विनायक दामोदर सावरकर

भारतीय राजनीतिज्ञ (1883-1966)
(विनायक सावरकर से अनुप्रेषित)

विनायक दामोदर सावरकर (जन्म: 28 मई 1883 - मृत्यु: 26 फरवरी 1966)[3] भारत के क्रांतिकारी, स्वतंत्रता सेनानी, चिन्तक, समाजसुधारक, इतिहासकार, कवि, ओजस्वी वक्ता तथा दूरदर्शी राजनेता थे। उनके समर्थक उन्हें वीर सावरकर के नाम से सम्बोधित करते हैं।[4]

विनायक दामोदर सावरकर

विनायक दामोदर सावरकर
जन्म 28 मई 1883
ग्राम भागुर, जिला नासिक बम्बई प्रेसीडेंसी ब्रिटिश भारत
मौत फ़रवरी 26, 1966(1966-02-26) (उम्र 82 वर्ष)
बम्बई,  भारत
मौत की वजह

इच्छामृत्यु यूथेनेशिया प्रायोपवेशनम्

सल्लेखना
राष्ट्रीयता भारतीय
उपनाम वीर सावरकर
शिक्षा कला स्नातक, फर्ग्युसन कॉलिज, पुणे बार एट ला लन्दन
प्रसिद्धि का कारण भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन, हिन्दुत्व
राजनैतिक पार्टी अखिल भारतीय हिन्दू महासभा
धर्म हिन्दू नास्तिक[1][2]
जीवनसाथी यमुनाबाई
बच्चे

पुत्र: प्रभाकर (अल्पायु में मृत्यु)
एवं विश्वास सावरकर,

पुत्री: प्रभात चिपलूणकर

हिन्दू राष्ट्रवाद की राजनीतिक विचारधारा 'हिन्दुत्व' को विकसित करने का बहुत बड़ा श्रेय सावरकर को जाता है। वे एक वकील, राजनीतिज्ञ, कवि, लेखक और नाटककार भी थे। उन्होंने परिवर्तित हिन्दुओं के हिन्दू धर्म को वापस लौटाने हेतु सतत प्रयास किये एवं इसके लिए आन्दोलन चलाये। उन्होंने भारत की एक सामूहिक "हिन्दू" पहचान बनाने के लिए हिन्दुत्व का शब्द गढ़ा [5][6]। उनके राजनीतिक दर्शन में उपयोगितावाद, तर्कवाद, प्रत्यक्षवाद (positivism), मानवतावाद, सार्वभौमिकता, व्यावहारवाद और यथार्थवाद के तत्व थे। हिन्दू महासभा के वह प्रमुख चेहरे थे।[7][8][9]

जीवन वृत्त

प्रारम्भिक जीवन

विनायक सावरकर का जन्म महाराष्ट्र (उस समय, 'बॉम्बे प्रेसिडेन्सी') में नासिक के निकट भागुर गाँव में हुआ था। उनकी माता जी का नाम राधाबाई तथा पिता जी का नाम दामोदर पन्त सावरकर था। इनके दो भाई गणेश (बाबाराव) व नारायण दामोदर सावरकर तथा एक बहन नैनाबाई थीं। जब वे केवल नौ वर्ष के थे तभी हैजे की महामारी में उनकी माता जी का देहान्त हो गया। इसके सात वर्ष बाद सन् 1899 में प्लेग की महामारी में उनके पिता जी भी स्वर्ग सिधारे। इसके बाद विनायक के बड़े भाई गणेश ने परिवार के पालन-पोषण का कार्य सँभाला। दुःख और कठिनाई की इस घड़ी में गणेश के व्यक्तित्व का विनायक पर गहरा प्रभाव पड़ा। विनायक ने शिवाजी हाईस्कूल नासिक से 1901 में मैट्रिक की परीक्षा पास की। बचपन से ही वे पढ़ाकू तो थे ही अपितु उन दिनों उन्होंने कुछ कविताएँ भी लिखी थीं। आर्थिक संकट के बावजूद बाबाराव ने विनायक की उच्च शिक्षा की इच्छा का समर्थन किया। इस अवधि में विनायक ने स्थानीय नवयुवकों को संगठित करके मित्र मेलों का आयोजन किया। शीघ्र ही इन नवयुवकों में राष्ट्रीयता की भावना के साथ क्रान्ति की ज्वाला जाग उठी।[10] सन् 1901 में रामचन्द्र त्रयम्बक चिपलूणकर की पुत्री यमुनाबाई के साथ उनका विवाह हुआ। उनके ससुर जी ने उनकी विश्वविद्यालय की शिक्षा का भार उठाया। 1902 में मैट्रिक की पढाई पूरी करके उन्होने पुणे के फर्ग्युसन कालेज से बी॰ए॰ किया। इनके पुत्र विश्वास सावरकर एवं पुत्री प्रभात चिपलूनकर थी।

लन्दन प्रवास

 
सावरकर बन्धु (बाएँ से दाएँ) नारायण, गणेश और विनायक ; साथ में हैं- शान्ता, बहन मैना काले, और पत्नी यमुना

1904 में उन्होंने अभिनव भारत नामक एक क्रान्तिकारी संगठन की स्थापना की। 1905 में बंगाल के विभाजन के बाद उन्होने पुणे में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई। फर्ग्युसन कॉलेज, पुणे में भी वे राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत ओजस्वी भाषण देते थे। बाल गंगाधर तिलक के अनुमोदन पर 1906 में उन्हें श्यामजी कृष्ण वर्मा छात्रवृत्ति मिली। इंडियन सोशियोलाजिस्ट और तलवार नामक पत्रिकाओं में उनके अनेक लेख प्रकाशित हुए , जो बाद में कलकत्ता के युगान्तर पत्र में भी छपे। सावरकर रूसी क्रान्तिकारियों से ज्यादा प्रभावित थे।[10]10 मई, 1907 को इन्होंने इंडिया हाउस, लन्दन में प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की स्वर्ण जयन्ती मनाई। इस अवसर पर विनायक सावरकर ने अपने ओजस्वी भाषण में प्रमाणों सहित 1857 के संग्राम को गदर नहीं अपितु भारत के स्वातन्त्र्य का प्रथम संग्राम सिद्ध किया।[11] जून, 1908 में इनकी पुस्तक द इण्डियन वॉर ऑफ़ इण्डिपेण्डेंस : 1857 तैयार हो गयी परन्त्तु इसके मुद्रण की समस्या आयी। इसके लिये लन्दन से लेकर पेरिस और जर्मनी तक प्रयास किये गये किन्तु वे सभी प्रयास असफल रहे। बाद में यह पुस्तक किसी प्रकार गुप्त रूप से हॉलैण्ड से प्रकाशित हुई और इसकी प्रतियाँ फ्रांस पहुँचायी गयीं[11]। इस पुस्तक में सावरकर ने 1857 के सिपाही विद्रोह को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ स्वतन्त्रता की पहली लड़ाई बताया। मई 1909 में इन्होंने लन्दन से बार एट ला (वकालत) की परीक्षा उत्तीर्ण की परन्तु उन्हें वहाँ वकालत करने की अनुमति नहीं मिली।इस पुस्तक को सावरकार जी ने पीक वीक पेपर्स व स्काउट्स पेपर्स के नाम से भारत पहुचाई थी।

