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लोधा गढ़ भवनपुरा

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लोधा गढ़ भवनपुरा मुक्त ज्ञान कोश विकिपीडिया लोधा गढ़ भवनपुरा तहसील रूपवास जिला भरतपुर राजस्थान का एक प्रमुख आदर्श ग्राम पंचायत मुख्यालय है पूर्व में भवनपुरा एक छोटी रियासत थी जिसे भौनपुरा के नाम से भी जाना जाता था । इसकी स्थापना सन 1624 में ठाकुर खजान सिंह लोधा ने की थी और यह अपने समय में लोधा राजपूतों का गढ़ हुआ करता था। यहाँ के मंदिर , हवेलियाँ , किले का खंडर व् राज दरबार (चौपाल ) लोधा राजपुतों के कौशल की गवाही देते हैं । इसके पूर्व यह जगह बयाना के सम्राट महिपाल के अधिकार में थी । बयाना को बाणासुर की नगरी के नाम से भी जाना जाता है । बयाना के पूर्व दिशा में 12 किलो मीटर की दुरी पर यहाँ सम्राट महिपाल ने सन 1040 में ' भौना बाबा ' देव स्थान की प्राण प्रतिस्ठा की थी , जब भी वे पहाड़ी जंगलो में शिकार खेलने के लिए निकलते थे तो सबसे पहले यहीं पर पूजा अर्चना करते थे । इस देव स्थान की देख रेख का काम एक गुर्जर जाती का सरदार करता था ।

ठाकुर खजान सिंह ने जब इस देव स्थान पर अपनी छड़ी रोपी तो उस गुर्जर सरदार को युद्ध में पराजित कर यहाँ से भगा दिया और अपना अधिकार जमा लिया । भौंना बाबा देव स्थान होने के कारण इस जगह का नाम भौन पुरा पड़ गया जो बाद में परवर्तित होकर भवन पुरा हो गया । बयाना के सम्राट ने ठाकुर खजान सिंह के सौर्य व् वीरता से प्रभावित होकर उनको यहाँ का जागीरदार बना दिया । सन 1740 में भवनपुरा जागीर को भरतपुर राज्य में मिला लिया गया । भरतपुर महाराज श्री जसवंत सिंह ने भवनपुरा को भरतपुर का कश्मीर कहकर पुकारा था । इससे पूर्व राजस्थान के 36 राजवंशों में परमार वंश की प्रसिद्द शाखा लोद्र राजपूतों का वैभवसाली राज्य लोद्रवा था , इनके राजा नृपभानु की जेसलमेर के राजा देवराज ने धोखे से हत्या कर दी और लोद्वा राज्य पर अधिकार कर लिया तथा उनकी पुत्री से विवाह किया । यहाँ के लोद्र राजपूत सम्मान का जीवन यापन करने के लिए यहाँ से पलायन कर दूर-दराज के क्षेत्रो में चले गये । इसी पलायन में ठाकुर खाजन सिंह के पूर्वज व्=ब्रजक्षेत्र में आकर बस गये और मथुरिया कहलाये । 20 जनवरी 1805 को अंग्रेजी सेना का कमान्डर लार्ड लेक भरी सेना के साथ भरतपुर पर आक्रमण करने के लिए धोल पुर होते हुए बाड़ी बसेडी व बांध बरेठा के पहाड़ी जंगलो को पार करते हुए जा रहा था , उसे रोकने के लिए ठाकुर कान्हा सिंह लोधा अपनी सेना के साथ खेरे वाली चामड माता मंदिर के पास पहुच गया और दोनों सेनाओं में घमासान युद्ध हुआ , सेकड़ो योद्धा वीरगति को प्राप्त हो गये और इसकी कीमत ठाकुर कान्हा सिंह लोधा के बलिदान से चुकानी पड़ी , लेकिन इससे पहले इस वीर योद्धा ने अपने दूत भेजकर भरत पुर महाराज श्री रणजीत सिंह को इसकी सुचना दे दी और महाराज रणजीत सिंह ने अंग्रेजो की यौजना को बिफल कर दिया । अनुक्रम १. भवनपुरा के जागीरदारों की सूचि २. लोधा गढ़ किला ३. मुख्या आकर्षण

