volume 7, page 5 -- Imperial Gazetteer of India -- Digital South Asia Library". dsal.uchicago.edu. मूल से 3 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 अगस्त 2019.