इण्डिया हाउस की गतिविधियाँ

सावरकर ने लन्दन के ग्रेज इन्न लॉ कॉलेज में प्रवेश लेने के बाद इण्डिया हाउस में रहना आरम्भ कर दिया था। इण्डिया हाउस उस समय राजनितिक गतिविधियों का केन्द्र था जिसे श्यामा प्रसाद मुखर्जी चला रहे थे। सावरकर ने 'फ़्री इण्डिया सोसायटी' का निर्माण किया जिससे वो अपने साथी भारतीय छात्रों को स्वतन्त्रता के लिए लड़ने को प्रेरित करते थे। सावरकर ने 1857 की क्रान्ति पर आधारित पुस्तकों का गहन अध्ययन किया और "द हिस्ट्री ऑफ़ द वॉर ऑफ़ इण्डियन इण्डिपेण्डेन्स" (The History of the War of Indian Independence) नामक पुस्तक लिखी। उन्होंने इस बारे में भी गहन अध्ययन किया कि अंग्रेजों को किस तरह जड़ से उखाड़ा जा सकता है।

लन्दन और मार्सिले में गिरफ्तारी

 
सावरकर के बन्दी जीवन का एक फोटो

लन्दन में रहते हुये उनकी मुलाकात लाला हरदयाल से हुई जो उन दिनों इण्डिया हाउस की देखरेख करते थे। 1 जुलाई 1909 को मदनलाल ढींगरा द्वारा विलियम हट कर्जन वायली को गोली मार दिये जाने के बाद उन्होंने लन्दन टाइम्स में एक लेख भी लिखा था। 13 मई 1910 को पैरिस से लन्दन पहुँचने पर उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया परन्तु 8 जुलाई 1910 को एम॰एस॰ मोरिया नामक जहाज से भारत ले जाते हुए सीवर होल के रास्ते ये भाग निकले।[12] 24 दिसम्बर 1910 को उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गयी। इसके बाद 31 जनवरी 1911 को इन्हें दोबारा आजीवन कारावास दिया गया[12]। इस प्रकार सावरकर को ब्रिटिश सरकार ने क्रान्ति कार्यों के लिए दो-दो आजन्म कारावास की सजा दी, जो विश्व के इतिहास की पहली एवं अनोखी सजा थी। सावरकर के अनुसार -

मातृभूमि! तेरे चरणों में पहले ही मैं अपना मन अर्पित कर चुका हूँ। देश-सेवा ही ईश्वर-सेवा है, यह मानकर मैंने तेरी सेवा के माध्यम से भगवान की सेवा की।[11]

आर्बिट्रेशन कोर्ट केस

परीक्षण और दण्ड

 
पोर्ट ब्लेयर की सेलुलर जेल के सामने सावरकर की प्रतिमा

सावरकर ने अपने मित्रों को बम बनाना और गुरिल्ला पद्धति से युद्ध करने की कला सिखाई। 1909 में सावरकर के मित्र और अनुयायी मदनलाल ढींगरा ने एक सार्वजनिक बैठक में अंग्रेज अफसर कर्जन की हत्या कर दी। ढींगरा के इस काम से भारत और ब्रिटेन में क्रांतिकारी गतिविधिया बढ़ गयी। सावरकर ने ढींगरा को राजनीतिक और कानूनी सहयोग दिया, लेकिन बाद में अंग्रेज सरकार ने एक गुप्त और प्रतिबन्धित परीक्षण कर ढींगरा को मौत की सजा सुना दी, जिससे लन्दन में रहने वाले भारतीय छात्र भड़क गये। सावरकर ने ढींगरा को एक देशभक्त बताकर क्रान्तिकारी विद्रोह को ओर उग्र कर दिया था। सावरकर की गतिविधियों को देखते हुए अंग्रेज सरकार ने हत्या की योजना में शामिल होने और पिस्तौले भारत भेजने के जुर्म में फँसा दिया, जिसके बाद सावरकर को गिरफ्तार कर लिया गया। अब सावरकर को आगे के अभियोग के लिए भारत ले जाने का विचार किया गया। जब सावरकर को भारत जाने की खबर पता चली तो सावरकर ने अपने मित्र को जहाज से फ्रांस के रुकते वक्त भाग जाने की योजना पत्र में लिखी। जहाज रुका और सावरकर खिड़की से निकलकर समुद्र के पानी में तैरते हुए भाग गए, लेकिन मित्र को आने में देर होने की वजह से उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। सावरकर की गिरफ्तारी से फ़्रेंच सरकार ने ब्रिटिश सरकार का विरोध किया।

सेलुलर जेल में

नासिक जिले के कलेक्टर जैकसन की हत्या के लिए नासिक षडयंत्र काण्ड के अन्तर्गत इन्हें 7 अप्रैल, 1911 को काला पानी की सजा पर सेलुलर जेल भेजा गया। उनके अनुसार यहां स्वतंत्रता सेनानियों को कड़ा परिश्रम करना पड़ता था। कैदियों को यहां नारियल छीलकर उसमें से तेल निकालना पड़ता था। साथ ही इन्हें यहां कोल्हू में बैल की तरह जुत कर सरसों व नारियल आदि का तेल निकालना होता था। इसके अलावा उन्हें जेल के साथ लगे व बाहर के जंगलों को साफ कर दलदली भूमी व पहाड़ी क्षेत्र को समतल भी करना होता था। रुकने पर उनको कड़ी सजा व बेंत व कोड़ों से पिटाई भी की जाती थीं। इतने पर भी उन्हें भरपेट खाना भी नहीं दिया जाता था।।[12] सावरकर 4 जुलाई, 1911 से 21 मई, 1921 तक पोर्ट ब्लेयर की जेल में रहे।

