क़ुरआन

इस्लाम पन्थ का पवित्र ग्रन्थ
(Qur'an से अनुप्रेषित)

क़ुरआन (अरबी: [القرآن] Error: {{Lang}}: text has italic markup (help)‎, अल-क़ुर्'आन) इस्लाम की पाक किताब है मुसलमान मानते हैं कि इसे अल्लाह ने फ़रिश्ते जिब्रईल अलैहिस्सलाम द्वारा पैगम्बर मुहम्मद साहब को सुनाया था।[1] मुसलमान मानते हैं कि क़ुरआन ही अल्लाह की भेजी अन्तिम और सर्वोच्च और आखरी आसमानी किताब है।[2][3] हालाँकि आरम्भ में इसका प्रसार मौखिक रूप से हुआ पर पैगम्बर मुहम्मद साहब के विसाल (स्वर्गवास) के बाद सन् 633 में इसे पहली बार लिखा गया था और सन् 653 में इसे मानकीकृत कर इसकी प्रतियाँ इस्लामी साम्राज्य में वितरित की गईं थी। मुसलमानों का मानना है कि अल्लाह द्वारा भेजे गए पाक संदेशों के सबसे अन्तिम संदेश कुरआन में लिखे गए हैं। इन संदेशों की शुरुआत आदम से हुई थी। हज़रत आदम इस्लामी (और यहूदी तथा ईसाई) मान्यताओं में सबसे पहले नबी (पैगम्बर या पयम्बर) थे।

क़ुरआन
क़ुरआन का आवरण पृष्ठ
क़ुरआन का आवरण पृष्ठ
जानकारी
धर्मइस्लाम
भाषाअरबी
अवधि609–632
अध्याय114
श्लोक/आयत6,236

क़ुरआन अल्लाह/ईश्वर का कलाम (सन्देश) है, जो आखिरी सन्देष्टा पैगंबर मोहम्मद पर अवतरित हुआ। सम्पूर्ण क़ुरआन वही के माध्यम से पूरे 23 साल में नाज़िल (अवतरित) हुआ। क़ुरआन सूरह अल-फातिहा से शुरू हो कर सूरह अन-निसा पर समाप्त होता है। सम्पूर्ण कुरान 30 पारो (खंडों) में विभाजित किया गया है तथा इसमें 114 सूरतें (अध्याय) हैं। क़ुरआन की कुल 114 सूरतो में 558 रुकू है तथा सम्पूर्ण क़ुरआन में 6236 आयत (छंद या Verses) है तथा क़ुरआन में कलिमात यानी (वाक्यों) की संख्या 77439 है (शेख़ मुज़मद रज्जब की किताब "हक़ायक़ हौल-अल-क़ुरआन) तथा क़ुरआन में हुरूफ़ यानी शब्दों की संख्या 340740 है(स्पष्ट नहीं है)। सम्पूर्ण कुरान में कुल 14 सजदे है।

इस्राएलियों के पलायन की कहानियों का "स्वैम्पलैंड" (यम सुफ)[4] (हिब्रू टोरा में एक अस्थायी पड़ाव के रूप में दर्ज) पौराणिक लाल सागर क्रॉसिंग बन जाता है[5](क़ुरआन 26:52-68) (Aivazovsky)

व्युत्पत्ति और अर्थ

"क़ुरआन" शब्द का पहला ज़िक्र ख़ुद क़ुरआन में ही मिलता है जहाँ इसका अर्थ है - उसने पढ़ा, या उसने उचारा। यह शब्द इसके सिरियाई समानांतर कुरियना का अर्थ लेता है जिसका अर्थ होता है ग्रंथों को पाठ करना। हालाँकि पाश्चात्य जानकार इसको सीरियाई शब्द से जोड़ते हैं, अधिकांश मुसलमानों का मानना है कि इसका मूल क़ुरा शब्द ही है। पर चाहे जो हज़रत मुहम्मद के जन्मदिन के समय ही यह एक अरबी शब्द बन गया था।

ख़ुद क़ुरआन में इस शब्द का कोई 70 बार ज़िक्र हुआ है। इसके अलावे भी क़ुरआन के कई नाम हैं। इसे अल फ़ुरक़ान (कसौटी), अल हिक्मः (बुद्धिमता), धिक्र/ज़िक्र (याद) और मस्हफ़ (लिखा हुआ) जैसे नामों से भी संबोधित किया गया है। क़ुरआन में अल्लाह ने 25 अम्बिया का ज़िक्र किया है।

क़ुरआन शब्द कुरान में लगभग 70 बार प्रकट होता है, जो विभिन्न अर्थों को मानता है। यह अरबी क्रिया क़रा (قرأ) का एक मौखिक संज्ञा (मसदर) है, जिसका अर्थ है "वह पढ़ता है"। सिरिएक समतुल्य (ܩܪܝܢܐ) क़रयाना है, जो "शास्त्र पढ़ने" या "सबक" को संदर्भित करता है। जबकि कुछ पश्चिमी विद्वान इस शब्द को सिरिएक से प्राप्त करने पर विचार करते हैं, मुस्लिम अधिकारियों के बहुमत में शब्द की उत्पत्ति क़रा ही होती है। भले ही, यह मुहम्मद के जीवनकाल में अरबी शब्द बन गया था। शब्द का एक महत्वपूर्ण अर्थ "पाठ का कार्य" है, जैसा कि प्रारंभिक कुरआनी मार्ग में दर्शाया गया है: "यह हमारे लिए इसे इकट्ठा करना और इसे पढ़ना है (क़ुरआनहू)।

अन्य छंदों में, शब्द "एक व्यक्तिगत मार्ग [मुहम्मद द्वारा सुनाई गई]" को संदर्भित करता है। इसका कई संदर्भ में कई प्रकार से अदब किया जाता है। उदाहरण के तौर पर: "जब अल-क़ुरआन पढ़ा जाता है, तो इसे सुनें और चुप रहें।" अन्य धर्मों के ग्रन्थ जैसे तोराह और सुसमाचार के साथ वर्णित अर्थ भी ग्रहण कर सकता है।

इस शब्द में समानार्थी समानार्थी शब्द भी हैं जो पूरे क़ुरआन में नियोजित हैं। प्रत्येक समानार्थी का अपना अलग अर्थ होता है, लेकिन इसका उपयोग कुछ संदर्भों में कुरान के साथ मिल सकता है। इस तरह के शब्दों में किताब (पुस्तक), आयह (इशारा); और सूरा (ग्रान्धिक रूप) शामिल हैं। बाद के दो शब्द भी प्रकाशन की इकाइयों को दर्शाते हैं। संदर्भों के बड़े बहुमत में, आमतौर पर एक निश्चित लेख (अल-) के साथ, शब्द को "प्रकाशन" (वही) के रूप में जाना जाता है, जिसे अंतराल पर "भेजा गया" (तंज़ील) दिया गया है। अन्य संबंधित शब्द हैं: ज़िकर (स्मरण), क़ुरआन को एक अनुस्मारक और चेतावनी के अर्थ में संदर्भित करता है, और हिकमह (ज्ञान), कभी-कभी प्रकाशन या इसके हिस्से का जिक्र करता है।

क़ुरआन खुद को "समझदारी" (अल-फ़ुरकान),"गाइड" (हुदा), "ज्ञान" (हिकमा), "याद" (ज़िक्र) के रूप में वर्णित करता है। और "रहस्योद्घाटन" (तंज़ील ; कुछ भेजा गया है, एक वस्तु के वंश को एक उच्च स्थान से कम जगह पर संकेत)। एक और शब्द अल-किताब (शास्त्र/ग्रंथ) हैं, जैसे तोरात और बाइबिल के लिए अरबी भाषा में भी प्रयोग होता है। मुस्हफ़ ('लिखित कार्य') शब्द का प्रयोग अक्सर विशेष कुरआनी लिपियों के संदर्भ में किया जाता है लेकिन क़ुरआन में भी पहले की किताबों की पहचान करने के लिए प्रयोग किया जाता है।

क़ुरआन के उतरने और संग्रह व संकलन के बारे में

क़ुरआन एक पवित्र किताब है जो अंतिम नबी हज़रत मुहम्मद पर उतारी गयी। यह अल्लाह/ईश्वर का कलाम (सन्देश) है जिसे अल्लाह ने अपने पैग़म्बर मुहम्मद पर नाज़िल (अवतरित) किया। इस्लाम का आधार इसी आसमानी फ़रमान (आदेश) पर है जिसने इसका अनुपालन किया वह इस्लाम के दायरे में दाख़िल (प्रवेश) हुआ। जब पैग़म्बर मुहम्मद की उम्र 40 साल की हुई उस समय आप को नबुव़त प्रदान की गयी और रिसालत (रसूल अर्थात् दूत का काम,​पद) का ताज आप के सर पर रखा गया। इसी ज़माने से क़ुरआन के उतरने की शुरुआत हुई। यदा कदा यथा क़ुरआन ज़रूरत के अवसर पर थोड़ा-थोड़ा 23 साल तक नाज़िल होता रहा है। पिछली आसमानी किताबों (तौरात,इंजील,ज़बूर) की तरह पूरा एक ही बार में नहीं उतरा (हज़रत मूसा अलैहि○ पर तौरात, हज़रत ईसा अलैहि○ पर इंजील और हज़रत दाऊद अलैहि○ पर ज़ुबूर ये सब किताबें एक ही बार में उतरी गयी और सौभाग्य से ये सब किताबें रमज़ान ही के महीने में उतरी)

सही यह है कि आप (सल्ल0) की नबुवत (नबी होने का एलान या घोषणा) के बात रमज़ान की शबे-क़द्र (पवित्र रजनी) में पूरा क़ुरआन लौहे महफूज़ (अल्लाह के पास से) उस आसमान पर जिसे हम देख रहे हैं अल्लाह के हुक्म (आदेश) से उतारा गया और इसके बाद हज़रत जिब्रील अलैहि○(देवदूत) को जिस समय हुक्म हुआ उन्होंने पवित्र कलाम को बिल्कुल वैसा ही बिना किसी परिवर्तन या कमी-बेशी के नबी मुहम्मद तक पहुंचाया। कभी दो आयतें (छंद या Verses), कभी तीन आयतें और कभी एक आयत से भी कम, कभी दस-दस आयतें और कभी पूरी-पूरी सूरतें (अध्याय)। इसी को इस्लाम में वह्यी واحي या वह्य कहते हैं। उलमा (विद्वानों) ने वह्यी के विभिन्न तरीके हदीसों से पेश किए हैं –

  • फ़रिश्ता (देवदूत) वह्यी लेकर आए और एक आवाज़ घंटी जैसी मालूम हो। यह स्थिति अनेक हदीसों से साबित है और यह क़िस्म (प्रकार) वह्यी की सभी क़िस्मों में सख़्त थी। बहुत कष्ट नबी सल्ल0 को होता था यहां तक कि आपने (मुहम्मद ) ने फ़रमाया (बताया) कि जब कभी ऐसी वह्यी आती है तो मैं समझता हू कि अब जान निकल जाएगी।
  • फ़रिश्ता दिल में कोई बात डाल दे।
  • फ़रिश्ता इंसान के रूप में आ कर बात करे। यह क़िस्म बहुत आसान थी इसमें कष्ट न होता था।
  • अल्लाह तआला जागते में नबी सल्ल0 से कलाम (वार्ता या आदेश) फ़रमाए जैसे कि शबे मेअराज (मेअराज की रत) में।
  • अल्लाह तआला सपने की हालत में कलाम फ़रमाए। यह क़िस्म भी सही हदीसों से साबित है।*
  • फ़रिश्ता सपने की हालत में आकर कलाम करे।* ⇒ परन्तु अंतिम दो क़िस्मों से क़ुरआन खाली है। पूरा क़ुरआन जागने की स्थिति में नाज़िल हुआ।

क़ुरआन के बदफ़आत (थोड़ा-थोड़ा या धीरे-धीरे) नाज़िल होने में यह भी हिक्मत (उत्तम युक्ति) थी कि इस में कुछ आयतें वे थीं जिन का किसी समय रद्द कर देना अल्लाह को मंज़ूर था। कुरान में तीन प्रकार के मंसूखात (रद्द करना) हुए हैं। कुछ वे जिनका हुक्म भी मंसूख (रद्द) और तिलावत (उच्चारण) भी मंसूख (रद्द) ।

जब साफ़अे क़ियामत (क़ियामत के दिन सिफ़ारिश करने वाले) और उम्मत को पनाह देने वाले हुज़ूर मुहम्मद ने रफ़ीके आला जल्ल मुजद्दहू की रहमत में सकूनत अख़्तियार फ़रमाई अर्थात इस दुनिया से रुख़्सत (इंतिक़ाल, वफ़ात) फ़रमाई और वह्यी उतरना बंद हो गयी। कुरान किसी किताब में, जैसा कि आजकल है जमा नहीं था अलग-अलग चीजों पर सूरतें और आयतें लिखी हुई थीं और वे अलग-अलग लोगों के पास थीं। अधिकांश सहाबा (पैग़म्बर मुहम्मद के साथी) को क़ुरआन पूरा ज़बानी (मौखिक) याद था। अब से पहले कुरान को एक जगह जमा करने का ख़्याल (विचार) हज़रत अमीरुल मोमिनीन फ़ारुक़ आज़म रज़ि0 के दिल में पैदा हुआ और अल्लाह ने उन के ज़रिए (माध्यम) से अपने सच्चे वायदे (वचन) को पूरा किया जो अपने पैग़म्बर से किया था अर्थात कुरान के हम (अल्लाह) हाफ़िज़ है इस का जमा करना और हिफाज़त करना हमारे ज़िम्मे है। यह ज़माना (काल) हज़रत अमीरुल मोमिनीन सिद्दीक अक़बर रज़ि0 की ख़िलाफ़ते राशिदा का था। हज़रत फ़ारुक़ रज़ि0 ने उन की सेवा में अर्ज़ (निवेदन) किया क़ुरआन के हाफ़िज़ (जिन्हें कुरान मौखिक याद हो) शहीद होते जा रहे हैं और बहुत से यमाना की जंग में शहीद हो गए। मुझे डर है कि यदि यही हाल रहेगा तो बहुत बड़ा हिस्सा कुरान का हाथ से चला जायेगा। अतः मैं उचित समझता हू कि आप इस तरफ़ तवज्जोह (ध्यान) दें और कुरान के जमा करने का प्रबंध करें। हज़रत सिद्दीक़ ने फ़रमाया कि जो काम नबी सल्ल0 ने नहीं किया उसको हम कैसे कर सकते हैं ? हज़रत उमर फ़ारुख़ ने अर्ज़ किया कि ख़ुदा की क़सम यह बहुत अच्छा काम है। फिर कभी-कभी हज़रत फ़ारुक़ रज़ि0 इसकी याद दिलाते रहे यहां तक कि हज़रत सिद्दीक़ रज़ि0 के दिले मुबारक अर्थात ह्रदय में भी यह बात जम गयी। उन्होंने ज़ैद बिन साबित रज़ि0 को तलब किया और यह सब क़िस्सा बयान करके फ़रमाया कि कुरान को जमा करने के लिए मैंने आप को चुना है, आप (ज़ैद बिन साबित रज़ि0) क़ातिब-इ-वह्यी (वह्यी को लिखने वाले थे) और जवान व नेक (सज्जन) थे। उन्होंने भी वही बात कही कि जो काम नबी सल्ल0 ने नहीं किया, उसको हम लोग कैसे कर सकते हैं ? अन्त में वह राज़ी (सहमत) हो गए और उन्होंने बड़े अह्तमाम (बहुत प्रबन्धित ज़िम्मेदारी) से क़ुरआन को जमा करना शुरू किया।

ज़ैद बिन साबित रज़ि0 को चुने जाने की वजह उलमा (विद्वानों) ने यह लिखी है कि हर साल रमज़ान में हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम से नबी सल्ल0 क़ुरआन का दौर (पढ़ कर सुनना) किया करते थे और इंतक़ाल के साल में दो बार क़ुरआन का दौर हुआ और ज़ैद बिन साबित रज़ि0 इस अंतिम दौरे में शरीक (उपस्थित) थे और इस अंतिम दौर के बाद फिर कोई आयत मंसूख (रद्द) नहीं हुई जितना कुरान इस दौरे में पढ़ा गया, वह सब बाक़ी रहा अर्थात यही पूरा क़ुरआन था अतः उनको (ज़ैद बिन साबित रज़ि0) उन आयतों का ज्ञान था जिनकी तिलावत मंसूख हुई थी अर्थात जिनका पढ़ना मना था और ये आयते क़ुरआन में शामिल नहीं थी। (शरह सन्न:)

जब क़ुरआन सहाबा रज़ि0 (पैग़म्बर मुहम्मद के साथीगण) के प्रबन्ध से जमा हो चुका था अर्थात किताब की शक्ल में, हज़रत फ़ारुक़ रज़ि0 ने अपनी ख़िलाफ़त के ज़माने में उसकी नज़र सानी (दोबारा देखना) की और जहां कहीं किताब (लिखने में) ग़लती हो गयी थी उसको ठीक किया। सालों इस चिंता में रहे और कभी-कभी सहाबा रज़ि0 से मुनाज़िरा (चर्चा) किया। कभी कहीं गलती (लिखने में) दिखती तो फ़ौरन उसको सही कर देते थे फिर जब ये सब दर्जे (पैमाने) तै हो चुके तो हज़रत फ़ारुक़ रज़ि0 ने इस के पढ़ने-पढ़ाने की सख़्त व्यवस्था की और हाफ़िज़ सहाबा रज़ि0 (कुरान के विद्वान) को दूर के देशों में कुरान व फ़िक़्ह की शिक्षा के लिए भेजा, जिसका सिलसिला आज पूरे विश्व में पंहुचा। सच यह है कि हज़रत फ़ारुक़ रज़ि0 का एहसान (कृतज्ञता) इस बारे में पूरी उम्मते मुहम्मदिया (मुसलमानों) पर है। उन्हीं के कारण आज कुरान मुसलमानों के क़िताबी शक़्ल में मौजूद है और आज कुरान की तिलावत (पढ़ना) हर मुस्लिम घरों में की जाती है।

फ़िर हज़रत उस्मान रज़ि0 ने अपनी खिलाफ़त के ज़माने में उन्होंने इस मसहफ़ शरीफ़ (क़ुरआन) की सात नक़लें (प्रतियाँ) करा कर दूर-दूर के देशों में भेज दीं। और तिलावत क़िरआत (क़ुरआन पाठ करने के तरीक़ो) की वजह से जो मतभेद और झगड़े हो रहे थे और एक दूसरे की क़िरआत को हक़ के ख़िलाफ़ और ग़लत समझा जाता था, इस सब झगड़ों से इस्लाम को पाक कर दिया अर्थात झगड़ों को ख़त्म कर दिया। केवल एक क़िरआत (कुरान पाठ करने के तरीक़ो) पर सब को सहमत कर दिया।

इतिहास

 
हिरा की गुफ़ा जहाँ पैगंबर मुहम्मद पर पहला क़ुरआन उतरा था।

नबी का दौर

इस्लामी परंपरा से संबंधित है कि मुहम्मद ने पहाड़ों पर हिरा की गुफा में अपनी इबादत के दौरान अपना पहला प्रकाशन प्राप्त किया था। इसके बाद, उन्हें 23 वर्षों की अवधि में पूरा क़ुरआन का खुलासा प्राप्त हुआ। हदीस और मुस्लिम इतिहास के मुताबिक, मुहम्मद मदीना में आकर एक स्वतंत्र मुस्लिम समुदाय का गठन करने के बाद, उन्होंने अपने कई साथी क़ुरआन को पढ़ने और कानूनों को सीखने और सिखाने का आदेश दिया, जिन्हें दैनिक बताया गया था। यह संबंधित है कि कुछ कुरैश जिन्हें बद्र की लड़ाई में कैदियों के रूप में ले जाया गया था, उन्होंने कुछ मुसलमानों को उस समय के सरल लेखन को सिखाए जाने के बाद अपनी आजादी हासिल कर ली। इस प्रकार मुसलमानों का एक समूह धीरे-धीरे साक्षर बन गया। जैसा कि शुरू में कहा गया था, क़ुरआन को तख्तों, खालों, हड्डियों, और के तने के चौड़े लकड़ियों पर दर्ज किया गया था। मुसलमानों के बीच ज्यादातर सूरे उपयोग में थे क्योंकि सुन्नी और शिया दोनों स्रोतों द्वारा कई हदीसों और इतिहास में उनका उल्लेख किया गया है, मुहम्मद के इस्लाम के आह्वान के रूप में क़ुरआन के उपयोग से संबंधित, प्रार्थना करने और पढ़ने के तरीके के रूप में। हालांकि, क़ुरआन 632 में मुहम्मद की मृत्यु के समय पुस्तक रूप में मौजूद नहीं था। [6][7][8] विद्वानों के बीच एक समझौता है कि मुहम्मद ने खुद को रहस्योद्घाटन नहीं लिखा था। [9]

