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-- नया सदस्य सन्देश (वार्ता) 15:14, 9 अक्टूबर 2018 (UTC)उत्तर दें

महाराणा प्रताप का इतिहास

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महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 ईस्वी कुंभलगढ़ दुर्ग बादल महल में हुआ प्रताप के पिता का नाम उदय सिंह वह माता का नाम जयंताभाई थाप्रताप का राज्याभिषेक 28 फरवरी 1572 को गोगुंदा में हुआ था

प्रताप का विवाह बिजोलिया की राजकुमारी अजब्दे के साथ हुआ था और( प्रताप की एक प्रेमिका भी थी जो मारवाड़ के मालदेव की पौत्री वह चंद्र सेन की भतीजी थी) उदय सिंह के शासनकाल में अकबर ने संन 1568 में चित्तौड़ पर आक्रमण किया तब उदय सिंह ने जयमल राठौड़ जो मेड़ता का था और फता सिसोदिया जोबिजोलिया का था उसके कंधों पर भार सौंप कर समस्त राजघराना उदयपुर अरावली की पहाड़ियों में प्रस्थान किया जब अकबर ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया उस समय अकबर का सामना जयमल राठौड़ वीर कल्लाजी सत्ता सिसोदिया रावत चुंडावत आदि प्रसिद्ध वीर योद्धा ने अकबर का सामना किया और जयमल राठौड़ की पत्नी फूल कंवर नेराज्य में उपस्थित महिलाओं के साथ अग्नि जोहर किया और यह वीर केसरिया धारण कर और वीरगति को प्राप्त हो गए इस महाराणा प्रताप और अजब दे को बेहोशी की औषधि भोजन के साथ मिलाकर रात को ही पंडित चक्रपाणि के साथ चित्तौड़ के दुर्ग से अरावली की पहाड़ियों की ओर भेज दिया गया था जब प्रताप को पता चला तब तक चितोड पर मुगलों का अधिकार हो चुका थाबाद में प्रताप ने उदयपुर अरावली की पहाड़ियों के बीच 3 वर्ष की कड़ी मेहनत के बाद प्रताप ने अद्भुत दुर्ग का निर्माण किया उदयपुर में ही राणाउदय सिंह की मृत्यु हो जाती है मृत्यु के पश्चात प्रताप की छोटी मां धीर बाई जो जगमाल की मां थी राणा उदयसिंह से यह पत्र में लिखा धीर बाई ने धोखे से अपने पुत्र जगमाल को राज गद्दी पर बैठा दिया जगमाल राणा बनते ही अकबर के साथ अपने राज्य को मिलाने के लिए तैयार हो गया प्रताप ने विरोध किया महाराणा प्रताप ने जगमाल को राज गद्दी से हटाकर खुद महाराणा बना उस समय अकबर को पता चला तब अकबर ने उदयपुर आक्रमण करने की तैयारी की और धीरे-धीरे आगे बढ़ता गया तब उस समय महाराणा प्रताप का भीलो ने बहुत सहायता कीअकबर का जमकर सामना किया और वह धीरे धीरे अकबर की सेना हल्दीघाटी के मैदान की ओर बढ़ने लगी अकबर की सेना लाखों की तादात में थी ओंर भीलों की संख्या मुठी भर थी फिर भी भीलो ने हल्दीघाटी के मैदान तक आने में अकबर की सेना को तकरी बंद 60 70 हजार सैनिकों को मार दिया था बाद में 21 जून 1576 को प्रसिद्ध युद्ध हल्दीघाटी अकबर और महाराणा प्रताप के बीच लड़ा गया युद्ध में प्रताप की हकीम खां सूरी ने सहायता कीऔर अकबर की सेना का मानसिंह ने नेतृत्व कियाऔर एक सेनानायक था अकबर का जिसका नाम बहलोल खां था जिसने महाराणा प्रताप के बहनोंई को मारा था इसी युद्ध में बहलोल खान को महाराणा प्रताप ने घोड़े सहित तलवार से दो भागों में काट दिया था इस युद्ध में महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक के पेर काटने से महाराणा प्रताप को युद्ध मैदान से दूर लेकर चला गया और फिर वीरगति को प्राप्त हो गया महाराणा प्रताप का भाई शक्ति सिंह ने दी महाराणा प्रताप का साथ दिया था और अकबर ने उदयपुर पर अपना अधिकार कर जगमाल को राजा बना दिया था और महाराणा प्रताप ने फिर जंगलों का सहारा लिया जंगल में ही कोष अंगरक्षक दान वीर शिरोमणि भामाशाह ने महाराणा प्रताप को 2500000 स्वर्ण मुद्राएं भेंट की प्रताप ने भामाशाह की सहायता से वह अफगान हकीमन खां सुरी पुजा भील वह राम सिंह तवर की सहायता से फिर से एक विशाल सेना बनाई और धीरे-धीरे मेवाड़ के समस्त राज्यों पर अधिकार कर लियाऔर प्रताप अपने चित्तौड़ पर अधिकार नहीं कर पाया फिर उदयपुर दुर्ग अपना अधिकार कर और जगमाल को देश निकाला दे दिया जगमाल ने अकबर की शरण ले ली बाद में महाराणा प्रताप की 19 जनवरी 1597 को 57 वर्ष की आयु में देहांत हो गया महाराणा प्रताप के शासनकाल में उदयपुर की राजधानी चावंड बनाई जो वह महाराणा प्रताप के शासनकाल की संकट कालीन राजधानी रही मंडोली गांव में प्रताप की 8 खंभों वाली छतरी नहीं गई जिसका निर्माण अमरसिंह प्रथम ने करवाया था महाराणा प्रताप के शासनकाल में अकबर ने फिर उदयपुर पर आक्रमण किया सन 1582 दिवेर के युद्ध में उस समय अकबर के चाचा मुगल के सेनापति सुल्तान खान को महाराणा प्रताप के पुत्र अमर सिंह ने अदभुत वीरता दिखाई दिवेर के युद्ध मैं विजय प्राप्त की कर्नल जेम्स टॉड ने दिवेर के युद्ध को मेवाड़ का मैराथन बताया है

फिर हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप को हार का सामना करना पड़ा यह महाराणा प्रताप Ashok Bishnoi Dholasar (वार्ता) 10:17, 26 अक्टूबर 2018 (UTC)उत्तर दें