अल-फ़ुरक़ान
सूरा अल-फ़ुरक़ान (इंग्लिश: Al-Furqan) इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन का 25 वां सूरा या अध्याय है। इसमें 77 आयतें हैं।
सूरा संख्या | 25 |
---|---|
Statistics | |
इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है। कृपया विश्वसनीय सन्दर्भ या स्रोत जोड़कर इस लेख में सुधार करें। स्रोतहीन सामग्री ज्ञानकोश के उपयुक्त नहीं है। इसे हटाया जा सकता है। (जून 2015) स्रोत खोजें: "अल-फ़ुरक़ान" – समाचार · अखबार पुरालेख · किताबें · विद्वान · जेस्टोर (JSTOR) |
नाम संपादित करें
सूरा अल्-फ़ुरक़ान[1] या सूरा अल्-फ़ुर्क़ान[2] नाम सूरा की पहली ही आयत “बहुत ही बरकतवाला है वह जिसने यह फुरक़ान (कसौटी) अवतरित किया," से उद्धृत है। यह भी कुरआन की अधिकतर सूरतों के नामों की तरह चिह्न के रूप में हैं , न कि विषय-वस्तु के शीर्षक के रूप में । फिर भी सूरा के विषय और इस नाम के साथ एक निकटवर्ती अनुकूलता पाई जाती है , जैसा कि आगे चलकर मालूम होगा।
अवतरणकाल संपादित करें
मक्कन सूरा अर्थात् पैग़म्बर मुहम्मद के मक्का के निवास के समय अवतरित हुई। वर्णन-शैली और वार्ताओं पर विचार करने से साफ़ पता चलता है कि इसका अवतरणकाल भी वही है जो सूरा 23 (मोमिनून) आदि का है , अर्थात् मक्का निवास का मध्यकाल ।
विषय और वार्ताएँ संपादित करें
मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी लिखते हैं कि इसमें उन सन्देहों और आक्षेपों की समीक्षा की गई है, जो कुरआन और मुहम्मद (सल्ल.) की पैग़म्बरी और आपकी प्रस्तुत की गई शिक्षा पर मक्का के क़ाफ़िरों की ओर से प्रस्तुत किए जाते थे। उनमें से एक-एक का जँचा-तुला उत्तर दिया गया है और साथ साथ सत्य आमंत्रण की ओर से मुँह मोड़ने के बुरे परिणाम भी साफ़-साफ़ बताए गए हैं। सूरा 23 (मोमिनून) की तरह ईमानवालों के नैतिक गुणों की एक रूपरेखा खींचकर जनसामान्य के सामने रख दी गई है कि इस कसौटी पर कसकर देख लो, कौन खोटा है और कौन खरा है। एक ओर इस आचार और चरित्र के लोग हैं जो मुहम्मद (सल्ल.) की शिक्षा से अब तक तैयार हुए हैं और भविष्य में तैयार करने की कोशिश हो रही है। दूसरी ओर नैतिकता का वह दृष्टान्त है जो अरब के जनसामान्य में पाया जाता है और जिसे बाक़ी रखने के लिए अज्ञान के ध्वजवाहक एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रहे हैं। अब स्वयं फैसला करो कि इन दोनों नमूनों में से किसे पसन्द करते हो? यह एक शब्दमुक्त प्रश्न था जो अरब के हर निवासी के सामने रख दिया गया, और कुछ थोड़े वर्षों के भीतर एक छोटी - सी अल्पसंख्या को छोड़कर संपूर्ण जाति ने इसका जो उत्तर दिया वह समय के पत्र पर अंकित हो चुका है।
सूरह अल्-फ़ुरक़ान का अनुवाद संपादित करें
अल्लाह के नाम से जो दयालु और कृपाशील है।
25|1|बड़ी बरकतवाला है वह जिसने यह फ़ुरक़ान अपने बन्दे पर अवतरित किया, ताकि वह सारे संसार के लिए सावधान करनेवाला हो[3]
25|2|वह जिसका राज्य है आकाशों और धरती पर, और उसने न तो किसी को अपना बेटा बनाया और न राज्य में उसका कोई साझी है। उसने हर चीज़ को पैदा किया; फिर उसे ठीक अन्दाजें पर रखा
25|3|फिर भी उन्होंने उससे हटकर ऐसे इष्ट -पूज्य बना लिए जो किसी चीज़ को पैदा नहीं करते, बल्कि वे स्वयं पैदा किए जाते हैं। उन्हें न तो अपनी हानि का अधिकार प्राप्त है और न लाभ का। और न उन्हें मृत्यु का अधिकार प्राप्त है और न जीवन का और न दोबारा जीवित होकर उठने का
25|4|जिन लोगों ने इनकार किया उनका कहना है, "यह तो बस मनघड़ंत है जो उसने स्वयं ही घड़ लिया है। और कुछ दूसरे लोगों ने इस काम में उसकी सहायता की है।" वे तो ज़ुल्म और झूठ ही के ध्येय से आए
25|5|कहते है, "ये अगलों की कहानियाँ हैं, जिनको उसने लिख लिया है तो वही उसके पास प्रभात काल और सन्ध्या समय लिखाई जाती है।"
25|6|कहो, "उसे अवतरित किया है उसने, जो आकाशों और धरती के रहस्य जानता है। निश्चय ही वह बहुत क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है।"
25|7|उनका यह भी कहना है, "इस रसूल को क्या हुआ कि यह खाना खाता है और बाज़ारों में चलता-फिरता है? क्यों न इसकी ओर कोई फ़रिश्ता उतरा कि वह इसके साथ रहकर सावधान करता?
