अर-रहमान

इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन का 55 वां सूरा (अध्याय) है

सूरा अर-रहमान (इंग्लिश: Ar-Rahman) इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन का 55 वां सूरा (अध्याय) है। इसमें 78 आयतें हैं।

कुरआन का सूरा क्र.- 55
الرحمان
अर-रहमान
कृपाशील
वर्गीकरण मक्की
रुकू की संख्या 3
आयत की संख्या 78
शब्दों की संख्या 352
अक्षरो की संख्या 1585

नाम संपादित करें

सूरा अर-रहमान[1]या सूरा अर्-रह़मान[2] पहले ही शब्द को इस सूरा का नाम दिया गया है। इसका अर्थ यह है कि यह वह सूरा है जो अर-रहमान (कृपाशील) शब्द से आरम्भ होती है। फिर भी यह नाम सूरा के विषय से भी गहरा सम्पर्क रखता है, क्योंकि इसमें आरम्भ से अन्त तक अल्लाह की दयालुता के गुण-सूचक चिह्नों और परिणामों का उल्लेख किया गया है।

अवतरणकाल संपादित करें

मक्की सूरा अर्थात् पैग़म्बर मुहम्मद के मक्का के निवास के समय हिजरत से पहले अवतरित हुई।

टीकाकार विद्वान् साधारणतः इस सूरा को मक्की घोषित करते हैं। यद्यपि कुछ उल्लेखों में हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रजि.), इक्रमा (रजि.) और क़तादा (रजि.) का यह कथन उद्धृत है कि यह सूरा मदनी है, किन्तु एक तो इन्हीं महानुभावों से कुछ दूसरे उल्लेखों में इसके विपरीत भी उद्धृत है। दूसरे इसका विषय मदनी सूरतों की अपेक्षा मक्की सूरतों के अधिक अनुरूप है, बल्कि अपने विषय की दृष्टि से यह मक्का के भी आरम्भिक काल की मालूम होती है। और इसके अतिरिक्त तदधिक विश्वस्त उल्लेखों से इस बात का प्रमाण मिलता है यह मक्का मुअज़्ज़मा में ही हिजरत से कई वर्ष पूर्व अवतरित हुई थी।

विषय और वार्ताएँ संपादित करें

इस्लाम के विद्वान मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी लिखते हैं कि कुरआन मजीद की एकमात्र यही सूरा है जिसमें मानव के साथ धरती के दूसरे स्वतंत्र प्राणी जिन्नों को भी प्रत्यक्षतः सम्बोधित किया गया है। यद्यपि पवित्र कुरआन में विभिन्न स्थानों पर विवरण मौजूद हैं जिनसे मामूल होता है कि मनुष्यों की तरह जिन्न भी एक स्वतंत्र और उत्तरदायी प्राणी हैं और उनमें भी मनुष्यों ही की तरह काफ़िर और ईमानवाले और आज्ञाकारी और अवज्ञाकारी पाए जाते हैं। उनमें भी ऐसे गिरोह मौजूद हैं जो नबियों (अलै.) और आसमानी किताबों (ईश्वरीय ग्रंथों) पर ईमान लाए हैं, लेकिन यह सूरा निश्चित रूप से इस बात को स्पष्ट करती है कि अल्लाह के रसूल (सल्ल.) और कुरआन मजीद का आह्वान जिन्न और मानव दोनों के लिए है और नबी (सल्ल.) की पैग़म्बरी केवल मनुष्यों तक ही सीमित नहीं है। सूरा के आरम्भ में तो सम्बोधन का रुख़ मानवों की तरफ़ ही है , क्योंकि धरती में अधिपत्य उन्हीं को प्राप्त है। अल्लाह के रसूल (पैग़म्बर ) उन्हीं में से आए हैं। और ईश्वरीय ग्रंथ उन्हीं की भाषाओं में अवतरित किए गए हैं। लेकिन आगे चलकर आयत 13 से मनुष्य और जिन्न दोनों को समान रूप से सम्बोधित किया गया है और एक आमंत्रण दोनों के समक्ष प्रस्तुत किया गया है । सूरा की वार्ताएँ छोटे-छोटे वाक्यों में एक विशिष्ट क्रम से प्रस्तुत हुई है :

