नालापत बालमणि अम्मा

भारतीय लेखक और कवयित्रि
(बालामणि अम्मा से अनुप्रेषित)

नालापत बालमणि अम्मा (मलयालम: എൻ. ബാലാമണിയമ്മ; 19 जुलाई 1909 – 29 सितम्बर 2004) भारत से मलयालम भाषा की प्रतिभावान कवयित्रियों में से एक थीं। वे हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों[क] में से एक महादेवी वर्मा की समकालीन थीं। उन्होंने 500 से अधिक कविताएँ लिखीं। उनकी गणना बीसवीं शताब्दी की चर्चित व प्रतिष्ठित मलयालम कवयित्रियों में की जाती है।

बालमणि अम्मा
എൻ. ബാലാമണിയമ്മ
बालमणि अम्मा का चित्र
जन्म19 जुलाई 1909
पुन्नायुर्कुलम, मालाबार जिला, मद्रास प्रैज़िडन्सी, ब्रिटिश राज
मौतसितम्बर 29, 2004(2004-09-29) (उम्र 95 वर्ष)
कोच्चि, केरल, भारत
(मृत्यु का कारण: अलजाइमर रोग)
पेशाकवयित्री, लेखिका और अनुवादक
राष्ट्रीयताभारतीय
विधाकविता
विषयसाहित्य
आंदोलनबीसवीं शताब्दी
खिताबपद्म भूषण, साहित्य अकादमी पुरस्कार, सरस्वती सम्मान
जीवनसाथीवी॰एम॰ नायर
बच्चेकमला दास, सुलोचना, मोहनदास, श्याम सुंदर
हिन्दी उच्चारण:नालापत बालमणि अम्मा
यह पृष्ठ मलयालम भाषा एवं साहित्य से संबंधित निम्न लेख श्रृंखला का हिस्सा है-
नालापत बालमणि अम्मा
बाहरी चित्र
image icon बालमणि अम्मा सृजन के दौरान फ्लिकर डॉट कॉम
image icon बालमणि अम्मा का साक्षात्कार इंडिया वीडियो

उनकी रचनाएँ एक ऐसे अनुभूति मंडल का साक्षात्कार कराती हैं जो मलयालम में अदृष्टपूर्व है। आधुनिक मलयालम की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक होने के कारण उन्हें मलयालम साहित्य की दादी [न 1]कहा जाता है।[2]

अम्मा के साहित्य और जीवन पर गांधी जी के विचारों और आदर्शों का स्पष्ट प्रभाव रहा। उनकी प्रमुख कृतियों में अम्मा, मुथास्सी, मज़्हुवींट कथा[न 2]आदि हैं। उन्होंने मलयालम कविता में उस कोमल शब्दावली का विकास किया जो अभी तक केवल संस्कृत में ही संभव मानी जाती थी। इसके लिए उन्होंने अपने समय के अनुकूल संस्कृत के कोमल शब्दों को चुनकर मलयालम का जामा पहनाया। उनकी कविताओं का नाद-सौंदर्य और पैनी उक्तियों की व्यंजना शैली अन्यत्र दुर्लभ है। वे प्रतिभावान कवयित्री के साथ-साथ बाल कथा लेखिका और सृजनात्मक अनुवादक भी थीं।[ख] अपने पति वी॰एम॰ नायर के साथ मिलकर उन्होने अपनी कई कृतियों का अन्य भाषाओं में अनुवाद किया।

अम्मा मलयालम भाषा के प्रखर लेखक एन॰ नारायण मेनन की भांजी थी। उनसे प्राप्त शिक्षा-दीक्षा और उनकी लिखी पुस्तकों का अम्मा पर गहरा प्रभाव पड़ा था। अपने मामा से प्राप्त प्रेरणा ने उन्हें एक कुशल कवयित्री बनने में मदद की। नालापत हाउस की आलमारियों से प्राप्त पुस्तक चयन के क्रम में उन्हें मलयालम भाषा के महान कवि वी॰ नारायण मेनन की पुस्तकों से परिचित होने का अवसर मिला। उनकी शैली और सृजनधर्मिता से वे इस तरह प्रभावित हुई कि देखते ही देखते वे अम्मा के प्रिय कवि बन गए। अँग्रेजी भाषा की भारतीय लेखिका कमला दास उनकी सुपुत्री थीं, जिनके लेखन पर उनका खासा असर पड़ा था।

अम्मा को मलयालम साहित्य के सभी महत्त्वपूर्ण पुरस्कार प्राप्त करने का गौरव प्राप्त है। गत शताब्दी की सर्वाधिक लोकप्रिय मलयालम महिला साहित्यकार के रूप में वे जीवन भर पूजनीय बनी रहीं।[ग] उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, सरस्वती सम्मान और 'एज्हुथाचन पुरस्कार' सहित कई उल्लेखनीय पुरस्कार व सम्मान प्राप्त हुए। उन्हें 1987 में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से अलंकृत किया गया। वर्ष 2009, उनकी जन्म शताब्दी के रूप में मनाया गया।

प्रारम्भिक जीवन एवं शिक्षा

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अम्मा का जन्म 19 जुलाई 1909 ( sixty six years)को केरल के मालाबार जिला के पुन्नायुर्कुलम (तत्कालीन मद्रास प्रैज़िडन्सी, ब्रिटिश राज) में पिता चित्तंजूर कुंज्जण्णि राजा और माँ नालापत कूचुकुट्टी अम्मा के यहाँ नालापत में हुआ था। यद्यपि उनका जन्म नालापत के नाम से पहचाने-जाने वाले एक रूढ़िवादी परिवार में हुआ, जहां लड़कियों को विद्यालय भेजना अनुचित माना जाता था। इसलिए उनके लिए घर में शिक्षक की व्यवस्था कर दी गयी थी, जिनसे उन्होने संस्कृत और मलयालम भाषा सीखी।[4]