 
कुरान की कविता सुलेख , स्याही के साथ ऊंट के कंधे ब्लेड पर अंकित है।

वैज्ञानिक अध्ययन: इस्लामी इतिहास के शोधकर्ताओं ने समय के साथ इस्लाम के जन्मस्थान और किबला के परिवर्तन की जांच की है। पेट्रीसिया क्रोन, माइकल कुक और कई अन्य शोधकर्ताओं ने पाठ और पुरातात्विक अनुसंधान के आधार पर यह मान लिया है कि "मस्जिद अल-हरम" मक्का में नहीं बल्कि उत्तर-पश्चिमी अरब प्रायद्वीप में स्थित था।[10][11][12][13] डैन गिब्सन ने कहा कि पहले इस्लामिक मस्जिद और कब्रिस्तान झुकाव (क़िबला) ने पेट्रा की ओर इशारा किया, यहाँ मुहम्मद को अपने पहले रहस्योद्घाटन प्राप्त हुए, और यहाँ इस्लाम की स्थापना हुई।[14]

मक्का नगर और धरम-इ-इस्लाम के बारे पेट्रिसिया क्रोन, डैन गिब्सन व़ माइकेल कूक के अनुसंधान और उन्के नतीजा पर मुस्लिम गवेषक, विद्वानों ने कई सारे ग्रंथेँ और व़ैब सैट पर जव़ाब दे कर उन्के अभियोगों को खंडन करने की प्रयास किया।[15]

सहीह अल-बुख़ारी हदीस में मुहम्मद को रहस्योद्घाटन का वर्णन करते हुए बताया, "कभी-कभी यह घंटी बजने की तरह (प्रकट होता है)" और आइशा ने बताया, "मैंने देखा कि पैगंबर बहुत ही ठंडे दिन में वही से प्रेरित हो रहे हैं और उनके माथे से पसीना निकल रहा था। जैसे ही वही की प्रेरणा खत्म हो जाती तो उनकी बेचैनी दूर होजाती। " कुरान के अनुसार मुहम्मद का पहला प्रकाशन, एक दृष्टि के साथ था। प्रकाशन के माध्यम "एक शक्तिशाली" के रूप में वर्णित किया गया है, वह व्यक्ति जो "सबसे ऊपर क्षितिज पर था जब देखने के लिए स्पष्ट हुआ। फिर वह निकट आ गया और मुहम्मद से बात करने लगा। " इस्लामी अध्ययन विद्वान वेल्च विश्वकोष में बताते हैं कि उनका मानना ​​है कि इन क्षणों पर मुहम्मद की हालत और विवरणों को वास्तविक माना जा सकता है, क्योंकि इन रहस्योद्घाटनों के बाद उन्हें गंभीर रूप से परेशान किया गया था। वेल्च के मुताबिक, मुहम्मद की प्रेरणाओं की अतिमानवी उत्पत्ति के लिए उनके आस-पास के लोगों ने इन दौरे को देखा होगा। हालांकि, मुहम्मद के आलोचकों ने उन्हें एक व्यक्ति, एक कवी या जादूगर होने का आरोप लगाया क्योंकि उनके अनुभव प्राचीन अरब में ऐसे आंकड़ों द्वारा दावा किए गए लोगों के समान थे। वेल्च अतिरिक्त रूप से बताता है कि यह अनिश्चित है कि मुहम्मद के भविष्यवाणियों के प्रारंभिक दावे से पहले या बाद में ये अनुभव हुए थे।

 
अल-अलाक का हिस्सा - क़ुरआन' का 96 वां सूरा - मुहम्मद द्वारा प्राप्त पहला प्रकाशन।

क़ुरआन मुहम्मद को "उम्मी" के रूप में वर्णित करता है, जिसे परंपरागत रूप से "अशिक्षित" के रूप में व्याख्या किया जाता है, लेकिन इसका अर्थ अधिक जटिल है। मध्यकालीन टिप्पणीकारों जैसे अल-तबरी ने कहा कि इस शब्द ने दो अर्थों को प्रेरित किया: पहला, सामान्य रूप से पढ़ने या लिखने में असमर्थता; दूसरा, पिछली किताबों या ग्रंथों की अनुभवहीनता या अज्ञानता (लेकिन उन्होंने पहले अर्थ को प्राथमिकता दी)। मुहम्मद की निरक्षरता को उनकी भविष्यवाणी की वास्तविकता के संकेत के रूप में लिया गया था। उदाहरण के लिए, फखरुद्दीन अल-राज़ी के अनुसार, यदि मुहम्मद ने लेखन और पढ़ाई में महारत हासिल की थी तो संभवतः उन्हें पूर्वजों की किताबों का अध्ययन करने का संदेह होता। वाट जैसे कुछ विद्वान "उम्मी" का दूसरा अर्थ पसंद करते हैं - वे इसे पहले पवित्र ग्रंथों के साथ अपरिचितता को इंगित करने के लिए लेते हैं।

क़ुरआन की अंतिम आयत वर्ष 10वीं हिजरी में धू अल-हिजजाह के इस्लामी महीने के 18 वीं तारीख़ को प्रकट हुई थी, जो एक तारीख है जो मोटे तौर पर फरवरी या मार्च 632 से मेल खाती है । पैगंबर ने गदीर ए खुम्म में अपना उपदेश देने के बाद यह खुलासा किया था।

संकलन

 
पराबैंगनी प्रकाश, सना की पांडुलिपियों के तहत कुरान; U.V और X किरणों का उपयोग करके, उप-पाठ और पाठ पर किए गए बदलाव जो नग्न आंखों से नहीं देखे जा सकते हैं, प्रकट किया जा सकता है।

632 में मुहम्मद की मृत्यु के बाद, पहले ख़लीफ़ा, अबू बक्र (634 ई), बाद में पुस्तक को एक ग्रन्थ में इकट्ठा करने का फैसला किया ताकि इसे संरक्षित किया जा सके। ज़ैद इब्न थाबित (655ई) क़ुरआन को इकट्ठा करने वाले पहले व्यक्ति थे क्योंकि वह अल्लाह के नबी मुहम्मद से पढ़े गए अयातों और सूरों को लिखा करते थे। इस प्रकार, शास्त्रीय समूह, सबसे महत्वपूर्ण ज़ैद बिन थाबित (ज़ैद बिन साबित) ने छंद एकत्र किए और पूरी किताब का संकलन करके कुरआन को किताब का रूप दिया था। इस तरह क़ुरआन एक ग्रन्थ के रूप में आगई और उसकी प्रती अबू बक्र के साथ ही रही। इस कार्य के लिए ज़ैद ने उन तमाम पन्ने जिन्हें हड्डी पर, पत्तों पर, पत्थरों पर लिखा गया था और कई लोग कंठस्त भी किये थे उन सब का क्रोडीकरण किया। अबू बकर के बाद, मुहम्मद की विधवा हफसा बिन्त उमर को लगभग 650 में इस पांडुलिपि को सौंपा गया था। तीसरे खलीफ उथमान इब्न अफ़ान (डी 656) ने कुरान के उच्चारण में मामूली मतभेदों को ध्यान में रखना शुरू किया क्योंकि इस्लाम अरब प्रायद्वीप से परे फारस , लेवंट और उत्तरी अफ्रीका में फैला था। पाठ की पवित्रता को संरक्षित करने के लिए, उन्होंने जयद की अध्यक्षता में एक समिति का आदेश दिया ताकि अबू बकर की प्रतिलिपि का उपयोग किया जा सके और क़ुरआन की एक मानक प्रति तैयार की जा सके। [6][16] इस प्रकार, मुहम्मद की मृत्यु के 20 वर्षों के भीतर, क़ुरआन लिखित रूप में प्रतिबद्ध था। यह पाठ उस मॉडल बन गया जहां से मुस्लिम दुनिया के शहरी केंद्रों में प्रतियां बनाई गईं और प्रक्षेपित की गईं, और अन्य संस्करणों को नष्ट कर दिया गया माना जाता है। [6][17][18] क़ुरआन पाठ का वर्तमान रूप मुस्लिम विद्वानों द्वारा अबू बकर द्वारा संकलित मूल संस्करण माना जाता है। [7]

 
क़ुरआन - मशहाद , ईरान में - अली ने लिखा था

शिया के अनुसार, अली इब्न अबी तालिब (डी। 661) ने मुहम्मद की मृत्यु के तुरंत बाद कुरान का एक पूर्ण संस्करण संकलित किया। इस पाठ का क्रम उथमान के युग के दौरान बाद में इकट्ठा हुआ था कि इस संस्करण को कालक्रम क्रम में एकत्रित किया गया था। इसके बावजूद, उन्होंने मानकीकृत क़ुरआन के खिलाफ कोई आपत्ति नहीं की और क़ुरआन को परिसंचरण में स्वीकार कर लिया। क़ुरआन की अन्य व्यक्तिगत प्रतियां इब्न मसूद और उबे इब्न काब के कोडेक्स समेत मौजूद हो सकती हैं, जिनमें से कोई भी आज मौजूद नहीं है।

क़ुरआन मुहम्मद के जीवनकाल के दौरान बिखरी हुई लिखित रूप में सबसे अधिक संभावना है। कई स्रोत बताते हैं कि मुहम्मद के जीवनकाल के दौरान बड़ी संख्या में उनके साथी ने खुलासा याद किया था। प्रारंभिक टिप्पणियां और इस्लामी ऐतिहासिक स्रोत क़ुरआन के शुरुआती विकास की उपर्युक्त समझ का समर्थन करते हैं। क़ुरआन अपने वर्तमान रूप में अकादमिक विद्वानों द्वारा मुहम्मद द्वारा बोली जाने वाले शब्दों को रिकॉर्ड करने के लिए आम तौर पर माना जाता है क्योंकि वेरिएंट की खोज ने बहुत महत्व नहीं दिया है। शिकागो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर फ्रेड डोनर ने कहा कि "... क़ुरआन के एक समान व्यंजन पाठ को स्थापित करने का एक बहुत ही शुरुआती प्रयास था, जो संभवतः संचरण में संबंधित ग्रंथों का एक व्यापक और अधिक विविध समूह था। इस मानकीकृत कैननिकल पाठ के निर्माण के बाद, पहले आधिकारिक ग्रंथों को दबा दिया गया था, और सभी मौजूदा पांडुलिपियों - उनके कई रूपों के बावजूद-इस मानक व्यंजन पाठ की स्थापना के बाद एक समय की तारीख लगती है। " हालांकि क़ुरआन के पाठ के अधिकांश संस्करण रीडिंग को प्रसारित करना बंद कर दिया गया है, कुछ अभी भी हैं। वहां कोई महत्वपूर्ण पाठ नहीं हुआ है जिस पर क़ुरआनी पाठ का विद्वान पुनर्निर्माण आधारित हो सकता है। ऐतिहासिक रूप से, क़ुरआन की सामग्री पर विवाद शायद ही कभी एक मुद्दा बन गया है, हालांकि इस विषय पर बहस जारी है।

1972 में, यमन के शहर सना की एक मस्जिद में, पांडुलिपियों की खोज की गई थी जो बाद में उस समय मौजूद सबसे प्राचीन क़ुरआनी पाठ साबित हुए थे। सना की पांडुलिपियों में एक पृष्ठ है जिसमें से चर्मपत्र पुन: प्रयोज्य बनाने के लिए धोया गया है- एक अभ्यास जो प्राचीन समय में लेखन सामग्री की कमी के कारण आम था। हालांकि, बेहोश धोया हुआ अंतर्निहित पाठ ( स्क्रिप्टियो अवरुद्ध ) अभी भी मुश्किल से दिखाई देता है और इसे "पूर्व-उथमानिक" क़ुरआनी सामग्री माना जाता है, जबकि शीर्ष पर लिखे गए पाठ (स्क्रिप्टियो श्रेष्ठ) को उथमानिक समय माना जाता है। रेडियोकार्बन डेटिंग का उपयोग करने वाले अध्ययन से पता चलता है कि चर्मपत्र 671 सीई से पहले की अवधि के लिए 99 प्रतिशत संभावना के साथ दिनांकित हैं।

 
बर्मिंघम कुरान पांडुलिपि, दुनिया में सबसे पुराने में दिनांकित।

2015 में, 1370 साल पहले डेटिंग करने वाले बहुत ही शुरुआती कुरान के टुकड़े इंग्लैंड के बर्मिंघम विश्वविद्यालय की पुस्तकालय में खोजे गए थे। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी रेडियोकार्बन एक्सेलेरेटर यूनिट द्वारा किए गए परीक्षणों के मुताबिक, "95% से अधिक की संभावना के साथ, चर्मपत्र 568 और 645 के बीच था"। पांडुलिपि लिजा अरबी के प्रारंभिक रूप हिजाजी लिपि में लिखी गई है। यह संभवतः क़ुरआन का सबसे पुराना उदाहरण है, लेकिन परीक्षणों की एक विस्तृत तारीख की अनुमति है, इसलिए यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि मौजूदा संस्करणों में से कौन सा सबसे पुराना है। सऊदी विद्वान सौद अल-सरहान ने टुकड़ों की उम्र में संदेह व्यक्त किया है क्योंकि उनमें डॉट्स और अध्याय विभाजक शामिल हैं जिन्हें माना जाता है कि बाद में इसका जन्म हुआ था।

इस्लाम में महत्व

मुस्लिमों का मानना ​​है कि क़ुरआन 23 साल की अवधि में अल्लाह ने जिब्रील के माध्यम से मुहम्मद से दिव्य मार्गदर्शन की पुस्तक बन गया है और कुरान को मानवता के लिए अल्लाह के अंतिम प्रकाशन के रूप में देखता है। [19][20] इस्लामी और क़ुरआनी संदर्भों में प्रकाशितवाक्य का मतलब है कि अल्लाह का कार्य किसी व्यक्ति को संबोधित करना, प्राप्तकर्ताओं की एक बड़ी संख्या के लिए संदेश भेजना। जिस प्रक्रिया से अल्लाह के संदेशवाहक के दिल में दैवीय संदेश आता है वह तंजिल (नीचे भेजने के लिए) या नुज़ुल (नीचे आना) है। जैसा कि क़ुरआन कहता है, "सच्चाई के साथ हमने इसे नीचे भेज दिया है और सच्चाई के साथ यह नीचे आ गया है।" [21]

क़ुरआन अक्सर अपने पाठ में जोर देता है कि इसे अल्लाह रूप से नियुक्त किया जाता है। क़ुरआन में कुछ छंद यह इंगित करते हैं कि अरबी बोलने वाले भी लोग क़ुरआन को समझेंगे अगर उन्हें सुनाया जाता है। क़ुरआन एक लिखित पूर्व-पाठ, "संरक्षित टैबलेट" को संदर्भित करता है, जो इसे भेजने से पहले भी भगवान के भाषण को रिकॉर्ड करता है।

क़ुरआन बनाया गया मुद्दा यह मुद्दा नौवीं शताब्दी में एक मज़हबी बहस (कुरान की रचना) बन गया। तर्क और तर्कसंगत विचारों के आधार पर एक इस्लामी स्कूल मुताजिलस ने कहा कि क़ुरआन बनाया गया था, जबकि मौलाना की सबसे व्यापक किस्में क़ुरआन को अल्लाह के मानते थे और इसलिए अकुशल थे। सूफी दार्शनिक इस सवाल को कृत्रिम या गलत तरीके से तैयार करते हैं। [22]

मुसलमानों का मानना ​​है कि क़ुरआन का वर्तमान शब्द मुहम्मद को पता चला है, और क़ुरआन 15: 9 की उनकी व्याख्या के अनुसार, यह भ्रष्टाचार से संरक्षित है ("दरअसल, यह वह है जिसने क़ुरआन को भेजा और वास्तव में, हम होंगे इसके अभिभावक। ")। [23] मुस्लिम क़ुरआन को मार्गदर्शक मानते हैं, मुहम्मद की भविष्यवाणी और मजहब की सच्चाई का संकेत की है, और क़ुरआन का अध्ययन करने के लिए भाषाई दृष्टिकोण का उपयोग किया है। अन्य लोग तर्क देते हैं कि क़ुरआन में महान विचार हैं, आंतरिक अर्थ हैं, उम्र के माध्यम से अपनी ताजगी बनाए रखते हैं। और क़ुरआन के ज़रिये व्यक्तिगत स्तर पर और इतिहास में बड़े बदलाव हुए हैं। कुछ विद्वानों का कहना है कि क़ुरआन में वैज्ञानिक जानकारी है जो आधुनिक विज्ञान से सहमत है। कुरान की चमत्कारीता के सिद्धांत पर मुहम्मद की निरक्षरता पर जोर दिया गया है क्योंकि अज्ञात भविष्यद्वक्ता को क़ुरआन लिखने की क्षमता कैसे होगी। इस लिए यह अल्लाह वाणी है। [24][25]

शरीयत

इस क़ानून की परिभाषा दो स्रोतों से होती है। पहली इस्लाम का धर्मग्रन्थ क़ुरआन है और दूसरा इस्लाम के पैग़म्बर मुहम्मद द्वारा दी गई मिसालें हैं (जिन्हें सुन्नाह कहा जाता है)। इस्लामी क़ानून को बनाने के लिए इन दो स्रोतों को ध्यान से देखकर नियम बनाए जाते हैं। इस क़ानून बनाने की प्रक्रिया को 'फ़िक़्ह' (فقه‎‎, fiqh)।[26] शरीयत में बहुत से विषयों पर मत है, जैसे कि स्वास्थ्य, खानपान, पूजा विधि, व्रत विधि, विवाह, जुर्म, राजनीति, अर्थव्यवस्था इत्यादि।[27]

पारंपरिक शरिया प्रथाओं में से कुछ में गंभीर "मानवाधिकारों" का उल्लंघन है।[28][29]

नमाज़ या सलात में

क़ुरआन का पहला सूरा सूरा ए फ़ातिहा दैनिक प्रार्थनाओं (नमाज़) और अन्य अवसरों में पढ़ा और दोहराया जाता है। यह सूरा, जिसमें सात छंद होते हैं, कुरान का सबसे अधिक बार पढ़ा जाने वाला सूरा है: [1]

शुरू करता हूँ ख़ु़दा के नाम से जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है; सब तारीफ ख़ु़दा ही के लिए हैं ज़ो सबक़ा रब अौर मालिक़ है; और सारे जहाँन का पालने वाला बड़ा मेहरबान रहम वाला है; रोज़े जज़ा का मालिक है; ख़ु़दाया हम तेरी ही इबादत करते हैं और तुझ ही से मदद चाहते हैं; तो हमको सीधी राह पर साबित क़दम रखवा; उनकी राह जिन्हें तूने (अपनी) नेअमत अता की है न उनकी राह जिन पर तेरा ग़ज़ब ढ़ाया गया और न गुमराहों की। " [30]

क़ुरआन को अन्य वर्ग भी दैनिक प्रार्थनाओं में पढ़ते हैं।

क़ुरआन के लिखित पाठ का सम्मान कई मुसलमानों द्वारा धार्मिक विश्वास का एक महत्वपूर्ण तत्व है, और कुरान को सम्मान के साथ माना जाता है। परंपरा के आधार पर और कुरान की एक शाब्दिक व्याख्या 56:79 ("कोई भी स्पर्श नहीं करेगा लेकिन जो शुद्ध हैं"), कुछ मुसलमानों का मानना ​​है कि उन्हें कुरान की एक प्रति छूने से पहले वज़ू (पानी के साथ एक अनुष्ठान साफ) ​​करना होगा, हालांकि यह विचार नहीं है सार्वभौमिक। पुराणी बोसीदा कुरान की प्रतियां कपड़े में लपेटी जाती हैं और एक सुरक्षित जगह में अदब के साथ अनिश्चित काल तक संग्रहीत की जाती हैं। कभी मस्जिद या एक मुस्लिम कब्रिस्तान में दफनाया जाता है, या जला दिया जाता है और राख को दफन किया जाता है या पानी पर बिखरा हुआ होता है। [31]

