बुध (ग्रह)

सौरमंडल में सूर्य के सबसे निकट का ग्रह
(बुध ग्रह से अनुप्रेषित)

बुध (Mercury; प्रतीक: ☿), सौरमंडल के आठ ग्रहों में सबसे छोटा और सूर्य का सबसे निकटतम ग्रह है। इसका परिक्रमण काल लगभग 88 दिन है। पृथ्वी से देखने पर, यह अपनी कक्षा के ईर्दगिर्द 116 दिवसो में घूमता नजर आता है जो कि ग्रहों में सबसे तेज है।[12] गर्मी बनाए रखने के लिहाज से इसका वायुमण्डल चूँकि करीब-करीब नगण्य है, बुध का भूपटल सभी ग्रहों की तुलना में तापमान का सर्वाधिक उतार-चढाव महसूस करता है, जो कि 100 K (−173 °C; −280 °F) रात्रि से लेकर भूमध्य रेखीय क्षेत्रों में दिन के समय 700 K (427 °C; 800 °F) तक है। वहीं ध्रुवों के तापमान स्थायी रूप से 180 K (−93 °C; −136 °F) के नीचे है। बुध के अक्ष का झुकाव सौरमंडल के अन्य किसी भी ग्रह से सबसे कम है (एक डीग्री का करीब 130), परंतु कक्षीय विकेन्द्रता सर्वाधिक है। बुध ग्रह अपसौर पर उपसौर की तुलना में सूर्य से करीब 1.5 गुना ज्यादा दूर होता है। बुध की धरती क्रेटरों से अटी पडी है तथा बिलकुल हमारे चन्द्रमा जैसी नजर आती है, जो इंगित करता है कि यह भूवैज्ञानिक रूप से अरबो वर्षों तक मृतप्राय रहा है।

बुध  ☿
बुध ग्रह का रंगीन चित्र
बुध ग्रह की तीन दृश्य रंगीन मानचित्रों द्वारा क्रमशः १००० नै.मी, ७०० नै.मी एवं ४३० नै.मी तरंगदैर्घ्य की मेसेंजर अंतरिक्ष यान द्वारा भेजी गई छवि।
उपनाम
विशेषण मर्क्यूरियन, मर्क्यूरियल, बुधीय[1]
युग J2000
उपसौर
  • 69,816,900 कि.मी
  • 0.466 697 एयू
अपसौर
  • 46,001,200 कि.मी
  • 0.307 499 एयू
अर्ध मुख्य अक्ष
  • 57,909,100 कि.मी
  • 0.387 098 एयू
विकेन्द्रता 0.205 630[3]
परिक्रमण काल
संयुति काल 115.88 d[3]
औसत परिक्रमण गति 47.87 km/s[3]
औसत अनियमितता 174.796°
झुकाव
आरोही ताख का रेखांश 48.331°
उपमन्द कोणांक 29.124°
उपग्रह कोई नहीं
भौतिक विशेषताएँ
माध्य त्रिज्या
  • 2,439.7 ± 1.0 कि.मी[5][6]
  • 0.3829 पृथ्वी
सपाटता 0[6]
तल-क्षेत्रफल
  • 7.48×107 कि.मी2[5]
  • 0.147 पृथ्वी
आयतन
  • 6.083×1010 कि.मी3[5]
  • 0.056 पृथ्वी
द्रव्यमान
  • 3.3022×1023 कि.ग्राg[5]
  • 0.055 पृथ्वी
माध्य घनत्व 5.427 ग्रा/सें.मी3[5]
विषुवतीय सतह गुरुत्वाकर्षण
पलायन वेग4.25 कि.मी/सें[5]
नाक्षत्र घूर्णन
काल
विषुवतीय घूर्णन वेग 10.892 किमी/घंटा (3.026 मी/से)
अक्षीय नमन 2.11′ ± 0.1′[7]
उत्तरी ध्रुव दायां अधिरोहण
  • 18 h 44 मि. 2 से.
  • 281.01°[3]
उत्तरी ध्रुवअवनमन 61.45°[3]
अल्बेडो
सतह का तापमान
   0°उ, 0°प[11]
   85°उ, 0°प[11]
न्यूनमाध्यअधि
100 K340 K700 K
80 K200 K380 K
सापेक्ष कांतिमान −2.6[9] to 5.7[3][10]
कोणीय व्यास 4.5" – 13"[3]
वायु-मंडल[3]
सतह पर दाब नाममात्र
संघटन

