मरयम (सूरा)
सूरा मरयम (इंग्लिश: Maryam (surah) इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन का 19 वां सूरा या अध्याय है। इसमें 98 आयतें हैं।
वर्गीकरण | मक्की |
---|
नाम
संपादित करेंसूरा मरयम[1] का [2] नाम आयत 16 “ और ऐ नबी इस किताब में मरियम का हाल बयान करो, ” से उद्धृत है।
अवतरणकाल
संपादित करेंमक्कन सूरा अर्थात पैग़म्बर मुहम्मद के मक्का के निवास के अंतिम समय अवतरित हुई।
इसका अवतरणकाल हबशा की हिजरत से पहले का है । विश्वसनीय उल्लेखों से मालूम होता है कि इस्लाम के मुहाजिर (हिजरत करनेवाले) जब नज्जाशी के दरबार में बुलाए गए थे , उस वक्त हज़रत जाफ़र (रजि.) ने इसी सूरा का भरे दरबार में पाठ किया था।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
संपादित करेंमौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी इस सूरा की पृष्ठभूमि बारे में लिखते हैं कि यह सूरा उस कालखण्ड में अवतरित हुई थी) जब कुरैश के सरदार हँसी-ठट्ठा, उपहास, प्रलोभन, डरावा और झूठे आरोपों के प्रसार से इस्लामी आन्दोलन को दबाने में असफल होकर जुल्म और अत्याचार, मार-पीट और आर्थिक दबाव के हथियार इस्तेमाल करने लगे थे। हर क़बीले के लोगों ने अपने-अपने क़बीले के नव-मुसलमानों को तंग किया और तरह-तरह से सताकर उन्हें इस्लाम त्याग देने पर विवश करने की कोशिश की। इस सम्बन्ध में विशेष रूप से ग़रीब लोग और वे गुलाम और गुलामी से मुक्त ऐसे लोग जो कुरैशवालों के अदीन की हैसियत से रहते थे, बुरी तरह पीसे गए। ये परिस्थितियाँ जब असहनीय हो गयी तो रजब सन् 45 आमुलफ़ील ( सन् 5 नबवी ) में नबी (सल्ल.) (के आदेश के अन्तर्गत अधिकतर मुसलमान मक्का से हबशा हिजरत कर गए।) पहले ग्यारह मर्दो और औरतों ने हबशा की राह ली। कुरैश के लोगों ने समुद्र तट तक उनका पीछा किया, किन्तु सौभाग्य से शुऐबह के बन्दरगाह पर समय पर हबशा के लिए नौका मिल गई और वे गिरफ़्तार होने से बच गए। फिर कुछ ही महीनों के भीतर कुछ और लोगों ने हिजरत की, यहाँ तक कि 53 मर्द, 11 औरतें और 7 गैर - कुरैशी मुसलमान हबशा में इकट्ठे हो गए और मक्का में नबी (सल्ल.) के साथ केवल 40 आदमी रह गए।
इस हिजरत से मक्का के घर-घर में कोहराम मच गया, क्योंकि कुरैश के बड़े और छोटे ख़ानदानों में से कोई ऐसा न था जिनके प्रियजन इन हिजरत करनेवालों में सम्मिलित न हों। इसलिए कोई घर न था जो इस घटना से प्रभावित न हुआ हो। कुछ लोग इसके कारण इस्लाम की शत्रुता में पहले से अधिक क्रूर हो गए और कुछ लोगों के दिलों पर इसका प्रभाव ऐसा पड़ा कि वे अन्ततः मुसलमान होकर रहे। अतएव हज़रत उमर (रजि.) की इस्लाम दुश्मनी पर पहली चोट इसी घटना से लगी थी।
