प्रवेशद्वार:ताजमहल
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ताजमहल प्रवेशद्वारताज महल (उच्चारण सहायता /tɑʒ mə'hɑl/) (फारसी: تاج محل, अँग्रेजी़: Taj Mahal) भारत के आगरा शहर में स्थित एक मक़बरा है। इसका निर्माण मुगल सम्राट शाहजहाँ ने, अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में करवाया था। ताज महल मुगल वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है। इसकी वास्तु शैली फारसी, तुर्क, भारतीय एवं इस्लामिक वास्तुकला के घटकों का अनोखा सम्मिलन है। सन् 1983 में, ताज महल युनेस्को विश्व धरोहर स्थल बना। इसके साथ ही इसे विश्व धरोहर के सर्वत्र प्रशंसित, अत्युत्तम मानवी कृतियों में से एक बताया गया। ताजमहल को भारत की इस्लामी कला का रत्न भी घोषित किया गया है। इसका श्वेत गुम्बद एवं टाइल आकार में संगमर्मर से ढंका[1] केन्द्रीय मकबरा अपनी वास्तु श्रेष्ठता में सौन्दर्य के संयोजन का परिचय देते हैं। ताजमहल इमारत समूह की संरचना की खास बात है, कि यह पूर्णतया सममितीय है। यह सन 1648 के लगभग पूर्ण निर्मित हुआ था। उस्ताद अहमद लाहौरी को प्रायः इसका प्रधान रूपांकनकर्ता माना जाता है।[2]
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चयनित लेखएक विरही मुगल बादशाह शाहजहाँ ने बनवाया एक मकबरा, अपनी प्यारी पत्नी मुमताज महल की मृत्योपरांत। आज यह एक सर्वाधिक प्रसिद्ध, प्रशंसित एवं पहचानी जाने वाली इमारत है। जहाँ इसका श्वेत संगमर्मर गुम्बद वाला भाग, इस इमारत का मुख्य परिचित भाग है, वहीं इसकी पूर्ण इमारत समूह बाग, बगीचों सहित 22.44 हेक्टेयर[a] में विस्तृत है, एवं इसमें सम्मिलित हैं अन्य गौण मकबरे, जल आपूर्ति अवसंरचना एवं ताजगंज की छोटी बस्ती, साथ ही नदी के उत्तरी छोर पर माहताब बाग भी। इसका निर्माण आरंभ हुआ 1632 CE में , (1041 हिजरी अनुसार) , यमुना नदी के दक्षिणी किनारे पर, भारत के अग्रबाण, (अब आगरा नगर में), जो कि पूर्ण हुआ 1648 CE (1058 AH) में। इसके आकार की अभिकल्पना मुमताज महल के स्वर्ग में आवास की पार्थिव नकल एवं बादशाह के अधिप्रचार उपकरण के रूप में की गई। असल में ताजमहल को किसने अभिकल्पित किया, यह भी भी भ्रमित है। हालांकि यह सिद्ध है, कि एक बडे़ वास्तुकारों एवं निर्माण विशेषज्ञों के समूह समेत बादशाह स्वयं भी सक्रिय रूप से इसमें शामिल था। उस्ताद अहमद लाहौरी को इसके श्रेय का सर्वाधिक उपयुक्त व्यक्ति विचार किया जाता है, एक प्रधान वास्तुकार के रूप में।
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मुख्य द्वारमुख्य द्वार (दरवाजा़) भी एक स्मारक स्वरूप है। यह भी संगमर्मर एवं लाल बलुआ पत्थर से निर्मित है। यह आरम्भिक मुगल बादशाहों के वास्तुकला का स्मारक है। इसका मेहराब ताजमहल के मेहराब की प्रति है। इसके पिश्ताक मेहराबों पर सुलेखन से अलंकरण किया गया है। इसमें बास रिलीफ एवं पीट्रा ड्यूरा पच्चीकारी से पुष्पाकृति आदि प्रयुक्त हैं। मेहराबी छत एवं दीवारों पर यहाँ की अन्य इमारतों जैसे ज्यामितीय नमूने बनाए गए हैं। edit