नालापत हाउस की अलमारियाँ पुस्तकों से भरी-पड़ी थीं। इन पुस्तकों में कागज पर छपी पुस्तकों के साथ हीं ताड़पत्रों पर उकेरी गई हस्तलिपि वाली पुस्तकें भी थीं। इन पुस्तकों में बाराह संहिता से लेकर टैगोर तक का रचना संसार सम्मिलित था। उनके मामा एन॰ नारायण मेनन कवि और दार्शनिक थे, जिन्होने उन्हें साहित्य सृजन के लिए प्रोत्साहित किया। कवि और विद्वान घर पर अतिथि के रूप में आते और हफ्तों रहते थे। इस दौरान घर में साहित्यिक चर्चाओं का घटाटोप छाया रहता था। इस वातावरण ने उनके चिंतन को प्रभावित किया।[4] the poem MY MOTHER AT SIXTY SIX written by KAMALA DAS.

व्यक्तिगत जीवन

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हर कहीं
लाए सूर्य प्रकाश
हर कहीं
लगाए बगीचे
दोनों मार्गों पर-
बढ़ते वक्त
बधाई
मदद देने वाले.....!

बालमणि अम्मा के दाम्पत्य की झलक वाली
एक कविता का अंश
पुस्तक: 'सरस्वती की चेतना' से[5]

उनका विवाह 19 वर्ष की आयु में वर्ष 1928 में वी॰एम॰ नायर से हुआ, जो आगे चलकर मलयालम भाषा के दैनिक समाचार पत्र मातृभूमि [न 3]के प्रबंध सम्पादक और प्रबंध निदेशक बनें। विवाह के तुरन्त बाद अम्मा अपने पति के साथ कोलकाता में रहने लगी, जहां उनके पति "वेलफोर्ट ट्रांसपोर्ट कम्पनी" में वरिष्ठ अधिकारी थे। यह कंपनी ऑटोमोबाइल कंपनी "रोल्स रॉयस मोटर कार्स" और "बेंटले" के उपकरणों को बेचती थी। इस कंपनी से त्यगपत्र देने के बाद उनके पति ने दैनिक समाचार पत्र मातृभूमि में अपनी सेवाएँ देने हेतु परिवार सहित कोलकाता छोड़ने का निर्णय लिया। फलत: अल्प प्रवास के बाद अम्मा अपने पति के साथ कोलकाता छोडकर केरल वापस आ गयी। 1977 में उनके पति की मृत्यु हुई। लगभग पचास वर्ष तक उनका दांपत्य बना रहा। उनके दाम्पत्य की झलक उनकी कुछ कविताओं यथा 'अमृतं गमया', 'स्वप्न', 'पराजय' में मुखर हुई है।[5]

 
कमला सुरय्या
अम्मा की सुपुत्री[7]

आडंबरों के विरुद्ध मानसिकता के कारण अम्मा आस्तिक होते हुये भी नियमित रूप से मन्दिर नहीं जाती थीं। नालापत में रहते समय वे कभी-कभी वहाँ के गोविंदपुरम मन्दिर में जाती थीं। वहाँ के इष्ट देवता कृष्ण हैं। उनकी मामा एन॰ नारायण मेनन ने नालापट घर के साथ ही एक छोटा सा मन्दिर बनवाया था। वहाँ जाकर वे प्रार्थना करती थीं। 'देवी महत्म्यम' नामक कृति का वे नित्य पारायण करती थीं।[5]

वे अँग्रेजी व मलयालम भाषा की प्रसिद्ध भारतीय लेखिका कमला दास की माँ थीं, जिन्हें उनकी आत्मकथा ‘माई स्टोरी’ [न 4]से अत्यधिक प्रसिद्धि मिली थी और उन्हें साहित्य में नोबेल पुरस्कार हेतु नामित किया गया था। कमला के लेखन पर अम्मा का अत्यन्त प्रभाव पड़ा था।[9] इसके अलावा वे क्रमश: नालापत सुलोचना, मोहनदास और श्याम सुंदर की भी माँ थीं।

उनकी पुत्री कमला दास उनसे भावनात्मक रूप से बेहद जुड़ी थीं। वे अपनी माँ से दूर रहकर भी दूर नहीं थी। उन्होने 1999 में उन्हें याद करते हुए अँग्रेजी में एक कविता लिखी। शीर्षक था- 'माई मदर ऐट सिकष्टि सिक्स'। इस कविता में कमला दास ने अपनी माँ से जुड़ी एक कथा के माध्यम से उम्र बढ़ने, मृत्यु और अलगाव के विषय की पड़ताल की है।[10] यह बेहद चर्चित कविता केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की बारहवीं कक्षा के अँग्रेजी के पाठ्यक्रम में शामिल है।[11]

साहित्यिक जीवन

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...बालमणि अम्मा जैसी वरिष्ठ लेखिकाओं के साथ सभी भारतीय भाषाओं में बहुत सारी जुझारू लेखिकाएं आईं हैं। इन लेखिकाओं के पास सही मुद्दों की देशी और जातीय चेतना कहीं अधिक गहरी हैं।

के॰ सच्चिदानन्दन
पुस्तक: 'भारतीय साहित्य स्थापनाएं
और प्रस्तावनाएं में'[12]