इस हिजरत के पश्चात् कुरैश के सरदार सिर जोड़कर बैठे और उन्होंने तय किया कि अब्दुल्लाह बिन अबी रबिआ (अबू जहल के माँ की ओर से भाई) और अम्र बिन आस को बहुत-से मूल्यवान उपहार के साथ हबशा भेजा जाए और ये लोग किसी न किसी तरह नज्जाशी को इस बात पर राज़ी करें कि वह इन हिजरत करनेवालों को मक्का वापस भेज दें। अतएव कुरैश के ये दोनों दूत मुसलमानों का पीछा करते हुए हबशा पहुँचे । पहले इन्होंने नज्जाशी के दरबारियों में बहुत सारे उपहार बाँटकर ( सबको अपने मिशन के समर्थन पर ) राज़ी कर लिया । फिर नज्जाशी से मिले और उसको मूल्यवान उपहार देने के पश्चात् ( इन हिजरत करनेवालों की वापसी के लिए निवेदन किया , जिसका दरबारवालों ने भरपूर समर्थन किया।) किन्तु नज्जाशी ने क्रुद्ध होकर कहा कि “ इस तरह तो मैं इन्हें हवाले नहीं करूंगा । जिन लोगों ने दूसरे देश को छोड़कर मेरे देश पर भरोसा किया और यहाँ शरण लेने के लिए आए उनसे मैं बेवफ़ाई नहीं कर सकता। पहले मैं उन्हें बुलाकर जाँच - पड़ताल करूंगा कि ये लोग उनके बारे में जो कुछ कहते हैं, उसकी वास्तविकता क्या है। ” अतएव नज्जाशी ने अल्लाह के रसूल (सल्ल.) के सहाबियों को अपने दरबार में बुला भेजा । नज्जाशी का संदेश पाकर सब हिजरत करनेवाले इकट्ठा हुए और उन्होंने पारस्परिक परामर्श से एक मत होकर यह फैसला किया कि नबी (सल्ल.) ने जो शिक्षा हमें दी है, हम तो वही बिना किसी कमी - बेशी के पेश करेंगे, चाहे नज्जाशी हमें रखे या निकाल दे। वे दरबार में पहुँचे तो नज्जाशी के प्रश्न करने पर हज़रत जाफ़र बिन अबी तालिब ने तुरन्त एक भाषण (करते हुए अज्ञान काल के अरब की परिस्थितियाँ, नबी (सल्ल.) की पैग़म्बरी , इस्लाम की शिक्षा और मुसलमानों पर कुरैश के अत्याचारों को स्पष्ट रूप से बयान कर दिया) नज्जाशी ने यह भाषण सुनकर कहा, तनिक मुझे वह वाणी तो सुनाओ जिसे तुम कहते हो कि ईश्वर की ओर से तुम्हारे नबी पर अवतरित हुई है। हज़रत जाफ़र (रजि.) ने जवाब में सूरा मरियम का वह आरंभिक भाग सुनाया जो हज़रत यह्या और ईसा अलै.) से सम्बद्ध है । नज्जाशी उसको सुनता रहा और रोता रहा। यहाँ तक कि उसकी दाढ़ी भीग गई। जब हज़रत जाफ़र (रजि.) ने पाठ समाप्त किया तो उसने कहा, “ निश्चय ही यह वाणी और जो कुछ ईसा लाए थे दोनों एक ही स्रोत से निकले हैं। अल्लाह की क़सम, मैं तुम्हें इन लोगों के हवाले न करूंगा।"