 
सावरकर की अंग्रेजों को लिखी गयी दया याचिका

1921 में वल्लभ भाई पटेल और बाल गंगाधर तिलक के कहने पर ब्रिटिश कानून ना तोड़ने और विद्रोह ना करने की शर्त पर उनकी रिहाई हो गई। २ मई २०२१ को एस०एस० महाराजा नामक एक ही स्टीमर से दोनों सावरकर बन्धु भारत की की मुख्यभूमि पर पहुँचे और उन्हें रत्नागिरि जेल में रखा गया। बाद में उन्हें पुणे के यरवदा केन्द्रीय कारागार में ले जाया गया। जेल में उन्होंने 'हिन्दुत्व' पर शोध ग्रन्थ लिखा।

६ जनवरी २०२४ को कुछ शर्तों के साथ उन्हें यरवदा जेल से मुक्त कर दिया गया। शर्त यह थी कि दामोदर सावरकर सरकार की अनुमति के बिना रत्नागिरि जिले से बाहर नहीं जाएंगे और किसी राजनैतिक क्रियाकलाप में भाग नहीं लेंगे।

रत्नागिरी में प्रतिबन्धित स्वतन्त्रता

मई १९२४ में रत्नागिरि में प्लेग का प्रकोप हुआ। इस कारण सावरकर को नासिक चले जाने की अनुमति मिल गयी। वहाँ उन्होंने हिन्दुओं के उत्थान के लिये कार्य किया। सरकार की अनुमति से वे भागुर गये किन्तु उन्हें फिर से रत्नागिरि लौटने के लिये विवश किया गया क्योंकि उन्हें लोगों का बहुत अच्छा प्रतिसाद मिल रहा था। उनकी प्रतिबन्धित स्वतन्त्रता की अवधि बढ़ायी जाती रही और अन्ततः ४ जनवरी १९३७ को उन्हें छोड़ दिया गया। १ अगस्त १९३७ को वे बालगंगाधर तिलक की डेमोक्रैटिक स्वराज पार्टी में शामिल हुए और बाद में हिन्दू महासभा में।

इस बीच 7 जनवरी 1925 को इनकी पुत्री, प्रभात का जन्म हुआ। मार्च, 1925 में उनकी भॆंट राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक, डॉ॰ हेडगेवार से हुई। 17 मार्च 1928 को इनके बेटे विश्वास का जन्म हुआ। फरवरी, 1931 में इनके प्रयासों से बम्बई में पतित पावन मन्दिर की स्थापना हुई, जो सभी हिन्दुओं के लिए समान रूप से खुला था। 25 फरवरी 1931 को सावरकर ने बम्बई प्रेसीडेंसी में हुए अस्पृश्यता उन्मूलन सम्मेलन की अध्यक्षता की[12]

1937 में वे अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के कर्णावती (अहमदाबाद) में हुए 19वें सत्र के अध्यक्ष चुने गये, जिसके बाद वे पुनः सात वर्षों के लिये अध्यक्ष चुने गये। 15 अप्रैल 1938 को उन्हें मराठी साहित्य सम्मेलन का अध्यक्ष चुना गया। 13 दिसम्बर 1937 को नागपुर की एक जन-सभा में उन्होंने अलग पाकिस्तान के लिये चल रहे प्रयासों को असफल करने की प्रेरणा दी थी[11]। 22 जून 1941 को उनकी भेंट नेताजी सुभाष चंद्र बोस से हुई। 9 अक्टूबर 1942 को भारत की स्वतन्त्रता के निवेदन सहित उन्होंने चर्चिल को तार भेज कर सूचित किया। सावरकर जीवन भर अखण्ड भारत के पक्ष में रहे। स्वतन्त्रता प्राप्ति के माध्यमों के बारे में गान्धी और सावरकर का एकदम अलग दृष्टिकोण था। 1943 के बाद दादर, बम्बई में रहे। 16 मार्च 1945 को इनके भ्राता बाबूराव का देहान्त हुआ। 19 अप्रैल 1945 को उन्होंने अखिल भारतीय रजवाड़ा हिन्दू सभा सम्मेलन की अध्यक्षता की। इसी वर्ष 8 मई को उनकी पुत्री प्रभात का विवाह सम्पन्न हुआ। अप्रैल 1946 में बम्बई सरकार ने सावरकर के लिखे साहित्य पर से प्रतिबन्ध हटा लिया। 1947 में इन्होने भारत विभाजन का विरोध किया। महात्मा रामचन्द्र वीर नामक (हिन्दू महासभा के नेता एवं सन्त) ने उनका समर्थन किया।

स्वातन्त्र्योत्तर जीवन

 
मित्रों के साथ सावरकर
खड़े हुए : शंकर किस्तैया, गोपाल गौड़से, मदनलाल पाहवा, दिगम्बर बड़गे
बैठे हुए: नारायण आप्टे, सावरकर, नाथूराम गोडसे, विष्णु रामकृष्ण करकरे

