वैदिक देवता
वेदों में वर्णित देवताओं को वैदिक देवता कहते हैं - ये आधुनिक हिन्दू धर्म में प्रचलित देवताओं से थोड़े अलग हैं। वेदों के प्रत्येक मंत्र का एक देवता होता है। देवता का अर्थ - दाता, प्रेरक या ज्ञान-प्रदाता होता है [1]। जिन देवताओं का मुख्य रूप से वर्णन हुआ है वे हैं - अग्नि, इन्द्र, सोम, मित्र वरुण, सूर्य, अशिवनौ, ईश्वर, द्यावा पृथ्वी आदि।
ये वैदिक देवता आज भारतीय हिन्दू धर्म में व्यक्ति आधारित देवता जैसे - राम, कृष्ण, हनुमान, शिव, लक्ष्मी, गणेश, बालाजी, विष्णु, पेरुमल, शक्ति आदि से अलग हैं। वेदों में शाश्वत वस्तुओं और भावनाओं को देवता माना गया है, जबकि पुराणों में दिव्य व्यक्तियों और प्राणियों को - जिन्होने अनेक व्यक्तियों को सन्मार्ग दिखाया है। आधुनिक हिन्दू धर्म में पुराण और अन्य स्मृति ग्रंथों के देवताओं का अधिक प्रयोग है।
अन्य वैदिक देवताओं में रुद्र, आदित्य, दम्पत्ति, बृहस्पति आदि आते हैं। वेदों में विश्वेदेवा करके अखिल-देवताओं का भी उल्लेख है जो इन सबको एक साथ संबोधित करता है।
शाब्दिक और चारित्रिक विवेचन
संपादित करेंशाब्दिक अर्थ से इनको चारित्रिक रूप में दिखाने का भी प्रावधान है। जैसे, इन्द्र जिसका अर्थ बिजली होता है, को वृत्र का संहारकर्ता कहा गया है। वृत्र का अर्थ मेघ यानि बादल से है [2]। इस कारण से इन्द्र को वर्षा कराने और उर्वरता बढ़ाने वाले मानव-सदृश्य दिव्य व्यक्ति के रूप में निरुपित किया जाता है।
पश्चिमी विद्वानों ने इन देवताओं के नाम को ग्रीक और पारसी धर्म के मिथकों के देवताओं से भी जोड़ा है , जैसे -
- द्यौ-पित्र - Jupiter
- सोम - Haom
वैदिक देवताओं की तालिका
संपादित करेंक्रम संख्या | देव | देवी | उत्स | |
---|---|---|---|---|
१ | इन्द्र | ऋग्वेद के २५ मन्त्रों में, जिसमें १.३२.२, १.१६४.४६, ८.१२.२८, १.१०३.२ ओ १.३२.१ ऋक् की टीका | ||
२ | अग्नि | ऋग्वेद के २०० मन्त्रों में | ||
३ | सोम | ऋग्वेद के १२३ मन्त्रों में | ||
४ | अश्विनीकुमार (अश्विनौ) | ऋग्वेद के ५६ मन्त्रों में | ||
५ | वरुण | ऋग्वेद के ४६ मन्त्रों में | ||
६ | मरुत | ऋग्वेद के ३८ मन्त्रों में | ||
७ | मित्र | ऋग्वेद के २८ मन्त्रों में Noel Seth,"Man's Relation to God in the Varuna Hymns," in the St. Thomas Christian Encyclopaedia of India, Ed. George Menachery, Vol.III, 2010, pp.4 ff. | ||
८ | ऊषा (भार) | ऋग्वेद के २१ मन्त्रों में | ||
९ | वाय़ु | ऋग्वेद के १२ मन्त्रों में | ||
१० | सवितृ | ऋग्वेद के ११ मन्त्रों में | ||
११ | ऋभु | ऋग्वेद के ११ मन्त्रों में | ||