दूसरे दिन अम्र बिन आस ने नज्जाशी से कहा कि “ तनिक उन लोगों से बुलाकर यह तो पूछिए कि मरियम के पुत्र ईसा के विषय में उनकी धारणा क्या है? ये लोग उनके विषय में एक बड़ी (भयानक) बात कहते हैं । " नज्जाशी ने फिर मुहाजिरों को बुला भेजा और जब अम्र बिन आस का पेश किया हुआ प्रश्न उनके सामने दोहराया तो जाफ़र बिन अबी तालिब ने उठकर निस्संकोच कहा कि “ वे अल्लाह के बन्दे और उसके रसूल और उसकी ओर से एक आत्मा और एक शब्द हैं , जिसे अल्लाह ने कुँवारी मरयम पर डाला । ” नज्जाशी ने सुनकर एक तिनका ज़मीन से उठाया और कहा, की जो कुछ तुमने कहा है, ईसा उससे इस तिनके के बराबर भी ज़्यादा नहीं थे। " इसके बाद नज्जाशी ने कुरैश के भेजे हुए सभी उपहार यह कहकर वापस कर दिए कि विश्वत मैं नहीं लेता। और मुहाजिरों से कहा कि तुम निश्चिन्ततापूर्वक रहो ।
विषय और वार्ता
संपादित करेंइस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को दृष्टि में रखकर जब हम इस सूरा को देखते हैं तो इसमें सबसे पहले स्पष्ट रूप से यह बात हमारे सामने आती है कि यद्यपि मुसलमान एक सताए हुए शरणार्थी - गिरोह की हैसियत से अपना वतन छोड़कर दूसरे देश में जा रहे थे, किन्तु इस स्थिति में भी अल्लाह ने उनको धर्म के विषय में तनिक भी चाटुकारिता से काम लेने की शिक्षा न दी , बल्कि चलते समय पाथेय के रूप में यह सूरा उनके साथ कर दी, ताकि ईसाइयों के देश में ईसा (अलै .) की बिल्कुल सही हैसियत पेश करें और उनके ईश - पुत्र होने का साफ़ - साफ़ इनकार कर दें।
आयत 1 से लेकर 40 तक हज़रत यह्या (अलै .) और हज़रत ईसा (अलै .) का क़िस्सा सुनाने के पश्चात् फिर इससे आगे की आयतों में समय की परिस्थितियों की एकरूपता को देखते हुए हज़रत इबराहीम अलै.) का क़िस्सा सुनाया गया है, क्योंकि ऐसी ही परिस्थितियों में वे भी अपने बाप , ख़ानदान और देश - निवासियों के अत्याचार से तंग आकर स्वदेश से निकल खड़े हुए थे। इससे एक तरफ़ मक्का के काफ़िरों को यह शिक्षा दी गई है कि आज हिजरत करनेवाले मुसलमान इबराहीम (अलै.) की पोज़िशन में हैं और तुम लोग उन ज़ालिमों की पोज़िशन में हो, जिन्होंने उनको घर से निकाला था दूसरी तरफ़ मुहाजिरों को यह शुभ - सूचना दी गई कि जिस तरह इबराहीम (अलै.) स्वदेश से निकलकर तबाह न हुए बल्कि और अधिक उच्च हो गए, ऐसा ही अच्छा परिणाम तुम्हारी प्रतीक्षा में है।
इसके पश्चात् आयत 51 से लेकर 66 तक दूसरे नबियों का उल्लेख किया गया है जिससे यह बताना अभीष्ट है कि समस्त नबी (उनपर ईश्वर की दया हो ) वही धर्म लेकर आए थे जो मुहम्मद (सल्ल.) लाए हैं। किन्तु नबियों के गुज़र जाने के बाद उनके समुदाय बिगड़ते रहे हैं और आज विभिन्न समुदायों में जो बुराइयाँ पाई जा रही हैं, ये उसी बिगाड़ का परिणाम हैं।
आयत 67 से लेकर अन्त तक मक्का के काफ़िरों की गुमराहियों की तीव्र आलोचना की गई है और अभिभाषण को समाप्त करते हुए ईमानवालों को मंगल सूचना दी गई है कि सत्य के शत्रुओं के समस्त प्रयासों के बावजूद अन्ततः तुम ही लोकप्रिय होकर रहोगे ।
