आदम

इब्राहीमी धार्मिक मान्यता के अनुसार मानवता के जनक और नबी

आदम, इब्राहीमी धार्मिक मान्यता के अनुसार, ईश्वर द्वारा बनाये गए पहले मानव थे। बाइबिल तथा कुरान में आदम की कहानी का उल्लेख कई बार मिलता है। इस्लाम में आदम को नबी माना जाता है, तथा "मानव जाती के जनक" के रूप में उन्हें श्रध्येय रूप से देखा जाता है। तथा उनकी पत्नी हव्वा (ईव) को "मानवता की जननी" के रूप से श्रद्धा भाव से देखा जाता है। इस्लामी मान्यता के अनुसार आदम और हव्वा दोनों इस्लाम का पालन करते थे, जो समय के साथ कम होता गया, जबतक मुहम्मद ने इस्लाम की धरती पर पुनः स्थापना की। वहीं इसाई और यहूदी धर्मों में आदम और हव्वा के ईश्वर के आदेश की अवहेलना कर, जन्नत से बहिष्कृत किये जाने की कहानी पर अत्यंत महत्त्व दिया गया है। यह कहानी कुरान में भी पायी जाती है।

'आदम

आदम अलैहिस्सलाम का अरबी भाषा में लिखा गया नाम है : शांति उस पर हो।
पदवी नबी
उत्तराधिकारी इदरीस (इनोच)
जीवनसाथी हव्वा (حواء)
बच्चे
एंजल्स द्वारा सम्मानित आदम - फारसी लघु चित्र(c. 1560)

कुरान में आदम अल्लाह द्वारा नाम दिया गया है जिसे (आदम-ए-सफी) या चुने हुए एक के नाम से जाना जाता है।

आदम की दुनिया में आने से पहले की जिंदगी

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सब से पहले आदम  को दुनिया में भेजा गया। हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को अबुलबशर यानि सब इन्सानों का बाप कहा जाता है।  दुनिया में जितने भी इन्सान शुरू से आख़िर तक आ चुके हैं या आयेंगे सब हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की ही औलाद हैं इसी लिये इन्हें आदमी” कहा जाता है। जब अल्लाह तआला ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की पैदाइश का इरादा फ़रमाया और फरिश्तों से अर्ज़ किया कि मैं ज़मीन में अपना ख़लीफ़ा बनाने वाला हूँ उस वक़्त ज़मीन में जिन्नात रहते थे और इब्लीस की बादशाहत थी लिहाज़ा आपके बारे में कुछ बताने से पहले शैतान इब्लीस का ज़िक्र करना ज़रूरी है क्योंकि इस वाक़िये का शैतान से गहरा ताल्लुक़ है।[1]

इब्लीस-ए-लईनः-

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अल्लाह तआला ने इस मख़लूक़ को बहुत ख़ूबसूरत बनाया था और शराफ़त व बुज़र्गी से भी नवाज़ा था। ज़मीन और दुनिया के आसमान की बादशाहत दी थी। इसके अलावा उसे जन्नत की पहरेदारी के इनाम से भी नवाज़ा था। लेकिन उसने अल्लाह के सामने घमण्ड किया और ख़ुदाई का दावा कर बैठा जिसकी वजह से अल्लाह तआला ने उसे अपनी बारगाह से निकाल दिया और उसे शैतान में बदल दिया। उसकी शक्ल बिगाड़ दी और सारे रुतबे जो अल्लाह तआला ने उसे अता किये थे छीन लिये। उस पर अपनी लानत फ़रमाई, उसको अपने आसमानों से निकाल दिया और आख़िरत में उसको और उसकी पैरवी करने वालों का ठिकाना जहन्नुम क़रार दिया। 

शैतान इब्लीस कौन था?

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इब्लीस फ़रिश्तों का सरदार था और जन्नत के बाग़ों की देखभाल करता था। उसको दुनिया और आसमान दोनों की बादशाहत मिली हुई थी।

(इब्ने जरीह रज़िअल्लाहू अन्हूँ से रिवायत, इब्ने अब्बास रज़िअल्लाहू अन्हूँ के हवाले से)

फ़रिश्तों का एक क़बीला जिन्नात से ताल्लुक़ रखता था इब्लीस उन्हीं में से था। इस क़बीले के फ़रिश्तों को आग की गर्म लौ से पैदा किया गया था यह लौ शोले की तरह नज़र नहीं आती लेकिन सिर्फ़ महसूस की जा सकती है और सारी गर्मी इसी में होती है। इस क़बीले के अलावा बाक़ी सब फ़रिश्तों को नूर से पैदा फ़रमाया था। इब्लीस का नाम हारिस था दूसरी रिवायत में अज़ाज़ील भी आया है और यह जन्नत के पहरेदारों में से था।

(इब्ने अब्बास रज़िअल्लाहू अन्हूँ की रिवायत)

इब्लीस का घमण्डः-

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अल्लाह तआला क़ुरआन पाक में फ़रमाता है कि-

और उनमें जो कहे कि मैं अल्लाह के सिवा माबूद हूँ तो उसे हम जहन्नुम की सज़ा देंगे, हम ऐसी ही सज़ा देते हैं सितमगारों को।

(सूरा अल-अंबिया, आयत - 29)

इस आयत की तफ़सीर में इब्ने जरीह रहमातुल्लाह अलैह लिखते हैं कि-

”फ़रिश्तों में सब से पहले जिसने यह बात कही कि अल्लाह के बजाए मैं माबूद हूँ वो इब्लीस लईन है ” 

हज़रत क़तादह रज़िअल्लाहू अन्हूँ फ़रमाते हैं कि-

“यह आयत अल्लाह के दुश्मन इब्लीस के बारे में उतरी। अल्लाह ने इस पर लानत फ़रमाई और इसे अपनी रहमत से निकाल दिया। और फ़रमाया हम इसे दोज़ख़ की सज़ा देंगे और ज़ालिमों को हम इसी तरह का बदला दिया करते हैं।”

अल्लाह तआला क़ुरआन पाक में एक जगह और इरशाद फ़रमाता है-

“और याद करो जब हमने फ़रिश्तों को हुक्म दिया कि आदम को सजदा करो तो सबने सजदा किया सिवाए इब्लीस के, मुन्किर हुआ ग़ुरूर किया और काफ़िर हो गया।)”

सूरा अल-बक़रा, आयत- 34)

इब्लीस को ऐसा घमण्ड क्यों हुआ कि उसने न सिर्फ़ अल्लाह का हुक्म मानने से इन्कार किया बल्कि ख़ुदाई का भी दावा कर बैठा इसके बारे में उलमा के बहुत से क़ौल हैं।

इब्ने अब्बास रज़िअल्लाहू अन्हूँ, के एक क़ौल के मुताबिक़-

“ज़मीन पर इंसानो की तख़लीक़(के आने) से पहले जिन्नात आबाद थे। एक बार उन्होंने ज़मीन पर फ़साद फैलाया, एक दूसरे को क़त्ल किया और ख़ून बहाया। अल्लाह तआला ने इनके फ़साद को ख़त्म करने के लिए इब्लीस को फ़रिश्तों के एक गिरोह के साथ भेजा। यह वह ही गिरोह था जिसे जिन्न कहा जाता है। इब्लीस ने और उन फ़रिश्तों के गिरोह ने इनसे जंग की और इन्हें जज़ीरो और दूर दराज़ के पहाड़ों में धकेल दिया। इस कारनामे से उसमे ग़ुरूर पैदा हो गया। अल्लाह इसके गरूर को जान गया लेकिन फ़रिश्ते न जान सके।”

इब्ने अब्बास रज़िअल्लाहू अन्हूँ के एक दूसरे क़ौल के मुताबिक़-

“इब्लीस आसमाने दुनिया, ज़मीन और उसके दरमियान सब इलाक़े का बादशाह और निज़ाम चलाने वाला था और साथ ही जन्नत की हिफ़ाज़त का भी ज़िम्मेदार था। इब्लीस अल्लाह तआला की बहुत इबादत करता था और उसमें बहुत ज़्यादा तकलीफ़ें उठाता था, इस वजह से वह ख़ुदपसन्दी का शिकार हो गया और अपने आप को बहुत बड़ा और बहुत ऊँचे मर्तबे वाला समझने लगा और आख़िरकार उसने अल्लाह तआला के सामने भी अपने घमण्ड को ज़ाहिर कर दिया। ”

इब्ने मसऊद रज़िअल्लाहू अन्हूँ, इब्ने अब्बास रहमतुल्लाहि अलैह और दूसरे सहाबा-ए-किराम की रिवायतों के मुताबिक़-