इस्लाम में, धर्मशास्त्र, दर्शन, रहस्यवाद और न्यायशास्त्र समेत अधिकांश बौद्धिक विषयों, कुरान से चिंतित हैं या उनकी शिक्षाओं में उनकी नींव रखते हैं। मुसलमानों का मानना ​​है कि क़ुरआन के प्रचार या पढ़ना अधिक प्राधान्यता रखता है। इस के प्रचार और पढने वालों को दिव्य पुरस्कारों से पुरस्कृत किया जाता है। ऐसा करना विभिन्न प्रकार के अजहर, सवाब या हसनह (हसनत) कहा जाता है। [32]

इस्लामी कला में

क़ुरआन ने इस्लामी कलाओं और विशेष रूप से सुलेख और रोशनी के तथाकथित क़ुरआनी कलाओं को भी प्रेरित किया। क़ुरआन को चित्रकारी छवियों से कभी सजाया नहीं जाता है, लेकिन कई कुरानों को पृष्ठ के मार्जिन में या लाइनों के बीच या सूरे की शुरुआत में सजावटी पैटर्न के साथ सजाया जाता है। इस्लामिक छंद कई अन्य मीडिया, भवनों और मस्जिदों या एल्बमों के लिए मस्जिद लैंप, बर्तनों पर, मिट्टी के बर्तनों और सुलेख के पृष्ठों जैसे सभी आकारों की वस्तुओं पर दिखाई देते हैं।

क़ुरआन कथ्य

क़ुरआन में कुल 114 अध्याय हैं जिन्हें सूरा कहते हैं। बहुचन में इन्हें सूरत कहते हैं। अपने सत्ता समय ‎में हज़रत सिद्दीक़्क़ी अकबर (रज़ि.) द्वारा संकलित क़ुरआन की 9 प्रतियाँ तैयार ‎करके कई देशों में भेजी थी उनमें से दो क़ुरआन की प्रतियाँ अभी भी पूर्ण ‎सुरक्षित हैं। एक ताशक़ंद में और दूसरी तुर्की में मौजूद है। यह 500 साल पुरानी हैं, इसकी भी जाँच वैज्ञानिक रूप से काराई जा सकती है। फिर यह ‎भी एतिहासिक रूप से प्रमाणित है कि इस किताब में एक मात्रा का भी ‎अंतर हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के समय से अब तक नहीं आया है।

पाठ और व्यवस्था

 
कुरान का पहला सूरा अल फ़ातिहा, जिसमें सात आयत शामिल हैं।

कुरान में अलग-अलग लंबाई के 114 अध्याय हैं, जिन्हें हर प्रत्येक को सूरा के नाम से जाना जाता है। सुरा को मक्की या मदनी के रूप में वर्गीकृत किया गया है, इस पर निर्भर करता है कि मुहम्मद के मदीना के प्रवास से पहले या बाद में आयात प्रकट किए गए थे या नहीं। हालांकि, मदनी के रूप में वर्गीकृत एक सूरे में मक्की आयत हो सकती है और इसके विपरीत भी। सूरा शीर्षक टेक्स्ट में चर्चा किए गए नाम या गुणवत्ता से, या सूर्या के पहले अक्षर या शब्दों से प्राप्त होते हैं। घटते आकार के क्रम में सूरज मोटे तौर पर व्यवस्थित होते हैं। इस प्रकार सूर्य व्यवस्था प्रकाशन के अनुक्रम से जुड़ी नहीं है। नौवें सूरे को छोड़कर प्रत्येक सूरा बिस्मिल्लाह (بسم الله الرحمن الرحيم) के साथ शुरू होता है, जिसका अर्थ अरबी वाक्यांश है जिसका अर्थ है "अल्लाह के नाम पर"। हालांकि, कुरान में रानी शेबा को सुलैमान के पत्र के उद्घाटन के रूप में (कुरान 27:30) बिस्मिल्लाह मौजूद है। इस तरह कुरान में बिस्मिल्लाह की 114 घटनाएं अभी भी मौजूद हैं। [33]

 
अत-तीन (अंजीर), कुरान के 95 वां सूरा

प्रत्येक सूरा में कई छंद होते हैं, जिन्हें अयत कहा जाता है, जिसका मूल रूप से भगवान द्वारा भेजा गया "संकेत" या "सबूत" होता है। छंदों की संख्या हर सूरा में अलग है। एक व्यक्तिगत कविता केवल कुछ अक्षर या कई लाइनें हो सकती है। कुरान में छंदों की कुल संख्या 6,236 है; हालांकि, संख्या भिन्न होती है यदि बिस्मिल्लाह अलग-अलग गिना जाता है।

सूरों में विभाजन के अलावा और स्वतंत्र होने के अलावा, कुरान को पढ़ने में सुविधा के लिए लगभग बराबर लंबाई के हिस्सों में विभाजित करने के कई तरीके हैं। एक महीने में पूरे कुरान के माध्यम से पढ़ने के लिए 30 जुज़ '(बहुवचन अजज़ा) का उपयोग किया जा सकता है। इनमें से कुछ हिस्सों को नामों से जाना जाता है- जो पहले कुछ शब्द हैं जिनके द्वारा जुज़ शुरू होता है। एक जुज़ ' कभी-कभी दो हिज़्ब (बहुवचन हज़ाब) में विभाजित होता है, और प्रत्येक हिजब चार रूब' अल-अहज़ब में विभाजित होता है। एक सप्ताह में कुरान को पढ़ने के लिए कुरान को लगभग सात बराबर भागों, मंजिल (बहुवचन मनाज़िल) में विभाजित किया गया है।

अनुच्छेदों के समान अर्थात् इकाइयों द्वारा एक अलग संरचना प्रदान की जाती है और इसमें लगभग दस आयत शामिल होते हैं। इस तरह के एक खंड को रुकू कहा जाता है।

हुरुफ़ मुक़त्तआत (अंग्रेज़ी Abbreviations) (अरबी : حروف مقطعات) "बेजुड़े अक्षर"; "रहस्यमय पत्र") 114 सूरहों में से 29 की शुरुआत में एक और पांच अरबी अक्षरों के संयोजन के संयोजन हैं (अध्याय) [कुरान] के बिस्मिल्ला हिर्रहमा / निर्रहीम|बसमला के बाद। अक्षरों को फवातीह (فواتح) या "सलामी अक्षर" के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि वे अपने संबंधित सूरों के उद्घाटन बनाते हैं। चार सूरों का नाम उनके मुक़त्ततात, ता-हा, या-सीन, सआद और क़ाफ़ के लिए रखा गया है। अक्षरों का मूल महत्व अज्ञात है। तफसीर ने उन्हें अल्लाह के नाम या गुणों या संबंधित सूरों के नाम या सामग्री के लिए संक्षेप में व्याख्या की है ।

एक अनुमान के मुताबिक कुरान में 77,430 शब्द, 18,994 अद्वितीय शब्द, 12,183 उपजी, 3,382 लीमा और 1,685 मूल शब्द शामिल हैं । [34]

अंतर्वस्तु

मुख्य लेख: इस्लाम में ईश्वर, इस्लामी पैग़म्बर

 
नूह नूह का जहाज (Zubdetü't-Tevarih); गिलगमेश बाढ़ की कथा को टोरा और कुरान में फिर से व्याख्यायित किया गया है।.[35][36]
 
समानांतर कहानियाँ;मूसा, जिनके नाम का क़ुरआन में १३६ बार उपयोग किया गया है, उन्हें नील नदी से बचाया गया है। (Alma-Tadema).यह द ग्रेट सरगुन के लिए एक समान कहानी है।(क़ुरआन 28: 7-9) / निर्गमन 1, 15-22)

क़ुरआन की सामग्री बुनियादी इस्लामी मान्यताओं से संबंधित है जिसमें भगवान और पुनरुत्थान के अस्तित्व शामिल हैं। शुरुआती भविष्यद्वक्ताओं, नैतिक और कानूनी विषयों के कथाएं, मुहम्मद के समय, दान और प्रार्थना की ऐतिहासिक घटनाएं कुरान में भी दिखाई देती हैं। कुरान के छंदों में सही और गलत और ऐतिहासिक घटनाओं के बारे में सामान्य उपदेश शामिल हैं, सामान्य नैतिक पाठों की रूपरेखा से संबंधित हैं। प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित वर्सेज मुसलमानों द्वारा कुरान के संदेश की प्रामाणिकता के संकेत के रूप में व्याख्या की गई है। [37]

टियोलॉजी

कुरान का केंद्रीय विषय एकेश्वरवाद है। भगवान को जीवित, शाश्वत, सर्वज्ञानी और सर्वज्ञ के रूप में चित्रित किया गया है वह सब कुछ, स्वर्ग और पृथ्वी का निर्माता है और उनके बीच क्या है (देखें, उदाहरण के लिए, कुरान 13:16 , 50:38 , आदि)। सभी मनुष्य ईश्वर पर उनकी पूर्ण निर्भरता के बराबर हैं, और उनका कल्याण उनके तथ्य को स्वीकार करने और तदनुसार रहने पर निर्भर करता है। [7][37]

कुरान भगवान के अस्तित्व को साबित करने के लिए शर्तों का जिक्र किए बिना विभिन्न छंदों में ब्रह्माण्ड संबंधी और आकस्मिक तर्कों का उपयोग करता है। इसलिए, ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई है और उसे उत्प्रेरक की आवश्यकता है, और जो भी अस्तित्व में है उसके अस्तित्व के लिए पर्याप्त कारण होना चाहिए। इसके अलावा, ब्रह्मांड के डिजाइन को अक्सर चिंतन के बिंदु के रूप में जाना जाता है: "यह वह है जिसने सद्भाव में सात स्वर्ग बनाए हैं। आप भगवान की सृष्टि में कोई गलती नहीं देख सकते हैं, फिर फिर देखें: क्या आप कोई दोष देख सकते हैं?" [38][24]

यहूदी, ईसाई और इस्लामी विचारों के इतिहास में "ईश्वर के बारे में एक मानवशास्त्रीय भाषा" का उपयोग करना या न करना "गहन बहस का विषय" रहा है। एक पर विश्वास, अद्वितीय ईश्वर इस्लामी तौहीद का आधार है अब्राहमिक धर्मों की पवित्र पुस्तकों में मानवरूपी उदाहरण हैं, साथ ही ऐसे भाव भी हैं जो ईश्वर को प्राणियों से अलग करते हैं। एक सामान्य दृष्टिकोण से, यह कहा जा सकता है कि कुरान और बाइबिल में तंजीह की तुलना में अधिक उपमाएं हैं।[39]

पैगंबर और उनकी किताबें (जिन्हें कुरान में अल्लाह द्वारा भेजे जाने के बारे में कहा गया है) खुद को अन्य देवताओं (जैसे, यहोवा) के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं।[40] उदाहरण के लिए, एलिय्याह (अरबी में इलियास) एक हिब्रू शब्द है जिसका अर्थ है "मेरा भगवान याहू/जाह है"[41] कुरान में गेब्रियल (जिब्रिल) और मिकेल जैसे एंजेल नाम अन्य अब्राहमिक धर्मों की तरह एल (या इल) से जुड़े हैं।

कुरान में गेब्रियल (जिब्रिल) और मिकेल जैसे एंजेल नाम अन्य अब्राहमिक धर्मों की तरह एल (या इल) से जुड़े हैं। अल्लाहुम्मा, कुरान में भी उल्लेख किया गया है और पारंपरिक रूप से दुआ शुरू करने के लिए इस्लाम में इस्तेमाल किया जाता है, (संभवतः) हिब्रू शब्द एलोहिम का अरबी उच्चारण था[42][43] एलोहीम का इस्तेमाल हिब्रू में अभिवादन बहुवचन (जिसका अर्थ है "भगवान!") के रूप में किया गया था, जैसे "आपकी महिमा!" वाक्यांश में है। शब्द 'Rab (भगवान, मास्टर), ("जो आज्ञा के कारण यहोवा के बजाय प्रयोग किया जाता है" "तू अपने परमेश्वर यहोवा का नाम व्यर्थ नहीं बोलना चाहिए , "पवित्र पुस्तक" में)[44] अक्सर कुरान में भगवान के लिए भी प्रयोग किया जाता है।

 
क्रोधित मूसा ने पत्थर की प्लेट तोड़ दी। (यहूदी धर्म के अनुसार यहोवा की उंगलियों से लिखा गया है।[45])रेम्ब्रांट, १६५९

परलोक सिद्धांत

 
आख़िरत के लिए मुहम्मद की यात्रा; प्राचीन इज़राइल (जे-बेन हिन्नोम में, जिन बच्चों को जला दिया गया था और मोलेक (यिर्मयाह 32:35) को बलिदान कर दिया गया था) में बनाए गए डरावने और डर के तत्व कुरान के नर्क में इसी तरह से दिखाई देते हैं (मोलेक-मलिक).(43:77)[46]

पुराने नियम में "गेहिन्नोम" या हिन्नोम के पुत्र की घाटी यरूशलेम में एक शापित घाटी है (जहां बच्चों की बलि दी गई थी (यिर्मयाह 32:35))। सुसमाचारों में, यीशु "गेहन्ना" के बारे में एक ऐसे स्थान के रूप में बात करते हैं जहाँ "कीड़ा कभी नहीं मरता और आग कभी नहीं बुझती"। (मरकुस 9:48) दूसरी शताब्दी के आसपास लिखी गई एज्रा की अपोक्रिफल पुस्तक में, गेहिन्नोम सजा के एक पारलौकिक स्थान के रूप में प्रकट होता है। यह परिवर्तन बेबीलोन के तल्मूड में पूरा होता है। (लगभग 500 ईस्वी सन् में लिखा गया) "जहानम" को अक्सर कुरान में अनन्त सजा के स्थान के रूप में भी प्रयोग किया जाता है।[47]

अंतिम दिन यौम अल-क़ियामा और आकिरत (ब्रह्मांड के अंतिम भाग्य) के सिद्धांत कुरान के दूसरे महान सिद्धांत के रूप में माना जा सकता है। [7] यह अनुमान लगाया गया है कि कुरान का लगभग एक तिहाई आकिरात है, अगली दुनिया में बाद के जीवन के साथ और समय के अंत में निर्णय के दिन से निपटने। [17] कुरान के अधिकांश पृष्ठों पर बाद के जीवन का एक संदर्भ है और बाद में जीवन में विश्वास को आम अभिव्यक्ति के रूप में भगवान में विश्वास के साथ संदर्भित किया जाता है: "भगवान और अंतिम दिन में विश्वास करें"। 44, 56, 75, 78, 81 और 101 जैसे कई सूरे सीधे जीवन के बाद और इसकी तैयारी से संबंधित हैं। कुछ सूर्या इस घटना के निकटता को इंगित करते हैं और आने वाले दिनों के लिए लोगों को तैयार होने की चेतावनी देते हैं। उदाहरण के लिए, सूर्या 22 के पहले छंद, जो शक्तिशाली भूकंप और उस दिन लोगों की परिस्थितियों से निपटते हैं, दिव्य पते की इस शैली का प्रतिनिधित्व करते हैं: "हे लोग! अपने भगवान का सम्मान करें। समय का भूकंप एक शक्तिशाली है चीज़।"

कुरान अक्सर अपने चित्रण में स्पष्ट होता है कि अंत में क्या होगा। वाट ने अंत समय के कुरान के दृष्टिकोण का वर्णन किया: [7]

"इतिहास की समाप्ति, जब वर्तमान दुनिया खत्म हो जाती है, को विभिन्न तरीकों से संदर्भित किया जाता है। यह 'न्याय का दिन', 'अंतिम दिन,' 'पुनरुत्थान का दिन' या बस 'घंटा' है। ' कम बार यह 'भेद का दिन' होता है (जब अच्छे बुरे से अलग होते हैं), 'इकट्ठा करने का दिन' (मनुष्यों की उपस्थिति में पुरुषों के) या 'बैठक का दिन' (भगवान के साथ पुरुषों का) )। समय अचानक आ जाता है। यह एक चिल्लाहट से, एक गरज से, या तुरही के विस्फोट से घिरा हुआ है। तब एक ब्रह्माण्ड उथल-पुथल होता है। पहाड़ धूल में भंग हो जाते हैं, समुद्र उबलते हैं, सूरज अंधकारमय हो जाता है, सितारे गिरते हैं और आकाश लुढ़का जाता है। भगवान न्यायाधीश के रूप में प्रकट होते हैं, लेकिन उनकी उपस्थिति को वर्णित करने के बजाय संकेत दिया जाता है। केंद्रीय हित, ज़ाहिर है, न्यायाधीश के समक्ष सभी मानव जाति को इकट्ठा करने में है। सभी उम्र, जीवन में बहाल, जोर से शामिल हो गए। अविश्वासियों की अपमानजनक आपत्तियों के लिए कि पूर्व पीढ़ी लंबे समय से मर चुके थे और अब धूल और मोड़ने वाली हड्डियां थीं, जवाब यह है कि भगवान उन्हें फिर भी जीवन में बहाल करने में सक्षम हैं। "

क़ुरआन मानव आत्मा की प्राकृतिक अमरता पर जोर नहीं देता है , क्योंकि मनुष्य का अस्तित्व ईश्वर की इच्छा पर निर्भर है: जब वह चाहता है, तो वह मनुष्य को मरने का कारण बनता है; और जब वह चाहता है, तो वह शारीरिक पुनरुत्थान में उसे फिर से जीवन में ले जाता है। [48]

प्रेषित (पैगम्बर या नबी)

 
शबा की रानी की सुलैमान की यात्रा। (Edward Poynter, 1890) तोराह के अनुसार, सोलोमन, जो अपनी सात सौ पत्नियों और तीन सौ उपासनाओं और भक्तों के साथ भटक गया,[49] कुरान में पैगंबर के रूप में प्रवेश करता है, जो लोगों, जिन्न और प्रकृति पर राज करता है।

कुरान के मुताबिक, भगवान ने मनुष्य के साथ संवाद किया और अपनी इच्छा को संकेतों और रहस्योद्घाटनों के माध्यम से जाना। पैगम्बरों, या 'भगवान के संदेशवाहक', रहस्योद्घाटन प्राप्त किया और उन्हें मानवता के लिए पहुंचा दिया। संदेश समान है और सभी मानव जाति के लिए। "तुमसे कुछ भी नहीं कहा गया है कि आपके सामने दूतों से यह नहीं कहा गया था कि आपके भगवान के पास उसकी कमांड क्षमा और साथ ही साथ सबसे गंभीर दंड भी है।" रहस्योद्घाटन सीधे ईश्वर से भविष्यद्वक्ताओं तक नहीं आता है। भगवान के संदेशवाहक के रूप में कार्य करने वाले एन्जिल्स उन्हें दिव्य प्रकाशन प्रदान करते हैं। यह कुरान 42:51 में आता है, जिसमें यह कहा गया है: "यह किसी भी प्राणघातक के लिए नहीं है कि भगवान को उनसे बात करनी चाहिए, प्रकाशन के अलावा, या पर्दे के पीछे से, या किसी भी संदेश को प्रकट करने के लिए एक संदेश भेजकर वह होगा।" [17][48]

नीति-धार्मिक अवधारणाएं

क़ुरान पर विशवास नैतिकता का एक मौलिक पहलू है, और विद्वानों ने कुरान में "विश्वास" और "आस्तिक" की अर्थपूर्ण सामग्री निर्धारित करने की कोशिश की है। [50] धार्मिक आचरण से निपटने वाली नैतिक-कानूनी अवधारणाओं और उपदेशों को ईश्वर के प्रति गहन जागरूकता से जोड़ा जाता है, जिससे विश्वास, उत्तरदायित्व और भगवान के साथ प्रत्येक इंसान के अंतिम मुठभेड़ में विश्वास पर जोर दिया जाता है। लोगों को विशेष रूप से जरूरतमंदों के लिए दान के कृत्य करने के लिए आमंत्रित किया जाता है। विश्वास करने वाले "रात और दिन में, गुप्त और सार्वजनिक रूप से" अपनी संपत्ति का खर्च करने का वादा किया जाता है कि वे "अपने भगवान के साथ अपना इनाम लेंगे, उन पर कोई डर नहीं होगा, न ही वे दुखी होंगे"। यह शादी, तलाक और विरासत के मामलों पर कानून बनाकर पारिवारिक जीवन की पुष्टि भी करता है। ब्याज और जुए जैसे कई अभ्यास प्रतिबंधित हैं। कुरान इस्लामी कानून (शरिया) के मौलिक स्रोतों में से एक है। कुछ औपचारिक धार्मिक प्रथाओं को कुरान में औपचारिक प्रार्थनाओं (सलात) और रमजान के महीने में उपवास सहित महत्वपूर्ण ध्यान मिलता है। जिस तरह से प्रार्थना आयोजित की जानी है, कुरान प्रस्तुति को संदर्भित करता है। चैरिटी, जकात के लिए शब्द का शाब्दिक अर्थ है शुद्धिकरण। कुरान के अनुसार चैरिटी आत्म-शुद्धिकरण का साधन है।