सूरह मरयम का अनुवाद
संपादित करेंबिस्मिल्ला हिर्रह्मा निर्रहीम
अल्लाह के नाम से जो दयालु और कृपाशील है।
19|1|काफ़॰ हा॰ या॰ ऐन॰ साद॰G[3]
19|2|वर्णन है तेरे रब की दयालुता का, जो उसने अपने बन्दे ज़करीया पर दर्शाई,
19|3|जबकि उसने अपने रब को चुपके से पुकारा
19|4|उसने कहा, "मेरे रब! मेरी हड्डियाँ कमज़ोर हो गई और सिर बुढापे से भड़क उठा। और मेरे रब! तुझे पुकारकर मैं कभी बेनसीब नहीं रहा
19|5|मुझे अपने पीछे अपने भाई-बन्धुओं की ओर से भय है और मेरी पत्नी बाँझ है। अतः तू मुझे अपने पास से एक उत्ताराधिकारी प्रदान कर,
19|6|जो मेरा भी उत्तराधिकारी हो और याक़ूब के वशंज का भी उत्तराधिकारी हो। और उसे मेरे रब! वांछनीय बना।"
19|7|(उत्तर मिला,) "ऐ ज़करीया! हम तुझे एक लड़के की शुभ सूचना देते है, जिसका नाम यह्यार होगा। हमने उससे पहले किसी को उसके जैसा नहीं बनाया।"
19|8|उसने कहा, "मेरे रब! मेरे लड़का कहाँ से होगा, जबकि मेरी पत्नी बाँझ है और मैं बुढ़ापे की अन्तिम अवस्था को पहुँच चुका हूँ?"
19|9|कहा, "ऐसा ही होगा। तेरे रब ने कहा कि यह मेरे लिए सरल है। इससे पहले मैं तुझे पैदा कर चुका हूँ, जबकि तू कुछ भी न था।"
19|10|उसने कहा, "मेरे रब! मेरे लिए कोई निशानी निश्चित कर दे।" कहा, "तेरी निशानी यह है कि तू भला-चंगा रहकर भी तीन रात (और दिन) लोगों से बात न करे।"
19|11|अतः वह मेहराब से निकलकर अपने लोगों के पास आया और उनसे संकेतों में कहा, "प्रातः काल और सन्ध्या समय तसबीह करते रहो।"
19|12|"ऐ यह्या! किताब को मज़बूत थाम ले।" हमने उसे बचपन ही में निर्णय-शक्ति प्रदान की,
19|13|और अपने पास से नरमी और शौक़ और आत्मविश्वास। और वह बड़ा डरनेवाला था
19|14|और अपने माँ-बाप का हक़ पहचानेवाला था। और वह सरकश अवज्ञाकारी न था
19|15|"सलाम उस पर, जिस दिन वह पैदा हुआ और जिस दिन उसकी मृत्यु हो और जिस दिन वह जीवित करके उठाया जाए!
19|16|और इस किताब में मरयम की चर्चा करो, जबकि वह अपने घरवालों से अलग होकर एक पूर्वी स्थान पर चली गई
19|17|फिर उसने उनसे परदा कर लिया। तब हमने उसके पास अपनी रूह (फ़रिश्तेप) को भेजा और वह उसके सामने एक पूर्ण मनुष्य के रूप में प्रकट हुआ
19|18|वह बोल उठी, "मैं तुझसे बचने के लिए रहमान की पनाह माँगती हूँ; यदि तू (अल्लाह का) डर रखनेवाला है (तो यहाँ से हट जाएगा) ।"
19|19|उसने कहा, "मैं तो केवल तेरे रब का भेजा हुआ हूँ, ताकि तुझे नेकी और भलाई से बढ़ा हुआ लड़का दूँ।"
19|20|वह बोली, "मेरे कहाँ से लड़का होगा, जबकि मुझे किसी आदमी ने छुआ तक नही और न मैं कोई बदचलन हूँ?"