“जब अल्लाह तआला अपनी अज़ीज़ तरीन मख़लूक़ को बनाने के बाद अपनी शान के मुताबिक़ अर्श पर रौनक़ अफ़रोज़ हुआ तो इब्लीस को  आसमाने दुनिया की बादशाहत पर मुक़र्रर किया। इब्लीस का ताल्लुक़ फ़रिश्तों के उस गिरोह से था जिन्हें जिन्न कहा जाता है। उनका नाम जिन्न इसलिए रखा गया कि वह जन्नत के पहरेदार और हिफ़ाज़त करने वाले थे। इस इज़्ज़त अफ़ज़ाई (सम्मान) से इब्लीस के दिल में तकब्बुर यानि घमण्ड पैदा हो गया यहाँ तक कि उसने यह कह दिया कि अल्लाह तआला ने जो कुछ मुझे अता किया है वह मेरी ज़ाती इबादत और रियाज़त का इनाम और फल है।”

जब अल्लाह तआला ने आदम अलैहिस्सलाम को पैदा फ़रमाया तो फ़रिश्तों को हुक्म दिया कि आदम को सजदा करें सबने हुक्म की तामील की लेकिन इब्लीस ने इंकार किया और अल्लाह तआला की नाफ़रमानी की। अल्लाह तआला तमाम भेद जानता है इब्लीस से सवाल किया तुझे किस चीज़ ने आदम को सजदा करने से रोका। उसने जवाब दिया ”मैं आदम से बेहतर हूँ तूने मुझे आग से और आदम को मिट्टी से पैदा किया।” शैतान का जवाब तकब्बुर  और जहालत वाला था। अल्लाह तआला इस पर ग़ज़बनाक हुआ और रान्दहे दरगाह कर दिया यानि अपनी रहमत से निकाल दिया और लानत का तौक़ उसकी गर्दन में डाल दिया। शैतान ने तौबा व इस्तग़फ़ार यानी माफी मांगने के बजाए अल्लाह तआला से खुली बग़ावत कर दी और क़यामत तक के लिए आदम अलैहिस्सलाम की नस्लों को बहकाने के लिए मोहलत माँग ली। अल्लाह पाक के इल्म और हिकमत का भी यही तक़ाज़ा था कि औलादे आदम की आज़माइश की जाये। लिहाज़ा उसकी दरख़्वास्त (अपील) मंज़ूर की गई। उसे लम्बी उम्र अता की और साथ में वो सामान भी जो नस्ले आदम को गुमराह करने के लिए चाहिए थे।

हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की पैदाइशः-

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अल्लाह हर काम  पर क़ादिर है वो चाहे तो पलक झपकते ही तमाम जहानों को पैदा कर सकता है लेकिन इस दुनिया और इंसानों की तख़लीक़ उसने कई मरहलों (चरणों) में की जब अल्लाह तआला ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को पैदा करना चाहा तो फ़रिश्तों से फ़रमाया कि-

”बेशक मैं बनाने वाला हूँ ज़मीन में अपना नायब। उन्होंने कहा तू उसे नायब बनायेगा जो वहाँ फ़साद करें और ख़ून बहाएं और हम तेरी हम्द के साथ तेरी तस्बीह बयान करते हैं और तेरी पाकी बयान करते हैं। फ़रमाया बेशक मैं जानता हूँ जो तुम नहीं जानते।”

(सूरा अल-बक़रा आयत 29 ,30 )

हज़रत इब्ने अब्बास रज़िअल्लाहू अन्हूँ इस आयत की तफ़्सीर बयान करते हुए फ़रमाते हैं कि-

“फ़रिश्तों ने ऐसा इस लिए कहा कि सबसे पहले ज़मीन पर रहने वाले जिन्नो ने फ़साद बरपा किया, ख़ून बहाया और अल्लाह कि नाफ़रमानी की लिहाज़ा अब जो ख़लीफ़ा बनेगा वो भी वैसा ही करेगा। अल्लाह तआला ने फ़रमाया कि बेशक तुम नहीं जानते जो मैं जानता हूँ।”

यह बात याद रखनी चाहिए कि फ़रिश्तों का यह कहना एतराज़ के तौर पर नहीं था और न ही आदम अलैहिस्सलाम और उनकी औलाद से हसद के तौर पर क्योंकि क़ुरआन मजीद के मुताबिक़ फ़रिश्ते वह बात नहीं कहते जिसको कहने या पूछने की उन्हें इजाज़त न हो।’

लिहाज़ा जब अल्लाह तआला ने आदम अलैहिस्सलाम को बनाना चाहा तो फ़रमाया कि सारी ज़मीन से मिट्टी लाई जाए और आदम अलैहिस्सलाम के लिये लेसदार चिपकने वाली मिट्टी आसमान की तरफ़ बुलन्द की गई पहले यह मिट्टी गारे की शक्ल में थी फिर इससे ख़मीर उठ गया । लिहाज़ा इस लेसदार और चिपकने वाली मिट्टी से अल्लाह तआला ने आदम अलैहिस्सलाम का पुतला अपने दस्त-ए-क़ुदरत से बनाया 

आदम अलैहिस्सलाम को किस मिट्टी से बनाया गया?

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अबु मूसा अश्अरी रज़िअल्लाहू अन्हूँ से रिवायत है कि रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया कि-

“अल्लाह ने आदम  को एक मुट्ठी मिट्टी से पैदा फ़रमाया जिसको तमाम ज़मीन से लिया गया इस तरह कई जगह की मिट्टी इस्तेमाल होने की वजह से  इन्सान अलग-अलग रंग (जैसे गोरे,काले या साँवले), अलग -अलग आदतों (जैसे ख़ुश अख़लाक़, बद मिजाज़) और अलग ख़सलतों (जैसे नेक(अच्छे) व बद(बुरे) के होते हैं।”

इब्ने अब्बास रज़िअल्लाहू अन्हूँ से रिवायत है कि इंसान को तीन तरह की मिट्टी से पैदा किया गया

  • सलसाल,
  • हमा,
  • तीन लाज़िब

“तीन लाज़िब” से मुराद बेहतरीन और उम्दा मिट्टी है, “हमा” से मुराद कीचड़ और “सलसाल” से मुराद ऐसी मिट्टी जिसे कूट कर बारीक किया गया हो यानि ऐसी ख़ुश्क जो खनखनाती हो।

अल्लामा इब्ने कसीर लिखते है अल्लाह तआला ने फ़रिश्तों को मिट्टी लाने का हुक्म दिया। वह मिट्टी आसमानो की तरफ़ ले जाई गई और लेस दार मिट्टी “तीन लाज़िब” से आदम अलैहिस्सलाम को बनाया गया जो इस से पहले बदबूदार मिट्टी “हमा” की शक्ल में थी और इस से पहले वो खुश्क मिट्टी “तुराब” थी।

जैसा कि क़ुरआन मजीद में अल्लाह तआला फ़रमाता है कि-

”हम ने इंसान को सड़ी हुई मिट्टी के सूखे गारे से बनाया।”

(सूरह अल-हिज्र, आयत -26)

गर्ज़ यह है कि अल्लाह ने आदम अलैहिस्सलाम को अपने दस्ते क़ुदरत से बनाया। पहले मिट्टी को गारे में तब्दील किया फिर इसको मिला कर गुंधा गया। फिर आदम अलैहिस्सलाम का पुतला बनाया गया और इसको चालीस दिन तक इसी तरह रहने दिया। फ़रिश्ते इसे देखने के लिए आते थे। इब्लीस भी अपने पैर से इस पुतले को ठोकर मारता और कहता मैं तुझ पर ग़ालिब आ गया तो तुझे हलाक कर दूंगा और अगर तू मेरा हाकिम बन गया तो मैं तेरी नाफ़रमानी करुँगा।

जिस्म में रूह का दाखिल होना यानी जिस्म में आत्मा का प्रवेश करना

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अल्लाह तआला ने आदम अलैहिस्सलाम का पुतला बनाया और इसको चालीस दिन तक इसी तरह रहने दिया। जब वह मिट्टी बिना पकाए मज़बूत हो गई और सूखकर ठीकरे की तरह आवाज़ करने लगी और जब यह पुतला पक्का हो गया तो अल्लाह तआला ने इसमें रूह फूंकने का इरादा फ़रमाया। पुतले को फ़रिश्तों के सामने पेश करके फ़रमाया कि जब मैं इसमें रूह फूंक दूँ तो तुम उसके सामने सजदे में गिर जाना।

इब्ने मसऊद रज़िअल्लाहू अन्हूँ इब्ने अब्बास रज़िअल्लाहू अन्हूँ और दूसरे सहाबा-ए-किराम की रिवायतों के मुताबिक़-

