अर-रअद
सूरा अर् रअद (इंग्लिश: Ar-Raʻd), इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन का 13 वां सूरा, या अध्याय है। इसमें 43 आयतें हैं।
वर्गीकरण | मक्की |
---|
नाम
संपादित करेंअरबी शब्द अर्-रअ़द [1]आयत 13 के वाक्य में “बादलों की गरज (रअ़द) उसकी प्रशंसा के साथ उसकी पाकी बयान करती है और फ़रिश्ते उसके भय से काँपते हुए उसकी तस्बीह करते हैं," के शब्द अर् - रअ़द (गरज) को इस सूरा का नाम निर्धारित किया गया है। इस नाम का यह अर्थ नहीं है कि इस सूरा में बादल की गरज की समस्या पर विचार व्यक्त किया गया है, बल्कि यह केवल लक्षण के रूप में यह व्यक्त करता है कि यह वह सूरा है जिसमें अर्-रअ़द शब्द आया है या जिसमें रअ़द का उल्लेख हुआ है।
अवतरणकाल
संपादित करेंमक्कन सूरा अर्थात् पैग़म्बर मुहम्मद के मक्का के निवास के अंतिम समय अवतरित हुई।
आयत 27 से लेकर 31 और आयत 38 से लेकर 43 तक की विषय वार्ताएँ इसकी साक्षी हैं कि यह सूरा भी उसी कालखण्ड की है जिसमें सूरा 10(यूनुस), 11 (हूद) और 7 (आराफ़) अवतरित हुई हैं अर्थात् मक्का के निवास का अन्तिम समय। वर्णन - शैली से प्रत्यक्षतः स्पष्ट हो रहा है कि नबी (सल्ल.) को इस्लाम की ओर आमंत्रित करते हुए एक दीर्घकाल व्यतीत हो चुका है। विरोधी आपको पराजित करने और आपके मिशन को असफल करने के लिए तरह - तरह की चालें चलते रहे हैं, ईमान वाले बार - बार कामना कर रहे हैं कि काश कोई चमत्कार दिखाकर ही इन लोगों को सीधे रास्ते पा लाया जाए, और अल्लाह मुसलमानों को समझा रहा है कि ईमान की राह दिखाने का यह तरीक़ा हमारे यहाँ प्रचलित नहीं है और यदि सत्य के शत्रुओं को अधिक अवकाश दिया जा रहा है तो यह ऐसी बात नहीं है कि जिससे तुम घबरा उठो। फिर आयत 31 से यह भी मालूम होता है कि बार - बार काफ़िरों (अधर्मियों) की हठधर्मी का ऐसा प्रदर्शन (हो चुका) है, जिसके पश्चात् यह कहना बिलकुल ठीक मालून होता है कि यदि क़ब्रों से मुर्दे भी उठकर आ जाएँ तब भी ये लोग न मानेंगे, बल्कि इस घटना की भी कोई न कोई व्याख्या कर डालेंगे। इन सब बातों से यही अनुमान होता है कि यह सूरा मक्का के अन्तिम कालखण्ड में अवतरित हुई होगी।
केंद्रीय विषय
संपादित करेंमौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी लिखते हैं कि इस सूरा का अभिप्राय पहली ही आयत में प्रस्तुत कर दिया गया है, अर्थात् यह कि जो कुछ मुहम्मद (सल्ल.) पेश कर रहे हैं, वही सत्य है, किन्तु यह लोगों की ग़लती है कि वे उसे नहीं मानते। समस्त अभिभाषण इसी केन्द्रीय विषय के चतुर्दिश घूमता है। इस संबंध में बार - बार विभिन्न तरीक़ों से एकेश्वरवाद, परलोकवाद और रिसालत (पैग़म्बरी) की