19|21|उसने कहा, "ऐसा ही होगा। रब ने कहा है कि यह मेरे लिए सहज है। और ऐसा इसलिए होगा (ताकि हम तुझे) और ताकि हम उसे लोगों के लिए एक निशानी बनाएँ और अपनी ओर से एक दयालुता। यह तो ऐसी बात है जिसका निर्णय हो चुका है।"
19|22|फिर उसे उस (बच्चे) का गर्भ रह गया और वह उसे लिए हुए एक दूर के स्थान पर अलग चली गई।
19|23|अन्ततः प्रसव पीड़ा उसे एक खजूर के तने के पास ले आई। वह कहने लगी, "क्या ही अच्छा होता कि मैं इससे पहले ही मर जाती और भूली-बिसरी हो गई होती!"
19|24|उस समय उसे उसके नीचे से पुकारा, "शोकाकुल न हो। तेरे रब ने तेरे नीचे एक स्रोत प्रवाहित कर रखा है।
19|25|तू खजूर के उस वृक्ष के तने को पकड़कर अपनी ओर हिला। तेरे ऊपर ताज़ा पकी-पकी खजूरें टपक पड़ेगी
19|26|अतः तू उसे खा और पी और आँखें ठंडी कर। फिर यदि तू किसी आदमी को देखे तो कह देना, मैंने तो रहमान के लिए रोज़े की मन्नत मानी है। इसलिए मैं आज किसी मनुष्य से न बोलूँगी।"
19|27|फिर वह उस बच्चे को लिए हुए अपनी क़ौम के लोगों के पास आई। वे बोले, "ऐ मरयम, तूने तो बड़ा ही आश्चर्य का काम कर डाला!
19|28|हे हारून की बहन! न तो तेरा बाप ही कोई बुरा आदमी था और न तेरी माँ ही बदचलन थी।"
19|29|तब उसने उस (बच्चे) की ओर संकेत किया। वे कहने लगे, "हम उससे कैसे बात करें जो पालने में पड़ा हुआ एक बच्चा है?"
19|30|उसने कहा, "मैं अल्लाह का बन्दा हूँ। उसने मुझे किताब दी और मुझे नबी बनाया
19|31|और मुझे बरकतवाला किया जहाँ भी मैं रहूँ, और मुझे नमाज़ और ज़कात की ताकीद की, जब तक कि मैं जीवित रहूँ
19|32|और अपनी माँ का हक़ अदा करनेवाला बनाया। और उसने मुझे सरकश और बेनसीब नहीं बनाया
19|33|सलाम है मुझपर जिस दिन कि मैं पैदा हुआ और जिस दिन कि मैं मरूँ और जिस दिन कि जीवित करके उठाया जाऊँ!"
19|34|सच्ची और पक्की बात की स्पष्ट से यह है कि मरयम का बेटा ईसा, जिसके विषय में वे सन्देह में पड़े हुए है
19|35|अल्लाह ऐसा नहीं कि वह किसी को अपना बेटा बनाए। महान और उच्च है, वह! जब वह किसी चीज़ का फ़ैसला करता है तो बस उसे कह देता है, "हो जा!" तो वह हो जाती है। -
19|36|"और निस्संदेह अल्लाह मेरा रब भी है और तुम्हारा रब भी। अतः तुम उसी की बन्दगी करो यही सीधा मार्ग है।"
19|37|किन्तु उनमें कितने ही गिरोहों ने पारस्परिक वैमनस्य के कारण विभेद किया, तो जिन लोगों ने इनकार किया उनके लिए बड़ी तबाही है एक बड़े दिन की उपस्थिति से
19|38|भली-भाँति सुननेवाले और भली-भाँति देखनेवाले होंगे, जिस दिन वे हमारे समाने आएँगे! किन्तु आज ये ज़ालिम खुली गुमराही में पड़े हुए है
19|39|उन्हें पश्चाताप के दिन से डराओ, जबकि मामले का फ़ैसला कर दिया जाएगा, और उनका हाल यह है कि वे ग़फ़लत में पड़े हुए है और वे ईमान नहीं ला रहे है
19|40|धरती और जो भी उसके ऊपर है उसके वारिस हम ही रह जाएँगे और हमारी ही ओर उन्हें लौटना होगा
19|41|और इस किताब में इबराहीम की चर्चा करो। निस्संदेह वह एक सत्यवान नबी था
19|42|जबकि उसने अपने बाप से कहा, "ऐ मेरे बाप! आप उस चीज़ को क्यों पूजते हो, जो न सुने और न देखे और न आपके कुछ काम आए?
