अल-हिज्र
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सूरा अल-हिज्र (इंग्लिश: Al-Ḥijr (sūrah), इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन का 15 वां सूरा, या अध्याय है। इसमें 99 आयतें हैं।
वर्गीकरण | मक्की |
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नाम
संपादित करेंइस सूरा के [1] आयत 80 के वाक्यांश “हिज्र के लोग भी रसूलों को झुठला चुके हैं,” से उद्धृत है।
अवतरणकाल
संपादित करेंमक्कन सूरा अर्थात् पैग़म्बर मुहम्मद के मक्का के निवास के अंतिम समय अवतरित हुई।
वस्तु और वर्णन-शैली से स्पष्टतः परिलक्षित होता है कि इस सूरा का अवतरणकाल सूरा 14 (इबराहीम) से संसर्गयुक्त है। इसकी पृष्ठभूमि में दो चीज़े बिलकुल स्पष्ट दिखाई देती हैं। एक यह कि सत्य की ओर बुलाते हुए नबी (सल्ल.) को एक दीर्घ समय बीत चुका है और संबोधित लोगों की सतत् हठधर्मी , उपहास , विरोध और अत्याचार अपने चरम को पहुँच चुका है । इसके पश्चात् अब समझाने-बुझाने का अवसर कम और चेतावनी देने और डराने का अवसर ज़्यादा है। दूसरे यह कि अपनी क़ौम के कुन और इनकार और विरोध के पहाड़ तोड़ते रहने के कारण नबी (सल्ल.) थके जा रहे हैं और दिल टूट जाने की स्थिति से बार - बार आपको सामना करना पड़ रहा है , जिसे देखकर अल्लाह आपको सांत्वना दे रहा है और आपकी हिम्मत बँधा रहा है।
केंद्रीय विषय और उद्देश्य
संपादित करेंदो विषय-वार्ताएँ इस सूरा में उल्लिखित हुई हैं। अर्थात् चेतावनी उन लोगों को जो नबी (सल्ल.) के आमंत्रण का इनकार कर रहे थे और आपका मज़ाक़ उड़ाते और आपके कार्य में तरह - तरह की रुकावटें खड़ी करते थे और सांत्वना और साहस बढ़ाना नबी (सल्ल.) का। किन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि यह सूरा समझाने - बुझाने और उपदेश से रिक्त है । कुरआन में कहीं भी अल्लाह ने मात्र चेतावनी या विशुद्ध डाँट फटकार से काम नहीं लिया है। सख़्त से सख़्त धमकियों और भर्त्सनाओं के मध्य भी वह समझाने और उपदेश देने में कमी नहीं करता। अतएव इस सूरा में भी एक ओर एकेश्वरवाद के प्रमाणों की तरफ़ संक्षिप्त संकेत किए गए हैं और दूसरी तरफ़ आदम (अलै.) और इबलीस का वृत्तान्त सुनाकर उपदेश दिया गया है।
सुरह अल-हिज्र का अनुवाद
संपादित करेंअल्लाह के नाम से जो दयालु और कृपाशील है।
अल-हिज्र | |
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जानकारी | |
धर्म | इस्लाम |
भाषा | अरबी |
अवधि | 609–632 |
अध्याय | 114 |
श्लोक/आयत | 6,236 |
15|1|अलिफ़॰ लाम॰ रा॰। यह किताब अर्थात् स्पष्ट क़ुरआन की आयतें हैं [2]
15|2|ऐसे समय आएँगे जब इनकार करनेवाले कामना करेंगे कि क्या ही अच्छा होता कि हम मुस्लिम (आज्ञाकारी) होते!
15|3|छोड़ो उन्हें खाएँ और मज़े उड़ाएँ और (लम्बी) आशा उन्हें भुलावे में डाले रखे। उन्हें जल्द ही मालूम हो जाएगा!
15|4|हमने जिस बस्ती को भी विनष्ट किया है, उसके लिए अनिवार्यतः एक निश्चित फ़ैसला रहा है!
15|5|किसी समुदाय के लोग न अपने निश्चित समय से आगे बढ़ सकते हैं और न वे पीछे रह सकते हैं
15|6|वे कहते हैं, "ऐ व्यक्ति, जिसपर अनुस्मरण अवतरित हुआ, तुम निश्चय ही दीवाने हो!
15|7|यदि तुम सच्चे हो तो हमारे समक्ष फ़रिश्तों को क्यों नहीं ले आते?"