आज मानव अधिकारों की दृष्टि से युद्धों में बंदी महिलाओं की स्थिति एक गंभीर मुद्दा है। कुरान की पारंपरिक व्याख्याओं के अनुसार, इन महिलाओं को कब्जा की गई वस्तु (युद्ध लूट) के रूप में माना जाता है। इन महिलाओं की शादी हुई है या नहीं, इस पर ध्यान नहीं दिया जाता है, और अन्य अर्जित दास महिलाओं की तरह, अधिकार-धारक (योद्धा या खरीदार) उनकी सहमति के बिना उनके शरीर पर यौन व्यवहार कर सकते हैं।(23:5-6)(देखें:युद्ध अपराध)

विज्ञान में रुचि

ब्रह्मांड विज्ञान; कुरान की आयतों के शाब्दिक और प्रत्यक्ष अर्थों के अनुसार, दुनिया को अल्लाह ने सपाट बनाया था।[51] कुरान की कथा में, अल्लाह अर्श पर बैठता है और ब्रह्मांड को नियंत्रित करता है, (जिसमें स्वर्ग और पृथ्वी शामिल है), उसने 6 दिनों में बनाया। इस ब्रह्मांड में देवदूत एस, दानव एस, जिन्न एस, शैतान जैसे जीव हैं। सितारों को कभी-कभी राक्षसों को बाहर निकालने के लिए पत्थरों को फेंकने के रूप में उपयोग किया जाता है "जो समाचार चुराने के लिए आकाश में चढ़ते हैं"। (सूरह 67: 1-5) प्रलय का दिन दृश्य भी कुरान के ब्रह्मांड और ईश्वर के मॉडल का प्रतिबिंब है। जब सर्वनाश आएगा, तारे पृथ्वी पर गिरेंगे, गर्भवती महिलाओं का गर्भपात होगा, और लोग डर के मारे भागते रहेंगे। फिर एक वर्ग स्थापित किया जाता है और भगवान को न्याय के वर्ग में लाया जाता है जो एन्जिल्स द्वारा उठाए गए सिंहासन पर होता है और अपने बछड़े को दिखाता है।(68:42)[52]

 
पृथ्वी केंद्रित या पृथ्वी ब्रह्मांड के ऊपर। (C. Flammarion, Holzschnitt, Paris 1888)यह माना जाता है कि कुरान में ब्रह्मांड को पृथ्वी-केंद्रित (ऊपर का) ब्रह्मांड मॉडल के रूप में परिभाषित किया गया है।[53]
 
कुरान के मुहावरों में से एक, सिदरेट'उल मुन्तेहा, आखिरी बिंदु है जो चमत्कारिक कथाओं (इस्लामी ब्रह्मांड विज्ञान) में बनाए गए लोगों द्वारा पहुंचा जा सकता है। शब्द का अनुवाद केवल "परम देवदार के पेड़" के रूप में किया जा सकता है[54]

कुरान के बारे में छद्म-वैज्ञानिक दावों की अत्यधिक आलोचना करते हुए खगोलशास्त्री निधल गॉसौम ने कुरान के बारे में प्रोत्साहित किया है कि कुरान "ज्ञान की अवधारणा" विकसित करके प्रदान करता है। [55] वह लिखते हैं: "कुरान सबूत के बिना अनुमान लगाने के खतरे पर ध्यान खींचता है (और उस अनुयायियों का पालन न करें जिसके बारे में आपने (निश्चित) ज्ञान नहीं किया है ... 17:36) और कई अलग-अलग छंदों में मुसलमानों से पूछता है प्रमाणों की आवश्यकता के लिए (कहो: यदि आप सत्य हैं 2: 111), तो सबूत की आवश्यकता है, दोनों धार्मिक विश्वास और प्राकृतिक विज्ञान में। " गुएससोम कुरान के अनुसार "सबूत" की परिभाषा पर Ghaleb हसन उद्धृत "स्पष्ट और मजबूत ... दृढ़ सबूत या तर्क।" साथ ही, इस तरह का सबूत प्राधिकरण से तर्क पर निर्भर नहीं हो सकता है, पद 5: 104 का हवाला देते हुए। आखिरकार, पद 4: 174 के अनुसार, दोनों दावे और अस्वीकृति के सबूत की आवश्यकता होती है। इस्माइल अल- फ़रुकी और ताहा जबीर अलालवानी इस विचार से हैं कि मुस्लिम सभ्यता का कोई भी पुनरुत्थान कुरान के साथ शुरू होना चाहिए; हालांकि, इस मार्ग पर सबसे बड़ी बाधा "ताफसीर (एक्जेजेसिस) और अन्य शास्त्रीय विषयों की सदियों पुरानी विरासत है जो कुरान के संदेश की" सार्वभौमिक, महामारी विज्ञान और व्यवस्थित अवधारणा "को रोकती है। दार्शनिक मोहम्मद इकबाल ने कुरान की पद्धति और महाद्वीप को अनुभवजन्य और तर्कसंगत माना।

यह आम तौर पर स्वीकार किया जाता है कि लगभग 750 छंद हैं कुरान में प्राकृतिक घटना से निपटने में। इनमें से कई छंदों में प्रकृति का अध्ययन "प्रोत्साहित और अत्यधिक अनुशंसित" है, और अल-बिरूनी और अल-बट्टानी जैसे ऐतिहासिक इस्लामिक वैज्ञानिकों ने कुरान के छंदों से अपनी प्रेरणा ली। मोहम्मद हाशिम कमली ने कहा है कि "वैज्ञानिक अवलोकन, प्रयोगात्मक ज्ञान और तर्कसंगतता" प्राथमिक साधन हैं जिनके साथ मानवता कुरान में इसके लिए निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त कर सकती है। ज़ियाउद्दीन सरदार ने कुरान की बार-बार बुलाए जाने वाले प्राकृतिक घटनाओं पर ध्यान देने और प्रतिबिंबित करने के लिए मुसलमानों के लिए आधुनिक विज्ञान की नींव विकसित करने का मामला बनाया।

 
लिडियन राजा, अपने धन के साथ प्रसिद्ध, मध्य पूर्व के लोगों के बीच करेन, (लौवर संग्रहालय) के रूप में। कुरान में, वह मूसा के गोत्र का एक व्यक्ति था (कुरान के टिप्पणीकार भी कहते हैं कि वह उसके चाचा का पुत्र है), उसकी संपत्ति से खराब हो गया। (लीडिया)

भौतिक विज्ञानी अब्दुस सलाम ने अपने नोबेल पुरस्कार भोज पते में कुरान (67: 3-4) की एक प्रसिद्ध कविता उद्धृत की और फिर कहा: "यह प्रभाव सभी भौतिकविदों का विश्वास है: जितना गहरा हम चाहते हैं, उतना ही अधिक हमारे आश्चर्य उत्साहित, हमारे नज़र का चमक है "। सलाम की मूल मान्यताओं में से एक यह था कि इस्लाम और खोजों के बीच कोई विरोधाभास नहीं है कि विज्ञान मानवता को प्रकृति और ब्रह्मांड के बारे में बताता है। सलाम ने यह भी राय रखी कि कुरान और अध्ययन और तर्कसंगत प्रतिबिंब की इस्लामी भावना असाधारण सभ्यता के विकास का स्रोत थी। सलाम विशेष रूप से, इब्न अल-हेथम और अल-बिरूनी का अनुभव अनुभवजन्य के अग्रदूतों के रूप में करते थे जिन्होंने प्रयोगात्मक दृष्टिकोण पेश किया, अरिस्टोटल के प्रभाव से तोड़ दिया और इस प्रकार आधुनिक विज्ञान को जन्म दिया। सलाम आध्यात्मिक विज्ञान और भौतिकी के बीच अंतर करने के लिए भी सावधान थे, और अनुभवी रूप से कुछ मामलों की जांच करने के खिलाफ सलाह दी गई थी, जिन पर "भौतिकी चुप है और ऐसा ही रहेगी," जैसे कि सलम के विचार में विज्ञान की सीमाओं के बाहर है और इस प्रकार धार्मिक विचारों को "रास्ता देता है"।

साहित्यिक शैली

 
तौबा, सेनेगल में बालक क़ुरआन पढ़ रहे हैं।

कुरान का संदेश विभिन्न साहित्यिक संरचनाओं और उपकरणों के साथ व्यक्त किया गया है। मूल अरबी में, सूर्या और छंद ध्वन्यात्मक और विषयगत संरचनाओं को नियोजित करते हैं जो पाठ के संदेश को याद करने के लिए दर्शकों के प्रयासों में सहायता करते हैं। मुस्लिम जोर दें (कुरान के अनुसार) कि कुरान की सामग्री और शैली अनुचित है। [56]

कुरान की भाषा को "कविता गद्य" के रूप में वर्णित किया गया है क्योंकि यह कविता और गद्य दोनों का हिस्सा है; हालांकि, यह विवरण कुरानिक भाषा की लयबद्ध गुणवत्ता को व्यक्त करने में विफल होने का जोखिम चलाता है, जो कुछ हिस्सों में अधिक काव्य है और दूसरों में अधिक गद्य जैसा है। कुरान, जबकि पूरे कुरान में पाया गया था, पहले के कई मक्का सूरस में विशिष्ट है, जिसमें अपेक्षाकृत कम छंद गायन के शब्दों को प्रमुखता में फेंक देते हैं। इस तरह के रूप की प्रभावशीलता उदाहरण के लिए सूरा 81 में स्पष्ट है, और इसमें कोई संदेह नहीं है कि इन मार्गों ने श्रोताओं के विवेक को प्रभावित किया। छंदों के एक सेट से दूसरे सिग्नल में अक्सर कविता का परिवर्तन चर्चा के विषय में एक बदलाव होता है। बाद के खंड भी इस फॉर्म को संरक्षित करते हैं लेकिन शैली अधिक एक्सपोजिटरी है। [17][57]

कुरान के पाठ में कोई शुरुआत, मध्य या अंत नहीं है, इसकी गैरलाइन संरचना एक वेब या नेट के समान है। पाठ्यचर्या व्यवस्था को कभी-कभी निरंतरता की कमी, किसी भी कालक्रम या विषयगत क्रम और दोहराव की अनुपस्थिति को प्रदर्शित करने के लिए माना जाता है। आलोचक नॉर्मन ओ। ब्राउन के काम का हवाला देते हुए माइकल बेल्स , ब्राउन के अवलोकन को स्वीकार करते हैं कि कुरानिक साहित्यिक अभिव्यक्ति के प्रतीत होने वाले विघटन - बिक्री के वाक्यांश में इसकी बिखरी हुई या खंडित मोड - वास्तव में एक साहित्यिक डिवाइस सक्षम है गहरा प्रभाव देने के लिए जैसे भविष्यवाणी संदेश की तीव्रता मानव भाषा के वाहन को तोड़ रही थी जिसमें इसे संप्रेषित किया जा रहा था। बेचना कुरान की अधिक चर्चा की पुनरावृत्ति को भी संबोधित करता है, इसे एक साहित्यिक उपकरण के रूप में भी देखता है।

एक पाठ आत्म-संदर्भित होता है जब यह स्वयं के बारे में बोलता है और खुद को संदर्भित करता है। स्टीफन वाइल्ड के अनुसार, कुरान संचरित होने वाले शब्दों को समझाने, वर्गीकृत करने, व्याख्या करने और न्यायसंगत करके इस मेटाटेक्स्टिलिटी को दर्शाता है। उन अनुच्छेदों में आत्म- रेफरेंसियलिटी स्पष्ट है जहां कुरान स्वयं को एक आत्मनिर्भर तरीके से (प्रकाशन (स्पष्ट रूप से अपनी दिव्यता पर जोर देते हुए, ' (स्मरण), समाचार ( नाबा'), मानदंड (फरकन) के रूप में स्वयं को प्रकट करने के रूप में संदर्भित करता है। एक धन्य याद है जिसे हमने नीचे भेज दिया है, तो क्या आप अब इसे अस्वीकार कर रहे हैं? "), या" कहें "टैग की लगातार उपस्थिति में, जब मुहम्मद को बोलने का आदेश दिया जाता है (उदाहरण के लिए," कहो: "भगवान का मार्गदर्शन सच मार्गदर्शन है "," कहो: 'क्या आप हमारे साथ भगवान के विरुद्ध विवाद करेंगे?' ")। जंगली के अनुसार कुरान अत्यधिक आत्म-संदर्भित है। प्रारंभिक मक्का सुरस में यह सुविधा अधिक स्पष्ट है। [58]

व्याख्या

मुख्य लेख: तफ़सीर

 
कुरान के सूर्या 108 की प्रारंभिक व्याख्या।

कुरान ने कुरान के छंदों के अर्थों को समझाने, उनके आयात को स्पष्ट करने और उनके महत्व को जानने के उद्देश्य से टिप्पणी और व्याख्या (तफ़सीर) का एक विशाल निकाय उड़ाया है। [59]

 
सिकंदर महान को दर्शाने वाला एक सिक्का। सिकंदर के सिर पर अमुन सींग हैं।, अधिकांश टीकाकारों के अनुसार, अलेक्जेंडर को कुरान में ज़िल-कारनेन के रूप में संदर्भित किया जाता है (शब्द का अर्थ है दो सींग वाले आदमी)।[60]

तफसीर मुसलमानों की सबसे शुरुआती शैक्षणिक गतिविधियों में से एक है। कुरान के अनुसार, मुहम्मद पहला व्यक्ति था जिसने प्रारंभिक मुसलमानों के लिए छंदों के अर्थों का वर्णन किया था। अन्य शुरुआती निकायों में मुहम्मद के कुछ साथी शामिल थे, जैसे ' अली इब्न अबी तालिब ,' अब्दुल्ला इब्न अब्बास , अब्दुल्ला इब्न उमर और उबेय इब्न काब । उन दिनों में एक्जेजेसिस कविता के साहित्यिक पहलुओं, इसके प्रकाशन की पृष्ठभूमि और कभी-कभी, दूसरे की मदद से एक कविता की व्याख्या के स्पष्टीकरण तक ही सीमित था। यदि कविता एक ऐतिहासिक घटना के बारे में थी, तो कभी-कभी मुहम्मद की कुछ परंपराओं (हदीस) को इसका अर्थ स्पष्ट करने के लिए वर्णित किया गया था। [59]

चूंकि कुरान शास्त्रीय अरबी में बोली जाती है, बाद में कई इस्लाम (ज्यादातर गैर-अरब) में परिवर्तित नहीं होते थे, वे हमेशा कुरानिक अरबी को नहीं समझते थे, उन्होंने उन मुसलमानों को नहीं पकड़ा जो मुसलमानों के अरबी में धाराप्रवाह थे और वे सुलझाने से चिंतित थे कुरान में विषयों के स्पष्ट संघर्ष। अरबी में टिप्पणी करने वाले टिप्पणीकारों ने संकेतों को समझाया, और शायद सबसे महत्वपूर्ण बात यह समझाया कि मुहम्मद के भविष्यवाणियों के कैरियर में कुरान के छंदों का खुलासा किया गया था, जो कि सबसे शुरुआती मुस्लिम समुदाय के लिए उपयुक्त था, और जिसे बाद में प्रकट किया गया था, रद्द करना या " निरस्त करना " नासख ) पहले के पाठ (मानसख)। हालांकि, अन्य विद्वानों का कहना है कि कुरान में कोई निरसन नहीं हुआ है। अहमदीय मुस्लिम समुदाय ने कुरान पर दस खंड वाली उर्दू टिप्पणी प्रकाशित की है, जिसका नाम ताफसीर ई कबीर है । [61]

गूढ़ व्याख्या

गूढ़ व्याख्या या सूफी व्याख्या कुरान के आंतरिक अर्थों का अनावरण करने का प्रयास करती है। सूफीवाद छंदों के स्पष्ट ( ज़हीर ) बिंदु से आगे बढ़ता है और इसके बजाय कुरान के छंद को आंतरिक या गूढ़ (बातिन) और चेतना और अस्तित्व के आध्यात्मिक आयामों से संबंधित करता है। [62] सैंड्स के अनुसार, गूढ़ व्याख्याएं घोषणात्मक से अधिक सूचक हैं, वे स्पष्टीकरण (तफसीर) के बजाय संकेत (इशारात) हैं। वे संभावनाओं को इंगित करते हैं जितना कि वे प्रत्येक लेखक की अंतर्दृष्टि का प्रदर्शन करते हैं। [63]

एनाबेल केलर के अनुसार सूफी व्याख्या, प्यार के विषय के उपयोग का भी उदाहरण है, उदाहरण के लिए कुरैरी की कुरान की व्याख्या में देखा जा सकता है। कुरान 7: 143 कहता है:

जब मूसा उस वक्त आया जब हमने नियुक्त किया, और उसके अल्लाह ने उससे बात की, तो उसने कहा, 'हे मेरे अल्लाह, मुझे अपने आप को दिखाओ! मुझे तुम्हे देखने दो!' उसने कहा, 'तुम मुझे नहीं देखोगे, लेकिन उस पहाड़ को देखो, अगर यह दृढ़ रहता है तो आप मुझे देखेंगे।' जब उसके भगवान ने पहाड़ पर खुद को प्रकट किया, तो उसने इसे खराब कर दिया। मूसा बेहोश हो गया। जब वह ठीक हो गया, उसने कहा, 'जय हो! मैं तुमसे पश्चाताप करता हूँ! मैं विश्वास करने वाला पहला व्यक्ति हूं!