15 अगस्त 1947 को उन्होंने सावरकर सदान्तो में भारतीय तिरंगा एवं भगवा, दो-दो ध्वजारोहण किये। इस अवसर पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उन्होंने पत्रकारों से कहा कि मुझे स्वराज्य प्राप्ति की खुशी है, परन्तु वह खण्डित है, इसका दु:ख है। उन्होंने यह भी कहा कि राज्य की सीमायें नदी तथा पहाड़ों या सन्धि-पत्रों से निर्धारित नहीं होतीं, वे देश के नवयुवकों के शौर्य, धैर्य, त्याग एवं पराक्रम से निर्धारित होती हैं[11]। 5 फरवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या के उपरान्त उन्हें प्रिवेन्टिव डिटेन्शन एक्ट धारा के अन्तर्गत गिरफ्तार कर लिया गया। 19 अक्टूबर 1949 को इनके अनुज नारायणराव का देहान्त हो गया। 4 अप्रैल 1950 को पाकिस्तानी प्रधानमन्त्री लियाक़त अली ख़ान के दिल्ली आगमन की पूर्व संध्या पर उन्हें सावधानीवश बेलगाम जेल में रोक कर रखा गया। मई, 1952 में पुणे की एक विशाल सभा में अभिनव भारत संगठन को उसके उद्देश्य (भारतीय स्वतन्त्रता प्राप्ति) पूर्ण होने पर भंग किया गया। 10 नवम्बर 1957 को नई दिल्ली में आयोजित हुए, 1857 के प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के शाताब्दी समारोह में वे मुख्य वक्ता रहे। 8 अक्टूबर 1949 को उन्हें पुणे विश्वविद्यालय ने डी०लिट० की मानद उपाधि से अलंकृत किया। 8 नवम्बर 1963 को इनकी पत्नी यमुनाबाई चल बसीं। सितम्बर, 1965 से उन्हें तेज ज्वर ने आ घेरा, जिसके बाद इनका स्वास्थ्य गिरने लगा। 1 फ़रवरी 1966 को उन्होंने मृत्युपर्यन्त उपवास करने का निर्णय लिया। 26 फरवरी 1966 को बम्बई में भारतीय समयानुसार प्रातः 10 बजे उन्होंने पार्थिव शरीर छोड़कर परमधाम को प्रस्थान किया[12]

महात्मा गाँधी की हत्या में गिरफ्तार और निर्दोष सिद्ध

गांधीजी के हत्या में सावरकर के सहयोगी होने का आरोप लगा जो सिद्ध नहीं हो सका। एक सच्चाई यह भी है कि महात्मा गांधी और सावरकर-बन्धुओं का परिचय बहुत पुराना था। सावरकर-बन्धुओं के व्यक्तित्व के कई पहलुओं से प्रभावित होने वालों और उन्हें ‘वीर’ कहने और मानने वालों में गांधी भी थे।[13]

विचार

सावरकर 20वीं शताब्दी के सबसे बड़े हिन्दूवादी रहे। विनायक दामोदर सावरकर को बचपन से ही हिन्दू शब्द से बेहद लगाव था। सावरकर ने जीवन भर हिन्दू, हिन्दी और हिन्दुस्तान के लिए ही काम किया। सावरकर को 6 बार अखिल भारतीय हिन्दू महासभा का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया। 1937 में उन्हें हिन्दू महासभा का अध्यक्ष चुना गया, जिसके बाद 1938 में हिन्दू महासभा को राजनीतिक दल घोषित कर दिया गया।

हिन्दू राष्ट्र की राजनीतिक विचारधारा को विकसित करने का बहुत बड़ा श्रेय सावरकर को जाता है। उनकी इस विचारधारा के कारण आजादी के बाद की सरकारों ने उन्हें वह महत्त्व नहीं दिया जिसके वे वास्तविक हकदार थे।[उद्धरण चाहिए]

१० मई, १९३७ को सावरकरजी की नजरबंदी रद्द की गई। नजरबंदी से मुक्त होते ही सावरकरजी का भव्य स्वागत किया गया। अनेक नेताओं ने उन्हें कांग्रेस में शामिल करने का प्रयास किया; किंतु उन्होंने स्पष्ट कहा :

"कांग्रेस की मुसलिम तुष्टीकरण की नीति पर मेरे तीव्र मतभेद हैं। मैं हिंदू महासभा का ही नेतृत्व करूँगा।"[14]

सन 1937 से 1942 के बीच वे हिंदू महासभा के अध्‍यक्ष रहे थे। इस दौरान कई बार उन्होंने भारत की विदेश नीति पर अपना रुख स्‍पष्‍ट किया था। खासकर जर्मनी और इटली के संबंध में वह ज्‍यादा मुखर थे। वे हिटलर के बड़े प्रशंसक थे। इतालवी शोधकर्ता म‍रजिया कासोलरी ने इस दौरान सावरकर द्वारा दिए गए भाषणों का संकलन किया है, जिसमें हिटलर और नाजी दर्शन के प्रति उनका लगाव दिखता है। जब भारत छोड़ो आंदोलन शुरु हुआ तो सावरकर ने हिंदू महासभा के सदस्‍यों से इसका बहिष्‍कार करने की अपील की थी। साथ ही कहा था कि जो जहां और जिस पद पर काम कर रहे हैं, वे अपने-अपने पदों पर बने रहें।

धार्मिक विचार

 
दामोदर विनायक सावरकर

सावरकर गाय को पूजनीय नहीं मानते थे, कहते थे कि गाय एक उपयोगी पशु है।[15] सावरकर एक बुद्धिवादी व्यक्ति थे, परंतु कई प्रमाणोम से लगता है कि वे ईश्वर में विश्वास रखते थे। 'मोपला' पुस्तक की भूमिका में उन्होंने "ईश्वर कृपा..." ऐसा शब्दप्रसोग किया है। उनके समकालीन विद्वान आचार्य अत्रे ने "क्रांतिकारकांचे कुलपुरुष-सावरकर" में लिखा है कि उन्होंने दुर्गा देवी की मूर्ति के समक्ष स्वतंत्रता संग्राम में प्राणाहुति देने तक की प्रतिज्ञा की। इससे उनकी आस्तिकता का पता चलता है।

विरासत

सावरकर साहित्य

सावरकर ने 10,000 से अधिक पन्ने मराठी भाषा में तथा 1500 से अधिक पन्ने अंग्रेजी में लिखा है। बहुत कम मराठी लेखकों ने इतना मौलिक लिखा है। उनकी "सागरा प्राण तळमळला", "हे हिन्दु नृसिंहा प्रभो शिवाजी राजा", "जयोस्तुते", "तानाजीचा पोवाडा" आदि कविताएँ अत्यन्त लोकप्रिय हैं। स्वातंत्र्यवीर सावरकर की 40 पुस्तकें बाजार में उपलब्ध हैं, जो निम्नलिखित हैं-

