नेपाली साहित्य नेपाली भाषा का साहित्य है। यह साहित्य नेपाल, सिक्किम, दार्जिलिंग, भूटान, उत्तराखण्ड,असम आदि स्थानौं में प्रमुखतः लिखे जाते हैं। इस साहित्य में ज्यादातार पहाडी खस ब्राह्मण अर्थात् बाहुन जाति के हैं। आदिकवि भानुभक्त आचार्य, महाकवि लक्ष्मी प्रसाद देवकोटा, कविशिरोमणि लेखनाथ पौड्याल, राष्ट्रकवि माधव प्रसाद घिमिरे, मोतीराम भट्ट, हास्यकार भैरव अर्याल, आदि श्रेष्ठतम नेपाली साहित्यकार बाहुन (पहाडी ब्राह्मण) समुदाय के थे।

पारिजात, नेपाली साहित्यकार की मूर्ति, 2.5 मील चेक पोस्ट के पास, सिलीगुड़ी, पश्चिमी बंगाल, भारत
नेपाल के आदिकवि भानुभक्त आचार्य

भारत का पड़ोसी देश होने के नाते नेपाल में भी भारत से चली खुलेपन की ताज़ी हवा बराबर पहुँचती रही है और उसके साहित्य पर भी समय-समय पर विभिन्न वादों और साहित्यिक आंदोलनों का पराभूत प्रभाव रहा है। हिन्दी कविता की तरह नेपाली कविता में भी छायावाद,रहस्यवाद, प्रगतिवाद और प्रयोगवाद की तमाम विशेषताएँ मिलती है। प्रकृति, सौन्दर्य, शृंगार और नारी-मन की सुकोमल अभिव्यक्ति के साथ ही जीवन-संघर्ष की आधुनिकतम समस्याओं को वाणी देने में भी नेपाली कवि किसी से पीछे नहीं रहे हैं। आज नेपाली कविता में समय-सापेक्षता, सामाजर्थिक दबाब तथा जीवन का व्यर्थता बोध आदि प्रबरीतियों को जो प्रमुखता मिली हुयी है, वह उसकी इसी शानदार विरासत का प्रतिफल है।

पूर्व-भानुभक्त काल

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नेपाली साहित्य सैकडौं वर्ष तक मौखिक और लोकगीतके रूप में ही अस्तित्व में रहा। यद्यपि भानुभक्त आचार्य से पहले कोई प्रकाशन लिखित रूप में उपलब्ध नहीं है।

भानुभक्त काल

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इन्हें नेपाल का आदिकवि कहा जाता है। नेपाली भाषा में रामायण की रचना भानुभक्त का एक महत्वपूर्ण योगदान है।

नेपाली साहित्य में आधुनिक युग का आरम्भ

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नेपाली साहित्य में आधुनिक युग की शुरुआत सन 1913 ई. से मानी गयी है, जब राजनीतिक क्षेत्र में राणा-प्रधान मंत्रियों के अत्याचारपूर्ण शासन के खिलाफ संपूर्ण नेपाल में विद्रोह शुरू हो गया था। सामाजिक क्षेत्र में भी सुधार की आवाज़ उठाई जाने लगी थी। यह जन आकांक्षाओं का ही दबाव था कि नेपाली-साहित्य में भी इसके चलते बदलाव आया और वह जन आकांक्षाओं की संवाहक बनी। इसी समय माधवी, सुन्दरी, चन्द्र, चन्द्रिका, शारदा आदि कई पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन प्रारंभ हुआ, जिनमें नवयुग की वाणी को मुक्त कंठ से मुखर होने का सु अवसर प्राप्त हुआ।[1]

नेपाली साहित्य की विकास यात्रा

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उन्नीसवीं शताब्दी के पहले पचासे के आसपास भानुभक्त आचार्य के आगमन के पश्चात नेपाली साहित्य में विकास की जो सुगबुगाहट शुरू हुयी, वह उत्तर मध्यकाल के नेपाली कवियों -मोतीराम भट्ट, गोपी नाथ लोहनी, मरिचमन सिंह, होम नाथ खटोवाड़ा आदि की रचनाओं से पुस्त होती हुयी आधुनिक काल में लक्ष्मी प्रसाद देवकोटा, लेखनाथ पोडयाल, बाल कृष्ण सम, केदार मान व्यथित आदि की कृतियों में परवान चढ़ी। और वर्तमान समय में वह मोहन कोइराला, अनिरुद्ध गौतम, अविनाश श्रेष्ठ, विमल निगा आदि समकालीन नेपाली कवियों की रचनाओं में नए क्षितिजों की ओर उड़ान भरने की तैयारी में हैं।

हालांकि नेपाली साहित्य की विकास यात्रा में सर्वाधिक योगदान देने वालों में बड़े सम्मान के साथ पारिजात का नाम लिया जाता है। पारिजात की पहली कविता 1959 में, धार्त द्वारा प्रकाशित किया गया था। आकांक्षा, पारिजात की कविता और बाइसलु वर्तमान सहित उनके तीन कविता संग्रह प्रकाशित है। उनकी पहली लघु कहानी मैले नजनमाएको चोरो थी। वे नेपाल में एक सशक्त उपन्यासकार के रूप में जानी जाती है। उन्होने दस उपन्यास लिखे, जीनामे से सिरीस को फूल सर्वाधिक लोकप्रिय रचनाओं में से एक है। उन्हें 1965 में इसी उपन्यास के लिए मदन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा उन्हें सर्वश्रेष्ठ पाण्डुलिपि पुरस्कार, गंडकी बसुन्ब्धारा पुरस्कार आदि से भी अलंकृत किया गया। सिरीस को फूल उनके द्वारा नेपाली साहित्य के महत्वपूर्ण सृजन में से एक माना जाता है।[2]

फकत ढाई-तीन सौ वर्षों की संक्षिप्त साहित्यिक विरासत के बावजूद समकालीन नेपाली साहित्य आज अत्याधुनिकता के जिस सोपान पर खड़ी है, उसे देखकर एक विस्मय भरा आनंद प्राप्त होता है।[3]

नेपाली भाषा के साहित्यकार

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प्रमुख साहित्यकार

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अन्य लेखक की सूची

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  1. उर्विजा, अनियतकालिक पत्रिका, प्रकाशन : इन्दिरा नगर, सीतामढ़ी, जनवरी 1995, आलेख : आधुनिक नेपाली साहित्य की विकास यात्रा, लेखक : रवीन्द्र प्रभात, पृष्ठ संख्या : 5
  2. "Love Literature and Parijat". मूल से 19 सितंबर 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 जून 2013.
  3. समकालीन नेपाली साहित्य, संपादक : रवीन्द्र प्रभात, प्रकाशन वर्ष : 1995, प्रकाशक : उर्विजा प्रकाशन, इन्दिरा नगर, सीतामढ़ी -843302, पृष्ठ संख्या 3

इसे भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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