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-- नया सदस्य सन्देश (वार्ता) 08:09, 25 सितंबर 2024 (UTC)उत्तर दें

समाज हो या अथवा राष्ट्र प्रत्येक गौरवमय इतिहास का आधार उसकी शिक्षा पद्धति होती हैं। हमारे राष्ट्र भारत की शिक्षा पद्धति का मूल आधार वैदिक गुरुकुलीय शिक्षा पद्धति रही हैं। गुरुकुल अर्थात् गुरु का कुल जहाँ छात्र गुरु के सानिध्य में निवास करते हैं और पावन वेद शास्त्रों का अध्ययन तथा शस्त्रों का अध्ययन करता है। जहाँ समानता, बन्धुत्व, अहिंसा आध्यात्म, संस्कार, आत्मनिर्भरता, देशभक्ति *"वसुधैव कुटुम्बकम् सर्वे भवन्तु सुखिनः”* आदि की भावना से ब्रह्मचारियों को ओत-प्रोत किया जाता हैं। ये वो शिक्षास्थली हैं जहां भावी राष्ट्र नायक राजाओं महाराजाओं के पुत्र पुत्रियां शिक्षा ग्रहण करते थे। जिसके परिणाम स्वरूप भारत विश्व का गुरु तथा चक्रवर्ति राज्य था । सम्पूर्ण विश्व पर अपनी विजय पताकायें लहराती थी। ये हमारे इतिहास से ज्ञात होता हैं कि भारत के निर्माण में गुरुकुलों का योगदान महत्त्वपूर्ण हैं। अतः भारत को विश्व भर में मुकुट की तरह चमकाने में गुरुकुलों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। गुरुकुल शिक्ष प्रणाली में रेजिडेंशियल शिक्षा प्रणाली का रूप सामने आता है। जहाँ छात्र आचार्य के घर यानी गुरुकुल में रहते थे, जो शिक्षा केंद्र हुआ करता था । उस शिक्षा प्रणाली का आधार अनुशासन और मेहनत थे। छात्रों से अपेक्षा की जाती थी,कि वो अपने गुरु से सीखें और इस जानकारी को जीवन में प्रयोग भी करें। इसमें छात्र और शिक्षक का संबंध बहुत पवित्र होता था, और अक्सर इसमें किसी तरह का भुगतान नहीं किया जाता था। हालांकि छात्र शिक्षक को उनके सहयोग के लिए गुरु दक्षिणा जरूर दिया करते थे। गुरुकुल शिक्षा प्रणाली की शुरुआत वैदिक काल में हुई जब किसी भी तरह की शिक्षा प्रणाली नहीं हुआ करती की। लेकिन कलात्मक शिक्षा के साथ वेद पुराण आदि से सीखने का चलन जरूर था। ये अध्यात्मिक पुस्तकें छात्रों को उनके ज्ञान को बढ़ाने में मदद करती थीं। मानव निर्माण की प्रथम शिक्षा उस शिक्षा के रूप में सामने आती हैं, जो आध्यात्मिक तथा आधुनिक शस्त्र तथा शास्त्र उत्कृष्ट शिक्षा है। यदि वेद दर्शन के युद्ध ज्ञान को आत्मसात् करवाना हैं तो हमें गुरुकुल की ओर चलना होगा, इसके लिए राष्ट्र के अंदर गुरुकुल की शिक्षा प्रणाली को महत्त्व देना आवश्यक है। प्राचीन काल में नगर से दूर जंगल के अंदर पले तथा नदियों के समीप गुरुकुलों में तपस्वी, बुद्धिमान विप्रों का निर्माण होता था। राजा महराजाओं के पुत्रों के जीवन का निर्माण राजमहल के भोग-विलास व्यसन में नहीं, अपितु जगंल में आचार्यों के गुरु‌कुलों में गुरु के चरणों में विकसित होता था। अतः यह स्पष्ट होता है कि किसी भी राष्ट्र की सांस्कृतिक आर्थिक राजनीतिक व आत्मिक उन्नति के लिए उस देश की शिक्षा व्यवस्था का सुहद होना अत्यावश्यक हैं। देश की शिक्षा व्यवस्था इस प्रकार की होनी चाहिए कि वहाँ का प्रत्येक नागरिक देश के सांस्कृतिक,आर्थिक,राजनीतिक महत्त्व को समझे तथा अपने देश की उन्नति में यथा सम्भव योगदान दें और भारत की वर्तमान शिक्षा पद्धति में इन सब गुणों का समावेश पूर्णतः सम्भव नहीं हैं। क्योंकि गुरुकुल ही एकमात्र ऐसा कार्यस्थल हैं, जहाँ शास्त्र के साथ-साथ शस्त्र विद्या भी सिखाई जाती है। प्राचीन काल में भारत का विश्वगुरु पद पर आसीन होने का सम्पूर्ण श्रेय गुरुकुल शिक्षा पद्धति को ही जाता हैं। अतः यदि हम भारत की उन्नति चाहते हैं तो हमें गुरुकुलों को सुदृढ़ करना होगा । जिससे भारत फिर से विश्वगुरु के पद पर प्रतिष्ठित हो सके।

 

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☆★संजीव कुमार (✉✉) 06:22, 28 नवम्बर 2024 (UTC)उत्तर दें