सत्यता को सिद्ध किया गया है। इनपर ईमान लाने के नैतिक और आध्यात्मिक लाभ समझाए गए हैं, इनको न मानने की हानियाँ बताई गई हैं। और यह बात मन में बिठाई गई है कि कुफ़्र (सत्य का इनकार) सर्वथा एक मूर्खता और अज्ञान है। फिर चूँकि इस सम्पूर्ण वक्तव्य का उद्देश्य केवल मस्तिष्क को संतुष्ट करना ही नहीं हैं, दिलों को ईमान की ओर खींचना भी है , इसलिए मात्र तार्किक प्रमाणीकरण से काम नहीं लिया गया है, बल्कि एक - एक प्रमाण और एक - एक लक्ष्य को प्रस्तुत करने के पश्चात् ठहरकर तरह तरह से डराया और सत्य की ओर उकसाया गया है और करुणायुक्त उपदेश दिया गया है, ताकि नादान लोग अपनी पथभ्रष्टतायुक्त हटधर्मी से बाज़ आ जाएँ।
अभिभाषण के मध्य में जगह - जगह विरोधियों के आक्षेपों का उल्लेख किए बिना उनके उत्तर दिए गए हैं और उन संदेहों का निवारण किया गया है जो मुहम्मद (सल्ल.) के आमंत्रण के संबंध में लोगों के दिलों में पाए जाते थे या विरोधियों की ओर से डाले जाते थे। इसके साथ ईमानवालों को भी, जो कई वर्षों के दीर्घ और कठिन संघर्ष के कारण थके जा रहे थे और विकलतापूर्वक परोक्ष सहायता की प्रतीक्षा कर रहे थे, सान्त्वना दी गई है।
सूरह अर् रअद का अनुवाद
संपादित करेंअर-रअद | |
---|---|
जानकारी | |
धर्म | इस्लाम |
भाषा | अरबी |
अवधि | 609–632 |
अध्याय | 114 |
श्लोक/आयत | 6,236 |
इस सूरह (अध्याह) का नंबर 13 है, इस में 43 आयतें हैं. इस सूरे का आरम्भ बिस्मिल्लाह से होता है.
बिस्मिल्ला हिर्रह्मा निर्रहीम अल्लाह के नाम से जो दयालु और कृपाशील है।
सूरए अर रअद मक्का में नाजि़ल हुआ और इसकी तेतालीस (43) आयते हैं
ख़ुदा के नाम से शुरु करता हूँ जो बड़ा मेहरबान रहम वाला है
अलिफ़ लाम मीम रा ये किताब (क़ुरान) की आयतें है और तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से जो कुछ तुम्हारे पास नाजि़ल किया गया है बिल्कुल ठीक है मगर बहुतेरे लोग ईमान नहीं लाते (1)
ख़ुदा वही तो है जिसने आसमानों को जिन्हें तुम देखते हो बग़ैर सुतून (खम्बों) के उठाकर खड़ा कर दिया फिर अर्श (के बनाने) पर आमादा हुआ और सूरज और चाँद को (अपना) ताबेदार बनाया कि हर एक वक़्त मुक़र्ररा तक चला करते हैं वहीं (दुनिया के) हर एक काम का इन्तेज़ाम करता है और इसी ग़रज़ से कि तुम लोग अपने परवरदिगार के सामने हाजि़र होने का यक़ीन करो (2)
(अपनी) आयतें तफसीलदार बयान करता है और वह वही है जिसने ज़मीन को बिछाया और उसमें (बड़े बड़े) अटल पहाड़ और दरिया बनाए और उसने हर तरह के मेवों की दो दो किस्में पैदा की (जैसे खट्टे मीठे) वही रात (के परदे) से दिन को ढाक देता है इसमें शक नहीं कि जो लोग और ग़ौर व फिक्र करते हैं उनके लिए इसमें (कुदरत खुदा की) बहुतेरी निशनियाँ हैं (3)