अल्लाह तआला ने जब आदम अलैहिस्सलाम के पुतले में रूह फूंकना चाही तो फ़रिश्तों से फ़रमाया कि जब मैं इसमें रूह फूंक दूँ तो तुम उसके सामने सजदे में गिर जाना। फिर जब अल्लाह तआला ने आदम अलैहिस्सलाम के जिस्म में रूह फूंकी तो वह सिर की तरफ़ से जिस्म में दाख़िल(प्रवेश) हुई जिसकी वजह से आदम 5 को छींक आ गई जिस पर फ़रिश्तों ने कहा “अल्हम्दुलिल्लाह” (यानि तमाम तारीफ़ें अल्लाह के लिए हैं) कहें। अलहम्दुलिल्लाह कहने पर अल्लाह ने कहा “रहमका रब्बिका” (यानि तुम्हारा रब तुम पर रहम करे)। जब रूह आँखों में दाख़िल हुई तो आदम अलैहिस्सलाम ने जन्नत के फल और मेवों को देखा। पेट में पहुँची तो खाने की ख़्वाहिश पैदा हुई और आदम अलैहिस्सलाम पैरों और टाँगों में रुह पहुँचने से पहले ही उन फलों और मेवों की तरफ़ कूद पड़े। क़ुरआन पाक में इसी जल्दबाज़ी की तरफ़ इशारा करते हुए अल्लाह तआला ने फ़रमाया कि – “बेशक इंसान जल्द बाज़ है”।

इब्ने अब्बास रज़िअल्लाहू अन्हूँ से रिवायत है कि–

अल्लाह तआला ने सब से पहले आदम अलैहिस्सलाम के जिस्म में रूह फूंकी तो वह सिर की तरफ़ से जिस्म में दाख़िल हुई और जिस्म के जिस हिस्से में पहुँचती वह गोश्त और ख़ून में तबदील हो जाता। जब रूह नाफ़ की जगह पहुँची तो आदम अलैहिस्सलाम ने अपने जिस्म को देखा तो वह बहुत ख़ूबसूरत मालूम हुआ आदम अलैहिस्सलाम ने उठना चाहा तो उठ न सके अल्लाह तआला ने फ़रमाया कि – “बेशक इंसान जल्द बाज़ है”। आगे फ़रमाया “आदम से मारे ख़ुशी के सब्र न हो सका”। फिर जब तमाम जिस्म में रूह फैल गई तो आदम अलैहिस्सलाम को छींक आई और उन्होंने “अल्हम्दुलिल्लाह”(तमाम तारीफ़ें अल्लाह के लिए हैं) कहा यह अल्लाह की तरफ़ से इल्हाम की वजह से था अल्लाह ने फ़रमाया ऐ आदम! अल्लाह तुझ पर रहम करे।

फिर अल्लाह तआला ने आदम अलैहिस्सलाम को इल्म (ज्ञान) अता किया और तमाम चीज़ों के नाम सिखाये।

क़ुरआन पाक में है कि-

”और अल्लाह तआला ने आदम अलैहिस्सलाम को तमाम नाम सिखाये”

(सूरा अल-बक़रा, आयत-31)

हज़रत इब्ने अब्बास रज़िअल्लाहू अन्हूँ आयत इसकी तफ़्सीर बयान करते हुए फरमाते हैं कि-

“अल्लाह ने आदम अलैहिस्सलाम को हर चीज़ का नाम सिखाया यहाँ तक कि जिस्म से हवा ख़ारिज होने की आवाज़ का नाम तक सिखाया। तमाम छोटी और बड़ी चीज़ों के नाम ज़ाती और सिफ़ाती दोनों तरह के नाम सिखाये और तमाम कामों के नाम जैसे इब्ने अब्बास का क़ौल है कि "गूंज” का नाम भी सिखाया।

अल्लाह तआला ने आदम को तमाम नाम सिखाकर फ़रिश्तों के सामने पेश किया और फ़रमाया-

”अगर तुम सच्चे हो तो इन चीज़ों के नाम बताओ। फ़रिश्तो ने कहा अल्लाह तेरी ज़ात पाक है हमें तो सिर्फ इतना ही इल्म है जितना तूने हमें सिखाया पूरे इल्म व हिकमत वाला तू ही है अल्लाह ने आदम अलैहिस्सलाम से फ़रमाया तुम इनके नाम बता दो जब इन्होंने बता दिए। तो फ़रमाया क्या मैं ने तुम्हे पहले नहीं कहा था कि ज़मीन आसमान का ग़ैब मैं ही जानता हूँ और मेरे इल्म में है जो तुम ज़ाहिर करते हो और छिपाते हो।”

(सूरह अल-बक़रा, आयात-31 से 33)

यहाँ इस बात का बयान हो रहा है कि अल्लाह तआला ने एक ख़ास इल्म के ज़रिये आदम अलैहिस्सलाम को फ़रिश्तों पर फ़ज़ीलत दी। यह वाक़िया फ़रिश्तों के सजदा करने के बाद का है। अल्लाह तआला ने फिर इन चीज़ों को फ़रिश्तों के सामने पेश किया और फ़रमाया अगर तुम अपने क़ौल में सच्चे हो तो इन चीज़ों के नाम बताओ। फ़रिश्तों ने यह सुनते ही अल्लाह तआला की बड़ाई, पाकीज़गी और अपने इल्म की कमी बयान की और कहा की हमें तो ऐ खुदावंद! इतना ही इल्म है जितना तूने हमें दिया। तमाम चीज़ो को जानने वाला तो परवरदिगार तू ही है।

फिर अल्लाह तआला आदम अलैहिस्सलाम की तरफ़ मुतवज्जा हुआ और फ़रमाया इन चीज़ो के नाम बता दो। आपने तमाम चीज़ो के नाम सही-सही बता दिये। इस तरह आदम अलैहिस्सलाम की बरतरी फ़रिश्तों पर ज़ाहिर हो गई तो अल्लाह तआला ने फ़रमाया ”देखो में ने तुम से पहले ही कहा था कि हर खुले और छिपे का जानने वाला मैं ही हूँ। मतलब यह कि इब्लीस के दिल में छिपे तक्कुब्बर और ग़ुरूर को मैं ही जानता हूँ और फ़रिश्तों ने जान लिया कि आदम अलैहिस्सलाम को इल्म व फ़ज़्ल के ज़रिये हम पर फ़ज़ीलत और बरतरी दी गई है।

हज़रत हव्वा की पैदाइश

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जब फ़रिश्तों के सामने इब्लीस का घमण्ड ज़ाहिर हो गया और उस ने घमण्ड और सरकशी पर कमर बांध ली तो अल्लाह तआला ने उस पर लानत फ़रमाई आसमान और ज़मीन की हुकूमत उससे छीन ली और जन्नत की पहरेदारी से भी हटा दिया और फ़रमाया- “तू मरदूद है जन्नत से निकल जा अब क़यामत तक के लिए तुझ पर लानत है।”

इस के बाद अल्लाह ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को जन्नत में रहने का हुक्म फ़रमाया और इन पर ऊँघ डाल दी यानि उन पर नींद तारी हो गई। फिर इन की बायीं पसली में से एक पसली लेकर हव्वा अलैहिस्सलाम को पैदा फ़रमाया। आदम अलैहिस्सलाम जब सोकर उठे तो अपने सिरहाने एक औरत को खड़ा देखा। उन्होंने पूछा- “तुम कौन हो”…. कहा- “एक औरत” ……. फिर पूछा – “किस लिए पैदा की गई हो” ……वो कहने लगीं- “ताकि तुम मुझ से सकून हासिल कर सको।”

जब फ़रिश्तों को ख़बर हुई तो वो इस औरत को देखने आये और कहा ऐ आदम! इसका नाम क्या है? आदम अलैहिस्सलाम ने जवाब दिया- “हव्वा” इन्होंने फिर पूछा- “ये नाम क्यों रखा? कहा- "इसलिए की यह “हइ” यानि ज़िंदा इन्सान से पैदा की गई।”

इस के बाद अल्लाह तआला ने फरमाया-

“तुम और तुम्हारी बीवी जन्नत में रहो और जहाँ से चाहो ख़ूब दिल खोल कर खाओ लेकिन इस दरख़्त के पास मत जाना कि हद से बढ़ने वालों में हो जाओगे”

(सूरह अल-बक़रा, आयात - 34 से 35)

अल्लाह तआला ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम और हव्वा अलैहिस्सलाम को जन्नत में ठिकाना अता फ़रमाया और उन्हें हर तरह की आज़ादी अता फ़रमाई सिवाय एक दरख़्त यानी वृक्ष के पास जाने के। उन्होंने अल्लाह के हुक्म के मुताबिक़ उस दरख़्त के पास जाने से ख़ुद को रोके रखा फिर इनके दिल में शैतान ने वसवसा डाला और आख़िर कार दोनों से वो खता(गलती) हो गई जिस से अल्लाह तआला ने उन्हें मना फ़रमाया था।