१२ | पूषा या पूशन | ऋग्वेद के १० मन्त्रों में | ||
१३ | अप्री | ऋग्वेद के ९ मन्त्रों में | ||
१४ | बृहस्पति | ऋग्वेद के ८ मन्त्रों में | ||
१५ | सूर्य | ऋग्वेद के ८ मन्त्रों में | ||
१६ | द्यौषपितृ (स्वर्ग) | ऋग्वेद के ६ मन्त्रों में | ||
१७ | पृथ्वी माता (पृथिवी) | ऋग्वेद के ६ मन्त्रों में | ||
१८ | अप (जल) | ऋग्वेद के ६ मन्त्रों में | ||
१९ | आदित्यगण | ऋग्वेद के ६ मन्त्रों में | ||
२० | विष्णु | ऋग्वेद के ४ मन्त्रों में | ||
२१ | बृहस्पति | ऋग्वेद के ६ मन्त्रों में | ||
२२ | रुद्र | ऋग्वेद के ४ मन्त्रों में | ||
२३ | दधिकर | ऋग्वेद के ४ मन्त्रों में | ||
२४ | यम (मृत्यु) | ऋग्वेद के ४ मन्त्रों में | ||
२५ | सरस्वती नदी/सरस्वती | ऋग्वेद के ३ मन्त्रों में | ||
२६ | पर्जन्य (वृष्टि) | ऋग्वेद ५.८३ तथा ७.१०१ एवं अथर्ववेद ४.१५ | ||
२७ | वाक् (वक्तृता) | ऋग्वेद के २ मंत्रों में, जिसमें १०.१२५ | ||
२८ | वास्तुस्पति | ऋग्वेद ७.५५ | ||
२९ | विश्वकर्मा | ऋग्वेद के २ मन्त्रों में | ||
३० | मन्यु | ऋग्वेद के २ मन्त्रों में | ||
३१ | कपिञ्जल (इन्द्र का रूप) | ऋग्वेद के २ मन्त्रों में | ||
३२ | रात्रि | |||
३३ | मन (चिन्ताधारा), विशिष्ट धारणा | ऋग्वेद के १०.५८ स्तोत्र | ||
३३ | पुरुष | पुरुष सूक्त महाजागतिक मनुष्य (ऋग्वेद १०.९०) | ||
३४ | अदिति | ऋग्वेद की १०.६३.३ | ||
३५ | इन्द्राणी (शची) | |||
३६ | भग | |||
३७ | वसुक्र | |||
३८ | अत्रि | |||
३९ | अपां नपात | |||
४० | क्षेत्रपति | |||
४१ | घ्रत | |||
४२ | निरीति | ऋग्वेद १०.५९ | ||
४३ | असंति | |||
४४ | ऊर्वशी | ऋग्वेद १०.९५.१८ | ||
४५ | पुरुर्बस | ऋग्वेद १०.९५.१८ | ||
४६ | वेन | ऋग्वेद १०.१२३ | ||
४७ | अरण्यनी | ऋग्वेद १०.१४६ | ||
४८ | मायाभेद (अविद्या लङ्घन) | ऋग्वेद १०.१७७ | ||
४९ | तर्कस्य | ऋग्वेद १.८९.६; १०.१७८.१; ५.५१ | ||
५० | त्वष्टा | |||
५१ | शरण्यु (सञ्जना) | |||
५२ | त्रिता | ऋग्वेद में ४१ बार | ||
५३ | विश्वदेव | ऋग्वेद ३.५४.१७ |
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ वेदों को समझने के लिए प्राचीन काल से चली आ रही पद्धति वेदांग में शब्द-मूल के ग्रंथ निरूक्त में लिखा गया है - देवता कस्मात्, दानात दीपनात्, द्योतनात। यानि देवता किस कारण से, दान से, प्रकाशित करने से या द्योतित करने से। शतपथ ब्राह्मण, जो यजुर्वेद का विवेचन ग्रंथ है, उसमें लिखा है - विद्वांसों हि देवा यानि विद्वान ही देवता होते हैं (क्योंकि वो ज्ञान का दान और प्रकाश करते हैं, बताते हैं)
- ↑ निरूक्त २.५.४