7: 143 में मूसा, प्रेम में रहने वालों का मार्ग आता है, वह एक दृष्टि मांगता है लेकिन उसकी इच्छा से इनकार किया जाता है, उसे पहाड़ के अलावा अन्य देखने के लिए आज्ञा दी जाती है, जबकि पर्वत देखने में सक्षम होता है परमेश्वर। पर्वत पर भगवान के प्रकट होने की दृष्टि से पर्वत चूर और मूसा बेहोश होजाते हैं। कुशायरी के शब्दों में, मूसा हजारों पुरुषों की तरह आया जिन्होंने महान दूरी की यात्रा की, और मूसा के मूसा को कुछ भी नहीं बचा था। खुद से उन्मूलन की स्थिति में, मूसा को वास्तविकताओं का अनावरण दिया गया था। सूफी के दृष्टिकोण से, भगवान हमेशा प्रिय और रास्ते में रहने वाले की इच्छा और पीड़ा सच्चाई को साकार करने का कारण बनती है। [64]

मुहम्मद हुसैन ताबाबातेई कहते हैं कि बाद के उत्थानों के बीच लोकप्रिय स्पष्टीकरण के अनुसार, ताविल का अर्थ है कि एक कविता का निर्देश दिया गया है। तावल के विरोध में, प्रकाशन ( तंजिल ) का अर्थ, शब्दों के स्पष्ट अर्थ के अनुसार स्पष्ट है, जैसा कि उन्हें बताया गया था। लेकिन यह स्पष्टीकरण इतना व्यापक हो गया है कि, वर्तमान में, यह ताविल का प्राथमिक अर्थ बन गया है, जिसका मूल रूप से "वापसी करने" या "वापसी स्थान" का अर्थ था। तबाताई के विचार में, जिसे ताइविल या कुरान की हर्मेन्यूटिक व्याख्या कहा जाता है, को शब्दों के संकेत के साथ चिंतित नहीं है। इसके बजाय, यह कुछ सच्चाई और वास्तविकताओं से संबंधित है जो पुरुषों के सामान्य भाग की समझ से परे है; फिर भी यह इन सत्यों और वास्तविकताओं से है कि सिद्धांत के सिद्धांत और कुरान के व्यावहारिक निषेध जारी हैं। व्याख्या कविता का अर्थ नहीं है बल्कि यह उस अर्थ के माध्यम से पारगमन के एक विशेष प्रकार में पारदर्शी है। एक आध्यात्मिक वास्तविकता है- जो एक कानून का पालन करने का मुख्य उद्देश्य है, या दैवीय गुण का वर्णन करने का मूल उद्देश्य है- और फिर एक वास्तविक महत्व है कि एक कुरान की कहानी का संदर्भ है। [65][66] शिया मान्यताओं के अनुसार, जो मुहम्मद और इमाम जैसे ज्ञान में दृढ़ता से निहित हैं, कुरान के रहस्यों को जानते हैं। तबाताई के अनुसार, बयान "कोई भी भगवान को छोड़कर इसकी व्याख्या को जानता है" किसी भी विरोधी या योग्यता खंड के बिना मान्य रहता है। इसलिए, जहां तक ​​इस कविता का सवाल है, कुरान की व्याख्या का ज्ञान भगवान के लिए आरक्षित है। लेकिन Tabatabaei अन्य छंदों का उपयोग करता है और निष्कर्ष निकाला है कि जो लोग भगवान द्वारा शुद्ध हैं कुरान की व्याख्या कुछ हद तक पता है।

तबाताई के अनुसार, स्वीकार्य और अस्वीकार्य गूढ़ व्याख्याएं हैं। स्वीकार्य ता'विल अपने शाब्दिक अर्थ से परे एक कविता के अर्थ को संदर्भित करता है; बल्कि अंतर्निहित अर्थ, जो अंततः केवल भगवान के लिए जाना जाता है और अकेले मानव विचारों के माध्यम से सीधे समझा नहीं जा सकता है। प्रश्न में छंद यहां आने, जाने, बैठने, संतुष्टि, क्रोध और दुःख के मानवीय गुणों को संदर्भित करते हैं, जिन्हें स्पष्ट रूप से भगवान के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है । अस्वीकार्य ta'wil वह है जहां एक सबूत के माध्यम से एक अलग अर्थ के लिए एक कविता का स्पष्ट अर्थ "स्थानांतरित" होता है; यह विधि स्पष्ट विसंगतियों के बिना नहीं है। यद्यपि यह अस्वीकार्य ता'विल ने काफी स्वीकृति प्राप्त की है, यह गलत है और कुरानिक छंदों पर लागू नहीं किया जा सकता है। सही व्याख्या यह है कि वास्तविकता एक कविता को संदर्भित करती है। यह सभी छंदों में पाया जाता है, निर्णायक और अस्पष्ट एक जैसे; यह शब्द का अर्थ नहीं है; यह एक तथ्य है कि शब्दों के लिए बहुत शानदार है। भगवान ने उन्हें अपने दिमाग में थोड़ा सा लाने के लिए शब्दों के साथ तैयार किया है; इस संबंध में वे कहानियों की तरह हैं जिनका उपयोग दिमाग में एक तस्वीर बनाने के लिए किया जाता है, और इस प्रकार श्रोता को स्पष्ट रूप से इच्छित विचार को समझने में मदद मिलती है।

सूफी की टिप्पणियों का इतिहास

12 वीं शताब्दी से पहले गूढ़ व्याख्या के उल्लेखनीय लेखकों में से एक सुलामी (डी। 1021) है जिसका काम बिना शुरुआती सूफी की अधिकांश टिप्पणियों को संरक्षित नहीं किया गया था। सुलामी की प्रमुख टिप्पणी हैकिक अल-ताफसीर (" एक्जेजेसिस के सत्य") की एक पुस्तक है जो पहले सूफी की टिप्पणियों का संकलन है। 11 वीं शताब्दी से कुशायरी (डी। 1074), दयालम (डी। 1193), शिराज़ी (डी। 1209) और सुहरावर्दी (डी। 1234) की टिप्पणियों सहित कई अन्य काम सामने आए। इन कार्यों में सुलामी की किताबों और लेखक के योगदान से सामग्री शामिल है। कई काम फारसी में लिखे गए हैं जैसे कि मबड़ी (डी। 1135) कश्फ अल-असर ("रहस्यों का अनावरण") के काम। रुमी (डी। 1273) ने अपनी पुस्तक मथनावी में विशाल रहस्यमय कविता लिखी थी। रुमी अपनी कविता में कुरान का भारी उपयोग करता है, एक ऐसी विशेषता जिसे कभी-कभी रुमी के काम के अनुवाद में छोड़ दिया जाता है। मथनावी में बड़ी संख्या में कुरानिक मार्ग पाए जा सकते हैं, जिनमें से कुछ कुरान की एक सूफी व्याख्या पर विचार करते हैं। रुमी की पुस्तक कुरान पर उद्धरण और विस्तार के लिए असाधारण नहीं है, हालांकि, रुमी कुरान का अधिक बार उल्लेख करता है। सिमनानी (डी। 1336) ने कुरान पर गूढ़ exegesis के दो प्रभावशाली कार्यों को लिखा था। उन्होंने सुन्नी इस्लाम की भावनाओं के साथ और भौतिक संसार में भगवान के अभिव्यक्ति के विचारों को सुलझा लिया। 18 वीं शताब्दी में इस्माइल हाकी बुर्सवी (डी। 1725) के काम जैसे व्यापक सूफी टिप्पणियां दिखाई देती हैं। उनके काम रूह अल-बायान (स्पष्टता की आत्मा) एक विशाल मारिफ़त है। अरबी में लिखा गया है, यह लेखक के अपने विचारों को उनके पूर्ववर्तियों (विशेष रूप से इब्न अरबी और गजली ) के साथ जोड़ता है। [67]

अर्थ के स्तर

 
रेजा अब्बासी संग्रहालय में 9वीं शताब्दी कुरान।
 
ब्रिटिश संग्रहालय में 11 वीं शताब्दी के उत्तरी अफ्रीकी कुरान।

सलफ़ी और ज़ाहिरी के विपरीत, शिया और सूफ़ी के साथ-साथ कुछ अन्य मुस्लिम दार्शनिकों का मानना ​​है कि कुरान का अर्थ शाब्दिक पहलू तक ही सीमित नहीं है। [68] उनके लिए, यह एक आवश्यक विचार है कि कुरान में भी आंतरिक पहलू हैं। हेनरी कॉर्बिन एक हदीस का वर्णन करता है जो मुहम्मद वापस जाता है:

क़ुरआन में बाहरी उपस्थिति और एक छिपी गहराई, एक असाधारण अर्थ और एक गूढ़ अर्थ है। बदले में यह गूढ़ अर्थ एक गूढ़ अर्थ छुपाता है (इस गहराई में खगोलीय क्षेत्रों की छवि के बाद गहराई होती है, जो एक-दूसरे के भीतर संलग्न होती हैं)। तो यह सात गूढ़ अर्थों (छिपी गहराई की सात गहराई) के लिए चला जाता है। [68]

इस विचार के अनुसार, यह भी स्पष्ट हो गया है कि कुरान का आंतरिक अर्थ अपने बाहरी अर्थ को खत्म या अमान्य नहीं करता है। इसके बजाय, यह आत्मा की तरह है, जो शरीर को जीवन देता है। कॉर्बिन इस्लामिक दर्शन में एक भूमिका निभाने के लिए कुरान को मानता है, क्योंकि नैनोविज्ञान स्वयं भविष्यवक्ता के साथ हाथ में आता है।

पाठ के ज़हीर (बाहरी पहलुओं) से निपटने वाली टिप्पणियों को ताफसीर कहा जाता है, और बैटिन से निपटने वाली हर्मेनेटिक और गूढ़ टिप्पणियों को ताविल ("व्याख्या" या "स्पष्टीकरण" कहा जाता है), जिसमें पाठ को इसकी शुरुआत में वापस लेना शामिल है। एक गूढ़ स्लंट के साथ टिप्पणीकारों का मानना ​​है कि कुरान का अंतिम अर्थ केवल भगवान के लिए जाना जाता है।[1] इसके विपरीत, कुरानिक शाब्दिकता , इसके बाद सलाफिस और जहीरिस , यह विश्वास है कि कुरान को केवल इसके स्पष्ट अर्थ में ही लिया जाना चाहिए।

पुनर्विनियोजन

पुनर्मूल्यांकन कुछ पूर्व मुसलमानों की हर्मेनियुटील शैली का नाम है जो ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए हैं। उनकी शैली या पुनरावृत्ति विज्ञापन और गैर-व्यवस्थित है और माफी मांगने की दिशा में तैयार है। व्याख्या की यह परंपरा निम्नलिखित प्रथाओं पर आधारित है: व्याकरण संबंधी पुनर्विचार, पाठ्यचर्या वरीयता, पुनर्प्राप्ति, और रियायत का पुनर्विचार। [69]

अनुवाद

मुख्य लेख: कुरआन के अनुवादों की सूची यह भी देखें: कुरान के अनुवादों की सूची कुरान का अनुवाद हमेशा समस्याग्रस्त और कठिन रहा है। कई लोग तर्क देते हैं कि कुरानिक पाठ को किसी अन्य भाषा या रूप में पुन: उत्पन्न नहीं किया जा सकता है। [70] इसके अलावा, एक अरबी शब्द के संदर्भ के आधार पर कई अर्थ हो सकते हैं, सटीक अनुवाद को और भी कठिन बनाते हैं। [24]

फिर भी, कुरान का अनुवाद अधिकांश अफ्रीकी, एशियाई और यूरोपीय भाषाओं में किया गया है।[71] [24] कुरान का पहला अनुवादक सलमान फारसी था , जिसने सातवीं शताब्दी के दौरान सूरत अल-फतिहा का अनुवाद फारसी में किया था। [24] हिंदू राजा मेहरक के अनुरोध पर अब्दुल्ला बिन उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ के आदेशों से कुरान का एक और अनुवाद अलवर ( सिंध , भारत , अब पाकिस्तान ) में 884 में पूरा हुआ था। [72]

कुरान के पहले पूर्ण प्रमाणित पूर्ण अनुवाद फारसी में 10 वीं और 12 वीं सदी के बीच किए गए थे। सामनिद राजा, मंसूर प्रथम (961- 976) ने कोरसैन के विद्वानों के समूह को मूल रूप से अरबी में, ताफसीर अल- ताबारी का अनुवाद करने का आदेश दिया। बाद में 11 वीं शताब्दी में, अबू मंसूर अब्दुल्ला अल-अंसारी के छात्रों में से एक ने फारसी में कुरान के एक पूर्ण ताफसीर को लिखा। 12 वीं शताब्दी में, नजम अल-दीन अबू हाफ्स अल-नासाफी ने कुरान का अनुवाद फारसी में किया था। सभी तीन पुस्तकों की पांडुलिपियां बचे हैं और कई बार प्रकाशित हुई हैं।

इस्लामी परंपरा में यह भी कहा गया है कि अनुवाद एबीसिनिया और बीजान्टिन सम्राट हेराकेलियस के सम्राट नेगस के लिए किए गए थे, क्योंकि दोनों को मुहम्मद द्वारा कुरान से छंद युक्त पत्र प्राप्त हुए थे । सदियों की शुरुआत में, अनुवादों की अनुमति एक मुद्दा नहीं था, लेकिन क्या कोई प्रार्थना में अनुवाद का उपयोग कर सकता था।

1936 में, 102 भाषाओं में अनुवाद ज्ञात थे। 2010 में, हुर्रियेट डेली न्यूज एंड इकोनॉमिक रिव्यू ने बताया कि कुरान को तेहरान में 18 वें अंतरराष्ट्रीय कुरान प्रदर्शनी में 112 भाषाओं में प्रस्तुत किया गया था।

पीटर के आदरणीय , लेक्स महुमेट स्यूडोप्रोफेट के लिए कुरान के केटटन के 1143 अनुवाद के रॉबर्ट , पश्चिमी भाषा ( लैटिन ) में सबसे पहले थे। अलेक्जेंडर रॉस ने एंड्रयू डु रियर द्वारा एल 'अलकोरन डी महोमेट (1647) के फ्रांसीसी अनुवाद से 1649 में पहला अंग्रेजी संस्करण पेश किया। 1734 में, जॉर्ज सेल ने कुरान के पहले विद्वानों का अनुवाद अंग्रेजी में किया; दूसरा 1937 में रिचर्ड बेल द्वारा और 1 9 55 में आर्थर जॉन आर्बेरी द्वारा एक और उत्पादित किया गया था। ये सभी अनुवादक गैर-मुसलमान थे। मुसलमानों द्वारा कई अनुवाद हुए हैं। अहमदीय मुस्लिम समुदाय ने 50 अलग-अलग भाषाओं में कुरान के अनुवाद प्रकाशित किए हैं पांच खंड वाली अंग्रेजी कमेंट्री और कुरान का अंग्रेजी अनुवाद ।

बाइबिल के अनुवाद के साथ, अंग्रेजी अनुवादकों ने कभी-कभी अपने आधुनिक या पारंपरिक समकक्षों पर पुरातन अंग्रेजी शब्दों और निर्माण का पक्ष लिया है; उदाहरण के लिए, दो व्यापक रूप से पढ़ने वाले अनुवादक, ए यूसुफ अली और एम। मार्मड्यूक पिकथल, अधिक आम " आप " के बजाय बहुवचन और एकवचन "ye" और "तू" का उपयोग करते हैं।

गुरुमुखी में कुरान शरीफ का सबसे पुराना गुरुमुखी अनुवाद पंजाब के मोगा जिले के गांव लैंडे में पाया गया है, जिसे 1911 में मुद्रित किया गया था।

सस्वर पाठ

पठन के नियम

देखें: तजवीद

कुरान का उचित पाठ ताजविद नामक एक अलग अनुशासन का विषय है जो विस्तार से निर्धारित करता है कि कुरान को कैसे पढ़ा जाना चाहिए, प्रत्येक व्यक्ति के अक्षर को कैसे उच्चारण किया जाना चाहिए, उन स्थानों पर ध्यान देने की आवश्यकता जहां विराम होना चाहिए, elisions के लिए , जहां उच्चारण लंबा या छोटा होना चाहिए, जहां अक्षरों को एक साथ सुनाया जाना चाहिए और जहां उन्हें अलग रखा जाना चाहिए, आदि। यह कहा जा सकता है कि यह अनुशासन कुरान के उचित पाठ के नियमों और विधियों का अध्ययन करता है और तीन मुख्य क्षेत्रों: व्यंजनों और स्वरों का उचित उच्चारण (कुरानिक ध्वनियों की अभिव्यक्ति), पठन में विराम के नियम और पठन की बहाली, और पाठ की संगीत और सुन्दर विशेषताएं।

गलत उच्चारण से बचने के लिए, अभिलेख जो अरबी भाषा के देशी वक्ताओं नहीं हैं मिस्र या सऊदी अरब जैसे देशों में प्रशिक्षण के कार्यक्रम का पालन करते हैं। कुछ मिस्र के पाठकों के पठन पढ़ने की कला के विकास में अत्यधिक प्रभावशाली थे। दक्षिणपूर्व एशिया विश्व स्तरीय पाठ के लिए जाना जाता है, जो कि जकार्ता के मारिया उलफाह जैसी महिला पाठकों की लोकप्रियता में प्रमाणित है।

दो प्रकार के पाठ हैं: मुरत्तल धीमी रफ्तार से है, जो अध्ययन और अभ्यास के लिए उपयोग किया जाता है। मुजावाड़ एक धीमी पठन को संदर्भित करता है जो प्रशिक्षित विशेषज्ञों द्वारा सार्वजनिक प्रदर्शन के रूप में तकनीकी कलात्मकता और सुन्दर मॉडुलन को बढ़ाता है। मुजवाड़ पाठक श्रोताओं को शामिल करने की इच्छा रखने के लिए दर्शकों पर निर्देशित और निर्भर है।

संस्करण पाठ

देखें: क़िरात

 
Vocalization अंकों के साथ कुरान का पृष्ठ

9वीं शताब्दी के अंत तक विशिष्ट स्वर ध्वनियों को इंगित करने वाले वोकलाइजेशन मार्कर अरबी भाषा में पेश किए गए थे। पहली कुरानिक पांडुलिपियों में इन अंकों की कमी थी, इसलिए कई पाठ स्वीकार्य रहते हैं। दोषपूर्ण स्वर की प्रकृति द्वारा अनुमत पाठ के रीडिंग में भिन्नता 10 वीं शताब्दी के दौरान क़राअत की संख्या में वृद्धि हुई। बगदाद, इब्न मुजाहिद से 10 वीं शताब्दी के मुस्लिम विद्वान कुरान के सात स्वीकार्य पाठ क़राअत स्थापित करने के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने विभिन्न क़राअत और उनकी भरोसेमंदता का अध्ययन किया और मक्का, मदीना, कूफ़ा, बसरा और दमिश्क के शहरों से सात 8 वीं शताब्दी के क़रीयों को चुना। इब्न मुजाहिद ने यह नहीं समझाया कि उन्होंने छः या दस की बजाय सात पाठकों को क्यों चुना, लेकिन यह एक भविष्यवाणी परंपरा (मुहम्मद की कहानियों ) से संबंधित हो सकता है कि कुरान को सात " अरुफ " (अर्थात् सात अक्षरों या मोड) में प्रकट किया गया था। आज, सबसे लोकप्रिय क़ारी हाफ़िज़ (डी। 796) और वारश (डी। 812) द्वारा प्रेषित हैं जो इब्न मुजाहिद के दो पाठकों, आसिम इब्न अबी अल-नजुद (कुफा, डी। 745) और नफी अल के अनुसार हैं -मदानी (मदीना, डी। 785) क्रमशः। काहिरा के प्रभावशाली मानक कुरान (1924) संशोधित स्वर संकेतों और मिनटों के विवरण के लिए अतिरिक्त प्रतीकों का एक सेट का उपयोग करता है और 'असिम के पाठ, कुफा के 8 वीं शताब्दी के पाठ पर आधारित है। यह संस्करण कुरान के आधुनिक प्रिंटिंग के लिए मानक बन गया है।

कुरान के संस्करण रीडिंग एक प्रकार का टेक्स्ट संस्करण हैं। मेलचेर के मुताबिक, अधिकांश असहमतिओं को स्वरों के साथ आपूर्ति करने के लिए करना पड़ता है, उनमें से अधिकतर अंततः डायलेक्टल मतभेदों को प्रतिबिंबित नहीं करते हैं और लगभग आठ असहमतिओं में से एक को ऊपर या नीचे बिंदुओं को रखना है या नहीं लाइन।

नासर विभिन्न उपप्रकारों में भिन्न क़राअत को वर्गीकृत करता है, जिसमें आंतरिक स्वर, लंबे स्वर, रत्न (शद्दाह), आकलन और परिवर्तन शामिल हैं।

कभी-कभी, एक प्रारंभिक कुरान एक विशेष पढ़ने के साथ संगतता दिखाता है। 8 वीं शताब्दी से एक सीरियाई पांडुलिपि इब्न अमीर विज्ञापन-दीमाशकी के पढ़ने के अनुसार लिखी गई है। एक और अध्ययन से पता चलता है कि इस पांडुलिपि में हेसी क्षेत्र का मुखरता है।

लेखन और मुद्रण

लेखन

19वीं शताब्दी में मुद्रण को व्यापक रूप से अपनाया जाने से पहले, कुरान को कॉलिग्राफर्स और प्रतिवादियों द्वारा बनाई गई पांडुलिपियों में प्रसारित किया गया था। सबसे पुरानी पांडुलिपियों को इजाजी- टाइप स्क्रिप्ट में लिखा गया था। हिजाजी शैली पांडुलिपियों ने फिर भी पुष्टि की है कि लेखन में कुरान का प्रसारण शुरुआती चरण में शुरू हुआ था। शायद नौवीं शताब्दी में, स्क्रिप्टों में मोटे स्ट्रोक की सुविधा शुरू हुई, जिन्हें परंपरागत रूप से कुफिक स्क्रिप्ट के रूप में जाना जाता है। नौवीं शताब्दी के अंत में, कुरान की प्रतियों में नई स्क्रिप्ट दिखाई देने लगे और पहले की लिपियों को प्रतिस्थापित किया। पिछली शैली के उपयोग में विघटन का कारण यह था कि उत्पादन के लिए बहुत लंबा समय लगा और प्रतियों की मांग बढ़ रही थी। इसलिए कॉपीिस्ट सरल लेखन शैलियों का चयन करेंगे। 11 वीं शताब्दी की शुरुआत में, नियोजित लेखन की शैलियों मुख्य रूप से नाख , मुक्काक , रेयनी और दुर्लभ मौकों पर, थुलुथ लिपि थीं । नाख बहुत व्यापक उपयोग में था। उत्तरी अफ्रीका और स्पेन में, मगरीबी शैली लोकप्रिय थी। बिहारी लिपि अधिक विशिष्ट है जिसका उपयोग पूरी तरह से भारत के उत्तर में किया जाता था। फारसी दुनिया में नास्तिक शैली का शायद ही कभी इस्तेमाल किया जाता था। [17][73]

