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-- नया सदस्य सन्देश (वार्ता) 21:02, 5 जनवरी 2019 (UTC)उत्तर दें

हम इंसानो की इंसानियत के गिरते स्तर के बारे में संपादित करें

आज हम मानव 21वीं सदी की और प्रस्थान कर रहे हैं। परन्तु क्या हम इसके लिए तैयार है? यह बात सही है कि वैज्ञानिक उन्नति के कारण हम अपने आप को लेकर काफी उत्साहित हैं। पर शायद इस उन्नति की चकाचोंध ने हमें इंसानियत से दूर कर दिया है। अगर इतिहास पर नजर डाली जाए तो फ़र्क साफ दिखाई देता है। इंसान ने भाषा, औजार, मकान,खेत,परिवार, क़बीले, बस्तियां आखिर किसलिये बनाये थे? जाहिर है कि अपनी सुरक्षा और आस्तित्व को बचाये रखने के लिए। जो कि कुछ हद्द तक जायज भी था। संसार के हरेक जीव को अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए बहुत कुछ करना पड़ता है। पर जब यह आकांक्षा घमण्ड और लालच का रुप ले लेती है तो उसके परिणाम भयंकर होते है।। जमीन इंसान ने कब्जा ली। जल स्रोत्र इंसान ने कब्जा लिए। पहाड़ों पर इंसानों का कब्जा। यहाँ तक कि जानवरों को भी इंसानों ने ग़ुलाम बना लिया जो जानवर उसे काम के लगे रख लिये, जो उसे बेकार और खतरनाक लगे वो मार दिये। जो चीज मानव को चाहिए थी उसे इस्तेमाल करता चला गया। और जो उसे नहीँ चाहिये थी उसे बेतरतीब फेंकता चला गया। कुदरत ने हरेक चीज बड़े श्रंखलाबद्ध तरीके से बना और सजा रखी थी। कुदरत की बनाई हरेक शैय में इंसान ने अपनी टांग अड़ाई।और उस कुदरती श्रंखला को तोड़ दिया। जिसके खतरनाक परिणाम को न तो इंसान समझता है और न ही समझना चाहता है। जो परिस्थितियां और वातावरण बनने में लाखों/करोडों साल लगे उसे इंसान महज कुछ सालों में ही खात्मे के कगार पर ले आया है।

      इंसान में लालच और खुदगर्जी इतनी ज्यादा हो गई है कि वह अपनी इंसानियत को भी भूलता जा रहा है। जिन पशुओँ के सहारे से वह विकास की और चला उनको मतलब निकलते ही बेसहारा छोड़ दिया। यहाँ तक कि अपने रिश्ते नाते, भाईचारा, कुटुम्ब-कबीले और माँ-बाप को भी इस स्वार्थवश छोड़ देता है।
            जरा सोचिए ? इतनी मानवो की भारी भीड़ में भी कोई किसी को जानता नही है। एक इंसान दुख में कराहता हुआ लाचार पड़ा है। दूसरा इंसान मुस्कुराता हुआ पास से गुजर जाता है। 500की भीड़ में भी आपस का संवाद नहीं सब अपने फोन में व्यस्त हैं। माँ फोन में व्यस्त, बेटा बाल्टी में डूब गया। बेटा ऑनलाइन चैट पे, बीमार बाप प्यास से मर गया। एक पड़ोसी को पता नहीँ कि पड़ोस में कौन रहता है?
                     मेरी स्वयं की राय में अब इंसान अपनी इंसानियत को गंवा देने के रास्ते पर चल पड़ा है। और मोबाईल फोन उसके हाथ मे है। 
          पृथ्वी का वातावरण बिगड़ गया है। इंसान बसने के लिए किसी दूसरे ग्रह को तलाश रहा है। हो सकता है कि ये तलाश पूरी भी हो जाये।
      पर इंसान हो। तो जरा सोचिए? 
        **** इंसानियत मर गई तो क्या होगा?**** Mukesh Rathee (वार्ता) 09:30, 23 जून 2019 (UTC)उत्तर दें