अखण्ड सावधान असावे ; 1857 चे स्वातंत्र्यसमर ; अंदमानच्या अंधेरीतून ; अंधश्रद्धा भाग 1 ; अंधश्रद्धा भाग 2 ; संगीत उत्तरक्रिया ; संगीत उ:शाप ; ऐतिहासिक निवेदने ; काळे पाणी ; क्रांतिघोष ; गरमा गरम चिवडा ; गांधी आणि गोंधळ ; जात्युच्छेदक निबंध ; जोसेफ मॅझिनी ; तेजस्वी तारे ; प्राचीन अर्वाचीन महिला ; भारतीय इतिहासातील सहा सोनेरी पाने ; भाषा शुद्धी ; महाकाव्य कमला ; महाकाव्य गोमांतक ; माझी जन्मठेप ; माझ्या आठवणी - नाशिक ; माझ्या आठवणी - पूर्वपीठिका ; माझ्या आठवणी - भगूर ; मोपल्यांचे बंड ; रणशिंग ; लंडनची बातमीपत्रे ; विविध भाषणे ; विविध लेख ; विज्ञाननिष्ठ निबंध ; शत्रूच्या शिबिरात ; संन्यस्त खड्ग आणि बोधिवृक्ष ; सावरकरांची पत्रे ; सावरकरांच्या कविता ; स्फुट लेख ; हिंदुत्व ; हिंदुत्वाचे पंचप्राण ; हिंदुपदपादशाही ; हिंदुराष्ट्र दर्शन ; क्ष-किरणें

'द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस - १८५७' सावरकर द्वारा लिखित पुस्तक है, जिसमें उन्होंने सनसनीखेज व खोजपूर्ण इतिहास लिख कर ब्रिटिश शासन को हिला डाला था। अधिकांश इतिहासकारों ने 1957 के प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम को एक सिपाही विद्रोह या अधिकतम भारतीय विद्रोह कहा था। दूसरी ओर भारतीय विश्लेषकों ने भी इसे तब तक एक योजनाबद्ध राजनीतिक एवं सैन्य आक्रमण कहा था, जो भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के ऊपर किया गया था।

पुस्तक एवं फिल्म

 
सावरकर पर भारत सरकार द्वारा जारी डाक-टिकट
जालस्थल

इनके जन्म की १२५वीं वर्षगांठ पर इनके ऊपर एक अलाभ जालस्थल आरंभ किया गया है। इसका संपर्क अधोलिखित काड़ियों मॆं दिया गया है।[3] इसमें इनके जीवन के बारे में विस्तृत ब्यौरा, डाउनलोड हेतु ऑडियो व वीडियो उपलब्ध हैं। यहां उनके द्वारा रचित १९२४ का दुर्लभ पाठ्य भी उपलब्ध है। यह जालस्थल २८ मई, २००७ को आरंभ हुआ था।

चलचित्र

सामाजिक उत्थान

सावरकर एक महान समाज सुधारक भी थे। उनका दृढ़ विश्वास था, कि सामाजिक एवं सार्वजनिक सुधार बराबरी का महत्त्व रखते हैं व एक दूसरे के पूरक हैं। उनके समय में समाज बहुत सी कुरीतियों और बेड़ियों के बंधनों में जकड़ा हुआ था। इस कारण हिन्दू समाज बहुत ही दुर्बल हो गया था। अपने भाषणों, लेखों व कृत्यों से इन्होंने समाज सुधार के निरंतर प्रयास किए। हालांकि यह भी सत्य है, कि सावरकर ने सामाजिक कार्यों में तब ध्यान लगाया, जब उन्हें राजनीतिक कलापों से निषेध कर दिया गया था। किन्तु उनका समाज सुधार जीवन पर्यन्त चला। उनके सामाजिक उत्थान कार्यक्रम ना केवल हिन्दुओं के लिए बल्कि राष्ट्र को समर्पित होते थे। १९२४ से १९३७ का समय इनके जीवन का समाज सुधार को समर्पित काल रहा।

सावरकर के अनुसार हिन्दू समाज सात बेड़ियों में जकड़ा हुआ था।।[12]

  1. स्पर्शबंदी: निम्न जातियों का स्पर्श तक निषेध, अस्पृश्यता[16]
  2. रोटीबंदी: निम्न जातियों के साथ खानपान निषेध[17][18]
  3. बेटीबंदी: खास जातियों के संग विवाह संबंध निषेध[19]
  4. व्यवसायबंदी: कुछ निश्चित व्यवसाय निषेध
  5. सिंधुबंदी: सागरपार यात्रा, व्यवसाय निषेध
  6. वेदोक्तबंदी: वेद के कर्मकाण्डों का एक वर्ग को निषेध
  7. शुद्धिबंदी: किसी को वापस हिन्दूकरण पर निषेध

सावरकरजी हिन्दू समाज में प्रचलित जाति-भेद एवं छुआछूत के घोर विरोधी थे। बम्बई का पतितपावन मंदिर इसका जीवन्त उदाहरण है, जो हिन्दू धर्म की प्रत्येक जाति के लोगों के लिए समान रूप से खुला है।।[11] पिछले सौ वर्षों में इन बन्धनों से किसी हद तक मुक्ति सावरकर के ही अथक प्रयासों का परिणाम है।

राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी का समर्थन

हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए सावरकर सन् 1906 से ही प्रयत्नशील थे। लन्दन स्थित भारत भवन (इंडिया हाउस) में संस्था 'अभिनव भारत' के कार्यकर्ता रात्रि को सोने के पहले स्वतंत्रता के चार सूत्रीय संकल्पों को दोहराते थे। उसमें चौथा सूत्र होता था ‘हिन्दी को राष्ट्रभाषा व देवनागरी को राष्ट्रलिपि घोषित करना'।

अंडमान की सेल्यूलर जेल में रहते हुए उन्होंने बन्दियों को शिक्षित करने का काम तो किया ही, साथ ही साथ वहां हिन्दी के प्रचार-प्रसार हेतु काफी प्रयास किया। 1911 में कारावास में राजबंदियों को कुछ रियायतें देना शुरू हुई, तो सावरकर जी ने उसका लाभ राजबन्दियों को राष्ट्रभाषा पढ़ाने में लिया। वे सभी राजबंदियों को हिंदी का शिक्षण लेने के लिए आग्रह करने लगे। हालांकि दक्षिण भारत के बंदियों ने इसका विरोध किया क्योंकि वे उर्दू और हिंदी को एक ही समझते थे। इसी तरह बंगाली और मराठी भाषी भी हिंदी के बारे में ज्यादा जानकारी न होने के कारण कहते थे कि इसमें व्याकरण और साहित्य नहीं के बराबर है। तब सावरकर ने इन सभी आक्षेपों के जवाब देते हुए हिन्दी साहित्य, व्याकरण, प्रौढ़ता, भविष्य और क्षमता को निर्देशित करते हुए हिन्दी को ही राष्ट्रभाषा के सर्वथा योग्य सिद्ध कर दिया। उन्होंने हिन्दी की कई पुस्तकें जेल में मंगवा ली और राजबंदियों की कक्षाएं शुरू कर दीं। उनका यह भी आग्रह था कि हिन्दी के साथ बांग्ला, मराठी और गुरुमुखी भी सीखी जाए। इस प्रयास के चलते अण्डमान की भयावह कारावास में ज्ञान का दीप जला और वहां हिंदी पुस्तकों का ग्रंथालय बन गया। कारावास में तब भाषा सीखने की होड़-सी लग गई थी। कुछ माह बाद राजबंदियों का पत्र-व्यवहार हिन्दी भाषा में ही होने लगा। तब अंग्रेजों को पत्रों की जांच के लिए हिंदीभाषी मुंशी रखना पड़ा।

