Vaidhy Ashutosh pandey "Rahul"
प्रस्तावना
Vaidhy Ashutosh pandey "Rahul" जी इस समय आप विकिमीडिया फाउण्डेशन की परियोजना हिन्दी विकिपीडिया पर हैं। हिन्दी विकिपीडिया एक मुक्त ज्ञानकोष है, जो ज्ञान को बाँटने एवं उसका प्रसार करने में विश्वास रखने वाले दुनिया भर के योगदानकर्ताओं द्वारा लिखा जाता है। इस समय इस परियोजना में 8,15,283 पंजीकृत सदस्य हैं। हमें खुशी है कि आप भी इनमें से एक हैं। विकिपीडिया से सम्बन्धित कई प्रश्नों के उत्तर आप को अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों में मिल जायेंगे। हमें आशा है आप इस परियोजना में नियमित रूप से शामिल होकर हिन्दी भाषा में ज्ञान को संरक्षित करने में सहायक होंगें। धन्यवाद।
विकिनीतियाँ, नियम एवं सावधानियाँ
विकिपीडिया के सारे नीति-नियमों का सार इसके पाँच स्तंभों में है। इसके अलावा कुछ मुख्य ध्यान रखने हेतु बिन्दु निम्नलिखित हैं:
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विकिपीडिया में कैसे योगदान करें?
विकिपीडिया में योगदान देने के कई तरीके हैं। आप किसी भी विषय पर लेख बनाना शुरू कर सकते हैं। यदि उस विषय पर पहले से लेख बना हुआ है, तो आप उस में कुछ और जानकारी जोड़ सकते हैं। आप पूर्व बने हुए लेखों की भाषा सुधार सकते हैं। आप उसके प्रस्तुतीकरण को अधिक स्पष्ट और ज्ञानकोश के अनुरूप बना सकते हैं। आप उसमें साँचे, संदर्भ, श्रेणियाँ, चित्र आदि जोड़ सकते हैं। योगदान से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण कड़ियाँ निम्नलिखित हैं:
अन्य रोचक कड़ियाँ
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-- नया सदस्य सन्देश (वार्ता) 11:01, 20 अप्रैल 2018 (UTC)
==आशुतोष
भारतीय आयुर्विज्ञान में आयुर्वेद का एक सत्य ==
मुद्दा ----भारतीय आयुर्विज्ञान आयुर्वेद का एक सत्य
यह सत्य है महर्षि चरक ने सर्वप्रथम भारतीय आयुर्विज्ञान को क्रमबद्ध रूप मे संकलित किया। पर यह भी सत्य है महर्षि सुश्रुत ने शल्य विज्ञान को क्रमबद्ध प्रायोगिक रूप दिया और इतना ही सत्य यह भी है कि महर्षि नागार्जुन ने भारतीय रसायन विज्ञान व रसौधिचिकित्सा को क्रमबद्ध व प्रायोगिक रूप दिया। इस सत्य को पाश्चात्य विज्ञान इतिहासकारो ने भी स्वीकार किया है।
पर हमारे नीतिनिर्धारक, संस्थान,संगठन, व सरकारे,मिडिया और विद्वान आदि निचले दो सत्यों गल्प समझकर चर्चा भी करना उचित नही समझते है।जबकि आयुर्वेद को पूर्ण आयुर्विज्ञान सिद्ध करने के लिए ये निचले दोनो सत्य अतिआवश्यक है। इसके विपरीत यह खेदजनक तथ्य है कि इन दोनो तथ्यो को प्रतिबंधित भी किया जा रहा है ताकि भारतीय आयुर्विज्ञान आयुर्वेद को विकलांग बना कर एक पूरक चिकित्सा पद्धति (ऐलोपैथी की सहायिका-हर्बलपंचकर्मादि )बना कर, हानिरहित बताते हुए वैश्विक बाजार में खुले आम बेचा जा सके। इस पर नीमचढा करेला यह कि हमारा आयुर्वेद समुदाय भी इसका समर्थन करने में प्रमुदित है। हर मंच चरक से शुरु होकर चरक पर खतम हो जाता है। सुश्रुत- नागार्जुन नेपथ्य में चले जाते है।जबकि इन पर मंच सजना चाहिए । यहाँ सबसे बड़ा मजाक यह है कि शल्य और रसशास्त्र की बकायदा पीजी डीग्री भी दी जाती है जिसके विधिक प्रयोग को बंन्ध्यीकृत कर दिया जाता है।हर साल हजारो लड़कियाँ आयुर्वेद मे नामांकित होती है पर स्त्री - प्रसूति व्याधि के लिए समग्र रूप से अधिकृत नही है।
- क्या हमारे प्रतिनिधि सरकार-नीतिनिर्धारको और न्यायालय.जनसंचार माध्यमों को यह सत्य- तथ्य समझाने असफल रहते है ?
या समझाना नही चाहते है ? या समझाने क्षमता नहीं है? ------ ईस्टर्न साइन्टिस्ट सम्पादक डेस्क
आयुर्वेद में रस शास्त्र का योगदान ------- रस शास्त्र अपने आप में एक अमोघ अस्त्र भंडार है बशर्ते यह सत्पात्र के हाथ में हो
आधुनिक चिकित्सा विज्ञानियों को इसका भान भी है
इसीलिए सबसे अधिक भय रस शास्त्र के प्रति ही उत्पन्न किया जा रहा है
इसमें बहुत बड़ा योगदान आयुर्वेद शास्त्र के अंगभूत रस शास्त्र को न पढ़ने-पढ़ाने/केवल खानापूरी करने वाले शिक्षण सम्प्रदाय का ही है । इनकी अकर्मण्यता तथा शैक्षणिक गुणहीनता रस शास्त्रीय द्रव्य , औषधों के प्रति फैलाये जा रहे भय के लिए उर्वरा भूमि प्रदान कर रहा है । इस भयादोहन करने वाले कुनबे को सही ढंग से प्रत्युत्तर करने वाले एवम जनसामान्य में विश्वास पैदा करने वाले रसशास्त्रियों की नितांत आवश्यकता है ।
और हाँ, एक बात और जो सदैव महत्वपूर्ण रहेगी
- शास्त्र छिद्रान्वेषियों* से यह समस्या कदापि नहीं सुलझ सकती भले ही वो आयुर्वेद के निर्णायक पद पर क्यों न बैठे हों ।
वैध आशुतोष पाण्डेय
आयुष आयुर्वेदा पंचदेवरी गोपालगंज बिहार भारत