क़ुरआन पाक में अल्लाह तआला ने इरशाद फ़रमाया-

“तो शैतान ने इन्हें इस दरख़्त के ज़रिये फुसलाया और जहाँ वो रहते थे वहाँ से उन्हें अलग कर दिया और हमने फ़रमाया तुम सब नीचे उतरो।”

(सूरह अल-बक़रा,आयात - 36 से 37)

अभी फल खाना ही शुरू ही किया था कि जन्नती लिबास उतर गया और वह दोनों, पत्तों से अपना सतर ढाँपने और शर्मिन्दा होकर इधर उधर भागने लगे। अल्लाह तआला ने फ़रमाया, "ऐ आदम! क्या मुझ से भागते हो आदम ने अर्ज़(बोले) किया- “’नहीं” … “ऐ मेरे रब! बल्कि तुझ से हया करता हूँ। अल्लाह का अताब नाज़िल हुआ कि ऐ आदम! क्या मैंने तुमसे उस दरख़्त के पास जाने से मना नहीं किया था? क्या मैने तुम्हें ख़बरदार नहीं किया था कि शैतान तुम्हारा खुला दुश्मन है? हज़रत आदम अलैहिस्सलाम फ़ौरन अपनी ग़लती का अहसास करते हुए सजदे में गिर गए और नदामत से अर्ज़ करने लगे-

“ऐ परवरदिगार हम ने अपनी जानों पर ज़ुल्म किया और अगर आप ने अपने फ़ज़्ल व करम से हमे माफ़ न फ़रमाया और हम पर रहम न फ़रमाया तो हम ख़सारा(नुक़सान) उठाने वाले हो जायेंगे।”

(सूरह अल-आराफ़ आयत -23)

अल्लाह तआला जो सब के दिलों के हाल जानता है वह हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के दिल की कैफ़ियत को अच्छी तरह जानता था। उसने आप को माफ़ फरमा दिया। लेकिन अल्लाह को आइन्दा के लिए दुनिया को आबाद करना था और नस्ले इन्सानी को बढ़ाना था इसलिए अल्लाह तआला ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम और हव्वा अलैहिस्सलाम को हुक्म दिया कि तुम ज़मीन पर उतर जाओ और वहीं पर रहो और यह बात हमेशा याद रखो कि- “शैतान तुम्हारा खुला दुश्मन है।”

आदम अलैहिस्सलाम की दुनिया में आने के बाद की जिंदगी

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हजरत आदम अलैहिस्सलाम और हव्वा अलैहिस्सलाम का जमीन पर उतारा जाना।

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हज़रत क़तादह रज़िअल्लाहू अन्हूँ और इब्ने अब्बास रज़िअल्लाहू अन्हूँ के मुताबिक़, आदम अलैहिस्सलाम को सब से पहले भारत” की ज़मीन में उतारा गया।[2]

हज़रत अली रज़िअल्लाहू अन्हूं बताते ते हैं कि- आबो हवा के ऐतबार से बेहतरीन जगह “हिन्द” है इसलिए आदम अलैहिस्सलाम को वहीं उतारा गया।

हज़रत इब्ने अब्बास रज़िअल्लाहू अन्हूँ के मुताबिक़ हज़रत हव्वा अलैहिस्सलाम को “जेद्दाह” अरब में उतारा गया। जिस मैदान में हव्वा अलैहिस्सलाम आदम अलैहिस्सलाम से मिलने के लिए आगे बढ़ीं उसे मैदाने मुज़दलफ़ाह” का नाम दिया गया और जिस जगह पर आदम अलैहिस्सलाम और हव्वा अलैहिस्सलाम ने एक दूसरे को पहचाना उसे अराफ़ात” का नाम दिया गया। 

ख़ाना-ए-काबा की तरफ़ जाने का हुक्म

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हज़रत इब्ने अब्बास रज़िअल्लाहू अन्हूँ की रिवायत है कि- पहले आपको एक पहाड़ की चोटी की तरफ़ उतारा गया। फिर उसके दामन की तरफ़ उतारा और ज़मीन पर मौजूद तमाम मख़लूक़ जैसे जिन्न , जानवर , परिन्दे वग़ैरा का मालिक बनाया गया। जब आप पहाड़ की चोटी की तरफ़ से नीचे उतरे तो फ़रिश्तों की मुनाजात की आवाज़ें जो आप पहाड़ की चोटी से सुनते थे आना बंद हो गईं । जब आपने ज़मीन की तरफ़ निगाह उठाई तो दूर तक फैली हुई ज़मीन के अलावा कुछ नज़र न आया और अपने सिवा वहाँ किसी को न पाया तो बड़ी वहशत और अकेलापन महसूस किया और कहने लगे- ऐ मेरे रब!…. क्या मेरे सिवा आपकी ज़मीन को आबाद करने वाला कोई नहीं।

हज़रत वहब रज़िअल्लाहू अन्हूँ से रिवायत है कि– अल्लाह तआला ने आपके सवाल का जवाब देते हुए फ़रमाया कि “अनक़रीब, मैं तुम्हारी औलाद पैदा करूँगा जो मेरी तस्बीह और हम्दो सना करेगी यानि मेरा ज़िक्र करेगी और तारीफ़ बयान करेगी और ऐसा घर बनाऊंगा जिसे मेरी याद में बनाया जायेगा और इसे बज़ुर्गी और बड़ाई के साथ ख़ास करके अपने नाम के साथ फ़ज़ीलत दूंगा और इसका नाम “ख़ाना-ए-काबा रखूँगा”। फिर इस पर अपनी सिफ़त  व जमाल का अक्स डालकर क़ाबिले हुरमत यानि इज़्ज़त वाला और अमन वाला बनाऊँगा। जिस शख़्स ने इसकी हुरमत का ख़्याल रखा वह मेरे नज़दीक क़ाबिले एहतराम है लेकिन जिसने वहाँ रहने वालों को डराया उसने ख़यानत यानि दग़ा की और इसका तक़द्दुस पामाल किया यानि उसे नापाक किया। 

फिर इसकी तरफ़ ऊँटों (या दूसरी सवारियों) पर सवार हो कर दूर दराज़ से ,धूल में लिपटे हुए लोग आएँगे जो लरज़ते हुए तलबियाह यानि (लब्बैक अल्लाह हुम्मा लब्बैक) पढ़ेंगे और रोते हुए आँसू बहाएंगे वो ऊँची आवाज़ से तकबीर कहेंगे। लिहाज़ा जो सिर्फ़ मेरे घर की तरफ़ आने का इरादा रखे वह मेरा मुलाक़ाती है क्योंकि वह मेरी ज़्यारत करने आया है और वह मेरा मेहमान है। मेरी करीम ज़ात पर फ़र्ज़ है कि मैं अपने मेहमान की बख़्शिश  करूँ और उसकी ज़रूरत को पूरा करूँ। जब तक तुम ज़िन्दा रहोगे इसे आबाद करोगे इसके बाद तुम्हारी औलाद में से बहुत से नबी ,उम्मतें और क़ौमें होंगी जो हर ज़माने में इसे आबाद करेंगी।”

इसके बाद हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को हुक्म दिया गया कि वह ख़ाना-ए-काबा जाएं जो ज़मीन पर इनके लिए उतारा गया है और इसका तवाफ़ यानी परिक्रमा करें जैसे कि अर्श पर फ़रिश्तों को करते देखा है। उस वक़्त “काबा” एक याक़ूत या मोती की शक्ल में था। बाद में जब नूह अलैहिस्सलाम की क़ौम पर पानी के सैलाब का अज़ाब नाज़िल हुआ तो अल्लाह तआला ने इसे आसमान पर उठा लिया। बाद में इन्हीं बुनियादों पर अल्लाह तआला ने इब्राहीम अलैहिस्सलाम को हुक्म दिया कि ख़ाना-ए-काबा को दोबारा तामीर करें। 

रिवायत है कि आदम अलैहिस्सलाम हिन्द से बाहर निकले और उस घर को जाने का इरादा किया और ख़ाना-ए-काबा पहुँच कर इसका तवाफ़ किया , हज के सब अरकान अदा किये। इसके बाद “अराफ़ात” के मैदान में आदम अलैहिस्सलाम और हव्वा अलैहिस्सलाम की मुलाक़ात हुई, दोनों ने एक दूसरे को पहचान लिया, फिर मुज़दलफा में एक दूसरे के क़रीब हुए।

हज़रत आदम अलैहिस्सलाम का सरापा यानि रूप-रंग

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इब्ने अबी हातिम से रिवायत है कि रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम फ़रमाते हैं अल्लाह तआला ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को गेहुँआ रंग का, लम्बे क़द का और ज़्यादा बालों वाला बनाया था।