और खुरमों (खजूर) के दरख़्त की एक जड़ और दो शाखें और बाज़ अकेला (एक ही शाख़ का) हालांकि सब एक ही पानी से सीचे जाते हैं और फलों में बाज़ को बाज़ पर हम तरजीह देते हैं बेशक जो लोग अक़ल वाले हैं उनके लिए इसमें (कुदरत खुदा की) बहुतेरी निशनियाँ हैं (4)
और अगर तुम्हें (किसी बात पर) ताज्जुब होता है तो उन कुफ्फारों को ये क़ौल ताज्जुब की बात है कि जब हम (सड़गल कर) मिट्टी हो जायंगें तो क्या हम (फिर दोबारा) एक नई जहन्नुम में आयंगे ये वही लोग हैं जिन्होंने अपने परवरदिगार के साथ कुफ्र किया और यही वह लोग हैं जिनकी गर्दनों में (क़यामत के दिन) तौक़ पड़े होगें और यही लोग जहन्नुमी हैं कि ये इसमें हमेशा रहेगें (5)
और (ऐ रसूल) ये लोग तुम से भलाई के क़ब्ल ही बुराई (अज़ाब) की जल्दी मचा रहे हैं हालांकि उनके पहले (बहुत से लोगों की) सज़ाएँ हो चुकी हैं और इसमें शक नहीं की तुम्हारा परवरदिगार बावजूद उनकी शरारत के लोगों पर बड़ा बख़शिश (करम) वाला है और इसमें भी शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार यक़ीनन सख़्त अज़ाब वाला है (6)
और वो लोग काफिर हैं कहते हैं कि इस शख़्स (मोहम्मद) पर उसके परवरदिगार की तरफ से कोई निशानी (हमारी मर्ज़ी के मुताबिक़) क्यों नहीं नाजि़ल की जाती ऐ रसूल तुम तो सिर्फ (ख़ौफे ख़़ुदा से) डराने वाले हो (7)
और हर क़ौम के लिए एक हिदायत करने वाला है हर मादा जो कि पेट में लिए हुए है और उसको ख़़ुदा ही जानता है व बच्चा दानियों का घटना बढ़ना (भी वही जानता है) और हर चीज़ उसके नज़दीक़ एक अन्दाजे़ से है (8)
(वही) बातिन (छुपे हुवे) व ज़ाहिर का जानने वाला (सब से) बड़ा और आलीशान है (9)
तुम लोगों में जो कोई चुपके से बात कहे और जो शख़्स ज़ोर से पुकार के बोले और जो शख़्स रात की तारीक़ी (अंधेरे) में छुपा बैठा हो और जो शख़्स दिन दहाड़े चला जा रहा हो (10)
(उसके नज़दीक) सब बराबर हैं (आदमी किसी हालत में हो मगर) उस अकेले के लिए उसके आगे उसके पीछे उसके निगेहबान (फ़रिश्ते) मुक़र्रर हैं कि उसको हुक्म ख़ुदा से हिफाज़त करते हैं जो (नेअमत) किसी क़ौम को हासिल हो बेशक वह लोग खुद अपनी नफ्सानी हालत में तग्य्युर न डालें ख़ुदा हरगिज़ तग़्य्युर नहीं डाला करता और जब ख़ुदा किसी क़ौम पर बुराई का इरादा करता है तो फिर उसका कोई टालने वाला नहीं और न उसका उसके सिवा कोई वाली और (सरपरस्त) है (11)
वह वही तो है जो तुम्हें डराने और लालच देने के वास्ते बिजली की चमक दिखाता है और पानी से भरे बोझल बादलों को पैदा करता है (12)