बुध को पृथ्वी जैसे अन्य ग्रहों के समान मौसमों का कोई भी अनुभव नहीं है। यह जकड़ा हुआ है इसलिए इसके घूर्णन की राह सौरमंडल में अद्वितीय है। किसी स्थिर खड़े सितारे के सापेक्ष देखने पर, यह हर दो कक्षीय प्रदक्षिणा के दरम्यान अपनी धूरी के ईर्दगिर्द ठीक तीन बार घूम लेता है। सूर्य की ओर से, किसी ऐसे फ्रेम ऑफ रिफरेंस में जो कक्षीय गति से घूमता है, देखने पर यह हरेक दो बुध वर्षों में मात्र एक बार घूमता नजर आता है। इस कारण बुध ग्रह पर कोई पर्यवेक्षक एक दिवस हरेक दो वर्षों का देखेगा।

बुध की कक्षा चुंकि पृथ्वी की कक्षा (शुक्र के भी) के भीतर स्थित है, यह पृथ्वी के आसमान में सुबह में या शाम को दिखाई दे सकता है, परंतु अर्धरात्रि को नहीं। पृथ्वी के सापेक्ष अपनी कक्षा पर सफर करते हुए यह शुक्र और हमारे चन्द्रमा की तरह कलाओं के सभी रुपों का प्रदर्शन करता है। हालांकि बुध ग्रह बहुत उज्जवल वस्तु जैसा दिख सकता है जब इसे पृथ्वी से देख जाए, सूर्य से इसकी निकटता शुक्र की तुलना में इसे देखना और अधिक कठिन बनाता है।

आंतरिक गठन

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स्थलीय ग्रहों के आकार(size) की तुलना (बायें से दायें): बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल
 
1. पर्पटी—100–300 किमी मोटा
2. प्रावार—600 किमी मोटा
3. क्रोड—1,800 किमी त्रिज्या

बुध ग्रह सौरमंडल के चार स्थलीय ग्रहों में से एक है, तथा यह पृथ्वी के समान एक चट्टानी पिंड है। यह 2,439.7 किमी की विषुववृत्तिय त्रिज्या वाला सौरमंडल का सबसे छोटा ग्रह है।[3] बुध ग्रह सौरमंडल के बड़े उपग्रहों गेनिमेड और टाइटन से भी छोटा है, हालांकि यह उनसे भारी है। बुध तकरीबन 70% धातु व 30% सिलिकेट पदार्थ का बना है।[13] बुध का 5.427 ग्राम/सेमी3 का घनत्व सौरमंडल में उच्चतम के दूसरे क्रम पर है, यह पृथ्वी के 5.515 ग्राम/सेमी3 के घनत्व से मात्र थोडा सा कम है।[3] यदि गुरुत्वाकर्षण संपीड़न के प्रभाव को गुणनखंडो में बांट दिया जाए, तब 5.3 ग्राम/सेमी3 बनाम पृथ्वी के 4.4 ग्राम/सेमी3 के असंकुचित घनत्व के साथ, बुध जिस पदार्थ से बना है वह सघनतम होगा।[14]

बुध का घनत्व इसके अंदरुनी गठन के विवरण के अनुमान के लिए प्रयुक्त हो सकता है। पृथ्वी का उच्च घनत्व उसके प्रबल गुरुत्वाकर्षण संपीड़न के कारण काफी है, विशेष रूप से कोर का, इसके विपरित बुध बहुत छोटा है और उसके भीतरी क्षेत्र उतने संकुचित नहीं हुए हैं। इसलिए, इस तरह के किसी उच्च घनत्व के लिए, इसका कोर बड़ा और लौह से समृद्ध अवश्य होना चहिए।[15]