हज़रत आदम अलैहिस्सलाम और हव्वा अलैहिस्सलाम का लिबास

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अल्लाह तआला ने फिर उनकी तरफ़ एक फ़रिश्ता भेजा। जिसने उन्हें वह चीज़ें बताई जो उनके लिबास की ज़रूरत को पूरा करें। रिवायत है कि यह लिबास भेड़ की ऊन ,चौपाओं और दरिंदों की खाल से बना था। लेकिन बाज़ इल्म वालों का कहना है कि यह लिबास तो उनकी औलाद ने पहना था। उनका लिबास तो जन्नत के वही पत्ते थे जो जन्नत से उतरते वक़्त अपने जिस्म पर लपेटे हुए थे। वल्लाहु आलम! यानी अल्लाह को मालूम है।

तमाम नस्ले आदम का अल्लाह की वहदानियत का इक़रार करना

इब्ने अब्बास रज़िअल्लाहू अन्हूँ से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया कि-

“अल्लाह तआला ने आदम अलैहिस्सलाम की पुश्त से पैदा होने वाली तमाम औलाद से “वादी-ए-नौमान” यानि अराफ़ात के मैदान में अहद लिया था। अल्लाह ने अराफ़ात के मैदान में हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की पुश्त से इनसे पैदा होने वाली औलाद को निकाला और अपने सामने चींटियों की तरह फैला दिया। इसके बाद इनसे वादा लिया और फ़रमाया “अलस्तो बिरब्बिकुम”क्या मैं तुम्हारा रब नहीं हूँ? उन्होंने कहा “बला” यानि क्यों नहीं। और उसी दिन क़लम ने क़यामत तक होने वाली सब बातों को लिख दिया।

क़ुरान मजीद में इरशाद हुआ-  

“और जिस वक़्त आपके रब ने आदम की पुश्त से इनकी तमाम औलाद को निकाला और इन्हें ख़ुद इनकी ज़ात पर गवाह बनाया। और फ़रमाया क्या मैं तुम्हारा रब नहीं? सब ने कहा” क्यों नहीं।”

(सूरह अल-आराफ आयात- 182 से 183)

उमर बिन ख़त्ताब रज़िअल्लाहू अन्हूँ से इस आयत की तफ़सीर के बारे में सवाल किया तो उन्होंने फ़रमाया कि मैंने रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से सुना है कि अल्लाह तआला ने आदम अलैहिस्सलाम को पैदा फ़रमाया फिर उनकी पुश्त पर दाहिना हाथ फेरा और उससे उनकी औलाद को निकाला और फ़रमाया कि मैंने जन्नत को उनके लिये और उनको जन्नत हासिल करने वाले आमाल करने के लिये बनाया है। दोबारा आदम अलैहिस्सलाम की पुश्त पर हाथ फेरा और उससे उनकी औलाद को निकाला फ़रमाया कि मैंने दोज़ख़ को उनके लिये और उनको दोज़ख़ हासिल करने वाले आमाल करने के लिये पैदा किया है।

एक सहाबी ने सवाल किया। या रसूलल्लाह फिर अमल की क्या ज़रूरत है? आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया कि- “जब अल्लाह किसी इंसान को जन्नत के लिए पैदा करता है उससे जन्नती आमाल करवाता है यहाँ तक कि वह किसी जन्नत वाले अमल पर ही मर जाता है जिसकी वजह से अल्लाह तआला उसे जन्नत में दाख़िल कर देता है, जब किसी को दोज़ख के लिए पैदा करता है तो उससे दोज़ख हासिल करने वाले आमाल  ही करवाता है यहाँ तक कि वह दोज़ख वाले अमल पर मरता है जिसकी वजह से अल्लाह तआला उसे  दोज़ख में दाख़िल कर देता है।” 

इस सिलसिले में भी उलमा की अलग-अलग राय हैं कुछ का कहना है कि अल्लाह ने उनकी औलाद को, आदम अलैहिस्सलाम के ज़मीन पर भेजने से पहले निकाला था और कुछ का कहना है कि “अराफ़ात” के मैदान में निकाला था। 

सब से पहली चीज़ें

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ख़ुशबू-  हज़रत इब्ने अब्बास रज़िअल्लाहू अन्हूँ की रिवायत है कि जब आदम अलैहिस्सलाम दुनिया में तशरीफ़ लाये तो इनके साथ जन्नत की हवा थी। जो जन्नत के दरख़्तों और वादियों के साथ जुड़ी थी। लिहाज़ा दुनिया में ख़ुशबू जन्नत की हवा की वजह से है। 

हजर-ए-असवदः- हज़रत आदम अलैहिस्सलाम जब दुनिया में तशरीफ़ लाये तो हजर-ए-असवद यानी काला पत्थर (जो क़ाबा की दीवार में लगा हुआ है) भी आपके साथ था। अबु याहया रज़िअल्लाहू अन्हूँ से रिवायत है कि एक दिन हम मस्जिद अल-हरम में बैठे हुए थे। हज़रत मुजाहिद रज़ी० ने हजर-ए-असवद की तरफ़ इशारा करते हुए फ़रमाया- “तुम इसको देख रहे हो”…..  मैने कहा- “क्या हजर यानि पत्थर की तरफ़?” उन्होंने फिर फ़रमाया- “अल्लाह की क़सम हज़रत इब्ने अब्बास रज़िअल्लाहू अन्हूँ ने हम से बयान किया कि “बेशक यह सफ़ेद याक़ूत है जो आदम अलैहिस्सलाम के साथ जन्नत से आया था वह इसके साथ अपने आँसू साफ़ करते थे। जब आप दुनिया में तशरीफ़ लाये तो आपके आँसू ही नहीं थमते थे। यहाँ तक कि वह दोबारा वापस लौट गए (यानि दुनिया से पर्दा फ़रमा गए) ….. यह अरसा एक हज़ार साल बनता है इसके बाद फिर कभी इब्लीस उनको बहकाने पर क़ादिर न हो सका।” ….मैने कहा- “ऐ अबुल हज्जाज ये काला क्यों है” ….. फ़रमाया- “ज़माना-ए- जाहलियत में  हैज़ वाली औरतें इसे छूती थीं।”

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का असा (लाठी)- हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के साथ मूसा अलैहिस्सलाम का असा भी था। जो जन्नत के पेड़ “रेहान” से बना हुआ था। इसकी लम्बाई “दस ज़राह (गज़)”, मूसा अलैहिस्सलाम के क़द के बराबर थी।    

दूसरी चीज़ेः-

 ऊपर दी गई चीज़ों के अलावा जो और दूसरी चीज़ें आदम अलैहिस्सलाम के साथ दुनिया में उतारी गईं उनमें-

  • पेड़ों से निकलने वाला गोंद।
  • लोहे की सिल।
  • हथौड़ा।
  • और लोहे का चिमटा भी शामिल है।

जब पहाड़ पर उतरे तो इस पर लोहे की एक शाख़ उगी देखी लिहाज़ा आप हथौड़े के साथ उसे तोड़ने लगे और फ़रमाया ये हथौड़ा इसी की जिन्स या क़िस्म है। वो लोहे की शाख़ पुरानी और कमज़ोर हो चुकी थी जब आपने आग जलाई तो वो पिघल गई फिर आपने उससे “छुरी” बनाई इसके साथ आप बहुत से काम करते थे। इसके बाद आपने तन्दूर बनाया कहा जाता ये वही तन्दूर था  जो नूह अलैहिस्सलाम को विरासत में मिला था और “तूफ़ाने नूह” के वक़्त यही तन्दूर उबला था।  [ वल्लाहु आलम ]

खाने वाली पाकीज़ा चीज़ें –

इब्ने उम्र रज़िअल्लाहू अन्हूँ से रिवायत है कि-

“जब हज़रत आदम अलैहिस्सलाम जन्नत से दुनिया में तशरीफ़ लाये तो आपके सिर पर जन्नती पत्तों का एक ताज था। कुछ वक़्त बाद यह पत्ते सूख कर गिर गये और इधर उधर बिखर गये। जिस से तमाम पाक़ीज़ा चीज़ें  उग गईं ”             

इब्ने इस्हाक़ रज़िअल्लाहू अन्हूँ से रिवायत कि-

“जब आप जन्नत से तशरीफ़ लाये और एक पहाड़ पर उतरे तो आपके साथ जन्नती पेड़ों के पत्ते थे।

क़सामा बिन ज़ुबैर अशअरी रह. रिवायत करते हैं कि-

“अल्लाह तआला ने जब हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को जन्नत से निकाला तो उन्हें जन्नती फल रास्ते के लिये दिये और उनकी ख़ूबियाँ भी बताईं । इसलिये दुनिया के तमाम फल जन्नत के फलों से ताल्लुक़ रखते हैं। फ़र्क़ यह है कि जन्नत के फल सड़ते नहीं हैं। 

अल्लाह तआला ने फ़रमाया-

“ऐ आदम! बेशक ये तुम्हारा और तुम्हारी बीवी का खुला दुश्मन है। तो ऐसा न हो वो तुम दोनों को जन्नत से निकाल दे फिर मुशक़्क़त में पड़ो। तुम्हारे लिए जन्नत यह है कि न तुम भूखे हो, न लिबास की ज़रूरत हो और ये कि तुम्हें इस में न प्यास लगे और न धूप।”

(सूरह ताहा, आयात- 116 से 119)

जब आदम अलैहिस्सलाम और हव्वा अलैहिस्सलाम जन्नत में थे तो कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती थी ख़ूब आराम से रहते और जन्नत के फल व खाने खाते थे। लेकिन जब आप दुनिया में तशरीफ़ लाये तो भूख महसूस हुई और उन्होंने अपने रब से खाना तलब किया। तब जिब्राराईल अलैहिस्सलाम गेहूँ की थैली लेकर हाज़िर हुए और सात दाने आपके हाथ पर रखे।

उन्होंने कहा- यह तो वह ही चीज़ है जो जन्नत से निकाले जाने का सबब बनी थी ……

फिर आदम अलैहिस्सलाम ने कहा- “इसका मैं क्या करुँ …… 

जिब्राईल अलैहिस्सलाम ने कहा- “इसे ज़मीन पर फैला दो”….