और ग़र्ज और फ़रिश्ते उसके ख़ौफ से उसकी हम्दो सना की तस्बीह किया करते हैं वही (आसमान से) बिजलियों को भेजता है फिर उसे जिस पर चाहता है गिरा भी देता है और ये लोग ख़ुदा के बारे में (ख़्वामाख़्वाह) झगड़े करते हैं हालांकि वह बड़ा सख़्त क़ूवत वाला है (13)
(मुसीबत के वक़्त) उसी का (पुकारना) ठीक पुकारना है और जो लोग उसे छोड़कर (दूसरों को) पुकारते हैं वह तो उनकी कुछ सुनते तक नहीं मगर जिस तरह कोई शख़्स (बग़ैर उॅगलियाँ मिलाए) अपनी दोनों हथेलियाँ पानी की तरफ फैलाए ताकि पानी उसके मुँह में पहुँच जाए हालांकि वह किसी तरह पहुँचने वाला नहीं और (इसी तरह) काफिरों की दुआ गुमराही में (पड़ी बहकी फिरा करती है) (14)
और आसमानों और ज़मीन में (मख़लूक़ात से) जो कोई भी है खुषी से या ज़बरदस्ती सब (अल्लाह के आगे सर बसजूद हैं और (इसी तरह) उनके साए भी सुबह व शाम (सजदा करते हैं) (15) (सजदा)
(ऐ रसूल) तुम पूछो कि (आखि़र) आसमान और ज़मीन का परवरदिगार कौन है (ये क्या जवाब देगें) तुम कह दो कि अल्लाह है (ये भी कह दो कि क्या तुमने उसके सिवा दूसरे कारसाज़ बना रखे हैं जो अपने लिए आप न तो नफे़ पर क़ाबू रखते हैं न ज़रर (नुकसान) पर (ये भी तो) पूछो कि भला (कहीं) अन्धा और आँखों वाला बराबर हो सकता है (हरगिज़ नहीं) (या कहीं) अंधेरा और उजाला बराबर हो सकता है (हरगिज़ नहीं) इन लोगों ने ख़़ुदा के कुछ शरीक़ ठहरा रखे हैं क्या उन्हें ख़ुदा ही की सी मख़लूक़ पैदा कर रखी है जिनके सबब मख़लूकात उन पर मुशतबा हो गई है (और उनकी खुदाई के क़ायल हो गए) तुम कह दो कि ख़ुदा ही हर चीज़ का पैदा करने वाला और वही यकता और सिपर (सब पर) ग़ालिब है (16)
उसी ने आसमान से पानी बरसाया फिर अपने अपने अन्दाज़े से नाले बह निकले फिर पानी के रेले पर (जोश खाकर) फूला हुआ झाग (फेन) आ गया और उस चीज़ (धातु) से भी जिसे ये लोग ज़ेवर या कोई असबाब बनाने की ग़रज़ से आग में तपाते हैं इसी तरह फेन आ जाता है (फिर अलग हो जाता है) यूं ख़ुदा हक़ व बातिल की मसले बयान फरमाता है (कि पानी हक़ की मिसाल और फेन बातिल की) ग़रज़ फेन तो खुश्क होकर ग़ायब हो जाता है जिससे लोगों को नफा पहुँचता है (पानी) वह ज़मीन में ठहरा रहता है यूं ख़ुदा (लोगों के समझाने के वास्ते) मसले बयान फरमाता है (17)
जिन लोगों ने अपने परवरदिगार का कहना माना उनके लिए बहुत बेहतरी है और जिन लोगों ने उसका कहा न माना (क़यामत में उनकी ये हालत होगी) कि अगर उन्हें रुए ज़मीन के सब ख़ज़ाने बल्कि उसके साथ इतना और मिल जाए तो ये लोग अपनी नजात के बदले उसको (ये खुशी) दे डालें (मगर फिर भी कोई फायदा नहीं) यही लोग हैं जिनसे बुरी तरह हिसाब लिया जाएगा और आखि़र उन का ठिकाना जहन्नुम है और वह क्या बुरी जगह है (18)