शुरुआत में, कुरान में वोकलिज़ेशन चिह्न नहीं था। जैसा कि हम आज जानते हैं, वोकलाइजेशन की प्रणाली, नौवीं शताब्दी के अंत में पेश की गई प्रतीत होती है। चूंकि अधिकांश मुसलमानों के लिए एक पांडुलिपि खरीदने के लिए यह बहुत महंगा होता, इसलिए कुरान की प्रतियां मस्जिदों में लोगों के लिए सुलभ बनाने के लिए आयोजित की जाती थीं। ये प्रतियां अक्सर 30 भागों या जुज़ की श्रृंखला का रूप लेती हैं । उत्पादकता के मामले में, तुर्क प्रतिवादी सर्वश्रेष्ठ उदाहरण प्रदान करते हैं। यह व्यापक मांग, मुद्रण विधियों की अलोकप्रियता और सौंदर्य कारणों के जवाब में था। [74]

मुद्रण

 
कुरान 6 किताबों में बांटा गया। दार इब्न कथिर, दमिश्क-बेरूत द्वारा प्रकाशित।

कुरान से अर्क की लकड़ी-ब्लॉक मुद्रण 10 वीं शताब्दी के शुरू में रिकॉर्ड पर है। [75]

मध्य पूर्वी ईसाईयों के बीच वितरण के लिए पोप जूलियस द्वितीय (आर 1503-1512) द्वारा अरबी जंगम प्रकार के मुद्रण का आदेश दिया गया था। [76] चलने वाले प्रकार के साथ मुद्रित पहला पूर्ण कुरान वेनिस में 1537/1538 में पगिनिनो पागनिनी और एलेसेंड्रो पागनिनी द्वारा तुर्क बाजार के लिए बनाया गया था। दो और संस्करणों पादरी द्वारा प्रकाशित किए जाते शामिल अब्राहम हिंकेलमैन में हैम्बर्ग 1694 में, और इतालवी पुजारी द्वारा लुडोविको मराककी में पडुआ लैटिन अनुवाद व टीका के साथ 1698 में।

इस अवधि के दौरान कुरान की मुद्रित प्रतियां मुस्लिम कानूनी विद्वानों से मजबूत विरोध के साथ मुलाकात की : अरबी में कुछ भी प्रिंट करना 1483 और 1726 के बीच तुर्क साम्राज्य में प्रतिबंधित था -शुरुआत में, मृत्यु के दंड पर भी। 1726 में अरबी लिपि में छपाई पर तुर्क प्रतिबंध पर इब्राहिम म्यूटेरिकिका के अनुरोध पर गैर-धार्मिक ग्रंथों के लिए उठाया गया था , जिन्होंने 1729 में अपनी पहली पुस्तक मुद्रित की थी। बहुत कम किताबें, और कोई धार्मिक ग्रंथ मुद्रित नहीं किया गया था एक और शताब्दी के लिए तुर्क साम्राज्य में।

1786 में, रूस के कैथरीन द ग्रेट ने सेंट पीटर्सबर्ग में "तातार और तुर्की ऑर्थोग्राफी" के लिए एक प्रिंटिंग प्रेस प्रायोजित किया , जिसमें एक मुल्ला उस्मान इस्माइल अरबी प्रकार के उत्पादन के लिए ज़िम्मेदार था। 1787 में इस प्रेस के साथ एक कुरान मुद्रित किया गया था, 1790 और 1793 में सेंट पीटर्सबर्ग में और 1 99 3 में कज़ान में पुनर्निर्मित किया गया था । ईरान में मुद्रित पहला संस्करण तेहरान (1828) में दिखाई दिया, तुर्की में एक अनुवाद 1842 में काहिरा में मुद्रित किया गया था, और पहली आधिकारिक स्वीकृत ओटोमन संस्करण अंततः कॉन्स्टेंटिनोपल में 1875 और 1877 के बीच दो खंडों के सेट के रूप में मुद्रित किया गया था, पहले संवैधानिक युग के दौरान । [77][78]

गुस्ताव फ्लूजेल 1834 में कुरान के एक संस्करण प्रकाशित में लीपज़िग है, जो एक सदी के करीब के लिए आधिकारिक बने रहे, जब तक कैरो के अल अजहर विश्वविद्यालय कुरान के एक संस्करण प्रकाशित 1924 में इस संस्करण एक लंबे तैयारी के परिणाम के रूप में यह कुरआन मानकीकृत था ऑर्थोग्राफी और बाद के संस्करणों का आधार बना हुआ है। [17]

आलोचना

ब्रह्मांड और पृथ्वी के निर्माण पर क़ुरआन के बयान, मानव जीवन की उत्पत्ति, जीवन-ज्ञान, पृथ्वी विज्ञान और इतने पर आलोचकों की आलोचना की गई है।[79][80] [81][82]

अन्य साहित्य के साथ संबंध

 
वर्जिन मैरी, जिसका जन्म करीब आ रहा है, पेड़ को ताजा खजूर के फल के लिए हिलाता है, विषय मैथ्यू के झूठे-सुसमाचार से लिया गया है। [83]

बाइबल

यह भी देखें: बाइबिल के वर्णन और कुरान और तोरात

यह वह है जिसने आपको भेजा (कदम दर कदम), सच में, पुस्तक, यह पुष्टि करते हुए कि इससे पहले क्या हुआ; और उसने मानव जाति के लिए एक गाइड के रूप में, इस से पहले कानून (मूसा के) और सुसमाचार (यीशु के) को भेजा, और उसने मानदंड (सही और गलत के बीच निर्णय) भेजा।- कुरान 3: 3 ( यूसुफ अली )

कुरान पूर्व पुस्तकों (तोराह और इंजील (सुसमाचार)) के साथ संबंधों के बारे में अच्छी तरह से बोलता है और उनकी समानताओं को उनके अद्वितीय उत्पत्ति के गुण देता है और कहता है कि उन सभी को एक अल्लाह (ईश्वर) ने प्रकट किया है। [84]

कुरान की भाषा थी समान करने के लिए सिरिएक भाषा। कुरान यहूदी और ईसाई पवित्र किताबों (तनाख, बाइबिल) और भक्ति साहित्य (अपोक्राफा, मिड्रैश) में सुनाई गई कई लोगों और घटनाओं की कहानियों को याद करता है, हालांकि यह कई विवरणों में भिन्न है। आदम, इदरीस, नूह, एबर, सालेह, इब्राहीम, लूत, इश्माईल, इसहाक़, याकूब, यूसुफ़, अय्यूब, शोएब, दाऊद, सुलैमान, एलिय्याह, एलीशा, यूनुस, हारून, मूसा, ज़कारिया, यूहन्ना ईसा का उल्लेख कुरान में रसूल के और नबी के रूप में किया गया है (इस्लाम के पैगम्बर को देखें)। वास्तव में, कुरान में किसी अन्य व्यक्ति की तुलना में मूसा का अधिक उल्लेख किया गया है। मुहम्मद की तुलना में कुरान में ईसा का अक्सर उल्लेख किया गया है, जबकि मरियम (मैरी) का उल्लेख क़ुरान में किया गाया है और इंजील में नहीं। [85]

रिश्ते

बहाई और द्रूस जैसे कुछ गैर-मुस्लिम समूह कुरान को पवित्र मानते हैं। यूनिटियन यूनिवर्सलिस्ट भी कुरान को अपवित्र मानता हैं। डायटेसेरॉन, जेम्स की प्रोटेवांगेलीन, इन्फंसी गोस्पेल ऑफ़ थॉमस, गोस्पेल ऑफ़ सूडो मैथ्यूस जैसी किताबों के सारांश कुरआन से असमानताएं रखते हैं। [86]

अरब लेखन

 
कुरान से पृष्ठ ('उमर-ए अकता')। ईरान, अफगानिस्तान, तिमुरीद राजवंश, लगभग 1400. पेपर मुकाक्काक लिपि पर ओपेक वॉटरकलर, स्याही और सोना। 170 × 109 सेमी (66 15 / 16 × 42 15 / 16 में)। ऐतिहासिक क्षेत्र: उजबेकिस्तान।

कुरान के अवतरण के बाद, और इस्लाम के सामान्य उदय, अरबी वर्णमाला तेजी से एक कला रूप में विकसित हुआ। [24]

शिकागो विश्वविद्यालय में पास पूर्वी भाषाओं और सभ्यताओं के प्रोफेसर वदाद कादी, और यंगस्टाउन स्टेट यूनिवर्सिटी में इस्लामी अध्ययन के प्रोफेसर मुस्तसिर मीर, के मुताबिक: [87]

यद्यपि अरबी, एक भाषा और साहित्यिक परंपरा के रूप में, मुहम्मद की भविष्यवाणी गतिविधि के समय काफी अच्छी तरह से विकसित हुई थी, यह इस्लाम के उद्भव के बाद ही अरबी में स्थापित संस्थापक के साथ थी, कि भाषा अभिव्यक्ति की अपनी अत्यधिक क्षमता तक पहुंच गई, और साहित्य जटिलता और परिष्कार का उच्चतम बिंदु है। दरअसल, शायद यह कहना बेहद जबरदस्त नहीं है कि कुरान शास्त्रीय और बाद के शास्त्रीय अरबी साहित्य के निर्माण में सबसे विशिष्ट ताकतों में से एक था।

मुख्य क्षेत्रों जिसमें कुरान ने अरबी साहित्य पर ध्यान देने योग्य प्रभाव डाला, वे डिक्शनरी और थीम हैं; अन्य क्षेत्र कुरान के साहित्यिक पहलुओं से विशेष रूप से शपथ (क्यूवी), रूपक, रूपरेखा और प्रतीकों से संबंधित हैं। जहां तक ​​उपन्यास का सवाल है, कोई भी कह सकता है कि कुरान के शब्द, मुहावरे और अभिव्यक्तियां, विशेष रूप से "भारित" और सूत्रवादी वाक्यांश, व्यावहारिक रूप से साहित्य के सभी शैलियों में दिखाई देते हैं और इस तरह के बहुतायत में कि उनके पूर्ण रिकॉर्ड को संकलित करना असंभव है। कुरान ने न केवल अपने संदेश को व्यक्त करने के लिए एक पूरी तरह से नई भाषाई कॉर्पस बनाया है, बल्कि यह पुराने अर्थों के साथ पुरानी, ​​पूर्व इस्लामी शब्दों को भी संपन्न करता है और यह उन अर्थों से है जो भाषा में और बाद में साहित्य में जड़ें लेते हैं ...

मान्यताएँ

अल्लाह ने इस धरती पर मनुष्य को अपना ख़लीफ़ा (प्रतिहारी) ‎बनाकर भेजा है। भेजने से पूर्व उसने हर व्यक्ति को ठीक ठीक समझा दिया ‎था कि वे थोड़े समय के लिए धरती पर जा रहे हैं, उसके बाद उन्हें उसके ‎पास लौट कर आना है। जहाँ उसे अपने उन कार्यों का अच्छा या बुरा बदला ‎मिलेगा जो उसने धरती पर किए। ‎

इस धरती पर मनुष्य को कार्य करने की स्वतंत्रता है। धरती के ‎साधनों को उपयोग करने की छूट है। अच्छे और बुरे कार्य को करने पर उसे ‎तक्ताल कोई रोक या इनाम नहीं है। किन्तु इस स्वतंत्रता के साथ ईश्वर ने ‎धरती पर बसे मनुष्यों को ठीक उस रूप में जीवन गुज़ारने के लिए ईश्वरीय ‎आदेशों के पहुंचाने का प्रबंध किया और धरती के हर भाग में उसने अपने ‎दूत (पैग़म्बर) भेजे, जिन्होंने मनुष्यों तक ईश्वर का संदेश भेजा। कहा जाता ‎है कि ऐसे ईशदूतों की संख्या 1,84,000 के क़रीब रही। इस सिलसिले की ‎अंतिम कड़ी हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) थे। आप (सल्ल.) के बाद अब कोई ‎दूत नहीं आएगा किन्तु हज़रत ईसा (अलै.) अपने जीवन के शेष वर्ष इस ‎धरती पर पुन: गुज़ारेंगे। ईश्वर की अंतिम किताब आपके हाथ में है कोई ‎और ईश्वरीय किताब अब नहीं आएगी।

हज़ारों वर्षों तक निरंतर आने वाले पैग़म्बरों का चाहे वे धरती के ‎किसी भी भाग में अवतरित हुए हों, उनका संदेश एक था, उनका मिशन एक ‎था, ईश्वरीय आदेश के अनुसार मनुष्यों को जीना सिखाना। हज़ारों वर्षों का ‎समय बीतने के कारण ईश्वरीय आदेशों में मनुष्य अपने विचार, अपनी ‎सुविधा जोड़ कर नया धर्म बना लेते और मूल धर्म को विकृत कर एक ‎आडम्बर खड़ा कर देते और कई बार तो ईश्वरीय आदेशों के विपरित कार्य ‎करते। क्यों कि हर प्रभावी व्यक्ति अपनी शक्ति के आगे सब को नतमस्तक ‎देखना चाहता था।

आख़िर अंतिम नबी हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) क़ुरआन के साथ इस ‎धरती पर आए और क़ुरआन ईश्वर के इस चैलेंज के साथ आया कि इसकी ‎रक्षा स्वयं ईश्वर करेगा। 1500 वर्ष का लम्बा समय यह बताता है कि ‎क़ुरआन विरोधियों के सारे प्रयासों के बाद भी क़ुरआन के एक शब्द में भी ‎परिवर्तन संभव नहीं हो सका है। यह किताब अपने मूल स्वरूप में प्रलय ‎तक रहेगी। इसके साथ क़ुरआन का यह चैलेंज भी अपने स्थान पर अभी ‎तक क़ायम है कि जो इसे ईश्वरीय ग्रंथ नहीं मानते हों तो वे इस जैसी पूरी ‎किताब नहीं उसका एक छोटा भाग ही बना कर दिखा दें।

क़ुरआन के इस रूप को जानने के बाद यह जान लीजिए कि यह ‎किताब रूप में हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) को नहीं दी गई कि इसे पढ़कर ‎लोगों को सुना दें और छाप कर हर घर में रख दें। बल्कि समय समय पर ‎‎23 वर्षों तक आवश्यकता अनुसार यह किताब अवतरित हुई और आप ‎‎(सल्ल.) ने ईश्वर की मर्ज़ी से उसके आदेशों के अनुसार धरती पर वह ‎समाज बनाया जैसा ईश्वर का आदेश था।

पश्चिमी विचारक एच.जी.वेल्स के ‎अनुसार इस धरती पर प्रवचन तो बहुत दिए गए किन्तु उन प्रवचनों के ‎आधार पर एक समाज की रचना पहली बार हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने ‎करके दिखाई। यहाँ यह जानना रूचिकर होगा कि वेल्स इस्लाम प्रेमी नहीं ‎बल्कि इस्लाम विरोधी है और उसकी किताबें इस्लाम विरोध में प्रकाशित हुई ‎हैं।

वैज्ञानिक तथ्य ‎जो अब तक हमें ज्ञात हैं, क़ुरआन में छुपे हैं और ऐसे सैकड़ों स्थान है जहां ‎लगता है कि मनुष्य ज्ञान अभी उस हक़ीक़त तक नहीं पहुंचा है। बार बार ‎क़ुरआन आपको विचार करने की दावत देता है। ज़मीन और आसमान के ‎रहस्यों को जानने का आमंत्रण देता हैं।

एक उलझन और सामने आती है। कुरआन के दावे के अनुसार वह ‎पूरी धरती के मनुष्यों के लिए और शेष समय के लिए है, किन्तु उसके ‎संबोधित उस समय के अरब नज़र आते हैं। सरसरी तौर पर यही लगता है ‎कि क़ुरआन उस समय के अरबों के लिए ही अवतरित किया गया था लेकिन आप जब भी किसी ऐसे स्थान पर पहुँचें जब यह लगे कि यह बात केवल ‎एक ख़ास काल तथा देश के लिए है, तब वहाँ रूक कर विचार करें या इसे ‎नोट करके बाद में इस पर विचार करें तो आप को हर बार लगेगा कि ‎मनुष्य हर युग और हर भू भाग का एक है और उस पर वह बात ठीक वैसी ‎ही लागू होती है, जैसी उस समय के लोग|अरबों पर लागू होती थी।

मुसलमानों के लिए

मुसलमानों के लिए क़ुरआन के संबंध में बड़ी बड़ी किताबें लिखी गई ‎हैं और लिखी जा सकती हैं। यहां उ¬द्देश्य क़ुरआन का एक संक्षिप्त परिचय ‎और उसके उम्मत पर क्या हक़ हैं, यहा स्पष्ट करना है।

हज़रत अली (रज़ि.) से रिवायत की गई एक हदीस है। हज़रत हारिस ‎फ़रमाते हैं कि मैं मस्जिद में दाखिल हुआ तो देखा कि कुछ लोग कुछ ‎समस्याओं में झगड़ा कर रहे हैं। मैं हज़रत अली (रज़ि.) के पास गया और ‎उन्हें इस बात की सूचना दी। हज़रत अली (रज़ि.) ने फरमाया- क्या यह ‎बातें होने लगीं?
मैंने कहा, जी हां।
हज़रत अली (रज़ि.) ने फरमाया- याद ‎रखो मैंने रसूल अल्लाह (सल्ल.) से सुना है। आप (सल्ल.) ने फरमाया- ‎खबरदार रहो निकट ही एक बड़ा फ़ितना सर उठाएगा मैंने अर्ज़ किया- इस ‎फ़ितने में निजात का ज़रिया क्या होगा?
फरमाया-अल्लाह की किताब।

  • इसमें तुमसे पूर्व गुज़रे हुए लोगों के हालात हैं।
  • तुम से बाद होने वाली बातों की सूचना है।
  • ‎तुम्हारे आपस के मामलात का निर्णय है।‎
  • ‎यह एक दो टूक बात हैं, हंसी दिल्लगी की नहीं है।
  • ‎जो सरकश इसे छोड़ेगा, अल्लाह उसकी कमर तोड़ेगा।
  • ‎और जो कोई इसे छोड़ कर किसी और बात को अपनी हिदायत का ‎ज़रिया बनाएगा। अल्लाह उसे गुमराह कर देगा।
  • ‎ख़ुदा की मज़बूत रस्सी यही है।
  • ‎यही हिकमतों से भरी हुई पुन: स्मरण (याददेहानी) है, यही सीधा मार्ग ‎है।
  • ‎इसके होते इच्छाऐं गुमराह नहीं करती हैं।‎
  • ‎और ना ज़बानें लड़खड़ाती हैं।
  • ‎ज्ञानवान का दिल इससे कभी नहीं भरता। ‎
  • ‎इसे बार बार दोहराने से उसकी ताज़गी नहीं जाती (यह कभी पुराना नहीं ‎होता)।
  • ‎इसकी अजीब (विचित्र) बातें कभी समाप्त नहीं होंगी।
  • ‎यह वही है जिसे सुनते ही जिन्न पुकार उठे थे, निसंदेह हमने ‎अजीबोग़रीब क़ुरआन सुना, जो हिदायत की ओर मार्गदर्शन करता है, ‎अत: हम इस पर ईमान लाऐ हैं।
  • ‎जिसने इसकी सनद पर हां कहा- सच कहा।‎
  • ‎जिसने इस पर अमल किया- दर्जा पाएगा।‎
  • ‎जिसने इसके आधार पर निर्णय किया उसने इंसाफ किया।
  • ‎जिसने इसकी ओर दावत दी, उसने सीधे मार्ग की ओर राहनुमाई की।

