हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार

हिन्द-यूरोपीय (या भारोपीय) भाषा-परिवार संसार का सबसे बड़ा भाषा परिवार (यानी कि सम्बंधित भाषाओं का समूह) हैं। हिन्द-यूरोपीय (या भारोपीय) भाषा परिवार में विश्व की सैंकड़ों भाषाएँ और बोलियाँ सम्मिलित हैं। आधुनिक हिन्द यूरोपीय भाषाओं में से कुछ हैं : हिन्दी, उर्दू, अंग्रेज़ी, फ़्रांसीसी, जर्मन, पुर्तगाली, स्पैनिश, डच, फ़ारसी, बांग्ला, पंजाबी, रूसी, इत्यादि। ये सभी भाषाएँ एक ही आदिम भाषा से निकली है, उसे आदिम-हिन्द-यूरोपीय भाषा का नाम दे सकता है। यह संस्कृत से बहुत मिलती-जुलती थी, जैसे कि वह संस्कृत का ही आदिम रूप हो।

भारोपीय भाषा परिवार की शाखाएँ
भौगोलिक
विस्तार:
१६वीं शताब्दी के पश्चात यूरोप एवं एशिया (दक्षिण, मध्य एवं दक्षिणपश्चिम एशिया); वर्तमान समय में विश्वव्यापी; ३.४ अरब मातृभाषी
भाषा श्रेणीकरण: विश्व के महत्वपूर्ण भाषा परिवार
आदि-भाषा: मूल भा
उपश्रेणियाँ:
आइसो ६३९-२६३९-५: ine

यूरोप और एशिया की जीवित भारोपीय भाषाओं का गृहभूमि में प्रसार

██ अल्बेनियाई ██ आर्मेनियायी ██ बाल्टो-स्लाविक (बाल्टिक) ██ बाल्टो-स्लाविक (स्लाविक) ██ केल्टिक ██ जर्मनिक ██ हेल्लेनिक ██ इन्डो-ईरानी (ईरानीयन, इन्डो-आर्यननुरिस्तानी भाषाएँ) ██ इटालिक (includes रोमान्स) ██ गैर भारोपीय भाषाएँ

अङ्कित क्षेत्र स्थान जहाँ बहुभाषीय स्थिति है।

विशेषताएं

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इन भाषाओं की विशेषताएं है कि सभी प्राचीन हिन्द-यूरोपीय भाषाओं (जैसे लैटीन, प्राचीन यूनानी भाषा, संस्कृत, आदि) में संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया के कई शब्द-रूप होते थे, जो वाक्य में इनका व्याकरणिक रूप दिखाते थे। अधिकतर ये शब्द-रूप शब्द के अन्त में प्रत्यय द्वारा बनाये जाते थे (end-inflection)। रोज़मर्रा की चीज़ों, सगे-सम्बन्धियों, सामान्य जानवरों, क्रियाओं के लिये काम आने वाले शब्द इस परिवार की सभी प्राचीन भाषाओं में एक दूसरे से बहुत मिलते-जुलते थे और इस आधार पर भाषाविदों ने आदिम-हिन्द-यूरोपीय भाषा की परिकल्पना की। इन विभिन्न भाषायों के शब्दों के रूप इसलिए मिलते-जुलते थे क्योंकि यह एक ही प्राचीन जड़ से उत्पन्न हुए सजातीय शब्द थे। नीचे दिये टेबल में कुछ प्राचीन और नयी हिन्द-यूरोपीय भाषाओं की आम शब्दावली के कुछ शब्द और परिकल्पित आदिम-हिन्द-यूरोपीय की पुनर्रचना दिये गये हैं (सभी शब्द और देवनागरी लिप्यान्तरण पूरी तरह शुद्ध नहीं हैं और इटैलिक्स में प्राचीन भाषा के शब्द दिये गये हैं)।