(ऐ रसूल) भला वह शख़्स जो ये जानता है कि जो कुछ तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से तुम पर नाजि़ल हुआ है बिल्कुल ठीक है कभी उस शख़्स के बराबर हो सकता है जो मुत्तलिक़ (पूरा) अंधा है (हरगिज़ नहीं) (19)
इससे तो बस कुछ समझदार लोग ही नसीहत हासिल करते हैं वह लोग हैं कि ख़ुदा से जो एहद किया उसे पूरा करते हैं और अपने पैमान को नहीं तोड़ते (20)
(ये) वह लोग हैं कि जिन (ताल्लुक़ात) के क़ायम रखने का ख़ुदा ने हुक्म दिया उन्हें क़ायम रखते हैं और अपने परवरदिगार से डरते हैं और (क़यामत के दिन) बुरी तरह हिसाब लिए जाने से ख़ौफ खाते हैं (21)
और (ये) वह लोग हैं जो अपने परवरदिगार की खुशनूदी हासिल करने की ग़रज़ से (जो मुसीबत उन पर पड़ी है) झेल गए और पाबन्दी से नमाज़ अदा की और जो कुछ हमने उन्हें रोज़ी दी थी उसमें से छिपाकर और खुल कर ख़ुदा की राह में खर्च किया और ये लोग बुराई को भी भलाई स दफा करते हैं -यही लोग हैं जिनके लिए आखि़रत की खूबी मख़सूस है (22)
(यानि) हमेश रहने के बाग़ जिनमें वह आप जाएंगे और उनके बाप, दादाओं, बीवियों और उनकी औलाद में से जो लोग नेको कार है (वह सब भी) और फरिश्ते बेहशत के हर दरवाजे़ से उनके पास आएगें (23)
और सलाम अलैकुम (के बाद कहेगें) कि (दुनिया में) तुमने सब्र किया (ये उसी का सिला है देखो) तो आखि़रत का घर कैसा अच्छा है (24)
और जो लोग ख़ुदा से एहद व पैमान को पक्का करने के बाद तोड़ डालते हैं और जिन (तालुकात बाहमी) के क़ायम रखने का ख़ुदा ने हुक्म दिया है उन्हें क़तआ (तोड़ते) करते हैं और रुए ज़मीन पर फ़साद फैलाते फिरते हैं ऐसे ही लोग हैं जिनके लिए लानत है और ऐसे ही लोगों के वास्ते बड़ा घर (जहन्नुम) है (25)
और ख़ुदा ही जिसके लिए चाहता है रोज़ी को बढ़ा देता है और जिसके लिए चाहता है तंग करता है और ये लोग दुनिया की (चन्द रोज़ा) जि़न्दगी पर बहुत निहाल हैं हालांकि दुनियावी जि़न्दगी (नईम) आखि़रत के मुक़ाबिल में बिल्कुल बेहकीक़त चीज़ है (26)
और जिन लोगों ने कुफ्र अख़तियार किया वह कहते हैं कि उस (शख़्स यानि तुम) पर हमारी ख़्वाहिश के मुवाफिक़ कोई मौजिज़ा उसके परवरदिगार की तरफ से क्यों नहीं नाजि़ल होता तुम उनसे कह दो कि इसमें शक नहीं कि ख़ुदा जिसे चाहता है गुमराही में छोड़ देता है (27)
और जिसने उसकी तरफ रुज़ू की उसे अपनी तरफ पहुँचने की राह दिखाता है (ये) वह लोग हैं जिन्होंने इमान कुबूल किया और उनके दिलों को ख़ुदा की चाह से तसल्ली हुआ करती है (28)
जिन लोगों ने इमान क़ुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए उनके वास्ते (बेहिश्त में) तूबा (दरख़्त) और ख़ुशहाली और अच्छा अन्जाम है (29)