25|8|या इसकी ओर कोई ख़ज़ाना ही डाल दिया जाता या इसके पास कोई बाग़ होता, जिससे यह खाता।" और इन ज़ालिमों का कहना है, "तुम लोग तो बस एक ऐसे व्यक्ति के पीछे चल रहे हो जो जादू का मारा हुआ है!"
25|9|देखों, उन्होंने तुमपर कैसी-कैसी फब्तियाँ कसीं। तो वे बहक गए है। अब उनमें इसकी सामर्थ्य नहीं कि कोई मार्ग पा सकें!
25|10|बरकतवाला है वह जो यदि चाहे तो तुम्हारे लिए इससे भी उत्तम प्रदान करे, बहत-से बाग़ जिनके नीचे नहरें बह रही हों, और तुम्हारे लिए बहुत-से महल तैया कर दे
25|11|नहीं, बल्कि बात यह है कि वे लोग क़ियामत की घड़ी को झुठला चुके हैं। और जो उस घड़ी को झुठला दे, उसके लिए दहकती आग तैयार कर रखी है
25|12|जब वह उनको दूर से देखेगी तो वे उसके बिफरने और साँस खींचने की आवाज़ें सुनेंगे
25|13|और जब वे उसकी किसी तंग जगह जकड़े हुए डाले जाएँगे, तो वहाँ विनाश को पुकारने लगेंगे
25|14|(कहा जाएगा,) "आज एक विनाश को मत पुकारो, बल्कि बहुत-से विनाशों को पुकारो!"
25|15|कहो, "यह अच्छा है या वह शाश्वत जन्नत, जिसका वादा डर रखनेवालों से किया गया है? यह उनका बदला और अन्तिम मंज़िल होगी।"
25|16|उनके लिए उसमें वह सबकुछ होगा, जो वे चाहेंगे। उसमें वे सदैव रहेंगे। यह तुम्हारे रब के ज़िम्मे एक ऐसा वादा है जो प्रार्थनीय है
25|17|और जिस दिन उन्हें इकट्ठा किया जाएगा और उनको भी जिन्हें वे अल्लाह को छोड़कर पूजते है, फिर वह कहेगा, "क्या मेरे बन्दों को तुमने पथभ्रष्ट किया था या वे स्वयं मार्ग छोड़ बैठे थे?"
25|18|वे कहेंगे, "महान और उच्च है तू! यह हमसे नहीं हो सकता था कि तुझे छोड़कर दूसरे संरक्षक बनाएँ। किन्तु हुआ यह कि तूने उन्हें औऱ उनके बाप-दादा को अत्यधिक सुख-सामग्री दी, यहाँ तक कि वे अनुस्मृति को भुला बैठे और विनष्ट होनेवाले लोग होकर रहे।"
25|19|अतः इस प्रकार वे तुम्हें उस बात में, जो तुम कहते हो झूठा ठहराए हुए है। अब न तो तुम यातना को फेर सकते हो और न कोई सहायता ही पा सकते हो। जो कोई तुममें से ज़ुल्म करे उसे हम बड़ी यातना का मज़ा चखाएँगे
25|20|और तुमसे पहले हमने जितने रसूल भी भेजे हैं, वे सब खाना खाते और बाज़ारों में चलते-फिरते थे। हमने तो तुम्हें परस्पर एक को दूसरे के लिए आज़माइश बना दिया है, "क्या तुम धैर्य दिखाते हो?" तुम्हारा रब तो सब कुछ देखता है
25|21|जिन्हें हमसे मिलने की आशंका नहीं, वे कहते हैं, "क्यों न फ़रिश्ते हमपर उतरे या फिर हम अपने रब को देखते?" उन्होंने अपने जी में बड़ा घमंज किया और बड़ी सरकशी पर उतर आए
25|22|जिस दिन वे फ़रिश्तों को देखेंगे उस दिन अपराधियों के लिए कोई ख़ुशख़बरी न होगी और वे पुकार उठेंगे, "पनाह! पनाह!!"
