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चयनित लेख
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न्यायशास्त्र के दार्शनिक स्वयं से ही प्रश्न करते रहते हैं - "नियम क्या है?" ; "क्या नियम होना चाहिये?"
विधिशास्त्र या न्यायशास्त्र, विधि का सिद्धान्त, अध्ययन व दर्शन हैं। इसमें समस्त विधिक सिद्धान्त सम्मिलित हैं, जो कानून बनाते हैं। विधिशास्त्र के विद्वान, जिन्हें जूरिस्ट या विधिक सिद्धान्तवादी (विधिक दार्शनिक और विधि के सामाजिक सिद्धान्तवादी, समेत) भी कहा जाता हैं, विधि, विधिक कारणन, विधिक प्रणाली और विधिक संस्थाओं के प्रकृति की गहरी समझ प्राप्त कर पाने की आशा रखते हैं।
विधि के विज्ञान के रूप में विधिशास्त्र, विधि के बारे में एक विशेष तरह की खोजबीन है। साधारण अर्थ में समस्त वैधानिक सिद्धांत विधिशास्त्र में अंतर्निहित हैं। विधिशास्त्र "जूरिसप्रूडेंस" अर्थात् Juris=विधान, Prudence=ज्ञान। इस अर्थ में कानून की सारी पुस्तकें विधिशास्त्र की पुस्तकें हैं। इस प्रसंग में कानून का एकमात्र अर्थ होता है देश का साधारण विधि, जो उन नियमों से सर्वथा पृथक् है, जिन्हें कानून से सादृश्य रहने के कारण कानून का नाम दिया जाता है। यदि हम विज्ञान शब्द का प्रयोग इसके अधिक से अधिक व्यापक रूप में करे जिसमें बौद्धिक अनुसंधान के किसी भी विषय का ज्ञान हो जाए तो हम कह सकते हैं कि विधिशास्त्र देश के साधारण कानून का विज्ञान है। अधिक पढ़ें…
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चयनित जीवनी
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मोहनदास करमचन्द गांधी (जन्म:2 अक्टूबर १८६९; निधन:३० जनवरी १९४८) जिन्हें महात्मा गांधी के नाम से भी जाना जाता है, भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। वे सत्याग्रह (व्यापक सविनय अवज्ञा) के माध्यम से अत्याचार के प्रतिकार के अग्रणी नेता थे, उनकी इस अवधारणा की नींव सम्पूर्ण अहिंसा के सिद्धान्त पर रखी गयी थी जिसने भारत को आजादी दिलाकर पूरी दुनिया में जनता के नागरिक अधिकारों एवं स्वतन्त्रता के प्रति आन्दोलन के लिये प्रेरित किया। उन्हें दुनिया में आम जनता महात्मा गांधी के नाम से जानती है। संस्कृत भाषा में महात्मा अथवा महान आत्मा एक सम्मान सूचक शब्द है। गांधी को महात्मा के नाम से सबसे पहले १९१५ में राजवैद्य जीवराम कालिदास ने संबोधित किया था। एक अन्य मत के अनुसार स्वामी श्रद्धानन्द ने 1915 मे महात्मा की उपाधि दी थी, तीसरा मत ये है कि गुरु रविंद्रनाथ टैगोर ने महात्मा की उपाधि प्रदान की थी 12अप्रैल 1919 को अपने एक लेख मे। उन्हें बापू (गुजराती भाषा में બાપુ बापू यानी पिता) के नाम से भी याद किया जाता है। एक मत के अनुसार गांधीजी को बापू सम्बोधित करने वाले प्रथम व्यक्ति उनके साबरमती आश्रम के शिष्य थे सुभाष चन्द्र बोस ने ६ जुलाई १९४४ को रंगून रेडियो से गांधी जी के नाम जारी प्रसारण में उन्हें राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित करते हुए आज़ाद हिन्द फौज़ के सैनिकों के लिये उनका आशीर्वाद और शुभकामनाएँ माँगीं थीं। प्रति वर्ष २ अक्टूबर को उनका जन्म दिन भारत में गांधी जयंती के रूप में और पूरे विश्व में अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के नाम से मनाया जाता है। अधिक पढ़ें…
