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-- नया सदस्य सन्देश (वार्ता) 08:46, 22 जून 2020 (UTC)उत्तर दें

नारी गाथा संपादित करें

यह मेरी मौलिक व स्वरचित कविता है जो 'नारी पूज्या या भोग्या'(काव्य संग्रह) में नीलम प्रकाशन के द्वारा प्रकाशित हुई है। Kuldeep singh tanwar gomla (वार्ता) 09:33, 23 अप्रैल 2024 (UTC)उत्तर दें

मैं नारी हूं। सागर से गहरी,गगन से ऊंची वायु का वेग,अग्नि का तेज शीतल हवा की शीतलता, जल की निर्मलता हूं। मैं नारी हूं।। मैं बचपन की बुलबुल , पिता की प्यारी, माता की दुलारी भाई के प्रेम की, स्नेहलता हूं, मां के आंगन की बगिया की, टूटी फूल की कली हूं। मैं नारी हूं।। मैं सावन की बहार, यौवन भरी महकार, जीवन में नवरंग भरकर, उत्साह भरी बादल की गगरी हूं। मैं नारी हूं।। मैं द्रोपदी सी अपमानित, सीता- सी सम्मानित, शबरी के विश्वास- सी, अहिल्या का ह्रदय- पाषाण हूं। मैं नारी हूं।। काव्य बोध में अलंकार -सी, राग के रूप रस -सी, शब्द शक्ति, मीरा के छंद में बसी भक्ति हूं। मैं नारी हूं।। सामाजिक ताने-बाने में, बेबस सी, लाचार -सी, टूटे सपनों के भंवर- सी, उदासीन चित्रपट पर, संघर्ष की गाथा हूं। मैं नारी हूं।। मैं जीवन दाता, पालन कर्ता, विनाश की मूरत, शिव- सी पूजा हूं, मोती की आब, स्वर्ण की आभा, मानव जीवन हितकारी हूं। मैं नारी हूं।।

स्वरचित रचना विधा - कविता कवि - कुलदीप 07 फरवरी 2024