हिन्दी संस्कृत लैटिन प्राचीन यूनानी आधुनिक जर्मन अंग्रेज़ी आदिम-हिन्द-यूरोपीय
माँ मातृ मातेर mater मैतैर meter मुटर mutter मदर mother *मातेर *mater
पिता पितृ पातेर pater पातैर pater फ़ाटर vater फ़ादर father *पतेर *pater
भाई भ्रातृ फ़्रातेर frater फ्रातैर phrater ब्रूडर bruder ब्रदर brother *भ्रातेर *bhrater
बहिन स्वसृ सोरोर soror एओर eor श्वॅस्टर schwester सिस्टर sister *सुएसोर *swesor
कुत्ता (श्वान) श्वन् कानिस canis क्युओन kyon हुण्ड hund हाउण्ड hound *कुओन *k'won
है अस्ति एस्त est एस्ति esti इस्ट ist इज़ is *एस्ति *esti
पर पत्त्र पेन्ना penna प्तेरोन pteron फ़ेडर feder फ़ेदर feather *पेत (उड़ना) *pet
भेड़ अवि ओविस ovis ओइस ois आउअ (भेड़ी) aue ईउअ (भेड़ी) ewe *ओउइ *owi
अश्व अश्व एक्वु-उस equus हिप्पोस hippos एहवाज़ ehwaz एओह eoh *एकुओ *ek'wo
मन मनस् मेन्स mens मेनोस menos मिन्न्-अ minne माइण्ड mind *मेन *men
मानव मानव, मनु - - मन्न mann मैन man *मनु *manu
नाम नामन् नोमेन nomen ओनोमा onoma नामे name नेम name *नोम्न *nomn
तू, तुम त्वम् तू tu सू su दू du दाउ thou *तु *tu
देवता देव देउस deus - ज़िउ ziu - *देइवोस *deiwos
गाय गौस् बोस bos बोउस bous कू kuh काउ cow *ग्वोउ *gwou

हिन्द यूरोपीय (या भारोपीय) परिवार की कई शाखाएँ हैं। हर शाखा की उपशाखा और उसमें सम्मिलित मुख्य प्राचीन और आधुनिक भाषाएँ और उनके मुख्य देश (ब्रैकेट में) नीचे दिये हुए हैं।

अल्बानियाई

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अनतोलियाई

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अरमेनियाई

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(अथवा यूनानी)

हिन्द ईरानी

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वर्गीकरण

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हिन्द यूरोपीय शाखाओं को मुख्यतः दो वर्गों में रखा जाता है : केन्तुम वर्ग और सातम वर्ग।

इस वर्ग की प्राचीन भाषाओं में आदि-हिन्द-यूरोपीय भाषा के व्यंजन : क्य, ग्य और घ्य, स्पर्श-संघर्षी या संघर्षी व्यंजनों में बदल गये, जैसे : च, ज, स और । साथ ही साथ, आदि-हिन्द-यूरोपीय भाषा के व्यंजन : क्व, ग्व और घ्व, इनमें विलय हो गये : क, ग और । इनमें बाल्टिक, स्लाव, हिन्द ईरानी, अरमेनियाई और अल्बानियाई शाखाँ आती हैं। संस्कृत इसी वर्ग में आती है।

केन्तुम वर्ग

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इस वर्ग की प्राचीन भाषाओं में आदि-हिन्द-यूरोपीय भाषा के व्यंजन : क्व, ग्व और घ्व वैसे ही परिरक्षित रहे। आदि-हिन्द-यूरोपीय भाषा के व्यंजन : क्य, ग्य और घ्य, इनमें विलय हो गये : क, ग और । इनमें इटैलिक, यूनानी, केल्टिक और जर्मनिक शाखाँ आती हैं।

 
"कुरगन-कब्र-टीले" की अवधारणा के अनुसार लगभग 1500 ई.पू. तक आर्य कबीलों का यूरोप और एशिया में प्रसार

संस्कृत शब्द आर्य का मतलब होता था कुलीन और सभ्य। इसलिये पुराने इतिहारकारों, जैसे मॅक्स म्युलर ने आदिम- और आधुनिक हिन्द-यूरोपीय भाषा बोलने वाली जातियों का नाम "आर्य" रख दिया। ये नाम यूरोपीय लोगों को बहुत पसन्द आया और जल्द ही सभी यूरोपीय वासियों ने अपने अपने देशों को प्राचीन आर्यों की जन्मभूमि बताना शुरू कर दिया (ये बात आजतक जारी है)। विशेष कर हिट्लर नेे प्रचारित किया कि प्राचीन आर्यों की जन्मभूमि जर्मनी ही है और आर्य का अर्थ शुद्ध पीढी का मनुष्य है, जिसकी त्वचा गोरी, क़द लम्बा, आँखे नीली और बाल सुनहरे हैं। हिट्लर के अनुसार जर्मन लोग ही सर्वोच्च और सर्वशक्तिमान नस्ल के हैं और विशेष तौर पर यहूदी लोग घटिया नस्ल के और अनार्य हैं (और जीने के लायक भी नहीं)। ब्रिटिश लोगों ने प्रचारित किया कि लगभग 1700 ई.पू. में हिन्द-आर्य जनजातियों ने यूरोप से आकर सिन्धु-घाटी में आक्रमण किया और भारत की देशी सिन्धु घाटी सभ्यता को उजाड़ दिया और उसके निवासियों का नरसंहार किया और बाद में बचे-खुचे लोगों को दास बना लिया -- जिनको ऋग्वेद में दास और दस्यु कहा गया है (इस तरह वो अपने उपनिवेशवाद को सही ठहराना चाहते थे)।