अम्मा मलयाली कवियों में
सर्वश्रेष्ठ कवयित्री मानी जाती हैं।
वे दार्शनिक तथ्यों और पारिवारिक जीवन,
दोनों का ही बखूबी चित्रण करती हैं।
पौराणिक चरित्रों-
जैसे परशुराम, विश्वामित्र, विभीषण और
महाबली आदि को मूल विषय बनाकर
उन्होने नाटकीय संवाद लिखे हैं।
अपनी कविताओं में उन्होंने
मानव-अस्तित्व के
विभिन्न प्रकारों का परीक्षण किया है।
उनके रंगों और भव्यता, सुख और
दु:ख की उत्सुकता और चीढ़,
जीत और त्रासदी एवं ऊंचाई और
गिरावट का सूक्ष्म विवेचन प्रस्तुत किया है।

ई पुस्तक: साहित्य और भारतीय एकता
(पृष्ठ संख्या: 102) से[13]

अम्मा केरल की राष्ट्रवादी साहित्यकार थीं। उन्होंने राष्ट्रीय उद्बोधन वाली कविताओं की रचना की। वे मुख्यतः वात्सल्य, ममता, मानवता के कोमल भाव की कवयित्री के रूप में विख्यात हैं। फिर भी स्वतंत्रतारूपी दीपक की उष्ण लौ से भी वे अछूती नहीं रहीं। सन् 1929-39 के बीच लिखी उनकी कविताओं में देशभक्ति, गाँधी का प्रभाव, स्वतंत्रता की चाह स्पष्ट परिलक्षित होती है। इसके बाद भी उनकी रचनाएँ प्रकाशित होती रहीं। अपने सृजन से वे भारतीय आजादी में अनोखा कार्य किया।[4]

उन्होने अपनी किशोरावस्था में ही अनेक कवितायें लिख ली थीं जो पुस्तकाकार रूप में उनके विवाह के बाद प्रकाशित हुई। उनके पति ने उन्हें साहित्य सृजन के लिए पर्याप्त अवसर दिया।[14] उनकी सुविधा के लिए घर के काम-काज के साथ-साथ बच्चों को सम्हालने के लिए अलग से नौकर-चाकर लगा दिये थे, ताकि वे पूरा समय लेखन को समर्पित कर सकें। अम्मा विवाहोपरांत अपने पति के साथ कलकत्ता में रहने लगीं थीं। कलकत्ता- वास के अनुभवों ने उनकी काव्य चेतना को अत्यन्त प्रभावित किया।[14] अपनी प्रथम प्रकाशित और चर्चित कविता 'कलकत्ते का काला कुटिया' उन्होने अपने पतिदेव के अनुरोध पर लिखी थी, जबकि अन्तररतमा की प्रेरणा से लिखी गई उनकी पहली कविता 'मातृचुंबन' है। स्वतन्त्रता आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी का प्रभाव उनके लिए अपरिहार्य बन गया। उन्होने खद्दर पहनी और चरखा काता।[4]

...अम्मा आनंद और अमृत के लिए यहाँ तक कि परनिवृत्ति के लिए दूर नहीं जाती, क्योंकि :सत्य तो जैसा दूर है वैसा निकट है, तद दूरे, तदु अंतिके:कवि मानस कहता है- मुझे शक्ति दो कि/मैं अपने आनंद का अंश/औरों को भी बाँट सकूँ।

डॉ॰ हरद्वारी लाल शर्मा
काव्यलोचन में सौन्दर्य दृष्टि,
(पृष्ठ संख्या: 67-69)

उनकी प्रारम्भिक कविताओं में से एक 'गौरैया' शीर्षक कविता उस दौर में अत्यन्त लोकप्रिय हुई। इसे केरल राज्य की पाठ्य-पुस्तकों में सम्मिलित किया गया। बाद में उन्होने गर्भधारण, प्रसव और शिशु पोषण के स्त्रीजनित अनुभवों को अपनी कविताओं में पिरोया। इसके एक दशक बाद उन्होने घर और परिवार की सीमाओं से निकलकर अध्यात्मिकता के क्षेत्र में दस्तक दी। तब तक यह क्षेत्र उनके लिए अपरिचित जैसा था। थियोसाफ़ी का प्रारम्भिक ज्ञान उनके मामा से उन्हें मिला। हिन्दू शास्त्रों का सहज ज्ञान उन्हें पहले से ही था। इसलिए थियोसाफ़ी और हिन्दू मनीषा का संयोजित स्वरूप ही उनके विचारों के रूप में लेखन में उतरा।[4]

अम्मा के दो दर्जन से अधिक काव्य-संकलन, कई गद्य-संकलन और अनुवाद प्रकाशित हुए हैं। उन्होंने छोटी अवस्था से ही कविताएँ लिखना शुरू कर दिया था। उनकी पहली कविता "कूप्पुकई" 1930 में प्रकाशित हुई थी। उन्हें सर्वप्रथम कोचीन ब्रिटिश राज के पूर्व शासक राम वर्मा परीक्षित थंपूरन के द्वारा "साहित्य निपुण पुरस्कारम" प्रदान किया गया। 1987 में प्रकाशित "निवेद्यम" उनकी कविताओं का चर्चित संग्रह है। कवि एन॰ एन॰ मेनन की मौत पर शोकगीत के रूप में उनका एक संग्रह "लोकांठरांगलील" नाम से आया था।[15]

उनकी कविताएँ दार्शनिक विचारों एवं मानवता के प्रति अगाध प्रेम की अभिव्यक्ति होती हैं। बच्चों के प्रति प्रेम-पगी कविताओं के कारण मलयालम-कविता में वे "अम्मा" और "दादी" के नाम से समादृत हैं।[1] केरल साहित्य अकादमी, अखितम अच्युतन नम्बूथरी में एक यादगार वक्तव्य के दौरान उन्हें "मानव महिमा के नबी" के रूप में वर्णित किया गया था और कविताओं की प्रेरणास्त्रोत कहा गया था।[16] उन्हें 1987 में भारत सरकार ने साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था।[3][17]