19|43|ऐ मेरे बाप! मेरे पास ज्ञान आ गया है जो आपके पास नहीं आया। अतः आप मेरा अनुसरण करें, मैं आपको सीधा मार्ग दिखाऊँगा
19|44|ऐ मेरे बाप! शैतान की बन्दगी न कीजिए। शैतान तो रहमान का अवज्ञाकारी है
19|45|ऐ मेरे बाप! मैं डरता हूँ कि कहीं आपको रहमान की कोई यातना न आ पकड़े और आप शैतान के साथी होकर रह जाएँ।"
19|46|उसने कहा, "ऐ इबराहीम! क्या तू मेरे उपास्यों से फिर गया है? यदि तू बाज़ न आया तो मैं तुझपर पथराव कर दूँगा। तू अलग हो जा मुझसे मुद्दत के लिए!"
19|47|कहा, "सलाम है आपको! मैं आपके लिए रब से क्षमा की प्रार्थना करूँगा। वह तो मुझपर बहुत मेहरबान है
19|48|मैं आप लोगों को छोड़ता हूँ और उनको भी जिन्हें अल्लाह से हटकर आप लोग पुकारा करते है। मैं तो अपने रब को पुकारूँगा। आशा है कि मैं अपने रब को पुकारकर बेनसीब नहीं रहूँगा।"
19|49|फिर जब वह उन लोगों से और जिन्हें वे अल्लाह के सिवा पूजते थे उनसे अलग हो गया, तो हमने उसे इसहाक़ और याक़ूब प्रदान किए और हर एक को हमने नबी बनाया
19|50|और उन्हें अपनी दयालुता से हिस्सा दिया। और उन्हें एक सच्ची उच्च ख्याति प्रदान की
19|51|और इस किताब में मूसा की चर्चा करो। निस्संदेह वह चुना हुआ था और एक रसूल, नबी था
19|52|हमने उसे 'तूर' के मुबारक छोर से पुकारा और रहस्य की बातें करने के लिए हमने उसे समीप किया
19|53|और अपनी दयालुता से अपने भाई हारून को नबी बनाकर उसे दिया
19|54|और इस किताब में इसमाईल की चर्चा करो। निस्संदेह वह वादे का सच्च, नबी था
19|55|और अपने लोगों को नमाज़ और ज़कात का हुक्म देता था। और वह अपने रब के यहाँ प्रीतिकर व्यक्ति था
19|56|और इस किताब में इदरीस की भी चर्चा करो। वह अत्यन्त सत्यवान, एक नबी था
19|57|हमने उसे उच्च स्थान पर उठाया था
19|58|ये वे पैग़म्बर है जो अल्लाह के कृपापात्र हुए, आदम की सन्तान में से और उन लोगों के वंशज में से जिनको हमने नूह के साथ सवार किया, और इबराहीम और इसराईल के वंशज में से और उनमें से जिनको हमने सीधा मार्ग दिखाया और चुन लिया। जब उन्हें रहमान की आयतें सुनाई जातीं तो वे सजदा करते और रोते हुए गिर पड़ते थे
19|59|फिर उनके पश्चात ऐसे बुरे लोग उनके उत्तराधिकारी हुए, जिन्होंने नमाज़ को गँवाया और मन की इच्छाओं के पीछे पड़े। अतः जल्द ही वे गुमराही (के परिणाम) से दोचार होंगा
19|60|किन्तु जो तौबा करे और ईमान लाए और अच्छा कर्म करे, तो ऐसे लोग जन्नत में प्रवेश करेंगे। उनपर कुछ भी ज़ुल्म न होगा। -
19|61|अदन (रहने) के बाग़ जिनका रहमान ने अपने बन्दों से परोक्ष में होते हुए वादा किया है। निश्चय ही उसके वादे पर उपस्थित हाना है। -
19|62|वहाँ वे 'सलाम' के सिवा कोई व्यर्थ बात नहीं सुनेंगे। उनकी रोज़ी उन्हें वहाँ प्रातः और सन्ध्या समय प्राप्त होती रहेगी
19|63|यह है वह जन्नत जिसका वारिस हम अपने बन्दों में से हर उस व्यक्ति को बनाएँगे, जो डर रखनेवाला हो
19|64|हम तुम्हारे रब की आज्ञा के बिना नहीं उतरते। जो कुछ हमारे आगे है और जो कुछ हमारे पीछे है और जो कुछ इसके मध्य है सब उसी का है, और तुम्हारा रब भूलनेवाला नहीं है
19|65|आकाशों और धरती का रब है और उसका भी जो इन दोनों के मध्य है। अतः तुम उसी की बन्दगी पर जमे रहो। क्या तुम्हारे ज्ञान में उस जैसा कोई है?