   ३.१  श्री लोधेश्वर महादेव मंदिर 
   ३.२  श्री हनुमान मंदिर 
   ३. ३ श्री शिव मंदिर 
   ३. ४  श्री खेरे वाली चामड़ माता मंदिर 
   ३. ५  राज दरबार (चौपाल) रानी अवन्ति बाई भवन 
   ३. ६ लोधा समाज वृद्धा आश्रम 
   ३. ७  तालावें 
   ३. ८  नहरे 

4 आस पास के दर्शनीय स्थल

   ४. १  लोहा गढ़ किला भरत पुर 
   ४. २ घना पच्छी बिहार भरत पुर 
   ४. ३   बयाना किला 
   ४. ४   बाँध बरेठा राजा की कोठी 
  भवन पुरा के जागीरदारो की सूची 

. ठा खजान सिंह लोधा 1624-1656 . ठा रूप राम लोधा 1656-1687 . ठा शिम्भो सिंह लोधा 1687-1715 . ठा बाल मुकुंद लोधा 1715-1740 . ठा नरसी सिंह लोधा 1757-1776 (नंबरदारो की नियुक्ति ) . ठा कान्हा सिंह लोधा 1776-1805 . ठा अमान सिंह लोधा 1805-1837 . ठा मोती सिंह लोधा 1837-1867 . ठा मोहन सिंह लोधा 1867-1901 . ठा बोला सिंह लोधा 1901-1937 . ठा राजा मुरारी लाल लोधा 1937-1947

लोधा गढ़ किला लोधा गढ़ किला की नीव सन 1656 में ठाकुर रूप राम लोधा ने रखी थी, जिसका निर्माण कार्य सन 1661 में पूर्ण हुआ । किले के पूर्व दिशा में सिंह द्वार बना हुआ है , जिसके सामने एक कुआ बना हुआ है जो पानी पीने के काम में लिया जाता है व् राज परिवार की हवेलियाँ मोजूद हैं । पश्चिम दिशा में बयाना द्वार था , उतर दिशा में रूपवास द्वार था जिसके सामने राजदरबार(चौपाल) बनी हुई हैं तथा दक्षिण दिशा में बारेठा द्वार था , जिसके सामने शिव मंदिर व् मंदिर वाला कुआ बना हुआ हैं तथा मीणा जाती की बस्ती बसी हुई हैं । सन 1740 में भवन पुरा के खेरे पर बसने वाले जाट जाती के लोगों ने (कर) देने से मन कर दिया और जागीर दार ठाकुर बाल मुकुंद ने उनपर आक्रमण कर वंहा से भगा दिया और उनकी 500 बीघा जमीन पर कब्ज़ा कर लिया था । जाट जाती के लोग वहां से भाग कर महाराजा बदन सिंह की सरण में चले गये जिसके प्रतिशोध में महाराज बदन सिंह ने लोधा गढ़ किले पर आक्रमण कर उसे धवस्त कर दिया था और गधो से हल खिचवा कर उसे सपाट कर दिया और किले पर तेनात ४ तोपे व् गेटो के किबाड़ तथा इमारती पत्थर के खंभ इत्यादि लूटकर ले गये , उसी समय से श्राप लगा हुआ हैं की इस जगह पर कभी कोई किला आवाद नही हो सकेगा । लोगों ने यहाँ पर बाद मे मकान बना कर रहने का प्रयास भी किया लेकिन जादातर परिवारों को बर्वाद होकर वहां से बहार निकलना पड़ा है उनके मकान आज भी खंडर के रूप में देखे जा सकते हैं तथा यहाँ के जागीरदार ठाकुर बाल मुकुंद को गिरफ्तार कर लिया और डीग ले जाकर जेल में डाल दिया था । मुख्या आकर्षण श्री लोधेश्वर महादेव मंदिर :- यह मंदिर भवनपुरा का सबसे भब्य व सुंदर मंदिर है । वास्तुकला की राजपूत शैली में बना हुआ है मंदिर की दीवारें पत्थरों से चिनी हुई हैं और मंदिर के खम्भे बंशी पहाड़पुर के इमारती सफेद पत्थर के लगे हैं जिन पर सुंदर नकाशी दर्शनीय है । मंदिर निर्माण में कहीं भी लोहे का इस्तेमाल नहीं किया गया है । यहाँ पर हजारों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं । केवल श्रधा की द्रष्टि से ही नहीं , बल्कि अपने अद्धुत वाश्तुशिल्प के कारण भी यह मंदिर लोगों को आकर्षित करता है । हर साल शिव भक्त सौरों से गंगाजल लाकर मंदिर पर चढाते हैं । मंदिर के गर्भगृह में शिवालय बना हुआ है , इसके आलावा श्री राम दरबार , श्री राधा कृष्ण दरबार , श्री दुर्गा माता दरबार व श्री हनुमान जी की विशाल मूर्ति भी यहाँ देख सकते हैं । श्री हनुमान मंदिर  :- यह मंदिर भवनपुरा के पश्चिम दिशा में बना हुआ है यहाँ पर शनिवार व मंगलवार को भक्तों की भारी भीड़ होती है ।