15|8|फ़रिश्तों को हम केवल सत्य के प्रयोजन हेतु उतारते है और उस समय लोगों को मुहलत नहीं मिलेगी
15|9|यह अनुसरण निश्चय ही हमने अवतरित किया है और हम स्वयं इसके रक्षक हैं
15|10|तुमसे पहले कितने ही विगत गिरोंहों में हम रसूल भेज चुके हैं
15|11|कोई भी रसूल उनके पास ऐसा नहीं आया, जिसका उन्होंने उपहास न किया हो
15|12|इसी तरह हम अपराधियों के दिलों में इसे उतारते है
15|13|वे इसे मानेंगे नहीं। पहले के लोगों की मिसालें गुज़र चुकी हैं
15|14|यदि हम उनपर आकाश से कोई द्वार खोल दें और वे दिन-दहाड़े उसमें चढ़ने भी लगें,
15|15|फिर भी वे यही कहेंगे, "हमारी आँखें मदमाती हैं, बल्कि हम लोगों पर जादू कर दिया गया है!"
15|16|हमने आकाश में बुर्ज (तारा-समूह) बनाए और हमने उसे देखनेवालों के लिए सुसज्जित भी किया
15|17|और हर फिटकारे हुए शैतान से उसे सुरक्षित रखा-
15|18|यह और बात है कि किसी ने चोरी-छिपे कुछ सुनगुन ले लिया तो एक प्रत्यक्ष अग्निशिखा ने भी झपटकर उसका पीछा किया-
15|19|और हमने धरती को फैलाया और उसमें अटल पहाड़ डाल दिए और उसमें हर चीज़ नपे-तुले अन्दाज़ में उगाई
15|20|और उसमें तुम्हारे गुज़र-बसर के सामान निर्मित किए, और उनको भी जिनको रोज़ी देनेवाले तुम नहीं हो
15|21|कोई भी चीज़ तो ऐसी नहीं है जिसके भंडार हमारे पास न हों, फिर भी हम उसे एक ज्ञात (निश्चिंत) मात्रा के साथ उतारते है
15|22|हम ही वर्षा लानेवाली हवाओं को भेजते है। फिर आकाश से पानी बरसाते है और उससे तुम्हें सिंचित करते हैं। उसके ख़जानादार तुम नहीं हो
15|23|हम ही जीवन और मृत्यु देते हैं और हम ही उत्तराधिकारी रह जाते हैं
15|24|हम तुम्हारे पहले के लोगों को भी जानते हैं और बाद के आनेवालों को भी हम जानते हैं 15|25|तुम्हारा रब ही है, जो उन्हें इकट्ठा करेगा। निस्संदेह वह तत्वदर्शी, सर्वज्ञ है
15|26|हमने मनुष्य को सड़े हुए गारे की खनखनाती हुई मिट्टी से बनाया है,
15|27|और उससे पहले हम जिन्नों को लू रूपी अग्नि से पैदा कर चुके थे
15|28|याद करो जब तुम्हारे रब ने फ़रिश्तों से कहा, "मैं सड़े हुए गारे की खनखनाती हुई मिट्टी से एक मनुष्य पैदा करनेवाला हूँ
15|29|तो जब मैं उसे पूरा बना चुकूँ और उसमें अपनी रूह फूँक दूँ तो तुम उसके आगे सजदे में गिर जाना!"
15|30|अतएव सब के सब फ़रिश्तो ने सजदा किया,
15|31|सिवाय इबलीस के। उसने सजदा करनेवालों के साथ शामिल होने से इनकार कर दिया
15|32|कहा, "ऐ इबलीस! तुझे क्या हुआ कि तू सजदा करनेवालों में शामिल नहीं हुआ?"
15|33|उसने कहा, "मैं ऐसा नहीं हूँ कि मैं उस मनुष्य को सजदा करूँ जिसको तू ने सड़े हुए गारे की खनखनाती हुए मिट्टी से बनाया।"
15|34|कहा, "अच्छा, तू निकल जा यहाँ से, क्योंकि तुझपर फिटकार है!