प्रभाव/प्रेरणा

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"मेरे साहित्यिक जीवन और चरित्र निर्माण पर मेरे मामा जी यानी एन॰ नारायण मेननका बहुत प्रभाव पड़ा है। मामा के दो उपदेशों को मैं बहुत महत्व देती हूँ। पहली बात है कि कवि का उद्देश्य पाठक की समझ में नाही आए, ऐसी स्थिति नही आए। भाव कवि के लिए स्पष्ट हो, इतना काफी नहीं है। वह इसका समर्थन भी कर सके कि उसने शब्दों के जरिये उस भाव को कैसे अभिव्यक्त किया है। अब दूसरी बात- विषाद कविता का विषय बन सकता है, किन्तु उसे प्रमाद की सीधी के रूप में ही लेना होगा। महज विषाद के लिए विषाद न करें।”
बालमणि अम्मा[5]

सुप्रसिद्ध कवि एवं विद्वान एन॰ नारायण मेनन की भांजी अम्मा ने औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की किन्तु स्वाध्याय और मनन द्वारा साहित्य और संस्कृति को पूरी तरह आत्मसात कर लिया और किशोरावस्था से ही बड़ी सहजता से कविता लेखन आरम्भ किया। एन॰ नारायण मेनन की श्रेष्ठ रचना 'कण्णुनीरतुल्लि अश्रुबिंदु' नामक विलापकाव्य का अम्मा पर गहरा प्रभाव पड़ा और उन्हें कवयित्री बनने में भरपूर मदद की।[18]

महाकवि वी॰ नारायण मेनन उनके मामा एन॰ नारायण मेनन के समकालीन, मार्गदर्शक और घनिष्ठ मित्र थे। 'कुट्टीकृष्ण मरार' और 'मुकुन्द दास' जैसे विद्वान भी उनके घर आया करते थे। घर में साहित्यिक चर्चा का वातावरण रहता था। इस वातावरण में वे पाली-बढ़ी थीं। साक्षी और अस्वादिका के रूप में वे वहाँ उपस्थित रहती थीं। महाकवि वी॰ नारायण मेनन ने मलयालम साहित्य में मानव के मानसिक भाव को काल्पनिकता का परिधान देकर सुदर रूप में प्रस्तुत करने वाले महान कवियों में से एक थे, जिन्होने 1909 में बाल्मीकि रामायण का अनुवाद किया। 1910 में "बधिरविलापम्" नामक विलापकाव्य लिखा। इसके बाद उन्होंने अनेक नाटकीय भावकाव्य लिखे--गणपति, बंधनस्थनाय अनिरुद्धन्, ओरू कत्तु (एक खत), शिष्यनुम् मकनुम् (शिष्य और पुत्री), मग्दलन मरि यम्, अच्छनुम् मकनुम (पिता पुत्री) कोच्चुसीता इत्यादि। सन् 1924 के बाद रचित साहित्यमंजरियों में ही वल्लत्तोल के देशभक्ति से ओतप्रोत वे काव्यसुमन खिले थे जिन्होंने उनको राष्ट्रकवि के पद पर आसीन किया। एन्रे गुरुनाथन (मेरे गुरुनाथ) इत्यादि उन भावगीतों में अत्यधिक लोकप्रिय हैं। जीवन के कोमल और कांत भावों के साथ विचरण करना वल्लत्तोल को प्रिय था। अंधकार में खड़े होकर रोने की प्रवृत्ति उनमें नहीं थी। यह सत्य है कि पतित पुष्पों को देखकर उन्होंने भी आहें भरी हैं, परन्तु उनपर आँसू बहाते रहने की बनिस्बत विकसित सुमनों को देखकर आह्लाद प्रकट करने की प्रवृत्ति ही उनमें अधिक हैं। अम्मा की रचनाओं में उनके काव्यागत शिष्टाचार का अंश देखा जा सकता है।[19][20]

अम्मा कहती हैं कि उनके मामा एन॰ नारायण मेनन के पास विश्व साहित्य की कई विशिष्ट कृतियाँ थीं। उन कृतियों से बचपन से ही उनका सान्निध्य रहा था। महाकवि रबीन्द्रनाथ टैगोर कृत 'दि गार्डनर' और 'विक्टर ह्यूगो कृत 'लस मिसर्बलस' जैसी श्रेष्ठ कृतियों से वे प्रभावित हुई थीं, जो आगे चलकर उनकी रचनात्मकता को धार देने में सहायक सिद्ध हुआ।[5]

इस प्रकार अम्मा अपने साहित्यिक जीवन में रबीन्द्रनाथ टैगोर, विक्टर ह्यूगो, एन॰ नारायण मेनन और वी॰ नारायण मेनन से अत्यधिक प्रभावित रही हैं।[21]

अम्मा ने स्वतंत्रता के पहले का भारत भी देखा और उसके बाद का भी।[22] फलत: वात्सल्य, ममता, मानवता के कोमल भाव की कवयित्री के रूप में विख्यात अम्मा ने तत्कालीन समाज के भीतर विद्यमान हाहाकार, रुदन को देखा, परखा और करुण होकर अन्धकार को दूर करने वाली भी दृष्टि देने की कोशिश की।[23] तीस के दशक की उनकी कविताओं में देशभक्ति, गाँधी का प्रभाव और स्वतंत्रता की चाह स्पष्ट परिलक्षित होती है।[24] भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान उन्होने निजी जीवन में उन्होने खद्दर पहनी और चरखा भी काता। सन् 1929-39 के बीच लिखी उनकी कविताओं में देशभक्ति और स्वतंत्रता की चाह स्पष्ट परिलक्षित होती है। अम्मा कहती हैं कि नालपत परिवार के लिए गांधी जी एक सदस्य की तरह थे। उनका अगोचर सान्निध्य उन्हें उनके हर क्रिया-कलाप को प्रभावित करता रहा। तब उन्हें आडंबरों से अलग रहने की प्रेरणा मिली।[4]