श्री शिव मंदिर :- यह मंदिर भवनपुरा के पचिश्म दिशा में बस्ती के बीच में बना हुआ है । जिसके सामने मंदिर वाला कुआ बना हुआ है यह मंदिर यहाँ के प्राचीन मंदिरों में से एक है ।

खेरेवाली चामड माता मंदिर  :- भवनपुरा के दक्षिण पश्चिम दिशा में करीब २ किलो मीटर की दुरी पर प्रसिद्ध खेरेवाली चामड माता का मंदिर बना हुआ है जो ककुंड नदी के तट पर स्थित है इस मंदिर की आस पास के क्षेत्रो में काफी मन्यता है व प्रतिवर्ष यहाँ पर भादों की अष्ठमी को एक विशाल मेला लगता है इसके साथ साथ खेल कूद प्रतियोगताओ का भी आयोजन किया जाता है । राजदरबार (चौपाल ) रानी अवन्ती बाई भवन :- इस राजदरबार का निर्माण सन १६५६ में ठाकुर रूपराम लोधा ने किया था । यह आज भी अपनी भब्यता लिए हुए खड़ा है । सन १९९५ में तत्कालीन सरपंच ठाकुर गुल्ला राम लोधी ने इसकी मरम्मत करा कर इसका नाम रानी अवन्ती बाई भवन रखा था ।

लोधा समाज वृधाश्रम :- लोधा समाज वृधाश्रम की नीव सन १९९९ में ठाकुर गुल्ला राम लोधी सरपंच के कार्यकाल में जन सहयोग से रखी गई थी । इसके लिए करीब एक हजार वर्ग गज जमीन सरपंच साहब ने ग्राम पंचायत को दान की थी व तत्कालीन संसद श्री बहादुर सिंह कोली ने वृधाश्रम के लिए अपने संसदीय कोष से एक लाख पचास हजार रुपये स्वीक्रत किये थे और श्रीमति जविता देई लोधी सरपंच के कार्यकाल में निर्माण कार्य पूरा हुआ । यहाँ पर पब्लिक लाइब्रेरी की सुविधा उपलब्ध है ।

तालाब :- भवन पुरा के दक्षिण दिशा में एक विशाल तालाब बना हुआ है जिसका क्षेत्रफल लगभग ४ बीघा है व एक तालाब ग्राम के उत्तर दिशा में बना हुआ है जिसके घाट पर आलिशान शमसान घाट व कुआ बना हुआ है ।

नहरे :- ग्राम भवनपुरा के पूर्व दिशा में व पश्चिम दिशा में से होकर दो नहरें निकलती है , जो कृषि के सिचाई का काम करती हैं । इनका उद्गम स्थल बंध बरेठा है । एक बार भरतपुर महाराज श्री जसवंत सिंह भवनपुरा आये तो यहाँ का वैभव एवम सोंदर्ये देख कर उनके मुंह से अचानक निकल पड़ा की अरे यह तो भरतपुर का कश्मीर है । महाराजा ने भवनपुरा को कश्मीर यूही नहीं कह दिया था । ग्राम के चारों ओर आम – नीबू – कटहल के बगीचे और पक्षियों के कलरब से अच्छादित , एक दुसरे से आन्तरिक रूप से जुड़े ककुंड नदी की अविरल धारा , ग्राम के दोनों और निकलती नेहरों से सिन्चिन यहाँ की सोना उगलती धरती , गन्ने के लहलाते खेत , भवनपुरा को अपने आशीर्वाद के चक्रव्युह में लपेटे यहाँ के मंदिर और समीप ही लोधा राजाओं का आखेट स्थल विशाल तालाब – ये सब मिल कर वाकई भवनपुरा में पृथ्वी के स्वर्ग कश्मीर का आभास देते हैं ।

