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विश्व पृथ्वी दिवस 22 अप्रैल पर कविता- धरती का कर्ज

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विश्व पृथ्वी दिवस 22 अप्रैल पर चिंतन करती मेरी रचना-


धरती का कर्ज।

आओ धरती का कर्ज चुकाएं प्रदूषण मुक्त करें धरती को सब मिल इसको स्वच्छ बनाएं आओ धरती का कर्ज चुकाएं।

इस धरती से क्या कुछ पाते हैं बदले में हम क्या देते हैं स्वार्थ लोभ वश पैसे बो कर सबने इसका अस्तित्व नकारा।

शस्य श्यामला धरती सोने सी इसकी क्षमता दाने बोने की पर दूषित व्यवहारों से इसको हमने ध्वस्त किया रत्न प्रसविनी धरती का हम सबने है विध्वंस किया।

पशु, पक्षी, खग, मृग सारे सब रहते धरती के सहारे दम घुटता है सब जीवों का हिमाद्रि, जल-थल, अवनी, अंबर का यदि धरती को सम्मान न हम दे पाएंगे तो फिर जीवन कहां से पाएंगे।

जो न समझे आज महत्व को फिर तरसेंगे शुद्ध पवन को शुद्ध व्यवहार, नैतिकता तरसेगी बादल बदले नैना बरसेंगी आओ सब मिलकर प्रण ये उठाएं प्रदूषण मुक्त इस धरा को बनाएं।

नैतिक व्यवहारों से ही हम जब चंहुदिश को जगा पाएंगे तब ही मुक्त होगी धरती सुघड़ जीवन हम जी पाएंगे।।

©️अजय कुमार पाण्डेय

  हैदराबाद
  22अप्रैल, 2020 Pandey Ajay Kumar (वार्ता) 04:49, 23 अप्रैल 2020 (UTC)उत्तर दें