आत्मकथात्मक टिप्पणियाँ

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अपनी आत्मकथात्मक टिप्पणियों के क्रम में अम्मा ने स्वीकार किया है, कि काव्य रचना के क्षेत्र में उनके पति वी॰ एम॰ नायर ने उन्हें प्रोत्साहित किया। उनके सहयोग उन्हें अनवरत प्राप्त हुए हैं। अम्मा कहती हैं कि-

"मेरे ससुराल में मुझे बड़ी ज़िम्मेदारी नही दी गयी थी। बाल-बच्चों की देखभाल, सेवा-टहल करने के लिए माँ, दादी और सेविकाएं थीं। खाना पकाना एक काम अवश्य है, लेकिन उस काम ने मुझे कभी भी आकृष्ट नही किया था। मैं जब कविताओं को पूरा करती थी तब पतिदेव उसको पढ़ लेते थे। वे उसकी आलोचना करते थे। ये सारे काम उन्हें पसंद आए थे।"[5]

अम्मा एक संस्मरण सुनाती हुई कहती हैं, कि-

"कश्मीर भारत का हिस्सा है या पाकिस्तान का- इस बात पर एक विवाद छिड़ा था। युद्ध की यातनाओं के बारे में सुनकर मैं अत्यंत निराश हो गयी थी। इस विषय पर मैंने एक कविता भी लिखी। भारत में विभिन्न देशों के लोग आए और यहाँ बस गए। इस देश में संस्कृतियों का समन्वय हुआ है। ऐसे देश में एक टुकड़ा जमीन के लिए क्यों इतना रक्तपात हो रहा है? क्यों इतनी मृत्यु की घटनाएँ होती है? भूमि अधिक महत्वपूर्ण है या मानव जीवन? मेरी कविता में यह आशय आया था। पतिदेव ने इसपर आपत्ति की कि इस कविता में जो मेरा दृष्टिकोण उभरकर आया है वह एक राष्ट्रप्रेमी के लिए उचित नही लगता। यों कहकर मेरी कविता की कमजोरी की ओर उन्होने इशारा किया। मैंने खूब चिंतन-मनन किया तो समझ में आया कि उनका कथन ठीक है। फिर मैंने वह कविता छोड़ दी।"[5]

प्रमुख कृतियाँ

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माँ भी कुछ नहीं जानती
"बतलाओ माँ, मुझे बतलाओ,
कहाँ से, आ पहुँची यह छोटी सी बच्ची ?"
अपनी अनुजाता को परसते-सहलाते हुए
मेरा पुत्र पूछ रहा था मुझसे;
यह पुराना सवाल, जिसे हजारों लोगों ने
पहले भी बार-बार पूछा है।
प्रश्न जब उन पल्लव-अधरों से फूट पड़ा
तो उस से नवीन मकरन्द की कणिकाएँ चू पड़ीं;
आह, जिज्ञासा जब पहली बार आत्मा से फूटती है
तब कितनी आस्वाद्य बन जाती है
तेरी मधुरिमा ! कहाँ से ? कहाँ से ?
मेरा अन्तःकरण भी रटने लगा यह आदिम मन्त्र।
समस्त वस्तुओं में मैं उसी की प्रतिध्वनि सुनने लगी
अपने अन्तरंग के कानों से; हे प्रत्युत्तरहीण महाप्रश्न !
बुद्धिवादी मनुष्य की उद्धत आत्मा में
जिसने तुझे उत्कीर्ण कर दिया है
उस दिव्य कल्पना की जय हो !
अथवा तुम्हीं हो वह स्वर्णिम कीर्ति-पताका
जो जता रही है सृष्टि में मानव की महत्ता।
ध्वनित हो रहे हो तुम
समस्त चराचरों के भीतर शायद, आत्मशोध की प्रेरणा देने वाले
तुम्हारे आमन्त्रण को सुनकर
गायें देख रही हैं अपनी परछाईं को झुककर।
फैली हुई फुनगियों में अपनी चोंचों से
अपने आप को टटोल रही हैं, चिड़ियाँ।
खोज रहा है अश्वत्थ अपनी दीर्घ जटाओं को फैलाकर
मिट्टी में छिपे मूल बीज को; और, सदियों से
अपने ही शरीर का विश्लेषण कर रहा है पहाड़।
ओ मेरी कल्पने, व्यर्थ ही तू प्रयत्न कर रही है
ऊँचे अलौकिक तत्वों को छूने के लिये।
कहाँ तक ऊँची उड़ सकेगी यह पतंग
मेरे मस्तिष्क की पकड़ में ?
झुक जाओ मेरे सिर, मुन्ने के जिज्ञासा भरे प्रश्न के सामने !
गिर जाओ, हे ग्रंथ-विज्ञान
मेरे सिर पर के निरर्थक भार-से
तुम इस मिट्टी पर।
तुम्हारे पास स्तन्य को एक कणिका भी नहीं
बच्चे की बढ़ी हुई सत्य-तृष्णा को -
बुझाने के लिये।
इस नन्हीं सी बुद्धि को थामने-संभालने के लिये
कोई शक्तिशाली आधार भी तुम्हारे पास नहीं !
हो सकता है, मानव की चिन्ता पृथ्वी से टकराये
और सिद्धान्त की चिनगारियाँ बिखेर दे।
पर, अंधकार में है उस विराट सत्य की सार-सत्ता
आज भी यथावत।
घड़ियाँ भागी जा रही थीं सौ-सौ चिन्ताओं को कुचलकर;
विस्मयकारी वेग के साथ उड़-उड़ कर छिप रही थीं
खारे समुद्र की बदलती हुई भावनाएँ
अव्यक्त आकार के साथ, अन्तरिक्ष के पथ पर।
मेरे बेटे ने प्रश्न दुहराया, माता के मौन पर अधीर होकर।
"मेरे लाल, मेरी बुद्धि की आशंका अभी तक ठिठक रही है
इस विराट प्रश्न में डुबकी लगाने के लिये और जिस को
तल-स्पर्शी आँखों ने भी नहीं देखा है, उस वस्तु को टटोलने के लिए।
हम सब कहाँ से आये ?
मैं कुछ भी नहीं जानती !
तुम्हारे इन नन्हें हाथों से ही नापा जा सकता है
तुम्हारी माँ का तत्त्व-बोध।"
अपने छोटे से प्रश्न का जब कोई सीधा प्रत्युत्तर नहीं मिल सका
तो मुन्ना मुसकराता हुआ बोल उठा
"माँ भी कुछ नहीं जानती।"

