Vpbanjare
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-- नया सदस्य सन्देश (वार्ता) 16:05, 27 दिसम्बर 2012 (UTC)
__परमपूज्य बाबा गुरू घासीदास जी की अमृतवाणी__
- अपन घट ही के देव ल मनईबो,
- मंदिरवा म काय करेल जईबो::
बाबा जी मानव जीवन की अद्भुत सत्य को इस दो पंक्ति में पिरो दिये हैं, जिसको समझकर अगर हम अपने जीवन में अपनाये तो हमारा कल्याण व हमारे आत्मा को पूर्ण मुक्ति मिलना तय है ।
इसमें वह कटु सत्य कहा गया है जिसे साधारण मनुष्य समझ नही सकता । घासीदास जी तो सतपुरूष पिता सतनाम के अविनाशी अंश "सुजंजन अंश" हैं, जि...नका कलयुग में अवतार इसलिए हुआ है कि जीव आत्मा को पूर्ण मुक्ति का सच्चा मार्ग बताये, ताकि मनुष्य का आत्मा पूर्ण मुक्ति को प्राप्त कर सके ।
उनका अवतार उस समय हुआ जब कलयुग में कालनिरंजन के अंशों (रजगुणी-ब्रम्हा,सतगुणी-विष्णु,तमगुणी-िशव) का मायाजाल चरम सीमा पर थे । मानव, मावन को मानव नही समझते थे, देवी-देवता, पूजा-पाठ, दान-पुण्य, उँच-नीच आदि मानव समाज में इस कदर अपना जगह बना लिया था कि उससे बच निकलना, मुश्किल ही नही बल्कि नामुमकिन हो गया था ।
बाबा जी के अमृत उपदेश को सही रुप में नही समझाया गया और ऐसा बता दिया गया कि बाबा जी ने मंदिर में आने-जाने व पत्थर के देवी-देवताओ का पूजा अर्चना करने को मना किया है ।
आदरणीय संतजनो बाबा जी का ऐसा अभिप्राय नही था, उनका कहना था कि मंदिर में जिन देवताओ के मुर्ति का तुम पूजा-पाठ करने जाते हो वह तो उस सर्व शक्तिमान पिता सतनाम् के अंश कालनिरंजन के द्वारा उत्पन्न किया गया है, इनके आगे और भी बहुत से शक्ति हैं ।
अगर तुम्हे सच्चे में अपने जीवन का उद्धार करना है तो उस सर्व शक्तिमान का आराधना करो जो सर्व ब्यापी है, जो हमारे इन नेत्रो से दिखाई नही देता लेकिन हमारे घट में वाश वाश करते हैं, जिनके सहारे हमारे अस्तित्व टीका हुआ है ।
जो जन्म से हमारे साथ हैं उसे तो हम नही पहचान पाये तो भला जो मंदिर या मूर्ति में है उसे हम कैसे प्राप्त कर सकते हैं। मान भी लिया जाय कि हम जो मंदिर या मूर्ति में है उसे प्राप्त कर लिये तो भी हमारा पूर्ण मुक्ति नही हो सकता ।
अगर तुम अपने आत्मा का हकीकत में पूर्ण मुक्ति चाहते हो तो जड़ से जुड़ो, शाखा से नहीं । शाखा से जुड़ने पर तुम इस शाखा से उस शाखा को जन्म दर जन्म भटकते रहोगे ।
जितने भी देवी-देवताओ के नाम हमें बताये जाते हैं वह सभी किसी न किसी के द्वारा उत्पन्न किया गया है । अर्थात पाना है तो अमरत्व को प्राप्त करो जिसमें जीवन सुखी व आत्मा का पूर्ण मुक्ति हो, इसके अलावा आप जिस किसी का भी आराधना या जप करोगे तो सिर्फ वही तक मुक्ति को प्राप्त करोगे क्योकि उसके आगे जो है उसके बारे में आपने जाना ही नही । स्वभाविक है आपके आत्मा पूर्ण मुक्ति को प्राप्त नही किया वह किसी न किसी रूप में दोबारा जन्म िफर लेगा, यह जरुर हो सकता है कि आपने जिसका आराधना या जप किया था उसके पुण्य प्रभाव से आपका जब दोबारा जन्म हो तो किसी अच्छे कुल में हो लेकिन यह पूर्ण मुक्ति नही है । इस तरह आप जन्म जन्मातंर तक भटकते रहोगे ।
परमपूज्य बाबा गुरू घासीदास जी कहते हैं कि जो सारे सृष्टि का रचना करने वाले हैं जो हमें इन आंखो से दिखाई नही देते और जो छोटे से छोटे एवं विशालो से विशाल है भला उसे किसी मंदिर या मुर्ति में कैसे समाहित किया जा सकता है । इसिलिए तो आज तक सारे दुनियाँ में कहीं भी उस सतपुरूष पिता 'सतनाम्' का मंदिर या मूर्ति नहीं है । बाबा जी ने अमृतवाणी के माध्यम से बताया है कि:
सतनाम् नीज जड़ है, िनरंजन अष्टअंगी डार । तीन देव शाखा बने, पत्र बने संसार ।।
_____जय सतनाम्___