उन्होंने ऐसा ही किया, फिर अल्लाह तआला ने एक घड़ी में उसको उगा दिया और ये तरीक़ा ज़मीन में बीज डालने का इनकी औलाद में जारी हुआ।

जिब्राईल अलैहिस्सलाम ने कहा- “फसल काटो” उन्होंने ऐसा ही किया।

फिर कहा- “फूँक मार कर भूसे को उड़ा दो”,…… फिर फूँक मारकर आपने भूसे को उड़ा दिया और सिर्फ दाने रह गये। वो फिर एक पत्थर के पास आये और एक को दूसरे पर रखा। और आदम अलैहिस्सलाम से गेहूँ को इस पत्थर पर रख कर पीसने को कहा। फिर आपने इसको पीसा। इसी तरह फिर आटे को गूँधना बताया। फिर जिब्राईल एक पत्थर और लोहा लाये इसको आपस में रगड़ा तो आग पैदा हो गई आग जलाने के बाद आदम अलैहिस्सलाम ने हुक्म के मुताबिक़ आग पर रोटी बनाई। यह सब से पहली रोटी थी जो तैयार हुई। इस तरह अल्लाह तआला ने आदम अलैहिस्सलाम को बाक़ायदा खेती का तरीक़ा सिखाया और लोहे से इस्तेमाल की चीजें बनाने का हुनर भी सिखाया। 

ऊपर बयान की गई आयात में अल्लाह तआला के फरमान के मुताबिक़ जो “मुशक़्क़तें” उठाने के ज़िक्र है इनसे मुराद यही तकलीफ़े हैं जो इंसान को अपनी भूख मिटाने के लिए उठानी पड़ती है जैसे ज़मीन में हल चलाना, बीज डालना और पानी से इसे सैराब करना वग़ैरा- वग़ैरा।  यानि इंसान को अपनी भूख मिटाने के लिए ये सारी मुशक़्क़तें उठानी पड़ती है। 

हाबील और क़ाबील

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हाबील और क़ाबील आदम अलैहिस्सलाम के दो बेटो के नाम हैं। ज़मीन पर सबसे पहला क़त्ल यानी हत्या क़ाबील ने किया था। उसने अपने भाई हाबील का क़त्ल किया था। क़त्ल की वजह में कुछ इख़्तिलाफ़ है कुछ का मानना है कि इसकी वजह आदम की एक बेटी से निकाह था जबकि कुछ का मानना है कि क़त्ल की वजह नज़र का क़ुबूल न होना था पर ज़्यादा लोग पहले क़ौल को सही मानते हैं।

इनके बारे में क़ुरआन पाक में ज़िक्र किया गया।

अल्लाह तआला फ़रमाता है-

“और इन्हें पढ़ कर सुनाओ आदम के दो बेटों की ख़बर जब दोनों ने एक एक नियाज़ पेश की तो एक की क़ुबूल हुई और दूसरे की न क़ुबूल हुई। बोला- क़सम है मैं तुझे क़त्ल कर दूंगा। कहा –‘अल्लाह उसी से क़ुबूल करता है जिसे डर है। बेशक अगर तू अपना हाथ मुझ पर बढ़ायेगा कि मुझे क़त्ल करे तो मैं अपना हाथ तुझ पर न बढ़ाऊँगा कि तुझे क़त्ल करूँ क्योंकि मैं अल्लाह से डरता हूँ। जो मालिक है सारे जहान का मैं तो यह चाहता हूँ कि मेरा और तेरा गुनाह दोनों ही तेरे पल्ले पड़े और तू दोज़ख़ी हो जाये बेशक बे इंसाफों की यही सजा है। तो उसके नफ़्स ने उसे भाई के क़त्ल का शौक़ दिलाया तो उसे क़त्ल कर दिया और रहा नुकसान में। तो अल्लाह ने एक कव्वा भेजा। ज़मीन कुरेदता ताकि उसे दिखाए कि कैसे अपने भाई की लाश छिपाये। बोला हाय! ख़राबी! मैं इस कव्वे जैसा भी न हो सका कि अपने भाई की लाश छिपाता तो पछताता रह गया।”

(सूरह अलमाइदा , आयात- 27 से 31)

इब्ने मसऊद रज़ी° इब्ने अब्बास रज़ी° और दूसरे सहाबा-ए-किराम की रिवायतों के मुताबिक़-

आदम अलैहिस्सलाम के यहाँ जो भी लड़का पैदा होता था उसके साथ एक लड़की पैदा होती थी। तो पहले हमल से पैदा हुए बच्चों का निकाह दूसरे हमल से पैदा हुए बच्चों के साथ होता था। यहाँ तक कि उनके यहाँ दो हमल से हाबील और क़ाबील पैदा हुए। क़ाबील खेती करता था और हाबील चरवाहा था। क़ाबील  बड़ा था और उसके साथ पैदा होने वाली बहन बहुत ख़ूबसूरत थी। क़ानून के मुताबिक़ हाबील ने क़ाबील की बहन से निकाह करना चाहा लेकिन क़ाबील ने यह कह कर इन्कार कर दिया कि मेरे साथ पैदा होने वाली लड़की तेरे साथ पैदा होने वाली लड़की से ज़्यादा हसीन है लिहाज़ा इससे निकाह करने का ज़्यादा हक़दार मैं अपने आपको समझाता हूँ। आदम अलैहिस्सलाम ने इसे ऐसा करने से मना किया लेकिन वह न माना। आख़िर यह फ़ैसला हुआ कि वह दोनों ख़ुदा के नाम पर कुछ नज़र पेश करें जिसकी नज़र क़बूल हो जाये इसका निकाह उससे कर दिया जायेगा। हज़रत आदम अलैहिस्सलाम उस वक़्त अल्लाह के हुक्म के मुताबिक़ मक्का तशरीफ़ ले गये थे।

अल्लाह तआला ने आदम अलैहिस्सलाम से फ़रमाया कि- “ज़मीन पर जो मेरा घर है जानते हो?”

फ़रमाया- “नहीं”

हुक्म हुआ कि- “मक्का में है तुम वहीं जाओ।”

आपने आसमान से कहा कि- “’मेरे बच्चों की तू हिफाज़त करेगा? …… उसने इंकार किया।

फिर ज़मीन से कहा …. उसने भी इंकार किया।

पहाड़ों से कहा….. उन्होनें भी इंकार किया।

फिर क़ाबील से कहा- “उसने कहा- “हाँ में मुहाफ़िज़ हूँ …… आप जाइए वापस लौटकर ख़ुश होंगे।”

आपको  क़ाबील की ज़मानत से इत्मिनान हो गया और चले गये और उनके जाने के बाद क़ुरबानी पेश की गई। 

क़ाबील ने फ़ख़रिया अंदाज़ में कहना शुरू किया कि इस लड़की का मैं ज़्यादा हक़दार हूँ क्योंकि मैं इसका भाई हूँ और तुझसे बड़ा भी हूँ। इसके बाद नज़र पेश करने के लिये हाबील ने एक ख़ूबसूरत सेहतमन्द दुंबा अल्लाह के नाम पर ज़िबाह किया। और बड़े भाई क़ाबील ने अपनी खेती में कुछ हिस्सा निकाला। आग आई और हाबील की नज़र को ले गई। उस ज़माने में क़ुरबानी क़ुबूल होने की यही एक पहचान थी। क़ाबील की नज़र क़बूल नहीं हुई उसने ग़ल्ले में से अच्छी-अच्छी बालें (फसल में से अच्छी - अच्छी फसल) तोड़ कर खा ली थीं क़ाबील अब मायूस हो चुका था इसलिए उसने अपने भाई को क़त्ल करने की धमकी दी। हाबील ने कहा- “अल्लाह उससे डरने वालों की क़ुरबानी क़ुबूल करता है इसमें मेरा क्या क़सूर है।” 