25|23|हम बढ़ेंगे उस कर्म की ओर जो उन्होंने किया होगा और उसे उड़ती धूल कर देंगे
25|24|उस दिन जन्नतवाले ठिकाने की दृष्टि से अच्छे होगे और आरामगाह की दृष्टि से भी अच्छे होंगे
25|25|उस दिन आकाश एक बादल के साथ फटेगा और फ़रिश्ते भली प्रकार उतारे जाएँगे
25|26|उस दिन वास्तविक राज्य रहमान का होगा और वह दिन इनकार करनेवालों के लिए बड़ा ही मुश्किल होगा
25|27|उस दिन अत्याचारी अत्याचारी अपने हाथ चबाएगा। कहेंगा, "ऐ काश! मैंने रसूल के साथ मार्ग अपनाया होता!
25|28|हाय मेरा दुर्भाग्य! काश, मैंने अमुक व्यक्ति को मित्र न बनाया होता!
25|29|उसने मुझे भटकाकर अनुस्मृति से विमुख कर दिया, इसके पश्चात कि वह मेरे पास आ चुकी थी। शैतान तो समय पर मनुष्य का साथ छोड़ ही देता है।"
25|30|रसूल कहेगा, "ऐ मेरे रब! निस्संदेह मेरी क़ौम के लोगों ने इस क़ुरआन को व्यर्थ बकवास की चीज़ ठहरा लिया था।"
25|31|और इसी तरह हमने अपराधियों में से प्रत्यॆक नबी के लिये शत्रु बनाया। मार्गदर्शन और सहायता कॆ लिए तॊ तुम्हारा रब ही काफ़ी है।
25|32|और जिन लोगों ने इनकार किया उनका कहना है कि "उसपर पूरा क़ुरआन एक ही बार में क्यों नहीं उतारा?" ऐसा इसलिए किया गया ताकि हम इसके द्वारा तुम्हारे दिल को मज़बूत रखें और हमने इसे एक उचित क्रम में रखा
25|33|और जब कभी भी वे तुम्हारे पास कोई आक्षेप की बात लेकर आएँगे तो हम तुम्हारे पास पक्की-सच्ची चीज़ लेकर आएँगे! इस दशा में कि वह स्पष्टीतकरण की स्पष्ट से उत्तम है
25|34|जो लोग औंधे मुँह जहन्नम की ओर ले जाए जाएँगे वही स्थान की दृष्टि से बहुत बुरे है, और मार्ग की दृष्टि से भी बहुत भटके हुए है
25|35|हमने मूसा को किताब प्रदान की और उसके भाई हारून को सहायक के रूप में उसके साथ किया
25|36|और कहा कि "तुम दोनों उन लोगों के पास जाओ जिन्होंने हमारी आयतों को झुठलाया है।" अन्ततः हमने उन लोगों को विनष्ट करके रख दिया
25|37|और नूह की क़ौम को भी, जब उन्होंने रसूलों को झुठलाया तो हमने उन्हें डुबा दिया और लोगों के लिए उन्हें एक निशानी बना दिया, और उन ज़ालिमों के लिए हमने एक दुखद यातना तैयार कर रखी है
25|38|और आद और समूद और अर-रस्सवालों और उस बीच की बहुत-सी नस्लों को भी विनष्ट किया।
25|39|प्रत्येक के लिए हमने मिसालें बयान कीं। अन्ततः प्रत्येक को हमने पूरी तरह विध्वस्त कर दिया
25|40|और उस बस्ती पर से तो वे हो आए है जिसपर बुरी वर्षा बरसी; तो क्या वे उसे देखते नहीं रहे हैं? नहीं, बल्कि वे दोबारा जीवित होकर उठने की आशा ही नहीं रखते रहे हैं
25|41|वे जब भी तुम्हें देखते हैं तो तुम्हारा मज़ाक़ बना लेते हैं कि "क्या यही, जिसे अल्लाह ने रसूल बनाकर भेजा है?