बालमणि अम्मा की एक चर्चित कविता
'भारतीय ज्ञानपीठ' से प्रकाशित
'अनुवाद 'छप्पन कविताएं' से[25]

कविता संग्रह

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वर्ष 1928 में अपने कलकत्ता- वास के अनुभवों को समेटते हुए उन्होने अपने पतिदेव के अनुरोध पर अपनी प्रथम कविता 'कलकत्ते का काला कुटिया' लिखी थी। यह उनकी प्रथम प्रकाशित कविता है, जबकि अन्तररतमा की प्रेरणा से लिखी गई उनकी पहली कविता 'मातृचुंबन' है। उनकी प्रारम्भिक कविताओं में से एक 'गौरैया' शीर्षक कविता केरल राज्य की पाठ्य-पुस्तकों में सम्मिलित है। उनका पहला कविता संग्रह "कूप्पुकई" 1930 में प्रकाशित हुआ था।[15] उनकी समस्त प्रकाशित कृतियों का विवरण इसप्रकार है-

     १. कूप्पुकई (1930)[26]
     २. अम्मा (1934)[27]
     ३. कुटुंबनी (1936)[28]
     ४. धर्ममर्गथिल(1938)[29]
     ५. स्त्री हृदयम (1939)[30]
     ६. प्रभंकुरम (1942)[31]
     ७. भवनईल (1942)[32]
     ८. ऊंजलींमेल (1946)[33]
     ९. कालिकोट्टा (1949)[34]
     १०. भावनाईल (1951)[35]
     ११. अवार पेयदुन्नु (1952)[36]
     १२. प्रणामम (1954)[37]
     १३. लोकांठरांगलील (1955)[38]
     १४. सोपनाम (1958)[39]
     १५. मुथास्सी (1962)[40]
     १६. अंबलथीलेक्कू (1967)[41]
     १७. नगरथिल (1968)[42]
     १८. वाईलारुंम्पोल (1971)[43]
     १९. अमृथंगमया (1978)[44]
     २०. संध्या (1982)[45]
     २१. निवेद्यम (1987)[46]
     २२. मथृहृदयम (1988)[47]

बाल साहित्य

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     १. मज़्हुवींट कथा (1966)[48]

गद्य साहित्य

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     १. जीविताट्टीलुट(आत्मकथात्मक निबंधों का संकलन, 1969)[49]

     २. 'सरस्वती की चेतना' (आत्मकथात्मक टिप्पणियाँ हिन्दी में)[50]

     १. "छप्पन कविताएं-बालमणि अम्मा" (मलयालम भाषा से हिन्दी में अनुवाद,1971)[25]

     २. "थर्टी पोएम्स-बालमणि अम्मा" (मलयालम भाषा से अँग्रेजी में अनुवाद,1979)[51]

     ३. निवेदया (मलयालम भाषा से हिन्दी में अनुवाद,2003)[52]

     ४. Chakravalam (Horizon) - हिन्दी अनुवाद: क्षितिज, (मलयालम भाषा से अँग्रेजी में अनुवाद,1940)[53]

     ५. Mother - हिन्दी अनुवाद: माँ, (मलयालम भाषा से अँग्रेजी में अनुवाद,1950)[54]

मृत्योपरांत प्रकाशित कृति

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     १. वाला (2010)[55]

साहित्य समग्र ग्रंथ

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     १. 'बालमणिअम्मायूडे कविथाकाल' [घ] (सम्पूर्ण सम्हारम)[56]

तुलनात्मक शोध

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     १. 'बालमणि अम्मायूडे कविथालोकांगल' (भाषा: मलयालम), लेखिका: एम॰ लीलावती[57]

     २. "हिन्दी और मलयालम के स्वच्छंदतवादी काव्य की प्रकृति", शोधकर्ता: मुरलीधर पिल्लै, डॉ॰ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर, 1969[58]

     ३. "आधुनिक हिन्दी और मलयालम काव्य में प्रकृति का उपयोग", शोधकर्ता: देसाई बर्गिस, डॉ॰ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर, 1970[58]

     ४. "श्रीमती महादेवी वर्मा और श्रीमती बालमणि अम्मा की कविताओं का तुलनात्मक अध्ययन", शोधकर्ता: एम॰ राधादेवी, डॉ॰ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर, 1971[58]

सम्मान/पुरस्कार

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स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पहले ही काव्य साधना शुरू करने वाली कुछ उल्लेखनीय कवयित्रियाँ मलयालम में हैं। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद भी वे सृजनरत रहीं। उस पीढ़ी की कवयित्रियों में नालापत बालमणि अम्मा अग्रणी हैं।

डॉ॰ आरसू[5]