एक रिवायत के मुताबिक़ हाबील की क़रबानी का यह दुंबा जन्नत में पलता रहा और यही वो भेड़ है जो हज़रत इस्माईल के बदले ज़िबाह किया गया था जो उस वक़्त जिब्राईल लेकर हाज़िर हुए थे। 

एक रिवायत में ये भी है कि क़ाबील ने अपनी खेती में से निहायत रद्दी और बेकार चीज़ मरे दिल से अल्लाह की राह में निकाली थी जबकि हाबील ने बहुत ही ख़ूबसूरत ,मरग़ूब और महबूब जानवर खुशी के साथ अल्लाह की राह में क़ुरबान किया। हाबील सेहतमंदी और ताक़त में भी क़ाबील से बेहतर था। लेकिन अल्लाह के ख़ौफ से उसने अपने भाई की ज़ुल्म और ज़्यादती बर्दाश्त की मगर हाथ नहीं उठाया। 

एक दिन क़ाबील, हाबील को तलाश करते हुए छुरी लेकर निकला। रास्ते में दोनों भाईयों की मुलाक़ात हो गई। तो उसने (क़ाबील) कहा- “मैं तुझे मार डालूँगा, तेरी क़ुरबानी क़ुबूल हुई और मेरी नहीं हुई”। दोनों भाइयों में तकरार हुई और क़ाबील ने अपने भाई के छुरा घोंप दिया। हाबील कहते रह गए कि- “खुदा को क्या जवाब देगा, अल्लाह के यहाँ ज़ुल्म का बदला तुझ से बुरी तरह लिया जायेगा” लेकिन इसने अपने भाई को बेरहमी से मार डाला। 

इस सिलसिले में और भी कई रिवायतें बयान की गई हैं-

एक रिवायत कुछ इस तरह है कि हाबील अपने जानवरों को लेकर पहाड़ों पर चले गए थे। क़ाबील उन्हें ढूंढ़ता हुआ वहाँ पहुँचा और एक बड़ा भारी पत्थर उठा कर उनके सिर पर दे मारा जो उस वक़्त सोये हुए थे। 

कुछ मुफ़स्सिरीन का कहना है कि क़ाबील ने एक दरिन्दे की तरह काट काट कर और गला दबाकर हाबील की जान ली। 

और एक रिवायत यह भी है कि जब शैतान ने देखा कि इसे क़त्ल करने का ढंग नहीं आ रहा तो इस मरदूद ने एक जानवर पकड़ कर उसके सिर पर पत्थर मारा, वो जानवर उसी वक़्त मर गया। ये देख कर इसने भी अपने भाई के साथ यह ही किया। [वल्लाहो आलम यानी अल्लाह ही जाने]

रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है कि जो ज़ुल्म से क़त्ल किया जाता है इसका बोझ आदम के इस बेटे के सिर होता है क्योंकि उसने सबसे पहले ज़मीन पर ख़ून नाहक़ बहाया

हज़रत अब्दुल्लाह रजी़° से मरवी है कि जहन्नुम का आधा अज़ाब सिर्फ इसको (क़ाबील को) हो रहा है। सब से बड़ा अज़ाब पाने वाला यही है। ज़मीन के हर क़त्ल का गुनाह इसके ज़िम्मे है। 

दफ़न का तरीक़ा

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अल्लाह तआला क़ुरआन पाक में फ़रमाता है-

 “फिर अल्लाह ने एक कव्वा भेजा। जो ज़मीन कुरेद रहा था ताकि इसे दिखाए कि वो किस तरह अपने भाई की लाश को छिपाए, कहने लगा हाय! ख़राबी मैं इस कव्वे जैसा भी न हो सका कि ज़मीन में अपने भाई की लाश छिपाता तो पछताता रह गया।”

(सूरह अल-माईदा, आयत-31)

इस आयत की तफ़्सीर में है कि हाबील का क़त्ल करने के बाद क़ाबील ने लाश को ऐसे ही छोड़ दिया। उसकी समझ में नहीं आया कि अब क्या करे। आख़िर अल्लाह ने दो कव्वों को भेजा। इन्होनें आपस में झगड़ा किया और एक ने दूसरे को क़त्ल कर दिया। इसके बाद क़ातिल कव्वे ने ज़मीन कुरेदकर एक गढ़ा खोदा और इसमें इसकी लाश को रखकर मिट्टी से दबा दिया। जब क़ाबील ने ये मंज़र देखा तो कहा हाय! में इस कव्वे से भी गया गुज़रा हो गया फिर इसने भी यही तरीक़ा अपनाया और बाद में औलाद-ए- आदम में भी यही तरीक़ा जारी रहा। 

हज़रत अली रजी़° से रिवायत है कि जब काबील ने अपने भाई हाबील को मार दिया तो हज़रत आदम अलैहिस्सलाम बहुत रोये और कुछ अशआर पढ़े, जिनका मतलब इस तरह से है-

शहर और इसके रहने वाले सब लोगों की हालत तबदील हो गई,

सतह ज़मीन भी ग़ुबार आलूद और बे हक़ीक़त बन गई।

हत्ता कि हर जायक़ेदार और रंगदार शय का भी ज़ायक़ा और रंग बदल गया,

और हसीन चेहरों की तरो ताज़गी कम हो गई।।

इसके बाद हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को जवाब इन अशआर की शक्ल में अल्लाह तआला की तरफ़ से दिया गया-

ऐ हाबील! के बाप यक़ीनन वो दोनों क़त्ल हो गये जो ज़िन्दा है वह भी मुर्दों जैसा हो गया। वह डरी हई हालत में बुराई का मुर्तकिब हुआ।  वह जिसकी वजह से अब हर वक़्त चीख़ता चिंघाड़ता फिरता है।

हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की औलाद

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इब्ने इस्हाक़ रज़ी० की रिवायत है कि आदम अलैहिस्सलाम की कुल औलाद चालीस थी जो बीस हमल से पैदा हुई। इस में से कुछ के नाम हम तक पहुंचे और कुछ के नहीं पहुंचे। 15 बेटों और 4 बेटियों के नाम हम तक पहुँचे हैं जो इस तरह हैं- 

बेटों के नाम 

क़ाबील, हाबील, शीश, अबाद, बालिग़, असानी, तूबा, बनान, शबूबा, हय्यान, ज़राबीस, हज़र, यहूद, सन्दल, बारुक़ 

बेटियों के नाम 

क़लीहा अक़लीमा, लियूज़ा, अशूस, ख़रूरता 

हज़रत आदम अलैहिस्सलाम नबीरसूल हैं:- 

वह नबी जिन पर किताब नाज़िल की गई हो और नई शरीयत लेकर आये हों उन्हें रसूल कहते हैं । अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने आदम अलैस्सलाम को ज़मीन की सल्तनत अता फ़रमाई और उन्हें नबूवत से नवाज़ा और उन्हें उनकी औलाद की ही तरफ़ रसूल बना कर भेजा। उन पर इक्कीस (21) सहीफ़े नाज़िल हुए। जिन्हें आपने अपने रस्मुलख़त (लिपी) में लिखा। उन्हें जिब्राईल अलैहिस्सलाम ने लिखना सिखाया। 

अबूज़र ग़फ़्फ़ारी रज़ि° से रिवायत है कि-

एक बार मैं मस्जिद में दाख़िल हुआ तो वहाँ रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अकेले बैठे हुए थे। मैं भी आपके क़रीब बैठ गया आपने फ़रमाया- ऐ अबूज़र! मस्जिद के लिए भी सलाम है यानि इसका सलाम तहय्यातुल मस्जिद की दो रकअतें हैं लिहाज़ा तुम खड़े होकर दो रकअत नमाज़ अदा करो। मैं दो रकअत नमाज़ अदा करके दोबारा आकर बैठ गया। अर्ज़ किया या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम आपने मुझे नमाज़ पढ़ने का हुक्म दिया यह बताइये कि नमाज़ क्या है? फ़रमाया- बेहतरीन चीज़ है ज़्यादा हो या  कम। आपने फिर एक लम्बा क़िस्सा बयान फ़रमाया।

इसे सुनते हुए मैंने पूछा- “इसमें अम्बिया अलैहिस्सलाम कितने हैं”

फ़रमाया- “एक लाख चौबीस हज़ार

मैने सवाल किया- “इसमें रसूल कितने है?”