हिट्लर के यहूदी नरसंहार के बाद अब "आर्य" शब्द का मतलब भाषाई अर्थ में लगाया जाता है, न कि नस्ल के लिये। पर अभी भी इतिहासकार और भाषाविद आर्यों की जन्मभूमि की खोज कर रहे हैं। एक विचारधारा के मुताबिक आर्यों की जन्मभूमि मध्य एशिया में थी, शायद दक्षिणी रूस या कैस्पियन सागर के आस-पास। वहीं से उनके कबीले दुनिया के कई देशों में पहुँचे। हिन्द-आर्य कबीलों का भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवास धीरे-धीरे और शान्तिपूर्वक हुआ था और ब्रिटिश इतिहासकारों की "ख़ून-खराबे" वाली बातों का कोई प्रमाण नहीं है। उस वक़्त (1800 ई.पू.) तक सिन्धु-घाटी सभ्यता या तो भूकम्पों से या सिन्धु-सरस्वती नदियों की धारा में बदलाव और सूखे की वजह से ख़ुद ही तबाह हो गयी थी। ये विचारधारा आजकल दुनिया के अधिकतम भाषाविद और इतिहासकार मानते हैं। मध्य एशिया के "कुरगन कब्र-टीले" प्राचीन आर्यों द्वारा बनाये गये माने जाते हैं। एक दूसरी विचारधारा के अनुसार प्राचीन आर्यों की जन्मभूमि भारत ही है और यहीं से आर्य कबीले यूरोप और बाकी एशिया में प्रवास किये। इस बात को कई भारतीय और हिन्दुत्व-वादी मानते हैं (और ये भी कि सिन्धु-सरवती सभ्यता आर्यों की सभ्यता थी और बाकी हिन्द-यूरोपीय भाषाएँ संस्कृत से विकसित हुई हैं), पर बाकी दुनिया में इस दृष्टिकोण की कोई कद्र नहीं है। अधिकतर भाषाविदों के अनुसार "आदिम-हिन्द-यूरोपीय" भाषा के पुनर्निर्मित शब्द यही इशारा करते हैं कि प्राचीन आर्य जन्मस्थान एक विशाल, शीतोष्ण घास का चारागाह था। वैसे भी भारतीय जलवायु और पशु-पक्षियों के शब्दों के लिये यूनानी, लैटिन, जर्मन और अन्य हिन्द्-यूरोपीय भाषाओं में मिलते जुलते शब्द नहीं मिलते, जैसे मोर, मुर्गा, बाघ, हाथी, आम, केला, पीपल, बरगद, नीम, गर्म-मौसम, गैण्डा, भैंस, चावल, इत्यादि। साथ-ही-साथ, सिन्धु घाटी सभ्यता में बड़े शहर, मछ्ली का उपभोग, 2000 ई.पू. से पहले घोड़े की पूरी अनुपस्थिति और बाद में भी घोड़ों के बहुत ही कम अवशेष, उनके देवताओं के चित्रों का वैदिक देवताओं से भिन्न होना, उनका बाघ और बैल को आदर जबकि ऋग्वेद में बब्बर-शेर और गाय अधिक उल्लेखित हैं, उनके अधिकांश शहरों में (कालीबंगन, आदि को छोड़कर) वैदिक यज्ञ-अग्नि-वेदी का अभाव, इत्यादि यही इशारा करते हैं कि इसके निवासी आर्य तो नहीं थे। जो भी हो, ये सवाल आज भी तीखी नोक-झोंक का केन्द्र बना हुआ है।

अन्य भाषा वर्ग

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इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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