भीमबेटका स्थित पाषण आश्रय में एक प्राचीन शैलचित्र। यहां के शैल चित्रों के विषय मुख्यतया सामूहिक नृत्य, रेखांकित मानवाकृति, शिकार, पशु-पक्षी, युद्ध और प्राचीन मानव जीवन के दैनिक क्रियाकलापों से जुड़े हैं। चित्रों में प्रयोग किए गए खनिज रंगों में मुख्य रूप से गेरुआ, लाल और सफेद हैं और कहीं-कहीं पीला और हरारंग भी प्रयोग हुआ है। चित्र श्रेय: {{{author}}}
हांडीभारतीय खाना बनाने का बर्तन होता है। यह धातु, मिट्टी, चीनी मिट्टी की भी हो सकती है। यह बर्तन घड़े के आकार का संकरे मुंह का होता है। चित्र श्रेय: {{{author}}}
पुरन पोलीमहाराष्ट्र का प्रसिद्ध मीठा पकवान है। यह हरेक तीज त्योहार आदि के अवसरों पर बनाया जाता है। इसेआमटी के साथ खाया जाता है। चित्र श्रेय: {{{author}}}
ध्रुवीय ज्योति, या मेरुज्योति, वह रमणीय दीप्तिमय छटा है जो ध्रुवक्षेत्रों के वायुमंडल के ऊपरी भाग में दिखाई पड़ती है। उत्तरी अक्षांशों की ध्रुवीय ज्योति को सुमेरु ज्योति, या उत्तर ध्रुवीय ज्योति, तथा दक्षिणी अक्षांशों की ध्रुवीय ज्योति को कुमेरु ज्योति, या दक्षिण ध्रुवीय ज्योति, कहते हैं। प्राचीन रोमवासियों और यूनानियों को इन घटनाओं का ज्ञान था और उन्होंने इन दृश्यों का बेहद रोचक और विस्तृत वर्णन किया है। चित्र श्रेय: {{{author}}}
दीपावलीकार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाने वाला हिन्दू त्यौहारों में से सबसे बड़े पर्वों में से एक है। इस दिन हिन्दू भगवानराम अपनी भार्या सीता तथा अनुज लक्ष्मण के साथ चौदह वर्षों के वनवास उपरांत भक्त हनुमान सहित अपनी राजधानी अयोध्या वापस लौटे थे। इसी दिन धन की देवी लक्ष्मी भी सागर मंथन के परिणामस्वरूप सागर से प्रकट हुई थीं तथा उन्होंने भगवान विष्णु का वरण किया था। इसके साथ ही अनेक एशियाई धर्मों में भी इस पर्व का महत्त्व है। चित्र श्रेय: {{{author}}}
कैथोलिक धर्म में पादरियों को विवाह करने की अनुमति नहीं है और उन्हें आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। कुछ स्त्रियाँ भी अपना जीवन धर्म के नाम कर देती हैं और आजीवन कुँवारी रहती हैं। इन्हें "नन" कहा जाता है। जब ये नन बनाने की शपथ लेतीं हैं तो एक औपचारिक समारोह में विवाह के वस्त्र धारण किए इनका "ईसा से विवाह" रचाया जाता है। कैथोलिक संगठनों द्वारा चलाये गए पाठशालाओं में अक्सर यही ननें अध्यापिकाएँ हुआ करती हैं। चित्र श्रेय: {{{author}}}
प्रेम मंदिर भारत के उत्तर प्रदेश में मथुरा में वृंदावन में स्थित है। इसका निर्माण जगद्गुरू कृपालू महाराज द्वारा ११ वर्ष के अथक परिश्रम और लगभग १०० करोड़ रुपए की धन राशि द्वारा भगवान कृष्ण और राधा के मंदिर के रूप में करवाया गया है।यह मंदिर प्राचीन भारतीय शिल्पकला के पुनर्जागरण का एक नमूना है। चित्र श्रेय: {{{author}}}