लगभग पाँच वर्षों तक अलजाइमर रोग से जूझने के बाद 95 वर्ष की अवस्था में 29 सितंबर 2004 को शाम 4 बजे कोच्चि में उनकी मृत्यु हो गई। अपने पति की मृत्यु के बाद से वे यहाँ अपने बच्चों क्रमश: श्याम सुंदर (पुत्र) और सुलोचना (पुत्री) के साथ रह रहीं थीं। उनका अंतिम संस्कार कोच्चि के रविपुरम शव दाह गृह में हुई।[17][60]

स्मृति शेष

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अम्मा की स्मृति में कोच्चि अन्तर्राष्ट्रीय पुस्तक महोत्सव समिति द्वारा प्रत्येक वर्ष मलयालम भाषा के किसी एक साहित्यकार को 'बालमणि अम्मा पुरस्कार' प्रदान किया जाता है। इसके अन्तर्गत सम्मान स्वरूप पच्चीस हजार रुपये नकद, स्मृति चिन्ह और अंग वस्त्रम प्रदान करने का प्रावधान है। अबतक यह सम्मान सुगत कुमारी, एम॰ लीलावती, अक्कितम, कोविलन, कक्कानादन, विष्‍णु नारायणन नम्‍बूति‍री, सी राधाकृष्णन, एम॰ पी॰ वीरेंद्रकुमार, युसुफ अली कचेरी और पी॰ वलसला को प्रदान किया जा चुका है।[61][62]

इन्हें भी देखें

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  1. मलयालम भाषा में മുത്തശ്ശി यानि "मुथास्सी" दादी को कहा जाता है।।[1]
  2. मलयालम भाषा में "अम्मा" का अभिप्राय माँ, "मुथास्सी" का दादी और "मज़्हुवींट कथा" का अभिप्राय कुल्हाड़ी की कहानी से है।।[3]
  3. मलयालम भाषा में മാതൃഭൂമി।[6]
  4. पुस्तक: माई स्टोरी इतनी विवादास्पद हुई और इतनी पढ़ी गई कि उसका पंद्रह विदेशी भाषाओं में अनुवाद हुआ और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति मिली। कमला मलयालम भाषा में माधवी कुटटी के नाम से लिखती थीं और उन्हें वर्ष 1984 में नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित भी किया गया था। ।[8]

टीका-टिप्पणी

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   क.    ^ छायावाद के अन्य तीन स्तंभ हैं, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और सुमित्रानंदन पंत

   ख.    ^ उनके सृजनात्मक लेखन और अनुवाद कर्म की चर्चा पुस्तक: सौन्दर्य, कला और काव्य के परिप्रेक्ष्य में हुई है।[69]

   ग.    ^ उनके सृजनात्मक पक्ष पर संक्षिप्त चर्चा तारसप्तक में हुई है।[70]

   घ.    ^ बालमणि अम्मा की कविताओं का यह समग्र संग्रह उनकी बेटी नालापत सुलोचना द्वारा एक प्राक्कथन के साथ संकलित किया गया है, जिसका परिचय के॰ सच्चिदानन्दन ने लिखा है।[71]