25|42|इसने तो हमें भटकाकर हमको हमारे प्रभु-पूज्यों से फेर ही दिया होता, यदि हम उनपर मज़बूती से जम न गए होते।"
25|43|क्या तुमने उसको भी देखा, जिसने अपना प्रभु अपनी (तुच्छ) इच्छा को बना रखा है? तो क्या तुम उसका ज़िम्मा ले सकते हो
25|44|या तुम समझते हो कि उनमें अधिकतर सुनते और समझते है? वे तो बस चौपायों की तरह हैं, बल्कि उनसे भी अधिक पथभ्रष्ट!
25|45|क्या तुमने अपने रब को नहीं देखा कि कैसे फैलाई छाया? यदि चाहता तो उसे स्थिर रखता। फिर हमने सूर्य को उसका पता देनेवाला बनाया,
25|46|फिर हम उसको धीरे-धीरे अपनी ओर समेट लेते हैं
25|47|वही है जिसने रात्रि को तुम्हारे लिए वस्त्र और निद्रा को सर्वथा विश्राम एवं शान्ति बनाया और दिन को जी उठने का समय बनाया
25|48|और वही है जिसने अपनी दयालुता (वर्षा) के आगे-आगे हवाओं को शुभ सूचना बनाकर भेजता है, और हम ही आकाश से स्वच्छ जल उतारते है
25|49|ताकि हम उसके द्वारा निर्जीव भू-भाग को जीवन प्रदान करें और उसे अपने पैदा किए हुए बहुत-से चौपायों और मनुष्यों को पिलाएँ
25|50|उसे हमने उनके बीच विभिन्न ढ़ंग से पेश किया है, ताकि वे ध्यान दें। परन्तु अधिकतर लोगों ने इनकार और अकृतज्ञता के अतिरिक्त दूसरी नीति अपनाने से इनकार ही किया
25|51|यदि हम चाहते तो हर बस्ती में एक डरानेवाला भेज देते
25|52|अतः इनकार करनेवालों की बात न मानता और इस (क़ुरआन) के द्वारा उनसे जिहाद करो, बड़ा जिहाद! (जी तोड़ कोशिश)
25|53|वही है जिसने दो समुद्रों को मिलाया। यह स्वादिष्ट और मीठा है और यह खारी और कडुआ। और दोनों के बीच उसने एक परदा डाल दिया है और एक पृथक करनेवाली रोक रख दी है
25|54|और वही है जिसने पानी से एक मनुष्य पैदा किया। फिर उसे वंशगत सम्बन्धों और ससुराली रिश्तेवाला बनाया। तुम्हारा रब बड़ा ही सामर्थ्यवान है
25|55|अल्लाह से इतर वे उनको पूजते है जो न उन्हें लाभ पहुँचा सकते हैं और न ही उन्हें हानि पहुँचा सकते हैं। और ऊपर से यह भी कि इनकार करनेवाला अपने रब का विरोधी और उसके मुक़ाबले में दूसरों का सहायक बना हुआ है
25|56|और हमने तो तुमको शुभ-सूचना देनेवाला और सचेतकर्ता बनाकर भेजा है।
25|57|कह दो, "मैं इस काम पर तुमसे कोई बदला नहीं माँगता सिवाय इसके कि जो कोई चाहे अपने रब की ओर ले जानेवाला मार्ग अपना ले।"
25|58|और उस अल्लाह पर भरोसा करो जो जीवन्त और अमर है और उसका गुणगान करो। वह अपने बन्दों के गुनाहों की ख़बर रखने के लिए काफ़ी है
25|59|जिसने आकाशों और धरती को और जो कुछ उन दोनों के बीच है छह दिनों में पैदा किया, फिर सिंहासन पर विराजमान हुआ। रहमान है वह! अतः पूछो उससे जो उसकी ख़बर रखता है
25|60|उन लोगों से जब कहा जाता है कि "रहमान को सजदा करो" तो वे कहते हैं, "और रहमान क्या होता है? क्या जिसे तू हमसे कह दे उसी को हम सजदा करने लगें?" और यह चीज़ उनकी घृणा को और बढ़ा देती है
25|61|बड़ी बरकतवाला है वह, जिसने आकाश में बुर्ज (नक्षत्र) बनाए और उसमें एक चिराग़ और एक चमकता चाँद बनाया
25|62|और वही है जिसने रात और दिन को एक-दूसरे के पीछे आनेवाला बनाया, उस व्यक्ति के लिए (निशानी) जो चेतना चाहे या कृतज्ञ होना चाहे
25|63|रहमान के (प्रिय) बन्दें वहीं है जो धरती पर नम्रतापूर्वक चलते है और जब जाहिल उनके मुँह आएँ तो कह देते हैं, "तुमको सलाम!"
