Keshar Singh Mokawat
प्रस्तावना
Keshar Singh Mokawat जी इस समय आप विकिमीडिया फाउण्डेशन की परियोजना हिन्दी विकिपीडिया पर हैं। हिन्दी विकिपीडिया एक मुक्त ज्ञानकोष है, जो ज्ञान को बाँटने एवं उसका प्रसार करने में विश्वास रखने वाले दुनिया भर के योगदानकर्ताओं द्वारा लिखा जाता है। इस समय इस परियोजना में 8,11,118 पंजीकृत सदस्य हैं। हमें खुशी है कि आप भी इनमें से एक हैं। विकिपीडिया से सम्बन्धित कई प्रश्नों के उत्तर आप को अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों में मिल जायेंगे। हमें आशा है आप इस परियोजना में नियमित रूप से शामिल होकर हिन्दी भाषा में ज्ञान को संरक्षित करने में सहायक होंगें। धन्यवाद।
विकिनीतियाँ, नियम एवं सावधानियाँ
विकिपीडिया के सारे नीति-नियमों का सार इसके पाँच स्तंभों में है। इसके अलावा कुछ मुख्य ध्यान रखने हेतु बिन्दु निम्नलिखित हैं:
|
विकिपीडिया में कैसे योगदान करें?
विकिपीडिया में योगदान देने के कई तरीके हैं। आप किसी भी विषय पर लेख बनाना शुरू कर सकते हैं। यदि उस विषय पर पहले से लेख बना हुआ है, तो आप उस में कुछ और जानकारी जोड़ सकते हैं। आप पूर्व बने हुए लेखों की भाषा सुधार सकते हैं। आप उसके प्रस्तुतीकरण को अधिक स्पष्ट और ज्ञानकोश के अनुरूप बना सकते हैं। आप उसमें साँचे, संदर्भ, श्रेणियाँ, चित्र आदि जोड़ सकते हैं। योगदान से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण कड़ियाँ निम्नलिखित हैं:
अन्य रोचक कड़ियाँ
| |
(यदि आपको किसी भी तरह की सहायता चाहिए तो विकिपीडिया:चौपाल पर चर्चा करें। आशा है कि आपको विकिपीडिया पर आनंद आएगा और आप विकिपीडिया के सक्रिय सदस्य बने रहेंगे!) |
-- नया सदस्य सन्देश (वार्ता) 16:21, 15 जनवरी 2018 (UTC)
Mokawat Rajput संपादित करें
मोकावत वंश परिचय:- संपादित करें
मोकावत वंश परिचय :- मोकावत सूर्यवंशी कछवाह क्षत्रिय राजवंश की एक शाखा है। भगवान राम के पुत्र कुश के वंशज कछवाह कहलाये। महाराजा कुश के वंशजों की एक शाखा अयोध्या से चल कर साकेत आयी, साकेत से रोहतासगढ़ और रोहतासगढ़ से मध्य प्रदेश के उतरी भाग में निषद देश की राजधानी पदमावती आये। रोहतास गढ़ का एक राजकुमार तोरनमार मध्य प्रदेश आकर वहां के राजा गौपाल का सेनापति बना और उसने नागवंशी राजा देवनाग को पराजित कर राज्य पर अधिकार कर लिया और सिहोनियाँ को अपनी राजधानी बनाया। कछवाहों के इसी वंश में सुरजपाल नाम का एक राजा हुवा जिसने ग्वालपाल नामक एक महात्मा के आदेश पर उन्ही के नाम पर गोपाचल पर्वत पर ग्वालियर दुर्ग की नीवं डाली। महात्मा ने राजा को वरदान दिया था कि जब तक तेरे वंशज अपने नाम के आगे पाल शब्द लगाते रहेंगे यहाँ से उनका राज्य नष्ट नहीं होगा। सुरजपाल से 84 पीढ़ी बाद राजा नल हुवा जिसने नलपुर नामक नगर बसाया और नरवर के प्रशिध दुर्ग का निर्माण कराया। नरवर में नल का पुत्र ढोला (सल्ह्कुमार) हुवा जो राजस्थान में प्रचलित ढोला मारू के प्रेमाख्यान का प्रशिध नायक है। उसका विवाह पुन्गल कि राजकुमारी मार्वणी के साथ हुवा था, ढोला के पुत्र लक्ष्मण हुवा, लक्ष्मण का पुत्र भानु और भानु के परमप्रतापी महाराजाधिराज बज्र्दामा हुवा जिसने खोई हुई कछवाह राज्यलक्ष्मी का पुनः उद्धारकर ग्वालियर दुर्ग प्रतिहारों से पुनः जित लिया। बज्र्दामा के पुत्र मंगल राज हुवा जिसने पंजाब के मैदान में महमूद गजनवी के विरुद्ध उतरी भारत के राजाओं के संघ के साथ युद्ध कर अपनी वीरता