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-- नया सदस्य सन्देश (वार्ता) 14:58, 24 जनवरी 2018 (UTC)उत्तर दें

संविधान की मूलसंरचना का सिद्धांत संपादित करें

केशवानंद भारती का नाम भारत के इतिहास में दर्ज रहेगा. आज से लगभग 47 साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने 'केशवानंद भारती बनाम स्टेट ऑफ़ केरल' मामले में एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाया था जिसके अनुसार #संविधान की #प्रस्तावना के #मूलढांचे को #बदला नहीं जा सकता.'

केरल में इडनीर नाम का एक हिन्दू मठ है. केशवानंद भारती इसी मठ के प्रमुख थे. इडनीर मठ केरल सरकार के भूमि-सुधार क़ानूनों को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट गया था. इस क़ानून के तहत मठ की 400 एकड़ में से 300 एकड़ ज़मीन पट्टे पर खेती करने वाले लोगों को दे दी गई थी.केशवानंद भारती उन्होंने 29वें संविधान संशोधन को भी चुनौती दी थी जिसमें संविधान की नौवीं अनुसूची में केरल भूमि सुधार अधिनियम, 1963 शामिल था. इसकी वजह से इस क़ानून को चुनौती नहीं दी जा सकती थी क्योंकि इससे संवैधानिक अधिकारों का हनन होता.

"भूमि सुधार क़ानून के ज़रिए धार्मिक संस्थानों के (संविधान के अनुच्छेद-25 के तहत दिये गए) अधिकार छीन लिए गए थे." 

स्वामी जी, जिन्हें केरल का शंकराचार्य भी कहा जाता है, वे संवैधानिक अधिकारों के मसले को क़ानूनी चुनौती देने वाला चेहरा बने. इस मामले के ज़रिए 1973 में सुप्रीम कोर्ट के सामने ये सवाल आया कि क्या संसद को यह अधिकार है कि वो संविधान की मूल प्रस्तावना को बदल सके?

'इस मामले में भारती को व्यक्तिगत राहत तो नहीं मिली लेकिन 'केशवानंद भारती बनाम स्टेट ऑफ़ केरल' मामले की वजह से एक महत्वपूर्ण संवैधानिक सिद्धांत का निर्माण हुआ

जिसने संसद की संशोधन करने की शक्ति को सीमित कर दिया.

इस मामले की सुनवाई 68 दिनों तक चली थी और मुख्य न्यायाधीश एस एम सिकरी की अध्यक्षता वाली 13 जजों की बेंच ने यह ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाया था. 13 जजों की बेंच में से सात जजों ने बहुमत से फ़ैसला दिया गया कि 'संसद की शक्ति संविधान संशोधन करने की तो है लेकिन संविधान की प्रस्तावना के मूल ढांचे को नहीं बदला जा सकता और कोई भी संशोधन प्रस्तावना की भावना के ख़िलाफ़ नहीं हो सकता.'

न्यायिक समीक्षा, पंथनिरपेक्षता, स्वतंत्र चुनाव व्यवस्था और लोकतंत्र को संविधान का मूल ढांचा कहा गया और साफ़ किया गया कि संसद की शक्तियां संविधान के मूल ढांचे को बिगाड़ नहीं सकतीं, संविधान की प्रस्तावना इसकी आत्मा है और पूरा संविधान इसी पर आधारित है.

इस फ़ैसले के कारण उन्हें 'संविधान का रक्षक' भी कहा जाता था. हालांकि जिस मामले के लिए उन्होंने अदालत का दरवाज़ा खटखटाया था, उसका विषय अलग था. केशवानंद भारती बनाम स्टेट ऑफ़ केरल मामले के ऐतिहासिक फ़ैसले से कई विदेशी संवैधानिक अदालतों ने भी प्रेरणा ली. Dr Manish chaubey (वार्ता) 08:44, 4 अक्टूबर 2020 (UTC)उत्तर दें

जनवरी 2021 संपादित करें

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जुलाई 2021 संपादित करें

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