फ़रमाया- “तीन सौ तेरह (313)

मैंने अर्ज़ की-  “पहले नबी कौन हैं”

फ़रमाया- “आदम अलैस्सलाम

मैंने पूछा- “वह रसूल थे”

फ़रमाया- “हाँ,  अल्लाह तआला ने उन्हें अपने दस्ते क़ुदरत से बनाया फिर अपने सामने खड़ा करके गुफ़्तगू फ़रमाई।

यह भी कहा जाता है कि इनकी शरीयत में मुर्दार, ख़ून और खिंज़ीर के गोश्त की हुरमत के सिलसिले में एहकाम नाज़िल हुए इन पर नाज़िल होने वाले सहीफ़े इक्कीस वरक़ों में लिखे हैं। 

हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के वारिस

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जब आदम अलैहिस्सलाम की उम्र 130 साल हुई तो हव्वा अलैहिस्सलाम के बदन से शीश अलैहिस्सलाम की पैदाइश हुई, उनकी पैदाइश हाबील के क़त्ल के 50 साल बाद हुई। 

इब्ने अब्बास रज़ी° से रिवायत है कि आदम अलैहिस्सलाम के शीश अलैहिस्सलाम और इनकी एक बहन ग़ुरूरा पैदा हुईं । इनकी पैदाइश पर जिब्राईल अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया कि यह अल्लाह का अतिया है जो कि “हाबील” का बदल है इन्हें अरबी ज़ुबान में शश, सिरयानी में शास, जबकि इब्रानी में शीश कहते हैं और आप ही हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के जानशीन बने। 

अबुज़र ग़फ़्फ़ारी राज़ी° से रिवायत है मैं ने अर्ज़ किया। या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अल्लाह तआला ने कुल कितनी किताबें नाज़िल फरमाई। फ़रमाया 104 और हज़रत शीश अलैहिस्सलाम पर 50 सहीफ़े नाज़िल हुए। और अब इंसानो का शजरा शीश अलैहिस्सलाम से ही मिलता है।  बाक़ी आदम अलैहिस्सलाम की नस्ल ख़त्म हो गई थी। 

हज़रत आदम अलैहिस्सलाम का जनाज़ा

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बयान किया जाता है कि हज़रत आदम अलैहिस्सलाम अपनी वफ़ात से पहले ग्यारह (11) दिन बीमार रहे। उन्होंने अपना जानशीन अपने बेटे शीश अलैहिस्सलाम को बनाया। और उनके लिए एक वसीयत नामा लिखवाया। और इनके सुपुर्द करके इसे क़ाबील और उसकी औलाद से छिपाने का हुक्म दिया। क्योंकि क़ाबील ने अपने भाई को हसद के बाईस क़त्ल किया था। इस वजह से शीश अलैहिस्सलाम और उनकी औलाद ने जो इल्म उन्हें दिया गया था उसको क़ाबील और उसकी औलाद से ख़ुफ़िया रखा। 

मुहम्मद बिन इस्हाक़ रज़ी° रिवायत करते हैं कि जब आपकी वफ़ात का वक़्त क़रीब आया तो आपने शीश अलैहिस्सलाम को बुलाया उनसे वादा लिया और दिन रात की घड़ियाँ और वक़्तों का इल्म सिखाया और यह भी बताया कि हर घड़ी कोई न कोई अल्लाह की मख़लूक़ उसकी इबादत में मशग़ूल रहती है और फ़रमाया मेरे अज़ीज़ बेटे अनक़रीब ज़मीन पर एक तूफ़ान आयेगा जो सात साल तक रहेगा। फिर वसीयत नामा लिखवाया और जब अपना वसीयत नामा लिख कर फ़ारिग़ हुए तो आपका इन्तक़ाल हो गया। अल्लाह आप पर अपनी बेशुमार रहमतें नाज़िल फरमाए आमीन!

आपकी वफ़ात पर मलायका जमा हुए और क़ब्र बनाई। इस वक़्त शीश अलैहिस्सलाम और उनके भाई, “मशारिकुल फ़िरदौस” नामी एक बस्ती में रहते थे, जो ज़मीन पर सबसे पहली बस्ती थी। आपकी वफ़ात पर चाँद सूरज लगातार सात दिन और सात रात ग्रहण में रहे। फ़रिश्तों ने आपकी लिखी हुई नसीहत को जमा किया और इसे एक सीढ़ी नुमा चीज़ पर रख दिया इस के साथ एक नाक़ूस (घंटा) भी था। जिसे आदम अलैहिस्सलाम जन्नत से लाये थे कि अल्लाह की याद से ग़ाफ़िल न हो। 

इस सिलसिले की एक हदीस जो अबी बिन काब रज़िअल्लाहू अन्हूँ से मरवी है रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम फ़रमाते हैं कि जब हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की वफ़ात यानी मृत्यु का वक़्त क़रीब आया तो अल्लाह ताला ने इनके लिए जन्नत का कफ़न और हुनूत (ख़ुशबूदार चीजों को मिलाकर मुर्दे के जिस्म पर मला जाता है) भेजा। हव्वा अलैहिस्सलाम ने जब फ़रिश्तों को आते देखा तो समझ गईं और आदम अलैहिस्सलाम की तरफ़ बढ़ीं तब आदम अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया मेरे और मेरे ख़ुदा के भेजे हुए क़ासिदो के बीच से हट जाओ, तुम से तो रोज़ाना मुलाक़ात होती है बल्कि तुम्हारी बात से तो मुसीबत पहुँची।

आपकी रूह क़ब्ज़ होने के बाद फ़रिश्तों ने उन्हें बेरी के पत्तों और पानी के साथ ताक़ अदद यानी यानी (बिषम संख्या) के मुताबिक़ ग़ुस्ल दिया। कफ़न में भी ताक़ अदद का लिहाज़ रखा फिर लहद बनाकर सुपुर्दे खाक़ किया। और फ़रमाया कि इनकी औलाद में भी यही तरीक़ा जारी रहेगा। 

इब्ने अब्बास रज़िअल्लाहू अन्हूँ से मरवी है कि आपके इन्तक़ाल के बाद  शीश अलैहिस्सलाम ने जिब्राईल अमीन से कहा कि आप नमाज़े जनाज़ा पढ़ाइयें लेकिन हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम ने शीश अलैहिस्सलाम से फ़रमाया कि आप आगे बढें। शीश अलैहिस्सलाम ने अपने वालिद के जनाज़े की नमाज़ पढ़ाई और उन्होंने तीस तक़बीरे पढ़ीं। पाँच तो नमाज़ में ज़रूरी है बाक़ी आपकी फ़ज़ीलत के बाईस। 

दफन की जगह

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हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के दफन की जगह पर उलमा में इख़्तिलाफ है कुछ अहले इल्म का कहना है कि आपको ”जब्ल अबी क़ैस” की ग़ार में दफन किया गया जो “मक्का” में है जिसे “ग़ारुल कंज़” है हज़रत इब्ने अब्बास रज़ी° से रिवायत है कि “तूफाने नूह” के वक़्त हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने आपके जसदे मुबारक (Body) को कश्ती में रखा और जब तूफ़ान थम गया तो आपने कश्ती से बाहर निकल कर आदम अलैहिस्सलाम को ”बैतुल मुक़ददस” में एक मुक़ाम पर दफन कर दिया। आपकी वफ़ात जुमे के दिन हुई। 

हज़रत हव्वा अलैस्सलाम की वफ़ात

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 हज़रत इब्ने अब्बास रज़िअल्लाहू अन्हूँ से मरवी है कि हव्वा अलैहिस्सलाम की वफ़ात “बूज़” नामी पहाड़ी पर हुई और आपकी वफ़ात आदम अलैहिस्सलाम की वफ़ात से एक साल बाद हुई। फिर अपने शौहर के साथ ही ग़ार में दफन हुईं। और जब तूफाने नूह आया तो नूह अलैहिस्सलाम ने दोनों का जसदे मुबारक कश्ती में रख लिया था और दोनों को बैतुल मुक़द्दस में दफ़न कर दिया। (वल्लाहु आलम )

अल्लाह तआला दोनों पर अपनी बेशुमार रहमते नाज़िल फरमाये आमीन सुम्मा आमीन!

हज़रत हव्वा अलैस्सलाम के बारे में कहा जाता है कि आप सूत काततीं, आटा गूंधतीं, रोटी पकातीं और औरतों वाले दूसरे काम करतीं थीं। 

  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से 1 अक्तूबर 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 अप्रैल 2020.
  2. "संग्रहीत प्रति". मूल से 5 सितंबर 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 अप्रैल 2020.

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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इस्लाम के पैगम्बर कुरान अनुसार
आदम इदरीस नुह हुद सालेह इब्राहीम लूत इस्माइल इसहाक याकूब यूसुफ़ अय्यूब  
آدم إدريس نوح هود صالح إبراهيم لوط إسماعيل إسحاق يعقوب يوسف أيوب
आदम (बाइबल) इनोच नोअह एबर शेलह अब्राहम लॉट इश्माएल आइजै़क जैकब जोसफ जॉब

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