आसपास के दर्शनीय स्थल

लोहागढ़ किला :- लोहागढ़ का किला भवनपुरा से ३६ किलो मीटर की दूरी पर उत्तर दिशा में भरतपुर में बना हुआ है लोहागढ़ किले का निर्माण 18वी शताब्दी के आरम्भ में जाट शासक महाराजा सूरजमल ने करवाया था । यह किला भरतपुर के जाट शासको की हिम्मत और शोर्ये का प्रतीक है । अपनी सुरक्षा प्रणाली के कारण यह किला लोहागढ़ के नाम से जाना गया । किले में दिल्ली के लालकिला को तोड़ कर लाया गया एक किवाड़ (फाटक ) आज भी मौजूद है। किले के अन्दर महत्पूर्ण स्थान है – किशोरी, महल खास , मोती महल और कोठी ख़ास ।

घना पक्षी विहार भरतपुर  :- एक समय में भरतपुर के राजकुमारों के शाही शिकरगाह रहा यह केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान विश्व के उत्तम पक्षी विहारों में से एक है जिसमें पानी वाले पक्षियों की 400 से अधिक प्रजातियों की भरमार है । गर्म तापमान में सर्दीया बिताने अफगा –निस्थान , मध्या एशिया , तिब्बत से प्रवाशी चिडियों की मोहक किस्मे तथा आर्कटिक से साइबेरियन से भूरे पैरे वाले हंश और चीन से धारीदार सिर वाले हंश जुलाई व् अगस्त में आते है । यहाँ देश विदेश से पर्यटक आते हैं ।

बयाना का किला :- यह भवनपुरा से पश्चिम दिश में 12 किलो मीटर की दुरी पर स्थित है । इसे बाणासुर की नगरी के नाम से भी जाना जाता है यह किला पहाड़ी के उपर बना हुआ है काफी संख्या में पर्यटक आते हैं ।

बांध बारेठा  :- बांध बारेठा भवनपुरा से दक्षिण दिशा में 10 किलो मीटर की दुरी पर स्थित है । इस बांध का निर्माण महाराज भरतपुर ने ककुंड नदी जो बारेठा पर दो पहाडियों के बिच से बहती थी , की धारा को रोक कर करवाया था । बांध के पूर्वी तट पर एक सुंदर राजा की कोठी बनी हुई है , जहा राजा रानी नौकाविहार करने जाया करते थे । इस बांध से तीन नेहरे निकती है जिनसे कृषि की सिचाई होती है व् पाइप लाइन द्वारा भरतपुर शहर को पीने के पानी की सप्लाई होती है । यहा प्रतिदिन हजारों पर्यटक आते हैं ।

संदर्भ सूत्र 1. “संघर्ष के प्रतिक” ठाकुर गुल्ला राम सरपंच लेखक डॉक्टर रमा कान्त लवानिया 2004 2. “कर्नल टाड कृत” राजस्थान का इतिहास – पंडित ज्वाला प्रसाद श्री कृष्ण दास श्री बैंकटेश्वर प्रेस बोम्बे भाग 2 पृष्ट 487-493 प्रकाशन 1907 3. कर्नल टाड कृत” राजस्थान का इतिहास – अनुवादक श्री केशव ठाकुर प्रकाशक – साहित्यागार चौड़ा रास्ता जयपुर राजस्थान भाग 1 व 2 प्रकाशन 2003 4. राज परिवार के सदस्यों व अन्य लोगो के साक्षात्कार एवं बर्तमान में मोजूद प्रमाणों के आधार पर

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--माला चौबेवार्ता 11:21, 27 दिसम्बर 2018 (UTC)उत्तर दें

2021 Wikimedia Foundation Board elections: Eligibility requirements for voters

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Greetings,

The eligibility requirements for voters to participate in the 2021 Board of Trustees elections have been published. You can check the requirements on this page.

You can also verify your eligibility using the AccountEligiblity tool.

MediaWiki message delivery (वार्ता) 16:30, 30 जून 2021 (UTC)उत्तर दें

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