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चयनित साहित्य
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राष्ट्रों का धन, जिसका अंग्रेज़ी शीर्षक द वेल्थ ऑफ नेशन्स (The Wealth of Nations) और पूर्ण शीर्षक राष्ट्रों का धन की प्रकृति और कारणों की जाँच है, सन् 1776 में प्रकाशित एक पुस्तक है जो इस बात का गहराई से अध्ययन करती है कि किसी राष्ट्र में सम्पन्नता और समृद्धि किस तरह से आती है। यह विश्वभर में इस प्रकार की पहली पुस्तकों में से एक थी और इसे अर्थशास्त्र की एक बुनियादी कृति माना जाता है। यह औद्योगिक क्रांति की शुरुआत की अर्थव्यवस्था से आरम्भ होती है और श्रम के विभाजन, उत्पादकता और मुक्त बाज़ारों जैसे विस्तृत विषयों को छूती है।
लेखक: एडम स्मिथ, अर्थशास्त्री और आर्थ दार्शनिक
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क्या आप जानते हैं?
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- ... कि सत्य के मानदंड मानक और नियम हैं जिनका उपयोग बयानों और दावों की सटीकता का न्याय करने के लिए किया जाता है?
- ... कि एक समर्पण पतन एक ऐसा तर्क है जिसमें सच्चा परिसर है, लेकिन फिर भी एक गलत निष्कर्ष हो सकता है?
- ... की प्राचीन चीनी दार्शनिक और रणनीतिज्ञ आचार्य सून त्ज़ू ने सून त्ज़ू बींग्फ़ा (आचार्य सून की युद्ध नीति) लिखी थी, जो युद्धशास्त्र, युद्धनीति, युद्ध दर्शन और रणनीति की प्राचीनतम ग्रंथों में से है?
- ... कि "दीक्षा और दर्शनशास्त्र की बातें" (डक्ट्स एंड सेइंग्स ऑफ़ फ़ॉलोज़ोफेर्स) इंग्लैंड में पहली बार छपी पुस्तक है?
- ... कि एक सफल प्रायोगिक प्रणाली को स्थिर होना चाहिए और वैज्ञानिकों को सिस्टम के व्यवहार की समझ बनाने के लिए पर्याप्त रूप से प्रतिलिपि प्रस्तुत करने योग्य होना चाहिए, लेकिन यह अप्रत्याशित है कि यह उपयोगी परिणाम पैदा कर सकता है?
- ... कि प्राचीन चीनी पाठ हुआंगडी यिनफुजिंग, जिसे तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में पौराणिक सम्राट हुआंगड़ी के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था, वह तांग राजवंश (618-907 सीई) से एक जालसाजी हो सकता है?
- ... की जैन दर्शन में अनेकान्तवाद के अनुसार कोई भी व्यक्ति किसी चीज़ को केवल अपने नज़रिये से पूर्णतः नहीं समझ सकता?
चयनित सूक्ति
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मेरे पिता सहज-चेतना ज्ञान हैं। मेरी माता सदाउत्तम जननी पूरी वसुधा है। मैं द्वैत की अवधारणाओं का उपभोग करके जीवित हूं। मेरा उद्देश्य व्याकुल भावनाओं का पतन है।
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चयनित चित्र
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बीजिंग का विख्यात गुओज़जिआन (महाविहार) जो प्राचीन चीनी विद्वानों, दार्शनिकों, तर्कशास्त्रियों तथा अन्य विषयों के अध्येताओं का केंद्र था। इस भवन ने युआन, मिंग तथा छिंग काल तक कंफ़ूशिवादी दर्शन को विकसित करने में अहम् भूमिका निभाई थी।
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