भूवैज्ञानिकों का आकलन है कि बुध का कोर अपने आयतन का लगभग 42% हिस्सा घेरता है; पृथ्वी के लिए यह अनुपात 17% है। अनुसंधान बताते है कि बुध का एक द्रवित कोर है।[16][17] यह कोर 500–700 किमी के सिलिकेट से बने मेंटल से घिरा है।[18][19] मेरिनर 10 के मिशन से मिले आंकडो और भूआधारित प्रेक्षणों के आधार पर बुध की पर्पटी का 100–300 किमी मोटा होना माना गया है।[20] बुध की धरती की एक विशिष्ट स्थलाकृति अनेकों संकीर्ण चोटीयों की उपस्थिति है जो लंबाई में कई सौ किलोमीटर तक फैली है। यह माना गया है कि ये तब निर्मित हुई थी जब बुध के कोर व मेंटल ठीक उस समय ठंडे और संकुचित किए गए जब पर्पटी पहले से ही जम चुकी थी।[21]

बुध का कोर सौरमंडल के किसी भी अन्य बड़े ग्रह की तुलना में उच्च लौह सामग्री वाला है, तथा इसे समझाने के लिए कई सिद्धांत प्रस्तावित किए गए है। सर्वाधिक व्यापक रूप से स्वीकार किया गया सिद्धांत यह है कि बुध आम कोंड्राइट उल्कापिंड की तरह ही मूल रूप से एक धातु-सिलिकेट अनुपात रखता था, जो कि सौरमंडल के चट्टानी पदार्थ में दुर्लभ समझा गया, साथ ही द्रव्यमान इसके मौजूदा द्रव्यमान का करीब 2.25 गुना माना गया।[22] सौरमंडल के इतिहास के पूर्व में, बुध ग्रह कई सौ किलोमीटर लम्बे-चौडे व लगभग 1/6 द्रव्यमान के किसी क्षुद्रग्रह द्वारा ठोकर मारा हुआ हो सकता है।[22] टक्कर ने मूल पर्पटी व मेंटल के अधिकांश भाग को दूर छिटक दिया होगा और पीछे अपेक्षाकृत मुख्य घटक के रूप में एक कोर को छोडा होगा।[22] इसी तरह की प्रक्रिया, जिसे भीमकाय टक्कर परिकल्पना के रूप में जाना जाता है, चंद्रमा के गठन की व्याख्या करने के लिए प्रस्तावित की गई है।[22]

ग्रहीय प्रणाली नामकरण के कार्य समूह ने बुध पर पांच घाटियों के लिए नए नामों को मंजूरी दी है: एंगकोर घाटी (Angkor Vallis), कैहोकीया घाटी (Cahokia Vallis), कैरल घाटी (Caral Vallis), पाएस्टम घाटी (Paestum Vallis), टिमगेड घाटी (Timgad Vallis)।[23]

रोमन मिथको के अनुसार बुध व्यापार, यात्रा और चोर्यकर्म का देवता, युनानी देवता हर्मीश का रोमन रूप, देवताओ का संदेशवाहक देवता है। इसे संदेशवाहक देवता का नाम इस कारण मिला क्योंकि यह ग्रह आकाश में काफी तेजी से गमन करता है, लगभग 88 दिन में अपना एक परिक्रमण पूरा कर लेता है।

बुध को ईसा से ३ सहस्त्राब्दि पहले सूमेरियन काल से जाना जाता रहा है। इसे कभी सूर्योदय का तारा, कभी सूर्यास्त का तारा कहा जाता रहा है। ग्रीक खगोल विज्ञानियों को ज्ञात था कि यह दो नाम एक ही ग्रह के हैं। हेराक्लाइटेस यहां तक मानता था कि बुध और शुक्र पृथ्वी की नही, सूर्य की परिक्रमा करते है। बुध पृथ्वी की तुलना में सूर्य के समीप है इसलिये पृथ्वी से उसकी चन्द्रमा की तरह कलाये दिखायी देती है। गैलीलीयो की दूरबीन छोटी थी जिससे वे बुध की कलाये देख नहीं पाये लेकिन उन्होने शुक्र की कलायें देखी थी।