प्रदर्शित की थी। मंगल राज के दो पुत्र किर्तिराज व सुमित्र हुए, किर्तिराज को ग्वालियर व सुमित्र को नरवर का राज्य मिला| सुमित्र से कुछ पीढ़ी बाद सोढ्देव का पुत्र दुल्हेराय हुवा। जिनका विवाह ढुंढाड़ के मौरां के चौहान राजा की पुत्री से हुवा था। दौसा पर अधिकार करने के बाद दुल्हेराय ने मांची,भांदरेज,खोह और झोट्वाडा पर विजय पाकर सर्वप्रथम इस प्रदेश में कछवाह राज्य की नीवं डाली। मांची में इन्होने अपनी कुलदेवी जमवाय माता का मंदिर बनवाया। वि.सं. 1093 में दुल्हेराय का देहांत हुवा। दुल्हेराय के पुत्र काकिलदेव पिता के उतराधिकारी हुए जिन्होंने आमेर के सुसावत जाति के मीणों का पराभव कर आमेर जीत लिया और अपनी राजधानी मांची से आमेर ले आये। काकिलदेव के बाद हणुदेव व जान्हड़देव आमेर के राजा बने जान्हड़देव के पुत्र पजवनराय हुए जो महान योधा व सम्राट प्रथ्वीराज के सम्बन्धी व सेनापति थे। संयोगिता हरण के समय प्रथ्विराज का पीछा करती कन्नोज की विशाल सेना को रोकते हुए पज्वन राय जी ने वीर गति प्राप्त की थी। आमेर नरेश पज्वन राय जी के लगभग दो सो वर्षों बाद उनके वंशजों में वि.सं. 1423 में राजा उदयकरण आमेर के राजा बने, राजा उदयकरण के पुत्रो से कछवाहों की मोकावत, शेखावत, नरुका व राजावत नामक शाखाओं का निकास हुवा।उदयकरण जी के तीसरे पुत्र बालाजी (जिन्हें बरवाडा की 12 गावों की जागीर मिली) मोकावतों के आदि पुरुष थे। बालाजी के पुत्र महाराज मोकमजी हुए, जिन्हें महाराज मोकाजी के नाम से भी जाना जाता है। महाराज मोकाजी मोकावत वंश के प्रवर्तक हुए। महाराज मोकाजी के वंशज उनके नाम पर मोकावत कहलाये। जिनमें अनेकानेक वीर योध्दा हुए। महाराव शेखा जी के पिता राव मोकल जी के देहांत के बाद महाराज मोका जी के सानिध्य में राव शेखा जी का पालन-पोषण हुआ। राव शेखा जी रिश्ते में महाराज मोका जी के भतीजे थे। महाराज मोका जी व उनके वंशज(मोकावतों) ने आजीवन राव शेखा जी व उनके वंशज(शेखावतों) का साथ दिया।इसलिए कुछ मोकावत अपने को शेखावत भी लिखते हैं, जिनमें से एक पूर्व नौसेना अध्यक्ष एडमिरल विजय सिंह जी मोकावत भी हैं। मोकावतों में नवलसिंह मोकावत बड़े वीर हुए। वि. सं. 1831 में नजफकुली के नेतृत्व में शाही फौज शेखावाटी पर हमला करने चली। वह सिंघाना आकर रूकी वहां से वह भूपालगढ़(खेतड़ी) पर आक्रमण करना चाहती थी। उस समय नवलसिंह मोकावत भूपालगढ़ के किलेदार थे। उन्होंने उस समय तोपों का भारी धमाका किया। जिससे डरकर शाही फौज के तोपखाने के प्रभारी समरू ने नजफकुलीखां को भूपालगढ़ पर आक्रमण नहीं करने की सलाह दी। समरू ने समझाया कि इस दुर्ग को हम जीत नहीं सकेंगे। समरू की सलाह मानकर नजफकुलीखां भूपालगढ़ को छोड़कर सुल्ताना की तरफ बढ़ गया।वि. सं. 1860 में खेतड़ी की सेना ने मराठों के विरुद्ध लासवाडी के युद्ध में जब अंग्रेजों की सहायता की तब खेतड़ी की सेना का नेतृत्व बाघसिंह गोपालजी का व नवलसिंह मोकावत ने किया। इस लड़ाई में दोनों सेनानायक बड़ी वीरता से लड़े और अनेक शत्रुओं को मारकर रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हुए। शेखावाटी में मणकसास, केरपुरा, पूनिया, बिरमी, सोटवारा, सिरोही, झाझड़, बेरी, नारी, कारी, भगेरा, चितौसा, ईस्माइलपुर की ढाणी(चिड़ावा), नयासर, सिरियासर, रामसीसर, मोमासर, खारिया, मंडावा, मुकुंदगढ़, चिराणी, पिलानी, नवलगढ़, सुरजगढ़, चाचीवाद, ठेडी समेत 100 से भी अधिक गांवों में मोकावत कछवाह निवास करते हैं।