25|64|जो अपने रब के आगे सजदे में और खड़े रातें गुज़ारते है;
25|65|जो कहते हैं कि "ऐ हमारे रब! जहन्नम की यातना को हमसे हटा दे।" निश्चय ही उनकी यातना चिमटकर रहनेवाली है
25|66|निश्चय ही वह जगह ठहरने की दृष्टि! से भी बुरी है और स्थान की दृष्टि से भी
25|67|जो ख़र्च करते हैं तो न अपव्यय करते हैं और न ही तंगी से काम लेते हैं, बल्कि वे इनके बीच मध्यमार्ग पर रहते हैं
25|68|जो अल्लाह के साथ किसी दूसरे इष्ट-पूज्य को नहीं पुकारते और न नाहक़ किसी जीव को जिस (के क़त्ल) को अल्लाह ने हराम किया है, क़त्ल करते हैं। और न वे व्यभिचार करते हैं - जो कोई यह काम करे तो वह गुनाह के वबाल से दोचार होगा
25|69|क़ियामत के दिन उसकी यातना बढ़ती चली जाएगी॥ और वह उसी में अपमानित होकर स्थायी रूप से पड़ा रहेगा
25|70|सिवाय उसके जो पलट आया और ईमान लाया और अच्छा कर्म किया, तो ऐसे लोगों की बुराइयों को अल्लाह भलाइयों से बदल देगा। और अल्लाह है भी अत्यन्त क्षमाशील, दयावान
25|71|और जिसने तौबा की और अच्छा कर्म किया, तो निश्चय ही वह अल्लाह की ओर पलटता है, जैसा कि पलटने का हक़ है
25|72|जो किसी झूठ और असत्य में सम्मिलित नहीं होते और जब किसी व्यर्थ के कामों के पास से गुज़रते है, तो श्रेष्ठतापूर्वक गुज़र जाते हैं,
25|73|जो ऐसे हैं कि जब उनके रब की आयतों के द्वारा उन्हें याददिहानी कराई जाती है तो उन (आयतों) पर वे अंधे और बहरे होकर नहीं गिरते।
25|74|और जो कहते हैं, "ऐ हमारे रब! हमें हमारी अपनी पत्नियों और हमारी संतान से आँखों की ठंडक प्रदान कर और हमें डर रखनेवालों का नायक बना दे।"
25|75|यही वे लोग हैं जिन्हें, इसके बदले में कि वे जमे रहे, उच्च भवन प्राप्त होगा, तथा ज़िन्दाबाद और सलाम से उनका वहाँ स्वागत होगा
25|76|वहाँ वे सदैव रहेंगे। बहुत ही अच्छी है वह ठहरने की जगह और स्थान;
25|77|कह दो, "मेरे रब को तुम्हारी कोई परवाह नहीं अगर तुम (उसको) न पुकारो। अब जबकि तुम झुठला चुके हो, तो शीघ्र ही वह चीज़ चिमट जानेवाली होगी।"
पिछला सूरा: अन-नूर |
क़ुरआन | अगला सूरा: अश-शुअरा |
सूरा 25 - अल-फ़ुरक़ान | ||
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 |
इन्हें भी देखें संपादित करें
सन्दर्भ: संपादित करें
- ↑ अनुवादक: मौलाना फारूक़ खाँ, भाष्य: मौलाना मौदूदी. अनुदित क़ुरआन संक्षिप्त टीका सहित. पृ॰ 526 से.
- ↑ "सूरा अल्-फ़ुर्क़ान". https://quranenc.com. मूल से 23 जून 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 जून 2020.
|website=
में बाहरी कड़ी (मदद) - ↑ Al-Furqan सूरा का हिंदी अनुवाद http://tanzil.net/#trans/hi.farooq/25:1 Archived 2018-04-25 at the वेबैक मशीन
3616