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  2. "Balamani Amma, Malayali poet (video interview)" [बालमणि अम्मा, मलयाली कवयित्री (वीडियो साक्षात्कार)] (अंग्रेज़ी में). इंडिया वीडियो. मूल से 14 जुलाई 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 जुलाई 2014.
  3. जॉर्ज, के॰एम॰ (1998). Western influence on Malayalam language and literature [मलयालम भाषा और साहित्य पर पश्चिमी प्रभाव] (अंग्रेज़ी में). साहित्य अकादमी. पृ॰ 132. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-260-0413-3. मूल से 2 मई 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 अप्रैल 2014.
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  5. नालापत बालमणि अम्मा, अनुवादक: डॉ॰ आरसु. "सरस्वती की चेतना (पुस्तक)" (एचटीएमएल). गूगल बूक. पृ॰ 102. मूल से 14 जुलाई 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 जुलाई 2014.
  6. "About us" [मातृभूमि के बारे में] (अंग्रेज़ी में). मूल से 11 मई 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 जून 2014.
  7. "The रीडिफ Interview/ Kamala Suraiya" [रेडिफ साक्षात्कार / कमला सुरैया] (अंग्रेज़ी में). रीडिफ.कॉम. 19 जुलाई 2000. मूल से 17 जून 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 जून 2014.
  8. "अभिव्यक्ति के खतरे उठाने वाली कमला दास (लेखक: रवींद्र व्यास)". वेब दुनिया हिन्दी. मूल से 3 अप्रैल 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 जून 2014.
  9. विसबोर्ड, मेर्रिली (2010). The Love Queen of Malabar: Memoir of a Friendship with Kamala Das [मालाबार की प्रेम रानी: कमला दास के साथ एक दोस्ती का संस्मरण] (अंग्रेज़ी में). मैकगिल-क्वीन्स यूनिवर्सिटी प्रेस. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-7735-3791-0. मूल से 2 मई 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 अप्रैल 2014.
  10. "My Mother at Sixty-Six Kamala Das" [छाछठ वर्ष में मेरी माँ-कमला दास] (अंग्रेज़ी में). नोट्मोंक. मूल से 27 जुलाई 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 जुलाई 2014.
  11. "MY MOTHER AT SIXTY SIX CBSE – CLASS – XII – ENGLISH TEXT BOOK ANSWERS AND ANALYSIS" [छाछठ वर्ष में मेरी माँ सीबीएसई में बारहवीं कक्षा के अंग्रेजी पाठ का उत्तर और विश्लेषण] (अंग्रेज़ी में). CBSENCERTANSWERS. मूल से 29 जुलाई 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 जुलाई 2014.
  12. "पुस्तक:भारतीय साहित्य स्थापनाएं और प्रस्तावनाएं, लेखक: के॰ सच्चिदानंदन, पृष्ठ संख्या: 68". राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड. मूल से 3 मई 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 मई 2014.
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  42. नालापत बालमणि अम्मा (1968). നഗരത്തിൽ [नगरथिल] (मलयालम में). मातृभूमि बुक्स.
  43. नालापत बालमणि अम्मा (1971). വെയിലാറുമ്പോൾ [वाईलारुंम्पोल] (मलयालम में). मातृभूमि बुक्स. पृ॰ 46.
  44. नालापत बालमणि अम्मा (1978). അമൃതംഗമയ [अमृथंगमया] (मलयालम में). मातृभूमि बुक्स.
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  46. नालापत बालमणि अम्मा (1987). നിവേദ്യം [निवेद्यम] (मलयालम में). वाणी प्रकाशन. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-7055-501-9.
  47. नालापत बालमणि अम्मा (1988). മാതൃഹൃദയം [मथृहृदयम] (मलयालम में). मातृभूमि बुक्स.
  48. बालमणि अम्मा (1966). മഴുവിന്റെ കഥ [मज़्हुवींट कथा] (मलयालम में). मातृभूमि प्रेस. पृ॰ 50. ASIN B0000CQ0BG.
  49. नालापत बालमणि अम्मा (1969). സഹപാഠികൾ [जीविताट्टीलुट] (मलयालम में). मातृभूमि. पृ॰ 126. ASIN B0000CQ1N5.
  50. नालापत बालमणि अम्मा, अनुवादक: डॉ॰ आरसु. "सरस्वती की चेतना (पुस्तक)" (एचटीएमएल). गूगल बूक. मूल से 14 जुलाई 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 जुलाई 2014.
  51. बालमणि अम्मा (1979). Thirty Poems [थर्टी पोएम्स] (अंग्रेज़ी में). संगम बुक्स लिमिटेड. पृ॰ 72. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780861256259.
  52. नालापत बालमणि अम्मा (2003). निवेदया (सजिल्द). वाणी प्रकाशन. पृ॰ 672. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788170555018.
  53. Nālappāṭṭ Nārāyaṇamēnōn; Bālāmaṇiyamma (1940). Chakravalam (Horizon)[[हिन्दी]]: चक्रवलम होरीज़ोन (अंग्रेज़ी में). Bombay, International Book House. मूल से 13 मई 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जून 2020. URL–wikilink conflict (मदद)
  54. Bālāmaṇiyamma (1950(2d ed)). Mother [[हिन्दी]]: माँ (अंग्रेज़ी में). Bombay, International Book House. मूल से 14 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जून 2020. |year= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद); URL–wikilink conflict (मदद)
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  56. बालमणि अम्मा (2012 (जून)). ബാലാമണിഅമ്മയുടെ കവിതകള്‍ ['बालमणिअम्मायूडे कविथाकाल' (सम्पूर्ण सम्हारम)] (सजिल्द) (मलयालम में). माथरुभूमि बुक्स. पृ॰ 760. मूल से 14 जुलाई 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2 जुलाई 2014. |year= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  57. एम॰ लीलावती. "Balamani Ammayude Kavithalokangal (बालमणि अम्मायूडे कविथालोकांगल)". मूल से 14 जुलाई 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2 जुलाई 2014.
  58. विजयपाल सिंह. "हिन्दी अनुसंधान". पृ॰ 297 पृ. मूल से 12 मई 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 मई 2014.
  59. Netzone, India. "1987 Padma Bhushan Awardees" [1987, पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित प्रतिभागी] (अंग्रेज़ी में). मूल से 2 मार्च 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 मई 2014.
  60. "Is Balamani Amma dead?" [बालमणि अम्मा नहीं रहीं?]. ई वी आई पोर्टल (अंग्रेज़ी में). मूल से 12 मई 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 मई 2014.
  61. एक्सप्रेस, इंडियन. "Kecheri wins Balamani Amma award" [कचेरी को बालमणि अम्मा पुरस्कार] (अंग्रेज़ी में). मूल से 14 जुलाई 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 जुलाई 2014.
  62. हिन्दू, दि. "Balamani Amma Award for Valsala" [वलसला को बालमणि अम्मा पुरस्कार] (अंग्रेज़ी में). मूल से 30 अगस्त 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 जुलाई 2014.
  63. "Status of women declining: Sugathakumari" [घट रही महिलाओं की स्थिति: सुगत कुमारी]. दि हिन्दू (अंग्रेज़ी में). तिरुवनन्तपुरम, भारत. 3 नवम्बर 2000. मूल से 1 अक्तूबर 2005 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 जून 2014.
  64. "Nayar award for M. Leelavathy" [एम॰ लीलावती को नायर पुरस्कार] (अंग्रेज़ी में). दि हिन्दू. 2 अक्टूबर 2009. मूल से 7 नवंबर 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 जून 2014.
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  68. "Veerendra Kumar, Nanjil Nadan among Sahitya Akademi winners" [वीरेन्द्र कुमार और नानजी नादान को साहित्य अकादमी पुरस्कार] (अंग्रेज़ी में). दि हिन्दू. 9 मई 2008. मूल से 21 अप्रैल 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 जुलाई 2014.
  69. पुस्तक: सौन्दर्य, कला और काव्य के परिप्रेक्ष्य में, अनू मिश्रा, पृष्ठ संख्या: 101
  70. पुस्तक: तारसप्तक, संपादक: अज्ञेय, पृष्ठ संख्या: 269
  71. पुस्तक का मलयालम भाषा में शीर्षक : ബാലാമണിഅമ്മയുടെ കവിതകള്‍, प्रकाशक: मातृभूमि, पृष्ठ संख्या: 760, साइज: डिमाई 1/8, बंधन: सजिल्द, प्रकाशन वर्ष: जून 2012

बाहरी कड़ियाँ

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