(ऐ रसूल जिस तरह हमने और पैग़म्बर भेजे थे) उसी तरह हमने तुमको उस उम्मत में भेजा है जिससे पहले और भी बहुत सी उम्मते गुज़र चुकी हैं -ताकि तुम उनके सामने जो क़ुरान हमने वही के ज़रिए से तुम्हारे पास भेजा है उन्हें पढ़ कर सुना दो और ये लोग (कुछ तुम्हारे ही नहीं बल्कि सिरे से) ख़ुदा ही के मुन्किर हैं तुम कह दो कि वही मेरा परवरदिगार है उसके सिवा कोई माबूद नहीं मै उसी पर भरोसा रखता हूँ और उसी तरफ रुजू करता हूँ (30)
और अगर कोई ऐसा क़ुरान (भी नाजि़ल हेाता) जिसकी बरकत से पहाड़ (अपनी जगह) चल खड़े होते या उसकी वजह से ज़मीन (की मुसाफ़त (दूरी)) तय की जाती और उसकी बरकत से मुर्दे बोल उठते (तो भी ये लोग मानने वाले न थे) बल्कि सच यूँ है कि सब काम का एख़्तेयार ख़ुदा ही को है तो क्या अभी तक इमानदारों को चैन नहीं आया कि अगर ख़ुदा चाहता तो सब लोगों की हिदायत कर देता और जिन लोगों ने कुफ्र एख़्तेयार किया उन पर उनकी करतूत की सज़ा में कोई (न कोई) मुसीबत पड़ती ही रहेगी या (उन पर पड़ी) तो उनके घरों के आस पास (ग़रज़) नाजि़ल होगी (ज़रुर) यहाँ तक कि ख़ुदा का वायदा (फतेह मक्का) पूरा हो कर रहे और इसमें शक नहीं कि ख़ुदा हरगिज़ खि़लाफ़े वायदा नहीं करता (31)
और (ऐ रसूल) तुमसे पहले भी बहुतेरे पैग़म्बरों की हॅसी उड़ाई जा चुकी है तो मैने (चन्द रोज़) काफिरों को मोहलत दी फिर (आखि़र कार) हमने उन्हें ले डाला फिर (तू क्या पूछता है कि) हमारा अज़ाब कैसा था (32)
क्या जो (ख़ुदा) हर एक शख़्स के आमाल की ख़बर रखता है (उनको यूं ही छोड़ देगा हरगिज़ नहीं) और उन लोगों ने ख़ुदा के (दूसरे दूसरे) शरीक ठहराए (ऐ रसूल तुम उनसे कह दो कि तुम आखि़र उनके नाम तो बताओं या तुम ख़ुदा को ऐसे शरीक़ो की ख़बर देते हो जिनको वह जानता तक नहीं कि वह ज़मीन में (किधर बसते) हैं या (निरी ऊपर से बातें बनाते हैं बल्कि (असल ये है कि) काफिरों को उनकी मक्कारियाँ भली दिखाई गई है और वह (गोया) राहे रास्त से रोक दिए गए हैं और जिस शख़्स को ख़ुदा गुमराही में छोड़ दे तो उसका कोई हिदायत करने वाला नहीं (33)
इन लोगों के वास्ते दुनियावी जि़न्दगी में (भी) अज़ाब है और आखि़रत का अज़ाब तो यक़ीनी और बहुत सख़्त खुलने वाला है (और) (फिर) ख़ुदा (के ग़ज़ब) से उनको कोई बचाने वाला (भी) नहीं (34)
जिस बाग़ (बेहिश्त) का परहेज़गारों से वायदा किया गया है उसकी सिफत ये है कि उसके नीचे नहरें जारी होगी उसके मेवे सदाबहार और ऐसे ही उसकी छांव भी ये अन्जाम है उन लोगों को जो (दुनिया में) परहेज़गार थे और काफिरों का अन्जाम (जहन्नुम की) आग है (35)