चुंबकीय क्षेत्र

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ग्राफ बुध की चुंबकीय क्षेत्र की शक्ति दिखा रहा है।

अपने छोटे आकार व 59-दिवसीय-लंबे धीमे घूर्णन के बावजुद बुध का एक उल्लेखनीय और वैश्विक चुंबकीय क्षेत्र है। मेरिनर 10 द्वारा लिए गए मापनों के अनुसार यह पृथ्वी की तुलना में लगभग 1.1% सर्वशक्तिशाली है। इस चुंबकीय क्षेत्र की शक्ति बुध के विषुववृत्त पर करीब 300 nT है।[24] [25] पृथ्वी की तरह बुध का भी चुंबकीय क्षेत्र दो ध्रुवीय है।[26] पृथ्वी के उलट, बुध के ध्रुव ग्रह के घूर्णी अक्ष के करीब-करीब सीध में है।[27] अंतरिक्ष यान मेरिनर-10 व मेसेंजर दोनों से मिले मापनों ने दर्शाया है कि चुंबकीय क्षेत्र का आकार व शक्ति स्थायी है।[27]

ऐसा लगता है कि यह चुंबकीय क्षेत्र एक डाइनेमो प्रभाव के माध्यम द्वारा उत्पन्न हुआ है। इस लिहाज से यह पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के समान है।[16] [28] यह डाइनेमो प्रभाव ग्रह के लौह-बहुल तरल कोर के परिसंचरण का नतीजा रहा होगा। विशेष रूप से ग्रह की उच्च कक्षीय विकेंद्रता द्वारा उप्तन्न शक्तिशाली ज्वारीय प्रभाव ने कोर को तरल अवस्था में रखा होगा जो कि डाइनेमो प्रभाव के लिए आवश्यक है।[18]

बुध का चुंबकीय क्षेत्र ग्रह के आसपास की सौर वायु को मोड़ने के लिए पर्याप्त शक्तिशाली है, जो एक मेग्नेटोस्फेयर की रचना करता है। इस ग्रह का मेग्नेटोस्फेयर, यद्यपि पृथ्वी के भीतर समा जाने जितना छोटा है,[26] पर सौर वायु प्लाज्मा को फांसने के लिए पर्याप्त मजबूत है। यह ग्रह की सतह के अंतरिक्ष अपक्षय के लिए योगदान देता है।[27] मेरिनर 10 अंतरिक्ष यान द्वारा किये निरीक्षणों ने ग्रह के रात्रि-पक्ष के मेग्नेटोस्फेयर में इस निम्न ऊर्जा प्लाज्मा का पता लगाया। ऊर्जावान कणों के प्रस्फुटन को ग्रह के चुम्बकीय दूम में पाया गया, जो ग्रह के मेग्नेटोस्फेयर की एक गतिशील गुणवत्ता को इंगित करता है।[26]

6 अक्टूबर 2008 को ग्रह के अपने दूसरे फ्लाईबाई के दौरान मेसेंजर यान ने पता लगाया कि बुध का चुंबकीय क्षेत्र अत्यंत "रिसाव" वाला हो सकता है। इस अंतरिक्ष यान ने चुंबकीय "बवंडर" का सामना किया - चुंबकीय क्षेत्र के ऐंठे हुए बंडल जो ग्रहीय चुंबकीय क्षेत्र को अंतरग्रहीय अंतरिक्ष से जोड़ता है - जो कि 800 किमी या ग्रह की त्रिज्या के एक तिहाई तक चौड़े थे। चुंबकीय क्षेत्र सौर वायु द्वारा बुध के चुंबकीय क्षेत्र से संपर्क के लिए जब ढोया जाता, ये "बवंडर" बनते। (As the solar wind blows past Mercury's field, these joined magnetic fields are carried with it and twist up into vortex-like structures. These twisted magnetic flux tubes, technically known as , form open windows in the planet's magnetic shield through which the solar wind may enter and directly impact Mercury's surface.)[29]