क़ुरआन का सारा निचोड़ इस एक हदीस में आ जाता है। क़ुरआन ‎धरती पर अल्लाह की अंतिम किताब उसकी ख्याति के अनुरूप है। यह ‎अत्यंत आसान है और यह बहुत कठिन भी है। आसान यह तब है जब इसे ‎याद करने (तज़क्कुर) के लिए पढ़ा जाए। यदि आप की नियत में खोट नहीं ‎है और क़ुरआन से हिदायत चाहते हैं तो अल्लाह ने इस किताब को आसान ‎बना दिया है। समझने और याद करने के लिए यह विश्व की सबसे आसान ‎किताब है। खुद क़ुरआन मे है 'और हमने क़ुरआन को समझने के लिए ‎आसान कर दिया है, तो कोई है कि सोचे और समझे?' (सूर: अल क़मर:17)‎

दूसरी ओर दूरबीनी (तदब्बुर) की दृष्टि से यह विश्व की कठिनतम ‎किताब है पूरी पूरी ज़िंदगी खपा देने के बाद भी इसकी गहराई नापना संभव ‎नहीं। इस दृष्टि से देखा जाए तो यह एक समुद्र है। सदियां बीत गईं और ‎क़ुरआन का चमत्कार अब भी क़ायम है। और सदियां बीत जाऐंगी किन्तु ‎क़ुरआन का चमत्कार कभी समाप्त नहीं होगा।

केवल हिदायत पाने के लिए आसान तरीक़ा यह है कि अटल आयतों ‎‎(मुहकमात) पर ध्यान रहे और आयतों (मुतशाबिहात) पर ईमान हो कि यह ‎भी अल्लाह की ओर से हैं। दुनिया निरंतर प्रगति कर रही है, मानव ज्ञान ‎निरंतर बढ़ रहा है, जो क़ुरआन में कल मुतशाबिहात था आज वह स्पष्ट हो ‎चुका है, और कल उसके कुछ ओर भाग स्पष्ट होंगे।

इसी तरह ज्ञानार्जन के लिए भी दो विभिन्न तरीक़े अपनाना होंगे। ‎आदेशों के लिहाज़ से क़ुरआन में विचार करने वाले को पीछे की ओर यात्रा ‎करनी होगी। क़ुरआन के आदेश का अर्थ धर्म शास्त्रियों (फ़ुह्लाँहा), विद्वानों ‎‎(आलिमों) ने क्या लिया, तबाताबईन (वे लोग जिन्होने ताबईन को देखा। ), ‎ताबईन (वे लोग जिन्होने सहाबा (हज़रत मुहम्मद (सल्ल.)) के साथियों को ‎देखा। ) और सहाबा ने इसका क्या अर्थ लिया। यहां तक कि ख़ुद को हज़रत ‎मुहम्मद (सल्ल.) के क़दमों तक पहुंचा दे कि ख़ुद साहबे क़ुरआन का इस ‎बारे में क्या आदेश था?‎

दूसरी ओर ज्ञानविज्ञान के लिहाज़ से आगे और निरंतर आगे विचार ‎करना होगा। समय के साथ ही नहीं उससे आगे चला जाए। मनुष्य के ज्ञान ‎की सतह निरंतर ऊंची होती जा रही है। क़ुरआन में विज्ञान का सर्वोच्च स्तर ‎है उस पर विचार कर नए अविष्कार, खोज और जो वैज्ञानिक तथ्य हैं उन ‎पर कार्य किया जा सकता है।

ख़ुदा का चमत्कार (क़ुदरत)

मौअजज़ा उस चमत्कार को कहते हैं जो किसी नबी या ‎रसूल के हाथ पर हो और मानव शक्ति से परे हो, जिस पर मानव बुध्दि ‎हैरान हो जाए।‎

हर युग में जब भी कोई रसूल (ईश दूत) ईश्वरीय आदेशों को मानव ‎तक पहुँचता, तब उसे अल्लाह की ओर से चमत्कार दिए जाते थे। हज़रत ‎मूसा (अलै.) को असा (हाथ की लकड़ी) दी गई, जिससे कई चमत्कार ‎दिखाए गये। हज़रत ईसा (अलै.) को मुर्दों को जीवित करना, बीमारों को ‎ठीक करने का मौअजज़ा दिया गया। किसी भी नबी का असल मौअजज़ा वह ‎है जिसे वह दावे के साथ पेश करे। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के हाथ पर ‎सैकड़ों मौअजज़े वर्णित हैं, किन्तु जो दावे के साथ पेश किया गया और जो ‎आज भी चमत्कार के रूप में विश्व के समक्ष मौजूद है, वह है क़ुरआन ‎जिसका यह चेलेंज़ दुनिया के समक्ष अनुत्तरित है कि इसके एक भाग जैसा ‎ही बना कर दिखा दिया जाए। यह दावा क़ुरआन में कई स्थान पर किया ‎गया। ‎

क़ुरआन पूर्ण रूप से सुरक्षित रहेगा, इस दावे को 1500 वर्ष बीत गए ‎और क़ुरआन सुरक्षित है, पूर्ण सुरक्षित है। यह सिद्ध हो चुका है, जो एक ‎चमत्कार है।‎

क़ुरआन विज्ञान की कसौटी पर खरा उतरा है, और उसके वैज्ञानिक ‎वर्णनों के आगे वैज्ञानिक नतमस्तक हैं। यह भी एक चमत्कार है। 1500 वर्ष ‎पूर्व अरब के रेगिस्तान में एक अनपढ़ व्यक्ति ने ऐसी किताब प्रस्तुत की जो ‎बीसवीं सदी के सारे साधनों के सामने अपनी सत्यता ज़ाहिर कर रही है। यह ‎कार्य क़ुरआन के अतिरिक्त किसी अन्य किताब ने किया हो तो विश्व उसका ‎नाम जानना चाहेगा। क़ुरआन का यह चमत्कारिक रूप आज हमारे लिए है ‎और हो सकता है आगे आने वाले समय के लिए उसका कोई और ‎चमत्कारिक रूप सामने आए।

जिस समय क़ुरआन अवतारित हुआ उस युग में उसका मुख्य ‎चमत्कार उसका वैज्ञानिक आधार नहीं था। उस युग में क़ुरआन का ‎चमत्कार था उसकी भाषा, साहित्य, वाग्मिता, जिसने अपने समय के अरबों ‎के भाषा ज्ञान को झकझोर दिया था। यहां स्पष्ट करना उचित होगा कि उस ‎समय के अरबों को अपने भाषा ज्ञान पर इतना गर्व था कि वे शेष विश्व के ‎लोगों को अजमी (गूंगा) कहते थे। क़ुरआन की शैली के कारण अरब के ‎भाषा ज्ञानियों ने अपने घुटने टेक दिए।

इंक़लाबी किताब

क़ुरआन ऐसी किताब है जिसके आधार पर एक क्रांति ‎लाई गई। रेगिस्तान के ऐसे अनपढ़ लोगों को जिनका विश्व के नक्शे में उस ‎समय कोई महत्व नहीं था। क़ुरआन की शिक्षाओं के कारण, उसके ‎प्रस्तुतकर्ता की ट्रेनिंग ने उन्हे उस समय की महान शाक्तियों के समक्ष ला ‎खड़ा किया और एक ऐसे क़ुरआनी समाज की रचना मात्र 23 वर्षों में की ‎गई जिसका उत्तर विश्व कभी नहीं दे सकता।

आज भी दुनिया मानती है कि क़ुरआन और हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ‎ने एक आदर्श समाज की रचना की। इस दृष्टि से यदि क़ुरआन का अध्ययन ‎किया जाए तो आपको उसके साथ क़दम मिला कर चलना होगा। उसकी ‎शिक्षा पर अमल करें। केवल निजी जीवन में ही नहीं बल्कि सामाजिक, ‎राजनैतिक और क़ानूनी क्षैत्रों में, तब आपके समक्ष वे सारे चरित्र जो क़ुरआन ‎में वर्णित हैं, जीवित नज़र आऐंगे। वे सारी कठिनाई और वे सारी परेशानी ‎सामने आजाऐंगी। तन, मन, धन, से जो गिरोह इस कार्य के लिए उठे तो ‎क़ुरआन की हिदायत हर मोड़ पर उसका मार्ग दर्शन करेगी।

अल्लाह की रस्सी

क़ुरआन अल्लाह की रस्सी है। इस बारे में तिरमिज़ी ‎में हज़रत ज़ैद बिन अरक़म (रज़ि.) द्वारा वर्णित हदीस है जिसमें कहा गया ‎है कि क़ुरआन अल्लाह की रस्सी है जो ज़मीन से आसामान तक तनी है। ‎यह शब्द हुज़ूर (सल्ल.) के है जिन्हे हज़रत ज़ैद (रज़ि.) ने वर्णित किया है। ‎

तबरानी में वर्णित एक और हदीस है जिसमें कहा गया है कि एक ‎दिन हुज़ूर (सल्ल.) मस्जिद में तशरीफ लाए तो देखा कुछ लोग एक कोने ‎में बैठे क़ुरआन पढ़ रहे हैं और एक दूसरे को समझा रहे हैं। यह देख कर ‎आप (सल्ल.) के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। आप (सल्ल.) सहाबा के ‎उस गुट के पास पहुंचे और उन से कहा- क्या तुम मानते हो कि अल्लाह के ‎अतिरिक्त कोई अन्य माबूद (ईश) नहीं है, मैं अल्लाह का रसूल हुँ और ‎क़ुरआन अल्लाह की किताब है? सहाबा ने कहा, या रसूल अल्लाह हम ‎गवाही देते हैं कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई माबूद नहीं, आप अल्लाह के ‎रसूल हैं और क़ुरआन अल्लाह की किताब है। तब आपने कहा, खुशियां ‎मानाओ कि क़ुरआन अल्लाह की वह रस्सी है जिसका एक सिरा‎ उसके हाथ में है और दूसरा तुम्हारे हाथ में। ‎

क़ुरआन अल्लाह की रस्सी इस अर्थ में भी है कि यह मुसलमानों को ‎आपस में बांध कर रखता है। उनमें विचारों की एकता, मत भिन्नता के ‎समय अल्लाह के आदेशों से निर्णय और जीवन के लिए एक आदर्श नमूना ‎प्रस्तुत करता है। ‎

ख़ुद क़ुरआन में है कि अल्लाह की रस्सी को मज़बुती से पकड़ लो। ‎क़ुरआन के मूल आधार पर मुसलमानों के किसी गुट में कोई टकराव नहीं ‎है।

क़ुरआन का हक़ क़ुरआन के हर मुसलमान पर पांच हक़ हैं, जो उसे ‎अपनी शाक्ति और सामर्थ्य के अनुसार पूर्ण करना चाहिए।

  1. ‎ईमान: हर मुसलमान क़ुरआन पर ईमान रखे जैसा कि ईमान ‎का हक़ है अर्थात केवल ज़बान से इक़रार नहीं हो, दिल से यक़ीन रखे कि ‎यह अल्लाह की किताब है।
  2. ‎तिलावत: क़ुरआन को हर मुसलमान निरंतर पढ़े जैसा कि पढ़ने ‎का हक़ है अर्थात उसे समझ कर पढ़े। पढ़ने के लिए तिलावत का शब्द खुद ‎क़ुरआन ने बताया है, जिसका अरबी में शाब्दिक अर्थ है To Follow (पीछा ‎करना)। पढ़ कर क़ुरआन पर अमल करना (उसके पीछे चलना) यही ‎तिलावत का सही हक़ है। खुद क़ुरआन कहता है और वे इसे पढ़ने के हक़ ‎के साथ पढ़ते हैं। (2:121) इसका विद्वानों ने यही अर्थ लिया है कि ध्यान से ‎पढ़ना, उसके आदेशों में कोई फेर बदल नहीं करना, जो उसमें लिखा है उसे ‎लोगों से छुपाना नहीं। जो समझ में नहीं आए वह विद्वानों से जानना। पढ़ने ‎के हक़ में ऐसी समस्त बातों का समावेश है।
  3. ‎समझना: क़ुरआन का तीसरा हक़ हर मुसलमान पर है, उसको ‎पढ़ने के साथ समझना और साथ ही उस पर विचार ग़ौर व फिक्र करना। ‎खुद क़ुरआन ने समझने और उसमें ग़ौर करने की दावत मुसलमानों को दी ‎है।
  4. अमल: क़ुरआन को केवल पढ़ना और समझना ही नहीं। ‎मुसलमान पर उसका हक़ है कि वह उस पर अमल भी करे। व्यक्तिगत रूप ‎में और सामजिक रूप मे भी। व्यक्तिगत मामले, क़ानून, राजनिति, आपसी ‎मामलात, व्यापार सारे मामले क़ुरआन के प्रकाश में हल किए जाऐं। ‎
  5. प्रसार: क़ुरआन का पांचवां हक़ यह है कि उसे दूसरे लोगों तक ‎पहुंचाया जाए। हुज़ूर (सल्ल.) का कथन है कि चाहे एक आयत ही क्यों ना ‎हो। हर मुसलमान पर क़ुरआन के प्रसार में अपनी सार्मथ्य के अनुसार दूसरों ‎तक पहुंचाना अनिवार्य है।

समझने के लिए

क़ुरआन को समझने के लिए उसके अवतीर्ण ‎‎(नुज़ूल) की पृष्ठ भूमि जानना ज़रूरी है। यह इस तरह की किताब नहीं है कि ‎इसे पूरा लिख कर पैग़म्बर (सल्ल.) को देकर कह दिया गया हो कि जाओ ‎इसकी ओर लोगों को बुलाओ। बल्कि क़ुरआन थोड़ा थोड़ा उस क्रांति के ‎अवसर पर जो हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने अरब में आरंभ की थी, ‎आवश्यकता के अनुसार अवतरित किया गया। आरंभ से जैसे ही क़ुरआन का ‎कुछ भाग अवतरित होता आप (सल्ल.) उसे लिखवा देते और यह भी बता ‎देते कि यह किसके साथ पढ़ा जाएगा।

अवतीर्ण के क्रम से विद्वानों ने क़ुरआन को दो भागों में बांटा है। एक ‎मक्की भाग, दूसरा मदनी भाग। आरंभ में मक्के में छोटी छोटी सूरतें ‎नाज़िल हुईं। उनकी भाषा श्रेष्ठ, प्रभावी और अरबों की पसंद के अनुसार श्रेष्ठ ‎साहित्यिक दर्जे वाली थी। उसके बोल दिलों में उतर जाते थे। उसके दैविय ‎संगीत (Divine Music) से कान उसको सुनने में लग जाते और उसके दैविय ‎प्रकाश (Divine Light) से लोग आकर्षित हो जाते या घबरा जाते। इसमें सृष्टि ‎के वे नियम वर्णित किए गए जिन पर सदियों के बाद अब भी मानव ‎आश्चर्य चकित है, किन्तु इसके लिए सारे उदाहरण स्थानीय थे। उन्हीं के ‎इतिहास, उन्ही का माहौल। ऐसा पांच वर्ष तक चलता रहा।

इसके बाद मक्के की राजनैतिक तथा आर्थिक सत्ता पर क़ब्ज़े वाले ‎लोगों ने अपने लिए इस खतरे को भांप का ज़ुल्म व ज्यादती का वह तांडव ‎किया कि मुसलमानों की जो थोड़ी संख्या थी उसमें भी कई लोगों को घरबार ‎छोड़ कर हब्शा (इथोपिया) जाना पड़ा। खुद नबी (सल्ल.) को एक घाटी में ‎सारे परिवारजनों के साथ क़ैद रहना पड़ा और अंत में मक्का छोड़ कर ‎मदीना जाना पड़ा।

मुसलमानों पर यह बड़ा सख्त समय था और अल्लाह ने इस समय ‎जो क़ुरआन नाज़िल किया उसमें तलवार की काट और बाढ़ की तेज़ी थी। ‎जिसने पूरा क्षैत्र हिला कर रख दिया। मुसलमानों के लिए तसल्ली और इस ‎कठिन समय में की जाने वाली प्रार्थनाऐं हैं जो इस आठ वर्ष के क़ुरआन का ‎मुख्य भाग रहीं। इस हिंसात्मक प्रकरण से स्पष्ट होता है कि मानवीय रचनाधर्मिता एवं भावनाओं का प्रभाव इस ग्रंथ की रचना में रहा।

मक्की दौर के तेरह वर्ष बाद मदीने में मुसलमानों को एक केन्द्र प्राप्त ‎हो गया। जहाँ सारे ईमान लाने वालों को एकत्रित कर तीसरे दौर का ‎अवतीर्ण शुरू हुआ। यहाँ मुसलमानों का दो नए प्रकार के लोगों से परिचय ‎हुआ। प्रथम यहूदी जो यहाँ सदियों से आबाद थे और अपने धार्मिक विश्वास ‎के अनुसार अंतिम नबी (सल्ल.) की प्रतिक्षा कर रहे थे। किन्तु अंतिम नबी ‎‎(सल्ल.) को उन्होंने अपने अतिरिक्त दूसरी क़ौम में देखा तो उत्पात मचा ‎दिया। क़ुरआन में इस दौर में अहले किताब (ईश्वरीय ग्रंथों को मानने वाले ‎विषेश कर यहूदी तथा ईसाई) पर क़ुरआन में सख्त टिप्पणियाँ की गईं। इसी ‎युग में कुटाचारियों (मुनाफिक़ों) का एक गुट मुसलमानों में पैदा हो गया जो ‎मुसलमान होने का नाटक करते और विरोधियों से मिले रहत

यहीं मुसलमानों को सशस्त्र संघर्ष की आज्ञा मिली और उन्हें निरंतर ‎मक्का वासियों के हमलों का सामना करना पड़ा। दूसरी ओर एक इस्लामी ‎राज्य की स्थापना के साथ पूरे समाज की रचना के लिए ईश्वरीय नियम ‎अवतरित हुए। युध्द, शांति, न्याय, समाजिक रीति रिवाज, खान पान सबके ‎बारे में ईश्वर के आदेश इस युग के क़ुरआन की विशेषता हैं। जिनके आधार ‎पर समाजिक बराबरी का एक आदर्श राज्य अल्लाह के रसूल (सल्ल.) ने ‎खड़ा कर दिया। जिसके आधार पर आज सदियों बाद भी हज़रत मुहम्मद ‎‎(सल्ल.) का क्रम विश्व नायकों में प्रथम माना जाता है। उन्होंने जीवन के ‎हर क्षैत्र में ज़बानी निर्देश नहीं दिए, बल्कि उस पर अमल करके दिखाया।

इस पृष्ठ भूमि के कारण ही क़ुरआन में कई बार एक ही बात को बार ‎बार दोहराया जाना लगता है। एकेश्वरवाद, धार्मिक आदेश, स्वर्ग, नरक, सब्र ‎‎(धैर्य), धर्म परायणता (तक्वा) के विषय हैं जो बार बार दोहराए गए।

क़ुरआन ने एक सीधे साधे, नेक व्यापारी इंसान को, जो अपने ‎परिवार में एक भरपूर जीवन गुज़ार रहा था। विश्व की दो महान शक्तियों ‎‎(रोमन तथा ईरानी साम्राज्य) के समक्ष खड़ा कर दिया। केवल यही नहीं ‎उसने रेगिस्तान के अनपढ़ लोगों को ऐसा सभ्य बना दिया कि पूरे विश्व पर ‎इस सभ्यता की छाप से सैकड़ों वर्षों बाद भी पीछा नहीं छुड़ाया जा सकता। ‎क़ुरआन ने युध्द, शांति, राज्य संचालन इबादत, परिवार के वे आदर्श प्रस्तुत ‎किए जिसका मानव समाज में आज प्रभाव है।

कुरआन पर शोध

कुछ वर्षों पूर्व अरबों के एक गुट ने भ्रुण शास्त्र से संबंधिक क़ुरआन ‎की आयतें एकत्रित कर उन्हे इंग्लिश में अनुवाद कर, प्रो. कीथ एल० मूर के ‎समक्ष प्रस्तुत की जो भ्रूण शास्त्र (embryology) के प्रोफेसर और टोरंटो ‎विश्वविद्यालय (कनाडा) के विभागाध्यक्ष हैं। इस समय विश्व में भ्रूण शास्त्र के ‎सर्वोच्च ज्ञाता माने जाते हैं।