आंतरिक कब्रेंमुस्लिम परंपरा के अनुसार कब्र की विस्तृत सज्जा मना है। इसलिये शाहजहाँ एवं मुमताज महल के पार्थिव शरीर इसके नीचे तुलनात्मक रूप से साधारण, असली कब्रों में, में दफ्न हैं, जिनके मुख दांए एवं मक्का की ओर हैं। मुमताज महल की कब्र आंतरिक कक्ष के मध्य में स्थित है, जिसका आयताकार संगमर्मर आधार 1.5 मीटर चौडा़ एवं 2.5 मीटर लम्बा है। आधार एवं ऊपर का शृंगारदान रूप, दोनों ही बहुमूल्य पत्थरों एवं रत्नों से जडे़ हैं। इस पर किया गया सुलेखन मुमताज की पहचान एवं प्रशंसा में है। कक्ष की प्रत्येक दीवार डैडो बास रिलीफ, लैपिडरी एवं परिष्कृत सुलेखन फलकों से सुसज्जित है, जो कि इमारत के बाहरी नमूनों को बारीकी से दिखाती है। मुमताज महल की कब्र आंतरिक कक्ष के मध्य में स्थित है, और शाहजहाँ की कब्र मुमताज की कब्र के दक्षिण ओर है। यह पूरे क्षेत्र में, एकमात्र दृश्य असम्मितीय घटक है।
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चयनित चित्र
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चयनित व्यक्तिमुमताज़ महल (फारसी: ممتاز محل; उच्चारण /mumtɑːz mɛhɛl, अर्थ: महल का प्यारा हिस्सा) अर्जुमंद बानो बेगम का ज्यादा प्रचलित नाम है। इनका जन्म अप्रैल 1593 में आगरा में हुआ था। इनके पिता अब्दुल हसन असफ़ ख़ान एक फारसी सज्जन थे जो नूरजहाँ के भाई थे। नूरजहाँ बाद में सम्राट जहाँगीर की बेगम बनीं। १९ वर्ष की उम्र में अर्जुमंद का निकाह शाहजहाँ से 10 मई, 1612 को हुआ। अर्जुमंद शाहजहाँ की तीसरी पत्नी थी पर शीघ्र ही वह उनकी सबसे पसंदीदा पत्नी बन गईं। उनका निधन बुरहानपुर में 17 जून, 1631 को १४वीं संतान, बेटी गौहारा बेगम को जन्म देते वक्त हुआ। उनको आगरा में ताज महल में दफनाया गया। edit
चयनित घटक
ताज महल का केन्द्र बिंदु है, एक वर्गाकार नींव आधार पर बना श्वेत संगमर्मर का मकबरा। इसका मूल-आधार एक विशाल बहु-कक्षीय संरचना है। यह प्रधान कक्ष घनाकार है, जिसका प्रत्येक किनारा 55 मीटर है। मकबरे पर सर्वोच्च शोभायमान संगमर्मर का गुम्बद (देखें बांये), इसका सर्वाधिक शानदार भाग है। इसकी ऊँचाई लगभग इमारत के आधार के बराबर, 35 मीटर है, और यह एक 7 मीटर ऊँचे बेलनाकार आधार पर स्थित है। गुम्बद के आकार को इसके चार किनारों पर स्थित चार छोटी गुम्बदाकारी छतरियों (देखें दायें) से और बल मिलता है। मुख्य गुम्बद के किरीट पर कलश है (देखें दायें)। यह शिखर कलश आरंभिक 1800 तक स्वर्ण का था, और अब यह कांसे का बना है। यह किरीट-कलश फारसी एवं हिंन्दू वास्तु कला के घटकों का एकीकृत संयोजन है। यह हिन्दू मन्दिरों के शिखर पर भी पाया जाता है। इस कलश पर चंद्रमा बना है। मुख्य आधार के चारों कोनों पर चार विशाल मीनारें (देखें बायें) स्थित हैं। यह प्रत्येक 40 मीटर ऊँची है। यह मीनारें ताजमहल की बनावट की सममितीय प्रवृत्ति दर्शित करतीं हैं। edit
योजनाedit
क्या आप जानते हैं?
कुल मूल्य लगभग 3 अरब 20 करोड़ रुपए, उस समयानुसार आंका गया है; जो कि वर्तमान में खरबों डॉलर से भी अधिक हो सकता है, यदि वर्तमान मुद्रा में बदला जाए?[4]
सन्दर्भ
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विषयमुगल साम्राज्य • मुगल वास्तुकला • {{मुगल}} • मुगल बादशाह • मुगल बाग • मुगल शैली • मुगल वास्तुकला • लाल किला edit
मुगलedit
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