ग्रहीय चुंबकीय क्षेत्र के अंतरग्रहीय अंतरिक्ष से जुड़ने की प्रक्रिया जो कि ब्रह्मांड में एक सामान्य प्रक्रिया है चुम्बकीय पुनर्मिलन यानि कहलाती है। यह धरती के चुम्बकीय क्षेत्र में भी उत्पन्न होती है जहाँ ये चुम्बकीय बवंडर के हद तक बन जाती है। मेसेंज़र उपग्रह की गणनाओं के अनुसार बुध ग्रह पर चुम्बकीय पुनर्मिलन की प्रक्रिया की रफ्तार लगभग १० गुना ज्यादा है। बुध ग्रह की सूर्य से अधिक निकटता, मेसेंज़र द्वारा मापे गये उसके चुम्बकीय पुनर्मिलन की गति के सिर्फ तिहाई हिस्से का कारक थी।[29]

परिक्रमा, घूर्णन एवं देशांतर

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बुध की कक्षा (पीली), तारीखें 2006 की
सूर्य का चक्कर काटते बुध व पृथ्वी का एनिमेशन

बुध की कक्षा सभी ग्रहों में सर्वाधिक चपटी है। इसकी कक्षीय विकेंद्रता 0.21 है। सूर्य से इसकी दूरी 46,000,000 से लेकर 70,000,000 किमी (29,000,000 से 43,000,000 मील) तक विचरित है। एक पूर्ण परिक्रमा के लिए इसे 87.969 पृथ्वी दिवस लगते हैं। दायें बाजू का रेखाचित्र विकेंद्रता के असर को दिखाता है, जिसमें बुध की कक्षा एक वृत्ताकार कक्षा के ऊपर मढ़ी दिख रही है जबकि उनकी अर्द्ध प्रमुख धुरी बराबर है।

आधुनिक खगोल विज्ञान

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सूर्य के आगे से गुज़रता हुआ बुध ग्रह, १० मई २०१६

अभी तक दो अंतरिक्ष यान मैरीनर १० तथा मैसेन्जर बुध ग्रह जा चुके है। मैरीनर- १० सन १९७४ तथा १९७५ के मध्य तीन बार इस ग्रह की यात्रा कर चुका है। बुध ग्रह की सतह के ४५% हिस्से का नक्शा बनाया जा चुका है। (सूर्य के काफी समीप होने की वजह से होने वाले अत्यधिक प्रकाश व चकाचौंध के कारण हब्ब्ल दूरबीन उसके बाकी क्षेत्र का नक्शा नहीं बना पाती है।) मेसेन्जर यान २००४ में नासा द्वारा प्रक्षेपित किया गया था। इसने २०११ में बुध ग्रह की परिक्रमा की। इसके पहले जनवरी २००८ में इस यान ने मैरीनर १० द्वारा न देखे गये क्षेत्र की उच्च गुणवत्ता वाली तस्वीरे भेंजी थी।

बुध की कक्षा काफी ज्यादा विकेन्द्रीत (eccentric) है, इसकी सूर्य से दूरी ४६,०००,००० किमी (perihelion) से ७०,०००,००० किमी (aphelion) तक रहती है। जब बुध सूर्य के नजदिक होता है तब उसकी गति काफी धीमी होती है। १९ वी शताब्दि में खगोलशास्त्रीयों ने बुध की कक्षा का सावधानी से निरिक्षण किया था लेकिन न्युटन के नियमों के आधार पर वे बुध की कक्षा को समझ नहीं पा रहे थे। बुध की कक्षा न्युटन के नियमो का पालन नहीं करती है। निरिक्षित कक्षा और गणना की गयी कक्षा में अंतर छोटा था लेकिन दशको तक परेशान करनेवाला था। पहले यह सोचा गया कि बुध की कक्षा के अंदर एक और ग्रह (वल्कन) हो सकता है जो बुध की कक्षा को प्रभवित कर रहा है। काफी निरीक्षण के बाद भी ऐसा कोई ग्रह नहीं पाया गया। इस रहस्य का हल काफी समय बाद आइंस्टीन के साधारण सापेक्षतावाद के सिद्धांत (General Theory of Relativity) ने दिया। बुध की कक्षा की सही गणना इस सिद्धांत के स्वीकरण की ओर पहला कदम था।