मराठी पारिभाषिक शब्दावली में योगदान

भाषाशुद्धि का आग्रह धरकर सावरकर ने मराठी भाषा को अनेकों पारिभाषिक शब्द दिये, उनके कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं - [20]

: मराठी शब्द ( हिन्दी शब्द, अंग्रेज़ी शब्द )
  • दिनांक ( तारीख, डेट )
  • क्रमांक ( नंबर, नंबर )
  • बोलपट ( -- , टॉकी )
  • नेपथ्य
  • वेशभूषा ( -- , कॉश्च्युम )
  • दिग्दर्शक ( -- , डायरेक्टर )
  • चित्रपट ( -- , सिनेमा )
  • मध्यंतर ( -- , इन्टर्व्हल )
  • उपस्थित ( हजर, प्रेसेन्ट )
  • प्रतिवृत्त ( -- , रिपोर्ट )
  • नगरपालिका ( -- , म्युन्सिपाल्टी )
  • महापालिका ( -- , कॉर्पोरेशन )
  • महापौर ( -- , मेयर )
  • पर्यवेक्षक ( -- , सुपरवायझर )
  • विश्वस्त ( -- , ट्रस्टी )
  • त्वर्य/त्वरित ( -- , अर्जंट )
  • गणसंख्या ( -- , कोरम )
  • स्तंभ ( -- , कॉलम )
  • मूल्य ( -- , किंमत )
  • शुल्क ( -- , फी )
  • हुतात्मा ( शहीद, )
  • निर्बंध ( कायदा, लॉ )
  • शिरगणती ( खानेसुमारी, -- )
  • विशेषांक ( खास अंक, -- )
  • सार्वमत ( -- , प्लेबिसाइट )
  • झरणी ( -- , फाऊन्टनपेन )
  • नभोवाणी ( -- , रेडिओ )
  • दूरदर्शन ( -- , टेलिव्हिजन )
  • दूरध्वनी ( -- , टेलिफोन )
  • ध्वनिक्षेपक ( -- , लाउड स्पीकर )
  • विधिमंडळ ( -- , असेम्ब्ली )
  • अर्थसंकल्प ( -- , बजेट )
  • क्रीडांगण ( -- , प्लेग्राउंड )
  • प्राचार्य ( -- , प्रिन्सिपॉल )
  • मुख्याध्यापक ( -- , प्रिन्सिपॉल )
  • प्राध्यापक ( -- , प्रोफेसर )
  • परीक्षक ( -- , एक्झामिनर )
  • शस्त्रसंधी ( -- , सिसफायर )
  • टपाल ( -- , पोस्ट )
  • तारण ( -- , मॉर्गेज )
  • संचलन ( -- , परेड )
  • गतिमान
  • नेतृत्व ( -- , लिडरशीप )
  • सेवानिवृत्त ( -- , रिटायर )
  • वेतन ( पगार, सॅलेरी )

सावरकर के नाम पर स्थापित संस्थाएँ

 
संसद में सावरकर को श्रद्धाञ्जलि देते हुए प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी

सावरकर के कार्य को आगे बढ़ाने के लिए भारत में अनेक संस्थाएँ कार्यरत हैं, उनमें से कुछ ये हैं-

  • नादब्रह्म (चिंचवड-पुणे) : रवींद्र-सावनी-वंदना घांगुर्डे द्वारा संचालित यह संगठन, रंगमंच पर सावरकर के साहित्य पर आधारित कई कार्यक्रम प्रस्तुत करता है।
  • वीर सावरकर फाउंडेशन (कलकता)
  • वीर सावरकर मित्र मंडळ ()
  • वीर सावरकर स्मृती केंद्र (वडोदरा)
  • समग्र सावरकर वाङ्मय प्रकाशन समिती
  • सावरकर दर्शन प्रतिष्ठान (मुंबई)
  • सावरकर रुग्ण सेवा मंडळ (लातूर)
  • स्वातंत्र्यवीर सावरकर गणेश मंडळ ()
  • स्वातंत्र्यवीर सावरकर मंडळ (निगडी-पुणे जिला)
  • स्वातंत्र्यवीर सावरकर साहित्य अभ्यास मंडळ (डोंबिवली-ठाणे जिला)
  • स्वातंत्र्यवीर सावरकर साहित्य अभ्यास मंडळ (मुंबई) -- यह संस्था सावरकर साहित्य सम्मेलन का आयोजन करती है।

