इक्ष्वाकु वंश

हिंदू पौराणिक राजवंश

इक्ष्वाकु वंश प्राचीन वैदिक भारत के शासकों का एक वंश है। इनकी उत्पत्ति राजा इक्ष्वाकु जिनको जैन लोग ऋषभदेव भगवान के नाम से जाने जाते है उनके प्रथम आहार ईख के रस के मिलने से हुई थी इक्ष्वाकु वंश की स्थापना ।आदिनाथ भगवान के जैन दीक्षा लेने के बाद आहार के लिए कोई नही जानता था ऐसे मैं राजा सोम श्रेयांश को पूर्व भाव से आहार विधि याद आई चुकी जैन साधु की आहार विधि पूर्ण शुद्ध होती है जिससे कठिनाई होती है छह माह के बाद राजा सोम श्रेयांश को यह विधि याद आने पर भगवान आदिनाथ को आहार जो कराया वो प्रथम आहार ईख का था इससे प्रभावित होकर भगवान आदिनाथ के पुत्र भरत चक्रवर्ती ने ही इक्ष्वाकु कुल की स्थापना आदिनाथ से ही मानी,

आदिनाथ या ऋषभदेव प्राचीन कोशल देश जिसे विनीता नगरी भी कहा जाता है के राजा थे और इनकी राजधानी अयोध्या थी। रामायण और महाभारत में इन दोनों वंशों के अनेक प्रसिद्ध शासकों का उल्लेख मिलता है। श्रीराम इस वंश में जन्मे और बौद्ध धर्म में भी इक्ष्वाकु वंश का बहुत महत्त्व है। सभी जैन तीर्थंकर ऋषभदेव से प्रारंभ होकर इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न हुए थे ऋषभदेव ही इस वंश के जनक है। बुद्धवंश के अनुसार शाक्यमुनि गौतम बुद्ध शाक्य कोलिय, ओक्काक के कुल में जन्मे थे जो संस्कृत के 'इक्ष्वाकु' का ही पालि रूप है। इक्ष्वाकु वंश को रघुवंश कहा जाता है जिसके वंशज रघुवंशी है जो मध्यप्रदेश उत्तरप्रदेश और राजस्थान में मुख्यता पाए जाते है

शासकों की सूची

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ब्रह्मा जी के 10 मानस पुत्रों में से एक मरीचि जो की जैन मान्यता अनुसार आदिनाथ के प्रपौत्र और भरत के पुत्र हैं। इक्ष्वाकु को भगवान ऋषभदेव भी कहा जाता है। भगवान ऋषभदेव आदिनाथ के पुत्र भरत के नाम पर भारत का नाम पड़ा ये आदिनाथ के बाद इक्ष्वाकु वंश में प्रथम चक्रवर्ती भी माने जाते है।

यहाँ से सनातन सतयुग आरम्भ होता हैं। संपादित करें 1- ब्रह्मा जी के पुत्र मरीचि 2- मरीचि के पुत्र कश्यप 3- कश्यप के पुत्र विवस्वान या सूर्य 4- विवस्वान के पुत्र वैवस्वत मनु – जिनसे सूर्यवंश का आरम्भ हुआ। 5- वैवस्वत के पुत्र नाभाग 6- नाभाग 7- अम्बरीष 8- विरुप 9- पृषदश्व 10- रथीतर

11- इक्ष्वाकु कोलिय' – ये परम प्रतापी राजा थे, इनसे इस वंश का एक नाम इक्ष्वाकु कोलिय नागवंशी वंश' हुआ। (दूसरी जगह इनके पिता वैवस्वत मनु भी वताये जाते हैं )

यहाँ से त्रेतायुग आरम्भ होता हैं।

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यहाँ से द्वापर युग शुरु होता है।

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यहाँ से कलियुग आरम्भ होता हैं।

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  • 101- उरुक्रीय (या गुरुक्षेत्र)
  • 102- वत्सव्यूह
  • 103- प्रतियोविमा
  • 104- भानु
  • 105- दिवाकर (या दिवाक)
  • 106- वीर सहदेव
  • 107- बृहदश्व II
  • 108- भानुराठ (या भानुमान)
  • 109- प्रतिमाव
  • 110- सुप्रिक
  • 111- मरुदेव
  • 112- सूर्यक्षेत्र
  • 113- पुष्कर (या किन्नरा)
  • 114- अंतरीक्ष
  • 115- सुवर्णा (या सुताप)
  • 116- सुमित्रा (या अमितराजित)
  • 117- ब्रुहदराज (ओक्काका)
  • 118- बरही (ओक्कामुखा)
  • 119- कृतांजय (सिविसमंजया)
  • 120- रणजय्या (सिहसारा)
  • संजय (महाकोशल या जयसेना)
  • 121- शाक्य (सिहानू:शाक्य वंश के संस्थापक)
  • 122- शुद्धोधन
  • 123- सिद्धार्थ, गौतम बुद्ध
  • 124- राहुल शाक्य ही फिर मौर्य बन गये शाक्यों के नरसंघार के बाद
  • 125- प्रसेनजीत
  • 126- कुशद्रका (या कुंतल)
  • 127- रानाक (या कुलका)
  • 128- सुरथ
  • 129- सुमित्र

राजा सुमित्र एक क्रूर राजा था अंतिम शासक सूर्यवंश थे, जिन्हें 362 ईसा पूर्व में मगध के शक्तिशाली सम्राट महापद्म नंद ने हराया था। महापद्मनंद ने राजपुतों कर संहार किया इसलिए इन्हे २ परशुराम कहा जाता है राजा सुमित्रा इसके पश्चात वह बिहार में स्थित रोहतास चले गये थे और आगे चलकर उन्होंने कुर्मवंशी अवधिया कुर्मी की स्थापना की और कुर्मी कहलाएं [1][2][3]

इन्हें भी देखें

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  1. The Valmiki Ramayana, Volume 3.
  2. Misra, V.S. (2007). Ancient Indian Dynasties, Mumbai: Bharatiya Vidya Bhavan, ISBN 81-7276-413-8, pp.283-8, 384
  3. History Of Ancient India ISBN 81-269-0616-2 vol II [1]