उनसे कहा गया कि वे क़ुरआन में भ्रूण शास्त्र से संबंधित आयतों पर ‎अपने विचार प्रस्तुत करें। उन्होंने उनका अध्ययन करने के पश्चात कहा कि ‎भ्रूण शास्त्र के संबंध में क़ुरआन में वर्णन ठीक आधुनिक खोज़ों के अनुरूप ‎हैं। कुछ आयतों के बारे में उन्होंने कहा कि वे इसे ग़लत या सही नहीं कह ‎सकते क्यों कि वे खुद इस बात में अनभिज्ञ हैं। इसमें सबसे पहले नाज़िल ‎की गई क़ुरआन की वह अयात भी शामिल थी जिसका अनुवाद है।

अपने परवरदिगार का नाम ले कर पढ़ो, जिसने (दुनिया को) सृजन ‎किया। जिसने इंसान को खून की फुटकी से बनाया।

इसमें अरबी भाषा में एक शब्द का उपयोग किया गया है अलक़ इस ‎का एक अर्थ होता खून की फुटकी (जमा हुआ रक्त) और दूसरा अर्थ होता है ‎जोंक जैसा।

डॉ. मूर को उस समय तक यह ज्ञात नहीं था कि क्या माता के गर्भ ‎में आरंभ में भ्रूण की सूरत जोंक की तरह होती है। उन्होंने अपने प्रयोग इस ‎बारे में किए और अध्ययन के पश्चात कहा कि माता के गर्भ में आरंभ में ‎भ्रूण जोंक की आकृति में ही होता है। डॉ कीथ मूर ने भ्रूण शास्त्र के संबंध ‎में 80 प्रश्नों के उत्तर दिए जो क़ुरआन और हदीस में वर्णित हैं।‎

उन्ही के शब्दों में, यदि 30 वर्ष पूर्व मुझसे यह प्रश्न पूछे जाते तो ‎मैं इनमें आधे भी उत्तर नहीं दे पाता। क्यों कि तब तक विज्ञान ने इस क्षैत्र ‎में इतनी प्रगति नहीं की थी।

‎1981 में सऊदी मेडिकल कांफ्रेंस में डॉ. मूर ने घोषणा की कि उन्हें ‎क़ुरआन की भ्रूण शास्त्र की इन आयतों को देख कर विश्वास हो गया है कि ‎हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ईश्वर के पैग़म्बर थे। क्यों कि सदियों पूर्व जब ‎विज्ञान खुद भ्रूण अवस्था में हो इतनी सटीक बातें केवल ईश्वर ही कह ‎सकता है।

डॉ. मूर ने अपनी किताब के 1982 के संस्करण में सभी बातों को ‎शामिल किया है जो कई भाषाओं में उपलब्ध है और प्रथम वर्ष के ‎चिकित्साशास्त्र के विद्यार्थियों को पढ़ाई जाती है। इस किताब (The ‎developing human) को किसी एक व्यक्ति द्वारा चिकित्सा शास्त्र के क्षैत्र में ‎लिखी किताब का अवार्ड भी मिल चुका है। ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं जिन्हे ‎क़ुरआन की इस टीका में आप निरंतर पढ़ेंगे।

मत भिन्नता एक एतराज़ किया जाता है कि जब क़ुरआन इतनी ‎सिध्द किताब है तो उसकी टीका में हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) से अब तक ‎विद्वानों में मत भिन्नता क्यों है।

यहां इतना कहना काफी होगा कि पैगम्बर मुहम्मद (सल्ल.) ने ‎अपने अनुयायियों में सेहतमंद विभेद को बढ़ावा दिया किन्तु मतभिन्नता के ‎आधार पर कट्टरपन और गुटबंदी को आपने पसंद नहीं किया। सेहतमंद ‎मतभिन्नता समाज की प्रगति में सदैव सहायक होती है और गुटबंदी सदैव ‎नुक़सान पहुंचाती है।

इसलिए इस्लामी विद्वानों की मतभिन्नता भी क़ुरआन हदीस में कार्य ‎करने और आदर्श समाज की रचना में सहायक हुई है किन्तु नुक़सान इस ‎मतभिन्नता को कट्टर रूप में विकसित कर गुटबंदी के कारण हुआ है।

शाब्दिक वह्य क़ुरआन हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) पर अवतरित हुआ वह ‎ईश्वरीय शब्दों में था। यह वह्य शाब्दिक है, अर्थ के रूप में नहीं। यह बात ‎इसलिए स्पष्ठ करना पड़ी कि ईसाई शिक्षण संस्थाओं में यह शिक्षा दी जाती ‎है कि वह्य ईश्वरीय शब्दों में नहीं होती बल्कि नबी के हृदय पर उसका अर्थ ‎आता है जो वह अपने शब्दों में वर्णित कर देता है। ईसाईयों के लिए यह ‎विश्वास इसलिए ज़रूरी है कि बाईबिल में जो बदलाव उन्होंने किए हैं, उसे वे ‎इसी प्रकार सत्य बता सकते थे। पूरा ईसाई और यहुदी विश्व सदियों से यह ‎प्रयास कर रहा है कि किसी प्रकार यह सिध्द कर दे कि क़ुरआन हज़रत ‎मुहम्मद (सल्ल.) के शब्द हैं और उनकी रचना है। इस बारे में कई किताबें ‎लिखी गई और कई तरीक़ों से यह सिध्द करने के प्रयास किए गए किन्तु ‎अभी तक किसी को यह सफलता नहीं मिल सकी।

डॉ. डेनियल ब्रुबेकर ने सबसे पुराने कुरान के ग्रंथों पर किए गए परिवर्तनों, सुधारों और परिवर्धन (स्वर और विराम चिह्नों जैसे शब्दों के मामूली पढ़ने के अंतर से परे) के बारे में इंटरनेट पर एक वीडियो श्रृंखला ("वैरिएंट क़ुरआन" नाम से) प्रकाशित की।[88]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. Nasr, Seyyed Hossein। (2007)। "Qurʼān". Encyclopædia Britannica Online। अभिगमन तिथि: 2007-11-04
  2. Lambert, Gray (2013). The Leaders Are Coming!. WestBow Press. पृ॰ 287. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781449760137. मूल से 3 अप्रैल 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2 मई 2018.
  3. Roy H. Williams; Michael R. Drew (2012). Pendulum: How Past Generations Shape Our Present and Predict Our Future. Vanguard Press. पृ॰ 143. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781593157067. मूल से 19 दिसंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2 मई 2018.
  4. http://archive.wikiwix.com/cache/index2.php?url=http%3A%2F%2Fba.21.free.fr%2Fseptuaginta%2Fexode%2Fexode_13.html
  5. Slackman, Michael (3 April 2007). "Did the Red Sea Part? No Evidence, Archaeologists Say". The New York Times. Retrieved 27 October 2016.
  6. Tabatabai, Sayyid M. H. (1987). The Qur'an in Islam : its impact and influence on the life of muslims. Zahra Publ. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0710302665. मूल से 26 अगस्त 2013 को पुरालेखित.
  7. Richard Bell (Revised and Enlarged by W. Montgomery Watt) (1970). Bell's introduction to the Qur'an. Univ. Press. पपृ॰ 31–51. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0852241712.
  8. P. M. Holt, Ann K. S. Lambton and Bernard Lewis (1970). The Cambridge history of Islam (Reprint. संस्करण). Cambridge Univ. Press. पृ॰ 32. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780521291354.
  9. Denffer, Ahmad von (1985). Ulum al-Qur'an : an introduction to the sciences of the Qur an (Repr. संस्करण). Islamic Foundation. पृ॰ 37. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0860371328.
  10. https://bora.uib.no/bora-xmlui/bitstream/handle/1956/12367/144806851.pdf?sequence=4&isAllowed=y
  11. Meccan Trade And The Rise Of Islam, (Princeton, U.S.A: Princeton University Press, 1987
  12. https://repository.upenn.edu/cgi/viewcontent.cgi?article=5006&context=edissertations
  13. https://dergipark.org.tr/tr/download/article-file/592002
  14. Dan Gibson: Qur'ānic geography: a survey and evaluation of the geographical references in the qurãn with suggested solutions for various problems and issues. Independent Scholars Press, Surrey (BC) 2011, ISBN 978-0-9733642-8-6
  15. https://archive.today/20230224124452/https://islamicauthors.com/view/6022279d3408f72049486234/Answering%20to%20the%20propaganda%20video%20in%20the%20name%20of%20%E2%80%9CThe%20Sacred%20City%E2%80%9D%20of%20Dan%20Gibson.html
  16. al-Bukhari, Muhammad (810–870). "Sahih Bukhari, volume 6, book 61, narrations number 509 and 510". sahih-bukhari.com. मूल से 4 फ़रवरी 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 February 2018.
  17. Rippin, Andrew; एवं अन्य (2006). The Blackwell companion to the Qur'an ([2a reimpr.] संस्करण). Blackwell. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978140511752-4.
    • see section Poetry and Language by Navid Kermani, p.107-120.
    • For eschatology, see Discovering (final destination) by Christopher Buck, p.30.
    • For writing and printing, see section Written Transmission by François Déroche, p.172-187.
    • For literary structure, see section Language by Mustansir Mir, p.93.
    • For the history of compilation see Introduction by Tamara Sonn p.5-6
    • For recitation, see Recitation by Anna M. Gade p.481-493
  18. Mohamad K. Yusuff, Zayd ibn Thabit and the Glorious Qur'an Archived 2017-07-26 at the वेबैक मशीन
  19. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; LivRlgP338 नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  20. Watton, Victor, (1993), A student's approach to world religions:Islam, Hodder & Stoughton, pg 1. ISBN 978-0-340-58795-9
  21. See:
  22. Corbin (1993), p.10
  23. Mir Sajjad Ali; Zainab Rahman (2010). Islam and Indian Muslims. Kalpaz Publications. पृ॰ 21. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 8178358050.
  24. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; leaman नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  25. Vasalou, Sophia (2002). "The Miraculous Eloquence of the Qur'an: General Trajectories and Individual Approaches". Journal of Qur'anic Studies. 4 (2): 23–53. डीओआइ:10.3366/jqs.2002.4.2.23.
  26. "क्या है इस्लामी क़ानून-शरिया?".[मृत कड़ियाँ]
  27. शरीया - द इस्लामिक लॉ। स्टॅण्डके कॉरिना। GRIN Verlag, २००८, ISBN 978-3-640-14967-4
  28. http://www.etc-graz.eu/wp-content/uploads/2020/08/insan_haklar__305_n__305__anlamak_kitap_bask__305_ya_ISBNli_____kapakli.pdf
  29. "संग्रहीत प्रति" (PDF). मूल (PDF) से 29 सितंबर 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 मार्च 2021.
  30. Quran 1:1–7
  31. "Afghan Quran-burning protests: What's the right way to dispose of a Quran?". Slate Magazine. मूल से 18 अक्तूबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 मई 2018.
  32. Sengers -, Erik (2005). Dutch and Their Gods. पृ॰ 129.
  33. See:
    • "Kur`an, al-," Encyclopaedia of Islam Online
    • Allen (2000) p. 53
  34. Dukes, Kais. "RE: Number of Unique Words in the Quran". www.mail-archive.com. मूल से 30 सितंबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 October 2012.
  35. http://sssjournal.com/DergiTamDetay.aspx?ID=811&Detay=Ozet
  36. https://dergipark.org.tr/tr/download/article-file/557354
  37. Saeed, Abdullah (2008). The Qurʼan : an introduction. London: Routledge. पृ॰ 62. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780415421249.
  38. Quran 67:3
  39. "संग्रहीत प्रति" (PDF). मूल (PDF) से 18 अप्रैल 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 जुलाई 2021.
  40. "The original Hebrew texts use YHVH 6,828 times." Wilhelm Gesenius (Hrsg.): Hebräisches und Aramäisches Handwörterbuch über das Alte Testament. Zweite Teillieferung. 18. Auflage. Springer, 1995, ISBN 3-540-58048-4, S. 446.
  41. New Bible Dictionary. 1982 (second edition). Tyndale Press, Wheaton, IL, USA. ISBN 0-8423-4667-8, p. 319
  42. साँचा:Kitap kaynağı
  43. https://archive.org/stream/foreignvocabular030753mbp#page/n84/mode/1up/search/allahumma
  44. https://kutsal-kitap.net/bible/tr/index.php?id=75&mc=1&sc=55
  45. https://dergipark.org.tr/tr/download/article-file/154631
  46. Bernstein, Alan E. “Islam: The Mockers Mocked.” Hell and Its Rivals: Death and Retribution among Christians, Jews, and Muslims in the Early Middle Ages, 1st ed., Cornell University Press, 2017, pp. 319–54, http://www.jstor.org/stable/10.7591/j.ctt1qv5q7k.15.
  47. Bernstein, Alan E. “Islam: The Mockers Mocked.” Hell and Its Rivals: Death and Retribution among Christians, Jews, and Muslims in the Early Middle Ages, 1st ed., Cornell University Press, 2017, pp. 319–54, http://www.jstor.org/stable/10.7591/j.ctt1qv5q7k.15.
  48. Martin, Richard C. (2003). Encyclopedia of Islam and the Muslim world ([Online-Ausg.]. संस्करण). Macmillan Reference USA. पपृ॰ 568–62 (By Farid Esack). आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0028656032.
  49. https://www.biblegateway.com/passage/?search=1%20Kings%2011&version=NIV
  50. Izutsu, Toshihiko (2007). Ethico-religious concepts in the Qur'an (Repr. 2007 संस्करण). McGill-Queen's University Press. पृ॰ 184. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0773524274.
  51. https://dergipark.org.tr/tr/download/article-file/179948
  52. https://www.halveti.tc/hadisler.php?pid=243
  53. "संग्रहीत प्रति". मूल से 12 जुलाई 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 अप्रैल 2021.
  54. http://www.indianmuslimobserver.com/2012/11/cedar-or-lote-tree-in-light-of-al-quran.html#.UOBB6qx3uP8. नामालूम प्राचल |başlık= की उपेक्षा की गयी (मदद); नामालूम प्राचल |arşivurl= की उपेक्षा की गयी (मदद); नामालूम प्राचल |erişimtarihi= की उपेक्षा की गयी (मदद); नामालूम प्राचल |arşivtarihi= की उपेक्षा की गयी (मदद); नामालूम प्राचल |ölüurl= की उपेक्षा की गयी (मदद); गायब अथवा खाली |title= (मदद)
  55. Nidhal Guessoum. Islam's Quantum Question: Reconciling Muslim Tradition and Modern Science. I.B.Tauris. पृ॰ 174. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1848855175.
  56. Issa Boullata, "Literary Structure of Quran", Encyclopedia of the Qurʾān, vol.3 p.192, 204
  57. Jewishencyclopedia.com Archived 2011-07-16 at the वेबैक मशीन – Körner, Moses B. Eliezer
  58. Wild, ed. by Stefan (2006). Self-referentiality in the Qur'an. Wiesbaden: Harrassowitz. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 3447053836.सीएस1 रखरखाव: फालतू पाठ: authors list (link)
  59. "Tafsir Al-Mizan". almizan.org. मूल से 17 जून 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 मई 2018.
  60. http://turkoloji.cu.edu.tr/mine_mengi_sempozyum/ismail_avci_iskenderi_zulkarneyn_ve_hizir.pdf
  61. Mirza Bashiruddin Mahmood Ahmad. "Tafseer-e-Kabeer Urdu Vol. 1" (PDF). मूल से 18 अक्तूबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2016-08-26.
  62. Godlas, Alan (2008). The Blackwell companion to the Qur'an (Pbk. संस्करण). Wiley-Blackwell. पपृ॰ 350–362. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 1405188200.
  63. Sands, Kristin Zahra (2006). Sufi commentaries on the Qur'an in classical Islam (1. publ., transferred to digital print. संस्करण). Routledge. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0415366852.
  64. Keeler, Annabel (2006). "Sufi tafsir as a Mirror: al-Qushayri the murshid in his Lataif al-isharat". Journal of Qur'anic Studies. 8 (1): 1–21. डीओआइ:10.3366/jqs.2006.8.1.1.
  65. Tabataba'I, Tafsir Al-Mizan, The Principles of Interpretation of the Quran Archived 1 दिसम्बर 2008 at the वेबैक मशीन
  66. Tabataba'I, Tafsir Al-Mizan, Topic: Decisive and Ambiguous verses and "ta'wil" Archived 8 दिसम्बर 2008 at the वेबैक मशीन
  67. Elias, Jamal (2010). "Sufi tafsir Reconsidered: Exploring the Development of a Genre". Journal of Qur'anic Studies. 12: 41–55. डीओआइ:10.3366/jqs.2010.0104.
  68. Corbin (1993), p.7
  69. Miller, Duane Alexander (June 2009). "REAPPROPRIATION: AN ACCOMMODATIONIST HERMENEUTIC OF ISLAMIC CHRISTIANITY". St Francis Magazine. 5 (3): 30–33. मूल से 6 नवंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 17 December 2014.
  70. Aslan, Reza (20 November 2008). "How To Read the Quran". Slate. मूल से 28 जुलाई 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 November 2008.
  71. "Quran Text/ Translation - (93 Languages - Largest Collection - AUSTRALIAN ISLAMIC LIBRARY". www.australianislamiclibrary.org. मूल से 30 जुलाई 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 March 2016.
  72. "English Translations of the Quran". Crescent. Monthlycrescent.com. July 2009. मूल से 29 April 2014 को पुरालेखित.
  73. Peter G. Riddell, Tony Street, Anthony Hearle Johns, Islam: essays on scripture, thought and society : a festschrift in honour of Anthony H. Johns Archived 2016-12-19 at the वेबैक मशीन, pp. 170–174, BRILL, 1997, ISBN 978-90-04-10692-5, ISBN 978-90-04-10692-5
  74. Suraiya Faroqhi, Subjects of the Sultan: culture and daily life in the Ottoman Empire Archived 2016-12-19 at the वेबैक मशीन, pp, 134–136, I.B.Tauris, 2005, ISBN 978-1-85043-760-4, ISBN 978-1-85043-760-4;The Encyclopaedia of Islam: Fascicules 111–112 : Masrah Mawlid Archived 2016-12-19 at the वेबैक मशीन, Clifford Edmund Bosworth
  75. "Muslim Printing Before Gutenberg". muslimheritage.com. मूल से 3 नवंबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 मई 2018.
  76. Krek 1979, पृष्ठ 203
  77. Iriye, A.; Saunier, P. (2009). The Palgrave Dictionary of Transnational History: From the mid-19th century to the present day. Springer. पृ॰ 627. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-349-74030-7.
  78. Kamusella, T. (2012). The Politics of Language and Nationalism in Modern Central Europe. Springer. पपृ॰ 265–266. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-230-58347-4.
  79. Cook, Michael, The Koran: A Very Short Introduction, Oxford University Press, (2000), p.30
  80. see also: Ruthven, Malise, A Fury For God, London ; New York : Granta, (2002), p.126
  81. Leirvik, Oddbjørn (27 May 2010). Images of Jesus Christ in Islam: 2nd Edition. New York: Bloomsbury Academic; 2nd edition. पपृ॰ 33–66. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 1441181601. मूल से 31 मार्च 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 मई 2018.
  82. Gerd Puin is quoted in the Atlantic Monthly, January, 1999:«The Koran claims for itself that it is 'mubeen' or 'clear'. But if you look at it, you will notice that every fifth sentence or so simply doesn't make sense... the fact is that a fifth of the Koranic text is just incomprehensible...«
  83. Leirvik 2010, pp. 33–34.
  84. Qur'an 2:285
  85. Esposito, John L. The Future of Islam. Oxford University Press US, 2010. ISBN 978-0-19-516521-0 p. 40 Archived 2016-12-19 at the वेबैक मशीन
  86. "On pre-Islamic Christian strophic poetical texts in the Koran" by Ibn Rawandi, found in What the Koran Really Says: Language, Text and Commentary, Ibn Warraq, Prometheus Books, ed. ISBN 978-1-57392-945-5
  87. Wadad Kadi and Mustansir Mir, Literature and the Quran, Encyclopaedia of the Qur'an, vol. 3, pp. 213, 216
  88. https://www.danielbrubaker.com/daniel-brubaker-quran-and-islam/

बाहरी कड़ियाँ

क़ुरआन के बारे में, विकिपीडिया के बन्धुप्रकल्पों पर और जाने:
  शब्दकोषीय परिभाषाएं
  पाठ्य पुस्तकें
  उद्धरण
  मुक्त स्रोत
  चित्र एवं मीडिया
  समाचार कथाएं
  ज्ञान साधन