सावरकर के प्रमुख कार्य, एक दृष्टि में

  • सावरकर भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के केन्द्र लन्दन में उसके विरुद्ध क्रांतिकारी आन्दोलन संगठित किया।
  • वे भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने सन् 1857 की लड़ाई को 'भारत का प्रथम स्वाधीनता संग्राम' बताते हुए 1907 में लगभग एक हज़ार पृष्ठों का इतिहास लिखा।
  • वे भारत के पहले और दुनिया के एकमात्र लेखक थे जिनकी पुस्तक को प्रकाशित होने के पहले ही ब्रिटिश साम्राज्य की सरकारों ने प्रतिबन्धित कर दिया था।
  • वे दुनिया के पहले राजनीतिक कैदी थे जिनका मामला हेग के अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय में चला था।
  • वे पहले भारतीय राजनीतिक कैदी थे जिसने एक अछूत को मन्दिर का पुजारी बनाया था।
  • वे गाय को एक 'उपयोगी पशु' कहते थे।
  • उन्होने बौद्ध धर्म द्वारा सिखायी गयी "अतिरेकी अहिंसा" की आलोचना करते हुए केसरी में 'बौद्धों की अतिरेकी अहिंसा का शिरच्छेद' नाम से शृंखलाबद्ध लेख लिखे थे।
  • सावरकर, महात्मा गांधी के कटु आलोचक थे। उन्होने अंग्रेजों द्वारा द्वितीय विश्वयुद्ध के समय जर्मनी के विरुद्ध हिंसा को गांधीजी द्वारा समर्थन किए जाने को 'पाखण्ड' करार दिया।
  • सावरकर ने अपने ग्रन्थ 'हिन्दुत्व' के पृष्ठ 81 पर लिखा है कि – कोई भी व्यक्ति बगैर वेद में विश्वास किए भी सच्चा हिन्दू हो सकता है। उनके अनुसार केवल जातीय सम्बन्ध या पहचान हिन्दुत्व को परिभाषित नहीं कर सकता है बल्कि किसी भी राष्ट्र की पहचान के तीन आधार होते हैं – भौगोलिक एकता, जातीय गुण और साझा संस्कृति।
  • जब भीमराव आम्बेडकर ने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया तब सावरकर ने कहा था, "अब जाकर वे सच्चे हिन्दू बने हैं"।
  • सावरकर ने ही वह पहला भारतीय झंडा बनाया था, जिसे जर्मनी में 1907 की अंतर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस में मैडम कामा ने फहराया था।
  • वे प्रथम क्रान्तिकारी थे जिन पर स्वतंत्र भारत की सरकार ने झूठा मुकदमा चलाया और बाद में उनके निर्दोष साबित होने पर उनसे माफी मांगी।
  • सावरकर ने भारत की आज की सभी राष्ट्रीय सुरक्षा सम्बन्धी समस्याओं को बहुत पहले ही भाँप लिया था। [21][22] १९६२ में चीन द्वारा भारत पर आक्रमण करने के लगभग दस वर्ष पहले ही कह दिया था कि चीन भारत पर आक्रमण करने वाला है।
  • भारत के स्वतंत्र हो जाने के बाद गोवा की मुक्ति की आवाज सबसे पहले सावरकर ने ही उठायी थी।[23]

कालक्रम

28 मई 1883 -- विनायक दामोदर सावरकर का जन्म

1901 -- मैट्रिक की परीक्षा पास की।

1901 -- यमुनाबाई के साथ विवाह हुआ।

1902 -- पुणे के फर्ग्युसन कालेज से बी॰ए॰ किया।

1904 -- अभिनव भारत नामक एक क्रान्तिकारी संगठन की स्थापना की।

'1905 -- बंगाल के विभाजन के बाद उन्होने पुणे में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई।

1906 -- उन्हें श्यामजी कृष्ण वर्मा छात्रवृत्ति मिली।

10 मई, 1907 -- इंडिया हाउस, लन्दन में प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की स्वर्ण जयन्ती मनाई।

जून, 1908 -- इनकी पुस्तक द इण्डियन वॉर ऑफ़ इण्डिपेण्डेंस : 1857 तैयार हो गयी।

मई 1909 -- लन्दन से 'बार एट लॉ' (वकालत) की परीक्षा उत्तीर्ण की

1 जुलाई 1909 -- मदनलाल ढींगरा ने विलियम हट कर्जन वायली को गोली मारी।

13 मई 1910 -- पैरिस से लन्दन पहुँचने पर उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया।

8 जुलाई 1910 -- एम॰एस॰ मोरिया नामक जहाज से भारत ले जाते हुए सीवर होल के रास्ते ये भाग निकले।

24 दिसम्बर 1910 -- उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गयी।

31 जनवरी 1911 -- इन्हें दोबारा आजीवन कारावास दिया गया।

7 अप्रैल, 1911 - काला पानी की सजा पर सेलुलर जेल भेजा गया।

मई १९२१ -- अण्डमान की सेलुलर जेल से रिहा।

१९२१ से १९२४ तक -- पुणे की यरवदा केन्द्रीय कारागार में बन्दी।

६ जनवरी २०२४ -- कुछ शर्तों के साथ यरवदा केन्द्रीय कारागार मुक्त कर दिये गये।

१९२४ से १९३७ तक -- रत्नागिरि में प्रतिबन्धित स्वतन्त्रता के साथ रहे।

मई १९२४ -- रत्नागिरि में प्लेग का प्रकोप के कारण नासिक चले जाने की अनुमति

7 जनवरी 1925 -- इनकी पुत्री, प्रभात का जन्म

मार्च, 1925 -- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ॰ हेडगेवार से भेंट

17 मार्च 1928 -- पुत्र विश्वास का जन्म

फरवरी, 1931 -- उनके प्रयासों से बम्बई में 'पतित पावन मन्दिर' की स्थापना हुई।

25 फरवरी 1931 -- बम्बई प्रेसीडेंसी में हुए अस्पृश्यता उन्मूलन सम्मेलन की अध्यक्षता की।

४ जनवरी १९३७ -- अंग्रेज सरकार ने उनसे आवागमन सम्बन्धी सारे प्रतिबन्ध हटा लिये।

१ अगस्त १९३७ -- बालगंगाधर तिलक की डेमोक्रैटिक स्वराज पार्टी में शामिल हुए।

१९३७ -- अहमदाबाद (कर्णावती) में उन्हें हिन्दू महासभा का अध्यक्ष चुना गया। १९४२ तक वे इसके अध्यक्ष रहे।

15 अप्रैल 1938 -- मराठी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष चुने गये।

22 जून 1941 -- नेताजी सुभाष चंद्र बोस से भेंट

9 अक्टूबर 1942 -- चर्चिल को तार भेज कर भारत की स्वतन्त्रता के लिये निवेदन किया।

1943 -- इसके बाद मुम्बई के दादर में निवास

16 मार्च 1945 -- आपके भ्राता बाबूराव का देहान्त

19 अप्रैल 1945 -- अखिल भारतीय रजवाड़ा हिन्दू सभा सम्मेलन की अध्यक्षता की।

8 मई १९४५ -- पुत्री प्रभात का विवाह सम्पन्न हुआ।

अप्रैल 1946 -- बम्बई सरकार ने सावरकर के लिखे साहित्य पर से प्रतिबन्ध हटा लिया।

1947 -- भारत विभाजन का विरोध किया।

15 अगस्त 1947 -- सदान्तो में भारतीय तिरंगा एवं भगवा, दो-दो ध्वजारोहण किये।

5 फरवरी 1948 -- महात्मा गांधी की हत्या के उपरान्त उन्हें प्रिवेन्टिव डिटेन्शन एक्ट धारा के अन्तर्गत गिरफ्तार

