Sundaram das pandey

Sundaram das pandey 29 मई 2020 से सदस्य हैं
Latest comment: 1 माह पहले by 2405:204:A113:6D9D:9673:4791:55F0:6D67 in topic मैं बहुत अचंभित हूं वर्तमान समय में प्रेम से संबद्ध परिदृश्यों को निहारकर जो कि परिस्थितियों का शिकार हो उठते हैं। कभी कभी ऐसा आभास होता है कि अब वो दिन दूर नहीं जब प्रवेश पंजीकरण के शर्तों की तरह प्रेम में समय सीमा, शर्तों आदि मनगढ़ंत प्रपंचों को इसका आधार मान लिया जाएगा, जिसका सबसे बड़ा उदाहरण प्रेम का दावा कर रहे इन तथाकथित प्रेमियों द्वारा अध्यारोपित आत्मसम्मान है। जिन्हें इतना भी भान नहीं है कि प्रेम एवं आत्मसम्मान दोनो में धरती - आकाश जितना ही भेद है। बहरहाल युवा / अभिसारिकाओं ( प्रेम से सनी स्त्री ) प्रेम की आंड़ में भ्रमपूर्ण अथवातु आडंबर की परिधि को अपना लेना ही प्रेम मान लिया है और जब प्रेम से विदाई लेना पड़ता है तो तुलसीदास / मीरा बनने के बजाए ये अनैतिक हो जाते हैं ऐसे में इनकी वैचारिक गति ईर्ष्या, बदले की भावना से ओत्प्रोत एवं रसज्ञा पर असभ्य संभाषण शैली का नियोजन ही एकमात्र उद्देश्य रह जाता है। मैं सहम जाता हूँ जब भी यह सोंचता हूं कि विगत वर्षों में स्थितियां कैसी होंगी लोगों का रवैया नकारात्मक एवं अनैतिक की किस सीमा तक जा पहुंचेगा। संबंध विच्छेद ( तलाक़ ) जो कि सनातन की शाखा है ही नहीं पर मानवाधिकरों एवं व्योहारिक / वैयक्तिक समायोजन के चलते संविधान से हमें स्व - एकीकरण हेतु दिए जाने कारण स्वीकार करना पड़ रहा है क्योंकि संबंध भी अनैतिकता से अछूते ना रह सके। कोशिश कीजिए नैतिक होने की इससे कर्म की धारा में एकरूपता आती है और भविष्य भी अच्छा ही सुनिश्चित है। सुंदरम सु0 पांडेय
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-- नया सदस्य सन्देश (वार्ता) 10:56, 29 मई 2020 (UTC)उत्तर दें

मैं बहुत अचंभित हूं वर्तमान समय में प्रेम से संबद्ध परिदृश्यों को निहारकर जो कि परिस्थितियों का शिकार हो उठते हैं। कभी कभी ऐसा आभास होता है कि अब वो दिन दूर नहीं जब प्रवेश पंजीकरण के शर्तों की तरह प्रेम में समय सीमा, शर्तों आदि मनगढ़ंत प्रपंचों को इसका आधार मान लिया जाएगा, जिसका सबसे बड़ा उदाहरण प्रेम का दावा कर रहे इन तथाकथित प्रेमियों द्वारा अध्यारोपित आत्मसम्मान है। जिन्हें इतना भी भान नहीं है कि प्रेम एवं आत्मसम्मान दोनो में धरती - आकाश जितना ही भेद है। बहरहाल युवा / अभिसारिकाओं ( प्रेम से सनी स्त्री ) प्रेम की आंड़ में भ्रमपूर्ण अथवातु आडंबर की परिधि को अपना लेना ही प्रेम मान लिया है और जब प्रेम से विदाई लेना पड़ता है तो तुलसीदास / मीरा बनने के बजाए ये अनैतिक हो जाते हैं ऐसे में इनकी वैचारिक गति ईर्ष्या, बदले की भावना से ओत्प्रोत एवं रसज्ञा पर असभ्य संभाषण शैली का नियोजन ही एकमात्र उद्देश्य रह जाता है। मैं सहम जाता हूँ जब भी यह सोंचता हूं कि विगत वर्षों में स्थितियां कैसी होंगी लोगों का रवैया नकारात्मक एवं अनैतिक की किस सीमा तक जा पहुंचेगा। संबंध विच्छेद ( तलाक़ ) जो कि सनातन की शाखा है ही नहीं पर मानवाधिकरों एवं व्योहारिक / वैयक्तिक समायोजन के चलते संविधान से हमें स्व - एकीकरण हेतु दिए जाने कारण स्वीकार करना पड़ रहा है क्योंकि संबंध भी अनैतिकता से अछूते ना रह सके। कोशिश कीजिए नैतिक होने की इससे कर्म की धारा में एकरूपता आती है और भविष्य भी अच्छा ही सुनिश्चित है। सुंदरम सु0 पांडेय संपादित करें

प्रेम या आत्मसम्मान 2405:204:A113:6D9D:9673:4791:55F0:6D67 (वार्ता) 04:56, 4 अप्रैल 2024 (UTC)उत्तर दें