क़ाफ़ (सूरा)

इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन का 50 वां सूरा (अध्याय) है
(काफ (सूरा) से अनुप्रेषित)

सूरा क़ाफ़ (इंग्लिश: Qaf (surah) इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन का 50 वां सूरा (अध्याय) है। इसमें 45 आयतें हैं।

नाम संपादित करें

सूरा क़ाफ़[1]का नाम[2] आरम्भ ही के अक्षर क़ाफ़ से उद्धृत है। मतलब यह है कि वह सूरा जिसका उद्घाटन अक्षर क़ाफ़ से होता है।

अवतरणकाल संपादित करें

मक्की सूरा अर्थात पैग़म्बर मुहम्मद के मक्का के निवास के समय हिजरत से पहले अवतरित हुई।

किसी विश्वस्त उल्लेख से यह पता नहीं चलता कि यह ठीक किस कालखण्ड में अवतरित हुई है, किन्तु विषय-वस्तुओं पर विचार करने से यह महसूस होता है कि इसका अवतरणकाल मक्का मुअज़्ज़मा का दूसरा कालखण्ड है, जो नुबूवत के तीसरे वर्ष से आरम्भ होकर पाँचवे वर्ष तक रहा। इस कालखण्ड की विशेषताएँ सूरा अनआम के परिचय-सम्बन्धी लेख में आ चुकी हैं।

विषय और वार्ताएँ संपादित करें

इस्लाम के विद्वान मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी लिखते हैं कि विश्वस्त उल्लेखों से मालूम होता है कि अल्लाह के रसूल (सल्ल.) अधिकतर दोनों ईदों की नमाज़ों में इस सूरा को पढ़ा करते थे। कुछ और उल्लेखों में आया है कि फ़ज्र की नमाज़ में भी आप अधिकतर इसको पढ़ा करते थे। इससे यह बात स्पष्ट है कि नबी (सल्ल.) की दृष्टि में यह एक बड़ी महत्त्वपूर्ण सूरा थी। इसलिए आप ज़्यादा-से ज़्यादा लोगों तक बार-बार इसकी वार्ताओं को पहुँचाने का आयोजन करते थे। इसके महत्त्व का कारण सूरा को ध्यानपूर्वक पढ़ने से आसानी से समझ में आ जाता है। पूरी सूरा का विषय आख़िरत ( परलोक ) है। अल्लाह के रसूल (सल्ल.) ने जब मक्का मुअज़्ज़मा में अपने आह्वान का आरम्भ किया तो लोगों को सबसे ज़्यादा अचम्भा आपकी जिस बात पर हुआ , वह यह थी कि मरने के पश्चात् मनुष्य पुनः उठाए जाएँगे और उनको अपने कर्मों का हिसाब देना होगा । लोग कहते थे कि यह तो बिलकुल अनहोनी बात है, आख़िर यह कैसे सम्भव है कि जब हमारा कण-कण धरती में बिखर चुका हो तो इन बिखरे हुए अंशों को हज़ारों वर्ष बीत जाने के बाद फिर से इकट्ठा करके हमारा यह शरीर नए सिरे से बना दिया जाए और हम जीवित होकर उठ खड़े हों ? इसके उत्तर में अल्लाह की ओर से यह अभिभाषण अवतरित हुआ। इसमें बड़े संक्षिप्त तरीके से छोटे - छोटे वाक्यों में एक तरफ़ परलोक की सम्भावना और उसके घटित होने के प्रमाण दिए गए हैं और दूसरी तरफ़ लोगों को सावधान किया गया है कि तुम चाहे आश्चर्य करो या बुद्धि से बहुत दूर समझो या झुठलाओ, इससे यथार्थ में कोई परिवर्तन नहीं हो सकता।

सुरह "क़ाफ़ का अनुवाद संपादित करें

बिस्मिल्ला हिर्रह्मा निर्रहीम अल्लाह के नाम से जो दयालु और कृपाशील है।

इस सूरा का प्रमुख अनुवाद:

क़ुरआन की मूल भाषा अरबी से उर्दू अनुवाद "मौलाना मुहम्मद फ़ारूक़ खान", उर्दू से हिंदी "मुहम्मद अहमद" [3] ने किया।

बाहरी कडियाँ संपादित करें

इस सूरह का प्रसिद्ध अनुवादकों द्वारा किया अनुवाद क़ुरआन प्रोजेक्ट पर देखें Qaf (surah) 50:1

पिछला सूरा:
अल-हुजुरात
क़ुरआन अगला सूरा:
अध-धारियात
सूरा 50 - क़ाफ़

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सन्दर्भ: संपादित करें

  1. अनुवादक: मौलाना फारूक़ खाँ, भाष्य: मौलाना मौदूदी. अनुदित क़ुरआन - संक्षिप्त टीका सहित. पृ॰ 759 से.
  2. "सूरा क़ाफ़ का अनुवाद (किंग फ़हद प्रेस)". https://quranenc.com. मूल से 22 जून 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 जुलाई 2020. |website= में बाहरी कड़ी (मदद)
  3. "Qaf (surah) सूरा का अनुवाद". http://tanzil.net. मूल से 25 अप्रैल 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जुलाई 2020. |website= में बाहरी कड़ी (मदद)

इन्हें भी देखें संपादित करें