19|66|और मनुष्य कहता है, "क्या जब मैं मर गया तो फिर जीवित करके निकाला जाऊँगा?"
19|67|क्या मनुष्य याद नहीं करता कि हम उसे इससे पहले पैदा कर चुके है, जबकि वह कुछ भी न था?
19|68|अतः तुम्हारे रब की क़सम! हम अवश्य उन्हें और शैतानों को भी इकट्ठा करेंगे। फिर हम उन्हें जहन्नम के चतुर्दिक इस दशा में ला उपस्थित करेंगे कि वे घुटनों के बल झुके होंगे
19|69|फिर प्रत्येक गिरोह में से हम अवश्य ही उसे छाँटकर अलग करेंगे जो उनमें से रहमान (कृपाशील प्रभु) के मुक़ाबले में सबसे बढ़कर सरकश रहा होगा
19|70|फिर हम उन्हें भली-भाँति जानते है जो उसमें झोंके जाने के सर्वाधिक योग्य है
19|71|तुममें से प्रत्येक को उसपर पहुँचना ही है। यह एक निश्चय पाई हुई बात है, जिसे पूरा करना तेरे रब के ज़िम्मे है।
19|72|फिर हम डर रखनेवालों को बचा लेंगे और ज़ालिमों को उसमें घुटनों के बल छोड़ देंगे
19|73|जब उन्हें हमारी खुली हुई आयतें सुनाई जाती है तो जिन लोगों ने कुफ़्र किया, वे ईमान लानेवालों से कहते हैं, "दोनों गिरोहों में स्थान की स्पष्ट से कौन उत्तम है और कौन मजलिस की दृष्टि से अधिक अच्छा है?"
19|74|हालाँकि उनसे पहले हम कितनी ही नसलों को विनष्ट कर चुके है जो सामग्री और बाह्य भव्यता में इनसे कहीं अच्छी थीं!
19|75|कह दो, "जो गुमराही में पड़ा हुआ है उसके प्रति तो यही चाहिए कि रहमान उसकी रस्सी ख़ूब ढीली छोड़ दे, यहाँ तक कि जब ऐसे लोग उस चीज़ को देख लेंगे जिसका उनसे वादा किया जाता है - चाहे यातना हो या क़ियामत की घड़ी - तो वे उस समय जान लेंगे कि अपने स्थान की स्पष्ट से कौन निकृष्ट और जत्थे की दृष्टि से अधिक कमजोर है।"
19|76|और जिन लोगों ने मार्ग पा लिया है, अल्लाह उनके मार्गदर्शन में अभिवृद्धि प्रदान करता है और शेष रहनेवाली नेकियाँ ही तुम्हारे रब के यहाँ बदले और अन्तिम परिणाम की स्पष्ट से उत्तम है
19|77|फिर क्या तुमने उस व्यक्ति को देखा जिसने हमारी आयतों का इनकार किया और कहा, "मुझे तो अवश्य ही धन और सन्तान मिलने को है?"