15|35|निश्चय ही बदले के दिन तक तुझ पर धिक्कार है।"
15|36|उसने कहा, "मेरे रब! फिर तू मुझे उस दिन तक के लिए मुहलत दे, जबकि सब उठाए जाएँगे।"
15|37|कहा, "अच्छा, तुझे मुहलत है,
15|38|उस दिन तक के लिए जिसका समय ज्ञात एवं नियत है।"
15|39|उसने कहा, "मेरे रब! इसलिए कि तूने मुझे सीधे मार्ग से विचलित कर दिया है, अतः मैं भी धरती में उनके लिए मनमोहकता पैदा करूँगा और उन सबको बहकाकर रहूँगा,
15|40|सिवाय उनके जो तेरे चुने हुए बन्दे होंगे।"
15|41|कहा, "मुझ तक पहुँचने का यही सीधा मार्ग है,
15|42|मेरे बन्दों पर तो तेरा कुछ ज़ोर न चलेगा, सिवाय उन बहके हुए लोगों को जो तेरे पीछे हो लें
15|43|निश्चय ही जहन्नम ही का ऐसे समस्त लोगों से वादा है
15|44|उसके सात द्वार है। प्रत्येक द्वार के लिए एक ख़ास हिस्सा होगा।"
15|45|निस्संदेह डर रखनेवाले बाग़ों और स्रोतों में होंगे,
15|46|"प्रवेश करो इनमें निर्भयतापूर्वक सलामती के साथ!"
15|47|उनके सीनों में जो मन-मुटाव होगा उसे हम दूर कर देंगे। वे भाई-भाई बनकर आमने-सामने तख़्तों पर होंगे
15|48|उन्हें वहाँ न तो कोई थकान और तकलीफ़ पहुँचेगी औऱ न वे वहाँ से कभी निकाले ही जाएँगे
15|49|मेरे बन्दों को सूचित कर दो कि मैं अत्यन्त क्षमाशील, दयावान हूँ;
15|50|और यह कि मेरी यातना भी अत्यन्त दुखदायिनी यातना है
15|51|और उन्हें इबराहीम के अतिथियों का वृत्तान्त सुनाओ,
15|52|जब वे उसके यहाँ आए और उन्होंने सलाम किया तो उसने कहा, "हमें तो तुमसे डर लग रहा है।"
15|53|वे बोले, "डरो नहीं, हम तुम्हें एक ज्ञानवान पुत्र की शुभ सूचना देते हैं।"
15|54|उसने कहा, "क्या तुम मुझे शुभ सूचना दे रहे हो, इस अवस्था में कि मेरा बुढापा आ गया है? तो अब मुझे किस बात की शुभ सूचना दे रहे हो?"
15|55|उन्होंने कहा, "हम तुम्हें सच्ची शुभ सूचना दे रहे हैं, तो तुम निराश न हो"
15|56|उसने कहा, "अपने रब की दयालुता से पथभ्रष्टों के सिवा और कौन निराश होगा?"
15|57|उसने कहा, "ऐ दूतो, तुम किस अभियान पर आए हो?"
15|58|वे बोले, "हम तो एक अपराधी क़ौम की ओर भेजे गए है,
15|59|सिवाय लूत के घरवालों के। उन सबको तो हम बचा लेंगे,
15|60|सिवाय उसकी पत्नी के - हमने निश्चित कर दिया है, वह तो पीछे रह जानेवालों में रहेंगी।"
15|61|फिर जब ये दूत लूत के यहाँ पहुँचे,
15|62|तो उसने कहा, "तुम तो अपरिचित लोग हो।"
15|63|उन्होंने कहा, "नहीं, बल्कि हम तो तुम्हारे पास वही चीज़ लेकर आए है, जिसके विषय में वे सन्देह कर रहे थे
15|64|और हम तुम्हारे पास यक़ीनी चीज़ लेकर आए है, और हम बिलकुल सच कह रहे हैं
15|65|अतएव अब तुम अपने घरवालों को लेकर रात्रि के किसी हिस्से में निकल जाओ, और स्वयं उन सबके पीछे-पीछे चलो। और तुममें से कोई भी पीछे मुड़कर न देखे। बस चले जाओ, जिधर का तुम्हे आदेश है।"
15|66|हमने उसे अपना यह फ़ैसला पहुँचा दिया कि प्रातः होते-होते उनकी जड़ कट चुकी होगी
15|67|इतने में नगर के लोग ख़ुश-ख़ुश आ पहुँचे
15|68|उसने कहा, "ये मेरे अतिथि है। मेरी फ़ज़ीहत मत करना,
15|69|अल्लाह का डर ऱखो, मुझे रुसवा न करो।"
15|70|उन्होंने कहा, "क्या हमने तुम्हें दुनिया भर के लोगों का ज़िम्मा लेने से रोका नहीं था?"