आयत 1-4 तक इस विषय का वर्णन किया गया है कि इस कुरआन की शिक्षा अल्लाह की ओर से है और यह ठीक उसकी दयालुता को अपेक्षित है कि वह इस शिक्षा से मानव-जाति के मार्गदर्शन का प्रबन्ध करे। आयत 5-6 में बताया गया है कि जगत् की सम्पूर्ण व्यवस्था अल्लाह के शासन के अन्तर्गत चल रही है और धरती और आकाश की हर चीज़ उसके आदेश के अधीन है।

आयत 7-9 में एक दूसरा महत्त्वपूर्ण तथ्य यह वर्णित है कि अल्लाह ने जगत् की सम्पूर्ण व्यवस्था एवं प्रणाली को ठीक-ठीक संतुलन के साथ न्याय पर स्थापित किया है और इस प्रणाली की प्रकृति यह चाहती है कि इसमें रहनेवाले अपने अधिकार-सीमा में भी न्याय ही पर स्थिर हों और संतुलन न बिगाड़े।

आयत 10-25 तक अल्लाह की सामर्थ्य के चमत्कार और कौशल को वर्णित करने के साथ-साथ उसके प्रसादों और प्रदान की हुई निधियों की ओर संकेत किए गए हैं, जिनसे मनुष्य और जिन्न लाभान्वित हो रहे हैं।

आयत 26-30 तक मनुष्य और जिन्न दोनों को इस सत्य का स्मरण कराया गया है कि इस जगत् में एक ईश्वर के अतिरिक्त कोई अक्षय और नित्य नहीं है, और छोटे-से-बड़े तक कोई अस्तित्ववान् ऐसा नहीं जो अपने अस्तित्व और अस्तित्वगत आवश्यकताओं के लिए ईश्वर पर आश्रित न हो।

आयत 31-36 तक इन दोनों गिरोहों को सावधान किया गया है कि शीघ्र ही वह समय आनेवाला है जब तुमसे कड़ी पूछगछ होगी। इस पूछगछ से बचकर तुम कहीं नहीं जा सकते।

आयत 37-38 में बताया गया है कि यह कड़ी पूछगछ क़ियामत के दिन होनेवाली है।

आयत 39-45 तक अपराधी मानवों और जिन्नों का परिणाम बताया गया है। और

आयत 46 से सूरा के अन्त तक विस्तारपूर्वक उन पारितोषिकों और अनुग्रहदानों का उल्लेख किया गया है जो परलोक में पुण्यवान् मानवों और जिन्नों को प्रदान किए जाएंगे ।

सुरह "अर-रहमान का अनुवाद संपादित करें

बिस्मिल्ला हिर्रह्मा निर्रहीम अल्लाह के नाम से जो दयालु और कृपाशील है।

इस सूरा का प्रमुख अनुवाद:

क़ुरआन की मूल भाषा अरबी से उर्दू अनुवाद "मौलाना मुहम्मद फ़ारूक़ खान", उर्दू से हिंदी "मुहम्मद अहमद" [3] ने किया।

बाहरी कडियाँ संपादित करें

इस सूरह का प्रसिद्ध अनुवादकों द्वारा किया अनुवाद क़ुरआन प्रोजेक्ट पर देखें Ar-Rahman 55:1

पिछला सूरा:
अल-क़मर
क़ुरआन अगला सूरा:
अल-वाक़िया
सूरा 55 - अर-रहमान

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सन्दर्भ संपादित करें

  1. सूरा अर-रहमान,(अनुवादक: मौलाना फारूक़ खाँ), भाष्य: मौलाना मौदूदी. अनुदित क़ुरआन - संक्षिप्त टीका सहित. पृ॰ 794 से.
  2. "सूरा अर्-रह़मान का अनुवाद (किंग फ़हद प्रेस)". https://quranenc.com. मूल से 22 जून 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 जुलाई 2020. |website= में बाहरी कड़ी (मदद)
  3. "Ar-Rahman सूरा का अनुवाद". http://tanzil.net. मूल से 25 अप्रैल 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जुलाई 2020. |website= में बाहरी कड़ी (मदद)

इन्हें भी देखें संपादित करें