19|78|क्या उसने परोक्ष को झाँककर देख लिया है, या रहमान से कोई वचन ले रखा है?
19|79|कदापि नहीं, हम लिखेंगे जो कुछ वह कहता है और उसके लिए हम यातना को दीर्घ करते चले जाएँगे।
19|80|औऱ जो कुछ वह बताता है उसके वारिस हम होंगे और वह अकेला ही हमारे पास आएगा
19|81|और उन्होंने अल्लाह से इतर अपने कुछ पूज्य-प्रभु बना लिए है, ताकि वे उनके लिए शक्ति का कारण बनें।
19|82|कुछ नहीं, ये उनकी बन्दगी का इनकार करेंगे और उनके विरोधी बन जाएँगे। -
19|83|क्या तुमने देखा नहीं कि हमने शैतानों को छोड़ रखा है, जो इनकार करनेवालों पर नियुक्त है?
19|84|अतः तुम उनके लिए जल्दी न करो। हम तो बस उनके लिए (उनकी बातें) गिन रहे है
19|85|याद करो जिस दिन हम डर रखनेवालों के सम्मानित गिरोह के रूप में रहमान के पास इकट्ठा करेंगे।
19|86|और अपराधियों को जहन्नम के घाट की ओर प्यासा हाँक ले जाएँगे।
19|87|उन्हें सिफ़ारिश का अधिकार प्राप्त न होगा। सिवाय उसके, जिसने रहमान के यहाँ से अनुमोदन प्राप्त कर लिया हो
19|88|वे कहते है, "रहमान ने किसी को अपना बेटा बनाया है।"
19|89|अत्यन्त भारी बात है, जो तुम घड़ लाए हो!
19|90|निकट है कि आकाश इससे फट पड़े और धरती टुकड़े-टुकड़े हो जाए और पहाड़ धमाके के साथ गिर पड़े,
19|91|इस बात पर कि उन्होंने रहमान के लिए बेटा होने का दावा किया!
19|92|जबकि रहमान की प्रतिष्ठा के प्रतिकूल है कि वह किसी को अपना बेटा बनाए
19|93|आकाशों और धरती में जो कोई भी है एक बन्दें के रूप में रहमान के पास आनेवाला है
19|94|उसने उनका आकलन कर रखा है और उन्हें अच्छी तरह गिन रखा है
19|95|और उनमें से प्रत्येक क़ियामत के दिन उस अकेले (रहमान) के सामने उपस्थित होगा
19|96|निस्संदेह जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए शीघ्र ही रहमान उनके लिए प्रेम उत्पन्न कर देगा
19|97|अतः हमने इस वाणी को तुम्हारी भाषा में इसी लिए सहज एवं उपयुक्त बनाया है, ताकि तुम इसके द्वारा डर रखनेवालों को शुभ सूचना दो और उन झगड़ालू लोगों को इसके द्वारा डराओ
19|98|उनसे पहले कितनी ही नसलों को हम विनष्ट कर चुके है। क्या उनमें किसी की आहट तुम पाते हो या उनकी कोई भनक सुनते हो?
पिछला सूरा: अल-कहफ़ |
क़ुरआन | अगला सूरा: ता हा |
सूरा 19 - मरयम | ||
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114
|
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ:
संपादित करें- ↑ अनुवादक: मौलाना फारूक़ खाँ, भाष्य: मौलाना मौदूदी. अनुदित क़ुरआन संक्षिप्त टीका सहित. पृ॰ 441 से.
- ↑ "सूरा मरयम". https://quranenc.com.
|website=
में बाहरी कड़ी (मदद) - ↑ Maryam (surah) सूरा का हिंदी अनुवाद http://tanzil.net/#trans/hi.farooq/18:1 Archived 2018-04-25 at the वेबैक मशीन