15|71|उसने कहा, "तुमको यदि कुछ करना है, तो ये मेरी (क़ौम की) बेटियाँ (विधितः विवाह के लिए) मौजूद है।"
15|72|तुम्हारे जीवन की सौगन्ध, वे अपनी मस्ती में खोए हुए थे,
15|73|अन्ततः पौ फटते-फटते एक भयंकर आवाज़ ने उन्हें आ लिया,
15|74|और हमने उस बस्ती को तलपट कर दिया, और उनपर कंकरीले पत्थर बरसाए
15|75|निश्चय ही इसमें भापनेवालों के लिए निशानियाँ है
15|76|और वह (बस्ती) सार्वजनिक मार्ग पर है
15|77|निश्चय ही इसमें मोमिनों के लिए एक बड़ी निशानी है
15|78|और निश्चय ही ऐसा वाले भी अत्याचारी थे,
15|79|फिर हमने उनसे भी बदला लिया, और ये दोनों (भू-भाग) खुले मार्ग पर स्थित है
15|80|हिज्रवाले भी रसूलों को झुठला चुके हैं
15|81|हमने तो उन्हें अपनी निशानियाँ प्रदान की थी, परन्तु वे उनकी उपेक्षा ही करते रहे
15|82|वे बड़ी बेफ़िक्री से पहाड़ो को काट-काटकर घर बनाते थे
15|83|अन्ततः एक भयानक आवाज़ ने प्रातः होते- होते उन्हें आ लिया
15|84|फिर जो कुछ वे कमाते रहे, वह उनके कुछ काम न आ सका
15|85|हमने तो आकाशों और धरती को और जो कुछ उनके मध्य है, सोद्देश्य पैदा किया है, और वह क़ियामत की घड़ी तो अनिवार्यतः आनेवाली है। अतः तुम भली प्रकार दरगुज़र (क्षमा) से काम लो
15|86|निश्चय ही तुम्हारा रब ही बड़ा पैदा करनेवाला, सब कुछ जाननेवाला है
15|87|हमने तुम्हें सात 'मसानी' का समूह यानी महान क़ुरआन दिया-
15|88|जो कुछ सुख-सामग्री हमने उनमें से विभिन्न प्रकार के लोगों को दी है, तुम उसपर अपनी आँखें न पसारो और न उनपर दुखी हो, तुम तो अपनी भुजाएँ मोमिनों के लिए झुकाए रखो,
15|89|और कह दो, "मैं तो साफ़-साफ़ चेतावनी देनेवाला हूँ।"
15|90|जिस प्रकार हमने हिस्सा-बख़रा करनेवालों पर उतारा था,
15|91|जिन्होंने (अपने) क़ुरआन को टुकड़े-टुकड़े कर डाला
15|92|अब तुम्हारे रब की क़सम! हम अवश्य ही उन सबसे उसके विषय में पूछेंगे
15|93|जो कुछ वे करते रहे।
15|94|अतः तु्म्हें जिस चीज़ का आदेश हुआ है, उसे हाँक-पुकारकर बयान कर दो, और मुशरिको की ओर ध्यान न दो
15|95|उपहास करनेवालों के लिए हम तुम्हारी ओर से काफ़ी है
15|96|जो अल्लाह के साथ दूसरों को पूज्य-प्रभु ठहराते है, तो शीघ्र ही उन्हें मालूम हो जाएगा!
15|97|हम जानते हैं कि वे जो कुछ कहते हैं, उससे तुम्हारा दिल तंग होता है
15|98|तो तुम अपने रब का गुणगान करो और सजदा करनेवालों में सम्मिलित रहो
15|99|और अपने रब की बन्दगी में लगे रहो, यहाँ तक कि जो यक़ीनी है, वह तुम्हारे सामने आ जाए
पिछला सूरा: << |
क़ुरआन | अगला सूरा: >> |
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इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ:
संपादित करें- ↑ अनुवादक: मौलाना फारूक़ खाँ, भाष्य: मौलाना मौदूदी. अनुदित क़ुरआन संक्षिप्त टीका सहित. पृ॰ 379 से.
- ↑ Al-Hijr सूरा का हिंदी अनुवाद http://tanzil.net/#trans/hi.farooq/15:1 Archived 2018-04-25 at the वेबैक मशीन