सेन राजवंश

मध्यकालिन बंगाल का हिंदू राजवंश (१०वीं से १२वीं शताब्दी)

सेन राजवंश भारतीय उपमहाद्वीप में एक प्रारंभिक मध्ययुगीन हिंदू राजवंश था, जिसने  ११वीं और १२वीं शताब्दी से बंगाल पर १६० वर्ष तक राज किया। अपने चरमोत्कर्ष के समय भारतीय महाद्वीप का पूर्वोत्तर क्षेत्र इस साम्राज्य के अन्तर्गत आता था। इस वंश का मूलस्थान कर्णाटक था।[3] इस काल में कई मन्दिर बने। धारणा है कि बल्लाल सेन ने ढाकेश्वरी मन्दिर बनवाया। कवि जयदेव (गीतगोविन्द का रचयिता) लक्ष्मण सेन के पञ्चरत्नों में से एक थे।

सेन साम्राज्य
[[पाल साम्राज्य|]]
1070 ई.–1230 ई.

ध्वज

सेन वंश का मानचित्र में स्थान
सेन राजवंश द्वारा शासित क्षेत्र
राजधानी गौड़, विक्रमपुर, नवद्वीप
भाषाएँ संस्कृत
धार्मिक समूह हिन्दू धर्म (वैदिक धर्म, शैव, तंत्र, और वैष्णव धर्म)
शासन राजतंत्र
राजा
 -  1070–1095 ई. सामन्त सेन
 -  1095–1096 ई. हेमन्त सेन
 -  1096–1159 ई. विजय सेन
 -  1159-1179 ई. बल्लाल सेन
 -  1179-1204 ई. लक्ष्मण सेन
 -  1204-1225 ई. केशव सेन
 -  1225–1230 ई. विश्वरूप सेन
सूर्य सेन[1]
नारायण सेन[2]
ऐतिहासिक युग मध्यकाल
 -  स्थापित 1070 ई.
 -  अंत 1230 ई.
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बल्लाल सेन द्वारा लिखित पुस्तक के अनुसार, सेन वंश का पतन ९वीं शताब्दी से पहले का है। बंगाल के पाल राजाओं के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए, उन्होंने एक बार पाल राजाओं को हराकर पाल साम्राज्य की स्थापना की थी। सेन राजाओं का एक महत्वपूर्ण पहलू यह था कि वे राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक शासन स्थापित करने में सक्षम थे।

सेन साम्राज्य का ध्वज

इस वंश के राजा, जो अपने को कर्णाट क्षत्रिय, ब्रह्म क्षत्रिय और क्षत्रिय मानते हैं, अपनी उत्पत्ति पौराणिक चक्रवर्ती सम्राट महापद्मनंद नंद वंश से मानते हैं, जो दक्षिणापथ या दक्षिण के शासक माने जाते हैं। ९वीं, १०वीं और ११वीं शताब्दी में मैसूर राज्य के धारवाड़ जिले में कुछ जैन उपदेशक रहते थे, जो सेन वंश से संबंधित थे। यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि बंगाल के सेन का इन जैन उपदेशकों के परिवार से कई संबंध था। फिर भी इस बात पर विश्वास करने के लिए समुचित प्रमाण है कि बंगाल के सेन का मूल वासस्थान दक्षिण था।[उद्धरण चाहिए] देवपाल के समय से पाल सम्राटों ने विदेशी साहसी वीरों को अधिकारी पदों पर नियुक्त किया। उनमें से कुछ कर्णाटक देश से संबंध रखते थे। कालांतर में ये अधिकारी, जो दक्षिण से आए थे, शासक बन गए और स्वयं को राजपुत्र कहने लगे।

राजपुत्रों के इस परिवार में बंगाल के सेन राजवंश का प्रथम शासक सामन्त सेन उत्पन्न हुआ था। सामन्तसेन ने दक्षिण के एक शासक, संभवतः द्रविड़ देश के राजेन्द्र चोल, को परास्त कर अपनी प्रतिष्ठा में वृद्धि की। सामन्तसेन का पौत्र विजयसेन ही अपने परिवार की प्रतिष्ठा को स्थापित करने वाला था। उसने वंग के वर्मन शासन का अन्त किया, विक्रमपुर में अपनी राजधानी स्थापित की, पालवंश के मदनपाल को अपदस्थ किया और गौड़ पर अधिकार कर लिया, नान्यदेव को हराकर मिथिला पर अधिकार किया, गहड़वालों के विरुद्ध गंगा के मार्ग से जलसेना द्वारा आक्रमण किया, आसाम पर आक्रमण किया, उड़ीसा पर धावा बोला और कलिंग के शासक अनंत वर्मन चोड़गंग के पुत्र राघव को परास्त किया। उसने वारेंद्री में एक प्रद्युम्नेश्वर शिव का मंदिर बनवाया। विजयसेन का पुत्र एवं उत्तराधिकारी वल्लाल सेन विद्वान तथा समाज सुधारक था। बल्लालसेन के बेटे और उत्तराधिकारी लक्ष्मण सेन ने काशी के गहड़वाल और आसाम पर सफल आक्रमण किए, किंतु सन् १२०२ के लगभग इसे पश्चिम और उत्तर बंगाल मुहम्मद खलजी को समर्पित करने पड़े। कुछ वर्ष तक यह वंग में राज्य करता रहा। इसके उत्तराधिकारियों ने वहाँ १३वीं शताब्दी के मध्य तक राज्य किया, तत्पश्चात् देववंश ने देश पर सार्वभौम अधिकार कर लिया। सेन सम्राट विद्या के प्रतिपोषक थे।

 
सेन राजवंश के शासनकाल की विष्णु की एक मूर्ति
  1. Raj Kumar. Essays on Medieval India. p. 340. 25 फ़रवरी 2020 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 26 एप्रिल 2020.
  2. Raj Kumar. Essays on Medieval India. p. 340. 25 फ़रवरी 2020 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 26 एप्रिल 2020.
  3. The History of the Bengali Language by Bijay Chandra Mazumdar p.50