19 अक्टूबर 1949 -- आपके अनुज नारायणराव का देहान्त

4 अप्रैल 1950 -- पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री लियाक़त अली ख़ान के दिल्ली आगमन की पूर्व संध्या पर उन्हें सावधानीवश बेलगाम जेल में रोक कर रखा गया।

मई, 1952 -- पुणे की एक विशाल सभा में अभिनव भारत संगठन को उसके उद्देश्य (भारतीय स्वतन्त्रता प्राप्ति) पूर्ण होने पर भंग किया गया।

10 नवम्बर 1957 -- नई दिल्ली में आयोजित हुए 1857 के प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के शाताब्दी समारोह में मुख्य वक्ता रहे।

8 अक्टूबर 1949 -- पुणे विश्वविद्यालय ने उन्हें डी०लिट० की मानद उपाधि से अलंकृत किया।

8 नवम्बर 1963 -- आपकी पत्नी यमुनाबाई का देहान्त

सितम्बर, 1965 -- तेज ज्वर ने आ घेरा, जिसके बाद इनका स्वास्थ्य गिरने लगा।

1 फ़रवरी 1966 -- मृत्युपर्यन्त उपवास करने का निर्णय लिया।

26 फरवरी 1966 -- मुम्बई में भारतीय समयानुसार प्रातः 10 बजे निधन

इन्हें भी देखें

विनायक दामोदर सावरकर के बारे में, विकिपीडिया के बन्धुप्रकल्पों पर और जाने:
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सन्दर्भ

  1. Nandy, Ashis (2003). Time Warps: The Insistent Politics of Silent and Evasive Pasts. दिल्ली: Orient Longman. पृ॰ 71. OCLC 49616949. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788178240718.
  2. Kumar, Pramod (1992). Towards Understanding Communalism. Chandigarh: Centre for Research in Rural and Industrial Development. पृ॰ 348. OCLC 27810012. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788185835174.
  3. "स्वातंत्र्य वीर सावरकर" (अंग्रेज़ी में). www.savarkar.org , १२ सितंबर, २००७. मूल से 19 जून 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १२ सितंबर, २००७. Italic or bold markup not allowed in: |publisher= (मदद); |accessdate= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  4. "Savarkar, not a freedom fighter, social reformer, writer, dramatist, poet, historian, political leader and philosopher". मूल से 5 फ़रवरी 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 जनवरी 2018.
  5. Wolf, Siegfried O. (January 2010). "Vinayak Damodar Savarkar's strategic agnostism: A compilation of his socio-political philosophy and world view". Heidelberg papers in South Asian and comparative politics. Heidelberg: South Asia Institute, Department of Political Science, Heidelberg University. Working paper no 51. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 1617-5069. मूल से 12 नवंबर 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 September 2010.
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  10. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; वेबदुनिया नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
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  15. "गाय को पूजनीय नहीं मानते थे वीर सावरकर, कहते थे सिर्फ एक उपयोगी पशु".
  16. सावरकर, विनायक दामोदर (१९२७). समग्र सावरकर वाङ्मय भाग-३. पपृ॰ ८१. हिन्दुत्वाचे पंचप्राण
  17. सावरकर, विनायक दामोदर (१९३७). समग्र सावरकर वाङ्मय भाग-३. पपृ॰ ६५२. माझी जनमाथेप
  18. सावरकर, विनायक दामोदर (१९२७). समग्र सावरकर वाङ्मय भाग-१. पपृ॰ ४९५. हिन्दुत्वाचे पंचप्राण
  19. सावरकर, विनायक दामोदर (१९३५). समग्र सावरकर वाङ्मय भाग-३. पपृ॰ ६५२. हिंदुत्वाचे पंचप्राण
  20. स्वा. सावरकरांनी दिलेले ४५ मराठी शब्द Archived 2017-06-04 at the वेबैक मशीन अमेय गोगटे ( २१ February २०१३ ) महाराष्ट्र टाईम्स
  21. "If Gandhi is father of nation, Savarkar is father of national security". मूल से 5 मई 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 जनवरी 2020.
  22. "Contrasts between Savarkar and Nehru, how merciful the British were to Nehru & harsh to Savarkar". मूल से 5 दिसंबर 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 जनवरी 2020.
  23. गोवा-मुक्ति और सावरकर

बाहरी कड़ियाँ

पुस्तकें एवं विडियो
  • सावरकर, वीर. काला पानी (एचटीएम). प्रभात प्रकाशन. पपृ॰ २८३. ५४९५. अभिगमन तिथि २० जून २००९. नामालूम प्राचल |origdate= की उपेक्षा की गयी (|orig-year= सुझावित है) (मदद)[मृत कड़ियाँ]
  • गुप्ता, सतीश. वीर सावरकर (एचटीएम). पर्व प्रकाशन. पपृ॰ १६. ६२३२. अभिगमन तिथि २० जून २००९. नामालूम प्राचल |origmonth= की उपेक्षा की गयी (मदद); नामालूम प्राचल |origdate= की उपेक्षा की गयी (|orig-year= सुझावित है) (मदद)[मृत कड़ियाँ]
  • गोयल, शिव कुमार. अमर सेनानी सावरकर (एचटीएम). हिन्दी: हिन्दी साहित्य सदन. पपृ॰ १६२. ५४३०. अभिगमन तिथि ०३ मार्च २००७. नामालूम प्राचल |origmonth= की उपेक्षा की गयी (मदद); नामालूम प्राचल |origdate= की उपेक्षा की गयी (|orig-year= सुझावित है) (मदद); |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)[मृत कड़ियाँ]
  • वीर सावरकर (गूगल पुस्तक ; लेखक डॉ भवान सिंह राणा)
  • यज्ञ (गूगल पुस्तक ; लेखक - भालचन्द्र दत्तात्रय खेर, शैलजा राजे) - वीर सावरकर के जीवनचरित पर आधारित मराठी उपन्यास का हिन्दी रूपान्तर