और (ए रसूल) जिन लोगों को हमने किताब दी है वह तो जो (एहकाम) तुम्हारे पास नाजि़ल किए गए हैं सब ही से खुश होते हैं और बाज़ फिरके़ उसकी बातों से इन्कार करते हैं तुम (उनसे) कह दो कि (तुम मानो या न मानो) मुझे तो ये हुक्म दिया गया है कि मै ख़ुदा ही की इबादत करु और किसी को उसका शरीक न बनाऊ मै (सब को) उसी की तरफ बुलाता हूँ और हर शख़्स को हिर फिर कर उसकी तरफ जाना है (36)
और यूँ हमने उस क़ुरान को अरबी (ज़बान) का फरमान नाजि़ल फरमाया और (ऐ रसूल) अगर कहीं तुमने इसके बाद को तुम्हारे पास इल्म (क़ुरान) आ चुका उन की नफसियानी ख़्वाहिशों की पैरवी कर ली तो (याद रखो कि) फिर ख़ुदा की तरफ से न कोई तुम्हारा सरपरस्त होगा न कोई बचाने वाला (37)
और हमने तुमसे पहले और (भी) बहुतेरे पैग़म्बर भेजे और हमने उनको बीवियाँ भी दी और औलाद (भी अता की) और किसी पैग़म्बर की ये मजाल न थी कि कोई मौजिज़ा ख़ुदा की इजाज़त के बगैर ला दिखाए हर एक वक़्त (मौऊद) के लिए (हमारे यहाँ) एक (कि़स्म की) तहरीर (होती) है (38)
फिर इसमें से ख़ुदा जिसको चाहता है मिटा देता है और (जिसको चाहता है बाक़ी रखता है और उसके पास असल किताब (लौहे महफूज़) मौजूद है (39)
और (ए रसूल) जो जो वायदे (अज़ाब वगै़रह के) हम उन कुफ्फारों से करते हैं चाहे, उनमें से बाज़ तुम्हारे सामने पूरे कर दिखाएँ या तुम्हें उससे पहले उठा लें बहर हाल तुम पर तो सिर्फ एहकाम का पहुचा देना फर्ज़ है (40)
और उनसे हिसाब लेना हमारा काम है क्या उन लोगों ने ये बात न देखी कि हम ज़मीन को (फ़ुतुहाते इस्लाम से) उसके तमाम एतराफ (चारो ओर) से (सवाह कुफ्र में) घटाते चले आते हैं और ख़ुदा जो चाहता है हुक्म देता है उसके हुक्म का कोई टालने वाला नहीं और बहुत जल्द हिसाब लेने वाला है (41)
और जो लोग उन (कुफ्फार मक्के) से पहले हो गुज़रे हैं उन लोगों ने भी पैग़म्बरों की मुख़ालफत में बड़ी बड़ी तदबीरे की तो (ख़ाक न हो सका क्योंकि) सब तदबीरे तो ख़ुदा ही के हाथ में हैं जो शख़्स जो कुछ करता है वह उसे खूब जानता है और अनक़रीब कुफ्फार को भी मालूम हो जाएगा कि आखि़रत की खूबी किस के लिए है (42)
और (ऐ रसूल) काफिर लोग कहते हैं कि तुम पैग़म्बर नहीं हो तो तुम (उनसे) कह दो कि मेरे और तुम्हारे दरम्यिान मेरी रिसालत की गवाही के वास्ते ख़ुदा और वह शख़्स जिसके पास (आसमानी) किताब का इल्म है काफी है (43)
सूरए अर रअद ख़त्म
इन्हें भी देखें
संपादित करेंपिछला सूरा: << |
क़ुरआन | अगला सूरा: >> |
सूरा {{{1}}} | ||
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114
|
सन्दर्भ:
संपादित करें- ↑ अनुवादक: मौलाना फारूक़ खाँ, भाष्य: मौलाना मौदूदी. अनुदित क़ुरआन संक्षिप्त टीका सहित. पृ॰ 361 से.