 
बुध के उत्तरी ध्रुव की राडार छवि

१९६२ तक यही सोचा जाता था कि बुध का एक दिन और वर्ष एक बराबर होते है जिससे वह अपना एक ही पक्ष सूर्य की ओर रखता है। यह उसी तरह था जिस तरह चन्द्रमा का एक ही पक्ष पृथ्वी की ओर रहता है। लेकिन डाप्लर सिद्धान्त ने इसे गलत साबित कर दिया। अब यह माना जाता है कि बुध के दो वर्ष में तीन दिन होते है। अर्थात बुध सूर्य की दो परिक्रमाओं में अपने अक्ष पर तीन बार घूमता है। बुध सौर मंडल में अकेला पिंड है जिसका कक्षा/घुर्णन का अनुपात १:१ नहीं है। (वैसे बहुत सारे पिंडो में ऐसा कोई अनुपात ही नहीं है।)

बुध की कक्षा में सूर्य से दूरी में परिवर्तन के तथा उसके कक्षा/घुर्णन के अनुपात का बुध की सतह पर कोई निरिक्षक विचित्र प्रभाव देखेगा। कुछ अक्षांसो पर निरिक्षक सूर्य को उदित होते हुये देखेगा और जैसे जैसे सूर्य क्षितिज से ऊपर शीर्ष बिंदू तक आयेगा उसका आकार बढता जायेगा। इस शीर्ष बिंदु पर आकर सूर्य रूक जायेगा और कुछ देर विपरित दिशा में जायेगा और उसके बाद फिर रूकेगा और दिशा बदल कर आकार में घटते हुये क्षितिज में जाकर सूर्यास्त हो जायेगा। इस सारे समय में तारे आकाश में सूर्य से तिन गुना तेजी से जाते दिखायी देंगे। निरीक्षक बुध की सतह पर विभिन्न स्थानो पर अलग अलग लेकिन सूर्य की विचित्र गति को देखेगा।

बुध की सतह पर तापमान ९०° केल्विन से ७००° केल्विन तक जाता है। शुक्र पर तापमान इससे गर्म है लेकिन स्थायी है।

बुध पर एक हल्का वातावरण है जो मुख्यतः सौर वायु से आये परमाणुओं से बना है। बुध बहुत गर्म है जिससे ये परमाणु उड़कर अंतरिक्ष में चले जाते है। ये पृथ्वी और शुक्र के विपरीत है जिसका वातावरण स्थायी है, बुध का वातावरण नवीन होते रहता है।

बुध की सतह पर गढ्ढे काफी गहरे है, कुछ सैकड़ो किमी लम्बे और तीन किमी तक गहरे है। ऐसा प्रतीत होता है कि बुध की सतह लगभग ०.१ % संकुचित हुयी है। बुध की सतह पर कैलोरीस घाटी है जो लगभग १३०० किमी व्यास की है। यह चन्द्रमा के मारीया घाटी के जैसी है। शायद यह भी किसी धूमकेतु या क्षुद्रग्रह के टकराने से बनी है। इन गड्ढ़ों के अलावा बुध ग्रह में कुछ सपाट पठार भी है जो शायद भूतकाल के ज्वालामुखिय गतिविधियों से बने है।

जल की उपस्थिति

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मैरीनर से प्राप्त आंकड़े बताते है कि बुध पर कुछ ज्वालामुखी गतिविधियां है लेकिन इसे प्रमाणित करने के लिए कुछ और आंकड़े चाहिये। आश्चर्यजनक रूप से बुध के उत्तरी ध्रुवों के क्रेटरों में जलीय बर्फ के प्रमाण मिले है। इसके प्रमाण रडार से भी मिले थे

बुध का कोई उपग्रह नहीं है।

खगोलिय निरीक्षण

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बुध को सूर्यास्त के बाद या सूर्योदय से ठीक पहले नग्न आंखो से देखा जा सकता है। सूर्य के बेहद निकट होने के कारण इसे सीधे देखना मुश्किल होता है।

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